Abhishek Srivastava
भक्तगण गाय को बचाने के चक्कर में मनुष्य की हत्या को जायज ठहराने के लिए वेदों का हवाला देकर बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। या तो उन्होंने वेदों को पढ़ा नहीं है, या फिर यह लोगों को भड़काने की सेलेक्टिव राजनीति है। अगर कायदे से वेदों को पढ कर उससे उद्धृत किया जाने लगा, तो हिंदू धर्म की मिट्टी पलीद हो जाएगी और सारी नैतिकता पानी भरने चली जाएगी। आइए, ऋग्वेद के दसवें मंडल से एक उदाहरण लेते हैं और देखते हैं कि भक्तगण इसे कितना पचा पाते हैं।
ऋग्वेद के दसवें मंडल में यम-यमी का एक संवाद है। इसका दसवां सर्वप्रसिद्ध सूक्त कुछ यों है: ''ओचित् सखायं सख्या ववृत्यां, पितु र्नपानं आदधीत्''। यमी अपने सगे भाई से कह रही है कि तुम मुझसे पति-भाव से व्यवहार करो और अपने पिता का पौत्र मेरे द्वारा उत्पन्न करो। यमी का यह कथन यम को पसंद नहीं आया, तो यमी ने आग्रह करते हुए कहा- '' जायेत पत्ये तन्वं रिरिच्याम् विचिद गृहेव रथ्येव चक्रा''। यमी ने कहा कि भाई के रहते हुए बहन अनाथ रहे, तो ऐसा भाई किस काम का? (किं भ्रातासद्यदानार्थ भवाति। किमु स्वसा यन्निर्ऋति र्नि गच्छात्।।) यहां भ्राता लक्ष्य है। भ्रातृ और भर्तृ, ये दोनों शब्द भृ, भरना, पालन करना- मूल धातु से निकले हैं। इनमें भ्रातृ रूप भर्तृ रूप से पुराना है। बहन का, यानी भगिनि का, भाई पति-भाव से भरण-पोषण करते थे। स्वसृ शब्द का भी यही इतिहास है- स्वान सरति अनुगच्छति इति स्वसा। स्वयं के कुल में उत्पन्न भाइयों का जो अनुसरण करती है, वह स्वसृ है।
भ्रातृ से वह शरीर-संबंध रखा करती थी और इस संबंध की वजह से वह सनाथ यानी सुरक्षित हुआ करती थी। यही मूल इतिहास है। अत्यन्त प्राचीन आर्षकाल में सहोदर बहनों और भाइयों के बीच शरीर-संबंध हुआ करते थे, इसकी पुष्टि ऋग्वेद से होती है। वेदों में ऐसी ही पुष्टि पिता और पुत्री के बीच संबंध की भी है। ज्यादा जानना हो तो विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े को पढ़ें। भक्तों, यहां किसी के माथे पर 'सी' नहीं लिखा है। हफ्ते भर में सब वेद-पुराण पढ़कर तुम लोगों को लाइन पर लाया जा सकता है। वो तो अपनी दिलचस्पी इन चीजों में नहीं है, इतना गनीमत समझो। वेदों से बाहर आओ वरना रायता फैलाने वालों की कमी नहीं है।
We,the apolitcal activists of creativity from 150 nations stand United Rock solid to sustain Humanity and nature!
दुनियाभर के लेखकों,कलाकारों,कवियों को मेहनतकश जनता का लाल सलाम।
बहुजन समाज का नील सलाम!
বাংলার সুশীল সমাজ 1857 সালে মহাবিদ্রোহে সুশীল বালক ছিল!
তাঁরা চুয়াড় বিদ্রোহ,সন্যাসী বিদ্রোহ,নীল বিদ্রোহ,সাঁওতাল মুন্ডা ভীল বিদ্রোহের সমর্থনে দাঁড়াননি!তাঁরা চিরকালই শাসক শ্রেণীর অন্তর্ভুক্ত!
আজও তাঁরা নিরুত্তাপ!প্রতিবাদ করবেন কিন্তু সম্মান পুরস্কার ফেরত নৈব নৈব চ!শুধু এই শারদে মন্দাক্রান্তা বাংলার মুখ!ভালোবাসার মুখ!
সারা বিশ্বের শিল্প সাহিত্য সংস্কৃতির দায়বদ্ধতার মুখ!ভালোবাসা!
हमें जनजागरण का इंतजार है।चूंकि जनादेश हिटलर को भी मिला था और कोई जनादेश अंतिम निर्णायक नहीं होता।मनुष्यता हर हाल में जीतती है और फासिज्म हर हाल में हारता है।भारत में भी हारने लगा है फासिज्म क्योंकि मनुष्यता की रीढ़ सीधी है फिर।
Palash Biswas
Thanks Outlook team to stand with us.Outlook focused on Creativity in protest in its current issue!
हमें मूक वधिर जनगण,भेढ़ धंसान में तब्दील लोकतंत्र के पंजाब के अग्निपाखी की तरह जागने का इंतजार है।विश्वभर में मनुष्यता फासीवाद के खिलाफ लामबंद हो रही है कायनात की रहमतें बरकतें नियामतें बहाल रखने के लिए।
हमें जनजागरण का इंतजार है।चूंकि जनादेश हिटलर को भी मिला था और कोई जनादेश अंतिम निर्णायक नहीं होता।
मनुष्यता हर हाल में जीतती है और फासिज्म हर हाल में हारता है।
भारत में भी हारने लगा है फासिज्म क्योंकि मनुष्यता की रीढ़ सीधी है फिर।
हमें अपने दोस्त दुश्मन उदय प्रकाश,हिंदी के कवि की इस पहल पर गर्व है।1976 से जिस राजा का बाजा बजा के कवि मनमोहन को जानता हूं,हमारे आदरणीय काशीनाथ सिंह,हमारे बड़े भाई डूब में तब्दील टिहरी के कवि मंगलेश डबराल,जेएनयू से मित्र प्रोफेसर चमनलाल,मध्यप्रदेश के कवि राजेश जोशी,करानाटक की वह सत्रह साल की लड़की,कोलकाता पुस्तक मेले में 2003 में मिली मंदाक्रांता सेन से लेकर कृष्णा सोबती,मृदुला गर्व सभीने पुरस्कार और सम्मान लौटा दिये हैं।यह अभूतपूर्व है।
नवारुण दा और वीरेन दा होते तो वे भी लौटा देते।
हमें उम्मीद है कि हमारी महाश्वेता दी,गिरिराज किशोर, गिरीश कर्णाड,जावेद अख्तर से लेकर अमिताभ बच्चन और रजनीकांत भी औऱ आखिरकार बंगाल के संस्कृतिकर्मी भी हर हाल में मनुष्यता और प्रकृति के पक्ष में मेहनकशों और बहुजन समाज,छोटे मध्यम कारोबारियों के हक में,भारतीय उद्योग धंधे के हक में फासिज्म के राजकाज के खिलाफ मूक वधिर भारतीय जनता की आवाज बनकर हमारे कारवां में शामिल होंगे।
साझा चूल्हा जो अब भी जल रहा है,जैसा सविता बाबू का कहना है कि साझा चूल्हा सरहदों के आर पार सुलग रहा है,उसे अब घर घर में जलाना है।
मृत मनुष्यता,समाज और सभ्यता की देह में प्राण फूंकना हमारा एजंडा है नरसंहार संस्कृति और नस्ली रंगभेद के इस फासीवाद के खिलाफ,जो भारत में सात सौ साल के इस्लामी शासन और दो सौ साल के अंग्रेजी हुकूमत के बावजूद जीवित सनातन हिंदू धर्म के लोकतंत्र,उसकी आत्मा और उसके मूल्यबोध, नैतिकता, आदर्श और स्थाईभाव विश्वबंधुत्व की हत्या कर रहा है।
संविधान की हत्या कर रहा है।
देश को मृत्यु उपत्यका,गैस चैंबर बना रहा है।
हमारा एजंडा मनुष्यता और कायनात का एजंडा है उनके आर्थिक सुधारों के वधस्थल के विरुद्ध,उनकी मजहबी सियासत के विरुद्ध, उनकी बेइंतहा नफरत के खिलाफ हम मुहब्बत के लड़ाके हैं।
हम खेतों,खलिहानों,कारखानों को आवाज लगा रहे हैं।
हमने हस्तक्षेप को हर बोली हर भाषा में जनसुनवाई का मंच बनाया है।हम फतवों के खिलाफ हैं।
हम नरसंहार संस्कृति और बलात्कारसंस्कृति के खिलाफ देश दुनिया जोड़ने की मुहिम चला रहे हैं।
जिसे घर फूंकना है आपणा इस दुनिया को हमारे बच्चों की खातिर बेहतर बनाने के लिए,वे हमारे कारंवा में शामिल हो।
हस्तक्षेप पर आपके हस्तक्षेप का इंतजार है।
COVER STORY
In the end, there is The Word.... It falls upon writers to float an ark of reason in the flood...
WRITERS' PROTEST The Pensmiths Inflict The Deepest Cuts The writers' stand is forcing the government to sit up and take notice, even if it acts nonchalant BULA DEVI | |
WRITERS' PROTEST Bring Out The Brushes: Tug Of War Over A Tin Of Tar Mumbai—under siege from the Shiv Sena's puerile jingoism—is no longer a cosmopolitan safe haven.... PRARTHNA GAHILOTE, PRACHI PINGLAY-PLUMBER | |
WRITERS' PROTEST When India's Like A Closed Book Uday Prakash, the first writer to forsake his Akademi award, rues the shrunk world he inhabits PRAGYA SINGH | |
WRITERS' PROTEST 'My Throat, Unable To Speak, Will Die' Across the world, down the ages, regimes of all colours have throttled dissenting voices UTTAM SENGUPTA | |
INTERVIEW "I Think Writers Have Woken Up To The Serious Dangers To The Polity" Kiran Nagarkar, one of the most significant writers of postcolonial India, on the current atmosphere... PRACHI PINGLAY-PLUMBER INTERVIEWS KIRAN NAGARKAR |
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