---------- Forwarded message ----------
From:
Samyantar <donotreply@wordpress.com> Date: 2012/6/25
Subject: [New post] नैट पर समयांतर :
www.samayantar.comTo:
palashbiswaskl@gmail.com New post on Samyantar | | हमें यह कहते हुए प्रसन्नता है कि मई, 2012 से समयांतर अपनी वेब साइट पर फिर से उपलब्ध हो गया है। हमारे लिए सदा यह महत्त्व का रहा है कि समयांतर को पढ़ा जाए। इसी भावना के तहत हमने दो वर्ष पूर्व कोशिश की थी कि संचार में हो रही क्रांति और नेट के महत्त्व को देखते हुए पत्रिका का वेब संस्करण भी उपलब्ध हो। इसके लिए हमारा हिंद युग्म के साथ समझौता हुआ कि हम उसके द्वारा आयोजित कविता प्रतियोगिता की कविताओं को अपने विशेष अंकों में नि:शुल्क छापेंगे और बदले में वह समयांतर को अपलोड करेंगे। इस अनुबंध के बारे में हमने पत्रिका में छापा भी था। पर शुरू से ही यह व्यवस्था लडख़ड़ाती हुई चली और जल्दी ही घिसटने लगी। अंतत: ऐसी स्थिति आई कि हमें इसे समाप्त करने पर मजबूर होना पड़ा। यह सूचना भी हमने अपने पाठकों को समय पर दे दी थी। इस अनुबंध के दौरान समयांतर के कुछ अंक हिंद युग्म के द्वारा हमारी साइट पर अपलोड किए गए थे और बदले में हिंद युग्म द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं की कविताएं और उनके विज्ञापनों को भी नि:शुल्क छापा। अनुबंध को हमारी ओर से बाकायदा सूचना देकर खत्म किया गया था। हमारी साइट पर अपलोड किए गए समयांतर के अंक हमारी संपत्ति थे। अपनी भलमनसाहत या कहिए ना समझी के कारण हमने अपनी वेबसाइट के पासवर्ड को संबंध विच्छेद के बावजूद नहीं बदला था। पर हमें पाठकों ने कुछ महीनों के बाद बतलाया कि वेबसाइट से सारे के सारे अंक अचानक गायब हो गए हैं। यह कैसे हुआ इसको समझना कठिन नहीं था। हमारी साइट में जाने का पासवर्ड हिंद युग्म के शैलेश भारतवासी के पास था। हमें कम से कम कविता और पुस्तकों का धंधा करनेवाले किसी व्यक्ति से इस तरह के अनैतिक आचरण और छोटेपन की आशा नहीं थी। पर जो हुआ वह सबके सामने है। यह पूरा प्रसंग पाठकों के सामने इसलिए रखा है कि हम अपनी हर गतिविधि से पाठकों को सूचित रखते हैं। वैसे इससे समयांतर को कोई फर्क नहीं पड़ा है। न महत्त्व में और न ही प्रसार संख्या में। हां कुछ पाठकों को इससे जरूर असुविधा हुई है। फिलहाल महत्त्वपूर्ण यह है कि हम फिर से नैट पर उपस्थित हैं। भविष्य में समयांतर का चालू अंक हर महीने की 10 तारीख के आसपास उपलब्ध होने लगेगा। यही नहीं हम आशा करते हैं कि जल्दी ही पत्रिका के पिछले अंक भी चरणों में वैब साइट पर उपलब्ध होने लगेंगे। हम यहां यह बतलाना भी जरूरी समझते हैं कि यह काम पत्रिका के एक शुभ चिंतक और मित्र द्वारा किया जा रहा है जिनका प्रचार में विश्वास नहीं है। - संपादक | | | | |
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