गढ़वाली लोकगीत : सतपुली की त्रासदी
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 01-02 || 15 अगस्त से 14 सितम्बर 2011:: वर्ष :: 35 :September 19, 2011 पर प्रकाशित
[यह गढ़वाली लोकगीत सन् 1951 की सतपुली की भीषण त्रासदी का वर्णन प्रस्तुत करता है।]
http://www.nainitalsamachar.in/garhwali-folksong-on-satpuli-tragedy/
गढ़वाली लोकगीत : सतपुली की त्रासदी
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 01-02 || 15 अगस्त से 14 सितम्बर 2011:: वर्ष :: 35 :September 19, 2011 पर प्रकाशित
[यह गढ़वाली लोकगीत सन् 1951 की सतपुली की भीषण त्रासदी का वर्णन प्रस्तुत करता है।]
द्वी हजार आठ भादो मास,सतपुली मोटर बगीन खास।
औडर आई गये कि जाँच होली,पुर्जा देखणक इंजन खोली।
अपणी मोटर साथ मां लावा,भोल होली जाँच अब सेई जावा।
सेई जोला भै बन्धो बरखा ऐगे,गिड़-गिड थर-थर सुणेंण लैगे।
सुबेर उठीक जब आयाँ भैर,बगीक आईन सादंन खैर।
गाड़ी का भीतर अब ढुंगा भरा,होई जाली सांगुड़ी धीरज धरा।
गाड़ी की छत मां अब पाणी ऐगे,जिकुड़ी डमडम कांपण लेगे।
अपणा बचण पीपल पकड़े,सो पापी पीपल स्यूं जड़ा उखड़े।
दगड़ा का भै बन्धो तुम घर जाला,सतपुली हालत जिया ब्वे मुं लाला।
शिवानन्दी कु छयो गोवरधन दास,द्वै हजार रुपया छै जैका पास।
डाकखानों छोड़ीक तैन गाड़ी लीने,तै पापी गाड़ीन कनो धोका दीने।
हे पापी नयार कमायें त्वैकू,मंगसीरा का मैना ब्यो छायो मैकू।
काखड़ी मुंगरी बूति छाई ब्वैन,राली लगी होली नी खाई गैंन।
जैंक वैंक बोलण रोण नीच वैक,आंख्यू न फूटण कैल देण त्वेक।
संकलन – ए.पी. 'घायल'
भावार्थ: 2008 के भाद्रमास में सतपुली में मोटर बही। आर्डर आया कि अपनी मोटर की जाँच कराओ। इंजन खोलकर पुर्जे दिखलाओ। अपनी मोटर को साथ में लाओ। कल होगी जाँच अभी सो जाओ। भाई बंधु सो गये तो वर्षा ऐसी आई, गड़गड़ना और थरथराना सुनाई देने लगा। सुबह उठकर जब बाहर आए तो देखा कि नदी में सादण और खैर के पेड़ बहकर आ रहे हैं। हांक लगाई कि गाडि़येां के भीतर पत्थर भरो, बचाव हो जायेगा, धीरज धरो। पर गाड़ी की छत तक ही पानी आ गया। जिगर डम-डम काँपने लगा जो अपने को बचाने पीपल के पेड़ की डाली थामी, पर वो पापी पीपल का पेड़ तो जड़ समेत उखड़ गया। साथी भाई तुम अब घर जाओगे और सतपुली के हाल अपनी माँ को सुनाओगे। बताना कि शिवानन्दी का गोवर्धन भी वहाँ था, जिसके पास दो हजार रुपये थे। डाक खाने की नौकरी छोड़ उसने गाड़ी ली तो उस पापी गाड़ी ने उसे धोखा दे दिया।
हे पापी नयार क्या मैने तेरे लिए कमाया। मंगशीर के महीने में मेरा ब्याह तय था। माँ ने ककड़ी, मूली बोई थी जो हुई होगी तो उनको खाने वाला नहीं रहा। माँ की आँखे चली गयी अब तेरे को कौन देगा।
सतपुली की वह भीषण बाढ़ !
अनुसूया प्रसाद 'घायल'
जनपद पौड़ी की नयार घाटी की चौंदकोट जनशक्ति सड़क, दगलेखर, दुधारखाल व सतपुली, बाघाट, घंडियाल कांसखेत मोटर मार्ग समेत कई सड़कें बीते वर्ष सितम्बर की अतिवृष्टि से बर्बाद होने के बाद इस एक वर्ष भी ठीक नहीं हो सकी हैं और इस जुलाई-अगस्त में नई आफत पैदा कर दी है। नेशनल हाइवे-119 सतपुली से ज्वालपाधाम पाटीसैंण तक कई स्थानों पर आवाजाही लायक नहीं रह गया है। जनता के श्रमदान से बना चौंदकोट जनशक्ति मोटर मार्ग सतपुली से तीन किमी दूर चौंदकोट प्रवेश द्वारा जमरिया तोक में 16 अगस्त से वाहनों के लिये ठप्प है। इस कारण जिले के एकेश्वर, पोखड़ा, पाबौ, बौरीखाल, धुलीसैंण विकासखंडों के सैकड़ों गाँवों में राशन, कैरोसीन, एलपीजी आदि की आपूर्ति प्रभावित हुई है। यह सड़क पूर्वी गढ़वाल को एक ओर कोटद्वार दिल्ली एन.एच से तो जोड़ती है तो दूसरी ओर रामनगर के रास्ते कुमाऊँ जाने का शॉर्टकट भी है। लाखों रु. खर्च होने के बाद भी 200 मीटर तक धँसी इस सड़क का उपचार नही हो सका है। नयार नदी की मनियारस्यूँ पट्टी के सैकड़ों गाँवों में पैदल आवाजाही के लिये बना पुल पिछले वर्ष पूर्व नयार नदी की बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुआ था। इस बार यह 17 अगस्त से फिर बंद पड़ा है। आपदा प्रबंधन के मद से चार लाख रु. की धनराशि मिलने के बावजूद काम न होने से यह विकट स्थिति आई है। नयारघाटी सतपुली क्षेत्र की अनेक सड़कें भूस्खलन व दरकती चट्टानों की जद में हैं। क्षेत्र के दर्जनों सिचाई गूलें, स्कूल भवन, निजी मकान प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ चुके हैं। गौरतलब है कि सूबे के आपदा प्रबंधन मंत्री त्रिवेन्द्र रावत नयारघाटी के खैरासैंण के मूल निवासी हैं तो आपदा प्रबंधन अनुश्रवण समिति के उपाध्यक्ष तीरथ सिंह रावत असवालस्यूँ पट्टी के सीरौं गाँव के।
सतपुली में 62 वर्ष पूर्व पूर्वी नयार नदी की बाढ़ में बही 22 मोटर गाडि़यों व तीस ड्राइवर, कंडक्टरों की जलसमाधि की घटना आज भी लोकगीतों के रूप में इस क्षेत्र के जनमानस में ताजा है। 14 सितम्बर 1951 को सतपुली कस्बे में बाईस मोटर गाडि़याँ नयार नदी में बह गई थीं। उस दौर में यह एक बड़ी आपदा मानी गई। इन लोगों की याद मे गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट यूनियन ने साठ के दशक में एक शिलालेख सतपुली के निकट सिमराली तोक में स्थापित किया था। वर्ष 1975 तक यूनियन के लोग प्रति वर्ष 14 सितम्बर को यहाँ आकर इन शहीदों को याद करते थे। फिर यह परंपरा जाती रही।
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