बंगाल में चतुर्मुखी चुनाव पंचमुखी भी हो सकता है,फायदा में सिर्फ नमो लहर
वामदलों के हाशिये पर चले जाने और तीसरे मोर्चे का खेल खराब करने के अन्नाई भाजपा एजंडे के कार्यान्वयन के अलावा दीदी के हाथ फिलहाल कुछ आने की संभावना ठीक उसी तरह नहीं है,जैसे आप सुनामी के गर्भपात से विश्वबैंक के भारतीय वंसत से कुछ भी नहीं बदलने जा रहा है।
Thanks to didi,NAMO advantage in Bengal!Didi all set to destroy CPIM plus third front as well as congress!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सोमवार को कोलकाता प्रेस क्लब में शायद एक ऐतिहासिक घटना होने जा रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ सेवा में रहते हुए अविराम अदालती लड़ाई जारी रखने वाले आईपीएस अफसर वहां बंगाल के मूलनिवासियों का घोषणापत्र जारी करने वाले हैं।रज्जाक मोल्ला के विद्रोह का पूरक है यह कार्यक्रम।जिसके तहत प्रदेश ही नहीं देश के सत्ता समीकरण में भारी उलटफेर की संभावना है।
इस बीच बंगाल से प्रधानमंत्रित्व के दावेदार ममता बनर्जी ने अपने प्रधानमंत्रित्व के दावेदारी के तहत शेरनी की तरह देशरक्षा के संकल्प के तहत जो अश्वमेधी घोड़े दौड़ाने शुरु किये हैं देशभर में,उससे वामदलों के हाशिये पर चले जाने और तीसरे मोर्चे का खेल खराब करने के अन्नाई भाजपा एजंडे के कार्यान्वयन के अलावा दीदी के हाथ फिलहाल कुछ आने की संभावना ठीक उसी तरह नहीं है,जैसे आप सुनामी के गर्भपात से विश्वबैंक के भारतीय वंसत से कुछ भी नहीं बदलने जा रहा है।
बहरहाल जहां तक बंगाल में बहुजन राजनीति का सवाल है, मतुआ आंदोलन की निरंतरता और जोगेंद्र नाथ मंडल के शुरुआती प्रयासों के बाद जो काम बामसेफ और बहुजनसमाज पार्टी पिछले तीस साल से कर नहीं पाये, रज्जाक और नजरुल की अगुवाई में दलित मुस्लिम गठबंधन से वह एजंडा जमीनी हकीकत बनता नजर आ रहा है।
अब दीदी देशभर में सड़कों का धूल छानते हुए ईमानदारी और सादगी की छवि जरुर बन सकती है,लोकिन उनकी लंबी अनुपस्थिति में बंगाल में लगातार तेज हो रही केशरिया बयार को तेज होने से रोकने लायक संगठन उनके पास भी नहीं है।
अगर दलित मुस्लिम गठबंदन ने कुछ गजब का खेल दिखाया तो इसकी प्रतिक्रिया में हिंदुत्व ध्रूवीकरण भी तेज हो जाने के आसार हैं।
दीदी की दिल्ली रैली से पहले दिल्ली पहुंच गये हैं माकपा निष्कासित रज्जाक मोल्ला।वे वहां दलित मुस्लिम गठबंधन को राष्ट्रीय स्वरुप देने की कवायद करेंगे।
हावड़ा से पूर्व तृणमूल सांसद विक्रम सरकार जो अब तक नजरुल रज्जाक के साथ थे ,भाजपा के साथ चले गये हैैं।
सैफुद्दीन चौधरी और संतोष राणा के भी वाम मुख्यदारा में शामिल होने की खबर है।
यह शुरुआती ध्रूवीकरण की दिशा बनने के संकेत हैं।बहुत सारे उलटफेर अब और होने हैं।इसमें खास बात यह है कि बंगाल भी बाकी देश की तरह तेजी से नमोमय बनने लगा है।
फिलहाल बंगाल में कान आंख यथासंभव खोल लेने के बावजूद अरविंद केजरीवाल के रोड शो का कोई जमीनी असर होता नहीं दीख रहा है। इसके बावजूद बंगाल में पूरे पैंतालीस साल के बाद किसी बड़े चुनाव में राजनीति चतुष्कोण है।
पांचवा कोण भी तैयार है और उसके आकार लेने की देरी है। साहित्यकार व आईपीएस अफसर नजरुल इस्लाम रिटायर हो चुके हैं और रज्जाक मोल्ला माकपा बाहर। रिटायर होते ही साहित्यिक मोर्चे से बगावत का ऐलान कर दिया है नजरुल ने।
यह पंचम कोण बंगाल को पहली प्रतिक्रिया में तो नमोमय दिशा देने जा रहा है और फिलहाल भाजपाइयों के हाथों में बिन मांगे हर समीकरण के मध्य दोनों हाथों में कमजोर संगठन के बावजूद घी चस्पां लड्डू ही लड्डू हैं।
लेकिन दलित मुस्लिम संगठन की असली रणनीति लोकसभा चुनाव को लेकर नहीं,बल्कि 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर है।लोकसभा चुनाव तो उसके लिए लंबी लड़ाई का रिहर्सल है और इस रिहर्सल का सारा फायदा भाजपो को होगा क्योंकि दीदी वामदलों और कांग्रेस दोनों को बंगाल के नक्शे से मिटाने के लिए संघी पिच पर ही धुआंधार खेल रही हैं।
सोमवार को कोलकाता प्रेस कल्ब में उनकी तरफ से तीन बेहद आक्रामक पुस्तकें मूलनिवासी घोषणापत्र,मूलनिवासी भाओता और उलंग रानी प्रकाशित हो रही हैं। इन पुस्तकों के शीर्षक अनूदितकरने की जरुरत नहीं है।
बांग्ला के मूर्धन्य कवि नीरेंद्र नाथ चक्रवर्ती की बहुचर्चित कवित उलंग राजा को याद कर लें,बस।
राज्य सरकार की सेवा में रहते हुए नजरुल और माकपा में बने रहकर रज्जाक मंच साझा करते रहे हैं।इनका भरत मिलाप इसी चुनाव में संभावित है।
आपको बता दें, नजरुल समर्थक पहले ही सांगठनिक तौर पर राज्यभर में संगठित है और उनके साथ दलित,आदिवासी,पिछड़े और मुसलमान हर जिले में हैं।
बंगाल सरकार की सेवा में रहते हुए नजरुल अपने चुनिंदा कार्यकर्ताों के साथ सामाजिक कार्यक्रमों के मार्फत अराजनीतिक मंचों के जरिये बंगाल का चप्पा चप्पा पहले ही छान चुके हैं।
रज्जाक का जनाधार प्रश्नातीत है।बंगाल का कोई कोना ही शायद ऐसा हो जहां वाम जनाधार में रज्जाक की छाप नहीं है।
इनके उम्मीदवार भी मैदान में हो गये, तो सारे राजनीतिक दलों का वोट बैंक टूटेगा सिवाय केशरिया वोट बैंक। बंगाल में यह समीकरण चुनाव नतीजों में खासा फेरबदल कर सकता है और तमाम भविष्यवक्ता और चुनाव विशेषज्ञ गलत साबित हो सकते हैं।
वैसे भी भाजपा का वोटबैंक इस बार नमोसुनामी के तहत बंगाल में अभूतपूर्व ढंग से मजबूत होने जा रहा है। वामदवलों की हालत सबसे खराब है और कांग्रेस के लिए तो साइनबोर्ड भी बचाना मुश्किल हो सकता है।तृणमूल कांग्रेस को भी इसका अंदाजा है और उन्हें खुसफहमी है कि भले वोट ज्यादा मिल जाये भाजपा को,सीटें नहीं मिलेंगी।
लेकिन बदलते समीकरण के मध्य दार्जिलिंग तो भाजपा काते में है ही, बारासात, दमदम,कृष्णनगर और हावड़ा में भी पसंदीदा रंग केशरिया बन सकता है।यह तो नमूना है।असल खेल तो अभी बाकी है।
जाहिर है कि दार्जिलिंग की सीट फिर भाजपा को मिलना तय है। केंद्र में सत्ता बदलने की भनक लगते ही दीदी के साथ खड़े विमल गुरुंग फिर केशरिया होने लगे हैं और उनका समर्थन फिलहाल पहाड़ों में निर्णायक है।
भाजपा की जो ऱणनीति है,उसके मुताबिक पीसी सरकार जैसे उम्मीदवार हैरतअंगेज नतीजे निकाल सकते हैं। माकपा के मुकाबले हो या नहीं, कांग्रेस से तो भाजपा के आगे निकल जाने के मजबूत आसार हो गये हैं।
दीदी का अल्पसंख्यक वोट बैंक फिलहाल अटूट है लेकिन रज्जाक नजरुल समीकरण के थोड़ा भी असरदार निकलने पर अल्पसंख्यक उन्हीके साथ बने रहेंगे,इसकी कोई गारंटी नहीं है।मुसलमान भाजपा या वामदलों को एकदम वोट नहीं देंगे,ऐसा भी नहीं कह सकते।कांग्रेस को तो कुछ मुसलमान वोट देंगे ही।दलितों,पिछड़ों और आदिवासियों के बारे में भी फिलहाल यही कहा जा सकता है।
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Anna Mamata alliance is all set to destroy CPIM plus third front as well as congress!Bengal to witness four or five alliances at a time after forty five years which strengthens NAMO Advantage in Bengal.
Darjiling almost gone to BJP.Magician PC Sarkar Junior,EX TMC MP Vikram Sarkar and Tapan Sikdar may upset the apple carts in Barasat, Howrah and Dumdum respectively.Beside Bjp has its traditional citadel in Krishnanagar.Rising the voting percentage is not the only decisive equation,four or five cornered fight in almost all Bengal seats would hurt every other political party with the exception named BJP.
CPIM expelled Razzak Mollah and retired IPS officer Nazrul Islam has to open up his Mulnivasi manifesto on Monday in Kolkata press club.Dalit Muslim alliance is now the ultimate truth and the it has to stimulate Hindutva polarisation only to benefit RSS. On the other hand the dalit Muslim OBC tribal hijacked vote banks seem to be all set to break away from the dondage.
The central administrative tribunal in West Bengal has struck down the promotion of five director generals of Bengal police in response to a petition filed by IPS Nazrul Islam.
The verdict has come as a humiliation to the as all the DGs have been struck down by the order. During the hearing over the past few months, it was becoming clear that the state government was increasingly being pushed to the wall.
Islam has already been approached by the Aam admi Party and the Congress to become its member in the state. Islam is supposed to retire on February 28.
But Nazrul and Razzak opted for Dalit Muslim alliance,the potential game changer in Bengal.Before independence,all three interim Bengal governments were the result of Dalit Muslim alliance.The resurrected mission has declared to make a Dalit Chief Minister with a Muslim deputy in the next assembly elections.
With the general elections barely two months away, Communist Party of India –Marxist (CPM) came up with a rather harsh decision, expelling senior party leader and former land and land reforms minister of West Bengal, Abdur Razzak Molla, from the party in view of "anti-party activities and public vilification of the party's leadership."
The decision was taken at a meeting of the CPI(M) State Secretariat, a statement issued by the party's State Committee said.
Mr. Molla's reacted to the expulsion, saying it was "most welcome" and one that he "was awaiting."
He has courted controversy in recent times for his open criticism of certain top leaders of the party, making his displeasure with their style of functioning known in both private circles as well as in the public domain.
Mr. Molla's remarks have caused considerable unease within the CPI(M) leadership. The move could particularly affect the party's support base in the MLA's home turf in South 24 Parganas district.
An MLA representing the Canning Purba Assembly constituency, Mr Molla's most recent public display of disgruntlement with the CPI(M) leadership was earlier this month when he announced the setting up of a consortium of different Dalit and minorities groups.
It was by no means an easy decision for CPM. Molla, 69, a 45-year party veteran and an eight-time lawmaker from the Canning East constituency since 1977, was also a grass roots leader and the face of the minority community within the CPM fold. With a huge chunk of the minority vote having decisively moved towards ruling Trinamool Congress in the state elections in 2011 and thereafter, chucking out Molla can have serious ramifications for a beleaguered CPM in rural Bengal. However, given Molla's open revolt against the party, the CPM leadership had to send out a strong message. Speaking to Gulf News from Kolkata yesterday (Thursday), Mohammad Salim, CPM central committee member, said: "This was inevitable. Molla has been making derogatory comments about the party's leadership for quite sometime now. Even though elections are close, we could not have put up with such audacity. And honestly, we are not even bothered about the fallout of sacking Molla. For the party, discipline and decency matter a lot more than electoral fortunes."
Reacting to news about his expulsion, the diminutive Molla told newspersons in Kolkata late on Wednesday: "A most welcome move! Let me say this yet again that I am not anti-Left. My only issue is with pseudo- leftists."
In fact, Molla was sticking out like a sore thumb ever since the CPM-led Left Front lost the state Assembly elections in Bengal in May 2011. Holding the outgoing chief minister, Buddhadeb Bhattacharjee, responsible for CPM's severely flawed industry and land acquisition policy, that resulted in the poll debacle, Molla had said: "One who doesn't even know how to handle a simple non-venomous serpent has tried to flirt with a cobra … the result is there for everyone to see!"
He had openly criticised the party's choice of Hritabrata Bandyopadhyay as the CPM nominee for the recent Rajya Sabha polls. Much to the chagrin of the CPM's state unit, only last week, Molla launched a new platform called Social Justice Forum and declared at its first public gathering that he would seriously consider using the platform for a new political identity in the coming days.
৪৫ বছর পর লোকসভা নির্বাচনে রাজ্যের লড়াই চতুর্মুখী
দুই বা তিন নয়। এবার লড়াই চারের। লোকসভা নির্বাচনে পশ্চিববঙ্গে লড়াই এবার চতুর্মুখী। লড়াইয়ের ময়দানে বামফ্রন্ট, কংগ্রেস, বিজেপি এবং তৃণমূল কংগ্রেস। পয়তাল্লিশ বছর পর রাজ্যের ইতিহাসে চতুর্মখী লড়াই। ফলে এক জটিল সমীকরণের মুখে এবারের লোকসভা ভোট।সারা বছর ধরেই রাজনৈতিক ময়দানে দেখা যায় এই চার দলকে। একে অপরের বিরুদ্ধে তোপ দাগতেও ছাড়েন না নেতারা।
কিন্তু ভোট আসতেই চার কমে হয়ে যায় তিন। অতীতের সম্পর্ক যাই থাকুক না কেন ভোটের বাজারে কিন্তু মিলে যায় দুই দল।
দল গড়লেন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়
১ ৯৯৮-লোকসভা ভোট
লড়াই
বাম, কংগ্রেস ও তৃণমূল- বিজেপি জোটের মধ্যে
১ ৯৯৯-লোকসভা ভোট
লড়াই
বাম, কংগ্রেস ও তৃণমূল - বিজেপি জোটের
২০ ০ ১
বিধানসভা নির্বাচন
লড়াই
বাম, বিজেপি , কংগ্রেস ও তৃণমূল জোটের মধ্যে
২০ ০ ৪
লোকসভা নির্বাচন
লড়াইয়ে
বাম, কংগ্রেস ও তৃণমূল - বিজেপি জোট
২০ ০ ৬
বিধানসভা নির্বাচন
বাম, কংগ্রেস ও তৃণমূল - বিজেপি জোটের মধ্যে ছিল লড়াই
২০ ০ ৯
লোকসভা নির্বাচনে লড়াইয়ের ময়দানে
বাম, বিজেপি কংগ্রেস ও তৃণমূল জোট
২০ ১ ১
বিধানসভা নির্বাচনে লড়াই
বাম, বিজেপি ,কংগ্রেস ও তৃণমূল জোটের মধ্যে
(অর্থাত্ পঞ্চায়েত অথবা পুরভোট বাদ দিলে তৃণমূল কংগ্রেস কোনও নির্বাচনেই একক শক্তিতে লড়াই করেনি। কখনও হাত ধরেছে কংগ্রেসের কখনও বিজেপির। )
এবার দেখে নেওয়া যাক ভোটের শতকরা হিসেবে কে কোথায় দাঁড়িয়ে।
দুহাজার এগারোর শেষ বিধানসভা ভোটে
বামেদের শতকরা ভোট ছিল ৪২ শতাংশ
কংগ্রেস ও তৃণমূল কংগ্রেসের ৪৮ শতাংশ
বিজেপির ৪ শতাংশ
কিন্তু তৃণমূলের একার ভোট কত? বলা কঠিন। কারণ একটাই একক শক্তিতে কখনওই লড়েনি তৃণমূল । কংগ্রেসের ভোটের শতকরা হার কত?
লোকসভা ভোটের তারিখ ঘোষণা এখন শুধুই সময়ের অপেক্ষা। এখনও পর্যন্ত যে যেখানে দাঁড়িয়ে তাতে কংগ্রেস ও তৃণমূল অথবা তৃণমূল বিজেপির মধ্যে জোটের সম্ভাবনা নেই বললেই চলে। লড়াই সরাসরি চারমুখি।
ফলে এবারে ভোটে কে কোথায় দাঁড়িয়ে বলা একটু হলেও কঠিন। যেমন কঠিন কে কার কাটবে ভোট। রাজনৈতিক বিশ্লেষকদের মতে এবার লোকসভা ভোটে ঘটতে পারে অনেক ঘটনা।
http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/four-sided-fight-in-state-after-45-years_20599.html
দিল্লির যুদ্ধে মমতার মোক্ষম চাল অণ্ণা
জয়ন্ত ঘোষাল
নয়াদিল্লি, ২ মার্চ , ২০১৪
একটা পোস্টারে ব্যানারে ছয়লাপ দিল্লি শহর।
ছবিতে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের মুখ। তলায় লেখা, 'সাদগি, সচ্চাই ঔর ইমানদারি'। যার অর্থ: অনাড়ম্বর জীবন, সত্য ও সততা।
সঙ্গে মমতার জবানিতে লেখা রয়েছে, 'ম্যায় কিসিসে ডরতি নেহি হুঁ। জব তক জিন্দা রহুঙ্গি, শেরনি কী তরহা রহুঙ্গি অউর দেশকি রক্ষা করুঙ্গি।' অর্থাৎ: আমি কাউকে ভয় পাই না। যত দিন বাঁচব, বাঘিনীর মতো বাঁচব এবং দেশকে রক্ষা করব।
শুধু পোস্টার-ব্যানার নয়, ১২ মার্চ রামলীলা ময়দানে অণ্ণা হজারে-মমতার যে যৌথ সভা হবে, তার প্রচার চলছে টিভি চ্যানেলগুলিতেও। দিল্লির জনসভা সেরেই মমতা-অণ্ণা যাবেন উত্তরপ্রদেশে। সেই সভারও প্রস্তুতি শুরু হয়ে গিয়েছে লখনউয়ে। উত্তর ভারতের আরও কিছু রাজ্যে পর পর সভা করবেন দু'জনে। জামা মসজিদের শাহি ইমামও বেশ কিছু জনসভায় থাকবেন বলে খবর।
অণ্ণা ও মমতার এই সমঝোতাকে রাজনৈতিক দিক থেকে বিশেষ তাৎপর্যপূর্ণ বলে মনে করা হচ্ছে। কংগ্রেস এবং বিজেপি-র শীর্ষ নেতাদের অনেকেই বলছেন, প্রতিকূল পরিস্থিতিতে ঠিকমতো চাল দেওয়ার নামই হল রাজনীতি। মমতা সে কাজে দারুণ ভাবে সফল।
লোকসভা ভোটের দিকে তাকিয়ে একেবারে গোড়ায় মমতা চেয়েছিলেন নীতীশ কুমার, নবীন পট্টনায়ক, জয়ললিতাদের নিয়ে একটি ফেডেরাল ফ্রন্ট গঠন করতে। প্রথম প্রথম সে ব্যাপারে উৎসাহও দেখিয়েছিলেন নীতীশ। কিন্তু নরেন্দ্র মোদী লোকসভা ভোটে বিজেপি-র প্রধান মুখ হিসেবে উঠে আসার পরে এনডিএ ছেড়ে তিনি কংগ্রেস সম্পর্কে নরম মনোভাব নিতে শুরু করেন। ফলে ফেডেরাল ফ্রন্ট নিয়ে তাঁর আগ্রহ কমে।
ফেডেরাল ফ্রন্টের বৃত্ত থেকে দূরে সরে গিয়েছেন নবীন পট্টনায়ক এবং জয়ললিতাও। জয়ললিতা নিজে প্রধানমন্ত্রী হওয়ার স্বপ্ন দেখেন। তাই বামেদের সঙ্গে যোগাযোগ করে তৃতীয় ফ্রন্টের বিকল্প পরিকল্পনা নিয়ে ব্যস্ত হয়ে পড়েছেন। পায়ের তলায় রাজনৈতিক জমির খোঁজে তৃতীয় ফ্রন্ট গড়ার বাধ্যবাধকতা রয়েছে বামেদেরও। সিপিএম সাধারণ সম্পাদক প্রকাশ কারাট বুঝতে পারছেন, পশ্চিমবঙ্গে সিপিএমের অবস্থা শোচনীয়। সেখানে একের পর এক ভোটে বামেদের অবস্থা ক্রমেই খারাপ হচ্ছে। বাম ভোটের অবক্ষয় বন্ধ হওয়ার আশু কোনও লক্ষণই নেই। সেই কারণেই মরিয়া হয়ে মুলায়ম সিংহ যাদব, দেবগৌড়া, জয়ললিতা, নীতীশ কুমার প্রমুখকে নিয়ে তৃতীয় ফ্রন্ট গড়ার চেষ্টা শুরু করেছে সিপিএম।
এই পরিস্থিতিতে ফেডারেল ফ্রন্ট আপাতত শিকেয় তুলে রেখে অণ্ণা হজারের সঙ্গে মিলে সর্বভারতীয় ক্ষেত্রে একটি রাজনৈতিক পরিসর তৈরি করতে সচেষ্ট হয়েছেন মমতা। সম্প্রতি দিল্লি এসে তিনি বলেছেন, 'এখন নির্বাচনী জোট প্রি-পেড নয় হবে পোস্ট পেড।' অর্থাৎ, ভোটের আগে নয়, জোট যা হওয়ার হবে ভোটের পরেই। বস্তুত এমন কথা বলছেন প্রায় সব দলের নেতারাই।
কিন্তু অণ্ণার সঙ্গে মমতার জোট দু'টি রাজনৈতিক দলের সমঝোতা নয়। আসলে এর মধ্যে দিয়ে তৃণমূল নেত্রী এক ঢিলে অনেকগুলি পাখি মেরেছেন। প্রথমত, অণ্ণা-মমতার যৌথ জনসভার প্রচার হিন্দি বলয়ে তৃতীয় ফ্রন্টের লম্ফঝম্প অনেকটাই লঘু করে দিয়েছে। দ্বিতীয়ত, উত্তর ও পশ্চিম ভারতে মমতার জন্য অণ্ণা খুবই সময়োপযোগী। কারণ, সেখানে অণ্ণার নিজস্ব ভোটব্যাঙ্ক রয়েছে। সেই ভরসায় বলীয়ান হয়েই ওই এলাকার বিভিন্ন রাজ্যে প্রচারে নামতে চলেছেন মমতা।
এর পিছনেও একটা লক্ষ্য রয়েছে। নির্বাচন কমিশনের নিয়মমতো কোনও রাজনৈতিক দলকে সর্বভারতীয় দলের স্বীকৃতি পেতে গেলে ১) কোনও একটি রাজ্য থেকে অন্তত চারটি আসন এবং চার বা তার বেশি রাজ্যে লোকসভা বা বিধানসভায় মোট প্রদত্ত ভোটের অন্তত ৬ শতাংশ পেতে হয়। অথবা, ২) কমপক্ষে তিনটি রাজ্য থেকে লোকসভার ১১টি আসনে জিততে হয়। তৃণমূলের হিসেব হল, পশ্চিমবঙ্গ ছাড়া ত্রিপুরা, কেরল, অসম, উত্তরপ্রদেশ, হরিয়ানার মতো রাজ্যে যদি সব মিলিয়ে ১০০টি আসনে লড়া যায়, তা হলে এই দুই শর্তের কোনও একটি পূরণ করে ফেলা যাবে।
অণ্ণা-প্রশ্নে মমতা সুচতুর রণকৌশল নিয়েছেন, তেমনই অণ্ণার দিক থেকেও মমতার সঙ্গে হাত মেলানোর কারণ রয়েছে। নিজে রাজনৈতিক দল গড়বেন না বলে অনেক আগেই জানিয়ে দিয়েছেন অণ্ণা। তাঁর শিষ্য অরবিন্দ কেজরীবালও গোড়ায় সেই কথাই বলেছিলেন। কিন্তু পরে সেই মত থেকে সরে এসে আম আদমি পার্টি গড়েন কেজরীবাল। দিল্লির ভোটে বিপুল সাফল্যও পেয়েছেন তিনি। সঙ্গে সঙ্গে অণ্ণার সঙ্গে তাঁর দূরত্বও বেড়েছে। বস্তুত, গুরু-শিষ্যের মতপার্থক্য এখন চরম আকার নিয়েছে। অণ্ণা চাইছেন কেজরীবালের বিষদাঁত ভাঙতে।
কিন্তু কংগ্রেস বা বিজেপি, মায়াবতী বা মুলায়ম কারও পক্ষে প্রচার করাই অণ্ণার পক্ষে অসুবিধার। কারণ, এদের সকলের বিরুদ্ধেই দুর্নীতির অভিযোগ বিস্তর। আর তাই মমতার সততা, তাঁর সহজ-সরল জীবনযাপন, মূল্যবোধের রাজনীতিকে হাতিয়ার করেছেন অণ্ণা। মমতাকেই তিনি বেছে নিয়েছেন আম-আদমি ব্র্যান্ড হিসাবে।
বুদ্ধদেবকে তোপ রেজ্জাকের, নজর রাখছে সিপিএম
নিজস্ব সংবাদদাতা
নয়াদিল্লি, ২ মার্চ , ২০১৪
বহিষ্কৃত হওয়ার পর রেজ্জাক মোল্লা কোন পথে এগোন, সে দিকে নজর রাখছেন প্রকাশ কারাট-সীতারাম ইয়েচুরিরা। দিল্লিতে গত কাল ছিল সিপিএম পলিটব্যুরোর বৈঠক। আজ এবং আগামিকাল কেন্দ্রীয় কমিটির বৈঠক। দলীয় সূত্রের খবর, রেজ্জাকের সম্ভাব্য পদক্ষেপ কী কী হতে পারে, নেতাদের কথায় সে প্রসঙ্গ উঠেছে। তাৎপর্যপূর্ণ ভাবে ঠিক এই সময়টাতেই রাজধানী এসে সিপিএম তথা প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যের বিরুদ্ধে তোপ দেগেছেন রেজ্জাক। বুদ্ধদেববাবুর উত্থানের সময় থেকে দলে পচন ধরতে শুরু করেছিল বলে অভিযোগ করেছেন তিনি।
আজ এক সাক্ষাৎকারে রেজ্জাক বলেন, "১৯৮৭ পর্যন্ত পার্টি ঠিক পথেই চলছিল। তার পর যেই দলে বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য গুরুত্ব পেতে শুরু করলেন, সব নষ্ট হয়ে গেল।" বুদ্ধবাবুর হাত ধরে ক্রমশ পুঁজিপতি এবং দালালদের অনুপ্রবেশ ঘটেছিল বলে অভিযোগ করে রেজ্জাক বলেন, "এ ভাবে তো সংগঠন চলে না। অনেক বার এ কথা আমি দলের নেতাদের বলেছি। এই দল শ্রমিক-কৃষকদের দল থেকে মালিক এবং পুঁজিপতিদের দল হয়ে উঠল। ঠান্ডা ঘরে বসে নেতারা তত্ত্ব বানাতেন এবং তা চাপিয়ে দেওয়ার চেষ্টা হতো দরিদ্র মানুষের উপর।" আসন্ন লোকসভা নির্বাচনে বামফ্রন্টের ফলাফল খুবই খারাপ হবে বলে মনে করছেন রেজ্জাক। তাঁর কথায়, "ভাল ফলের কোনও প্রশ্নই ওঠে না। জঘন্য হবে ফলাফল।"
দলবিরোধী কার্যকলাপ এবং জনসমক্ষে দলের ভাবমূর্তিকে হেয় করার অভিযোগে রেজ্জাককে ছেঁটে ফেলতে বাধ্য হয়েছেন সিপিএম নেতৃত্ব। দলের আদর্শগত অবস্থানের কারণেই এই পদক্ষেপ করতে হয়েছে পলিটব্যুরোকে। কিন্তু আদর্শগত অবস্থানের পাশাপাশি লোকসভা ভোটের আগে কৌশলগত দিকটিও মাথায় রাখতে হচ্ছে দলীয় নেতাদের। তাই কেন্দ্রীয় কমিটির ঘোষিত আলোচ্যসূচিতে না থাকলেও ঘরোয়া আলোচনায় রেজ্জাক-প্রসঙ্গ উঠেছে। এই সময়ে দিল্লিতে উপস্থিত রয়েছেন পশ্চিমবঙ্গ, কেরল এবং ত্রিপুরা সিপিএমের শীর্ষ নেতারা। রেজ্জাক দলের কোনও বিক্ষুব্ধ অংশের সঙ্গে যোগাযোগ করছেন কি না, সে দিকে নজর রাখছে সিপিএম।
রেজ্জাক অবশ্য সিপিএমকে তোপ দাগলেও নিজের তাস এখনই দেখাতে চাইছেন না। সম্প্রতি 'সামাজিক ন্যায়বিচার মঞ্চ' গড়েছেন। কোনও রাজনৈতিক দল নয়, এই মঞ্চের মাধ্যমেই তিনি পিছিয়ে পড়া সংখালঘুদের জন্য কাজ করতে চান এখনও পর্যন্ত এটাই রেজ্জাকের ঘোষিত বক্তব্য। তাঁর কথায়, "৭২ সালে প্রথম বিধায়ক হই। আর নয়, অনেক হয়েছে। এ বার মুসলিম দলিতদের উন্নয়নের জন্য কাজ করতে চাই।" আজ দিনভর একাধিক দলিত সংখ্যালঘু নেতা-কর্মীর সঙ্গে বৈঠক করেন রেজ্জাক। কথা বলেন বহুজন সমাজবাদী পার্টির কিছু নেতার সঙ্গেও। সূত্রের খবর, জেডিইউ-এর রাজ্যসভার সাংসদ আলি আনোয়ারের সঙ্গে নিয়মিত যোগাযোগ রেখে চলছেন রেজ্জাক। আনোয়ার ইতিমধ্যেই রেজ্জাকের মঞ্চে যোগ দিয়েছেন। বিভিন্ন রাজ্যের দলিত ও পিছড়ে বর্গ সংখ্যালঘুদের সঙ্গে তাঁর মাধ্যমেই রেজ্জাক যোগাযোগ করছেন বলে জানা গিয়েছে।
অণ্ণা হজারে এবং মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের জোট নিয়ে দিল্লি এই মুহূর্তে সরগরম। কী ভাবছেন বিষয়টি নিয়ে? রেজ্জাকের জবাব, "অণ্ণাকে ঠিক বোঝা যাচ্ছে না। ডান দিকে যেতে চান না বাঁ দিকে! তবে এটা ঠিক, এর ফলে হয়তো মমতার লাভই হবে।
যদি এই জোটের ফলে পশ্চিমবঙ্গের বাইরে যদি দু'চারটে আসন বেশি পাওয়া যায়, তা হলে তো তৃণমূলের পক্ষে ভালই।"
বিজেপির সঙ্গে ফের বন্ধুত্বের পথে মোর্চা
সঞ্জয় চক্রবর্তী
শিলিগুড়ি: মোদী হাওয়ায় গা ভাসাচ্ছে মোর্চাও৷ দেশ জুড়ে বিজেপির পালে হাওয়া লাগায় পুরোনো বন্ধুত্বকে ঝালিয়ে নেওয়ার তত্পরতা শুরু করেছে তারা৷
গোর্খাল্যান্ডের দাবি নিয়ে দলের প্রতিনিধিরা দিল্লি গেলেও, রাজধানীতে তাঁরা এখন ব্যস্ত লোকসভা নির্বাচনে সঙ্গী স্থির করতে৷ মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের কড়া অবস্থানে রাজ্য সরকারের সঙ্গে সম্পর্ক পুনরুদ্ধার করলেও তৃণমূলের সঙ্গে নির্বাচনী সমঝোতায় দ্বিধা কাটেনি মোর্চার৷ সেজন্য এ নিয়ে সিদ্ধান্ত ঝুলিয়ে রেখেছে তারা৷
মোর্চার অন্দরের খবর, দিল্লি গিয়ে দলের প্রতিনিধিরা আসন্ন নির্বাচনে বিজেপির ক্ষমতায় ফেরার সম্ভাবনা আছে বলে পাহাড়ে নেতৃত্বের কাছে রিপোর্ট পাঠিয়েছেন৷ তাতেই বদলে গিয়েছে দিল্লিতে অবস্থানকারী প্রতিনিধি দলের রণকৌশল৷ গোর্খাল্যান্ড গঠনের দাবি জানানো তাদের রাজধানী সফরের উদ্দেশ হলেও এখন যে তারা লোকসভা নির্বাচন নিয়েই আলোচনা করে বেড়াচ্ছেন, তা স্বীকারই করছেন পাহাড়ের নেতারা৷
দার্জিলিংয়ে বসে মোর্চার সহ সম্পাদক বিনয় তামাং শুক্রবার 'এই সময়'কে বলেন, 'এ কথা ঠিকই যে আমাদের প্রতিনিধিরা পৃথক রাজ্যের দাবি ছাড়াও লোকসভা নির্বাচন নিয়েও প্রাথমিক আলোচনা করছেন৷ তবে সেই আলোচনা কেবল বিজেপি নয়, সব রাজনৈতিক দলের সঙ্গেই হবে৷ আমাদের প্রতিনিধিরা শুধু বিজেপি নয়, ইউপিএর নেতাদের সঙ্গেও কথা বলবেন৷' বিনয়বাবু না বললেও পাহাড়ে এখন জোর আলোচনা তলছে বিজেপিকে ফের দার্জিলিং লোকসভা কেন্দ্রে প্রার্থী দেওয়ার প্রস্তাব দিয়েছেন মোর্চা নেতৃত্ব৷
বিজেপির কেন্দ্রীয় স্তরের কোনও নেতাকে দার্জিলিং কেন্দ্রে প্রার্থী হিসাবে চাইছেন তাঁরা৷ দিল্লিতে এখনও বিজেপির কেন্দ্রীয় নেতাদের সঙ্গে মোর্চার প্রতিনিধি দলের দেখা হয়নি ঠিকই৷ কিন্ত্ত মোর্চা সূত্রে জানা গিয়েছে, কথাবার্তা চলছে তৃতীয় পক্ষের মাধ্যমে৷ প্রাথমিক স্তরের সেই আলোচনা ইতিবাচক হলে প্রতিনিধি দলটি বিজেপির শীর্ষ নেতাদের সঙ্গে সাক্ষাত্ করবেন৷ তবে তাঁরা যশবন্ত সিনহাকে আর প্রার্থী হিসাবে চান না৷
গত লোকসভা আসনে মোর্চা সমর্থন করেছিল বলেই পাহাড়ের আসন থেকে জিতে সংসদে গিয়েছিলেন প্রাক্তন কেন্দ্রীয় মন্ত্রী৷ কিন্ত্ত তাঁর সম্পর্কে হতাশ মোর্চা নেতারা৷ সেভাবে পাহাড়ে যেমন তাঁকে পাওয়া যায়নি, তেমনই মোর্চার পাশে তাঁকে দাঁড়াতেও দেখা যায়নি তেমন ভাবে৷ তেলেঙ্গানা বিল নিয়ে সংসদে আলোচনার সময় তিনি গোর্খাল্যান্ডের নাম পর্যন্ত উচ্চারণ করেননি৷ অথচ ২০০৯-এর লোকসভা নির্বাচনে তাঁকে মোর্চা সমর্থন করেছিল এই প্রতিশ্রুতি আদায় করেই যে গোর্খাল্যান্ড গঠনে সব রকম উদ্যোগ নেবে বিজেপি৷
কিন্ত্ত নির্বাচনী ব্যর্থতায় বিজেপি সে বার দিল্লির ক্ষমতা দখল করতে না পারায় মোর্চার আশা আর পূরণ হয়নি৷ তারপর মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের হাত ধরে তারা জিটিএ পেয়ে উত্ফুল্ল ছিল৷ মোর্চা নেতারা জিটিএকে পৃথক রাজ্য আদায়ের প্রাথমিক পদক্ষেপ বলে প্রচারও শুরু করেছিলেন৷ কিন্ত্ত বাংলা ভাগে মুখ্যমন্ত্রী অনড় থাকায় পিছু হঠতে হয়েছে তাঁদের৷ রাজ্য সরকারের সঙ্গে সুসম্পর্ক আবার তৈরি করলেও কর্মী-সমর্থকরা তাতে খুশি না হওয়ায় চাপে রয়েছেন বিমল গুরুং৷
তার উপর মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় দার্জিলিং আসনে তৃণমূলের প্রতীকে প্রার্থী দেওয়ার পরিকল্পনা করায় তিনি আরও চাপে পড়ে গিয়েছেন৷ প্রার্থী হিসাবে প্রাক্তন ফুটবলার ভাইচুং ভুটিয়ার নামও ভাসিয়ে দিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী৷ তাতে দলীয় কর্মীদের অসন্তোষ আরও বেড়েছে৷ তৃণমূলের সঙ্গে জোটে আপত্তি আছে তাঁদের৷ তাই নির্বাচন নিয়ে আলোচনার জন্য কেন্দ্রীয় কমিটির বৈঠক ডেকেও পিছিয়ে দিয়ে বাধ্য হয়েছেন মোর্চা নেতারা৷
জিটিএতে ফিরে যাওয়ায় পাহাড়ের সাধারণ মানুষের কাছেও মোর্চার বিশ্বাসযোগ্যতা কমেছে৷ তাই লোকসভা নির্বাচনে প্রতিদ্বন্দ্বিতা ও প্রার্থী মনোনয়ন নিয়ে দলের নেতারা মুখে কুলুপ এঁটে রয়েছেন৷ জিজ্ঞাসা করলেই বলছেন, সিদ্ধান্ত নেওয়ার জন্য এখনও সময় আছে৷ মোর্চা সূত্রের খবর, বিজেপির পালে হাওয়া দেখে এই অস্বস্তিকর পরিস্থিতি থেকে রেহাই পাওয়ার পথ খুঁজে পেয়েছেন বিমল গুরুং, রোশন গিরিরা৷ দলের সাধারণ সম্পাদক রোশন দিল্লিতেই আছেন প্রতিনিধি দলের নেতা হিসেবে৷
পুরোনো বন্ধু বিজেপির হাত ধরার আগে পাহাড়েও ঘর গোছাতে শুরু করেছেন গুরুং৷ তিনি পাহাড়ে আলাদা ভাবে উন্নয়ন পর্ষদের দাবিদার বিভিন্ন জনগোষ্ঠীগুলিকে কাছে টানার চেষ্টা করছেন৷ ওই জনগোষ্ঠীগুলিকে ৫ মার্চ বৈঠকে ডেকেছেন তিনি৷ প্রচার চলছে, একসঙ্গে পাহাড়ের উন্নয়নের পদক্ষেপ গ্রহণের জন্য ওই বৈঠক ডাকা হয়েছে৷ অথচ আলাদা উন্নয়ন পর্ষদ গঠনের জন্য একদিন ওই জনগোষ্ঠীগুলির সঙ্গে তিক্ততা ছিল মোর্চার৷ অন্য দিকে, একের পর এক উন্নয়ন পর্ষদ গড়ে ওই জনগোষ্ঠীগুলিকে কাছে টেনেছেন মুখ্যমন্ত্রী৷
মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে বিভাজনের অভিযোগ ছিল মোর্চা নেতাদের গলায়৷ উদ্দেশ সিদ্ধিতে এখন সেই মুখ্যমন্ত্রীর সঙ্গে জনগোষ্ঠীগুলির বিভাজন তৈরি গুরুংয়ের কৌশল হয়ে উঠেছে৷ সেজন্য পৃথক রাজ্যের দাবিতেও তেমন জোরাল আওয়াজ তোলা হচ্ছে না৷ ওই দাবিতে ২ মার্চ সুকনায় যে সমাবেশ ডাকা হয়েছিল, পিছিয়ে দেওয়া হয়েছে তাও৷
গোটা দেশে মডেল হবে রাজ্য, শতাধিক প্রকল্পের সূচনা করে বললেন মমতা
সুমন ঘরাই, এবিপি আনন্দ
Saturday, 01 March 2014 06:36 PM
কলকাতা: লোকসভা ভোটের আগে শনিবার নবান্ন-র পাশে মঞ্চ থেকে একশোটিরও বেশি প্রকল্পের উদ্বোধন করলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷ তিন বছরে রাজ্য সরকারের উন্নয়নমূলক কাজের খতিয়ান দিয়ে তিনি বললেন, বিভিন্ন প্রকল্পের মাধ্যমে দেশের মডেল হয়ে উঠবে রাজ্য৷ এই উন্নয়নের ফর্মুলা তিনি অন্য রাজ্যকে ধার দেবেন না বলেও জানান মুখ্যমন্ত্রী৷
যে কোনওদিন ঘোষণা হয়ে যাবে লোকসভা ভোটের নির্ঘণ্ট৷ জারি হয়ে যাবে আদর্শ আচরণবিধি৷ তাই তার আগেই একসঙ্গে একগুচ্ছ প্রকল্পের উদ্বোধন ও শিলান্যাস পর্ব সেরে ফেললেন মুখ্যমন্ত্রী৷ আজ নবান্নর পাশেই মঞ্চ তৈরি করে অনুষ্ঠানের আয়োজন করা হয়৷ একসঙ্গে সেখানে একশোরও বেশি যেসব প্রকল্পের উদ্বোধন ও শিলান্যাস করেন মুখ্যমন্ত্রী, সেগুলির মধ্যে রয়েছে গার্ডেনরিচ ফ্লাইওভার, বাতানুকুল নজরুল মঞ্চ, উত্তরবঙ্গের রাস্তা, আলিয়া বিশ্ববিদ্যালয়ের ক্যাম্পাস, মার্কেটিং হাব, বকখালিতে হাতানিয়া-দোয়ানিয়া নদীর ওপর ৩৬৫ কোটি টাকা ব্যয়ে সেতু, কৃষিবাজার ইত্যাদি৷ শুধু নতুন প্রকল্পই নয়, গত প্রায় তিন বছরে সরকারের উন্নয়নমূলক কাজের খতিয়ানও তুলে ধরে মুখ্যমন্ত্রী বলেন, রাজ্য সরকার একটা টিম৷ টিম ওয়ার্কেই রাজ্যের এই উন্নয়ন৷
ইতিমধ্যে ফেয়ার প্রাইস শপের মতো প্রকল্পের জন্য গোটা দেশে প্রশংসা পেয়েছে পশ্চিমবঙ্গ৷ মুখ্যমন্ত্রী এদিন বলেন, আরও বিভিন্ন প্রকল্পে দেশের কাছে মডেল হয়ে উঠবে এরাজ্য৷ তিনি বলেন, উন্নয়নের ফর্মুলা তিনি অন্য রাজ্যকে ধার দেবেন না৷
প্রতি মাসে বিপুল অঙ্কের সুদ কেটে নেওয়ার জন্য এদিনও ফের কেন্দ্রকে তীব্র আক্রমণ করেন মুখ্যমন্ত্রী৷
রাজ্যে একটি আসনও পাবে না কং-বিজেপি, জোট জল্পনা উড়িয়ে দাবি মুকুলের
আশাবুল হোসেন, এবিপি আনন্দ
কলকাতা: জোট জল্পনায় জল ঢাললেন মুকুল রায়৷ এক ধাপ এগিয়ে তাঁর দাবি, রাজ্যে একটিও আসন পাবে না কংগ্রেস৷ খাতা খুলতে পারবে না বিজেপিও৷ দলের অন্দরের হিসেব, ৪২টি আসনে একা লড়াই করে কমপক্ষে ৩৫টি আসন এবার দখল করতে পারবে তৃণমূল৷ এবার তৃণমূলের প্রার্থীতালিকায় থাকবে ১৪টি নতুন মুখ৷
শনিবার দিল্লি থেকেই ফিরেই মুকুল রায় স্পষ্ট বুঝিয়ে দেন, জোটের সম্ভাবনা নেই৷ শুক্রবারও রাজধানীতে দাঁড়িয়ে লোকসভা নির্বাচনে জোট জল্পনা উড়িয়ে দেন তিনি৷ বলেন, একলা আছি, ভাল আছি৷।
মুকুল রায়ের দাবি, কংগ্রেসের অবস্থা শোচনীয়৷ রাজ্যে তারা ক্ষয়িষ্ণু শক্তি৷ পঞ্চায়েত, পুরভোটের ফলাফলই বলছে, রাজ্যে তারা একটিও আসন পাওয়ার অবস্থায় নেই৷ লোকসভা ভোটেও এর ব্যতিক্রম হবে না৷
আর বিজেপি সম্পর্কে তাঁর দাবি, ১৯৯১ সালে এ রাজ্যে সর্বোচ্চ ১৩ % ভোট পেয়েছিল বিজেপি৷ এবারের পঞ্চায়েত ভোটে বিজেপি পেয়েছে ৪ %ভোট৷ লোকসভায় বেড়ে ৭ % হতে পারে৷ কিন্তু তারা কোনও আসন পাবে না৷
তৃণমূলের সর্বভারতীয় সাধারণ সম্পাদকের দাবি, লোকসভা ভোটেও অব্যাহত থাকবে তৃণমূলের জয়ের ধারা৷ তাঁর ব্যাখ্যা, বিজেপি, কংগ্রেসের পর তৃণমূল এবার দেশে তৃতীয় শক্তি হিসেবে আত্মপ্রকাশ করবে৷ কেন্দ্রে সরকার গঠনেও অন্যতম নিয়ন্ত্রক শক্তি হবে তৃণমূল৷ মানুষের কাছে একটা বার্তা পৌছেছে, বাংলা যদি ভারতীয় রাজনীতিতে নির্ণায়ক শক্তি হয়, তাহলে বাংলার গুরুত্ব বাড়বে, বাংলার উন্নয়ন হবে৷ রাজ্যের সংখ্যালঘু ভোটাররাও তৃণমূলকে সমর্থন করবে বলে দলের শীর্ষ নেতৃত্বের একাংশের দাবি৷ এই অংশের যুক্তি, এবারের ভোটে যে কংগ্রেসের ভরাডুবি হবে, সমস্ত ভোট সমীক্ষায় তার ইঙ্গিত মিলেছে৷ এই পরিস্থিতিতে সংখ্যালঘুরা অনেকেই বিশ্বাস করতে শুরু করছেন, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের হাত শক্ত করতে পারলে মোদিকে আটকানো সম্ভব৷ তৃণমূলের অন্দরের হিসেব, ৪২টি আসনে একা লড়াই করে তারা কমপক্ষে ৩৫টি আসন এবার দখল করতে পারবে৷ যার মধ্যে গতবারের ১৯ আসন ধরে রেখে, ১৬টি আসন ছিনিয়ে নেবে বিরোধীদের কাছে থেকে৷
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