तुम्हारे हनुमानों के अवैध पैदाइशों के गवाह हमेशा बने रहेंगे
Posted by Reyaz-ul-haque on 10/02/2010 06:45:00 PMअश्विनी कुमार पंकज की यह कविता उन लोगों के लिए जो यह मान रहे हैं कि 'न्याय' का फैसला ठोस सबूतों से नहीं 'आस्था' से होना चाहिए.
हजारों मुंह से बोला गया झूठ सच होता है
हम आदि वासी हैं
इसलिए इस देश पर हमारा कोई हक नहीं है
यह इस सदी में
महीने के आखिरी दिन आया फैसला
तुम्हारी नई उद्घोषणा है
यह नई बात नहीं है कि
जब भी किसी सफेद महल से
या किसी गहरे भगवे चोगे के भीतर से
शांति की कोई अपील आती है
किसी न किसी समुदाय का
जनसंहार हो चुका होता है
या ऑपरेशन ग्रीन हंट हो रहा होता है
बहुसंख्यक आबादी की आस्था का सीधा अर्थ है
संविधान की हत्या
लोकतंत्र का सरेआम अपहरण-आखेट
क्या सिर्फ इसलिए हमारा कत्ल होगा कि
हम बहुत थोड़े हैं
क्या हमारी भाषाओं को सिर्फ इसलिए
शास्त्रीय नहीं माना जाएगा कि हमारे शब्दकोष में
तुम्हारी तरह 'मादरचोद' जैसा कोई शब्द नहीं है
क्या हमारे जाहेर थान और सरना स्थल
इसलिए पवित्र नहीं हैं कि
हम अपने सर्वोच्च आत्माओं के लिए
किसी समुदाय को लूट-मार कर
महलनुमा ईश्वरालय नहीं बनाते
कि हमारी पुरखा आत्माएं पूंछविहीन हैं
या उन्हें वस्त्र पहनाने के लिए
अपनी औरतों को हम नंगा नहीं करते
ईश्वरों के भोग-श्रृंगार के लिए
सुंदरतम जीवन को कुरूप नहीं बनाते
झंडा, राज, सीमाएं सब तुम्हारे हैं
तुम गुवाहाटी में हमें नंगा करो
चाहे मार डालो कलिंग नगर में
या फिर रौंद ही डालो
हमारी आस्था के केन्द्र नियमगिरी को
या दे दो अयोध्या में अपनी ओर से
निर्णायक शिकस्त
हम आदि वासी
भारत के किसी भी जंगल में
तुम्हारे हनुमानों के अवैध पैदाइशों के
गवाह हमेशा बने रहेंगे
जब तक तुम बाँचते रहोगे अपना पवित्र ग्रंथ
हजारों मुंह से बोला गया झूठ सच होता है
हम आदि वासी हैं
इसलिए इस देश पर हमारा कोई हक नहीं है
यह इस सदी में
महीने के आखिरी दिन आया फैसला
तुम्हारी नई उद्घोषणा है
यह नई बात नहीं है कि
जब भी किसी सफेद महल से
या किसी गहरे भगवे चोगे के भीतर से
शांति की कोई अपील आती है
किसी न किसी समुदाय का
जनसंहार हो चुका होता है
या ऑपरेशन ग्रीन हंट हो रहा होता है
बहुसंख्यक आबादी की आस्था का सीधा अर्थ है
संविधान की हत्या
लोकतंत्र का सरेआम अपहरण-आखेट
क्या सिर्फ इसलिए हमारा कत्ल होगा कि
हम बहुत थोड़े हैं
क्या हमारी भाषाओं को सिर्फ इसलिए
शास्त्रीय नहीं माना जाएगा कि हमारे शब्दकोष में
तुम्हारी तरह 'मादरचोद' जैसा कोई शब्द नहीं है
क्या हमारे जाहेर थान और सरना स्थल
इसलिए पवित्र नहीं हैं कि
हम अपने सर्वोच्च आत्माओं के लिए
किसी समुदाय को लूट-मार कर
महलनुमा ईश्वरालय नहीं बनाते
कि हमारी पुरखा आत्माएं पूंछविहीन हैं
या उन्हें वस्त्र पहनाने के लिए
अपनी औरतों को हम नंगा नहीं करते
ईश्वरों के भोग-श्रृंगार के लिए
सुंदरतम जीवन को कुरूप नहीं बनाते
झंडा, राज, सीमाएं सब तुम्हारे हैं
तुम गुवाहाटी में हमें नंगा करो
चाहे मार डालो कलिंग नगर में
या फिर रौंद ही डालो
हमारी आस्था के केन्द्र नियमगिरी को
या दे दो अयोध्या में अपनी ओर से
निर्णायक शिकस्त
हम आदि वासी
भारत के किसी भी जंगल में
तुम्हारे हनुमानों के अवैध पैदाइशों के
गवाह हमेशा बने रहेंगे
जब तक तुम बाँचते रहोगे अपना पवित्र ग्रंथ
Pl see my blogs;
Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!
No comments:
Post a Comment