Thanks Google! You remain user friendly and I use Google since day first.Aesthetics of social realism yet again!
It is about the hostory of Indigenous uprisings, insurrections and movements by UNITED INdian Peasantry!Please don`t Miss!
নীলকন্ঠ পাখি হারিয়ে গেছে বহুকাল!খোঁজ নেই নীলকন্ঠ পাখির!ছাকুর থাকবে কতক্ষন!মহিষাসুরের তবু পুজো হয়,কিনতু মুলনিবাসী বহজন বহুসংখ্য মানুষ প্রতি মুহুর্ত বধ্য বেদিকী হিংসায়!বাংলা তবু মাতৃতান্ত্রিক!অন্ততঃ মাতৃপক্ষে!দেবি বিসর্জনে যায়,কিন্তু সুন্দরবনের সধবা বিধবাদের রোজই বিসর্জন হচ্ছে!উত্সব শেষপর্যন্ত ধর্ষণ উত্সব এবং বাংলা এখন ধর্ষণ বাংলা!রবীন্দ্র বলেছিলেন সেই আলোকস্তম্ভের কথা,যার নীচে শুধুই অন্ধকার,সেই অন্ধকারে হারিয়ে যাচ্ছে অস্পৃশ্য,ব্রাত্য মেহনতী মানুষ!তাঁরাই অসুররুপেণ বধ্য এই হিন্দুত্বের পুনরুত্থানে মুক্ত বাজারের স্বার্থে,বিদেশী পুংজির স্বার্থে!সুন্দরবন ধ্বংসে আত্মধ্বংস,আফগানিস্তানের ভূমিকম্পে দিল্লীর কাঁপুনি প্রমাণ!
हिंदुत्व के पुनरुत्थान के साथ भारत अमेरिकी उपनिवेश में तब्दील, हिटलर जैसे हारा, वैसे हमारा लाड़ला झूठा तानाशाह भी हारेगा
কাঁপিতেছে থর থর বারম্বার!কেয়ামত!
Palash Biswas
Please download each video that I share subjected to unknown problems.Better to see it offline.Please share it as much as possible.I have discussed social realism in reference to Balzac, Mozart, Bach, Shakespeare, Sophocles,Kalidasa,Tagore and Indian Bhakti movement!
নীলকন্ঠ পাখি হারিয়ে গেছে বহুকাল!খোঁজ নেই নীলকন্ঠ পাখির!ছাকুর থাকবে কতক্ষন!মহিষাসুরের তবু পুজো হয়,কিনতু মুলনিবাসী বহজন বহুসংখ্য মানুষ প্রতি মুহুর্ত বধ্য বেদিকী হিংসায়!
বাংলা তবু মাতৃতান্ত্রিক!
অন্ততঃ মাতৃপক্ষে!
দেবি বিসর্জনে যায়,কিন্তু সুন্দরবনের সধবা বিধবাদের রোজই বিসর্জন হচ্ছে!উত্সব শেষপর্যন্ত ধর্ষণ উত্সব এবং বাংলা এখন ধর্ষণ বাংলা!
রবীন্দ্র বলেছিলেন সেই আলোকস্তম্ভের কথা,যার নীচে শুধুই অন্ধকার,সেই অন্ধকারে হারিয়ে যাচ্ছে অস্পৃশ্য,ব্রাত্য মেহনতী মানুষ!তাঁরাই অসুররুপেণ বধ্য এই হিন্দুত্বের পুনরুত্থানে মুক্ত বাজারের স্বার্থে,বিদেশী পুংজির স্বার্থে!
সুন্দরবন ধ্বংসে আত্মধ্বংস,আফগানিস্তানের ভূমিকম্পে দিল্লীর কাঁপুনি প্রমাণ!
নীলকন্ঠ পাখির খোঁজ নেই,তবু বিসর্জন!সুন্দরবনের সধবা বিধবা মেয়েদের প্রতি মুহুর্তে চলছে বিসর্জন নীলকন্ঠ পাখিদের ছাড়া!সেই সুন্দরবনকে ধ্বংস করে আমরা গড়ছি সভ্যতার উপনিবেশ!এই শাব হিউম্যান পৃথীবীতে গেদখল হারিয়ে যাওয়া মানুষদের কোনো ছিকানা নেই!ঝড় চলছে,ভুমিক্মপ হচ্ছে,সুনামী অব্যাহত!আমারা খবর রাখিনা!আত্মঘাতী বাঙালিধ ধ্বংস করছে সেই সুন্দরবন,সেই মহাঅরণ্য,যে জলপ্রলয় থেকে রক্ষা করছে আমাদের হাজারো বছর ধরে!
মনুষত্য ও সভ্যতার জন্য এই ধ্ংস লীলা বন্ধ হোক!
- 3 days ago
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It was recorded on last 25th Oct but I could not upload because of unexpected technical unwanted error.Thanks You Tube to fix it.
You have to see the video if interested.
I had been camping in Sidar Bans Zone for three days.Newspapers were out of Print for four days and TV channels were engaged in Puja Carinival.But it made no difference as neither newspapers nor the electronic media address the basic issues.Media has nothing to do with public hearing.
Media has to go beyond Print and newspapers must go beyond news.Indian Express group has been doing exactly this and it does not restrict creative activism.
I have to discuss the aesthetics of social realism yet again.The brute Capital of Indian caste Class hegemony in Delhi had shown the racist apartheid and apathy against outcaste outclass sanitary workers and the so much so hyped Arvind Kejriwal has been exposed enough.You may understand the phenomenon of development,growth and well ness understanding the phenomenon of imperialst feudal hegemony of racist aparthed patriarchal if you understand economics, history, politics and religion.
The Bhakti movement refers to the theistic devotional trend that emerged in medieval Hinduism. It originated in the seventh-century Tamil south India (now parts of Tamil Nadu and Kerala), and spread northwards.
Bhakti movement - Wikipedia, the free encyclopedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Bhakti_movement
Rabindranath Tagore - Wikipedia, the free encyclopedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Rabindranath_Tagore
Tagore modernised Bengali art by spurning rigid classical forms and resisting linguistic strictures. His novels, stories, songs, dance-dramas, and essays spoke to ..
कृपया हस्तक्षेप की मदद करें जनपक्षधर विमर्श और जनसुनवाई जारी
रखने के लिए। हस्तक्षेप का अलैक्सा पर अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग 1,09,573
और भारत में 11,280 है।
Sabita Babu speaks from the Heart of the India,where Dilon kaa Bantwara naa huaa hai naa Hoga.Please share as much as you can to save India!The Real India,the greatest pilgrimage of humanity merging so many streams of humanity!
Hence,every woman in either part of Bengal sings rabindra sangeet.If pakistani women learn this music of love,our relations would be better.I hope! Sabita sang for me all the way.
Sophocles - Wikipedia, the free encyclopedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Sophocles
Sophocles (/ˈsɒfəkliːz/; Greek: Σοφοκλῆς, Sophoklēs, Ancient Greek: [so.pʰo.klɛ̂ːs]; c. 497/6 – winter 406/5 BC) is one of three ancient Greek tragedians whose plays have survived. His first plays were written later than those of Aeschylus, and earlier than or contemporary with those of Euripides.
Kālidāsa - Wikipedia, the free encyclopedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Kālidāsa
Kālidāsa (Sanskrit: कालिदास) was a Classical Sanskrit writer, widely regarded as the greatest poet and dramatist in the Sanskrit language. Much about his life is unknown, only what can be inferred from his poetry and plays. His floruit cannot be dated with precision, but most likely falls within the 5th century AD.
Honoré de Balzac
Honoré de Balzac (/ˈbɔːlzæk, ˈbæl-/;] French: [ɔ.nɔ.ʁe d(ə) bal.zak]; 20 May 1799 – 18 August 1850) was a French novelist and playwright. His magnum opus was a sequence of short stories and novels collectively entitled La Comédie Humaine, which presents a panorama of French life in the years after the 1815 Fall of Napoleon Bonaparte.
https://en.wikipedia.org/wiki/
Johann Sebastian Bach
Johann Sebastian Bach[a] (31 March [O.S. 21 March] 1685 – 28 July 1750) was a German composer and musician of the Baroque period. He enriched established German styles through his skill in counterpoint,harmonic and motivic organisation, and the adaptation of rhythms, forms, and textures from abroad, particularly from Italy and France.Bach's compositions include the Brandenburg Concertos, the Goldberg Variations, the Mass in B minor, two Passions, and over three hundredcantatas of which around two hundred survive.His music is revered for its technical command, artistic beauty, and intellectual depth.
https://en.wikipedia.org/wiki/
Wolfgang Amadeus Mozart
Wolfgang Amadeus Mozart (German: [ˈvɔlfɡaŋ amaˈdeːʊs ˈmoːtsaʁt], English see fn.; 27 January 1756 – 5 December 1791), baptised as Johannes Chrysostomus Wolfgangus Theophilus Mozart,[2] was a prolific and influential composer of the Classical era. Born in Salzburg, Mozart showed prodigious ability from his earliest childhood. Already competent on keyboardand violin, he composed from the age of five and performed before European royalty.
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William Shakespeare
William Shakespeare (/ˈʃeɪkspɪər/;[1] 26 April 1564 (baptised) – 23 April 1616)[nb 1] was an English poet, playwright, and actor, widely regarded as the greatest writer in the English language and the world's pre-eminent dramatist.[2] He is often called England's national poet, and the "Bard of Avon".[3][nb 2] His extant works, including collaborations, consist of approximately 38 plays,[nb 3] 154 sonnets, two long narrative poems, and a few other verses, some of uncertain authorship. His plays have been translated into every major living language and are performed more often than those of any other playwright.[4]
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ब्लेअर बाबू ने मान लिया युद्ध अपराध माफी भी मांग ली,हम किस किसको माफ करेंगे?
गधोंं को चरने की आजादी है और पालतू कुत्तों को खुशहाल जिंदगी जीने की इजाजत है!
तय करें कि गधा बनेेंगे कि कुत्ता या इंसान!
लाल नील एका के बिना कयामत का यह मंजर नहीं बदलेगा और अधर्म अपकर्म के अपराधी राष्ट्र और धर्म का नाश ही करेंगे इंसानियत और कायनात की तबाही के साथ साथ!
जागो जागरण का वक्त है और देखो,सिर्फ गधे रेंक रहे हैं और गाय कहीं रंभा नहीं रही है।
बेरहम दिल्ली भी थरथर कांपे हैं और तानाशाह भी कांप रहा है !
पलाश विश्वास
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने आज मान लिया कि दुनियाभर में अभूतपूर्व हिंसा औक दसों दिशाओं में दहशतगर्दी खाड़ी युद्ध का नतीजा है और इसके लिए उनने माफी मांग ली।
हम ऐसा 1989 में सोवियत संघ के पतन से पहले कहते रहे हैं यह सच,आपने सुनने की तकलीफ नहीं की तो हम सोये भी नहीं हैं तब से आजतक।रतजगा हमारा रोजनामचा महायुद्ध का वृतांत है।
अमेरिका से सावधान खाड़ी युद्ध के दौरान अमर उजाला में खाड़ी डेस्क पर सीएनएन के आंखों देखा हाल के मुकाबले दुनियाभर से और खासतौर पर मध्यपूर्व और यूरोप के साथ साथ लगातार बगदाद और तेहरान और निकोसिया से जुड़े रहने का नतीजा है।
हम बाहैसियत पत्रकार तेल युद्ध में मरुआंधी के बीच कहीं नहीं थे और न हमने सोवियत संघ के साथ सद्दाम हुसैन के पतन का नजारा देखा।
फिर भी हम तेलकुंओं की आगसे उसी तरह झुलसते रहे जैसे अछूत कवि नोबेलिया रवींद्र का दलित विमर्श नजरअंदाज है।
जनसंहार के हथियारों के इराक में होने के दावे के साथ जो युद्ध दुनियाभर के मीडिया पर कब्जे के साथ आधिकारिक सूचना की अनिवार्यता के कानून के मुताबिक अमेरिका,ब्रिटेन और इजराइल ने शुरु किया,उसका सामना हमने खाड़ी युद्ध एक और दो के दौरान वैसे ही किया जैसे कमंडल मंडल में भारत को लगातार मुक्त बाजार में हमने तब्दील होते देखा।
इसलिए इराक के युद्धस्थल में बंकर से उस युद्ध का आंखों देखा हाल हमने लिखने की जुर्रत की इस समझ के साथ कि भारत हिंदुत्व के पुनरुत्थान के साथ अमेरिकी उपनिवेश में तब्दील है।
तमाम माध्यमों,विधाओं और भाषाओं में हम 1989 से यही सच कहने लिखने की कोशिश कर रहे हैं।आप न पढ़ते हैं,न सुनते हैं।
बहरहाल पहलीबार हमारा भी नोटिस लिया जा रहा है।
जो दोस्त कह रहे थे कि लिखने बोलने से कुछ नहीं होता वे इसपर गौर जरुर करें कि इस देश की फासिस्ट सत्ता एक अदना नाकाम नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता का उल्लंघन करते हुए बार बार उसे कहने लिखने से रोक क्यों रही है।
सेंसर शिप का नतीजा यह कत्लेआम है जो खाड़ी युद्ध के तेलकुंओं से शुरु हुआ और अब भी जारी है और यह कोई केसरिया सुनामी नहीं है,गौर से परख लें यह तेलकुँओं की आग है जो इस महादेश में सरहदों के आर पार मनुष्यता,सभ्यता और प्रकृति को जला रही है।
सेंसरशिप अब अभूतपूर्व है।
लबों को कैद करने में नाकाम गुलामों की हुकूमत अबहिंदुत्व की नंगी तलवार से सर काटने का राजसूय यज्ञ चला रही है।
फिर वही अभूतपूर्व सेंसर है।हिटलर मार्का।
हिटलरजैसे हारे ,वैसे हमारा लाड़ला झूठा तानाशाह भी हारेगा।
हमने अकेले जार्ज बुश को बोलते हुए सुना है और हमने इन्हीं टोनी ब्लेयर महाशय को झूठ पर झूठ बोलते हुए देखा है।
ब्लेयर बोले हैं तो कभी न कभी जिंदा रहे तो बोलेंगे बुश भी और वे माफी भी मांग लेंगे।
मनुष्यता,सभ्यता और प्रकृति के कत्लेआम के अपराधी झूठ के सहारे राजकाज चलाते हैं फासिज्म का और इसीलिए सच बोलना मना है।
हिटलर ने भी वही किया था।
सच की आंच किसी एक मनुष्य के लगातारमंकी बातों के बहाने झूठ पर झूठ बोलते जाने से खत्म होेती नहीं है।वह सुलगती है जमीन के अंदर ही अंदर।फिर ज्वालामुखी बनकर फटती है हुक्मरान के खिलाफ।वह स्थगित विस्फोट कभी भी संभव है।
धरती की गहराई में उथल पुथल है तो हिंदकुश में जमीन केअंदर दो सौ मील नीचे शेषनाग ने अंगड़ाईली तो बेरहम दिल्ली भी थरथरा गयी।सबसे सुरक्षित लोग,सत्तावर्ग के लोग,अंधियारे के तमाम सौदागर और नफरता का जहर उगलनेवाले तमाम जहरीले नाग अपने दड़बे से जान बचाने के लिए निकले।
यह भी नहीं समझते कि चंद पलों की भी मोहलत नहीं मिलती भूकंप में औरसचमुच भूकंप आया तो तबाह होना ही होना है सीमेंट के सारे के सारे तिलिस्म महातिलिस्म किले और राजधानी, मुख्यालय वगैरह वगैरह। हम तो खुले आसमान के नीचे खड़े लोग हैं और उनकी जन्नत तक पहुंचने की हमारी कोई सीढ़ी वगैरह वगैरह नहीं हैं।हम निःशस्त्र हैं।फिरभी निश्चित हार मुंङ बाँए देख मूर्खों के सिपाहसालार गदहों की तरह इंसानियत के जज्बे को कत्ल कर देने का छल कपट प्रपंच सबकुछ आजमा रहे हैं।
हमारी निगरानी हो रही है पल पल।हम जडो़ं से जुढ़ें हैं अगर और हमारे पांव जमीन पर चिके हों अगर,अगर हम आम जनता के बीच है और उन्हीं की आवाज और चीखों की गूंज कोकला मानते हैं,तो कोई कौशल, कोई दक्षता और कोई तकनीक,कोई निगरानी पकती हुई जमीन की भूमिगत आग को रोक नहीं सकती।
गधों को खुल्ला छोड़ दीजिये मैदान में तो उन्हें क्या तमीज है कि क्या घास है और क्या लहलहती फसल है।क्या अनाज है,क्या दालें हैं,क्या सब्जियां हैं और क्या फल फूल हैं।वे चरने के लिए आजाद हैं।आम जनता के हाथ में लाठियां भी होनी चाहिए कि गधों को हांककर सही रास्ते पर,सही दिशा में ले जायें।वरना यह लोकतंत्र एक खुल्ला चारागाह है जहां किसिम किसिम के रंग बिरंगे गदहे गंगा यमुना गोदावरी कावेरी ब्रह्मपुत्र और पंजाब से निकलती पांच नदियों के उपजाऊ मैदान को मरुस्थल में तब्दील कर देंगे और हम कपालभाती,योगाभ्यास ही करते रहेंगे दाने दाने को मोहताज।
दस दिगंत हिंसा और घृणा के धर्मोन्मादी माहौल को कृपया हिंदुत्व का पुनरुत्थान कहकर आस्थावान आस्थावती नागरिकों और नागरिकाओं की धर्म और आस्था की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हमन न करें।
यह अधर्म,यह अपकर्म जो सिरे से अपराधकर्म है,उसका नतीजा ग्रीक ट्रेजेडी है या पिर तेलकुंओं की आग में तेल में फंसे पंख फड़फड़ाता बेगुनाह पंछी है या निष्पाप आईलान का पार्थिव शरीर है समुद्रतट पर चीखता हुआ कि सावधान।
हालात ताजा कुलमिलाकरयह है कि हमीं लाल तो हमीं नील हैं और हम आपस में बेमतलब हिंदुत्व के इस नर्क में मारामारी करके न सिर्फ लहूलुहान है बल्कि हमारा पसंदीदा जायका इंसानियत और कायनात की बरकतों,नियामतों और रहमतों का खून है।यह कयामती मजर न बदला तो यकीनन न खाने को कुछ होगा।न पहनने को कुछ होगा।न रोटी मिलेगी और न रोजगार।
हमने चकलाघरों के दल्लाओं के हवाले कर दिया है यह महान देश हमारा।देश दम तोड़ रहा है।देश जल रहा है।दावानल से गिरे हम शिक कबाब बन रहे हैं।फिरभी मुक्तबाजारी महोत्सव में विकास मंत्र जापते हुए हम अपनों के स्वजनों के कत्लेआम के लिए अश्वमेधी फौजों में पैदल कुत्तों की पालतू जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।जनरल साहेब ने सच ही कह रहे हैं। झूठी पहचान और झूठी शान के तहतहम खुदै को मलाईदार समझते हैं और जूठन चाटते हैं और हमारीमुलायम खाल का कारोबार चलाते हैं किसिम किसिम के दल्ला।दल्लों की बेइंतहा अरब अरब डालर की मुनापावसूली के बीच जाहिर है कि न शिक्षा होगी और न चिकित्सा होगी।
चारों तरफ गधे रेंक रहे हैं।मनुष्यता सन्नाट बुन रही है और राष्ट्र के विवेक को सुकरात की जहर कीप्याली थमायी जा रही है।
हम अब कोई वीडियो अपवलोड करने को आजाद नहीं है।न हमारा मेल कहीं जा रहा है और न कोई मेल आ रहा है।आईपीओ घर और दफतर का ब्लाक है।
आखिरी वीडियो जो हमने रिकार्ड किया है,वह बालजाक के ्ंतिम स्तय की खोज के बारे में है।वाल्तेयर के जला दिये गये रचनासमग्र के बारे में है तोवाख औरमोजार्ट के बारे में है।शेक्सपीअर और कालिदास के सौंदर्यबोध के बारे में भी है।
सुकरातआज भी जिंदा हैं।उसके हत्यारे नाथुराम गोडसे भी नहीं है।इस दुनिया में कोई उस हत्यारे कोयाद नहीं करता लेकिन हम गोडसे क मंदिर बना रहे हैं।
गोडसे का भव्य राममंदिर बना रहे हैं।
वहीं बाबासाहेब को विष्मु का अवतार बनाकर उनके हिंदुत्वकी प्राण प्रतिष्ठा करते हुए संपूर्ण निजीकरण और अबाध विदेशी पूंजी के हिंदुत्व के नर्क में हम मिथ्या आरक्षण के लिए जाति के नाम पर लड़ रहे हैं।
और बाबासाहेब,महात्मा ज्योतिबा फूले,नारायण गुरु,लोखंडे,गाडगे बाबा,बसश्वर बाबा,संत तुकाराम,लालन फकीर,हरिचांद गुरुचांद ठाकुर ,चैतन्य महप्रभु,संत तुकाराम,सुर तुलसी कबीर रसखानमीरा गालिब,सिखों के चौदह गुरर.तमाम तीर्तांकरों से लेकर अछूत रवींद्र के भारत तीर्थ के विसर्जन की तैयारी में हैं।
कृषि खत्म है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो एकाधिकारववादी बहुराष्ट्रीय वर्चस्व की मनसेंटो चमत्कार और तकनीक,आईटी,प्रोमोटरबिल्डर माफिया राज के अंध घृणासर्वस्व हिंसक नरमेधी सैन्यराष्ट्रवाद से व्यवासाय,उद्योग धंधे हरगिज नहीं बचेंगे।
संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश और हजारों विदेशी कंपनियों के हितों के मुताबिक बिजनेस फ्रेंडली नस्ली विशुद्धता और अस्पृश्यता और बहिस्कार का राजकाज चलेगा तो राष्ट्रका अवसान होने में देर नहीं।
हमारी समझ से बाहर है कि संस्थागत संघ परिवार काहिंदुत्व क्या है,रष्ट्र क्या है,राष्ट्रवाद क्या है,धर्म क्या है,आस्था क्या है,कर्म क्या है,स्वदेस क्या है।
गुरु गोलवलकर हिंदुत्व के महागठबंधन के रचयिता हैं तो बालासाहेब देवरस इंदिरा को देवी दुर्गा का अवतार बता रहे थे,जिसदेवी ने सिखों को असुर और महिषासुर बनाकर रावण दहन की तरह जिंदा जला दिया और संघ परिवार ने विबाजन का सारा पाप गांधी के मत्थे मढ़ दिया।
हड़प्पा और मोहंजोदोड़ो के विनाश के बाद न हमने भूगोल समझा है और न इतिहास।तो अर्थशास्त्र क्या खाक समझेंगे।
हम न अपने पुरखों को जानते हैं और न उनकी लड़ाइयों और जीतों के अनंत सिलसिले को जानने समझने की कोशिस करते हैं।
हम अपनी अपनी हैसियत औरपहचान के दायरे में कैद लोगदरअसल जनरल साहेब के कहे पालतू कुत्ते ही हैं,जिनके जीने मरने का किसी को फर्क नहीं पड़ता।
हमें भी नहीं।
गौर से सुन लीजिये कि कहीं गायें रंभा नहीं रही है और गोरक्षा आंदोलन चरम पर है।
भारत के गांवों में खेत खलिहानबेदखल सीमेंट के जंगल में तब्दील हैं और कहीं गोबर मिलता नहीं है और पानी की तरह मिट्टी भी खरीदने कीनौबत है।
यह अभूतपूर्व हिसां की सुनामी है।
यह अभूतपूर्व दहशतगर्दी है।
यह बलात्कार सुनामी है पितृसत्ता की।
यह हमारे बंधुआ बच्चों को जिबह करने का गिलोटिन है।
कत्लेाम के लिए माफी मांगते रहने और नैतिकता और ईमानदारी का पाठ पढञनेवालों को किसी कत्ल या नरसंहार के मामले में सजा नहीं हो सकती।
वियतनाम के कसाई हेनरी किसिंजर को नोबेल शांति पुरस्कार मिल गया तो क्या इतिहास बदल जायेगा।
गुजरात के नरसंहार या भोपाल गैस त्रासदी,या सिखों के कत्लेआम या देश भर में दंगा फसाद के कारीगरों को नोबेल मिल गया जैसे सत्ता के लिए हुकूमत के लिए उन्हें जनादेश मिल गया और फिर फिर जनादेश की रचना प्रकिया में वे अपने सौंदर्यबोध के मुताबिक देश में आपदाएं रच रहे हैं तो क्या वे शांति दूत मान लिये जायेंगे,यह समझनेवाली बात है।
महान तानाशाह इतिहास के कचरे में त्बील हो जाते हैं जैसे हाल में हिटलर और मुसोलिनी,जार्ज बुश और टोनी ब्लेयर हो गये।
जिस शासक को इतिहास भूगोल राजनीति राजनय और अर्थव्यवस्था की तमीज नहीं है और जो खुलती खिड़कियों के खड़कने से खड़खड़ाता है और असुरक्षाबोध में दमन और सैन्यतंत्र,हथियारों की होड़,युद्ध और गृहयुद्ध रचकर सिर्फ बेइंतहा झूठ,नफरतऔर तबाही के राष्ट्रद्रोही राजकाज के जरिये गामा पहलवान है,कोई न कोई छुपा रुस्तम कहीं से आकर,आसमान या जमीन फोड़कर उसे चारों खाने चित्त कर देगा,इस उम्मीद में कुत्ते बनकर हम गुजर बसर को जिंदगी मान लेगें तो कयामत का यहमंजर हरगिज बदलनेवाला नहीं है।
अलीबाबा और चालीस चोर की कथा आखिर लोकतंत्र नहीं है।
हम मनुष्य नहीं हैं तो नागरिक भी नहीं।न कोई हमारा देश है।
भेड़ धंसान और धनपशुओं का बाहुबल माफियातंत्र का वोटतंत्र
कोई लोकतंत्र नहीं है।न होता है।
ये राष्ट्रद्रोही जलवायु की हत्या कर रहे हैं।
मौसम को बदल रहे हैं।
तापमान बदल रहे हैं।
खेत खलिहान कारखाने कारोबार उद्योगधंधे महाश्मशान में तब्दील कर रहे है।
देश को मृत्यु उपत्यका और गैस चैंबर में तब्दील करनेवाले कालेधन के सेनसेक्सी ये भालू और साँढ़ ही ग्लेशियरों को मरुस्थल में तब्दील कर रहे हैं और समुंदर में ज्वालामुखी पैदा करने के साथ साथ सारे के सारे समुद्रतट को रेडियोएक्टिव बनाकर पूरे देश को डूब में तब्दील कर रहे हैं और वे ही किसानों,मेहनतकशों और लाल नील आम जनता का कत्लेआम कर रहे हैं पल छिन पल छिन।
वे लोग ही जल जंगल जमीन नागरिकाता नागरिक मानव मौलिक अधिकारों और संविदान के साथ साथ राष्ट्र की एकता ,अखंडता और संप्रभुता के कातिल हैं।
बेरहम दिल्ली के भूकंप में थरथराये लोगों की तरह नंगी तलवारों की चमक दमक से पसीना पसीना होकर हमारी यह शुतुरमुर्ग प्रजाति मनुष्यता और प्रकृति के पक्ष में खड़े हो ही नहीं सकते।
खड़े होने के लिए रीढ़ चाहिए।
कीड़ों मकोड़ों की रीढ़ होती नहीं है वे इसीतर दबकर कुचलकर जीते हैं औरबेमौत मारे जाते हैं।
किसी ने कुत्ता कहा तो गुनाह नहीं है।
आज सुबह आठ बजे और अभी अभी आदरणीय आनंद तेलतुंबड़े से लंबी चौड़ी बातें हुईं और हम सहमत हुए कि यह सही वक्त है लाल नील रंगों के विलय का,जिसके बिना हम फासिज्म का मुकाबला हरगिज नहीं कर सकते।
केसरिया वर्चस्व मनुस्मृति शासन है और बहुजन समाज फिर वही सर्वहारा है।जो आबादी का निनानब्वे फीसद है।
जो फिजां बिगड़ी है इस भारत तीर्थ की,जो कयामत का मंजर है, उसे बदलने के लिए जाति को खत्म करना सबसे जरुरी काम है।
यह जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी अंधियारे का यह कारोबार,हिंदू धर्म और इस देश की आम जनता की भावनाओं और आस्था से खिलवाड़ करने का यह खुल्ला खेल फर्रूखाबादी खत्म होगा।
हमारा मानना है कि इस देश की निनानब्वे फीसद आम जनता की मोर्चाबंदी के बिना यह मुक्तबाजारी अधर्म धर्म का नाश तो करेगा सबसे पहले,उससे ज्यादा हजारों साल का इतिहास और हमारी अमन चैन भाईचारा और सभ्यता का सत्यानाश तय है।
अर्थव्यवस्था तो बची नहीं है।
उत्पादन प्रणाली खत्म हैं तो उत्पादकों के आपसी भाईचारे से फिजां फिर अमनचैन की होने की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है।आप भले ही कुत्तों की तरह पालतू बनकर खुशहाल जिंदगी जी लें।
लंदन. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इस्लामिक स्टेट के बढ़ते असर के लिए इराक वॉर को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने पहली बार इराक वॉर को लेकर माफी भी मांगी है। ब्लेयर ने कहा कि सद्दाम को सत्ता से उखाड़ फेंकने वालों में शामिल देशों को इराक के मौजूद हालात के लिए कुछ जिम्मेदारी तो लेनी होगी, क्योंकि इसी संघर्ष के चलते आईएसआईएस वजूद में आया। बता दें, केमिकल वीपन के शक में 2003 में अमेरिका और ब्रिटेन समेत गठबंधन सेनाओं ने इराक पर हमला किया था।
'सीरिया जैसे होते हालात'
हालांकि, ब्लेयर ने इराक पर हमले का बचाव करते हुए ये भी कहा कि सद्दाम को अगर सत्ता से बेदखल नहीं किया गया होता तो वहां सीरिया जैसे हालात होते। टोनी ब्लेयर का ये बयान सर जॉन चिलकोट के उस एलान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने युद्ध को लेकर अपनी जांच के पूरी होने के टाइमटेबल का जिक्र किया है।
क्या कहा इंटरव्यू में?
अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन को दिए गए एक इंटरव्यू में टोनी ने कहा कि वे जंग से जुड़े कई मसलों के लिए माफी मांगते हैं। इंटरव्यू के दौरान रिपोर्टर फरीद जकारिया ने सवाल किया था कि क्या इराक वॉर एक गलती थी। इस पर ब्लेयर ने कहा, ''मैं उस बात के लिए माफी मांगता हूं कि इंटेलिजेंस के जरिए गलत जानकारी मिली थी। साथ ही, प्लानिंग को लेकर भी गलतियां हुई थीं।'' उन्होंने कहा,'' निश्चित तौर पर हमसे वहां के हालात को समझने में गलती हुई कि इस शासन को उखाड़ फेंकने के बाद कैसे हालात बनेंगे।''
इराक वॉर में हुआ नुकसान
इराक वॉर में अमेरिकी सेना के साथ 45,000 ब्रिटिश जवान शामिल थे। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस संघर्ष में 10 हजार इराकी नागरकि, 4000 से ज्यादा अमेरिकी जवान और 179 ब्रिटिश सर्विस के सदस्य मारे गए थे।
2002 में पड़ी ISIS की नींव
तौहिद वा अल-जिहाद के तौर पर जॉर्डन के अबु मुसाद अल-जरकावी ने 2002 में ही आईएसआईएस की नींव रख दी थी। एक साल बाद 2003 में इराक में अमेरिकी गठबंधन सेना के हमले के बाद जरकावी ने ओसामा बिन लादेन के प्रति वफादारी की शपथ ली और अलकायदा से जुड़ गया। 2006 में जरकावी की मौत के बाद अलकायदा ने इसे सहयोगी संगठन के तौर पर इस्लामिक स्टेट इन इराक (आईएसआई) का नाम दिया। 2013 में आईएसआईएस के मौजूदा चीफ अबु बक्र अल बगदादी ने इस आतंकी संगठन में इराक के साथ सीरिया को भी शामिल कर लिया और इसका नाम आईएसआईएस हो गया।
बुश ने भी मानी थी गलती
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने भी अपना कार्यकाल खत्म होने के दौरान इस बात को माना था कि इराक वॉर उनके कार्यकाल की बड़ी गलतियों में से एक है। बुश ने अपनी किताब में भी इस बात जिक्र किया है। किताब में दिए अंश के मुताबिक, जब उन्हें इस बात का पता चला कि इराक में कोई केमिकल वीपन नहीं है तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वो एक डूबते जहाज के कैप्टन हैं।
হনুর লন্কায় লক্ষ্মীরে পুজিবে ক্যামনে,কি আগুন কি আগুন!দ্যাকো,হাটে বাজারে আগুন নেগেচে!
সুন্দরবন ধ্বংস ,ভাবিও কি পরিণাম!হাতে গরম প্রমাণ অশণিসংকেতের! জাগো!হিমালয় রক্তাক্ত,নেপাল কি উত্তরকাশী কতদুরে! দিল্লী কাঁপিতেছে থর থর বারম্বার!কেয়ামত!
ঠাকুর গ্যাচে জলে,দ্যাশে আগুন নেগেচে!
ব্যবসা বাণিজ্য লাটে,ব্যাটা বিশ্বকর্মাকে চ্যাঙায়ে বিদায দিনু!জীবন জীবিকা শ্যাষ,উন্নযন আছে,চাষবাস শ্যাষ ,শিল্প লবডন্কা!
ওঠ ছ্যামড়ি ওঠ,ভিন দ্যাশে যাইবার লগে ট্রেইন ধরার লাগে!
জেনারেল সাহেভ গলত সলত কিচু কহিবেন,তাহা কি হইতে পারে- নির্লজ্জ যাহারা কুকুরেরও অধম,উচ্ছিষ্টে যাহাদের জীবন যাপন তাহারা কোন কালে ডাক ছাড়িয়া বাঘ ভাল্লুকের মত প্রতিবাদ করিবে,ইহা স্বপ্নেও ভাবিও না!বক্তব্যের সত্যতা নিয়া সন্দেহ নাই!
মদ কি কম পড়িয়াচে পাড়ায় পাড়ায় দেশি মদের দোকান সহ বার রেস্তরাঁ ঠেক সত্বেও,ভ্যাভ্যা কিরা কাঁদিযা কাটিয়া আত্মজীবনী তে মগ্ন হইবার আগে আত্মঘাতী জাতি ভাবিও!
পলাশ বিশ্বাস
সুন্দরবন ধ্বংস ,ভাবিও কি পরিণাম!হাতে গরম প্রমাণ অশণিসংকেতের!জাগো!
হিমালয় রক্তাক্ত,নেপাল কি উত্তরকাশী কতদুরে!দিল্লী কাঁপিতেছে থর থর বারম্বার!
সত্যি বড় দুর্গার দর্শন হইল বটেেকখান!
শ্যাষ বেলায় ধুনুচি নাচে কোমর হেলিয়ে দুলিয়ে ঠাকুর যকন জলে যাইব কি যাইব না,যকন মা জননীরা,ধর্ষণ আতন্কিত বুনরা সিন্দুর ক্যালার জোগাড় করত্যাছে কি রকেট ক্যাপসুল নিবেদিত শারদোত্সবে অবশেষে বহু বিজ্ঞাপিতসত্যি বড় দুর্গার দর্শন লাগিয়া ছাড়পত্র মিলিল এবং পুজা শ্যাষে ভিন দ্যাশে রুজি রুটির খৌঁজে শ্যালদা কিংবা কোলকাতা কিংবা হাওড়া অথবা শালিমার হইতে ট্রেইন ধরিবার হাগুতাড়া সত্বেও কি হুজুগ কি হুজুগ!দুগ্গা ঠকরুন মারিতেই জানেন,বাঁচাইব না কোনো হালায়!
মহিষাসুর মর্দিনী বাপের বাড়ি ছাইড়্যা কৈলাসে চলিলেন বা থাকিলেন সত্যি বড় দুর্গার মত ছোড দুর্গাদের বিসর্জনের পরও,কিন্তু মহিষাসুর বধ চলত্যাছে রম রমারম!মর মর মর!জাতের নামে বজ্জাতি কর আর মর
রমণ ও ধর্ষণে মম করতাছে জাপানী তেল সর্বত্র!
দ্যাকতে লাগে কি কোন ব্যাটা বেটি কতখান কাট ভাইঙ্গা শ্যাষ করচে!
মহুষাসুরের পুজো হয় দুর্গার সাথে সাথে,কিন্তু যে গুচ্ছের অসুর নিধন হইতাছে বাজারে ঘাটে,জীবন জীবিকায়,সে ব্যাটাদের পোঁদে লাথি ছাড়া কিচ্ছুই জোটে বিল্যা মনে ধরতেছি না কিচুই বটেক!
কোন একখান জেনারেল সাহেব কহিলেন কুকুর মরিল কি মারিল,কি বা আসে যায়!কুকুরেরও অধম যাহারা,গোলাম প্রভুদের,তাহাদের কাহিনী কহতব্য নয়!
জেনারেল সাহেভ গলত সলত কিচু কহিবেন,তাহা কি হইতে পারে- নির্লজ্জ যাহারা কুকুরেরও অধম,উচ্ছিষ্টে যাহাদের জীবন যাপন তাহারা কোন কালে ডাক ছাড়িয়া বাঘ ভাল্লুকের মত প্রতিবাদ করিবে,ইহা স্বপ্নেও ভাবিও না!বক্তব্যের সত্যতা নিয়া সন্দেহ নাই!
মদ কি কম পড়িয়াচে পাড়ায় পাড়ায় দেশি মদের দোকান সহ বার রেস্তরাঁ ঠেক সত্বেও,ভ্যাভ্যা কিরা কাঁদিযা কাটিয়া আত্মজীবনী তে মগ্ন হইবার আগে আত্মঘাতী জাতি ভাবিও!
এমনডা হইলে,অসুর বধের ল্যাঠা ববে ই চুকে বুকে যাইত!
হনুর লন্কায় লক্ষ্মীরে পুজিবে ক্যামনে,কি আগুন কি আগুন!
দ্যাকো,হাটে বাজারে আগুন নেগেচে!
ঠাকুর গ্যাচে জলে,দ্যাশে আগুন নেগেচে!
ব্যবসা বাণিজ্য লাটে,ব্যাটা বিশ্বকর্মাকে চ্যাঙায়ে বিদায দিনু!
জীবন জীবিকা শ্যাষ,উন্নযন আছে,চাষবাস শ্যাষ ,শিল্প লবডন্কা!
ওঠ ছ্যামড়ি ওঠ,ভিন দ্যাশে যাইবাল লগে ট্রেইন ধরার লাগে!
সংবাদে প্রকাশঃ
ধনদেবীর পুজোয় আকাশছোঁয়া বাজার দর,চব্বিশ ঘন্টা উবাচঃ
আজ কোজাগরী লক্ষ্মী পুজো। ধনদেবীর আরাধনায় মেতেছেন রাজ্যবাসী। বারোয়ারি প্যান্ডেলের পাশাপাশি বাড়িতে বাড়িতেও চলছে লক্ষ্মী আরাধনার প্রস্তুতি। তবে ফুল, ফল থেকে শুরু করে সবজি। সবকিছুরই দাম চড়া হওয়ায় বাজারে গিয়ে হাত পুড়ছে মধ্যবিত্ত বাঙালির।
সবে দুর্গাপুজো গিয়েছে। খরচও হয়েছে বেশ। এই পরিস্থিতিতে মাসের শেষে লক্ষ্মীপুজো, মাথা ব্যথা বাড়িয়েছে মধ্যবিত্তদের। অগ্নিমূল্য বাজারদর৷
এবার এক নজরে দেখে নিন বাজার দরগুলি............
আপেল ১০০-১২০টাকা কিলো, মুসাম্বি ১০-১২ টাকা জোড়া, কলা ৮৫ টাকা প্রতি ডজন, পানিফল ৫০টাকা কিলো, পেয়ারা ৬০-৮০ টাকা কিলো এবং ৩০-৪০ টাকা দরে বিক্রি হচ্ছে নারকেল।
ফলের বাজার দরের পাশাপাশি আকাশছোঁয়া দাম ডালের। মুগ ডাল ১৩০-১৫০ টাকা, মুসুর ডাল ১২০টাকা, বিউলির ডাল ১৫০টাকা এবং ১৮০ টাকা কেজি দরে বিকোচ্ছে অরহর ডাল।
বাজার আগুন হওয়ার ফলে রীতিমত নাজেহাল বাঙালি। কিন্তু ধনদেবীকে তুষ্ট করার জন্য আপাতত দরের দিকে মাথা না ঘামিয়ে অবাধে চলছে কেনা বেচা।
চব্বিশ ঘন্টা উবাচঃ
পাগলা মায়ের আবার হিন্দু মুসলিম কি?
আক্রান্ত ধুলিয়ান পুরসভার প্রাক্তন চেয়ারম্যান সফর আলি
গ্রামের বাড়ির পুজোয় মিরিটিতে রাষ্ট্রপতি প্রণব মুখোপাধ্যায়
বোধনের দিনেই বিসর্জনের বাজনা বাজল নদীয়ায়
ষষ্ঠীতেই বিসর্জন হয়ে গেল দেবী দুর্গার
মালদার শুধু আমই খাবেন? সেরা পুজোগুলো দেখবেন না?
স্নান করতে গিয়ে সমুদ্রে তলিয়ে গেল খড়গপুর আইআইটির দুই ছাত্র
চিকিৎসায় গাফিলতির অভিযোগে ফের আক্রান্ত চিকিৎসক
আসানসোলে নতুন মেয়রের শপথে গড়হাজির প্রাক্তন মেয়র
দমদমে পেট্রোল পাম্পের কাছে ট্রান্সফর্মার ফেটে ভয়াবহ আগুন, দমকলের স্পেশাল ফায়ার টেন্ডারের প্রচেষ্টায় আগুন নিভল
ডাইনি অপবাদে হাত-পা বেঁধে আদিবাসী মহিলাকে পিটিয়ে মারার ঘটনায় শিহরিত গোটা বাংলা
হিন্দিভাষী জিতেন্দ্র তিওয়ারিকে আসানসোলের মেয়র করে বিধানসভায় ভালো ফলের আশায় তৃণমূল
মালদা এখন 'কারগিল', রাতভর গুলিতে মালদার কালিয়াচক আতঙ্কে দিন গুনছে, নিহত ১
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