पुलिस वाले काफी नज़दीक आ गये थे. पुलिस वाले उसे देख कर चिल्लाये और पुलिस ने गोली चला दी.कोसी ने अपने हाथ ऊपर उठा दिये और चिल्लाई मुझे मत मारना मैं नहीं भागूंगी. तभी धांय से एक गोली कोसी के उठे हुए हाथ में घुस गयी...
हिमांशु कुमार
कोसी एक आदिवासी लड़की है . कोसी जब मुझे मिली उसकी उम्र सोलह या मुश्किल से सत्रह की होगी . कोसी का घर पुलिस ने जला दिया था. कोसी का परिवार जंगल में छिप कर रहता था . कोसी के गाँव वाले बताते हैं हमारा गाँव जलाने फिरकी वाले जहाज से काले कपडे वाले सिपाही आये थे . कुछ स्थानीय पत्रकार इस बात की तस्दीक करते हैं . उनका कहना है कि दिल्ली से कमांडोज़ आये थे और उन्हें इस इलाके में एयर ड्रॉप किया गया था.
कोसी का गाँव वीरान पड़ा था. घर जले हुए थे .इमली आम महुआ जामुन पकते थे और ज़मीन पर गिर कर सड़ जाते थे. कोई खाने वाला ही नहीं बचा था . खेती की हर कोशिश को सुरक्षा बलों ने और सलवा जुडूम ने नाकाम कर दिया था . जब भी फसल पक कर तैयार होती जला दी जाती.
जंगल में छिपे छिपे कोसी से माँ और छोटी बहन की भूख नहीं देखी गयी . गाँव में इमली पक चुकी थी . कोसी ने फ़ैसला किया कि वो गाँव में जायेगी , इमली तोड़ेगी , एक टोकरी इमली जमा करेगी और चालीस किलोमीटर दूर आंध्र के चेरला बाज़ार में वो इमली बेच कर माँ और बहन के लिये चावल लाएगी.
कोसी ने अभी पेड से इमली गिरानी शुरू ही की थी तभी धांय की आवाज़ आयी . कोसी ने देखा पुलिस और सलवा जुडूम ने गाँव को फिर से घेर लिया है . ये लोग बीच बीच में ये देखने आते थे कि कि आदिवासी फिर से अपने गाँव में वापिस तो नहीं आ गये ?
कोसी भागने के लिये नीचे उतरने लगी. पुलिस वाले काफी नज़दीक आ गये थे . कोसी ने पेड से छलांग लगा दी . पुलिस वाले उसे देख कर चिल्लाये और पुलिस ने गोली चला दी . कोसी ने अपने हाथ ऊपर उठा दिये और चिल्लाई मुझे मत मारना मैं नहीं भागूंगी . तभी धांय से एक गोली कोसी के उठे हुए हाथ में घुस गयी . दूसरी गोली ने कोसी की जांघ चीर दी .
सलवा जुडूम और पुलिस वालों ने कोसी से पूछताछ की , उसने बाप का नाम वगैरह बताया . और बताया कि वह इमली तोड़ने आयी थी . पुलिस वाले हंस कर पूछ रहे थे और इमली चाहिये ? पुलिस वाले हँसते रहे और कोसी का मजाक बनाते रहे .
कोसी को उसी हालत में चला कर थाने लाया गया .वहाँ से उसे अगले दिन कोर्ट में भेजा गया . पुलिस ने कहा यह नक्सली महिला है .इसने पुलिस पार्टी पर फायरिंगकी .पुलिस की जवाबी फायरिंग में यह घायल हो गयी है . जज साहब ने उसे जेल भेजने पर पहले इलाज करने का आदेश दे दिया .
कोसी दो साल जेल में रही . कोर्ट में कोसी पर कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ . जिला अदालत दंतेवाड़ा ने कोसी को बाइज्जत बरी कर दिया .
हमारी संस्था ने कोसी के गाँव को दुबारा बसाने का काम शुरू किया . कोसी की दोस्ती मेरी पत्नी और मेरी बेटियों से हो गई थी . कोसी अक्सर हमारे आश्रम में आती थी . एक बार वो हमारी कार्यकर्ताओं के साथ बिनायक सेन रिहाई सत्याग्रह में शामिल होने रायपुर भी गयी थी .
कोसी के हाथ पर गोली का निशान था लेकिन उसके मन पर कोई निशान नहीं था .
वो वैसे ही निश्छल मुस्कान हँसती थी जैसे उस उम्र की एक बच्ची को हंसना चाहिये . उसके मन में पुलिस या सरकार के लिये कोई गुस्सा भी नही था . वह उस पर हुए हमले के बारे में पूछने पर हंसने लगती फिर अपने हाथ पर बना गोली का निशान दिखा देती और हंस देती थी .कोसी शायद जंगल में अभी भी कहीं हंस रही होगी .
इधर दिल्ली में मेरे सामने कोसी की फ़ाइल रखी है . जज साहब ने अपने फैसले में लिखा है ........अभियुक्ता के पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ है . ना ही घटना स्थल से कोई खाली कारतूस बरामद हुआ है ....इस घटना के गवाहों ने भी अभियुक्ता द्वारा पुलिस पर फायरिंग की घटना देखने से इनकार किया है ... अदालत अभियुक्ता को बाइज्जत बरी करती है .
यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह मामला कभी भी किसी अखबार में नहीं छपा .
आदिवासियों के मानवाधिकार के लिए हिमांशु कुमार का संघर्ष और लेखन एक मिसाल है.
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