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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, May 22, 2014

वाम वापसी नहीं,कांग्रेस भी साइन बोर्ड लेकिन इस ध्रूवीकरण से खतरे में तृणमूल

वाम वापसी नहीं,कांग्रेस भी साइन बोर्ड लेकिन इस ध्रूवीकरण से खतरे में तृणमूल


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


बंगाल में लोकसभा चुनाव में एकतरफा जीत हासिल करने के बावजूद मां माटी सरकार की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कतई चैन से नहीं हैं।कांग्रेस की देशव्यापी पराभव से और उसके समर्थन की पेशकश नमोमय भारत की वजह से बेमतलब हो जाने से अन्ना हजारे के ऐन मौके पर हट जाने के बाद प्रधानमंत्री बनने का सुनहरा सपना जो हाथ से निकला,वह तो है ही, कोलकाता समेत स्थानीय निकायों के चुनाव का सामना करने की हालत में भी नहीं हैं वे।


कोलकाता के आधे से ज्यादा वार्डों में भाजपा या तो पहले नंबर पर है दूसरे नंबर पर।जबकि आसनसोल के सभी 45 वार्डों में भाजपा आगे।


कांग्रेस को दीदी ने साइन बोर्ड में तब्दील तो कर दिया और वाम प्रत्यावर्तन का दिवास्वप्न भी विफल कर चुकी वे लेकिन हालत यह बन गयी है कि उनके विधानसभा इलाके में भी भाजपा आगे।दर्जनों विधानसभा इलाकों में कमली फसल लहलहाने लगी है।


राज्य में दीपा दासमुंशी की सीट गंवाने के बावजूद चार चार सीटें जीतने के बावजूद बाकी राज्य में कांग्रेस की हैसियत साइनबोर्ड से बेहतर नहीं है लेकिन मुश्किल यह है कि कांग्रेस का पूरा का पूरा जनाधार भगवा हो गया है।बंगाल में कुल बयालीस सीटों में से 35 में कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत भी बचा नही सकी।


दीदी की मेहनत रंग तो लायी है,लेकिन रंग जो केसरिया हो गया,वह दीदी के सरदर्द का सबब है।


शरणार्थी समस्या में दीदी की कभी दिलचस्पी रही है,इसका कोई सबूत अभीतक नहीं मिला है।मतुआ संप्रदाय की पूर्वी बंगाल में भले ही भारी क्रांतिकारी भूमिका रही है,लेकिन बंगाल में अंबेडकरी या वाम आंदोलन में उसकी कोई भूमिका नहीं रही है।


मौजूदा मतुआ संघाधिपति कपिल कृष्ण ठाकुर जरुर वामपंथी माने जाते रहे हैं और हरिचांद ठाकुर के नाम वाम सरकार का पुरस्कार भी उन्हें मिला।उनके पिता प्रमथरंजन ठाकुर कांग्रेसी सांसद रहे हैं। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद प्रमथरंजन के छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर को मंत्री बना दिया गया और दीदी ने लोकसभा वोट से पहले खुद को मतुआ घोषित कर दिया।


लेकिन आम मतुआ अवलंबियों की तरह उन्होंने  हरिबोल यानी हरिचांद ठाकुर का जयघोष एकबार भी नहीं किया जबकि अभिवादन में वे नमस्ते और सलाम एकसाथ करती हैं।


पूरा मतुआ वोटबैंक दीदीपक्ष में जाने से पहले तक बंगाल में शरणार्थियों को नगरिकता दिलाने का आंदोलन मतुआ नेताओं के हाथ में ही था।लोकसभा चुनाव से पहले कोलकाता में सर्वदलीय रिप्यूजी कंवेशन में वामदलों के साथ तृणमूल के नेता सांसद भी मंच पर थे।लेकिन दिल्ली में इस सिलसिले में आंदोलन करने या केंद्र सरकार से बात करने की किसी ने जहमत नहीं उठायी।


यहां तक कि वाम शासन के दौरान बहुचर्चित मरीचझांपी नरसंहार की जांच का बार बार वादा करने के बावजूद दीदी ने कुछ नहीं किया।


चुनाव प्रचार के दौरान श्रीरामपुर में पहलीबार और बाद में सभी चुनाव सभाओं में नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को खदेड़ने का ऐलान किया।इससे पहले वे असम में भी ऐसी घोषणा कर चुके थे,तब बंगाल के तमाम राजनीतिक दल खामोश रहे।


मोदी के ध्रूवीकरण हेतु किये घुसपैठिया विरोधी अभियान को हाथोंहाथ दीदी ने लपक लिया और मोदी के खिलाफ अचानक आक्रामक होकर उन्हें जेल तक भेजने की धमकी दी।


नतीजतन पहले और दूसरे चरण के मतदान में खासतौर पर उत्तर बंगाल में मुसलिम मतों के विबाजन से वामदलों और कांग्रसे को जो सीटे मिल गयीं, तीसरे चरण से पांचवे चरण तक दीदी के मुसलिम वोटबैंक को मोदी का भय पैदा करके अपने खेमे में हांक लेने से दक्षिणबंगाल में वाम और कांग्रेस का पूरा सफाया हो गया।


वामदलों और कांग्रेस को भी  मजा आ रहा था। वे उम्मीद पाले हुए थे कि भाजपा के वोट काटने पर फायदा उन्हें मिलेगा।


लेकिन हुआ उल्टा, वामदलों का ग्यारह प्रतिशत वोट भाजपा को स्थानांतरित हो गया और वासुदेव आचार्य जैसे नौ बार के सांसद को मुनमुन के मुकाबले मुंह की खानी पड़ी। कांग्रेस के उम्मीदवार तो कहीं जमानत तक नहीं बचा सके।


तृणमूल का दो प्रतिशत वोट ही केसरिया हुआ,फौरी आंकड़े यही बताते हैं,लेकिन हिंदुत्व के नाम हुए ध्रूवीकरण से भाजपा जो एकदम राजनीतिकतौर पर दूसरे नंबर आ गयी, दीदी के इलाके में आगे हो गयी और केंद्र में भी अपने बल बूतेे उनकी सरकार बन गयी,इससे दीदी के होश उड़ गये।


दीदी ने जवाबी कार्रवाई में आसनसोल से मंत्री मलय घटक का इस्तीफा मांग लिया तो मलय अपने अनुगमियों के साथ बगावत पर उतारु हैं।सावित्री मित्र और कृ्ष्णेंदु चौधरी को डपट दिया जो मालदह में हार के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार बता रहे है।इसपर कृष्णेंदु ने छूटते ही प्रेस का कह दिया कि उनके मत्थे ही ठिकरा क्यों फोड़ जा रहा है,जबकि दूसरे इलाकों में बड़े नेताओं के चुनावक्षेत्र में भी भाजपा को बढ़त मिल गयी है।


जाहिर है कि इशारा दीदी की ओर है।


मोहन भागवत बंगाल में शिविर लगा चुके हैं और समझा जाता है कि बंगाल में बूथ स्तर तक का संगठन बनाने की कवायद में वे कोलकाता भी गुपचुप घूम गये हैं।


इस पर तुर्रा यह कि यूपी जीतने वाले अमित साह की आवक भी होने को है।


बंगाल में अब  भाजपा न सिर्फ अपनी बढ़त कायम रखना चाहती है बल्कि वाम व कांग्रेस की गैरहाजिरी में दीदी की सत्ता को चुनौती देने की पूरी तैयारी में लग गयी है।


इस चुनाव में ध्रूवीकरण की महिमा से शारदा फर्जीवाड़े में सीबीआई जांच के ऐलान से दीदी को हुए नुकसान का आकलन संभव नहीं हो सका।


लेकिन सीबीआई जांच शुरु हो चुकी है और केंद्र में भाजपा की सरकार बिना किसी सौदैबाजी के दीदी को कोई छूट देने को तैयार नहीं है।


न केवल दीदी के मंत्री सांसद और नेता अभियुक्त हैं,जिनमें से कई चुनाव जीतने के बाद भी भारी मुश्किल में पड़ सकते हैं,बल्कि दीदी और उनके परिजन खुद आरोपों के घेरे में हैं।


अब दीदी की मुश्किल यह है कि विधानसभा चुनावों से पहले निकायों का चुनाव है, लोकसभा चुनाव में जो ध्रूवीकरण हुआ,उसे जारी रखना उनकी मजबूरी है।


मोदी से सामान्य संबंध होने के नतीजे में उनका मुस्लिम एक मुश्त वोट बैंक टूट सकता है, तालमेल या समर्थन की तो बात ही छोड़ दीजिये।


अब मोदी ने बंगाल के लिए कुछ किया भी तो उसका श्रेय भाजपा दीदी को हरगिज लेने नहीं देगी।


आर्थक बदहाली के आलम में दीदी ने विकास की जो घोषणाएं थोक दरों रपरकी है,उन्हें अंजाम तक पहुंचाना भी केंद्रीय मदद के बिना असंभव है।


इसपर गोरखालैंड आंदोलन के जोर पकड़ने की आशंका अलग है।


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