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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, May 16, 2014

म्हारा देश केसरिया, संघरामराज आयो! लेकिन हम लड़ेंगे जब तक दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है, पाश जो कह गये! ये जश्न जश्न-ए-मसर्रत नहीं, तमाशा है नए लिबास में निकला है रहजनों का जुलूस हजार शम्ए अखूवत बुझा के चमके हैं ये तीरगी के उभरते हुए नए फानूस साहिर लुधियानवी

म्हारा देश केसरिया, संघरामराज आयो!

लेकिन हम लड़ेंगे जब तक

दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है, पाश जो कह गये!


ये जश्न जश्न-ए-मसर्रत नहीं, तमाशा है

नए लिबास में निकला है रहजनों का जुलूस

हजार शम्ए अखूवत बुझा के चमके हैं

ये तीरगी के उभरते हुए नए फानूस

साहिर लुधियानवी



पलाश विश्वास

भाई रियाज ने साहिर की इन पंक्तियों से मौजूदा हालात का बेहतरीन बिंब संयोडन किया है।आप भी गौर करें।


ये जश्न जश्न-ए-मसर्रत नहीं, तमाशा है

नए लिबास में निकला है रहजनों का जुलूस

हजार शम्ए अखूवत बुझा के चमके हैं

ये तीरगी के उभरते हुए नए फानूस

साहिर लुधियानवी

भारत विभाजन के बाद विभाजन की बलि हो गये लोगों की कीमत पर अबतक वंशवादी सत्तासुख के चरमोत्कर्ष भोगते अरबपतियों की पार्टी के अरबों के घोटालों के खिलाफ भारतीय जनता के जनादेश हमारे सर माथे।कांग्रेस के जनविरोधी राजकाज के खिलाफ है यह जनादेश और वामपक्ष के निरंतर विचलन और विश्वासघात,बहुजन राजनीति के केसरियाकरण का संघी उत्पादन है यह आसण्ण रामराज और उसका यह सीतायण शूद्रायन।


कल्कि अवतार को संघ परिवार ने नहीं,बल्कि जनपश्क्षधर मोर्चे की मौकापरस्ती और पाखंड ने पैदा किया।


ग्लोबीकरण की साझेदार दोनो पार्टियों के हवाले है यह देश अब।


भाजपा बनाम कांग्रेस खेल में तमिलनाडु में जयललिता और बंगाल में ममता ने एकतरफा अभूतपूर्व जीत हासिल जरुर की है,लेकिन सर्वभारतीय राजनीति में उसका कोई महत्व है नहीं।


नतीजा आने से एक दिन पहले धर्मनिरपेक्ष मोर्चा के प्रधानमंत्री बतौर कांग्रेस ने जो खेल रचने की कोशिश की,चुनाव नतीजे ने उसे गुड़ गोबर कर दिया।


संघी शुंगी सरकार फिरभी बेहतर है क्योंकि उसका अमित शाहीएजंडा और उसके नस्ली पराक्रम से सारी दुनिया वाकिफ है।


वाम बहुजन छलावे का विस्तार धर्मनिरपेक्ष मोर्चे की प्रधानमंत्री बतौर जयललिता या ममता की भूमिका फिर वही केजरीवाल परिदृश्य तैयार करता और बिना केसरिया सरार फिर मध्यावधि चुनाव मार्फत विश्वबैंकीय कांग्रेस सरकार की वापसी सुनिश्चित करती।


जनविरोधी कांग्रेस को पचास के आसपास सीमाबद्ध करके भारतीय जनता ने करारा जवाब दिया है जनसंहारी संस्कृति को लेकिन वि़ंबना यह कि फिर उसने सिक्के के दूसरे पहलू को ही अपनी किस्मत सौंप दी।इसके सिवाय कोई दूसरा विकल्प है नहीं।


कांग्रेस के पराभव,वाम सफाये और बहुजन पटाक्षेप पर आठ आठ आंसू बहाते हुए हम अपनी दृष्टि इतनी भी धूमिल न कर दें कि एक मुश्त  सत्य,त्रेता द्वापर के इस अभूतपूर्व संक्रमणकालीन महातिलिस्म में फंसकर रह जाये हम।वैदिकी हिसा के सत्ययुगीन परिदृश्य में त्रेता का रामराज समय है यह तो सारा देश द्वापर का कुरुक्षेत्र भी है,जहां मूसलपर्व में जनसंख्या महाविनाश तय है।


रामराज में सामाजिक न्याय के सीतायन,शूद्रायन शंबूकगाथा का पारायण करने को वक्त बहुत बचा है लेकिन इससे पहले समझ लें कि आम आदमी पार्टी का विकल्प किस हद तक कामयाबी के साथ पूरे उत्तरभहारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हाथ मजबूत करता रहा है।कांग्रेस विरोधी आम जनता के गुस्से को डायल्यूट ही नहीं किया केजरीवाल ने,बल्कि कांग्रेस भाजपा विरोधी जनता जनार्दन के वोट को केसरिया बना देने में उसने महती भूमिका निभायी।भाजपा के वोट काटने में केजरीवाल की कोई भूमिका नहीं थी।


अब विडंबना यह भी कि वामदलों और बहुजनराजनीति से मोहभंग के बादभारतीय राजनीति में प्रतिरोध के नेतृत्व के लिए फिर वही एनजीओ नेतृत्व का ही विकल्प बचता है।केजरीवाल अगर ईमानदार होते तो सड़क पर मुद्दे उठाकर उन मुद्दों को अंजाम तक पहुंचाने में ईमानदार कोशिश भी करते।असंभव लोकपाल बिल पास कराने की जिद न करके सरकार में रहकर अंबानी जैसे कारपोरेटआकाओं को घेरने और उन्हें जल तक पहुंचाने की दिसा में वे कुछ कर पाते तो यह केसरिया क्रांति ही होती नहीं।लेकिन यह मकसद उनका हरगिज नहीं था।


अब खतरा यह है कि कांग्रेस राजकाज के खिलाफ जैसे भाजपा खामोश सहयोिता में थी,वहीं भूमिका अब कांग्रेस की होगी मुकम्मल दो दलीय अमेरिकी लोकतांत्रिक प्रणालीबद्ध।वामदलों और बहुजन राजनीति की वह ताकत नहीं है,जिसको उन्होंने सत्ता शेयर पर दांवबद्ध करने का प्रगतिशील संशोधनवादी मौकापरस्त कारोबार किया।अब उनके पाखंड से जनता का पूरा मोहबंग हो चुका है।


अब जनांदोलन के ठेकेदारों की एनजीओ शरण गच्छामि के तहत सड़क पर उतरी केजरी केसरी सेना के साथ खड़े होने के अलावा कोई विकल्प दीख नहीं रहा है।संपूर्ण क्रांति पर्व समाप्त होने के बावजूद वह पलटे जाते पन्नों की तरह फिर फिर लौट आता है क्योंकि सही दिशा में सोचनेवाले,सही जनप्रतिबद्धता की समामाजिक उत्पादक शक्तियों को गोलबंद करने के कार्यभार से हम निरंतर मुंह चुराते रहे हैं और चुराते रहेंगे।


कांग्रेस,वामदलोंऔर बहुजन राजनीति के नाम विलाप करने के बजाय इस सत्यद्वापर त्रेता समन्वय समय के प्रतिरोध के लिए हम क्या कर सकते हैं,इसपर सोचें और राष्ट्रव्यापी जनपक्षधर एअकता की मुहिम अभी से शुरु करें तो शायद बात कुछ बन भी जाये।


फारवर्ड प्रेस के प्रमोद रंजन और हमारे डायवर्सिटी मित्र एच एल दुसाध,झारखंडी शालपत्र के उत्तर आधुनिक वीर भारत तलवार मतादान प्रक्रिया के दौरान हरियाणा में भगाना में दलित कन्याओं से हुए अमानुषिक बलात्कार कांड के खिलाफ लगातार सक्रिय रहे।वीर भारत फेसबुक पर उपलब्ध नहीं हैं और वे हम लोगों की तरह तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले कभी नहीं थे।लेकिन प्रमोद रंजन और डायवर्सिटी मैन एचएल दुसाध जो कल तक उदित राज,राम विलास पासवान और रामदास अठावले की अगुवाी में भाजपा एजंडे में डायवर्सिटी तत्व सामजित करने का सपना पाल रहे थे,आधिपात्यवात्यवादी सवर्ण हिंदुत्व के केसरिया लहर में बहुजन राजनीति के सफाये से बेहद निराश लग रहे हैं।


वामपक्ष का सफाया हो रहा है,बंगाल में केसरिया होती जमीन पर प्रतिबद्ध विचारधारा और संगठनों के अविराम विश्वासघात और पाखंड से यह हम शुरु से महसूस कर रहे थे और हम संभव तरीके से हम सचेत भी कर रहे थे वाम मित्रों को,मसलन वाम लोकसभा प्रत्याशियों के वाल पर जाकर लगातार पोस्ट कर रहे थे कि हालात संगीन हैं और आत्मसमर्पणी बलिदान से कुछ बदलने वाला नहीं है।


लेकिन बहुजन राजनीति के गढ़ों महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में बहुजन राजनीति और अंबेडकरी झंडेवरदारों के ऐसे सफाये की आशंका हमें भी नहीं थी।


उत्तर प्रदेश लंबे अरसे से जाना नहीं हुआ लेकिन महाराष्ट्र से लगातार जुड़ा हूं,केसरिये में नील के इस विलय को हम चिन्हित नहीं कर सकें, माफ करें।


नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए वैदिकी यज्ञ का आयोजन करने वालों ने एकमुशत बाम बहुजन असुरों महिषासुरों का वध करने में बेमिसाल कामयाबी हासिल की है।


यह चुनाव किसी भी सूरत में न अप्रत्याशित है और न देश के मौजूदा हाल हकीकत के खिलाफ।हम शुरु से ही हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्ष विभाजन के खिलाफ लिखते बोलते रहे हैं।


ध्रूवीकरण का फायदा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कारपोरेट पूंजी और कारपोरेट मीडिया भगवा सोशल मीडिया के मार्फत बेशक उठाया है,लेकिन संघ की रणनीति के प्रतिरोध में 1984 से अबतक लगातार हिंदुओं को गरियाने और मुसलिम सांप्रदायिकता को हवा देने के सिवाय जनपक्षधर मोर्चे ने कुछ भी नहीं किया जनसंहारी कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों को जबरन धर्मनिरपेक्ष साबित करने और उसके हक में जनता को खड़ा करने की वाहियात मुहिम चलाने के सिवाय।



हम 1984 में राजीव गांधी को हिंदुत्व सुनामी से जिताने वाले संघ परिवार की रणनीतिक दक्षता और अपने एजंडे को अंजाम तक पहुंचाने की निर्मम सक्षमता को फिर एकबार राष्ट्रीय राजनीति के कारपोरेटीकरण एनजीओकरण और केसरियाकरण के मार्फत अभिव्यक्त होते देख रहे हैं।


लेकिन तब भी वाम राजनीति का वजूद कायम था और बहुजन राजनीति मुकाबले में खड़ी हो ही रही थी।


संघ परिवार ने अबकी दफा भारतीय जनता पार्टी को एकक बहुमत दिलाकर 1984 के वाद देश की सत्ता पर कब्जा ही नहीं दिलाया,बल्कि हिंदू राष्ट्र के दो सबसे बड़े परस्परविरोधी एक दूसरे के खून के प्यासे वाम और बहुजनपक्ष का हिसाब भी हमेशा के लिए बराबर कर दिया।


विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल रपट लागू करके जो भस्मासुर पैदा कर दिया अस्मिता राजकरण का,उसका कमंडली केसरिया कायाकल्प से कल्कि अवतार का राज्याभिषेक निर्बाध संपन्न हो गया।


भारत मुक्ति मोर्चा के मंच से रंग बिरंगे केसरिया जमावड़ा जो ओबीसी की गिनती की मांग कर रहा था,वह ओबीसी गिनती के लिए कम,ओबीसी के भगवेकरण के लिए कहीं ज्यादा साबित हुआ,जिसका चरमोत्कर्ष ओबीसी प्रधानमंत्रित्व हुआ।


कम से कम उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में,कुछ हद तक समूची गायपट्टी में इस ओबीसी बाहुबल के केसरियाकरण का नतीजा वाम पक्ष के साथ साथ बहुजन राजनीति के सफाये के जरिये संघ परिवार की निरंकुश सत्ता में निकला।गुजरात नरसंहार के बाद असम दंगों से लेकर यूपी के मुजप्फरनगर दंगों और शरणार्थी घुसपैठिया मुद्दे पर ममता मोदी वाक्युद्ध ने इस महती ध्रूवीकरण को राष्ट्रवायापी बना दिया,जिससे केसरियासर्वत्र अस्मिताओं के टूटने का भ्रम पैदा कर रहा है।


जो सरकार मनुस्मृति अनुशासन पर राजकाज चलाने को संकल्पबद्ध है और संस्थागत महाविनाश की सर्वोच्च संस्था जो नस्ली भेदभाव और जाति व्यवस्था के तहत देश बांटने का काम करती रही है,वह अस्मिताओं और पहचान को तोड़ने में कामयाब है,वाम बहुजन पराभव का यह मीडिया नतीजा सचमुच हैरतअंगेज है।


नस्लभेद और जीति व्यवस्था के खात्मे के बिना अस्पृश्यता को समरसता में बदलने के छलावा ,बहिस्कार को डायवर्सिटी में तब्दील करने के पाखंड से न समता संभव है और न सामाजिक न्याय जो रामराज के वर्णवर्चस्व में मूल लक्ष्य हैं।


संसाधनों और अवसरों के न्यायपूर्ण बंटवारा तो एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा है या फिर शंबूक के तपस्यारत मस्तकदिके मर्यादा पुरुषोत्तम का शरसंधान है है या सीता का अग्निपरीक्षा के बाद भी वनवास और अंततः पाताल प्रवेश।


जो बहुजन पार्टियां इस चुनाव में केसरिया एजंडा को लागू करने की सहयोगी इकाइयां बनकर सक्रिय रहीं, उन्हींकी कमरतोड़ मेहनत का नतीजा, बहुजन समाज पार्टी का यह सफाया।जिसका मर्सिया पढ़ते पांच साल और गुजारने की तैयारियां कर रहे हैं प्रगतिशील और बहुजन शिविर के तमाम सिपाहसालार प्रतिबद्धजन और अब भी अंतरराष्ट्रीय पूंजी के प्रायोजित जनसंघर्ष के महामसीहा अरविंद केजरीवाल के मुकाबले सड़क पर जनता के मुद्दे लेकर संघर्ष का संकल्प लेने की उनकी कोई योजना भी नहीं है।

अपने परमोद रंजन ने लिखा हैः


ओबीसी जीत कर भी हार गया। यह हार उसके अगुवों की विचारधारा की है। कुछ समय के लिए ही सही उनकी विरोधी विचारधारा ने बडी चुनावी जीत हासिल की है। लेकिन, यह ओबीसी राजनीति का ही का आगाज है। यह शुरूआत भर है, जिसके नतीजे क्‍या होंगे, अभी कहना कठिन है। लेकिन यह शुरूआत तो है ही।


उन पर नजर रखिए, जो यह मानने से इंकार करते हों कि मोदी की यह जीत उनके ओबीसी होने के कारण नहीं हुई है। वे दरअसल, सवर्ण वोटों को ही इस जीत का श्रेय देने की कोशिश करेंगे।

इसपर राकेश श्रीवास्तव की प्रतिक्रिया गोरतलब हैः


अगुवे हारे हैं .. सामाजिक न्‍याय का विचार नहीं हारा है .. राजनीति के अन्‍य यथार्थों के साथ कुछ एकोमोडेशन के साथ वह विचार अब भी खड़ा है .. अंबेडकर का मूल सपना लोकतंत्रवाद और संविधानवाद नहीं हारा है .. सामाजिक न्‍याय में लक्ष्‍य है 'प्रतिनिधित्‍व' .. अारक्षण भी प्रतिनिधित्‍व का एक साधन मात्र है .. हो सकता है आरक्षण के कई विरोधाभासों पर बहस शुरू हो जाए .. पर गतिशील लोकतांत्रिक राजनीति 'प्रतिनिधित्‍व' बढ़ाती जा रही है .. वह बढ़ेगी .. सत्‍ता और शक्ति का सामाजिक अाधार फैलता जा रहा है .. पर हमें भी अपने कई जड़ताओं पर पुनर्विचार करना है ..


हम तो आदिवासियों के बीच काम कर रहे एके पंकज से सहमत हैंः

सांप्रदायिकता विरोधियों और तथाकथित प्रगतिशीलों को नई सरकार मुबारक हो.

हमने पहले ही कहा था नस्लवाद, जातिवाद, लैंगिकवाद और धार्मिक कट्टरता को ध्वस्त किए बिना आप चाहें जितना जोर लगा लें, उनका कुछ भी नहीं उखाड़ सकते.


हम फैसल अनुराग के इस बयान का भी तहेदिल से स्वागत करते हैंः

हम अपनी हार स्वीकार करते हैं. हम इसी के लायक थे क्योंकि हम ने अपने को पुराने मानदंडो से बंधे रखा और नए बदलावों के अनुकूल विचारों को विकसित नहीं किया. इस कारण हमने आम आवाम को अपने से जोड़ में कामयाब नहीं हुए. हमने अपने वसूलों के लिए उन पर भरोसा किया जिन्हें जनसंघर्षों और विकल्प बनाने में कोई यकीन नहीं. किसी ने ठीक कहा है व्यक्ति या विचार जी हर लम्हा खुद को पुनर्नवा नहीं करता वाह वास्तव में मौत का ही इंतज़ार करता है. लेकिन हम संकल्प लेते ह कि अपनी निराशा को प्रचंड आशावाद में बदलेंगें और सेकुलर सामाजिक इन्साफ के साथ आर्थिक बराबरी के संघर्ष को नए मानक के साथ लड़ेंगें . इस हार के लिए मैं अपनी जिम्मेवारी स्वीकार करता हूँ और नए राजनीतिक संघर्ष के लिए संघर्ष ज़ारी रखने का संकल्प व्यक्त करता हूँ.


लेकिन सुधीर सुमन ने लिखा हैः

भेडिया गुर्राता है तुम मशाल जलाओ- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


तो कवि अशोक कुमार पांडेय का यह अभिमतः

संयत होने का समय है। सदमे से बाहर आकर अपनी मुकम्मल हार को स्वीकार करने का। यह किसी कांग्रेस या किसी सी पी एम या सी पी आई वगैरह वगैरह की चुनावी हार का मामला नहीं है। कल को ये फिर जीत सकती हैं।

मामला है एक लेखक के रूप में समाज में निष्प्रभावी होते जाने का। मामला है उन मूल्यों के निष्प्रभावी होते जाने का जो आजादी के बाद से इस देश में स्वीकार किये गए थे। इसीलिए Avinash अपने इंट्रेंस को मौत और ज़िन्दगी की लड़ाई की तरह लो और वहां जाओ क्योंकि वह जगह खतरे में है। इसलिए Sheeba सावधान रहिये लेकिन लड़िये उस तरह जैसे कभी नहीं लड़े। इसलिए अशोक उदासी से बाहर आओ और अब वह खुल के बोलो जो इसलिए नहीं बोलते थे कि वामपंथ को नुक्सान न पहुंचे।

इसलिए दोस्तों आओ साथ चलना सीखें। लड़ते हुए और एक व्यापक एकता बनाते हुए। याद रखो - यूं ही उलझती रही है ज़ुल्म से खल्क/ न उनकी जीत नई है न अपनी हार नई।

सुरेंद्र ग्रोवर जी का निष्कर्षः

सोशल मीडिया पर पिछले चार बरसों से चल रहे अभियान ने भाजपा को आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया..


मतदाताओं का फैंसला सिर माथे पर.. मगर हम तो सदा सत्ता पक्ष की खामियों पर अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं और यही करते रहेंगे..


चुनाव परिणामों के मिल रहे रुझान साफ़ साफ़ बता रहे हैं कि देश भर में कांग्रेस विरोधी आंधी चल रही है, जिसका नतीजा आम नागरिक को भुगतना पड़ेगा..


गोपालदासगोपा गोपा की प्रतिक्रियाः


बधाई है सब भारतीयो को इतिहास में पहली बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार होगी ।आने वाले 5 वर्ष सबकी परीक्षा के होंगे ।जय प्रभु जी ।


पीके श्रीवास्तवःहम ऐसी हसीन सजा भुगतने को तैयार है ! कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होना ही चाहिए !!


हमारे डायवर्सिटी मित्र एचएल दुसाध के वक्तव्य पर सिलसिलेवार गौर करेंः

न चाहते हुए भी कल या परसों मैंने आज के चुनाव परिणाम पर अपनी चाहत का इजहार किया था जो दुर्भाग्य से सामने आ रहा है ..चाहत थी बीजेपी की २७२ प्लस सिट और बहुजन् वादी दलों की सम्मानजनक नहीं ,बेहद शर्मनाक हार.अमेठी से राहुल की हार कांग्रेस की तथा बहुजनवादी दलों की शर्मनाक हार उनके कायांतरण के लिए मिल का पत्थर साबित होगी.अतः सपा -बसपा-आरजेडी-जड़ की हार के लिए आंसू न बहाये.उनका यह हस्र होना ही था. हां आज एनजीओ वाली पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जायेगा ,इस पर आप चाहें तो आंसू बहा सकते हैं.आप सवर्णवादी दलों का बाप भारतीय राजनीति का बहुजन नजरिये से कैंसर है.


मित्रों!इस चुनाव में अपने तमाम लेखों में ही यह बताने का प्रयास किया थी कि जातिवाद अर्थात् सामाजिक न्याय की राजनीति की दशा सोचनीय है.अब तो खुलकर कह सकता हूँ सामाजिक न्याय की राजनीति का जनाजा निकल गया.अफ़सोस की बात है पर आप दबाव बनायें तो डाइवर्सिटी के जरिये सामाजिक न्याय की राजनीति को उस जगह पहुचाया जा सकता है जहाँ आज मोदी की भाजपा है.अगर इन्होने क न्याय की राजनीति के ताबूत में अंतिम किल ठुक जाएगी.

मित्रों १३ मई को एक पोस्ट में कहा था की आज से ही जातिवाद की राजनीति की हार पर जश्न शुरू हो गया और १६ से जातिव्वाद अर्थात सामाजिक न्याय की राजनीति की हार पर जश्न मनाने वालों की भीड़ ला जायेगी.दुर्भाग्य से वह जश्न शुरू हो गया है.


परमीत छासियाः पूंजीवादी और ब्राह्मणवादी ताकतों से धर्मांध जातिवादी ताकतों ने पूर्णतम भगवा धारण कर लिया है. जय भीम के उद्घोषक चमचे अब जय सियाराम बोल रहे है. दाग साफ़ साफ़ दिखाई देने लगे.



एचएल दुसाधः परमित जी जय भीम के उद्घोषक अर्थात आम अम्बेकर वादियों दोष न देकर अम्बेकर वाद के नाम प र राजनीति करनेवाले का है


परमीत #तीन-राम! इतिहास गवा है की बाबासाहब की विचारधारा से विश्वाश्घात करने वाले मिशन द्रोही तथा कौम के गद्दारो को कभी भी दलित बहुजन मूलनिवासी समुदाय ने माफ़ नहीं किया।

दुसाधः खुलकर कहें कौन मिशन द्रोही हैं!



एचएल दुसाध आगे लिखते हैंः

रतीय राजनीति दो सबसे बड़े सवर्णवादी कांग्रेस और भाजपा के लिए म्यूजिकल चेयर बनकर रह गयी है,उसमे कोटि-कोटि खर्चे करके कभी मोदी,तो कभी प्रियंका गाँधी जैसे चमत्कारिक शख्सियतों को जन्म देकर सवर्णवादी भारतीय लोकतंत्र के ध्वंस का सामान स्तुपिकृत करते रहेंगे.किन्तु ट्रेडिशनल स्टाइल में राजनीति करनेवाले सवर्णवादी दलों को जिस दिन हमारी बहुजनवादी पार्टियाँ सवर्ण–परस्ती छोड़कर मुक्त गले से शक्ति के तमाम स्रोतों(आर्थिक,राजिनितक,धार्मिक-सांस्कृतिक )में डाइवर्सिटी अर्थात 'जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागीदारी' लागु करने की घोषणा कर देंगी उस दिन बहुजन भारत मोदी और प्रियंका इत्यादि जैसे मीडिया निर्मित कथित चमत्कारी वायरस से मुक्त होगा जायेगा.और देर सवेर बहुजनवादी दलों को डाइवर्सिटी का झंडा लहराना ही पड़ेगा नहीं तो ये विलिन हो जायेंगे.किन्तु राज-सत्ता का लुफ्त ले चुके बहुजनवादी भी विलीन होना नहीं चाहेंगे .इसलिए भरोसा रखें उन्हें देर-सवेर डाइवर्सिटी को अपनाना ही पड़ेगा.अतः हम कह सकते हैं देर सवेर मोदी-राहुल-प्रियंका जैसे वायरस से बहुजन भारत मुक्त हो सकता है.

लेकिन जो वायरस आज जन्म लेगा वह शायद लाइलाज होगा.हाँ मित्रों मैं बात एनजीओ गैंग द्वारा परिचालित राजनीतिक संगठन की कर रहा हूँ .आज यह संगठन राष्ट्रीय 'राजनीतिक दल'का चेहरा धारण करने जा रहा है.यही है वह सबसे डेंजरस सवर्णवादी दल है जिसके पीछे सवर्णों का मीडिया,बौद्धिक,कार्पोरेट,एनजीओ,फिल्म,सेलेब्रेटी,शैक्षणिक इत्यादि तमाम क्षेत्र के बेहतरीन टैलेंट तन-मन-धन से लामबंद है.खासकर वह युवा वर्ग जिसने 2011 में भ्रष्टाचार विरोधी तथा 2012 में दिल्ली गैंग रेप में अपनी भयानक गतिविधियों से रष्ट्र को हिलाकर रख दिया था,इसके पीछे सबसे बड़ा न्यूक्लियर बनेगा.यह वायरस धीरे-धीरे भरतीय राजनीति का ट्रेडिशनल चरित्र बदल देगा जिसके कारण बाबा आदम के युग जी रहे बहुजनवादी दल अपंगता के शिकार बन सकते हैं.तो मोदी नहीं, नए वायरस का मुकाबला करने के लिए तैयार रहे.मेरी शुभकामना है कि कुदरत नए वायरस का मुकाबला करने की तरकीब आपको सुझाये.वैसे मेरा मानना है एक मात्र डाइवर्सिटी है जिसका दामन थामकर सभी वायरस को निष्क्रिय किया जा सकता है.


जगदीश्वर चतुर्वेदी को भी पढ़ लेंः

अब मोदी का पीएम बनना तय हो गया है।बढ़त की अधिकांश सीटें कांग्रेस से छीनकर भाजपा ने एनडीए सरकार को सच में बदल दिया है। निश्चित रुप से भाजपा बधाई की हकदार है।

पश्चिम बंगाल में माकपा राजनीतिक इतिहास की सबसे भयानक पराजय के मुहाने पर पहुँच गयी है। पता नहीं माकपा के नेताओं को कब यथार्थ ज्ञान होगा ।


Vidya Bhushan Rawat

This election results proved that voters can not be taken for granted. Congress has paid a price but it has also put India into greater risk. Its hidden communalism and corruption has been rejected. The most disappointing things have emerged from Uttar Pradesh and Bihar. It shows that Modi was able to sale his dream apart from the polarisation. It is a slap on the face on the 'contractors' of social justice. It is they who refused to go to people and took them from granted. At least Modi began his work for over a year. What were our cycle, elephant and lantern doing ? They never tried to reach the people. They became more feudal than the original feudal lords. People want to effective governance and can not just vote for you in the name of identity and secularism. It is time our leaders understand that otherwise we are going to have a long overhaul of Hindutva India.

अशोक कुमार पांडेः

अगर देश की जनता एक तानशाह को ही चाहती है तो उसे तानशाह मुबारक़। हम तो अभिशप्त हैं अपना सच कहते रहने को। कहते रहेंगे।

मुकेश कपिलःदेश के लोग जागरूक है ।


ओम निश्चलः अशोक जी हम सचाई से मुँह मोड़े रहने के आदी हो गए हैं। किन्‍तु जिस तरह कांग्रेस के कारनामे रहे, दूसरी पार्टियों में फिरकापरस्‍ती और शुरु से ही एक अघोषित पस्‍ती रही, ऐसे में इस मीडियाचालित-प्रचारवादी युग में कोई चीज जनता से छिपी नहीं रहती। उसकी आवाज वैसे तो सुनी नहीं जाती, वह ईवीएम के जरिए ही आकार लेती है। सोचिए कि तमाम स्‍तरों पर वाम दलों को कितना आत्‍ममंथन और अपने अपने एकांतवास से बाहर आने की जरूरत है। यह कांग्रेस के शर्मनाक कुशासन का परिणाम है और यही हाल रहा तो अगले चुनाव में वह बस अभिलेख की वस्‍तु रह जाएगी।


अजय शर्माः मुक्ति का उपाय सोचिए बंधुवर।


Deepak Kabir janta tanashaah nahi chahti / bas use pehchaan nahi paati / hum pehchanwa bhi nahi paaye  agli baar sahi.



अविनाश दास का यह मंतव्य भी गौरतलब हैः

हमने रोशनी चाही थी, हमें अंधेरा थमाया गया. भारतीय लोकतंत्र ने सुर लगाया है : अंधेरे हमें रास आने लगे हैं. अगले पांच साल तक जहां रोशनी की कब्रगाह होगी, हम वहां रोज एक दीया जलाने जाते रहेंगे. [बशर्ते हमारे हाथ-पांव तोड़े न गये और जेल न भेजा गया.]

आशीषमेहराः अविनाश जी जब आप अपने पूर्वानुमान, एकतरफा सोच शेयर कर रहे थे तब हमने कहा था कि 16 मई आने दीजिये ! अब परिणाम सामने है !


अफ़सोस के "आप" "वामपंथ" के मोह में सच्चाई , आम जनमानस से इतने दूर निकल गए ! निश्चिन्त रहे जैसे आपके पूर्वानुमान गलत साबित हुवे वैसे आपके हिटलर/ मारपीट जैसे डर भी सब गलत साबित होंगे !


राम विलोचन पासवानः दास बाबु निराश न होइए .. अभी अमेरिका का चुनाव बाकी है ... फिलिस्तीन के हक के लिए भी लड़ना है .. अरब शेखों के हरम से गरीब भारतीय मुस्लिम लड़कियों के हक के लिए भी लड़ना है (लेकिन आप तो अरब शेखों से चंदा लिए बैठे हैं)

वैसे भोपाल कब जा रहे हैं .. बहुत गहरा याराना है आपका वह तो .. जाइये गम गलत कर आइये थोडा उधर से ..


राम विलोचन पासवानः दास बाबु ... रौशनी की कब्रगाह वही है जहाँ 75 CRPF के जवानों को मारा गया था .. या फिर कश्मीर में हैं जहा से हर साल विधवाओं की लिस्ट तैयार होती है .. पर "आप" तो उन्ही को बढ़ावा / टिकेट देते हैं .. माने आप कब्रगाह के दल्ले हैं .


अब यशवंत की भड़ास आखिरकारः

फेकू के कुछ कर गुजरने के दिन आ गए हैं... कांग्रेसी कुशासन और राजनीतिक विकल्पशून्यता के माहौल में आगे आए लफ्फाज फेकू की लंतरानियों ने कांग्रेस की बी टीम भाजपा को पूर्ण बहुमत दिला दिया. इस देश ने कई बार कई प्रदेशों में झूठे वादों-लफ्फाजियों के आधार पर पूर्ण बहुमत की सरकारों को बनते देखा और कुछ ही समय में नाकारा होने के कारण जनता से पिट कर शू्न्य में चले जाते देखा है... सो, भाजपा और मोदी के लिए खुद को साबित करने के दिन हैं... अगर ये धर्म, जाति, संप्रदाय, हिंसा, नस्लवाद जैसी चीजों में फंस गए तो इनका जाना तय है... अगर इन्होंने खुद को उदात्त (जिसकी संभावना कम है) बनाते हुए भारत जैसे विविध संस्कृतियों व अनेक समझ वाले देश के आम जन के हित में सकारात्मक विकास कार्य (रोजगार, शिक्षा, सेहत, प्रति व्यक्ति आय आदि) किया तो आगे भी जनता इन्हें अपना समर्थन देगी. पर ऐसी संभावना इसलिए कम है क्योंकि भाजपा और संघ के मूल स्वभाव में नकारात्मकता और पूंजी परस्ती है. इसलिए कांग्रेसी कुशासन से मुक्ति का जश्न मनाते हुए एक नए किस्म के कुशासन में प्रवेश करने के लिए खुद को तैयार रखिए... मेरी नजर में इस चुनाव ने आम आदमी पार्टी को शानदार मौका दे दिया है. उसे खुद को असली विपक्ष साबित करते हुए जमीनी स्तर पर काम करना चाहिए और अगले लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने की तैयारी करनी चाहिए. इस तरह से देश में आम आदमी पार्टी और भाजपा नामक दो पार्टियां ही रह जाएगी. कांग्रेस सदा के लिए थर्ड नंबर की पार्टी बन जाएगी. कांग्रेस का अंत होना जरूरी है और आम आदमी पार्टी को एक प्रगतिशील जुझारू तेवर लेकर नया विकल्प बनना भी जरूरी है... चुनाव नतीजों का स्वागत करता हूं. ऐतिहासिक जनादेश से गदगद मोदी अब क्या कुछ करते हैं कराते हैं, इस पर पूरे देश ही नहीं, पूरे संसार की गहरी नजर रहेगी. वो कहा जाता है न कि शिखर पर पहुंचना मुश्किल नही होता, शिखर को मेनटेन रख पाना बड़ा कठिन काम होता है. तो शिखर पुरुष बने मोदी कितने दिन तक इस उंचाई को बरकरार रख पाते हैं, यह भी देखा जाएगा. फिलहाल मेरी तरफ से मोदी और भाजपा को जीत की बधाई. आम आदमी पार्टी को असली विपक्ष का रोल निभाने के लिए अग्रिम शुभकामनाएं.

जैजै


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