अरब का वसंत भारत में गोरक्षा आंदोलन बन गया है,फिर बंटवारे का सबब!
कब तक हम अंध राष्ट्रवाद, अस्मिता अंधकार और जाति युद्ध में अपना ही वध देखने को अभिशप्त हैं?
पलाश विश्वास
अरब का वसंत भारत में गोरक्षा आंदोलन बन गया है,फिर बंटवारे का सबब!हम साथियों,दोस्तों से बार बार कह रहे हैं,लिख भी रहे हैं कि यह महज गोहत्यानिषेध आंदोलन नहीं है ,यह विशुद्ध धर्मराष्ट्र का आवाहन है और यह उत्पादन प्रणाली औक कामगारों , किसानों, व्यापारियों,उद्योगों के आत्मध्वंस का चाकचौबंद इंतजाम है।
आम जनता की अपनी अपनी आस्था होती है और हमें उस आस्था के अधिकार,उनकी धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का सम्मान करना चाहिए।हम आस्था और धर्म पर वार करते रहेंगे तो धर्मोन्मादी ताकतें फिर आम जनता को अंध राष्ट्रवाद की लहलहाती फसल बना देंगे।
बेहतर हो कि हम बुनियादी मुद्दों पर ही फोकस करें और धर्मांधता और अंध राष्ट्रवाद के इस दुश्चक्री चक्रव्यूह की तमाम दीवारें ढहा दें।यह अंध राष्ट्रवाद दरअसल अबाध पूंजी है और अबाध विदेशी हित हैं।यह मुक्तबाजार का ब्रह्मास्त्र है।जिसे वे मध्यपूर्व और इस्लामी दुनिया में और विकसित देशों के जमावड़ा यूरोप में भी खूब आजमा चुके हैं।उनका हश्र देखते हुए हम आत्मध्वंस से बाज तो आयें।
हम दरअसल इसीलिए हर देश और हर देश के नागरिकों को,इंसानियत के मुकम्मल भूगोल को संबोधित कर रहे हैं।
दसों दिशाओं में धमाके हो रहे हैं।हम अंधे हैं और हम बहरे भी हैं।हमें अभूतपूर्नव हिंसा,कयामत का यह नजारा दीख नहीं रहा है।हमें धमाकों की गूंज सुनायी नहीं पड़ती।
काबुल और अफगानिस्ता में युध जारी है।मध्यपूर्व में युद्ध और गृहयुद्ध जारी है।तुर्की में शांति रैली पर नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के साथ दो दो बम धमाके हो गये।
भारत तेजी से अरब वसंत को गले लगा रहा है और हम दसों दिशाओं में हिंसा और घृणा के ज्वालामुखी रच रहे हैं जो अब कभी भी फटने वाले हैं और हिंदू राष्ट्र जो इस्लाम के खिलाफ हम बनाने को आमादा है,वह इस हिंदू राष्ट्र को इस्लामी राष्ट्रो के अंजाम तक पहुंचाने वाला है।
पाकिस्तानी कवि ने सच लिखा है कि हम भी उन्हींकी तरह निकले।
तुर्की की राजधानी अंकारा में वामपंथियों और कुर्द समर्थकों की शांति रैली में हुए दोहरे बम विस्फोट में कम से कम 95 लोग मारे गए हैं। इन विस्फोटों को दो संदिग्ध आत्मघाती हमलावरों ने अंजाम दिया।
शहर के मुख्य ट्रेन स्टेशन के नजदीक कल हुए इन विस्फोटों से देश में एक नवंबर को होने जा रहे चुनावों से पहले तनाव बढ़ गया है। कुर्द उग्रवादियों पर सरकार के जारी आक्रामक अभियान के चलते ये चुनाव पहले से ही तनाव पूर्ण माहौल से घिरे हुए थे।
विस्फोटों के बाद जमीन पर प्रदर्शनकारियों के शव बिखरे देखे गए। प्रदर्शनकारियों के वे बैनर भी बिखरे पड़े थे जिन पर काम, शांति और लोकतंत्र संबंधी नारे लिखे थे।
तुर्की के प्रधानमंत्री अहमत दावुतोग्लु के कार्यालय द्वारा अद्यतन की गई सूचना के अनुसार हमले में 246 लोग घायल हुए हैं जिनमें से 48 गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती कराए गए हैं।
Humanity might be attacked anywhere,anytime to kill peace!
गाय पर यह घमासान क्यों?गोरक्षा का गणित क्या है?
अरब का वसंत भारत में गोरक्षा आंदोलन बन गया है,फिर बंटवारे का सबब
कब तक हम अंध राष्ट्रवाद,अस्मिता अंधकार और जाति युद्ध में अपना ही वध देखने को अभिशप्त हैं?
1857 में कार्तुज में सूअर और गाय की चर्बी होने की अफवाह ने भारत को जोड़ दिया था।हिंदू मुसलमान एकताबद्ध होकर पहलीबार आजादी की लड़ाई लड़ रही थी कंपनी का राजखत्म करने के लिए।
2015 में गोरक्षा आंदलोन अब भारत में अरब वसंत है और उस वसंत की बहारें मध्यपूर्व और अफ्रीका तक में अगर तेलकुंओं की आग है तो धू धू जल रही मनुष्यता बेइंतहा शरणार्थी सैलाब है जो दुनियाभर में लावा बनकर बह निकला है और हम कुछ भी नहीं देख रहे हैं क्योंकि हम पहचान और जाति और धर्म के नाम जाप रहे हैं और उसी दायरे में कैद हैं।
भारत जातियों में बंटा हुआ है मनुसमृति शासन की शुरुआत से और वही सिलसिला जारी है।बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने इसी जाति को खत्म करना का मिशन शुरु किया था।हमने बाबासाहेब को ईश्वर बना दिया है और उनकी रुह कैद है स्मारकों और मूर्तियों में और हम उनके मिशन में कहीं नहीं हैं।
देश विदेश उनके नाम कमा खा रहे हैं।उन्ही बाबा के नाम मनुसमृति की मुक्तबाजारी वर्ग जाति सत्ता हमें जाति युद्ध में उलझा रही है और जाति को बनाये रखने के लिए शुरु धर्म युद्ध के कुरुक्षेत्र में हम पैदल फौजे हैं और देश फिर बंटवारे की दहलीज पर है।भारत का बंटवारा करने वाले हिंदुत्व का महागठबंधन फिर मजहब के नाम हम नागरिकों को और हमारे देश को बांचने पर आमादा है।
मुक्त बाजार के जश्न में लहलहाती उपभोक्ता संस्कृति में हम तन्हा तन्हा लहूलुहान हैं पल छिन पल छिन और हमें न रिसते हुए खीन का अहसास है और न अपने घिसते हुए जख्मों का ख्याल है और न दर्द का कोई अहसास है।
यही पागल दौड़ है।खून जो रिस रहा है,उसे हम चूंता हुआ विकास मान रहे हैं।
न मुहब्बत है कहीं।
न दोस्ती है कहीं।
न कोईरिश्ता नाता है।
न सच का बोलबाला है।
झूठ और अफवाहों का दंगाई राजकाज है और लोकतंत्र प्रहसन है।
नागरिकता,नागरिक और मानवाधिकार निलंबित है और इंसानियत की चीखें दम तोड़ रही हैं।फिजां आग उगल रही है।मारे उमस और धुाआं जान निकल रही है।हम डूब में टाइटैनिक बनकर डूब रहे हैं और किसी को होश भी नहीं है।
महालया पर तर्पण करनेवाले लोग हैं हम,पितरों की तड़पती बिलखती आत्माओं का,उनके त्याग और बलिदान का भी हम तर्पण करने वाले लोग हैं और हमने अंधियारे के कारोबार में मनुष्यता को होम यज्ञ में ओ3म स्वाहा कर दिया है।
दसों दिशाओं में धमाके हो रहे हैं।हम अंधे हैं और हम बहरे भी हैं।हमें अभूतपूर्नव हिंसा,कयामत का यह नजारा दीख नहीं रहा है।हमें धमाकों की गूंज सुनायी नहीं पड़ती।
ये धमाके दुनियाभर में हो रहे हैं।
सियासत,मजहब और हुकूमत अब दहशतगर्दी है।कोई देश बचा नहीं है सुरक्षित।महाबलि अमेरिका,रूस और चीन भी सुरक्षित नहीं है।दुनिया आग के हवाले है।प्रकृति जल रही है और जल रही है मनुष्यता का वद हो रहा है।
काबुल और अफगानिस्तान में युद्ध जारी है।मध्यपूर्व में युद्ध और गृहयुद्ध जारी है।तुर्की में शांति रैली पर नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के साथ दो दो बम धमाके हो गये।
Unprecedented Violence inflicts the world on Fire!
Humanity might be attacked anywhere,anytime to kill peace!
Ankara explosions leave almost 100 dead - officials
Media screams:
Turkish police attack peace protesters with tear gas as thousands defiantly march in solidarity with 97 people killed by bomb blast during earlier pro-Kurdish rally
Two explosions tore through the pro-Kurdish peace rally, killing 97 people
At least 400 people wounded in the blast near Ankara's main train station
Third deadliest terror attack in Europe, after Lockerbie and Madrid bombs
But peace protesters back out on the streets tonight in defiance of terror
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Suicide bomber in Kabul attacks foreign troops, causalities feared
The attack in Kabul came during a period of heightened tension following intense fighting between government troops and the Taliban around the northern city of Kunduz
Last day we published the correspondence from London on Ambedkar memorial which exposes the phenomenon of identity politics and the game played by class rule hegemony.
Indian democracy is reduced into FARCE.Unprecedented violence in every election!In civic polls!Union Elections!It is religious divide.It is caste war.No real issue debated at all.No problem addressed at all?
What about our citizenship,civic and human rights suspended?
We are blinded with identity,religious divided!
It is suicidal!
I am trying to invoke humanity and universal brotherhood to sustain humanity and nature.Some day,or other day ,I hope to get response!
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Dear Palash,
That is a bad heading. The key question is why the ruling classes are eager to grab such opportunities of erecting memorials while burying Ambedkar's ideology. Giving credit to FABO will distort this key point inasmuch it is the dalit diaspora who did it. The fact is that in terms of consciousness they are no better than the dalits here. They are also not beyond the identity markers and like any upwardly mobile dalits here would not like to hear about the stark reality of dalit existence. I think this time you missed the point.
Regards
Anand
Yes,I admit,I missed the point.
I am changing the heading and deleting the misunderstanding of the point.
Oct 11 2015 : The Times of India (Ahmedabad)
Cops see saffron plot in Mainpuri violence
Ishita Mishra |
Karhal (Mainpuri): |
Son Of Man Who Gave Away Cow Started Rumours
Senior police officers, who dashed to Mainpuri soon after violence broke out on Friday after a mob of Hindus tried to lynch a group of Muslims charged with the killing of a cow, have told TOI that prima facie some right wing organisations seem to have been involved in fomenting the riot.
In clashes that followed through the day several shops belonging to Muslims were gutted. Police vehicles were set on fire, too, and seven cops sustained injuries as they fought pitched battles with local residents.
A top-ranking IPS officer involved with the investigations said, "Many in the mob were wearing saffron stoles. They raised slogans like `Jai Shree Ram' and `Gai humari mata hai'. The mob targeted only those shops that are owned by a particular community ." Incidentally, some cops TOI spoke to claimed many in the mob started removing their saffron stoles when police resorted to lathi charge to quell the rampaging crowds.
Most of the 22 who have been arrested are men in the age group of 18-25 and were identified on the basis of video footages. Police officers further revealed that certain texts and WhatsApp messages were widely circulated prior to the violence. Cops have seized dozens of mobile phones from those who have been held and also those who are being quizzed."We are looking at the videos circulating on local WhatsApp groups, on Facebook and Twitter," an officer said. Agra DIG Lakshmi Singh, who is leading the investigations, said, "A name has cropped up in the probe. He belongs to a right wing organization. The man is supposed to have organised such a huge crowd within no time. His name is there in the FIR as well. Investigations are on track and soon we will have solid proof against those who started this. They will be behind bars."
What has surprised both police and the administration is that it was the son of the Hindu man who had actually given the dead cow to the Muslims to be skinned who started the rumour that the animal had been killed. Within moments of the four Muslim men being spotted skinning the cow, hundreds had converged at the spot. While two of the Muslim men managed to flee, two were caught and would have been lynched had police not arrived in time to save them.
Many local residents, too, said the violence looked like it had been "planned for weeks" and that a larger game was at play . They said they were surprised at how quickly a mob had gathered, pushing police on the back foot. Some cops were even heard pleading with the mob not to attack them.
"We were actually cornered when it all started," said Dilip Singh, SHO at Karhal in Mainpuri.
For the full report, log on to http:www.timesofindia.com
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www.theguardian.com › World › Turkey
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www.independent.co.uk › News › World › Europe
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