सुनंदा पर टिप्पणी कारपोरेट और राजनीति के गठजोड़ से नजर घूमाने का खेल
पलाश विश्वास
शशि थरूर को मंत्रिमंडल में फेरबदल के तहत दुबारा मंत्री बनाये जाने या भ्रष्ट मंत्रियों को प्रोमोशन देने का मामला सुनंदा सुनामी में खत्म हो गया।जिसतरह पेट्रोलियम मंत्रालय से जयपाल रेड्डी को हटा दिया गया और इसे रिलायंस के के जी बेसिन मामले के अलावा देश में तेल व प्राकृतिक गैस, उससे बढ़कर प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की अर्थ व्यवस्था से जोड़कर देखा जा रहा है, इस मुद्दे को भाजपाई हिंदुत्ववादी राजनीति ने सिरे से खारिज कर दिया। गौरतलब है कि आईपीएल इकानामी या कारपोरेट राज के खिलाफ जारी मुहिम के संदर्भ में संघ परिवार की ओर से प्रस्तुत और अमेरिका ब्रिटेन इजराइल अनुमोदित प्रधानमंत्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी ने सुनंदा पर एक स्त्रीविरोधी निहायत हल्की टिप्पणी करके बहस की दिशा ही बदल दी। कांग्रेस को इस मुद्दे पर अपना बचाव करने के बदले मोदी के चरित्र पर हमला करने का मौका मिला है। रिलायंस के साध संग परिवार और भाजपा के मधुर रिश्तों और निवर्तमान राजग सरकार की ओर से रिलायंस के लिए वरदहस्त को ध्यान में रखें तो दरअसल नरेंद्र मोदी ने यह हमला न शशि थरूर पर किया है और न ही सुनंदा पर। हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद का स्त्री विरोधी दर्शन को समझें तो मोदी के इस बयान पर इतना तिलमिलाने की जरुरत ही नहीं है।दरअसल कारपोरेट इंडिया से राजनीति के रिश्ते पर टिकी जनता की नजर को घूमाने के लिए ही जानबूझकर ऐसी शरारत की गयी है।
मोदी के अपने बचाव में दिये गये बयान और उनके बचाव में भाजपाइयों के बयान से मनुस्मृति के प्रावधान के तहत शूद्र स्त्री को महिंमामंडित करके पितृसत्तात्मक राष्ट्रवाद के परचम लहराने का प्रयास है।मनुष्य सभ्य हुआ सिर्फ इसलिए कि वह अपनी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए उत्पादन करने लगा। उत्पादन प्रणाली की धूरी सामंती व्यवस्था लागू होने से पहले तक परिवार था और इस परिवार की नियंत्रक स्त्री ही थी ।राष्ट्र और राष्ट्रवाद की उत्पत्ति से पहले निजी संपत्ति की अवधारणा आते ही स्त्री का दमन का सिलसिला शुरू हो गया।स्त्री की दासता की नींव पर राष्ट्र और राष्ट्रवाद की पितृसत्तात्मक व्यवस्था बनी। हिंदुत्व की विचारधारा में स्त्री को देवी का स्थान दिये जाने की बात जरूर कही जाती है, लेकिन हिंदुत्व के किसी भी कर्मकांड में स्त्री का कोई अधिकार नहीं होता। वह शूद्र है, दासी है और पुरूष के लिए संतान उत्पादन की मशीन।धर्म राष्ट्र्वाद और सांप्रदायिक राजनीति में देश, काल , पात्र सीमाओं के आर पार स्त्री की असली हैसियत यही है। मोदी और भाजपा ने कारपोरेट हितों के बचाव के लिए सुनंदा पर टिप्पणी करके दरअसल अपनी विचारधारा की ही अभिव्यक्ति दी है। देश की आधी आबादी जो खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था में गृहस्थी चलाने में असमर्थ है और महिमामंडित अपने वर्चुअल अवस्थान के मोह में जनविरोदी कांग्रेस के बदले संघ परिवार की राजनीति को विकल्प मानने के लिए विवश है, मोदी की यह टिप्पणी खुली चेतावनी है।
मोदी अपने हिदंदुत्व के दम पर रुस्तम बने हुए है, यह धारणा गलत है। हिंदुत्व के कारण, सीधे तौर पर गुजरात नरसंहार की वजह से तो वह पश्चिमी देशों के लिए अठूत बन गये थे। अमेरिका उन्हें वीसा देने से इंकार कर रहा था तो ब्रिटेन गुजरात से वाणिज्यिक संबंध बनाने के लिए कल तक इंकार करता रहा है। पर कारपोरेट हित में बहिष्कृत समुदायों को हिंदुत्व की पैदल सेना बनाकर जिसतरह उन्होंने कारपोरेट विदेशी पूंजी के जरिये जल जंगल जमीन और आजीविका पर डकैती डालते हुए गुजरात का कायाकल्प कर दिया, कारपोरेट साम्राज्यवाद के वे महानायक बनकर उभरे हैं।
कारपोरेट इंडिया और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री भी वही हैं। विदेशी निवेशकों की पहली पसंद गुजरात कोई अकारण नहीं है। संघ परिवार की राजनीति के तहत तमाम संगठनों को मोदी के प्रधानमंत्रित्व के नजरिये से जोड़ा तोड़ जा रहा है। जाहिर है कि सुनंदा पर उनकी टिप्पणी कोई आकस्मिक नहीं है।
सुनंदा पुष्कर ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को निंदनीय एवं महिलाओं का अपमान करने वाला बताया। कैबिनेट में फेरबदल को लेकर नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले हिमाचल में एक रैली के दौरान भीड़ से व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा था कि आपने कभी देखी है 50 करोड़ रुपये की गर्लफ्रेंड!दरअसल मोदी का इशारा शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर थरूर की तरफ था। इसके बाद शशि थरूर ने इसी टिप्पणी के जवाब में कहा था कि उनकी पत्नी अनमोल है और ये बात मोदी नहीं समझ पायेंगे क्योंकि इसे समझने के लिए पहले प्यार करना पड़ता है।एक निजी न्यूज चैनल को दिए एक साक्षात्कार में सुनंदा ने बुधवार को कहा कि वह मोदी की टिप्पणी से बेहद निराश हैं और उन्हें आश्चर्य है कि कोई इतना नीचे कैसे गिर सकता है? सुनंदा पर 2009 में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की कोच्चि टीम से कथित तौर पर जुड़ी थी।मोदी ने पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए थरूर को दोबारा केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने पर टिप्पणी की। थरूर को आईपीएल विवाद के चलते 2010 में विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। सुनंदा ने कहा कि वह इस बात को सुनकर पूरी तरह से भयभीत हैं कि महात्मा गांधी की भूमि से संबंधित यह व्यक्ति ऐसे बयान कैसे दे सकता है?यह पूछे जाने पर कि क्या वह मोदी से माफी मांगने की मांग करेंगी तो उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति ने 2002 में निर्दोष गुजरातियों की मौत पर अपने लोगों से माफी नहीं मांगी उससे मैं कैसे माफी मांगने की उम्मीद कर सकती हूं।उन्होंने 2002 के गोधरा दंगों के लिए भी खेद नहीं जताया है।
इस पर तुर्रा यह कि भाजपा ने शशि थरूर को 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड रखने वाला मंत्री बताने के लिए मोदी का बचाव किया. थरूर को लव मंत्रालय देने की सिफारिश की।मोदी की इस टिप्पणी पर बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने थरूर को लव गुरू बतलाया है। नक़वी का कहना है कि अगर देश में लव मंत्रालय बने तो थरूर को ज़रूर उस मंत्रालय में मंत्रीपद दिया जाना चाहिए।उधर गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह और राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने ट्विटर पर इस तरह के बयान की आलोचना की है।बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेडीयू के नेता शिवानंद तिवारी ने भी मोदी की टिप्पणी की आलोचना की है। तिवारी का कहना है कि मोदी को दिल्ली पहुंचने की जल्दी है और इसके लिए वह उतावले हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोदी को मालूम होना चाहिए कि दिल्ली अभी दूर है।तिवारी ने बुधवार 31 अक्टूबर को कहा कि मोदी का बयान महिलाओं का अपमान करने वाला है। उन्होंने कहा कि औरत कोई वस्तु नहीं कि उसकी कीमत लगाई जाए. उन्होंने कहा कि मोदी को बलने से पहले कुछ सोचना चाहिए था।
मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक मोदी ने एक बयान में यह सफाई दी है कि उनकी मंशा सुनंदा को अपमानित करने की नहीं थी।बताया जा रहा है कि मोदी ने अपनी सफाई में कहा है कि हिंदू धर्म में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है और एक हिंदू होने के नाते वह कभी भी किसी भारतीय नारी का अपमान नहीं कर सकते।
मोदी ने कहा, ''भाभी जी, मुझे माफ कर दीजिए। आपको 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड बताने के पीछे मेरी मंशा गलत नहीं थी। हिंदूधर्म और समाज हमेशा से नारी को लक्ष्मी के रूप में देखता आया है। मैंने भी आपको लक्ष्मी के रूप में ही देखा था।''
जाहिर है कि केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कमेंट को लेकर उठा विवाद अब भी ठंडा नहीं पड़ा है। अब कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने मोदी पर सीधा निशाना साधा है। दिग्विजय ने मोदी से पूछा है कि आखिर वो बताएं की उनकी पत्नी यशोदा कहां है। उन्होंने पूछा कि क्या मोदी ने तलाक लिया है।उन्होंने ये भी कहा कि सार्वजनिक तौर पर वो अपनी वैवाहिक स्थिति के बारे में खुलकर क्यों नहीं बताते। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि मोदी को सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए। इससे पहले खुद सुनंदा पुष्कर ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को निंदनीय एवं महिलाओं का अपमान करने वाला बताया। सुनंदा ने कहा कि वह मोदी की टिप्पणी से बेहद निराश हैं और उन्हें आश्चर्य है कि कोई इतना नीचे कैसे गिर सकता है?उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी अपशब्दों का प्रयोग करते हैं और यहीं बात उन्होंने शशि थरुर की पत्नी सुनंदा पुष्कर के लिए भी की है। उन्होंने कहा कि सुनंदा पुष्कर पर दिया गया मोदी का बयान महिलाओं का अपमान है।
भाषा को लेकर मार्क्स की धारणा है कि भाषा अधिरचना का हिस्सा होती है। उसमें परिवर्तन तब होता है जब आधार में परिवर्तन होता है। आधार की तुलना में यह परिवर्तन धीमी गति से होता है। भाषा में वर्ग का सवाल तब महत्वपूर्ण हुआ जब एंगेल्स ने भाषा के सामाजिक आधार को खोजने की बात की। उसने कहा कि परिवार में पत्नी सर्वहारा होती है और पति पूँजीपति। संसार का सबसे पहला वर्गविभाजन स्त्री- पुरुष के बीच होता है। एंगेल्स ने लिखा, "आधुनिक वैयक्तिक परिवार नारी की खुली या छिपी हुई घरेलू दासता पर आधारित है। और आधुनिक समाज वह समवाय है जो वैयक्तिक परिवारों के अणुओं से मिलकर बना है। …….परिवार में पति बुर्जुआ होता है और पत्नी सर्वहारा की स्थिति में होती है।"
एंगेल्स ने सामाजिक विकास की व्याख्या करते हुए इस बात की तरफ ध्यान खींचा कि सामाजिक व्यवस्था मातृसत्ता से पितृसत्ता की तरफ गई। यह इतिहास की एक बड़ी घटना है। इतना बड़ा परिवर्तन सहज ही नहीं घटा होगा। लेकिन यह बिना खून-खराबे के घट गया। इसका कारण संपत्ति का एकत्रीकरण था। "जैसे-जैसे संपत्ति बढ़ती गई, वैसे-वैसे इसके कारण एक ओर तो परिवार की तुलना में पुरुष का दर्जा ज्यादा महत्वपूर्ण होता गया, और दूसरी ओर पुरुष के मन में यह इच्छा जोर पकड़ती गई कि अपनी पहले से मजबूत स्थिति का फायदा उठाकर उत्तराधिकार की पुरानी प्रथा को उलट दिया जाए, ताकि उसके बच्चे हक़दार हो सकें। परंतु जब तक मातृसत्ता के अनुसार वंश चल रहा था, तब तक ऐसा करना असंभव था। इसके लिए आवश्यक था कि मातृसत्ता को उलट दिया जाए, और ऐसा किया भी गया। ……यह पूर्णत: प्रागैतिहासिक काल की बात है। यह क्रांति सभ्य जनगण में कब और कैसे हुई इसके बारे में हम कुछ नहीं जानते पर यह क्रांति वास्तव में हुई थी।"
"मातृसत्ता का विनाश नारी जाति की विश्व ऐतिहासिक महत्व की पराजय थी। अब घर के अंदर भी पुरूष ने अपना आधिपत्य जमा लिया। नारी पदच्युत कर दी गई। वह जकड़ दी गई। वह पुरुष की वासना की दासी, संतान उत्पन्न करने का यंत्र बनकर रह गई।"
समाज में स्त्री की मातहत अवस्था और उसके ऐतिहासिक कारणों पर विचार करते हुए मार्क्स ने लिखा कि "आधुनिक परिवार में न केवल दासप्रथा बल्कि भूदास-प्रथा भी बीज-रूप में निहित है, क्योंकि परिवार का संबंध शुरु से ही खेती के काम-धंधे से रहा है। लघु रूप में इसमें वे तमाम विरोध मौजूद रहते हैं जो आगे चलकर समाज में और उसके राज्य में बड़े व्यापक रूप से विकसित होते है।"
मनुस्मुर्ति" में क्या कहा हैं
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यह देखिये-
१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.
२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५
३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.
४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९
५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.
६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .
७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .
८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .
९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४
१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.
११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.
१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.
१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.
१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
(१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.
(२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.
जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?
(१) वर्णानुसार करने के कार्यः -
- महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -
- पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७
- प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९
- पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.
- द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९१.
(२) प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-
- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
- अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.
(३) आचमन के लिए लेनेवाला जल:-
- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
- अध्यायः२:श्लोक:६२.
(४) व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
- अध्यायः२:श्लोक:१२७.
(५) वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
- ब्राह्मण को विद्या से.
- क्षत्रिय को बल से.
- वैश्य को धन से.
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
- अध्यायः२:श्लोक:१५५.
(६) विवाह के लिए कन्या का चयन:-
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.
(७) अतिथि विषयक:-
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
- वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...
- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...
(८) पके हुए अन्न का स्वरुप:-
- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(अध्यायः४:श्लोक:१४)
(९) शब को कौन से द्वार से ले जाए? :-
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(अध्यायः५:श्लोक:९२)
(१०) किस के सौगंध लेने चाहिए?:-
- ब्राह्मण को सत्य के.
- क्षत्रिय वाहन के.
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(अध्यायः८:श्लोक:११३)
(११) महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-
- ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
- क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
- वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
- शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७
९)
(१२) हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं.
- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्द्गी बहोत सस्ती हैं)
- (अध्यायः११:श्लोक:१२६)...
स्त्री और मनुस्मृति
मनुस्मृति काल के समाज के बारे में जो कुछ उपलब्ध है, वह बताता है कि वह जाति और वर्ण में बंधे समाज में पुरुष से दोयम होती चली गई। कुछ श्लोक ऐसे भी हैं जिनमें उस शूद्र के साथ बराबरी पर रखते हुए, उस तरह के व्यवहार की बात कही गई है। हालांकि विद्या के मामले में जो श्लोक हैं, उन्हें कई इतिहासविद क्षेपक मानते हैं। इसके अलावा स्त्री के लिए यौन शुचिता का बोझ अलग से बांधा गया, जिसे ढोते-ढोते न जाने कितनी स्त्रियों ने अग्नी-परीक्षा दी। पत्नी का कब-कब त्याग कर पति दूसरी शादी कर सकता है, इससे संबंधित रोचक श्लोक मनुस्मृति में है-
बन्ध्याष्टमेsधिवेद्याब्दे दशमे तु मृतप्रजाः। एकदशे स्त्रीजननी सद्यस्त्वप्रियवादिनी॥
अर्थात-स्त्री संतान उत्पति में सक्षम न हो तो उसे आठवें वर्ष में, संतान होकर मर जाए तो दसवें वर्ष में तथा कन्या ही कन्या पैदा करे तो ग्यारहवें वर्ष में तथा अप्रिय बोलने वाली को तत्काल छोड़ देना चाहिए।
हालांकि पुरुष को स्त्री भी छोड़ सकती है, मनुस्मृति में इसका भी उल्लेख है। मगर इसके लिए उसे लंबा इंतजार सुझाया गया है। वह केवल पति के दूर जाने पर ही ऐसा कर सकती है। इंतजार की अवधि भी पति के उद्देश्य के मुताबिक घटी बढ़ी है। यदि पति धर्म के लिए परदेश गया है तो आठ वर्ष तक, विद्या के लिए तो छह वर्ष तक और धन के लिए गया हो तो तीन वर्ष तक उसका इंतजार करे।
यौन शुचिता का बोझ उसकाल की स्त्री पर कितना ज्यादा डाला गया, यह हमें राजा के लिए दंड विधान तय करने वाले अध्याय में देख सकते हैं। पर पुरुष से संबंध वाली स्त्री को राजा क्या दंड दे-देखें-
भर्तारं लंड्घयेद्या स्त्री स्वग्यातिगुणदर्पिता। तां श्वाभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते॥
अर्थात- जो स्त्री अपनी जाति गुण के घमंड में पति को छोड़कर व्यभिचार करे उसको स्त्री-पुरुषों की भीड़ के सामने जीवित ही कुत्तों से कटवा कर राजा मरवा डाले।
हालांकि मनुजी ने पुरुषों के लिए भी व्यभिचार की कठोर सजा कही है। उन्हें लोह के लाल तपे पलंग पर सुलाकर भस्म करने की बात कही गई है।
जाहिर है कि इस तरह के दंड अगर दिए जाते रहे होंगे, तभी समाज में झूठ और प्रपंच पनपे होंगे। यह देखा गया है कि जिस समाज में दंड व्यवस्था जितनी ज्यादा कठोर होती है, उसमें झूठ का उतना ही बोलबाला होता है। कठोर दंड से बचने के लिए झूठ बोलने में ही भलाई समझी जाती है। यही वजह है कि तालिबानी समाज कभी बेहतर नहीं हो पाते और हमेशा उनकी निन्दा की जाती रही है। इसके विपरीत उदार समाज भले ही आलोचना का ज्यादा शिकार बनते हों मगर उनमें ही सबसे तीव्र विकास होता है। जब तक भारत का समाज उदार था उसने तरक्की की। इसी तरह अब नई पीढ़ी समाज को उदार बना रही हो तो समाज तरक्की कर रहा है। दूसरी ओर तालिबानी समाज पूरे विश्व की शांति और विकास के लिए खतरा बना हुआ है।
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
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