---------- Forwarded message ----------
From:
Samyantar <donotreply@wordpress.com> Date: 2012/6/27
Subject: [New post] पत्र : अंग्रेजी का कमाल
To:
palashbiswaskl@gmail.com New post on Samyantar | | पी.साइनाथ और अरुंधती के लेख के अनुवादों के संपादन के बारे में एक निवेदन है। मैंने गौर किया कि आपने 'तेंडुलकर' को बदलकर 'तेन्दुलकर' और 'रॉकअफेलर' को 'रॉकफेलर' कर दिया है। चूंकि मराठी में बोला और लिखा 'तेंडुलकर' ही जाता है, इसलिए उसे बदलकर 'तेन्दुलकर' (हालांकि मैंने हिंदी मीडिया में इसी का प्रचलन देखा है) लिखना मेरे विचार में उचित नहीं होगा। ये वैसे ही होगा जैसे मराठी वाले 'डबराल' के अंग्रेजी हिज्जे पढ़कर 'दबराल' लिखें (वैसे मराठी मीडिया भी वही गलती करके 'धोनी' को 'ढोणी' लिखता है)। उसी तरह, मेरे विचार में, सही उच्चारण के हिसाब से हिंदी में रॉकअफेलर ही लिखा जाना चाहिए। - भारत भूषण, पुणे हम भारत भूषण से पूरी तरह सहमत हैं कि कम से कम भारतीय नामों को उनके मूल उच्चारण के अनुरूप ही लिखा जाना चाहिए। पर संचार माध्यमों पर अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते और नामों के रोमन में लिखे जाने के कारण अक्सर ही उच्चारणों को लेकर गलती होती है। हम भविष्य में सुनिश्चित करेंगे कि तेंडुलकर ही लिखा जाए। इस सफाई की जरूरत नहीं है कि हम भी हिंदी में प्रचलित हिज्जों के ही शिकार रहे हैं और हैं। इस समस्या का एक और रूप भी है, वह जरा जटिल है। भाषाएं अक्सर विदेशी या पराये शब्दों को अपने हिसाब से भी इस्तेमाल करती हैं। उदाहरण के लिए भारत में ही ग्रीस को यूनान कहना या हिंदुस्तान को इंग्लैंड में इंडिया कहना। यह भिन्नता प्रांतीय स्तर पर भी है। अब मुश्किल यह है कि कुछ शब्द गलत होने के बावजूद स्वीकृत हो चुके हैं उन्हें अचानक सुधारने की कोशिश कई तरह की दिक्कतें पैदा करती है। उदाहरण के लिए मास्को को मस्क्वा लिखना शुरू करना या पेरिस को पारी आदि। लगभग यही किस्सा 'रॉकअफेलर' के साथ भी है। हिंदी में जो उच्चारण और हिज्जे इस्तेमाल में हैं उनके अनुसार रॉकफेलर ही प्रचलित हो चुका है। इसलिए हमने वही इस्तेमाल किया है। इस संदर्भ में देखने लायक यह है कि रोमन ने भारतीय भाषाओं में क्या धुंध मचाया हुआ है। भारतीय क्रिकेट कप्तान को जो कि एक हिंदी प्रदेश में रहता है और दूसरे हिंदी प्रदेश का रहनेवाला है की जाति को धोनी कहा और लिखा जाता है। यह उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की एक जाति है जो कि धोनी नहीं बल्कि 'धौनी' है। और स्थानीय स्तर पर यह कोई अपरिचित जाति भी नहीं है क्योंकि एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी इसी जाति के थे। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि हिंदी पत्रकारिता और साहित्य में अनगिनत उत्तराखंडी हैं इसके बावजूद यह गलती चल रही है। इसे देखते हुए अगर मराठी में डबराल का 'दबराल' या धोनी (धौनी) का 'ढोणी' होता है तो बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दुख की बात यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर हमारी ओर से ऐसा कोई संगठित प्रयास नहीं है जो भारतीय नामों को रोमन लिपि की इस विकृति से बचा सके। - संपादक | | | | |
No comments:
Post a Comment