---------- Forwarded message ----------
From: Bhishma Kukreti <bckukreti@gmail.com>
Date: 2012/6/26
Subject: कुरेड़ी फटेगी ; कथा संग्रह गढवाली कथा माल़ा कु एक अमूल्य रत्न
To: kumaoni garhwali <kumaoni-garhwali@yahoogroups.com>
कुरेड़ी फटेगी ; कथा संग्रह गढवाली कथा माल़ा कु एक अमूल्य रत्न
Regards
B. C. Kukreti
From: Bhishma Kukreti <bckukreti@gmail.com>
Date: 2012/6/26
Subject: कुरेड़ी फटेगी ; कथा संग्रह गढवाली कथा माल़ा कु एक अमूल्य रत्न
To: kumaoni garhwali <kumaoni-garhwali@yahoogroups.com>
कुरेड़ी फटेगी ; कथा संग्रह गढवाली कथा माल़ा कु एक अमूल्य रत्न
(प्रताप शिखर अ गढ़वाली कथा संग्रह 'कुरेड़ी फटेगी ' (१९८९) क छाण- निराळ )
भीष्म कुकरेती
गढवाली कथों विकास मा भग्यान प्रताप शिखर कु मिळवाक (योगदान) नि-बिस्मरण लैक च. प्रताप शिखरों (१९५२-२०१२) जनम कोटि गौं, पट्टी कुणजी, टिहरी गढवाळ मा ह्व़े थौ. एम्.ए एल टी इलै कौर छयाई कि मास्टर बौणिक परिवारों आर्थिक दस मा सुधार लाला पण युवा प्रताप कु जनम कुछ हौरी बाटु खुणि ह्व़े छौ. प्रताप शिखर गाँ-गौळ (सामाजिक) का काम मा ताजिंदगी लग्यां रैन . मध्य-निषेध का बान जेल जातरा, उंकी असकोट-आराकोट (१९७४) अर दोहरी सिक्षा नीति विरुद्ध लखनऊ-देहरादून जातरा प्रसिद्ध छन.
गढ़वाली कथा मा वो संलग्न छ्या. १९८९ मा उंकी गढवाली कथा -खौळ (संग्रह) -कुरेड़ी फटेगी मा छपी .
ये गढवाली कथा -खौळ (संग्रह मा नौ कथा छन ( निबंध अर समळौण मिलैक) ड़ --
चंद्रैण - कृपाली मिड्डल पास च . टीरी माराज वै तै पटवारी बणौण चाणु थौ. बुबा ण खेती बादी तै जादा महत्व दिनी त वो खेती बादी करण लगी गे. कृपाली समाज मा रुढ़ वाद को विरोधी छौ अर वै तै वर्ण -विरोध का दंड मा जाती भैर करे दे गे पण वैन हार नि मानि अर फिर एक दिन त जितणो इ छौ. धीरे-धीरे लोग वैक दगड होण मी से गेन
चंद्रैण - कृपाली मिड्डल पास च . टीरी माराज वै तै पटवारी बणौण चाणु थौ. बुबा ण खेती बादी तै जादा महत्व दिनी त वो खेती बादी करण लगी गे. कृपाली समाज मा रुढ़ वाद को विरोधी छौ अर वै तै वर्ण -विरोध का दंड मा जाती भैर करे दे गे पण वैन हार नि मानि अर फिर एक दिन त जितणो इ छौ. धीरे-धीरे लोग वैक दगड होण मी से गेन
परसु मिस्त्री- परसु क बुबा राज-मिस्त्री छौ पण ओड नि बौण सौक.परसु न पैलि पैलि कूड़ चीण . पुळयाट मा कूड़ दिखाणो वैन अपण गुरु बुलाई पण गृह स्वामी न ऊन तै भितर नि आ नि दे किलैकि य़ी हरिजन छ्या.बस परसु न मिस्त्र्यु दगड मीलिक हडताल करी देन.
शक्कु बौराण - वै गाँ मा घास लखडु बडी परेसानी छे.इख तलक कि शक्कु (जेंक पालन मैत मा बड़ो लाड से ह्व़े छौ) चार ब्वार्यू न नदी मा आत्महत्या करणो निश्चय करी पण फिर नि कौर अर तब शक्कु न बांज धरती मा डाळ बूट लगाणो निश्चय करी.
कुरेड़ी फटेगी- रग्गा कि प्रेयसी और कज्याण न सासु-ब्वारी क झगड़ा मा जहर खै दे. फिर कनि कौरिक बचिगे पण याँ से कुरेड़ी फटेगी .
सौ गोती अर एक धोती- मुख्त्यारो चार बेटी थै अर बंश चलाणो परेशानी छे.पण मुख्त्यारन दुसर ब्यौ नि कार अर बेटियूँ तै इ लायक बणै
बच्यां रौला त गोर चरौला- या कथा कै लोक कथा को गढवाली रूप च अर हंसौण्या कथा च
यक्ल्वार्स -- पलायन क कारण बच्चा भैर छन त सरपंच इकुलास भोगणो च हालांकि बच्चा लोग सरपंच तै अपण दगड लिजाणो तैयार छन पण सरपंच अपण ब्व़े बाबुक गाँव छोड़णो तैयार नी च
पूस का जौ----पछा फसल गोर उज्याड़ खावन जां लोक कथा पर आधारित कथा च मूल अपण बुड्या बाबू क नौंनु च अर जब वो ब्वेक पुटुकउन्द छौ वैका बुबा भग्यान ह्व़े गा छा. फिर कनो वैक ब्वें पाळ अर कन वैकी संतति ह्व़े की कथा च पास का जौ.
वसंत बौड़ीक ऐ गे----द्रौपदी हर जुग मा पैदा होंदी. जख द्वापर मा द्रोपदी क दगड श्रीकृष्ण छया ये कलजुग मा द्रोपदी तै इ कृष्ण बणण पोड़ जब वीं पर भरी पंचैत मा भगार लगये गे.पण फिर वींको ह्र्च्यु पति ऐ गे त बसंत बौड़ी क ऐ गे. विषय वस्तु समृद्ध च अर गौं का वतावरण पैदा करण मा कथाकार सफल च.
प्रताप शिखर कि कथों मा लोक निष्ठा अर कल्पना क मिळवाक मिल्द.
हरेक कथा मा सामाजिक समस्या होंदी अर फिर कथाकार वीं समस्या क हल खुज्यांद
हरेक कथाक चरित्र गाँव का अम चरित्र छन अर यूँ चरित्रों बचळयात -वार्ता/संवाद आम गढ़वाळी क संवाद छन .
भाषा आम टिर्याळि च , सुघड़ च, अर लच्छेदार ब्युंत/ शैली मा च
लिख्वार की सोचह एकीस्वीं सदी से अग्वाड़ी क आधुनिक सोच च इलै इ प्रताप शिखर समाज मा जरुरी बदलाव ल़ा णो बान खुजनेरी ब्युंत लांद.
भाषा अर ब्युंत पर लिख्वारो अधिकार च
हरेक कथा गुणी च
'कुरेड़ी फटेगी' कथाखौळ गढवळी कथा माळा को एक अमूल्य रत्न च
कास ! प्रताप शिखर याँ से अग्वाड़ी बि गढवाली कथा लिखदा त !!!!
Copyright@ Bhishma Kukreti, 26/6/2012
Kuredi Fataigi
( Garhwali Story Collection)
by- Pratap Shikhar
Year- 1989
Uttarkhand Jan Jagriti Sansthaan , Khadi Jajal, Tihri garhwal
pin 249175
--
--
Regards
B. C. Kukreti
No comments:
Post a Comment