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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, November 25, 2012

लेकिन जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता और मानवअधिकार से वंचित आमम आदमी की चड्डी और बनियान तक उतारने पर क्यों तुली है राजनीति?

लेकिन जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता और मानवअधिकार से वंचित आमम आदमी की चड्डी और बनियान तक उतारने पर क्यों तुली है राजनीति?

विदेशी पूंजी के विरोध पर विपक्ष के बिखराव से सत्ता तो निरंकुश हो ही गयी है, दूसरी ओर मुख्य विपक्ष और उग्र हिंदुत्व के​ ​ दावेदार में मारमारी की वजह से नीतियों की निरंतरता बने रहने का पूरा जुगाड़ हो गया है। वहीं, आम आदमी नाम से वैश्वीकरण समर्थक गैर राजनीतिक सिविल सोसाइटी की राजनीतिक पार्टी बन जाने के बाद कांग्रेस ने उस पर अपना पुश्तैनी हक जता दिया है। सबकुछ छिन गया, बाकी बचा लंगोट, उसीको लेकर छीना झपटी? मजे की बात है कि संसद ठप है और मुंबई में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में विपक्ष से समर्थन मांगते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था को फुटबॉल नहीं समझें जिसे राजनीतिक दलों के बीच इधर से उधर फेंका जाता रहे।गौरतलब है कि मुंबई में ही धोनी के धुरंधर फिरकी में फंस गये हैं।उन्हें हार से बचाने के लिए भी वित्तमंत्री को कुछ करना चाहिए। क्योंकि ​​शाइनिंग सेनसेक्स इंडिया का ब्रांड दूत क्रकेट से बेहतर कौन हैइसके अलावा कभी कभी चमक दिखाने वाली  अपनी क्रिकेट टीम में हमारी अटूट आस्था उग्रतम धार्मिक राष्ट्रवाद की ही अभिव्यक्ति है ,जो​ ​ खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था की मुख्य पूंजी है और विपक्ष अपने महाभारत में उसे गवांकर भारतीय क्रिकेट टीम बनता जारहा है। फुटबाल​ ​ क्रिकेट की तरह कोई अघोषित राष्ट्रीय धर्म नहीं है और न उसका कोई भारतीय भगवान है, इसलिए अर्थ व्यवस्था की तुलना क्रिकेट से करके उन्होंने जाहिरा तौर पर कोई गुनाह नहीं किया। वैसे भी जुर्म और सजा पर उसी सत्ता का एकाधिकार है, जिसका चिदंबरम प्रतिनिधित्व करते हैं।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

विदेशी पूंजी के खिलाफ राजनीतिक जिहाद और स्थगित संसद की पृष्ठभूमि में केंद्रीय वित्तमंत्री संसद से बाहर नीतिगत घोषमा करते फिर​ ​ रहे है। उनकी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी को देखते हुए अपनी ही फिरकी में फंसे धोनी उन्हें अपनी ढहती हुई बैटिंग लाइनअप में शामिल करें तो​ ​ बेहतर है। मनोरंजन और क्रिकेट के क्या सिवाय मैंगो मैन को कोई शूचना तो मिलती नहीं है। नीति निर्धारण के गुप्त मंत्र का खुलासा क्या ​​होना है, हाल यह है कि आम आदमी और उग्रतम धर्म राष्ट्रवाद पर धखलदारी की जंग ही खबर है। अर्थ व्यवस्था कोई फुटबाल नहीं है, वित्तमंत्री ने खूब फरमाया है। वह तो विदेशी पूंजी के हवाले है ही। लोकतंत्र कारपरेट हो गया तो खुले बाजार में इसके अलावा विकल्प क्या है? लेकिन जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता और मानवअधिकार से वंचित आमम आदमी की चड्डी और बनियान तक उतारने पर क्यों तुली है राजनीति?

गौरतलब है कि विदेशी पूंजी के विरोध पर विपक्ष के बिखराव से सत्ता तो निरंकुश हो ही गयी है, दूसरी ओर मुख्य विपक्ष और उग्र हिंदुत्व के​ ​ दावेदार में मारमारी की वजह से नीतियों की निरंतरता बने रहने का पूरा जुगाड़ हो गया है। वहीं, आम आदमी नाम से वैश्वीकरण समर्थक गैर राजनीतिक सिविल सोसाइटी की राजनीतिक पार्टी बन जाने के बाद कांग्रेस ने उस पर अपना पुश्तैनी हक जता दिया है। सबकुछ छिन गया, बाकी बचा लंगोट, उसीको लेकर छीना झपटी? सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल की नवगठित पार्टी के नाम पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने आज जयपुर में कहा कि कांग्रेस पहले से ही आम आदमी की पार्टी है।कल राष्ट्रीय राजधानी में अरविंद केजरीवाल द्वारा गठित गई 'आम आदमी पार्टी' के बारे में पूछे जाने पर द्विवेदी ने संवाददाताओं से कहा, ''हम पहले ही आम आदमी की पार्टी हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति को पेशे की बजाय एक व्यवस्था के तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिए। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने संकेत दिये कि कांग्रेस पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में फेरबदल किये जा सकते हैं।खुश हो जाइये, जनादेश के समायोजन बतौर केंद्र सरकार अब सब्सिडी देने के तरीके में बदलाव करने जा रही है। सरकार अगले साल एक जनवरी से डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम शुरू कर रही है। शुरू में देश के 51 जिलों और साल भर में इसे पूरे देश में लागू करने की योजना है। इससे करीब 21 करोड़ लोगों के खातों में सीधे पैसा जाने लगेगा। यूपीए की दूसरी सरकार के इस कदम को 2014 में लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। एक बार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से 1 रुपये चलता है लेकिन आम आदमी तक पहुंचता है महज 10 पैसा। अब सरकार की कोशिश है कि आम आदमी तक पूरा का पूरा रुपया पहुंचे।

खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लेकर संसद में बने गतिरोध के बीच जहां वाम और भाजपा मतविभाजन वाले नियम के तहत चर्चा कराने की मांग पर अड़े हुए हैं वहीं सरकार ने सोमवार को इस संबंध में बातचीत के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई है।संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ द्वारा बुलायी गई बैठक ऐसे समय हो रही है जब संसद के मौजूदा सत्र के दो दिन हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं।यह गतिरोध मौजूदा सत्र के पहले ही दिन 22 नवंबर से जारी है और सरकार विपक्ष की मांग पर झुकती नहीं दिखाई दे रही है।सरकार की ओर से इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि वह विपक्ष की मांग को स्वीकार करेगी या नहीं। लेकिन पार्टी के कई नेता लगातार प्रयास कर रहे हैं ताकि मतदान की स्थिति में किसी संभावित खतरे को टाला जा सके। केंद्र सरकार को रविवार को अपने महत्वपूर्ण सहयोगी द्रमुक से बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर कोई पुख्ता आश्वासन नहीं मिल पाया। दिल्ली में सोमवार को होने वाली सर्वदलीय बैठक से पहले केंद्र ने द्रमुक को इस मुद्दे पर मनाने का प्रयास किया।कांग्रेस के दूत गुलाम नबी आजाद ने आज इस मुद्दे पर द्रमुख प्रमुख एम करुणानिधि से मुलाकात की। 90 मिनट तक चली बैठक के बाद भी द्रमुक की ओर से इस बारे में कोई पुख्ता आश्वासन नहीं मिल पाया।

मजे की बात है कि संसद ठप है और मुंबई में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में विपक्ष से समर्थन मांगते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था को फुटबॉल नहीं समझें जिसे राजनीतिक दलों के बीच इधर से उधर फेंका जाता रहे।गौरतलब है कि मुंबई में ही धोनी के धुरंधर फिरकी में फंस गये हैं।उन्हें हार से बचाने के लिए भी वित्तमंत्री को कुछ करना चाहिए। क्योंकि ​​शाइनिंग सेनसेक्स इंडिया का ब्रांड दूत क्रकेट से बेहतर कौन है?इसके अलावा कभी कभी चमक दिखाने वाली  अपनी क्रिकेट टीम में हमारी अटूट आस्था उग्रतम धार्मिक राष्ट्रवाद की ही अभिव्यक्ति है ,जो​ ​ खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था की मुख्य पूंजी है और विपक्ष अपने महाभारत में उसे गवांकर भारतीय क्रिकेट टीम बनता जा रहा है। वानखेड़े स्टेडियम में इंग्लैंड के साथ जारी दूसरे टेस्ट मैच में भारतीय क्रिकेट टीम हार के कगार पर पहुंच गई। तीसरे दिन रविवार का खेल खत्म होने तक भारतीय टीम ने अपनी दूसरी पारी में 117 रनों पर सात विकेट गंवा दिए। उसे 31 रनों की बढ़त मिली है। भारत ने जिस तरह विकेट गंवाए हैं, उसे देखते हुए उसकी हार तय दिख रही है। फुटबाल​ ​ क्रिकेट की तरह कोई अघोषित राष्ट्रीय धर्म नहीं है और न उसका कोई भारतीय भगवान है, इसलिए अर्थ व्यवस्था की तुलना क्रिकेट से करके उन्होंने जाहिरा तौर पर कोई गुनाह नहीं किया। वैसे भी जुर्म और सजा पर उसी सत्ता का एकाधिकार है, जिसका चिदंबरम प्रतिनिधित्व करते हैं।एचडीएफसी बैंक के इतिहास पर एक पुस्तक का विमोचन करते हुए चिदंबरम ने कहा, 'देश का आर्थिक रुप से कल्याण दलगत राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए। अर्थव्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण है और देश का आर्थिक भविष्य भी काफी महत्वपूर्ण है। इसे राजनीतिक दलों के बीच फुटबॉल नहीं बनाया जा सकता।' वित्त मंत्री ने उम्मीद जाहिर की कि जैसे ही एक अथवा दो मुद्दों पर सहमति बनती है और उन्हें सुलझा लिया जाता है तो उसके बाद सरकार के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना संभव होगा और संसद के चालू शीतकालीन सत्र में अहम विधेयकों को आगे बढ़ाया जा सकेगा।चिदंबरम ने कहा 'मेरी विपक्ष के दो नेताओं के साथ अच्छी बैठक हुई है। हम राजनीतिक मुद्दों को सुलझा लेंगे। इस सत्र में वित्तीय विधेयकों को पारित कराने के अच्छे मौके हैं।' उल्लेखनीय है कि बीमा, पेंशन, बैंकिंग और कंपनी विधेयक जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयक संसद की मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। शीतकालीन सत्र के पहले दो दिन कोई कामकाज नहीं हो सकता। विपक्षी दलों ने बहुब्रांड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुद्दे पर संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी।

जबकि जमीनी हकीकत यह है कि  विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने इस कैलेंडर वर्ष में अब तक भारतीय शेयर बाजारों में 19 अरब डालर से अधिक का निवेश किया है जो किसी भी कैलेंडर वर्ष में दूसरा सबसे अधिक निवेश है।बाजार नियामक सेबी के आंकड़ों के अनुसार एफआईआई ने 5,80,183 करोड़ रुपए मूल्य के शेयर खरीदे तथा 4,80,778 करोड़ रुपए मूल्य के शेयर बेचे हैं। एफआईआई ने 1992 में भारतीय शेयर बाजार में प्रवेश किया था और इसके बाद से यह किसी कैलेंडर वर्ष में अब तक का दूसरा सबसे बड़ा शुद्ध निवेश है। इससे पहले 2010 में विदेशीनिवेशकों ने लगभग 29 अरब डालर (1,33,266 करोड़ रुपए) का शुद्ध निवेश किया था।हालांकि, 2011 में एफआईआई ने 35.8 करोड़ डालर या 2,714 करोड़ रुपए की बिकवाली की।

इस पर तुर्रा यह कि बंबई शेयर बाजार या बीएसई सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या के लिहाज से दुनिया के शेयर बाजारों में पहले पायदान पर है। उसने इस मामले में एनवाईएसई, नस्दक तथा लंदन स्टाक एक्सचेंज जैसे प्रमुख शेयर बाजारों को बहुत पीछे छोड़ दिया है।वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ एक्सचेंज (डब्ल्यूएफई) के आंकड़ों के अनुसार पिछले महीने के आखिर में बीएसई के यहां 5,174 कंपनियां सूचीबद्ध थीं। इस संख्या के लिहाज से वह टीएमएक्स ग्रुप (कनाडा) से लगभग 1000 फर्म या 20 प्रतिशत आगे है। इसी तरह अगर ब्रिटेन के लंदन स्टाक एक्सचेंज तथा अमेरिकी शेयर बाजार नस्दक तथा एनवाईएसई के यहां सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या को देखा जाए तो बीएसई में यह संख्या लगभग दोगुनी है।इस मामले में देश के एक अन्य प्रमुख एक्सचेंज नेशनल स्टाक एक्सचेंज या एनएसई को दसवें स्थान पर रखा गया है। उसके यहां कुल सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या 1660 है। डब्ल्यूएफई के आंकड़ों के अनुसार बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या जनवरी में 5,115 थी जो अक्तूबर में बढ़कर 5174 हो गई। अक्तूबर में कंपनियों की इस संख्या में 11 की वृद्धि हुई। इस लिहाज से बीएसई के बाद टीएमएक्स ग्रुप, बीएमई स्पेनिश एक्सचेंजज, लंदन एसई ग्रुप, नस्दक ओएमएक्स, एनवाईएसई यूरोनेक्स्ट, तोक्यो एसई ग्रुप, आस्ट्रेलियन एसई, कोरिया एक्सचेंज तथा एनएसई है।

सरकार द्वारा उठाए गए आर्थिक सुधार कदमों के कारण एफआईआई बीते कुछ महीनों से भारतीय शेयर बाजारों पर अच्छा खासा भरोसा जता रहे हैं। 2012 में सेंसेक्स में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।डेस्टीमनी सिक्युरिटीज के सुदीप बंधोपाध्याय ने कहा,एफआईआई भारतीय शेयर बाजारों में सकारात्मक रुख के साथ निवेश कर रहे हैं। एशिया या उदीयमान बाजारों में अन्य बाजारों की तुलना में भारत अब भी निवेश के लिहाज से आकषर्क गंतव्य है।

इसी के मध्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राम जेठमलानी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए आज उन्हें पार्टी से तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। भाजपा ने जेठमलानी के खिलाफ यह कार्रवाई सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति मुद्दे को लेकर उनपर कार्रवाई के लिए पार्टी को चुनौती देने के बाद की।दूसरी ओर कांग्रेस के लिए घोटाला परिदृश्य में भारी राहत की बात है, जेठमलीनी के संबावित निष्कासन से बढ़कर।अपनी कंपनी में गलत तरीके से निवेश का आरोप झेल रहे भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं। अब खुलासा हुआ है कि गडकरी की पूर्ति पावर एंड शुगर में पैसा लगाने वाली 18 कंपनियों में उनकी पत्नी, बेटे, भांजे, पूर्ति के वाइस चेयरमैन और ड्राइवर न सिर्फ शेयरहोल्डर थे, बल्कि डायरेक्टर भी थे। साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि पूर्ति में निवेश करनी वाली 18 कंपनियों ने इसके अलावा पूर्ति एंड महात्मा शुगर एंड पावर में भी पैसा लगाया है।

एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्ति ग्रुप में निवेश करने वाली 18 कंपनियों में से तीन कंपनियों-जेसिका मर्केटाइल, निलय मर्केटाइल और जैनम मर्केटाइल में गडकरी की पत्नी कंचन, उनके बेटे निखिल व सारंग और भांजे संदीप ने पैसा लगाया था। इन्होंने इन कंपनियों में 2009-10 में निवेश किया था। गडकरी स्वयं 10 अप्रैल 2000 से 27 अगस्त 2011 के बीच पूर्ति के चेयरमैन थे। हालांकि अभी गडकरी के पास पूर्ति के सिर्फ 370 शेयर हैं।

गडकरी के भांजे संदीप ने अपना निवास बुल्ढाणा शुगर एंड पावर बताया है। ये वही कंपनी है जिसमें गडकरी के ड्राइवर मनोहर पंसे डायरेक्टर हैं।

गडकरी के परिवार की इन तीनों कंपनियों में एक बात समान दिखाई देती है, वह यह कि कंपनी शुरू करने वाले अमित पांडे और राहुल दूबे ने इनमें अपने शेयर कंचन, निखिल, सारंग और संदीप के नाम कर दिए थे। ये सब कंपनी शुरू होने के सिर्फ एक से तीन महीने के भीतर हुआ। इसी दौरान पूर्ति के दो कर्मचारी इन कंपनियों में डायरेक्टर भी बने।

कुछ दिनों पहले आरएसएस से जुड़े गुरुमूर्ति ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को बताया था कि इन कंपनियों में पैसा लगाने के पीछे नागपुर के एक व्यवसायी मनीष मेहता का हाथ है, जो अब मुंबई शिफ्ट कर गया है। मेहता पूर्ति में जुलाई 2000 से दिसंबर 2002 और 29 दिसंबर 2010 से 28 सितंबर 2011 के बीच डायरेक्टर थे। गुरुमूर्ति ने सारा दोष मेहता के सिर मढ़ दिया था और कहा था कि उन्होंने पूर्ति छोड़ने से पहले कंपनी में 47 करोड़ रुपये लगाए थे। हालांकि अभी इन 18 कंपनियों में गडकरी के परिवार का कोई हिस्सा नहीं है। लेकिन गडकरी के परिवार वालों के अपने शेयर हस्तांतरण के बाद ही इन कंपनियों के डायरेक्टर और उनके पते बदले गए।

पूर्ति में शेयर पैटर्न में एक और गड़बड़ी नजर आती है वो यह है कि महात्मा शुगर एंड पावर में पैसा लगाने वाली गडकरी के परिवार की इन तीनों कंपनियों के निवेश दस्तावेजों में खामियां दिखाई देती हैं। महात्मा शुगर पूर्ति ग्रुप की ही कंपनी है। निलय मर्केटाइल की 2010-11 की बैलेंस शीट के अनुसार कंपनी ने पूर्ति में 1.5 लाख और महात्मा शुगर में 55 लाख रुपये लगाए हैं।

जाहिर है भाजपा इस पर तो कोई कार्रवाई करने से रही, लेकिन जेठमलानी प्रसंग में भाजपा ने कहा कि यह घोर अनुशासनहीनता है। विद्रोही रुख अपनाने वाले जानेमाने वकील एवं राज्यसभा सदस्य जेठमलानी ने हाल में पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी से उनके पूर्ति समूह में कथित संदिग्ध वित्तपोषण के आरोपों को लेकर त्यागपत्र देने की मांग की थी। उन्होंने कहा था, किसी में भी मेरे खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं है। रंजीत सिन्हा को सीबीआई का नया निदेशक नियुक्त करने की आलोचना करने के लिए भाजपा पर हमले बोलने के चलते जेठमलानी को पार्टी की ओर से कार्रवाई का सामना करना पड़ा।

भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि जेठमलानी ने लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली की ओर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे गए उस पत्र का विरोध किया था जिसमें उन्होंने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति स्थगित रखने को कहा था। जारी
हुसैन ने कहा, जेठमलानी की टिप्पणी कांग्रेस की मदद करने के लिए थी। उन्होंने कहा कि वह 'घोर अनुशासनहीनता' वाला कृत्य था। उन्होंने कहा कि स्वराज-जेटली के प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का विरोध करने और मुम्बई में आज उनके उस बयान को बहुत गंभीरता से लिया गया कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।

उन्होंने कहा, भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उनकी टिप्पणी और आज के उनके बयान को बहुत गंभीरता से लिया, और उन्हें तत्काल प्रभाव से पार्टी से निलंबित करने का फैसला किया।

चूंकि जेठमलानी राज्यसभा सदस्य हैं इसलिए निलंबन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा की संसदीय बोर्ड की कल शाम साढ़े चार बजे बैठक होगी। मुम्बई में जेठमलानी ने कहा कि पार्टी में कई उनके विचार से सहमत हैं लेकिन 'कुछ में ही इसकी क्षमता' है कि वे अपने विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर सकें।

बहरहाल जेठमलानी ने स्पष्ट किया कि सिन्हा की नियुक्ति मामले पर उनके विचार उनके स्वयं के हैं और भाजपा के नहीं हैं जहां 'मैं एक छोटा व्यक्ति हूं।' उन्होंने मुम्बई के एक पत्रकार की पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम के इतर कहा, यदि मेरे खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है तो मैं उसका स्वागत करूंगा लेकिन मैं नहीं मानता कि किसी में भी मेरे खिलाफ कार्रवाई करने का साहस है। जेठमलानी ने नया सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की आलोचना की थी और कहा था कि सरकार के निर्णय ने 'राष्ट्रीय आपदा टाली' है।

यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी में इस तरह का रुख रखने वाले और लोग हैं तो जेठमलानी ने कहा, मैं आश्वस्त हूं कि और लोग हैं। मैं 100 फीसदी आश्वस्त हूं कि काफी और लोग हैं लेकिन उनमें सार्वजनिक और खुले तौर पर सच बोलने का साहस नहीं है।'' राजधानी दिल्ली में कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि जेठमलानी का निलंबन ''भाजपा का आंतरिक मामला है। पटना साहिब से भाजपा के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा भी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी का इस्तीफा मांगने में जेठमलानी और यशवन्त सिन्हा के साथ हो गए हैं। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे को गंभीरता से देखा जाना चाहिए।

सिन्हा ने कल पटना में एक सवाल का जवाब देते हुए संवाददाताओं से कहा था, उनके (जेठमलानी और यशवन्त सिन्हा) द्वारा उठाए गए मुद्दे को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

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