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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, May 17, 2014

प्रगतिशीलता और वाम को केवल साम्प्रदायिकता विरोध पर केन्द्रित या फिर रिड्यूस करने के फायदे अपने हैं तो ख़तरे अपने. फायदा यह कि बुर्जुआ पूँजीवादी पार्टियाँ इसे अपने अनुकूल पाती हैं.

By Ashok Kumar Pandey
प्रगतिशीलता और वाम को केवल साम्प्रदायिकता विरोध पर केन्द्रित या फिर रिड्यूस करने के फायदे अपने हैं तो ख़तरे अपने. फायदा यह कि बुर्जुआ पूँजीवादी पार्टियाँ इसे अपने अनुकूल पाती हैं. जैसे कांग्रेस और सपा सरकारें इस तरह की सांस्कृतिक गतिविधि को अपने मनोनुकूल पाती हैं. इसीलिए अपनी कोई सांस्कृतिक विंग न होने के कारण वाम के नाम पर बनी इस तरह की सांस्कृतिक इकाइयों को संरक्षण और सुविधा देती हैं. आजादी के बाद से लगातार यह हुआ है. परिणाम यह कि कम से कम साहित्य में साम्प्रदायिकता विमर्श लगातार बढ़ता गया और आर्थिक सवाल या तो पीछे छूट गया या फिर अमूर्त कविताओं में ग़रीब के लिए एक कोरी भावुकता तक सिमटता चला गया. साम्प्रदायिकता को लेकर भी विमर्श केवल गांधीवादी सर्वधर्म समभाव तक और फिर अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों पर भावुक उच्छवासों तक सिमटता गया. कुछ अपढ़-कुपढ़ और होशियार लोग और आगे बढ़े तो अल्पसंख्यक समर्थन तक पहुंचें और यह समर्थन अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता के समर्थन में, उन्हें बेचारे विक्टिम में तब्दील कर देने तक पहुँचा. जब बनारस में हमारे आप समर्थक और कांग्रेस समर्थक मुसलामानों के वोट पर बहस कर रहे थे तो मैंने एक स्टेट्स लगाया था. उस समय जो नहीं लिखा वह यह कि क्या यह उसी गति से हिन्दू ध्रुवीकरण में मददगार नहीं? 

इनको वास्तव में एक करने वाली जो ताक़त हो सकती थी/है वह नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का दुष्प्रभाव जो सभी धर्मों, जातियों और राष्ट्रीयताओं को समान रूप से प्रभावित करती है. लेकिन यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको कांग्रेस, सपा, बसपा और कई बार कम्युनिस्ट पार्टियों की भी निर्मम आलोचना करनी पड़ेगी. जब मैंने गुजरात माडल पर लिखा था तो इसीलिए जानबूझ के खुद को सिर्फ आर्थिक सवाल पर केन्द्रित किया था. 

आज मुझे लगता है कि हम आर्थिक सवाल को जितना अधिक एड्रेस करेंगे उतना ही अधिक वंचित जनता को गोलबंद कर सकेंगे और साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ भी जंग तेज़ कर सकेंगे. ध्रुवीकरण टूटेगा तो एकता बढ़ेगी.

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