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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, February 1, 2013

सभी किस्म के भ्रष्टाचरण की धुरी है आर्थिक भ्रष्टाचार

सभी किस्म के भ्रष्टाचरण की धुरी है आर्थिक भ्रष्टाचार


प्रतिवाद को खत्म करता है आर्थिक भ्रष्टाचार

'आधुनिकीकरण की छलयोजना' है आर्थिक भ्रष्टाचार

नव्य आर्थिक उदारीकरण और भ्रष्टाचार

जगदीश्वर चतुर्वेदी

राजनीति में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है लेकिन साहित्य में यह कभी मुद्दा ही नहीं रहा। यहां तक संपूर्ण क्रांति आंदोलन के समय नागार्जुन ने भ्रष्टाचार पर नहीं संपूर्ण क्रांति पर लिखा, इन्दिरा गांधी पर लिखा। जबकि यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था। क्या वजह है लेखकों को भ्रष्टाचार विषय नहीं लगता। जबकि हास्य-व्यंग्य के मंचीय कवियों ने भ्रष्टाचार पर जमकर लिखा है। साहित्य में भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति इस बात का संकेत है कि लेखक इसे मसला नहीं मानते। दूसरा बड़ा कारण साहित्य का मासकल्चर के सामने आत्म समर्पण और उसके साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश करना है। साहित्य में मूल्य, नैतिकता, परिवार और राजनीतिक भ्रष्टाचार पर खूब लिखा गया है लेकिन आर्थिक भ्रष्टाचार पर नहीं लिखा गया है। आर्थिक भ्रष्टाचार सभी किस्म के भ्रष्टाचरण की धुरी है। यह प्रतिवाद को खत्म करता है। यह उत्तर आधुनिक अवस्था का यह प्रधान लक्षण है।    इसकी धुरी है व्यवस्थागत भ्रष्टाचार। इसके साथ नेताओं में संपदा संचय की प्रवृत्ति बढ़ी है। अबाधित पूंजीवादी विकास हुआ है। उपभोक्तावाद की लम्बी छलांग लगी है और संचार क्रांति हुई है। इन लक्षणों के कारण सोवियत अर्थव्यवस्था धराशायी हो गयी। सोवियत संघ और उसके अनुयायी समाजवादी गुट का पराभव हुआ। फ्रेडरिक जेम्सन के शब्दों में यह 'आधुनिकीकरण की छलयोजना'  है। अस्सी के दशक से सारी दुनिया में सत्ताधारी वर्गों और उनसे जुड़े शासकों में पूंजी एकत्रित करने,येन-केन प्रकारेण दौलत जमा करने की लालसा देखी गयी। इसे सारी दुनिया में व्यवस्थागत भ्रष्टाचार कहा जाता है और देखते ही देखते सारी दुनिया उसकी चपेट में आ गयी। आज व्यवस्थागत भ्रष्टाचार सारी दुनिया में सबसे बड़ी समस्या है। पश्चिम वाले जिसे रीगनवाद, थैचरवाद आदि के नाम से सुशोभित करते हैं यह मूलतः 'आधुनिकीकरण की छलयोजना' है, इसकी धुरी है व्यवस्थागत भ्रष्टाचार।रीगनवाद- थैचरवाद को हम नव्य आर्थिक उदारतावाद के नाम से जानते हैं। भारत में इसके जनक हैं नरसिंहाराव – मनमोहन। यह मनमोहन अर्थशास्त्र है। भ्रष्टाचार को राजनीतिक मसला बनाने से हमेशा फासीवादी ताकतों को लाभ मिला है। यही वजह है लेखकों ने आर्थिक भ्रष्टाचार को कभी साहित्य में नहीं उठाया। भ्रष्टाचार वस्तुतः नव्य उदार आर्थिक नीतियों से जुड़ा है। आप भ्रष्टाचार को परास्त तब तक नहीं कर सकते जब तक नव्य उदार नीतियों का कोई विकल्प सामने नहीं आता।

डा जगदीश्वर चतुर्वेदी, जाने माने मार्क्सवादी साहित्यकार और विचारक हैं. इस समय कोलकाता विश्व विद्यालय में प्रोफ़ेसर

    भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन प्रतीकात्मक प्रतिवादी आंदोलन रहे हैं। इन आंदोलनों को सैलीब्रिटी प्रतीक पुरूष चलाते रहे हैं। ये मूलतःमीडिया इवेंट हैं। ये जनांदोलन नहीं हैं। प्रतीक पुरूष इसमें प्रमुख होता है। जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन से लेकर अन्ना हजारे के जन लोकपाल बिल आंदोलन तक इसे साफ तौर पर देख सकते हैं। ये मीडिया पुरूष हैं। इवेंट पुरूष हैं। इनकी अपनी वर्गीय सीमाएं हैं और वर्गीय भूमिकाएं हैं। प्रतीक पुरूषों के संघर्ष सत्ता सम्बोधित होते हैं जनता उनमें दर्शक होती है। टेलीविजन क्रांति के बाद पैदा हुई मीडिया आंदोलनकारियों की इस विशाल पीढ़ी का योगदान है कि इसने जन समस्याओं को मीडिया टॉक शो की समस्याएं बनाया है। अब जनता की समस्याएं जनता में कम टीवी टॉक शो में ज्यादा देखी -सुनी जाती हैं। इनमें जनता दर्शक होती है। इन प्रतीक पुरूषों के पीछे कॉरपोरेट मीडिया का पूरा नैतिक समर्थन है।

उल्लेखनीय है भारत को महमूद गजनवी ने जितना लूटा था उससे सैंकड़ों गुना ज्यादा की लूट नेताओं की मिलीभगत से हुई है। नव्य उदार नीतियों का इस लूट से गहरा सम्बंध है। चीन और रूस में इसका असर हुआ है चीन में अरबपतियों में ज्यादातर वे हैं जो पार्टी मेम्बर हैं या हमदर्द हैं, इनके रिश्तेदार सत्ता में सर्वोच्च पदों पर बैठे हैं। यही हाल सोवियत संघ का हुआ।

भारत में नव्य उदारतावादी नीतियां लागू किए जाने के बाद नेताओं की सकल संपत्ति में तेजी से वृद्धि हुई है। सोवियत संघ में सीधे पार्टी नेताओं ने सरकारी संपत्ति की लूट की और रातों-रात अरबपति बन गए। सरकारी संसाधनों को अपने नाम करा लिया। यही फिनोमिना चीन में भी देखा गया। उत्तर आधुनिकतावाद पर जो फिदा हैं वे नहीं जानते कि वे व्यवस्थागत भ्रष्टाचार और नेताओं के द्वारा मचायी जा रही लूट में वे मददगार बन रहे हैं। मसलन गोर्बाचोव के नाम से जो संस्थान चलता है उसे अरबों-खरबों के फंड देकर गोर्बाचोव को रातों-रात अरबपति बना दिया गया ये जनाब पैरेस्त्रोइका के कर्णधार थे। रीगन से लेकर क्लिंटन तक और गोर्बाचोब से लेकर चीनी राष्ट्रपति के दामाद तक पैदा हुई अरबपतियों की पीढ़ी की तुलना जरा हमारे देश के सांसदों-विधायकों की संपदा से करें। भारत में सांसदों – विधायकों के पास नव्य आर्थिक उदारतावाद के जमाने में जितनी तेजगति से व्यक्तिगत संपत्ति जमा हुई है वैसी पहले कभी जमा नहीं हुई थी। अरबपतियों-करोड़पतियों का बिहार की विधानसभा से लेकर लोकसभा तक जमघट लगा हुआ है। केन्द्रीयमंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्रियों तक सबकी दौलत दिन- दूनी रात चौगुनी बढ़ी है। नेताओं के पास यह दौलत किसी कारोबार के जरिए कमाकर जमा नहीं हुई है बल्कि यह अनुत्पादक संपदा है जो विभिन्न किस्म के व्यवस्थागत भ्रष्टाचार के जरिए जमा हुई है। कॉमनवेल्थ भ्रष्टाचार, 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला आदि तो उसकी सिर्फ झांकियां हैं। अमेरिका मे भयानक आर्थिक मंदी के बाबजूद नेताओं की परिसंपत्तियों में कोई गिरावट नहीं आयी है। कॉरपोरेट मुनाफों में गिरावट नहीं आयी है। भारत में भी यही हाल है।

इसी संदर्भ में फ्रेडरिक जेम्सन ने मौजूदा दौर में मार्क्सवाद की चौथी थीसिस में लिखा है इस संरचनात्मक भ्रष्टाचार का नैतिक मूल्यों के संदर्भ में कार्य-कारण संबंध के रूप में व्याख्या करना भ्रामक होगा क्योंकि यह समाज के शीर्ष वर्गों में अनुत्पादक ढंग से धन संग्रह की बिलकुल भौतिक सामाजिक प्रक्रिया में उत्पन्न होता है। 

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