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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, October 11, 2014

अगर महिषासुर को शहीद बताने पर किसी की भावनाएं आहत होती हैं , तो उसकी हत्या करने वाली दुर्गा की पूजा से भी किसी की भावनाएं आहत हो सकती हैं . आहत भावनाओं के तर्क को मान लेने पर इस विरोधाभास से बचने का कोई रास्ता नहीं है . अगर किसी की नास्तिकता से आपकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं तो आपकी धार्मिकता से किसी की नास्तिक भावनाएं आहत हो सकती हैं . इसलिए इस तर्क से न तो आपको अपनी बात कहने से रोका जा सकता है , न किसी और को .
इस देश में बहुत से लोग रावण की पूजा करते हैं . लेकिन कोई उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करता .किसी की भावनाएं आहत नहीं होतीं. भारतीय समाज में सहिष्णुता और समावेशन की जो परम्परा रही है , आज भारतीय संस्कृति की रक्षा के नाम पर सब से ज़्यादा चोट उसी को पहुंचाई जा रही है . 
पटना में भी महिषासुर की शहादत मनाई गयी , वहाँ किसी की भावनाएं आहत न हुई . दिल्ली में भी फारवर्ड प्रेस पत्रिका में महिषासुर पर दी गयी सामग्री से किसी की भावनाएं आहत नहीं हो रही थीं , न हो सकती हैं . इस पत्रिका पर पुलिस का छापा फासीवादी राज की स्पस्ट आहट है . प्रत्येक लोकतंत्र समर्थक को इस छापे का विरोध करना चाहिए.

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