रसोई में आग के बीच आम उपभोक्ता अब बिजली का झटका खाने के लिए भी तैयार रहें!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
देश की विकासशील अर्थव्यवस्था को अधिक बिजली चाहिए और इस मांग को पूरा करने में घरेलू कोयला उत्पादन काफी नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बिजली कंपनियों को कोयला आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जारी डिक्री के बावजूद बिजली परियोजनाओं के लिए अब भी ईंधन अब भी भारी सरदर्द बना हुआ है। बिजली उत्पादन की बढ़ती लागत के मद्देनजर सरकार इस संकट से निजात पाने के लिए देशभर में बिजली की दरें बढ़ाने की तैयारी में हऐ। रसोई में आग के बीच आम उपभोक्ता अब बिजली का झटका खाने के लिए भी तैयार रहें।इसी बीच रेटिंग एजंसी फिच ने इस कोयलाजनित ईंधन संकट के लिए भारत की विकास दर बाधित हो जाने की चेतावनी जारी कर दी है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कोयला खनन के क्षेत्र में पर्यावरण से जुड़ी सैकड़ों मामलों के लंबित हो जाने से पैदा हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट में एक ही खंडपीठ में इन मामलों का निपटारा हो रहा है। जिससे कर्नाटक, ओड़ीशा, झारखंड समेत देश के विभिन्न हिस्से में पर्यावरण हरी झंडी के के इंतजार में कोयला परियोजनाएं लटकी हुई है, जिसका सीधा असर बिजली उत्पादन पर हो रहा है। कोयला ब्लाकों के आवंटन के विवाद ने भी पीछा नहीं छोड़ा है।वनक्षेत्र के अलावा पर्यावरण कानून के दायरे से बाहर जो कोयला का विशाल भंडार है, भूमि अधिग्रहण संबंधी समस्या के कारण उसका दोहन भी फिलहाल संभव नहीं है। इस बीच सरकार ने कहा है कि जिन राज्यों में कोयला खानों का आवंटन किया जा रहा है, उन्हें खदानों की नियमित निगरानी के लिए व्यवस्था तैयार करनी होगी और उसके विकास के बारे में तिमाही आधार पर रिपोर्ट सौंपनी होगी।वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह कोयला नियामक विधेयक के मसौदे पर 21 जनवरी को होने वाली बैठक में चर्चा कर सकता है।इस विधेयक के तहत कोयला क्षेत्र के लिए एक नियामकीय प्राधिकरण गठित करने का प्रस्ताव है।कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा, ''यह :कोयला नियामक पर मंत्रिसमूह: 21 जनवरी को बैठक कर सकता है।''उल्लेखनीय है कि कुछ मंत्रियों के गैर.हाजिर रहने की वजह से मंत्रिसमूह की बैठक पहले दो बार टाली जा चुकी है. पहली बार बैठक 18 दिसंबर को होनी थी, जबकि दूसरी बार 4 जनवरी को होनी थी।मंत्रिमंडल ने कोयला क्षेत्र के लिए नियामकीय प्राधिकरण के गठन के विधेयक का मसौदा मंत्रिसमूह के पास भेज दिया था।कोयला मंत्री ने नवंबर में कहा था कि कोयला क्षेत्र के नियामक का गठन करने का जिम्मा थामने वाला मंत्रिसमूह जल्द ही अपनी अंतिम सिफारिशें देगा।
राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित 57वीं राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की बैठक का उद्घाटन करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा देश में ईंधन के दाम कम हैं। कोयला, पेट्रोलियम पदार्थों और प्राकृतिक गैस सभी के दाम उनकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले कम हैं। कुछ खास उपभोक्ताओं के लिये बिजली की प्रभावी दर भी कम रखी गई है।प्रधानमंत्री ने पेट्रोलियम पदार्थों, कोयला और बिजली के दाम धीरे-धीरे बढ़ाने की मजबूत पैरवी करते हुए गुरूवार को कहा कि इन पर दी जाने वाली सरकारी सहायता पर यदि अंकुश नहीं लगाया गया, तो इसका असर जनकल्याण की योजनाओं पर पड़ सकता है।पेट्रोलियाम पदार्थों का हश्र तो सामने है , अब बिजली की बारी है।
बिजली मंत्रालय ने भी विद्युत की दरें कुछ और बढ़ाए जाने के संकेत दिए हैं। दरअसल, मंत्रालय ने कहा है कि बिजली की दरों को कच्चे माल की बढ़ती कीमतों के अनुरूप समायोजित करना है।बिजली सचिव पी. उमा शंकर ने कहा, 'अगर इनपुट (कच्चे माल) की कीमतें बढ़ रही हैं तो आउटपुट (बिजली) की दरें भी बढ़ाकर उसके अनुरूप करनी ही होंगी।' बिजली सचिव ने ऐसे समय में यह टिप्पणी की है जब विद्युत उत्पादन से जुड़े महत्वपूर्ण कच्चे माल जैसे कोयले व गैस की कीमतें बढ़ रही हैं।
भारत में बिजली की पीक-आवर के हिसाब से 13 फीसदी की कमी है। एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में उद्योगों की तरफ से बिजली की मांग में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। साथ ही घरों एवं शॉपिंग मॉल जैसे नए सेगमेंट से भी बिजली की मांग बढ़ रही है। लेकिन, दूसरी तरफ बिजली सेक्टर में यहां निवेश में स्लोडाउन का रुख देखा जा रहा है। परमाणु ऊर्जा को बतौर विकल्प पेश कर रही है सरकार , लेकिन मांग के हिसाब से परमाणु ऊर्जा ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है और उसकी लागत तो और भी ज्यादा है।अगले दो दशक में भारत के सात लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बन जाने की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए इसे बड़ी तादाद में ऊर्जा की जरूरत होगी। जबकि हकीकत यह है कि भारत की ऊर्जा जरूरत का 50 फीसदी कोयले पर निर्भर है। आने वाले दिनों में अगर इस देश में ऊर्जा उत्पादन में तेजी नहीं आई तो इसकी विशाल युवा आबादी के लिए रोजगार का सृजन मुश्किल हो जाएगा।जबकि यहां पर ऊर्जा पर सबसे ज्यादा टैक्स भी है और सब्सिडी भी। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक कार्यक्रम के दौरान यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल के प्रेसिडेंट रोन सोमर्स ने कहा कि अपनी जरूरतों के मद्देनजर भारत को ऊर्जा के विश्वसनीय स्रोतों की तलाश करनी होगी। वह भारत में पंचवर्षीय योजना के जरिये ऊर्जा नीति को साधने के मिथक पर अपनी राय जाहिर कर रहे थे। सोमर्स ने कहा कि उनकी नजर में भारत को हासिल होने वाले तेल और गैस स्रोतों में से अधिकतर के साथ कोई न कोई समस्या है। इनमें भू-राजनैतिक पहलुओं से लेकर स्थानीय मुद्दे तक शामिल हैं। इस सिलसिले में उन्होंने ईरान-पाकिस्तान से लेकर म्यांमार-बांग्लादेश गैस पाइपलाइन की भू-राजनैतिक समस्याएं गिनाईं और बड़े बांधों से विस्थापन जैसे पहलुओं के राजनीतिक संदर्भों का हवाला दिया।उन्होंने कहा कि राजस्थान में केयर्न एनर्जी की ओर से तलाशे गए तेल भंडारों और रिलांयस की ओर से केजी बेसिन में गैस की खोज से भारत की जरूरत पूरी नहीं होगी। उनके हिसाब से भारत में छोटे डैमों से हासिल बिजली और न्यूक्लियर एनर्जी से एक मात्र उम्मीद बंधती है और यह भारत के लिए सबसे मुफीद बैठेगी।लेकिन इसमें भी परमाणु ऊर्जा के मामले में उत्तरदायित्व का मुद्दा सुलझना जरूरी है। उनका कहना था कि भारत अपनी तेल जरूरतों का 70 से 80 फीसदी आयात करता है और यह सरकारी खजाने की तबाही की बड़ी वजह है। भारत पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है लेकिन इसकी विशाल ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए यह नगण्य है।
नये सुधारों से फिलहाल रुपया मजबूत दिख रहा है , लेकिन हकीकत यह है कि डॉलर की तुलना में रुपये में दर्ज की जा रही गिरावट के चलते आयातित कोयले की लागत में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। इससे देश की बिजली कंपनियों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। अब तो इस बात की भी आशंका जताई जाने लगी है कि बिजली कंपनियां अपने कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट न करने लगें। यह आशंका जताई है क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने अपनी ताजा रिपोर्ट में। जानकारों की राय में इस समस्या का एक ही समाधान है कि बिजली की दरों को बढ़ाया जाए।फिच के ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रुप के डायरेक्टर वेंकटरमन राजारमन ने कहा है कि अगर प्रवर्तकों की तरफ से अतिरिक्त पूंजी का निवेश नहीं किया जाता है या फिर बिजली की दरों में खासी बढ़ोतरी नहीं की जाती है तो बिजली परियोजनाओं के वित्तीय मार्जिन पर भारी दबाव पैदा हो सकता है। भारत के अधिकांश बिजली परियोजनाएं आयातित कोयले पर निर्भर हैं और बीते एक साल के दौरान इनकी लागत में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
अपनी रिपोर्ट में फिच ने अनुमान लगाया है कि अगर यही स्थिति बनी रहती है तो बिजली उत्पादक कंपनियों की उत्पादन लागत 4.41 रुपये प्रति किलोवाट घंटे के औसत पर पहुंच सकती है।मौजूदा समय में इन कंपनियों की बिजली उत्पादन की लागत औसतन 2.29 रुपये प्रति किलोवाट घंटे है। बीते तकरीबन चार माह के दौरान डॉलर की तुलना में रुपये के भाव में करीब 16-18 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है।
यहां समस्या की बात यह है कि भारत के कुल बिजली उत्पादन में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी 55 फीसदी के स्तर पर है। भारत में मौजूदा समय में 1,82,344 मेगावाट की बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता है।हालांकि, भारत में दुनिया के कुल कोयला भंडार का करीब 10 फीसदी उपलब्ध है। लेकिन, पर्यावरण एवं भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों की वजह से घरेलू बिजली कंपनियों को कोल लिंकेज हासिल करने में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इससे बिजली कंपनियों की आयातित कोयले पर निर्भरता और भी बढ़ जाती है।फिच ने कहा है कि अगर बिजली कंपनियां अपनी बढ़ी हुई लागत का भार अपने ग्राहकों की तरफ नहीं धकेल पाईं तो इनके मार्जिन पर बहुत ज्यादा दबाव बन जाएगा। ऐसी स्थिति में कई बिजली परियोजनाएं तो परिचालन के मामले में आर्थिक रूप से व्यावहारिक तक नहीं रह जाएंगी।
कोयले के आवंटन में चल रही धाधली को ही बिजली संकट का मूल कारण बताया जा रहा है। कोयले की आपूर्ति में कमी और पूरे देश के थर्मल पावर स्टेशनों की खस्ता हालात की वजह से आज देश में बिजली संकट इतना ज्यादा गहरा गया है।गौरतलब है कि देश में ५४ फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से ही होता है. कोयला सप्लाई करने में केंद्र सरकार की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड सीआईएल की मोनोपॉली है। कोल कंपनियां न तो मौजूदा खदानों से सौ फीसदी खनन करवा पा रही है और न ही नए खदानों से तेजी से कोयला निकलवाने में कामयाब हो रही है। कोल कंपनियों की आर्थिक हालत भी कहीं ना कहीं इस स्थिति की जिम्मेदार है।गौरतलब है कि २०१७ तक ७४२० लाख टन कोयले की जरूरत है, जबकि मात्र ५२७० लाख टन मिलने की उम्मीद है। हालांकि मॉनसून की बेरूखी की वजह से भी कोयला उत्पादन काफी हद तक प्रभावित हुआ है। परमाणु बिजली या पनबिजली परियोजनाओं को आगे बढाने के मामले में भी सुस्ती से काम लिया जा रहा है। अमेरिका से परमाणु करार होने के बाद उम्मीद थी कि कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली का हिस्सा २.६२ फीसदी से बढ कर ९ फीसदी तक हो जाएगा,लेकिन जैतपुर महाराष्ट्रऔर कुडानकुलम तमिलनाडु में नये परमाणु बिजली घर बनाने की राह में आयी रुकावटों को सरकार दूर नहीं कर पा रही है। बिजली चोरी और वितरण में धांधली के चलते बिजली बर्बाद करने वाले देश के चार प्रमुख राज्यों में क्रमश बिहार, झारखंड, जम्मू-कश्मीर और मध्य प्रदेश शामिल हैं। बिहार में तो कुल उत्पादित बिजली का ४२ प्रतिशत हिस्सा बर्बाद हो रहा है। झारखंड और जम्मू-कश्मीर में ४० प्रतिशत तथा मध्य प्रदेश में ३९ प्रतिशत बिजली बर्बाद हो रही है।यानी प्रति १०० मेगावाट में से ३९ मेगावाट बिजली ट्रासमिशन लॉस, तकनीकी खामियों और बिजली चोरी के कारण बर्बाद हो जाती है।
विद्युत क्षेत्र के लिए ईंधन उपलब्धता की किल्लत, ईंधन आपूर्ति समझौतों (एफएसए) पर हस्ताक्षर का अभाव और वितरण कंपनियों को हो रहे नुकसान जैसी समस्याएं लगातार बनी हुई हैं। जहां ऊर्जा मंत्रालय की ओर से जारी किया गया आदर्श बिजली खरीद समझौता (पीपीए) कहता है कि ईंधन की कीमतों का बोझ आगे डाला जा सकता है, वहीं ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों का मानना है कि आदर्श दस्तावेज में कई ऐसे निषेध प्रावधान और बेंचमार्क हैं जो लागत वसूली पर रोक लगाते हैं।
ठीक एक साल पहले बिजली उद्योग के दिग्गजों ने प्रधानमंत्री और कुछ दूसरे मंत्रियों के साथ बैठक कर उद्योग के सामने 15 बड़ी चुनौतियों पर चर्चा की थी और अपनी ओर से 51 से अधिक सुझाव भी दिए थे। हालांकि एक साल बाद भी इनमें से कुछ ही मसलों पर ध्यान दिया गया है और गिने चुने कदम ही उठाए गए हैं।
कौन-कौन राज्य - बिजली दरों में बढ़ोतरी की याचिका दायर करने वाले राज्यों में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल, नगालैंड, उड़ीसा व आंध्र प्रदेश हैं शामिल
अन्य राज्य भी तैयारी में - बिजली दरों में परिवर्तन के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग में याचिका दायर करने की तैयारी में हैं कई अन्य प्रदेश भी
दरों में 5-20 फीसदी तक की हो सकती है बढ़ोतरी
चालू वित्त वर्ष के खत्म होते ही दस राज्यों में बिजली की दरें बढऩे जा रही हैं। यह बढ़ोतरी 5-20 फीसदी तक की हो सकती है। इन सभी राज्यों ने अगले वित्त वर्ष यानी 2013-14 के दौरान बिजली की दरों में इजाफा करने के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) में याचिका भी दाखिल कर दी है। इन राज्यों ने चालू वित्त वर्ष के दौरान भी बिजली की दरों में बढ़ोतरी की है।
बिजली की दरों में बढ़ोतरी की याचिका दायर करने वालों में आंध्र प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, नगालैंड, उड़ीसा, पंजाब व राजस्थान शामिल हैं। याचिका पर लिया गया फैसला इस साल मार्च के बाद लागू हो सकता है। इन याचिकाओं पर सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हो गई है। वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान 23 राज्यों की डिस्कॉम ने बिजली की दरें 30 फीसदी तक बढ़ाई हैं।
बिजली मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक आगामी वित्त वर्ष के दौरान भी लगभग सभी राज्य बिजली की दरों में इजाफा करेंगे। इन दस राज्यों के अलावा कई अन्य राज्य भी बिजली की दरों में परिवर्तन के लिए एसईआरसी में याचिका दायर करने की तैयारी में हैं।
मध्य प्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के निदेशक (कॉमर्शियल) ए.के. जैन के मुताबिक, उनके राज्य में बिजली की दरों में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है। उन्होंने कहा कि बिजली की दरें परिवर्तित करने के लिए याचिका डाली गई है, लेकिन बढ़ोतरी को लेकर अभी निश्चित आकलन नहीं किया जा सकता है।
जयपुर डिस्कॉम के निदेशक सी.एस.चंदालिया के मुताबिक राजस्थान में इस बार 500 यूनिटों से अधिक बिजली की खपत करने वालों का एक अलग स्लैब बना कर उनके लिए नई दरें तय करने का प्रस्ताव रखा गया है। कॉमर्शियल उपभोक्ताओं के लिए भी ऐसा ही प्रस्ताव लाया जा रहा है।
कृषि उपभोक्ताओं के लिए भी बिजली दरों में परिवर्तन का प्रस्ताव रखा गया है। दिल्ली की डिस्कॉम ने आगामी वित्त वर्ष के लिए बिजली की दरों में 2-13 फीसदी की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा है।
नियम के मुताबिक अगर कोई डिस्कॉम बिजली की दरों में परिवर्तन के लिए एसईआरसी में आवेदन नहीं करता है तो उस राज्य ड्डका एसईआरसी स्वत: संज्ञान लेते हुए बिजली दरों में जरूरत के मुताबिक इजाफा कर सकता है। वहीं, एसईआरसी से हर तीन माह पर फ्यूल कॉस्ट को बिजली दरों में समायोजित करने के लिए भी कहा गया है।
पंजाब विद्युत नियामक आयोग (पीईआरसी) के निदेशक (टैरिफ) सुरेश सिंगला के मुताबिक सभी चीजों की कीमतें बढ़ रही हैं, तो बिजली की दरें कैसे रुक सकती हैं। मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (एमपीईआरसी) के चेयरमैन राकेश साहनी के मुताबिक सारे खर्चे बढ़ते जा रहे हैं तो बिजली की दरें भी बढ़ेंगी।
ऊर्जा उत्पादकों के संगठन (एपीपी) का एक संकलन जो मूल रूप से समस्याओं के समय से समाधान को लेकर है, उसमें स्पष्टï रूप से कहा गया है कि घरेलू कोयले की उपलब्धता और मिश्रित या आयातित कोयले की कीमतों को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है। एपीपी के महानिदेशक अशोक खुराना ने कहा कि आज की तारीख में स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादकों के सामने यह सबसे बड़ी समस्या है और इस पर जल्दी कदम उठाने की जरूरत है। अगर इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया तो इससे बैंकिंग क्षेत्र, उपकरण उत्पादकों और 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत अतिरिक्त क्षमता जोडऩे के लक्ष्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
खुराना ने कहा कि इस मसले को विद्युत कानून 2003 के अनुच्छेद 79 92) (4) के तहत केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) के पास भेजा गया है। विद्युत क्षेत्र को अपर्याप्त गैस की आपूर्ति के बारे में एपीपी का कहना है कि अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने गैस के लिए प्रशासित मूल्य प्रणाली (एपीएम) को प्राथमिकता देने पर तो विचार किया था, मगर इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया गया। फिलहाल इस क्षेत्र को कुल आवश्यकता से औसतन 75 फीसदी से भी कम आपूर्ति हो रही है जबकि 11,000 मेगावॉट गैस आधारित परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसमें से 4,000 मेगावॉट का परिचालन इस साल के अंत तक होने की उम्मीद है और इसे हर दिन 1.6 करोड़ मिट्रिक स्टैंडर्ड घन मीटर अतिरिक्त गैस की जरूरत होगी।
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रवक्ता ने कहा, 'देश के विद्युत क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती ईंधन आपूर्ति और वितरण उपक्रमों की कमजोर वित्तीय सेहत जैसी समस्याओं से पार पाने की है। फिलहाल नियमन संबंधी अड़चनों को जल्द से जल्द दूर करने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि सरकार भारतीय विद्युत क्षेत्र के लंबी अवधि के विकास के लिए उपभोक्ताओं, ऊर्जा उत्पादकों और वितरण कंपनियों के हितों को संतुलित करने वाली एक
भारत विश्व में पांचवां सबसे बड़ा बिजली उत्पादक है और दिल्ली सरकार की ओर से कुल क्षमता की 51.5 प्रतिशत बिजली उत्पादित की जाती है वहीं केंद्रीय और निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी क्रमश: 33.1 प्रतिशत और 15.4 प्रतिशत की है। ऊर्जा उत्पादन के स्रोतों में कोयला, लिग्नाइट, प्राकृतिक गैस, तेल, जल और परमाणु विद्युत जैसे वाणिज्यिक स्रोतों से लेकर वायु, सौर और कृषि तथा घरेलू अपशिष्ट जैसे अन्य व्यवहार्य गैर परंपरागत स्रोत तक शामिल हैं।11वीं पंचवर्षीय योजना में प्राप्त की गई क्षमता निर्माण पूर्व की योजनाओं को पहले ही पीछे छोड़ चुकी हैं। 54,964 मेगावाट क्षमता को जोड़ा गया है जिसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी काफी महत्वपूर्ण रही है और 12वीं पंचवर्षीय योजना में लगभग 88,000 मेगावाट क्षमता जोड़ने के लक्ष्य के लिए सरकार गंभीरता से प्रयासरत है। क्षमता संवर्धन में निजी क्षेत्र की भागीदारी 10वीं पंचवर्षीय योजना में 10 प्रतिशत थी जो 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान लगभग 42 प्रतिशत हो गई और 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए यह 50 प्रतिशत से भी अधिक होने की संभावना है। 2012-13 के लिए 17956 मेगावाट क्षमता संवर्धन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वर्ष 2012-13 के दौरान केंद्रीय, राज्य और निजी क्षेत्र में कुल 17426 सीकेएम ट्रांसमिशन लाइन जोड़ने की आवश्यकता है। राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की शुरुआत के साथ बिजली से कटे हुए 1,04,496 गांवों के विद्युतीकरण का काम पूरा किया जा चुका है और 1.94 करोड़ बीपीएल परिवारों को 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत यानी 31 मार्च 2012 तक बिजली के कनेक्शन जारी किए जा चुके हैं।
बिजली उत्पादक कंपनियों के लिए कोयले के प्राइस पूलिंग मामले में बिजली और कोयला मंत्रालयों के बीच सहमति बनती नजर आ रही है।दोनों मंत्रालयों के बीच इस मसले पर बैठक के बाद बीते दिनों बिजली मंत्रालय ने कोयले की प्राइस पूलिंग को लेकर अपना प्रस्ताव कोयला मंत्रालय को भेजा है। इस प्रस्ताव के आधार पर कोयला मंत्रालय की तरफ से प्राइस पूलिंग को लेकर अंतिम मसौदा तैयार किया जाएगा।इस मसौदे को चालू माह के आखिर या अगले माह तक कैबिनेट में पेश किया जाएगा। प्राइस पूलिंग पर बिजली मंत्रालय के प्रस्ताव पर 16 जनवरी को होने वाली कोल इंडिया की बोर्ड बैठक में भी विचार किया जाएगा। कोयले की प्राइस पूलिंग प्रणाली कोल इंडिया ही लागू करेगी।
कोयला मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक प्राइस पूलिंग पर बिजली मंत्रालय के प्रस्ताव को लागू करने पर बिजली की दरें प्रति यूनिट 10-12 पैसे तक बढ़ सकती हैं क्योंकि प्राइस पूलिंग का भार सभी बिजली उत्पादक यूनिटों को वहन करना होगा। हालांकि, आयातित कोयले की आपूर्ति सिर्फ उन्हीं यूनिटों को होगी जो पोर्ट से 300 किलोमीटर के भीतर स्थित हैं।
इस परिधि से बाहर स्थित यूनिट को बिजली उत्पादन के लिए सिर्फ घरेलू कोयले की आपूर्ति की जाएगी। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने प्राइस पूलिंग पर ऐसा ही प्रस्ताव कोयला मंत्रालय के सामने रखा था। लेकिन बाद में प्राइस पूलिंग प्रणाली को कैबिनेट से मंजूरी मिलने पर दोनों मंत्रालयों में रजामंदी हुई। कोयला मंत्रालय के मुताबिक प्राइस पूलिंग पर कोल इंडिया की राय काफी महत्वपूर्ण है।
ईंधन आपूर्ति करार (एफएसए) से संबंधित अपने दायित्वों को पूरा करने के क्रम में कोल इंडिया (सीआईएल) ने अंतत: इसी वित्त वर्ष में कोयले के आयात का निर्णय लिया है। कंपनी ने आयात के लिए मांग प्राप्त किया है।
कोल इंडिया के चेयरमैन एन नरसिंह राव ने कहा, 'हमने अपने कुछ ग्राहकों से 50 से 60 लाख टन कोयला आयात के लिए मांग प्राप्त किया है। ये ग्राहक आंध्र प्रदेश और निजी क्षेत्र के हैं। हालांकि पूरी सूची के बारे में मुझे जानकारी नहीं है। हम उसका निरीक्षण करेंगे।Ó
यह पूछे जाने पर कि क्या कोल इंडिया इसी वित्त वर्ष में कोयले का आयात शुरू करेगी, राव ने कहा, 'मैं सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। यदि जरूरत होगी तो हम आयात करेंगे। हम अभी आकलन कर रहे हैं। एमएसटीसी, एसटीसी के साथ अनुबंध पहले से ही मौजूद है। यदि वे चाहेंगे तो आपूर्ति कर सकते हैं।Ó सरकार ने पिछले साल कोल इंडिया को राष्ट्रपति के निर्देश जारी किए थे ताकि 80 फीसदी ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करते हुए बिजली कंपनियों के साथ र्ईंधन आपूर्ति करार (एफएसए) पर हस्ताक्षर किए जा सके। घटते उत्पादन के बीच कोल इंडिया आयात के जरिये अपनी इस प्रतिबद्धता को पूरा करने की बात कही थी। कोल इंडिया एमएमटीसी और स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसटीसी) के जरिये कोयले का आयात कर सकती है।
कोल इंडिया ने अब तक 48 एफएसए पर हस्ताक्षर किए हैं। बिजली उत्पादन करने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी एनटीपीसी के साथ लंबित 13 एफएसए पर टिप्पणी करते हुए राव ने कहा, 'हम सहमति पत्र के तहत एनटीपीसी को किसी भी तरह कोयले की आपूर्ति करेंगे। एफएसए पर हस्ताक्षर होने से हम आपूर्ति के लिए कानूनी रूप से बंध जाएंगे। गेंद फिलहाल एनटीपीसी के पाले में है। मैं समझता हूं कि इसी महीने एनटीपीसी के बोर्ड की बैठक होने वाली है। देखते हैं क्या होता है।Ó
कोयला कीमतों में वृद्धि के मुद्दे पर राव ने कहा, 'इस मामले में कोल इंडिया का निदेशक मंडल कोई निर्णय ले सकता है। फिलहाल इस पर कोई बात नहीं हुई है।Ó हाल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला के दाम बढ़ाने की वकालत की थी।
सरकार ने तकरीबन 850 करोड़ टन कोयले के भंडार की नीलामी का ऐलान क्या किया, दिग्गज कंपनियों में ज्यादा से ज्यादा कोयला बटोरने की होड़ लग गई। इनमें निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के साथ-साथ भारी भरकम खजाने वाली सरकारी ऊर्जा कंपनियां भी हैं।सरकारी कंपनियों में कोल इंडिया और एनटीपीसी को 200 करोड़ टन से ज्यादा कोयला भंडार वाला थर्मल कोल ब्लॉक ज्यादा लुभा रहा है। देवचा पचामी नाम का यह ब्लॉक पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में है। कोयला मंत्रालय ने इसे भी नीलामी के लिए रख दिया है। सरकार इसकी नीलामी राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) को अनदेखा करते हुए कर रही है क्योंकि एनएमडीसी पिछले तीन साल से यह ब्लॉक अपने नाम आवंटित किए जाने की गुजारिश मंत्रालय से कर रही है। उसने इस ब्लॉक के विकास के लिए कोल इंडिया के साथ मिलकर 10,000 करोड़ रुपये की योजना भी तैयार की थी।
लेकिन यह ब्लॉक बाजार में आने के बाद कोल इंडिया अकेले ही इस पर कब्जा करना चाहती है। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हम कोयला मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर यह ब्लॉक अपने नाम आवंटित करने को कहेंगे। ऐसा कोई काम नहीं है जो हम किसी के साथ मिलकर कर सकते हैं, लेकिन अकेले नहीं।'
कोल इंडिया के पास पहले ही करीब 6700 करोड़ टन कोयला भंडार है। देश में बिजली संयंत्र आदि को करीब 63 करोड़ टन कोयले की दरकार होती है। लेकिन उसके मुताबिक उत्पादन नहीं करने की वजह से कोल इंडिया को सरकार की नाराजगी सहनी पड़ रही है। महारत्न की जमात में बैठी इस कंपनी का नकद और बैंक अधिशेष पिछले साल मार्च में 58,200 करोड़ रुपये था, जो सितंबर में 64,400 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
हालांकि सरकार ने बोली लगाने वाली कंपनियों के लिए माली सेहत ही अकेला पैमाना नहीं बनाया है। वह ऐसी बिजली कंपनी को ब्लॉक देना चाहती है, जो बिजली संयंत्र भी लगाए और खुद कोयला निकालकर बिजली बनाए। इसीलिए इस ब्लॉक को 'एंड यूज' श्रेणी में रखा गया है। हालांकि जब अधिकारी से पूछा गया कि इससे कोल इंडिया की योजना पर पानी तो नहीं फिर जाएगा तब उन्होंने कहा कि कंपनी कोयला मंत्रालय से दरख्वास्त करेगी कि इस ब्लॉक को उस श्रेणी से निकाला जाए और विशेष श्रेणी के तहत कोल इंडिया को दे दिया जाए।
अलबत्ता इस ब्लॉक को जिस श्रेणी के तहत रखा गया है, उसके हिसाब से एनटीपीसी इसके लिए पहली पसंद बन जाती है क्योंकि कंपनी के पास भी नकदी की कमी नहीं है। ऐसे में इस ब्लॉक के विकास के लिए उसे बड़ा दावेदार माना जा सकता है। कंपनी भी अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक कोयला सुरक्षित करना चाहती है। एनटीपीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'हम सभी ब्लॉकों के लिए बोली लगाएंगे। हम लंबी दौड़ के घोड़े हैं। फिलहाल हम ब्लॉक छांटने में लगे हैं। उसके बाद ही ब्लॉकों के लिए बोली लगाई जाएंगी।'
इस बीच देवचा पचामी का विकास करने की एनएमडीसी की योजना सरकारी कदम के कारण खटाई में पड़ गई है। नए दिशानिर्देशों के कारण खनन कंपनियां उन ब्लॉक के लिए बोली नहीं लगा सकती हैं, जिन्हें एंड यूज श्रेणी में रखा गया है। कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया, 'एनएमडीसी इस ब्लॉक के लिए बोली नहीं लगा सकती। यह बिजली बनाने के लिए रखा गया है।'
कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने बुधवार को कहा कि बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत को विदेशी कोयला खानों की आक्रामक खरीददारी करनी होगी। जायसवाल ने भारत बिजली-2013 सम्मेलन में यहां कहा, "लम्बी अवधि में ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से हमें इस मामले (विदेशी कोयला खदानों का अधिग्रहण) में आक्रामक होना होगा।"मंत्री ने कहा कि इसलिए मंत्रालय के सहयोग से सरकारी कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने मोजाम्बिक में कोयला खान खरीदा। निजी कम्पनियां टाटा और अदानी समूह भी इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में खदानें खरीद रही हैं।
पिछले कारोबारी साल में कोयले की मांग और पूर्ति की खाई 16.15 करोड़ टन थी और अगले पांच सालों में इसके बढ़कर 18.5 करोड़ टन हो जाने का अनुमान है।
विद्युत मंत्रालय और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा संयुक्त रूप से बिजली क्षेत्र के बारे में आयोजित सातवीं अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी और सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जायसवाल ने यह भी कहा कि देश में कोयला ब्लॉकों का तेजी से विकास करने के लिए सरकार कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के कुछ कोयला ब्लॉकों का खान विकासकर्ताओं और संचालकों (एमडीओ) के जरिए विकास करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है. इस बारे में रूपरेखा तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि कोयले से सम्बंधित संसाधन आधार का विस्तार करने के लिए अन्वेषण कार्य बढ़ाए जा रहे हैं। 11वीं योजना में 3.8 प्रतिशत का वास्तविक विकास प्राप्त किया गया था। इसको देखते हुए सीआईएल से कहा गया है कि वह 12वीं योजना के दौरान सात प्रतिशत का विकास लक्ष्य निर्धारित करे, ताकि स्वदेशी संसाधनों से कोयले की अधिक उपलब्धता निश्चित की जा सके।
कोयले के आयात और उसकी कीमतों को पूल करने के बारे में मंत्री ने कहा कि कोयले की मौजूदा किल्लत को देखते हुए उसकी कीमतों को पूल करके उसका आयात करने के प्रस्ताव का सुझाव दिया गया है। लेकिन इस पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ राज्य सरकारों ने इस बारे में संकोच का प्रदर्शन किया है।
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