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From: calliber biswas <xcalliber_steve_biswas@yahoo.co.in>
Date: 2013/1/20
Subject: Fw: क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी? किस देश की?
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From: calliber biswas <xcalliber_steve_biswas@yahoo.co.in>
Date: 2013/1/20
Subject: Fw: क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी? किस देश की?
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please give views, so i can criticize this
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From: Mohan Gupta <mgupta@rogers.com>
To: S.Poshakwala2@yahoo.com
Sent: Sunday, 20 January 2013 9:24 AM
Subject: क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी? किस देश की?
From: Mohan Gupta <mgupta@rogers.com>
To: S.Poshakwala2@yahoo.com
Sent: Sunday, 20 January 2013 9:24 AM
Subject: क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी? किस देश की?
क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी? किस देश की?
क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी?
किस देश की?
किस देश की?
IT WAS A NEWS FOR MYSELF WHEN I FOUND A HISTORICAL COUNTRY CALLING Sanskrit as her NATIONAL LANGUAGE.
If you do not believe, you will end up believing -------Please spend few minutes to read and spread the word based on solid proof.
--POST QUESTIONS ON THE COMMENTS TO ARTICLE, that way questions benefit all, and saves time, lost in DUPLICATION.
URL to article: http://www.pravakta.com/what-was-the-national-language-of-sanskrit-of-which-country
If you do not believe, you will end up believing -------Please spend few minutes to read and spread the word based on solid proof.
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From: drshsharma@googlemail.com;
There are two heads of state who can converse in Sanskrit one is mentioned the President of Greece and king of Thailand king Bhoomibol and his granddaughter. Good news is that Sanskrit is coming up with new vigour and determination.
Shriharsha
क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी? किस देश की? »
डॉ. मधुसूदन उवाच
ॐ -संस्कृत न्यायालयीन भाषा,
ॐ -शासकीय आदेश संस्कृत में,
ॐ -क्रय-विक्रय पत्र संस्कृत में,
ॐ -मंदिरों का प्रबंधन संस्कृत में,
ॐ- सैंकडों शिलालेख, संस्कृत में,
कहाँ? जानने के लिए कृपया पढिए।
(१)"कौन बनेगा करोडपति,"
कौन बनेगा करोडपति में, कल्पना कीजिए, कि अमिताभ बच्चन जी, आप को प्रश्न पूछते हैं, कि "किस देश की राष्ट्र भाषा थी संस्कृत?" तो क्या आप उस का उत्तर जानते हैं? सोच के बताइए, किस देश की राष्ट्र भाषा संस्कृत थीं? ३० सेकंड में ही बताना है।
नहीं जानते?
हार मान गए ना?
चलो, बच्चन जी, आपको एक संकेत भी देते हैं।
सियाम (थायलॅन्ड) के निकट, एक देश है, उस देश की राष्ट्र भाषा संस्कृत थीं।
तो, अब बताइए, कि, किस देश की राष्ट्र भाषा थी संस्कृत?
क्या कहा 'कंबोडिया" ?
उत्तर, सही है, आपका। {तालियाँ }
जी हाँ, कम्बोडिया की राष्ट्रभाषा संस्कृत थी।
{वैसे, बच्चन जी को अच्छी हिंदी के प्रयोग के लिए भी, प्रशंसित किया जाना चाहिए।} अस्तु।
(२)क्या पागल देश था यह कम्बोडिया?
क्या पागल था, कम्बोडिया! अरे!(अबे, नहीं कहूँगा) जीर्ण शीर्ण ऋग्वेद के पृष्ठ जैसे पोंगा पण्डितों, जिस देश का उस संस्कृत पर (Monopoly) एकाधिकार है, जिसकी वह धरोहर रूपी अधिकृत भाषा है, वह भारत, तो उसे "मृत भाषा" घोषित करना चाहता है। उसीका एक "महामूर्ख-शिरोमणि" राज्यपाल उसे बैल गाडी युग की भाषा मानता है। और यह "मूर्ख" कंबोडिया, उस मरनेवाली भाषा को अपनी राष्ट्र भाषा मानता था? क्या मूर्ख था?
(३) कंबुज देश में संस्कृत
परंतु, संस्कृत कंबुज देश की ६ वीँ शती से लेकर १२ वीँ शती तक, राष्ट्र भाषा ही थी।
भारत को गुरु मानने वाले कंबोडिया को भारत ही भूल गया। वैसे भारत सभी (दक्षिणपूर्व) अग्निकोणीय आशिया के देशों को भूल-सा ही गया है। जब भारत ही अंग्रेज़ी भाषा का गुलाम है, तो किस मुंह से वह संस्कृत का आश्रय् लेकर, इन मित्र देशों से संबंध प्रस्थापित करें?
भारत वैसे तो, हिन्दोनेशिया, मलय, जावा, सुमात्रा, कम्बुज, ब्रह्मदेश, सियाम, श्रीलंका, जपान, तिब्बत, नेपाल, इत्यादि अनेक देशों से सहजता और निर्विघ्नता से, संबंध प्रस्थापित कर सकता था; इन देशों से अपनी समन्वयी संस्कृति और संस्कृत के आधार पर।यह बृहत्तर भारत था, जो सैंकडों वर्षों से भारत के संपर्क में था। भारत भी, इन देशों से संस्कृत के माध्यम से, और अपनी शोषण विहीन, विश्वबंधुत्व-वादी संस्कृति के माध्यम से सम्बंध रखते आ रहा था। स्वतंत्रता के बाद, फिर से उन संबंधों को उजागर करने की आवश्यकता थी। पर हमने कोई विशेष ध्यान इन देशों की ओर दिया हो, ऐसा दिखाई नहीं देता। राजनैतिक दूतावासों की बात नहीं कर रहा हूँ। संस्कृत के कंबुज देश पर के प्रभाव के विषय में, एक "भक्तिन कौंतेया" नामक शोधकर्ता क्या कहते हैं, यह जानने योग्य होगा।
(४) 'कंबुज देश के, संस्कृत शिलालेख'
शोधकर्ता भक्तिन् कौन्तेया अपनी उपर्युक्त शीर्षक वाली, ऐतिहासिक रूपरेखा में संक्षेप में निम्न लिखते हैं। प्राचीन काल में कम्बोडिया को कंबुजदेश कहा जाता था।
९ वी से १३ वी शती तक अङ्कोर साम्राज्य पनपता रहा। राजधानी यशोधरपुर सम्राट यशोवर्मन नें बसायी थी । अङ्कोर राज्य उस समय आज के कंबोडिया, थायलॅण्ड, वियेतनाम, और लाओस सभी को आवृत्त करता हुआ विशाल राज्य था। संस्कृत से जुडी भव्य संस्कृति के प्रमाण इन अग्निकोणीय एशिया के देशों में आज भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान है।
(५) कंबुज देशों में संस्कृत का महत्त्व।
आगे कहते हैं, कि, कंबुज देश भी स्वीकार करता है, कि, बिना संस्कृत, कंबुज देश की 'ख्मेर भाषा" विकसित नहीं हो सकती थी। {क्या भारत की कोई भी भाषा बिना संस्कृत विकसित हो सकती थी?}
वैसे ख्मेर और संस्कृत दो अलग भाषा परिवारों की भाषाएं हैं।
अपना शब्द भंडार बढाने के लिए ख्मेर भाषा ने असाधारण मात्रा में संस्कृत शब्दावली को अपनाया था। कंबुज शिलालेख इसकी पुष्टि करते हैं। वास्तव में, कंबुज देश का अङ्कोर कालीन इतिहास रचने में भी ये शिलालेख ही मूल स्रोत है।
कंबुज शिलालेख जो खोजे गए हैं, वे कंबुज, लाओस, थायलॅण्ड, वियेतनाम इत्यादि विस्तृत प्रदेशों में पाए गए हैं। कुछ ही शिला लेख पुरानी ख्मेर में, पर बहुसंख्य लेख संस्कृत भाषा में ही मिलते हैं।
(६) संस्कृत उस समय की
संस्कृत उस समय की, (दक्षिण-पूर्व)अग्निकोणीय देशों की सांस्कृतिक भाषा थी। (कंबुज)ख्मेर ने अपनी भाषा लिखने के लिए, भारतीय लिपि अपनायी थी। आधुनिक ख्मेर भारत से ही स्वीकार की हुयी लिपि में लिखी जाती है। वास्तव में "ग्रंथ ब्राह्मी" ही आधुनिक ख्मेर की मातृ-लिपि है। कंबुज देश ने 'देवनागरी' और 'पल्लव ग्रंथ लिपि' के आधारपर अपनी लिपि बनाई है।
आज कल की कंबुज भाषा में ७० % शब्द सीधे संस्कृत से लिए गए हैं; कहते है कौंतेय ।
ख्मेर(कंबुज भाषा) ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार की भाषा है, और संस्कृत भारोपीय परिवार की भाषा है। और चमत्कार देखिए, कि भक्तिन कौंतेया अपने लघु लेख में कहते हैं, कि ७० प्रतिशत संस्कृत के शब्द ख्मेर में पाए जाते हैं, पर, बहुत शब्दों के उच्चारण बदल चुके हैं। यह एक ऐसा अपवादात्मक उदाहरण है, जो संस्कृत के चमत्कार से कम नहीं। कंबुज ख्मेर भाषा अपने ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार से नहीं, पर भारोपीय (भारत-युरोपीय) परिवार की भाषा संस्कृत से शब्द ग्रहण करती है।संस्कृत की उपयोगिता का इससे बडा प्रमाण और क्या हो सकता है? { भारत इस से कुछ सीखें।}
सिद्धान्त:
संसार की सारी भाषाओं की शब्द विषयक समस्याओं का हल हमारी संस्कृत के पास है, तो फिर हम अंग्रेज़ी से भीख क्यों माँगे?
(७) कुछ शब्दों के उदाहरण:
कंबोजी भाषी शब्दों के कुछ उदाहरण देखने पर, उस भाषापर संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट हो जाएगा।
कंबोजी महीनों के नाम
चेत् (चैत्र), बिसाक् (वैशाख), जेस् (ज्येष्ठ),
आसाठ (आषाढ), स्राप् (श्रावण-सावन),
फ्यैत्रबोत् ( भाद्रपद,) गु. भादरवो, आसोज् (आश्विन), -गुजराती आसो.
कात्तिक् (कार्तिक),गु. कार्तक, मिगसर् (मार्गशीर्ष), गुजराती मागसर,
बौह् (पौष), मेइ (माघ),गु. माह, फागुन( फाल्गुन),गु. फागण,
लिखने में तो संस्कृत या पालि रूप ही लिखे जाते हैं, पर उच्चारण सदा लिखित शब्द के अनुसार नहीं होता। कम्बोज में शक संवत्सर तथा बुद्ध संवत्सर दोनों का प्रयोग होता है।
(८) कुछ आधुनिक शब्दावली
धनागार (बँक), भासा (भाषा), टेलिफोन के लिए 'दूरसब्द' (दूर शब्द), तार के लिए, 'दूरलेख', टाईप-राइटर को, 'अंगुलिलेख' तथा टायपिस्ट को 'अंगुलिलेखक' कहते हैं।
सुन्दर, कार्यालय, मुख, मेघ, चन्द्र, मनुष्य, आकाश, माता पिता, भिक्षु आदि अनेक शब्द दैनिक प्रयोग में आते हैं। उच्चारण में अवश्य अंतर है। कई शब्द साधारण दैनिक जीवन में प्रयुक्त न होकर काव्य और साहित्य में प्रयुक्त होते हैं। ऐसी परम्परा भारतीय भाषाओं में भी मानी जाती है।शाला के लिए 'साला', कॉलेज के लिए 'अनुविद्यालय', विमेन्स कॉलेज के लिए 'अनुविद्यालय-नारी', युनिवर्सीटी के लिए 'महाविद्यालय', डिग्री या प्रमाण पत्र के लिए 'सञ्ञा-पत्र', साइकिल के लिए 'द्विचक्रयान', रिक्षा के लिए 'त्रिचक्रयान' ऐसे उदाहरण दिए जा सकते हैं।
श्री विश्वेश्वरन जी के सौजन्य से निम्न सूची।
Swah-ghtham (स्वाःघथम ) स्वागतम, Loek (Men)लोक, Loek Sri (Woman) लोक श्री (महिला), Saa-boo (साबु) साबुन -यह शब्द हिंदी है। Psar (प्सार) बज़ार–हिंदी है, Skar (स्कर )-शक्कर हिंदी है। Country प्रदेस, नगर; Letter (of the alphabet)अक्सर, Character (of a person)चरित(चरित्र), Language-Bhaasaa भासा(भाषा),
Human being -मनुःस्,(मनुष्य), Word- सब्त (शब्द)
(९) राष्ट्र भाषा संस्कृत:
(क) वास्तव में संस्कृत ही न्यायालयीन भाषा थी, एक सहस्र वर्षों से भी अधिक समय तक, के लिए उसका चलन था।
(ख)सारे शासकीय आदेश संस्कृत में होते थे।
(ग)भूमि के या खेती के क्रय-विक्रय पत्र संस्कृत में ही होते थे।
(घ) मंदिरों का प्रबंधन भी संस्कृत में ही सुरक्षित रखा जाता था।
(ङ) प्रायः १२५० शिलालेख, उस में से, बहुसंख्य संस्कृत में लिखे पाए जाते हैं इस प्राचीन अङ्कोर साम्राज्य में।
(१०)१२५० में से दो शिला लेख उदाहरणार्थ प्रस्तुत।
श्रीमतां कम्बुजेन्द्राणामधीशोऽभूद्यशस्विनाम्।
श्रीयशोवर्म्मराजेन्द्रो महेन्द्रो मरुतामिव॥१०॥
श्री यशोवर्मन महाराजा हुए भव्य कंबुज देशके, जैसे इन्द्र महाराज हुए थे, मरुत देश के। Sri Yasovarman became the emperor of the glorious and famous kings of Kambuja, like Indra the emperor of Maruts.
—————————————-
श्रीकम्बुभूभृतो भान्ति विक्रमाक्रान्तविष्टपाः।
विषकण्टकजेतारो दोर्द्दण्डा इव चक्रिणः॥९॥
श्री. कंबु देश के राजा विश्व में अपने शौर्य और पराक्रम से चमकते हैं, और शत्रुओं को उखाड फेंकते है, जैसे विष्णु भगवान विषैले काँटो (जैसे शत्रुओं को) को उखाड फेंकते थे।The kings of Sri Kambu shine with the world having been won over by their prowess and enemies conquered like poisonous thorns by the arms of Vishnu.
(११) राजाओं की शुद्ध संस्कृत नामावली
Sarvabhauma=सार्वभौम
Jayavarman=जय वर्मन,
Indravarman=इंन्द्र वर्मन
Yasovarman=यशो वर्मन
Harshavarman=हर्ष वर्मन
Dharanindravarman=धरणींन्द्र वर्मन
Suryavarman=सूर्य वर्मन
Udayadityavarman =उदयादित्य वर्मन
(१२)डॉ. रघुवीर जो नेहरू जी के समकालीन थे, वे कहते हैं, उनकी पुस्तक India's National Language में,
"छठी से बाहरवीं शताब्दी तक कम्बोज देश की राष्ट्र भाषा संस्कृत थी। यह तथ्य भारत वर्ष के एक एक बालक और बालिका को पता होना चाहिए। बारहवीं शताब्दी में भारतवर्ष स्वयं अपनी स्वतंत्रता खो बैठा और तभी से उसके विदेशी सम्पर्क बन्द हुए।" (संदर्भ ) पृष्ठ ९९, India's National Language, Prof. Dr. Raghu Vira, Publisher –>International Academy Of Indian Culture
Subject: क्या, संस्कृत राष्ट्र भाषा थी? किस देश की?
मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।
अंग्रेज़ी का संस्कृत स्रोत
Dear Sir,
I highly appreciate your Dr.Madhusoodan uvach, where the Japanese wisely switched over from chitra bhasha to reality of Sankrit Bhasha. We the children of Bharat can easily learn the same, if there is a little bent of mind and eagerness to do so.
I highly appreciate your Dr.Madhusoodan uvach, where the Japanese wisely switched over from chitra bhasha to reality of Sankrit Bhasha. We the children of Bharat can easily learn the same, if there is a little bent of mind and eagerness to do so.
- Anil Gupta says:
मैं अभिभूत हूँ इस बात पर की अभियांत्रिकी के प्राध्यापक होने के बावजूद विभिन्न भाषाओँ के सम्बन्ध में इतने खोजपूर्ण तथ्य उपलब्ध कराना लिसी आश्चर्य से कम नहीं है. कभी तमिल , कभी जापानी तो अब कम्बुज के विषय में इस जानकारी से हमें अपना ज्ञान वर्धन का अवसर मिला है. पूर्व में तमिल और संस्कृत की समानता विषयक लेखमाला पूर्ण हो गयी है क्या?डॉ.मधुसुदन जी के सभी लेख संग्रहणीय हैं.अस्तु साधुवाद.
- मधुसूदन says:
अनिल जी।
शुद्ध हिंदी के एक प्रखर, एक-निष्ठ भक्त, जिन्होंने आजीवन शुद्ध हिन्दी के पुरस्कार में अपना योगदान दिया है, जो बी. बी. सी. वालों को भी ललकार ने में पीछे नहीं हठते,उन्हें(बी. बी. सी.को) शुद्ध हिंदी की, शब्द सूची भेज कर सहायता भी करते हैं। ऐसे श्री. मोहन जी गुप्ता ने, कॅनडा से मुझे कंबुज शिलालेखों की जानकारी भेजी। मैं ने जब वे शिला लेख देखें, तो अचरज, गौरव, और साथ में हमारी अपनी परम श्रेष्ठ देववाणी की उपेक्षा पर लज्जा का अनुभव हुआ।
निम्न का, स्थूल रूप से अर्थ करें —>
संस्कृत अत्युच्च आध्यात्मिक,
हिंदी-सर्वोपरि राष्ट्रीय,
और अंग्रेज़ी तामसिक भाषा है।
(१)तमस, भ्रष्टाचार बढाना है, अंग्रेज़ी का समर्थन करें।
(२)राष्ट्रीयता बढाना है हिंदी का,
(३) और महाराज आध्यात्मिकता जो भारत की अपनी अतुलनीय पहचान है, उस में पदार्पण भी करना है, तो संस्कृत या संस्कृत निष्ठ हिन्दी के बिना किसीजंतु को कोई पर्याय प्राप्त नहीं।
इसी लिए केवल संस्कृत/(निष्ठ हिंदी) द्वारा शिक्षित ही "विश्वबंधुत्ववादी" है।
अंग्रेज़ी शिक्षित तामसिक, बलात्कारी, भष्टाचारी-धर्मान्तरण के पोषक है।
और हिन्दी के पुरस्कर्ता शुद्ध राष्ट्रवादी है।
और देखते देखते आलेख बन गया।
कितने कितने कंधोंपर, (कृतज्ञता सहित) खडा होता हूँ, ऊंचाई बढ जाती है।
अनिल जी –बहुत बहुत धन्यवाद।
शुद्ध हिंदी के एक प्रखर, एक-निष्ठ भक्त, जिन्होंने आजीवन शुद्ध हिन्दी के पुरस्कार में अपना योगदान दिया है, जो बी. बी. सी. वालों को भी ललकार ने में पीछे नहीं हठते,उन्हें(बी. बी. सी.को) शुद्ध हिंदी की, शब्द सूची भेज कर सहायता भी करते हैं। ऐसे श्री. मोहन जी गुप्ता ने, कॅनडा से मुझे कंबुज शिलालेखों की जानकारी भेजी। मैं ने जब वे शिला लेख देखें, तो अचरज, गौरव, और साथ में हमारी अपनी परम श्रेष्ठ देववाणी की उपेक्षा पर लज्जा का अनुभव हुआ।
निम्न का, स्थूल रूप से अर्थ करें —>
संस्कृत अत्युच्च आध्यात्मिक,
हिंदी-सर्वोपरि राष्ट्रीय,
और अंग्रेज़ी तामसिक भाषा है।
(१)तमस, भ्रष्टाचार बढाना है, अंग्रेज़ी का समर्थन करें।
(२)राष्ट्रीयता बढाना है हिंदी का,
(३) और महाराज आध्यात्मिकता जो भारत की अपनी अतुलनीय पहचान है, उस में पदार्पण भी करना है, तो संस्कृत या संस्कृत निष्ठ हिन्दी के बिना किसीजंतु को कोई पर्याय प्राप्त नहीं।
इसी लिए केवल संस्कृत/(निष्ठ हिंदी) द्वारा शिक्षित ही "विश्वबंधुत्ववादी" है।
अंग्रेज़ी शिक्षित तामसिक, बलात्कारी, भष्टाचारी-धर्मान्तरण के पोषक है।
और हिन्दी के पुरस्कर्ता शुद्ध राष्ट्रवादी है।
और देखते देखते आलेख बन गया।
कितने कितने कंधोंपर, (कृतज्ञता सहित) खडा होता हूँ, ऊंचाई बढ जाती है।
अनिल जी –बहुत बहुत धन्यवाद।
- प्रतिभा सक्सेना says:
यह भी एक मान्यता है कि कंबोडिया को महर्षि अगस्त ने बसाया था.सारे पूर्वी द्वीप समूह पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव बहुत मुखर है .लेकिन जिसे अपनी अस्मिता का न भान हो न उसे बचाने की चिन्ता, ऐसे स्वाभिमानहीन लोग जो हमेशा दूसरों के दरवाजें खटखटाते हों,उनसे माँग कर ही उपकृत होते हों,.उन्हें कैसे आत्म-बोध कराया जाय !
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