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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, April 6, 2013

मीडिया की दुकान में स्त्री एक सामान

मीडिया की दुकान में स्त्री एक सामान

महिलाओं के साथ छेड़खानी, दुष्कर्म, दहेज के लिए महिलाओं को प्रताडि़त करना, घरेलू हिंसा, देह व्यापार बदस्तूर जारी हैं, पर इनके लिए मीडि़या में पर्याप्त स्थान नहीं है. ये साथ न्यूज चैनलों के लिए टीआरपी नहीं है.......

रुद्र प्रताप सिंह


मीडिया ने नारी सम्मान और उसके हितों की रक्षा के लिए सतत् प्रयास किए और उसे उसके अधिकारों के प्रति जागरुक किया है, जिसकी सराहना की जानी चाहिए. पर क्या मीडिया सचमुच नारी सशक्तिकरण के प्रयास को अपना दायित्व समझकर कार्य करती है? मीडिया अगर जन मानस को झकझोर कर स्त्री के प्रति सार्थक चिंतन और चेतना से जोड़ सकती तो इससे स्त्री और समाज के बीच एक बेहतर समझ विकसित होती. पर अफसोस कि मीडिया के लिए तो स्त्री एक "स्कूप" से ज्यादा कुछ भी नहीं.

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मीडिया संस्थानों पर आज व्यवसायिकता हावी है. मीडिया एक दुकान है और स्त्री उसके लिए केवल लाभ कमाने का जरिया मात्र. यही वजह है कि रोजाना स्त्री की प्रताड़ना की खबरें समाज में सरोकार की जगह सनसनी, चिंता की जगह चटपटापन और जागरूकता की जगह उत्सुकता पैदा कर रहीं हैं. कुछ महिने पहले छात्रा से चलती बस में हुए बलात्कार को मीडिया में प्रमुखता से दिखाया गया. मीडिया ने कुछ ही समय में एक साधारण लड़की को खास बना दिया इसका बड़ा कारण था उस पीडि़ता के समर्थन में सड़कों पर उमड़ा जन सैलाब और लोगों की इस घटना में रूचि. 

इस घटना में वो सब कुछ था, जिसने इसे बेचने के लिए बेहतर न्यूज आइटम बनाया. इस दौरान मीडिया ने पल-पल की खबर का लाइव प्रसारण किया, महिला असुरक्षा को लेकर परिचर्चाओं का अयोजन किया गया, पीडि़ता के स्वास्थ्य में सुधार के लिए लोगों से एसएम स की अपील की गई. पीडि़ता के स्वास्थ्य से जुड़ी हर खबर और सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को लगातार लोगों तक पहुंचाया. मीडिया ने इस घटना को खूब कै"ा किया इस दौरान खूब सारे विज्ञापन न्यूज चैनलों को मिले. 

इस घटना से पहले भी भारत में इस तरह की घटनाएं हुई और अब भी महिलाओं के साथ छेड़खानी, दुष्कर्म, दहेज के लिए महिलाओं को प्रताडि़त करना, घरेलू हिंसा, देह व्यापार बदस्तूर जारी है. आए दिन इस तरह की घटनाएं समाज में घट रहीं हैं पर इनके लिए मीडि़या में पर्याप्त स्थान नहीं है क्योंकि इनके साथ एक बड़ा जनसैलाब सड़कों पर नहीं है, क्योंकि ये आम हैं, इनके साथ न्यूज चैनलों के लिए टीआरपी नहीं है जो इन्हें क्रिकेट, सास बहू के सिरियल, घटिया किस्म के कॉमेडी सिरियल्स, सनसनी पैदा करने वाली खबरों से मिलती है. 

मीडिया ने महिलाओं को समाज में बिल्कुल वास्तविकता से विपरित प्रस्तुत किया है. उन्हें हॉट, सेक्सी, द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग करने वाले फूहड़ किस्म के कार्यक्रमों या फिल्मों में सहभागी बनाया गया है, जबकि वास्तविकता कुछ और ही है. यही कारण है जब लड़के, लड़कियों पर फब्तियां कसते हैं तो उन्हें स्वाभाविक तौर पर बुरा लगता है. एक ओर मीडिया नारी उत्थान की पैरवी करता है और दूसरी ओर खुद ही उसे टीवी पर प्रसारित दर्जनों सास बहू सीरियल्स के जरिए घर की चार दीवारियों में ही कैद करके यह अहसास कराता है कि महिला के लिए उसका परिवार ही सर्वोपरी है, उसका स्थान पति के चरणों में है. 

इन डेली सोप सीरियल्स में महिलाओं को एक जालसाज+, घर को तोड़ने वाली, कलह की वजह, घर की भेदी और वहीं दूसरी ओर चुपचाप सब कुछ सहने वाली आदर्श बहु या बेटी जैसे किरदारों में प्रस्तुत किया जाता है. समाज में इस तरह के टीवी सीरियल्स से महिलाओं की छवि पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इससे टीवी चैनलों को कोई मतलब नहीं होता है. विज्ञापनों में भी दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए महिलाओं को कामुक अंदाज में प्रस्तुत किया जाता है. 

इन परिस्थितियों के लिए केवल मीडिया अकेला ही जिम्मेदार नहीं इसके लिए समाज भी जिम्मेदार है. सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच हमारे समाज में इस तरह घर कर गई है कि इसका प्रभाव जाने-अनजाने जीवन के हर पहलू में नजर आता है. महिलाओं के साथ चार दीवारों के भीतर होने वाले व्यवहार को समाज में आम मान लिया जाता है और उसे महिलाएं अपनी नियती मान लेती हैं और वे भी इसका विरोध नहीं करतीं.

दरअसल समाज मे बढ़ती प्रतिस्पर्धा और मुनाफा कमाने की होड़ ने सारे नैतिक मूल्यों को ताक पर रख दिया है. जिन्हें रौंदकर हर कोई एक-दूसरे से आगे निकलने का प्रयास कर रहा है. यही कारण है कि मीडिया सोच में परिवर्तन लाने के बजाय अपने उत्पाद को उसी संस्कृति और सोच के साथ परोसती है जिसका हमारा समाज आदि हो चुका है.

rudra-pratap-singhरुद्र प्रताप सिंह पत्रकारिता के छात्र हैं.

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-08-56/2012-06-21-08-09-05/302-media/3881-media-kee-dukan-men-stri-ek-saman-rudra-pratap-singh

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