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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, April 6, 2013

Chaman Lal बामसेफ के एकीकरण की प्रासंगिकता “Person centered (non-institutional) organizations of Mulnivasi Bahujan Samaj are the modern tools of Brahmins to keep Brahmanism alive in India.” – Chaman Lal

बामसेफ के एकीकरण की प्रासंगिकता

"Person centered (non-institutional) organizations of Mulnivasi Bahujan Samaj are the modern tools of Brahmins to keep Brahmanism alive in India." – Chaman Lal

http://www.facebook.com/groups/buddhistfriends/

जो लोग पैसा देकर समाज के साथ विस्वासघात करने के लिए खरीद लिए जाते हैं वो लोग उद्देश्य विमुख होकर अपनी भौतिक सुख-सुविधावों के उपभोग में लग जाते हैं, उनको बहुजन समाज में जाकर लोगों के विचार-परिवर्तन के लिए दर-दर भटक कर पापड़ बेलने कि जरूरत नहीं पड़ती है ! बामसेफ के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहेब ने जब एक व्यक्ति के तौर पर बामसेफ संस्था के बहुसंख्यांक निर्णय लेने वाले लोगों के विरोध में जाकर राजनैतिक पार्टी निर्माण करने का फैसला लिया तो इससे बामसेफ के तत्कालीन नेतृत्व और बामसेफ संस्था को चलाने वाले अन्य बहुसंख्यांक जिम्मेदार लोगों के बीच टकराव पैदा हुवा ! मुद्दा यह था कि बामसेफ के अधिसंख्य लोग यह चाहते थे कि बामसेफ के माध्यम से सामाजिक जड़ें मजबूत करने का काम न्यूनतम दस वर्ष तक अवश्य करना चाहिए उसके बाद ही बामसेफ के माध्यम से कोई राजनैतिक पक्ष खड़ा करने कि बात सोची जानी चाहिए – ऐसा तत्कालीन समय में बामसेफ को चलाने वाले बहुसंख्यांक लोगों का मत था ! लेकिन कांशीराम साहेब ने संस्थागत निर्णय को दरकिनार करके एकतरफा राजनैतिक पार्टी निर्माण करने का फैसला लिया जिस कारन से उनको बामसेफ संस्था से अलग होना पड़ा ! तत्कालीन समय में कांशीराम साहेब ने अपने आप को बहुजन समाज में एक व्यक्ति के तौर पर मसीहा स्थापित करने के लिए स्वार्थवश बहुजन समाज में गैर-राजनैतिक जड़ें लगाने वाले मौलिक संघठन बामसेफ को ही ख़त्म करने कि घोषणा करनी पड़ी ! यहीं से मूलनिवासी बहुजन समाज के भारत के आधुनिक इतिहास में व्यक्ति निर्माण (मसीहा निर्माण) कि प्रक्रिया प्रारंभ हुई ! जो लोग अभी भी कांशीराम के राजनैतिक पार्टी निर्माण कर लेने के बाद भी बहुजन समाज के अन्दर इमानदारी के साथ गैर-राजनैतिक जड़ें लगाना चाहते थे उन्होंने 1986 में बामसेफ को रजिस्टर कराकर बहुजन समाज के बीच में, बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के उस कथन के अनुसार जिसमे वो कहते हैं कि 'जिस समाज की गैर-राजनैतिक जड़ें मजबूत नहीं होती हैं उस समाज कि राजनीती कभी सफल नहीं होती है', इस कथन से प्रेरित होकर बहुजन समाज के बीच में गैर-राजनितिक जड़ें लगाने का कार्य बामसेफ के माध्यम से करना जारी रखा ! बामसेफ के माध्यम से गैर-राजनैतिक जड़ें लगाने का कार्य करने वाले लोगों को कांशीराम साहेब ने अपने 'मसीहा-निर्माण' करने के रास्ते में जब अवरोध समझा तो उन्होंने न केवल मूलनिवासी बहुजन समाज कि मौलिक जाग्रति के संघठन बामसेफ को ख़त्म करने कि घोषणा कर डाली बल्कि रजिस्टर्ड बामसेफ चलाने वाले लोगों को 150 करोड़ रुपया कांग्रेस के राजीव गाँधी और अर्जुन सिंह के माध्यम से इन लोगों को दिया गया है, ऐसा प्रचार-प्रसार भी करवा डाला ! बहुजन समाज में लगातार कार्य करने के कारन अच्छी तरह से स्थापित हो गए कांशीराम साहेब की कही गयी बात को तत्कालीन समय के अंधभक्तों ने सही माना जिसके कारन से सामाजिक धुर्विकरण के लिए जो समर्थन उन लोगों को बहुजन समाज में मिलना चाहिए था वह उन लोगों को नहीं मिला और बिकाऊ होने का दंश उनको बहुजन समाज में अलग से झेलना पड़ा ! तत्कालीन समय के पंजाब के CEC सद्श्य माननीय तरसेम सिंह बेन और उनके अन्य साथीयों का यह कहना है कि उस समय कांशीराम साहेब ने अपने आपको स्थापित करने के लिए उन लोगों के प्रति यह झुटा प्रचार किया था ! बहराल जिन लोगों के खिलाप यह प्रचार किया गया था वह अभी भी बहुजन समाज के बीच में जाकर विचार-परिवर्तन करने के लिए पापड़ बेल रहें है वहीँ दूसरी और उस आन्दोलन के अवसरवादी लोग महलो में रहकर करोड़ों-अरबों में खेल रहें हैं तथा ब्राह्मणों के इशारे पर मूलनिवासी बहुजन समाज की मौलिक विचारधारा में मिलावट करने का काम कर रहे हैं ! बामसेफ के संस्थागत फैसले के विरोध में व्यक्ति-निर्माण (मसीहा-निर्माण) का जो कार्य हमारे लोगों ने 1984 से करना शुरू किया था उसका दुष्परिणाम यह हुवा कि 2003-06 तक आते-आते कांशीराम कि म्रत्यु के साथ ही वह आन्दोलन जिसमे मूलनिवासी बहुजन समाज की एक-दो पीढीयों ने अपने जीवन के बहुमूल्य 25 वर्ष लगाए थे, इस आन्दोलन के गैर-संस्थागत होने के कारन वह ब्राह्मणों के नियंत्रण में चला गया ! जिन लोगों ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनैतिक आजादी कि इस आन्दोलन से आस लगाई थी उन लोगों की गुलामी और ज्यादा मजबूत हो गयी और अंततः बड़े पैमाने पर आन्दोलन में सहभागी लोग हताशा के शिकार हो गए जिसके निम्नलिखित गंभीर परिणाम मूलनिवासी बहुजन समाज के आन्दोलनों के ऊपर हुवे :

• आन्दोलन में धोकेबाज़ी का शिकार हुवे लोगों ने अपनी अगली पीढ़ी को फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन को उसके मुकाम तक पहुंचाने के लिए ऐसे आंदोलनों में साथ-सहयोग करने से अपने अनुभव के कारन प्रतिबंधित कर दिया ! जिसके कारन आन्दोलन को आगे बढाने के लिए प्रशिक्षित ह्यूमन रिसोर्स की कमी हो गयी !
• मूलनिवासी बहुजन समाज के अन्दर फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन चलाने वाले लोगों के अन्दर 'अपना उल्लू सीधा करने की भावना' का विकास हुवा जिसके कारन ऐसे आन्दोलनों में 'अवसरवादिता' हाबी हो गयी !
• कांशीराम की आंशिक सफलता को देखकर आन्दोलन चलाने वाले अन्य महत्वाकांक्षी लोगों के अन्दर भी स्वंयं को व्यक्ति (मसीहा) के तौर पर स्थापित करने की आकांक्षा निर्माण हुई जिससे आगे चलकर फिर संस्थागत बामसेफ के फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन को सामानांतर क्षति (collateral damage) हुई है !
• मूलनिवासी बहुजन समाज के अन्दर 'व्यक्ति-आधारित' एवं 'लीडर-केन्द्रित' छोटे-छोटे संघठनो का बड़े पैमाने पर निर्माण हुवा जिससे मूलनिवासी समाज के अन्दर हमारे पूर्वजों की 'गण-तांत्रिक' एवं प्रजातांत्रिक सोच का परित्याग करने के कारण हमारे आन्दोलन चलाने वालें लोगों ने जिस व्यवस्था के विरोध में वह आन्दोलन चला रहे थे उसी व्यवस्था के घिनौने ब्राह्मणवादी तरीकों का स्वंयं अपने आप को स्थापित करने के लिए अवलंबन किया !
• बुद्ध की जिस संस्थागत (institutional) रूप से कार्य करने कि पद्धति ने हम मूलनिवासियों को 2500 हजार साल पहले हम मूलनिवासी लोगों को आजादी दिलवाई थी, इस संस्थागत पद्धति की सोच को ख़त्म करने के लिए ब्राह्मणों ने व्यक्ति-आधारित आन्दोलनों के नेतावों को पीछे से सहारा देकर उनको आगे बढाकर मूलनिवासियों की आजादी की किसी भी प्रकार की सम्भावना को मौलिक रूप से ख़त्म कर दिया ! 
• ब्राह्मणों ने हमको जातियों में बांटकर शक्तिविहीन कर दिया था, व्यक्ति-आधारित मसीहाई सोच के अंतगर्त अलग-अलग संघठन निर्माण कर लेने के कारण हमने अपने आप को और गुणात्मक तरीके से शक्तिविहीन कर लिया है ! मूलनिवासी समाज में जाति का जो दुष्प्रभाव है वही दुष्प्रभाव मूलनिवासी बहुजन समाज के व्यक्ति-आधारित अलग-अलग सामाजिक संघठनो का है ! 

कांशीराम साहेब ने स्व-स्वार्थ सिद्धि हेतु रजिस्टर्ड बामसेफ के माध्यम से सामाजिक जड़ें मजबूत करने का कार्य करने वाले लोगों के लिए जो विरोधाभाषी एवं विषम परिस्थितियां पैदा की थी, मान्यवर डी के खापर्डे साहेब ने बामसेफ को उन परिस्थितियों से आगे निकाल कर बामसेफ को एक संस्थागत स्वरुप देकर आगे बढ़ाना चाहा ! संस्थागत रूप से कार्य करने की शैली क्या है यह तथागत गौतम बुद्धा से हमको समझना होगा – संस्था के अन्दर जो भी काम होता है वह संस्था के सुस्थापित निति-नियमो के तहत ही होता है , यहाँ तक कि व्यक्तिगत व्यवहार/आचरण भी संस्था के तय एवं निर्धारित मानको के दायरे में ही होता है ! संस्थागत कार्यशैली में कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता है , इसलिए तथागत बुद्धा की जो जीवन शैली है वह यह है – भिक्कू संघ में भिक्कू प्रचारक जो कपडा पहनते थे वही बुद्धा भी पहनते थे, भिक्कू लोग भिक्षाटन करके विचार का प्रचार-प्रसार करते थे बुद्धा भी ऐसा ही करते थे , भिक्कू लोग पैदल चलकर प्रचार-प्रसार करते थे बुद्धा भी पैदल चलकर प्रचार-प्रसार करते थे , भिक्कू लोग जो खाते थे वही तथागत गौतम बुद्धा भी खाते थे ...........! यानी के मतलब यह हुवा कि तथागत गौतम बुद्धा ने जिन मौलिक अधिकारों ( स्वतंत्रता, समानता, बंधुता और न्याय) को मूलनिवासी समाज में प्रस्थापित करने के लिए जिस संघठन 'भिक्कू संघ' का निर्माण किया उसको सबसे पहले 'भिक्कू संघ' में लागू किया, अपने ऊपर लागू किया तब जाकर कहीं तथागत गौतम बुद्धा मूलनिवासी बहुजन समाज को आजादी दिलवाने में सफल हो पाए – यह तथ्य हमारे सामने है स्वंयं को झकझोरने के लिए ! 
डी के खापर्डे साहेब की जो व्यक्तिगत जीवन-शैली है , त्याग और समर्पण है , वह बुद्धा से किसी भी मायने में कम नहीं है लेकिन डी के खापर्डे साहेब ने और उनके सहयोगी माननीय बी डी बोरकर साहेब ने समय रहते उन निति-नियमो, व्यवहार के सिद्धांतों का विकास और उनको दस्तावेजी स्वरुप प्रदान नहीं किया जिसके कारण से समय-समय पर वामन मेश्राम जैसे छद्दम गांधीवादी अवसरवादी लोगों ने बामसेफ संघठन के अन्दर फिर चुनौतियां पैदा कर दी ! वैसे तो वामन मेश्राम और एस ऍफ़ गंगावने दोनों नौकरी छोड़कर बामसेफ संघठन में आये थे – दोनों ही डट कर काम करने वाले लोगों में थे लेकिन वामन मेश्राम व्यक्तिगत रूप से बामसेफ संघठन के अन्दर अपना भविष्य ढूंड रहा था इसलिए वह गैर-संस्थागत व्यवहार कर रहा था जिसको जाने-अनजाने में डी के खापर्डे साहेब और बी डी बोरकर साहेब ने नजर-अंदाज किया हुवा था जिसका खामियाजा उनको २००३ में भुगतना पड़ा ! हमारा यह मानना है कि यदि बामसेफ संघठन के अन्दर मजबूत निति-नियम व् व्यवहार करने के दस्तावेजी मोडल होते तो बामसेफ संघठन को इतनी क्षति नहीं पहुँचती ! 1995 में वामन मेश्राम ने बामसेफ कि सम्पतियों का इस्तेमाल करके नागपुर में बामसेफ के ऑफिस में अपना टाइल का व्यापार करने का काम शुरू किया, जिसका तत्कालीन समय में एस ऍफ़ गंगावाने ने संघठन के अन्दर विरोध किया ! इसके फलस्वरूप वामन मेश्राम ने एस ऍफ़ गंगावाने के विरोध में अभियान चलाया और षड़यंत्र करके उसको संघठन से बहार निकलवा दिया जिसके कारण बामसेफ संघठन एक-बार फिर वामन मेश्राम कि वजह से विभाजन का शिकार हुवा ! तत्कालीन समय में माननीय एस. ऍफ़. गंगावने ने एक परचा निकालकर समाज के लोगों की जानकारी के लिए 'वामन मेश्राम का टाइल का धंदा, एस.ऍफ़. गंगावाने के लिए बना फांसी का फंदा' इस शीर्षक के तहत वामन मेश्राम के षड्यंत्रकारी गैर-संस्थागत आचरण की सम्पूर्ण जानकारी देकर समाज के लोगों को 1995 में वामन मेश्राम से सावधान रहने के लिए आगाह कर दिया था – इसका डॉक्यूमेंट उपलब्ध है ! वामन मेश्राम ने बामसेफ संघठन के अन्दर अपने आप को स्थापित करने के लिए तत्कालीन समय में भी एस.ऍफ़. गंगावाने के बारें में बिकाऊ, ब्राह्मणों का दलाल आदि-आदि का प्रचार-प्रसार किया था ! लेकिन बावजूद इसके एस. ऍफ़. गंगावाने साहेब विचार-परिवर्तन का ही काम करते रहे , भले ही अलग रहकर किया यह अलग बात है ! अगर एस.ऍफ़. गंगावाने साहेब बिकाऊ होते तो भौतिकवादी हो गए होते और उनको विचार-परिवर्तन करने के पापड़ नहीं बेलने पड़ते , जो वह अभी भी उनको स्मृति-भ्रम बिमारी होने के बावजूद भी बेल रहे हैं ! बहराल जब-जब भी बामसेफ में विभाजन हुवा, परदे के पीछे रहकर विभाजन को अंजाम देने वाले लोगों ने अन्य विभाजित लोगों के विरोध में यह झुटा प्रचार-प्रसार किया कि यह लोग ब्राह्मणों के द्वारा खरीद लिए गए हैं ताकि उन लोगों को समाज में प्रस्तापिथ होने से रोका जा सके ! बामसेफ के आन्दोलन को तोड़ने के लिए ब्राह्मणों ने कभी किसी सदशय को करोड़ों में पैसा दिया हो इसका कोई संस्थागत दस्तावेज बामसेफ में उपलब्ध नहीं है ! इसको केवल आरोप के तौर पर अवसरवादी लगों ने बामसेफ के अन्दर दुसरे लोगों के सामाजिक जीवन को ख़त्म करने के मकसद से रणनीति के तहत इस्तेमाल किया गया है ! इस सन्दर्भ में वामन मेश्राम ने कांशीराम साहेब को अनुकरण करके एक कदम और आगे बढ़ गए है और उन्होंने इस वाक्य को 'कि कांग्रेस बीजेपी और आरएसएस के लोगों ने खरीद लिया है ' रट ही लिया है ! जो कोई भी गलती से संस्थागत कार्यशैली को समझता है और उसके तहत वामन मेश्राम से सवाल खड़ा करता है, तुरंत ही सवाल खड़ा करने वाले लोगों को यह कहकर 'कि कांग्रेस, बीजेपी और आरएसएस ने खरीद लिया है' झुटा प्रचार-प्रसार कपने अंध-भक्तों द्वारा बदनाम करा देता है ! 
2003 में पूर्णकालीन प्रचारकों ने वामन मेश्राम के ऊपर 'होमो-सेक्सुअल एक्ट' में सलंग्न होने का दस्तावेजी आरोप लगाया जिसके विरोध में वामन मेश्राम ने बामसेफ के अध्यक्ष पद से इस आरोप की जांच पूर्ण होने तक स्वलिखित स्तीफा तत्कालीन CEC को दिया – जिसका दस्तावेजी सबूत उपलब्ध है ! प्रथम-द्रष्टया CEC के लोगों ने आरोप को सही पाया और इतने घिनौने अपराध के बावजूद भी संघठन के जिम्मेदार लोगों ने संस्थागत आचरण का प्रदर्शन करते हुवे वामन मेश्राम को बामसेफ संघठन के अन्दर ही रखने के लिए कोई दुसरे काम की जिम्मेदारी दी ! राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुवे मनमानी करके गलत तरीके से संघठन के पैसों का उपभोग करने वाले और दूसरों पर खर्चों का अंकुश निर्माण करने वाले इस ब्राह्मणवादी व्यवहार कि वजह से वामन मेश्राम को साधारण कार्यकर्ता फिर से बनना स्वीकार नहीं हुवा और वामन मेश्राम ने एक बार फिर व्यक्तिगत स्वार्थ-सिद्धि के लिए अपने स्वजातीय बन्धुवों के साथ मिलकर बामसेफ संघठन में षड़यंत्र कारी तरीके से विभाजन को अंजाम दे दिया ! क्योंकि फ़ील्ड में वामन मेश्राम को ही लोग जानते थे इसलिए इस बात का फायदा उठाते हुवे वामन मेश्राम ने भोले-भाले लोगों को यह झुटा प्रचार-प्रसार कर दिया कि बी डी बोरकर (मुंबई में जिसके घर में वह रहता था, खाता-पिता था और जिसको वह कहता था कि बामसेफ संघठन के पास बी डी बोरकर से अच्छा प्लानर नहीं है), वामन मेश्राम ने अपनी स्वार्थ-सिद्धि हेतु उसी के बारें में यह प्रचार-प्रसार करवा दिया कि बी डी बोरकर को आरएसएस ने खरीद लिया है , उसको गुजरात में अम्बानी कि गाडी में देखा गया है , मुंबई में हुवे बम धमाकों में जो RDX प्रयोग हुवा वह बी डी बोरकर कि चेक पोस्ट पर उतरा – अपने आप को बचाने के लिए उसने (बी डी बोरकर ) ने संघठन तोडा ...... ये घिनौना झुटा प्रचार-प्रसार किया ! वामन मेश्राम का यह चरित्र है कि वह जिस थाली में खाता है उसी थाली में छेद भी कर देता है ! बहराल मेरे जैसे मुर्ख लोग भी 2003 में वामन मेश्राम के झूटे एवं भ्रामक प्रचार (Goebbels) का शिकार हुवे – यह वामन मेश्राम का फील्ड में रहने का ही कारन था, और भोले-भले लोग जो फील्ड में होता है उसी कि प्रथम द्रष्टाया बात को मानते है भले ही वह झूट बोल रहा हो ! बहराल जिस तरह से ब्राह्मण भारत के संसाधनों के ऊपर कब्ज़ा करके झूट का प्रचार करके भी भारत में बने हुवे हैं उसी तरह से वामन मेश्राम भी बामसेफ के संसाधनों के ऊपर कब्ज़ा करके अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए संघठन के अन्दर ब्राह्मणी तरीकों का अवलंबन करके बामसेफ संघठन में षड़यंत्रपूर्वक बना हुवा है - जो मौलिक रूप से जिस विचारधारा के प्रस्थापन का और उद्देश्य को हांसिल करने का अपने अंध-भक्त लोगों को वह सपना दिखा रहा है , उसके विरोध में ही है ! इसलिए वामन मेश्राम बार-बार इस बात को कहता भी है कि बामसेफ संघठन में रहकर वह ब्राह्मणों को जितना समझ पाया है उतना संघठन के अन्दर कोई और नहीं ! अगर वामन मेश्राम के अनुसार बी डी बोरकर और उसके अन्य साथी ब्राह्मणों के हाथों बिक गए होते और उनको ब्राह्मणों से करोड़ों रुपया मिला होता तो वह भौतिकवादी हो गए होते और उनको विचार-परिवर्तन के लिए बहुजन समाज के लोगों के बीच में जाकर पापड़ नहीं बेलने पड़ते ! लेकिन हम देखते हैं कि वह अभी भी त्याग और तपस्या के साथ संस्थागत नियमो के अंतगर्त ट्रेन का टिकेट निकालकर पुरे देशभर में संघठन को आगे बढाने के लिए निक्काम भाव से कार्यरत है ! वहीँ दूसरी और अपने आप को स्थापित करने के लिए आरोप लगाने वाला वामन मेश्राम अभी भी बिना किसी संघठन के नियम-निति और कार्यशील निति के बामसेफ संघठन को अपनी बपौती समझकर, अपनी निजी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी समझकर, समाज से आन्दोलन करने के नाम पर पैसा लूटकर हवाई जहाज, एसी गाड़ियों एवं सितारा होटलों में रहकर, देश-विदेश की यात्राएं करके मूलनिवासी बहुजन समाज के सीमित बहुमूल्य साधनों का दुरपयोग करने में लगा हुवा है ! डी के खापर्डे के साथ में कभी उन्ही की तरह त्याग , तपस्या और लगनशीलता की जीवनशैली जीने वाला वामन मेश्राम उनके निर्वाण के पश्चात पूर्ण-रूप से बेलगाम हो गया और उसने बामसेफ संस्था के समस्त संस्थावादी सिद्धांतों की अनदेखी करके एक-तरफ़ा निर्णय लेकर अपने लाइफ-स्टाइल में समाज के सिमित संसाधनों के दुरपयोग के आधार पर मूलभूत परिवर्तन कर लिया ! आज उसके द्वारा नियंत्रित बामसेफ संघठन में न तो कोई कायदा-कानून है, न कोई लिखीत नियमावली है जिसके दायरे में नेतृत्व और अन्य कार्यकरों का परिक्षण किया जाए, वहां बस वामन मेश्राम का अपने स्वार्थ-सिद्धि हेतु अघोषित एवं arbitrary व्यवहार है और उसके पीछे बुद्धा की संस्थागत कार्यशैली की सोच एवं समझ न रखने वाले भक्तो की भीड़ है जिनको यह भ्रम मात्र है कि वह लोग फुले और बाबा साहेब के अनुयायी हैं !
ब्राह्मणों के लिए भारत में उनके वजूद को बचाए रखने के लिए जैसे ब्राह्मणवाद को एन-केन-प्रकरेन स्थापित किये रखना उनके लिए प्रतिबधता बनी हुई है उसी तरह से 2003 में कार्यकरों के साथ समलैंगिगकता के आरोप सिद्ध होने पर अपने आपको बामसेफ की प्राइमरी मेम्बरशिप से इस्तीफा देने के बावजूद षड़यंत्र पूर्वक बामसेफ का स्वंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर लेने के कारण बामसेफ संस्था के नियमो को ताक पर रखकरके, डी के खापर्डे के संस्थागत बामसेफ के स्वरुप को 'निजी बामसेफ' में बदलकर मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को चुतिया (जैसा वह अपने भक्त लोगों को कहता है) एवं मुर्ख बना कर लगातार आजीवन बामसेफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहने के लिए प्रतिबधता बनी हुई है ! इसके लिए वामन मेश्राम अपने कार्यकर्तावों को यह कहता है कि नेतृत्व एक अमूल्य साधन हैं और उनके जैसा नेतृत्व अभी देशभर में कोई और नहीं है ! यानी के वामन मेश्राम साफ़-साफ़ शब्दों में यह मानता है कि बाकी उसके संघठन में सभी लोग चुतियें हैं अर्थात नेतृत्व लायक नहीं है, और अगर वह नेतृत्व पैदा नहीं कर पा रहा है तो प्रत्यक्ष रूप से वह खुद भी नालायक है ! जो खुद ही नालायक है, धोकेबाज़ है, फरेबी है, भांड है – तो मूलनिवासी बहुजन समाज को उससे क्या आशा हो सकती है ? वामन मेश्राम का यह चरित्र उन गिरे हुवे तृष्णाग्रस्त एवं शीलभ्रष्ट लोगों की श्रेणी में आता है जो अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए बमुश्किल खड़ा किये गए अपने महा-पुरुषों के आंदोलनों को ही ख़त्म कर देते हैं !
समता,स्वतंत्रता,बंधुता और न्याय को बहुजन समाज में प्रस्थापित करने का काम करने वाले कार्यकर्तावों का मौलिक द्रष्टिकोण एवं चाहत यह होती है कि इन मौलिक अधिकारों को समाज में प्रस्थापित करने के लिए वह जिस संघठना में काम कर रहा होता है, उस संघठना के अन्दर, अगर वह संघठना किसी की निजी संघठना नहीं है, पहले यह मौलिक अधिकार उस संघठना में काम करने वाले कार्यकरों को प्राप्त हो ! मौलिक सिद्धांत यह है कि मान-सम्मान-स्वाभिमान की लड़ाई गैर मान-सम्मान और गैर स्वाभिमानी तरीके से नहीं लड़ी जा सकती है ! 2003 में षड्यंत्रपूर्वक जो विभाजित बामसेफ संघठना वामन मेश्राम ने निर्माण की उस विभाजित बामसेफ संघठना में अपने कैरिअर को स्थायित्व और उसको स्वंयं को मालिकाना हक प्रदान करने वाला गैर संस्थागत एवं तानाशाही-प्रदत्त संघठनिक ढांचा डी के खापर्डे की संस्थागत कार्यशैली के विरोध में खड़ा करके निर्माण किया गया ! 2003 में वामन मेश्राम के षड़यंत्र में जानकारी के अभाव में जो लोग फंस गए थे, और उसके बाद में जब उनको वामन मेश्राम के बामसेफ को हथियाने, बामसेफ का निजीकरण करने के हथकंडों की धीरे-धीरे जानकारी होने लगी तो उन्होंने इसका विरोध करना शुरू किया और जैसे ही उन्होंने प्रजातान्त्रिक संस्थागत विरोध किया तो वामन मेश्राम ने षड़यंत्र करके गैर-सविन्धानिक तरीके से उन लोगों की इन्क्वारी अपने द्वारा नॉमिनेटेड लोगों के द्वारा कराकर , रिपोर्ट खुद लिखकर, उन लोगों को कांग्रेस,बीजेपी और आरएसएस का बताकर बामसेफ संघठना से बहार कर दिया ! जिन लोगों ने इमानदारी के साथ में डी के खापर्डे के साथ बामसेफ संघठना को खड़ा करने के लिए अपने जीवन के 20-25 वर्ष लगाए थे उन लोगों को वामन मेश्राम ने अपने आप को बामसेफ संघठन में स्थायित्व देने के लिए एक झटके में बदनाम करके निकाल दिया ! डी जे सोम्मया, डी डी कल्याणी, राम गोपाल, शंकर दास, ताराराम मेहना, अभिराम मालिक, रावजी भाई पटेल, परवीन भाई सुथिरिया, बी न लत्ता, बहुत से आदिवासी कार्यकर्ता, सुबचन राम, मल्कियत सिंह बहल, बीर सिंह बहोत, फकीरचंद, स्वामी राम भारती, मुंबई यूनिट के सम्पूर्ण कार्यकर्ता .......आदि-आदि बहुत से देशभर के ईमानदार, निष्ठावान कार्यकरों के ऊपर कांग्रेस, बीजेपी और आरएसएस के द्वारा ख़रीदे जाने का लाक्षण लगाकर बामसेफ संघठन से बहार किया ! आज हालत यह है कि उसके पास आज की तारीख में कोई भी इमानदार एवं लगनशील एवं जागरूक पुराना कार्यकर रह ही नहीं गया है और अगर वह है तो निष्क्रिय बना हुवा है, हालात के भरोसे पर है !
बहराल 2003 के बाद भी जिन कार्यकरों को वामन मेश्राम ने कांग्रेस, बीजेपी या आरएसएस के द्वारा ख़रीदे जाने का आरोप लगाकर बामसेफ संघठन से बहार किया, अगर उनको करोड़ों रुपया ब्राह्मणों से मिला होता तो निकाले गए सभी लोग भौतिकवादी हो गए होते और उनको बहुजन समाज के अन्दर डा आंबेडकर के अनुसार विचार-परिवर्तन करने के पापड़ नहीं बेलने पड़ते ! लेकिन हम पर्यवेक्षण कर रहें हैं कि यह सब निकाले गए लोग अभी भी समाज के अन्दर विचार-परिवर्तन का कार्य बदस्तूर कर रहे हैं ! सोम्माया, कल्याणी, रावजी पटेल, लत्ता, बहोत, बहल, सुबचन राम, ताराराम मेहना, मुंबई यूनिट के सम्पूर्ण कार्यकर्ता ............आदि सभी कार्यकर्ता जन-जागरण का आन्दोलन अपने-अपने तरीके से चला रहे हैं ! अगर यह निकाले गए कार्यकर्ता अभी भी इमानदारी, निष्ठां के साथ तन-मन-धन से विचार-परिवर्तन का समाज में रहकर कार्य कर रहे हैं तो फिर बामसेफ में दोषी कोन ? जाहिर है वामन मेश्राम ही बामसेफ संघठन को मौलिक रूप से संघठन के अन्दर अपने आप को स्थायित्व प्रदान करने के कारण, संघठन को अन्दर से कमजोर करने के लिए जिम्मेदार है ! बामसेफ के कार्यकर्ता यह जानते हैं कि दुनिया में किसी भी परिवर्तन के लिए बुद्धिजीवी लोग जिम्मेदार होते हैं और बुद्धिजीवी लोग ही साधारण लोगों को उद्देश्य के लिए लामबद्ध करके क्रांति कर सकते हैं – यह बुद्धिजीवी लोग वामन मेश्राम के संघठन में कहाँ हैं ? जो गलती से वहां अपने आप को बुद्धिजीवी समझते है, उनकी अपना स्वंयं का पत्ता बामसेफ से कटने के डर के कारन, वामन मेश्राम के गैर संस्थागत व्यवहार के विरोध में बोलने की औकात नहीं है और जिनकी गलत आचरण का विरोध करने की औकात नहीं होती वह बुद्धिजीवी कैसे कहे जा सकते हैं ? वामन मेश्राम बुद्धिजीवी के नाम पर चालाक, धोकेबाज़, हरामखोर, फरेबी, षड्यंत्रकारी, स्वार्थी, और गैर संस्थावादी प्रवत्ति का है ! ऐसे लोग फुले-आंबेडकर की विचारधारा का उपयोग करके समाज का आन्दोलन खड़ा करने के नाम पर, लोगो को झूटे दिवास्वपन दिखाकर अपनी दुकानदारी तो चला सकते हैं लेकिन आन्दोलन कभी सफल नहीं कर सकते हैं ! हाँ ज्यादा से ज्यादा पुना-पैक्ट के तहत दो-चार दलाल-भड़वों की संख्या में, मूलनिवासी समाज को त्रस्त करने के लिए, इजाफा अवश्य कर सकते हैं ! जिन लोगों को और जिन लोगों के रास्ते को वह कॉपी (imitate) करके व्यक्ति-आधारित आन्दोलन चला रहा है , उन लोगों के आन्दोलन का पहले से ही व्यक्ति-आधारित होने के कारण ब्रह्मनिकरण हो गया है और उनका आन्दोलन अब ब्राह्मणों के हित-संवर्धन का साधन बन गया है ! आंकलन-शील एवं समझदार बामसेफ के कार्यकर्तावों को इतिहास के संधर्भ में यह ध्यान रखना होगा कि व्यक्ति-आधारित (मसिहावादी)-non-institutional आन्दोलन जो कांशीराम साहेब ने बामसेफ से अलग होकर एकतरफा निर्णय लेकर राजनैतिक पार्टी के माध्यम से चलाया था उस आन्दोलन का उनके निर्वाण के पश्चात ही ब्रह्मनिकरण हो गया और उनका आन्दोलन ब्राह्मणों के हित-संवर्धन का साधन मात्र बन के रह गया है इसको तो हम अपनी आँखों से देख ही रहे हैं – यानी के मूलनिवासी समाज के लिए क्रांति करने का जो मॉडल पहले ही ध्वस्त हो गया, उसी मॉडल को imitate करके व्यक्ति-आधारित (मसिहवादी) आन्दोलन की निर्मती करके वामन मेश्राम कैसे सफल हो सकता है ? कार्यकर्तावों को सम्पूर्ण मूलनिवासी समाज हित में इतिहास से सबक लेना ही होगा और सफल क्रांति करने के तथागत गौतम बुद्धा के विशुद्ध संस्थागत मॉडल को अपनाना ही होगा अन्यथा देर-सबेर इतिहास उनको सबक सिखा ही देगा- इसमें कोई दो राय नहीं है ! 
बामसेफ एकीकरण समिती ने गहराई से बामसेफ के इतिहास का प्रयवेक्षण किया है, इसके आन्दोलन को क्षति पहुंचाने वाले कुछ स्वार्थी लोगों के दांवपेंच का अध्ययन गहराई से किया है और समिती इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि यदि भारत में फुले-अम्बेडकरी मिशन को प्रस्थापित करना है तो इसके लिए आवश्यक रूप से हमें अपने पूर्वजों कि महान संस्थागत कार्यशैली का और संस्थागत व्यवहार का अवलंबन करना पूर्व शर्त होगी ! इन पद्धतियों का अवलंबन करके ही हम अपने समाज की विशाल क्रांतिकारी संस्था निर्माण कर सकते हैं तथा इसके प्रभाव क्षेत्र के कारण ही हम आज के समय में ब्राह्मणों के टूल बन गए अनेकों व्यक्ति-आधारित (व्यक्ति अर्थात मसीहा निर्माण करने वाले संघठनों ) को निष्प्रभावी करने में सफल हो सकते हैं ! ऐसा अगर हम करते हैं तो ही मुक्ति संभव होगी अन्यथा सालो-साल काम करने के बाद व्यक्ति निर्माण कि प्रक्रिया में लगे हुवे कार्यकरों के अन्दर बार-बार निराशा और हताशा निर्माण होगी जो और अंत में एक लम्बे समय के बाद ऐसे लोग ब्राह्मणवाद को अपने आप को surrender कर देंगे ! दूसरी बात यह है कि बामसेफ का नियंत्रनात्मक ढांचा (Controlling Structure), क्रियाशील ढांचा (Functional Structure) और व्यवहारात्मक ढांचा (behavioural Structure) अच्छी तरह से डॉक्यूमेंट नहीं है जिसके कारन समय-समय पर कुछ चालाक लोगों ने इसकी कमजोरी का फायदा उठाते हुवे दांव-पेंचों का इस्तेमाल करते हुवे स्वंयं-स्वार्थ-सिद्धि हेतु इसके आन्दोलन को क्षति पहुंचाई है, इसलिए इसके सविंधान को मजबूत और workable बनाए बैगेर arbitrarily कार्य करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है ! 2-3 मार्च को मुंबई में हुई आल इंडिया बामसेफ यूनिफिकेशन समन्वय समिती की बैठक में यह फैसला लिया गया कि इस तरीके से काम करने के लिए बामसेफ के सविंधान को restructure करने कि जरूरत है जिसके लिए वहां पर एक अड़-होक कमिटी का निर्माण किया गया है ! आल इंडिया बामसेफ यूनिफिकेशन समन्वय समिती के कार्यक्रम को वामन मेश्राम को छोड़कर लघभग समस्त बामसेफ के गुटों ने सैधांतिक समर्थन दिया है और एक साथ मिलकर कार्य करने कि इच्छा को प्रबल तरीके से व्यक्त किया है ! वामन मेश्राम ने आल इंडिया बामसेफ यूनिफिकेशन समन्वय समिती के कार्यक्रम में निमंत्रण दिए जाने के बावजूद भी अपना कोई प्रतिनिधि न भेजकर यह पुन: सिद्ध कर दिया है कि वामन मेश्राम बामसेफ के नाम पर, समाज के संसाधनों की लूट-खसोट करने के लिए, अपनी दूकान स्वंयं स्वार्थ पूर्ति हेतु ख़त्म नहीं करना चाहता है, संस्थागत नहीं होना चाहता है ! प्रजातान्त्रिक और गणतांत्रिक पद्धतियों का अवलंबन करते हुवे restructuring ad-hoc समिती ने वामन मेश्राम के साथ-साथ अन्य समस्त पक्षों को अपने कम से कम दो लोगों को नोमिनेट करने का फिर लिखित तौर पर आग्रह किया है ताकि मूलनिवासी बहुजन समाज हित में बामसेफ के एक मजबूत एवं डायनामिक सविंधान का निर्माण किया जा सके ! जो पक्ष अभी भी इस समिति में अपने लोगों के नाम समय रहते नहीं भेजेंगे, मूलनिवासी बहुजन समाज के समक्ष उन पक्षों का नाम सार्वजनिक किया जाएगा ताकि उनकी छिपी हुई मंशा को उजागार किया जा सके ! दी गयी जानकारी के संधर्भ में प्रत्येक बामसेफ पक्ष के जमीनी कार्यकरों को अपने-अपने नेत्रत्वों के ऊपर एकीकृत होने के लिए दबाव अवश्य निर्माण करना चाहिए जिससे सफल क्रांति के रास्ते को प्रसस्त किया जा सके !
जय मूलनिवासी !

आपका मिशन में, 

चमन लाल 
Coordinator (BAMCEF constitution restructuring committee)
बामसेफ के एकीकरण की प्रासंगिकता
Like ·  ·  · 19 hours ago
  • Rajesh Borkar likes this.
  • Nirwan Bodhi भाई चमनलालजी.. आपके उपरोक्त प्रवचन में झूठ जादा है और सच कम है.. मैं आपसे
    ये जानना चाहता हूं की बामसेफ की स्थापना के पहले मान्यवर कांशीरामजी ने अपना
    कौनसा संगठन खोला था.. और उस संगठन में मान्य. डी.के. खापर्डेजी का कौनसा रोल
    था.. आप पहले ये स्पष्ट करें.
    . उसके बाद ही हम आपके लिखे हुए एक एक मुद्दों पर
    चर्चा करेंगे.. वामन मेश्राजी तो अभी बहोत दूर है.. हम लोग इस चर्चा को १९७१
    से शुरुआत करते है.. तो फिर से मैं आपको पुछना चाहता हू. की बामसेफ के स्थापना
    के पहले मान्यवर कांशीरामजी ने अपना कौनसा संगठन खोला था.. उस सगंठन का नाम
    बताईये... जयभीम..
    15 hours ago via  · Like · 1

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