बंगाल ही नहीं भारत भर के
कारीगरों ने इस बार नहीं गढ़ीं
मिट्टी से मूर्तियां
सोनागाछी ही नहीं भारत भर की
उन बस्तियों से निकालकर
बाहर लाये वे वेश्याओं को
उन्होंने रखा इस बात का ख्यााल
उनमें से कोई बूढ़ी-पुरानी
दर्द से कराहती, खांसती-मरती
नहीं छूटे उस अंधेरे में भीतर के
कारीगरों ने इस बार उन सबका
किया ठीक वैसा ही श्रृंगार जैसा
करते आये वे मूर्तियों का अब तक
और उन्हें बिठाया जगमगाते
उन मंडपों में ले जाकर, आखिर
उन्हें हमने ही तो गढ़ा अब तक
लगातार हमारा होना झेलती
कोई देवी नहीं थी इससे पहले
हमारे पास, इस बार उन्होंने
गढ़ी दसवी देवी
जिसका नाम पड़ा देवी सोनागाछी
[नोट - परम्परा से कलकत्ते के मशहूर यौन- हाट सोनागाछी मुहल्ले की मिट्टी से बनी दुर्गा की प्रतिमाएं सब से अधिक पवित्र मानी जाती हैं ]
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