देश का संघीय ढांचा टूटने के लिए केंद्र से ज्यादा जिम्मेदार राज्यों के आत्मघाती क्षत्रप।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
यह बिल्कुल सही है कि भारतीय संविधान के मुताबिक बहुल संस्कृति के देश में संघीय ढांचा बेहद जरुरी है।संसदीय लोकतंत्र के लिए ही नहीं,अमेरिका जैसे सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति के देश में राज्यों के मामलों में केंद्रीय सरकार के हस्तक्षेप की परंपरा नहीं है।
समझने वाली बात तो यह है कि भारत भारत के संविधान में राज्यों और केंद्र के अधिकार क्षेत्र स्पष्ट तौर पर परिभाषित होने के बावजूद केंद्र में सत्ता जो लगातार केंद्रीकृत होती रही है,उसके लिए क्या सिर्फ कंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है या राजनीतिक समीकरण साधने की गरज से राज्यों में राजकाज चलाने वाले क्षत्रपों का स्वार्थ और उनकी अयोग्यता भी इसके लिए जिम्मेदार है।
केंद्र सरकार को बिना शर्त समर्थन देकर राज्यों के जो क्षत्रप लगातार केंद्र को सत्ता केंद्र बानते रहे हैं,उनका अपराध कम नहीं है।
बल्कि सच तो यही है कि देश का संघीय ढांचा टूटने के लिए केंद्र से ज्यादा जिम्मेदार राज्यों के आत्मघाती क्षत्रप ही हैं।
ऐसा पहलीबार नहीं हो रहा है कि राज्यों की कानून व्यवस्था के मामलों में केद्र सरकार हस्तक्षेप कर रही है।
इससे पहले नेहरु इंदिरा जमाने से यह रघुकुलरीति चला आयी है कि संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए केंद्र स्वार्थी क्षत्रपों के कंधों पर बंदूक रखकर राज्यों में कामकाज चलाती रही है।
जिन क्षत्रपों ने बगावत कर दी,उनकी सरकार गिराने की परंपरा भी केरल में देश की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट राज्य सरकार नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर नेहरु ने ही डाली है।
फिर केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने के साथ साथ क्षत्रपों के पाला बदल के साथ राज्यों में सत्ता परिवर्तन का अनंत सिलसिला भी याद किया जा सका है।
किसी क्षत्रप के अपनी गद्दी बचाने के लिए,या आपराधिक मामले में अपनी खाल बचाने के लिए राज्य और जनता के अधिकारों को केंद्र को समर्पित करने के उदाहरण बेहद कम भी नहीं हैं।हर राज्य का इतिहास कमोबेश यही है।
गौरतब है कि बंगाल,केरल और त्रिपुरा में वाम शासन के दौरान कामरेड ज्योति बसु और बाद में कामरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाई में राज्यों के हक हकूक के लिए आवाज उठती रही है।केरल और बंगाल में वाम अवसान के बाद त्रिपुरा की सीमाबद्ध ताकत के बूते माणिक सरकार के लिए वह करिश्मा दोहराते रहना कतई संभव नहीं है।
तमिलनाडु,असम,महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश,बंगाल,पंजाब,असम जैसे राज्यों में सत्ता के लिए जो मारामारी है और केंद्र की सत्ता के सात जो तालमेल का सिलसिला जारी है,उसमें संघीय ढांचा को तो टूटना ही था।
सरकारिया आयोग तो बना लेकिन संघीय ढांचे के संरक्षणके लिए क्षत्रपों की गोलबंदी कभी हो नहीं सकी।नतीजतन केंद्र सरकार निरंतर निरंकुश होती जा रही है।
मुक्त बाजार के पीपीपी माडल के मुताबिक देशी विदेशी पूंजी की जो लूटखसोट है और जो दश बेचो अभियान सर्वव्यापी है और जिस तरह से रोजाना केंद्र और राज्य सरकारों की मिलीभगत से देश के आइन कायदे बदल दिये जा रहे हैं,जिस तरह नागरिक और मानवाधिकारों का हनन हो रहा है,जो जल जंगल जमीन से बेदखली की निरंतरता है,उसके पद्म प्रलय मध्ये देश के संघीय ढांचा बच पाना असंभव है।
देश का संघीय ढांचा बरकरार रखने के लिए भारतीय संविधान और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक केंद्र और राज्यसरकारों के राजकाज होने चाहिए,जो दरअसल विदेशी हितों के लिए कारपोरेट लाबिइंग मार्फत चल रहे हैं।
ऐसे में संघीय ढांच का रोना अजब भी है और गजब भी है।
बड़ी निराली है यह प्रेमकथा।बेहद बेढब है जानी दुश्मनी।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रीय नेता हैं और वे भी जयललिता के साथ पिछले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र भाई मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्रित्व की दौड़ में थीं।
अब सुश्री जयललिता जेल में हैं तो ममता बनर्जी कठघरे में हैं।
कानून व्यवस्था को पार्टीबद्ध सत्ता हित के राजकाज में तब्दील करके अपने लिए गड्ढा उन्होंने ही खोदी है।
झैसा कि उनका आरोप है कि तमाम घोटालों के लिए पूरववर्ती वाम शासन जिम्मेदार है और बंगाल मे कथित आतंकवादी नेटवर्क के लिए भी वाम हरमाद ही जिम्मेदार हैं,तो उन्होंने इस सिलसिले में अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की और अपने दागियों को,सत्ता से जुड़े अपराधी तबके को बचाने के लिए कानून के राज में व्यवधान क्यों खडे़ किये कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट क आदशानुसार छोटे बड़े मामलों की सीबीआई जांच होने लगी है। सवाल यह भी है कि पुलिस पूरी तरह पार्टीबद्ध,प्रशासन पूरीतरह पार्टीबद्ध,राज्य की कानून व्यवस्था से आम लोगों का भरोसा उठ गया,ऐसी नौबत क्यों आने दी।
यह मौका तो दीदी ने ही बना दिया।बंगाल में आतंकवादी नटवर्किंग के भंडाफोड़ के बाद शारदा अनुभव के बावजूद केंद्र सरकार हाथ में हाथ रखे तमाशा देखती रहेगी,खासकर तब जबकि बंगाल में संघ परिवार अगले विधानसभा चुनावों में उनके तख्ता पलट के लिए पूरी तैयारी में है,ऐसी समझ बंगाल की मुख्यमंत्री की न हो तो अब संघीय ढाचे का रोना रोकर कुछ होना जाना नहीं है।
केंद्र विरोधी मौकापरस्त जिहाद से भावनाओं को भड़काया जा सकता है,लेकिन इससे कुछ हासिल हो पायेगा,ऐसी कोई उम्मीद नहीं है।
गौरतलब है कि महिषासुर मर्दिनी देवी दुर्गा को चक्षुदान करने के बाद राज्य सरकार दुर्गोत्सव के राजकाज में ही निष्णात रही है।
बेहद जरुरी मुद्दों पर राज्यसरकार ने बयानबाजी के अलावा कुछ किया नहीं है और हालात लगातार बिगड़ते चले गये और हालात राज्य सरकार के नियंत्रण में भी नही है और न भारी बहुमत से जीती मां माटी मानुष की पार्टी की कोई साख बची है।
महालया के बाद तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मौन व्रत धारणकर रखा था,जो उनकी सड़कू राजनीति के खिलाफ है।
अब उफेस बुक पर बिना किसी का नाम लिए राज्यों के हक हकूक छीनने के लिए केंद्र सरकार विरुद्धे गोलाबीरी शुरु की है।
ऐसा इसलिए हुआ कि केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के वर्द्धमान में दो अक्तूबर को हुए दोहरे बम विस्फोट की जांच को गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपने का निर्णय किया। राज्य सरकार द्वारा सिद्धांत: मंजूरी दिए जाने के बाद यह निर्णय किया गया।
आधिकारिक सूत्रों ने नई दिल्ली में बताया बताया कि मामले के अंतरराष्ट्रीय तार जुड़े होने को देखते हुए इसकी जांच एनआईए को सौंपने का निर्णय किया गया। इसमें पड़ोसी देश बांग्लादेश के कुछ नागरिक भी कथित रूप से संलिप्त हैं। सूत्रों ने कहा कि एनआईए अधिनियम के तहत एक अधिसूचना जारी की गई और एजेंसी कल प्राथमिकी दर्ज करेगी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय को केंद्रीय एजेंसियों और राज्य सरकार से घटना के बारे में रिपोर्ट मिली थी जिसमें एक घर में हुए विस्फोट में दो संदिग्ध आतंकवादी शकील अहमद और सोवन मंडल मारे गए थे और एक अन्य व्यक्ति हसन साहेब जख्मी हो गया था।
घर से सीआईडी की टीम ने ग्रेनेड, विस्फोटक बनाने में प्रयुक्त होने वाले रसायन, विस्फोट करने के तरीकों पर एक किताब, जिहादी साहित्य, जिहादी प्रशिक्षण पर एक वीडियो और वर्द्धमान जिले के महत्वपूर्ण स्थानों के मानचित्र जब्त किए थे।
बड़ी संख्या में घड़ियों के डायल, सिम कार्ड और परिष्कृत विस्फोटक उपकरण बनाने में इस्तेमाल होने वाले अन्य उपकरण भी घर से जब्त किए गए थे। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार शुरू में यह स्वीकार करने को तैयार नहीं थी कि वर्द्धमान की घटना के आतंकवाद से जुड़े होने का संदेह है। घटनास्थल से एकत्रित सामग्री से यह पता चलने के बाद कि कोई आतंकवादी समूह घर में बम बना रहा था और हमले की योजना बना रहा था, मामला सीआईडी को सौंपा गया। मामले में दो महिलाओं सहित चार लोगों को अभी तक गिरफ्तार किया जा चुका है।
धुर राजनीतिक विरोधी भाजपा और माकपा केंद्र से मांग करते रहे हैं कि जांच एनआईए को सौंपी जाए क्योंकि उनका मानना है कि राज्य सरकार मामले को रफा दफा करने का प्रयास कर रही है।
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