'कविता तय करेगी, बल्ली बिक गया या निखर आया'
जनकवि बल्ली सिंह चीमा को राष्ट्रपति से सम्मान
'तय करो किस ओर हो, आदमी के पक्ष में हो या फिर आदमखोर हो', जैसी दर्जनों जनपक्षधर गजलें-कविताएं लिखने वाले कवि बल्ली सिंह चीमा को पिछले दिनों राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने हिंदी की सेवा के लिये विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया.जनकवियों की श्रेणी में बल्ली सिंह चीमा एक जाना पहचाना नाम है.हिंदी में गजल को स्थापित करने वाले दु'यंत कुमार की अगली पीढ़ी के कवियों में शुमार बल्ली ने जनवादी आंदोलन को अपनी बेहतरीन रचनाएँ दी हैं.'ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के', कविता को आंदोलनकारी बड़े उत्साह से गाते हैं.इस मौके पर जनज्वार ने उनसे विशेष बातचीत की...
बल्ली सिंह चीमा से सलीम मलिक की बातचीत
आज का कवि वृहत सामाजिक दायरे से कितनी दूर, कितने पास है?
मौजूदा दौर के ज्यादातर कवि महानगरों में बैठकर रचनाकर्म की औपचारिकता निभा रहे हैं.कविताओं में दम तोड़ते किसानों, बिक चुके खेत-खलिहान व किसानों की दुर्दशा का जिक्र नहीं दिखता.भूमंडलीकरण के कारण विस्थापन व अन्य समस्याओं के कारण दसियों लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन कविता के बड़े फ्रेमवर्क में इस मर्म को नहीं समझा गया. 'कीटनाशक खेत में डाले बिना पौधे नहीं बचते, डाल दें तो फिर कबूतर-मोर-तोते नहीं बचते' की चिंता आज किस कवि को है.
आप छंद में लिखने वाले प्रगतिशील धारा के कवि हैं, लेकिन यह धारा तो अब छंद को कविता ही नहीं मानती?
छंद की जगह गद्य परम्परा हावी होने से वास्तविक कविता हाशिये पर चली गयी है.गद्य को ही मुख्यधारा की कविता का रूप दिया जा रहा है.शासक वर्ग के लिये छन्द कविता मुनासिब नहीं होती है, इसलिये वह भी गद्य कविता को प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न पुरस्कारों को आयोजित कर रहा है.
मगर छंद कविताओं में फूहड़ता की भरमार है?
मुझे इसका अफसोस है कि मंचीय कवियों में सरोकारी कम, बाजारू ज्यादा हैं.छन्द व गद्य का अंतर तक न जानने वाले कवि मंचों पर कब्जा जमाये बैठे हैं.लेकिन जनपक्षीय कवि मंचों को अछूत मान लेंगे तो कविता का यह लोकप्रिय माध्यम उजड़ तो नहीं जायेगा.अगर खेत उर्वर हो और उसमें फसलें न बोयें तो उसमें झाड़-झंखाड़ ही तो उगेगा.किसी दौर में कविता कान की चीज होती थी, लेकिन आज कविता के नाम पर हो रही फूहड़ता ने उसे आंख की चीज बनाकर छोड़ दिया है.वामपंथी कवि छन्द की जगह गद्य कविता की पुरजोर वकालत करते हैं.
बल्ली को सम्मान
अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार 2000 सागर (मध्य प्रदेश)
देवभूमि रत्न सम्मान 2004 मसूरी (उत्तराखण्ड)
कुमायूं गौरव सम्मान 2005 हल्द्वानी (उत्तराखण्ड)
पर्वतीय शिरोमणि सम्मान 2006 देहरादून (उत्तराखण्ड)
कविता कोश सम्मान 2011 जयपुर (राजस्थान)
जनवादी आंदोलनों में कविता की क्या भूमिका है?
जनवादी कविता आंदोलन के ताप-तेवर को बनाये रखने में मददगार होती है, लेकिन कविता ही आंदोलन की जनक नहीं है.यह धारणा गलत है कि किसी कविता के दम पर कोई क्रान्ति या आंदोलन को खड़ा किया जा सकता है.कविता किसी भी आंदोलन की सहायक भूमिका में हो सकती है, कविता जनांदोलन की जमीन को तैयार करने में अपनी भूमिका निभा सकती है.लेकिन लेकिन आंदोलन की भूमिका तैयार करने लायक कवितायें लिखने के लिये भी कवि का जनता के बीच से होना जरुरी है.कविता के माध्यम से भी आंदोलन को तभी लाभ मिल सकता है जब स्वंय कवि भी जनांदोलनों में शिरकत कर जनता के बीच में रहकर रचनाओं को जन्म दे.जनांदोलन होता है तभी बेहतर कविता का भी उदभव होता है.
इसका कोई भेद आप आज महसूस करते हैं?
आंदोलनों की कोख से पैदा होने वाली कविता और वातानुकुलीत माहौल में बैठकर लिखी गयी कविता के बीच के भेद बहुत साफ है.कविता पर आया संकट उन्हीं के लिए है जो जनकवि नहीं हैं.आज भी जनकवियों को जनता का वही सम्मान मिल रहा है, जिसके वह हकदार है.
एक कवि को स्थापित करने में प्रकाशकों की क्या भूमिका हुआ करती है?
बड़ी भूमिका हो सकती थी, लेकिन प्रका"ाक कविता के साथ भेद-भाव करते हैं।प्रकाशक जानबूझकर कविताओं के जनसंस्करण न निकालकर साजिशन कविताओं को जनता से दूर करते हैं.मौजूदा दौर में भले ही कविता हाशिये पर पहुंच गयी हो लेकिन फिर एक दिन आयेगा जब कवि जनता के बीच से ही कविता की रचना करेंगे और कविता अपना पुराना गरिमामय स्थान पाने में सफल होगी।
आपकी एक कविता- 'मैं अमेरिकन पिठठू, तू अमेरिकी लाला है, आजा मिलकर लूटे-खायें कौन रोकने वाला है' के मद्देनजर राष्ट्रपति से सम्मान लेने पर आलोचना हो रही है और कहा जा रहा है आपकी कविताओं की धार कुंद हो रही है ?
सरकार द्वारा सम्मान स्वरुप दी गयी राशि जनता का ही पैसा है, जिसको लेकर मैंने कुछ गलत नही किया है.आरोप लगाने वाले भी सरकार द्वारा प्रदत्त सब्सिडी की सुविधाओं का भोग करते है.जहां तक कविताओं की धार कुन्द होने की बात है तो यह भवि'य में मेरी आने वाली रचनायें तय करेंगी कि बल्ली सम्मान राशि में बिक गया या और निखर गया।'
सलीम मलिक उत्तराखंड में पत्रकार हैं.
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