सितारों की चमक से चौंधियाने से पहले कामकाज का हिसाब भी देख लें!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल से पिछली लोकसभा में दो लोकप्रिय सितारों की जोड़ तापस पाल और शताब्दी राय को जनता ने भारी मतों से विजयी बनाया था।तापस पाल और शताब्दी राय। दोनों ने लोकसभा में अपने पूरे कार्यकाल में एक भी सवाल नही पूछा। तो दूसरी ओर वाम पक्ष दक्षिण पक्ष के दो दर्जन से ज्यादा ऐसे सांसद हैं,जिन्होंने सांसद कोटे की पूरी रकम ही नहीं निकाली,इलाके के विकास की सुधि क्या लेते।
विडंबना है कि इनमें से ज्यादातर अब भी चुनाव मैदान में हैं और अपनी अपनी पार्टी के दम पर इस बार भी संसद में पहुंचने की तैयारी में हैं। इस पर तुर्रा यह कि ममता बनर्जी ने तृणमूल टिकट पर एक झुंड सितारों को फिर संसद में भेजने की चाकचौबंद तैयारी कर ली है।
यही नहीं,भाजपा की ओर से भी सितारों को बंगाल के चुनावी मैदान में उतारा गया है।
गौरतलब है कि रायदीघि में विधायक देवश्री के बचाव में दीदी ने कहा कि वे तो अतिथि कलाकार हैं,जो राजनेताओं की तरह काम नहीं कर सकते।दीदी के कृपाधन्य एक और सांसद कबीर सुमन हैं जो बागी बन गये।उन्होंने भी अपने इलाके की सुधि नहीं ली। लेकिन वे भी बतौर निर्दलीय फिर लोकसभा में पहुंचने की मंशा जगजाहिर कर चुके हैं।
गौरतलब है कि पंचायत चुनाव के परिणाम आते ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गईं और इसी सिलसिले में उन्होंने राइटर्स में सांसदों व मंत्रियों के साथ अलग-अलग बैठक कीं। मुख्यमंत्री ने दोपहर में पहले राज्य के मंत्रियों के साथ बैठक करने के बाद तुरंत राज्य व लोकसभा के सभी सांसदों की बैठक बुलाई। उन्होंने सांसदों से सांसद कोटे की रकम खर्च करने को लेकर सासंदों से ब्यौरा लिया। बैठक में एक दो सांसदों को छोड़कर सभी ने हिस्सा लिया। गैर हाजिर सांसदों में कबीर सुमन थे। दीदी की इस खबरदारी के बावजूद तृणमूल सांसद भी अपने इलाके के विकास के बारे में लापरवाह रहे।
तब मुख्यमंत्री ने सांसदों से कहा था कि वे अपने इलाके में जाएं और सांसद कोटे की रकम खर्च करने की मुकम्मल योजना तैयार करें, जिससे केंद्र सरकार से मिलने वाली रकम का उपयोग किया जा सके और भविष्य में केंद्र से रकम मिलने में सुविधा हो।
सांसदों ने तब जवाब में कहा कि कहा कि रकम खर्च का सर्टिफिकेट पाने में दिक्कत आ रही है, तो उन्होंने कहा कि रकम के खर्च व प्रोग्राम में समानता रखने की जरुरत है, जिससे सर्टिफिकेट मिलने में दिक्कत न हो। सांसदों से कहा कि जिसका जो भी प्रोजेक्ट है, उसे नवंबर तक पूरा कर लिया जाना चाहिए क्योंकि वर्ष 2014 में लोक सभा का चुनाव होना है। सांसदों ने बताया कि उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से संसदीय क्षेत्र में काम करने के लिए पांच करोड़ रुपये मिलते हैं लेकिन खर्च प्रमाण पत्र नहीं मिलने से यह रकम मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
माननीय सासंदों की दिलचस्पी इलाके के विकास में कम, बल्कि चुनावी कार्यकर्ताओं की फौजें बनाने में ही ज्यादा होती है।जिसके चलते स्थानीय जनसमस्याओं की सिरे से अनदेखी करके वोट बनाने वाले क्लबों और संस्थाओं को उदारता के साथ अनुदान देने में ही उनकी संसदीय रकम खत्म हो जाती है।नाम के वास्ते थोड़ा बहुत काम भी हो ही जाता है।
वोट बटोरु विकास के अलावा चूंकि जनसमस्याओं से इनका कोई लेना देना नहीं होता,इन्हें संसद कोटे की रकम निकालने तक का होश नहीं होता।
खास बात तो यह है कि अपने अपने इलाके में घिर चुके दो केंद्रीय मंत्री अधीर रंजन चौधरी और दीपा दासमुंसी समेत कुल पच्चीस सांसद सांसद कोटे की दूसरी किश्त की रकम ही नहीं निकाल पाये।यह रकम भी कोई छोटी रकम नही है।पूरे 62 करोड़ पचास लाख रुपये सांसदों और मंत्रियों की गलती की वजह से बेकार चले गये।
कितने ही खस्ताहाल स्कूलों,अस्पतालों और सड़कों का कायाकल्प होते होते रह गया।पहली किश्त में जो रकम निकाली इन सांसदों ने उसकी आडिट रपट ही जमा नहीं हो सकी तो दूसरी किश्त की मांग भी करते तो किस मुंह से।
अब अपनी खाल बचाने के लिए इनकी दलील है कि प्रशासनिक असहयोग की वजह से ही आडिट रपट जमा नहीं हो सकी। जाहिर है कि आम जनता के मजबूत हाजमें में उनकी पूरी आस्था है।
इस पर तुर्रा यह कि पहले दो किश्तों में मिलने वाली दो करोड़ की रकम अब दोगुणा से भी ज्यादा बढ़कर पांच करोड़ है।अगली लोकसभा में यह रकम और बढ़ सकती है। लेकिन अपने जनप्रतिनिधियों के कच्चे हिसाब की वजह से लोककल्याणकारी उनकी किसी भूमिका की उम्मीद न ही करें तो बेहतर।
इन सांसदों में माकपा के सबसे ज्यादा आठ, राज्य में सत्तादल के छह,आरएसपी के दो,फारवर्ड ब्लाक,भाकपा, एसयूसीआई और भाजपा के एकमात्र सांसद भी शामिल हैं।
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