एकच डीएनए वाले हैं हम,बुद्धमय भारत,पंचशील विरासत के वारिस भी हैं हमीं तो!
यह विज्ञान और इतिहास का सच है।बंटवारे का करिश्मा मनुस्मृति है।हुकूमत मनुस्मृति अनुशासन के वंश वर्चस्व और पितृसत्ता की है। राजकाज संता बंता का है।जिसे नफरती तूफां पैदा करनेकी फितरत है और इसीलिए यह कयामती फिजां।मंजर यह नफरती तूफां का,जहां मुहब्बत मना है।सख्त पहरा है।
अखिलेश यादव ने यूपी में महागंठबंधन बिहार की तर्ज पर बनाने की पेशकश की है और मायावती के पास ऐतिहासिक मौका है कि इस बलात्कार सुनामी का सिरे से अंत कर दें।हम नहीं जानते कि महामहिम की तरह कहीं उनके विचारों के रंग तो नहीं बदल गये हैं।
Study of 73 ethno-linguistic groups establishes that ancient India was one in which all people intermingled freely!
India is inflicted with Mandal Kamandal Civil war just because of an artificial system Manusmriti imposed upon generations of people that encouraged inequality and supressed them for 2,000 years.
Voltaire Biography Documentary
https://www.youtube.com/watch?v=fYfQaiNsVZM
अंध राष्ट्रवाद के आवाहन के लिए जनादेश के बिना,संसदीय सहमति के बिना देश को जो ग्लोबल कारगिल युद्ध में झोंक रहे हैं,वे ही दरअसल राष्ट्रद्रोही हैं,कोई और नहीं।
महामहिम के विचारों के रंग भी शायद बदलने लगे हैं,यह खतरनाक है।
पलाश विश्वास
यह आलेख लिखने से पहले जो महामहिम राष्ट्र को बाबर बार संबोधित करके देश में सहिष्णुता और बहुलता बहाल रखने के लिए अमन चैन की गुहार लगा रहे थे,बिहार जनादेश के लिए खरीदे गये फतवे के बाद वे ही महामहिम पुरस्कार लौटाने वालों को पुरस्कारों की महिमा समझा रहे हैं।
हम नासमझ बुरबक और अपढ़ है और तमाम जिंदगी हमने सियासत या मजहब में सीढ़ियां चढ़ने में नहीं बितायी हैं और हमें न महामहिम की महिमा समझ में आ रही है और न पुरस्कारों की महिमा।
जाहिर है कि पुरस्कार हमें मिला नहीं है और न हम कुछ लौयाने की हैसियत वाले हैं,तो उसकी महिमा तोखैरहम समझ ही नहीं सकते।
इतना समझ रहे हैं कि महामहिम के विचारों के रंग भी शायद बदलने लगे हैं,यह खतरनाक है।
अखिलेश यादव ने यूपी में महागंठबंधन बिहार की तर्ज पर बनाने की पेशकश की है और मायावती के पास ऐतिहासिक मौका है कि इस बलात्कार सुनामी का सिरे से अंत कर दें।हम नहीं जानते कि महामहिम की तरह कहीं उनके विचारों के रंग तो नहीं बदल गये हैं।
आज सुबह ही क्लास जाने से पहले हमने मोबाइल पर अपने आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े को धर लिया क्योंकि लंदन में कल्कि अवतार की यात्रा का विरोध दलितों ने भी किया है और अंबेडकर स्मारक का उद्घाटन करने से पहले उनसे भारत में दलित उत्पीड़न,दलितों की हत्या और दलित स्त्री से बलात्कार का रोजनामचे को राजकाज का मामला भी उनने बता दिया।
दलित संगठनों की नेता संतोष दास का खुला पत्र हस्तक्षेप पर टंगा है।देख लें।जिनेटिक सर्वे पर विस्तार से लिखने से पहले हम आनंद की विशेषज्ञ राय जानना चाहते थे क्योंकि हमें अंबेडकर अनुयायी बताते रहे हैं कि हमारी इतिहास दृष्टि बाबासाहेब के इतिहास बोध के उलट नहीं होनी चाहिए।
इस घनघोर चर्चा के बाद हम लोगों ने तय पाया कि हम सिर्फ अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडे पर बोलेंगे लिखेंगे।
बाकी चीजों का महिमामंडन या खंडन नहीं करेंगे।
हम आपसी विचार विमर्श का ब्योरा भी सिलसिलेवार बताते रहेंगे।फिर हस्तक्षेप पर आपसे हस्तक्षेप की उम्मीद भी करते रहेंगे।
यह असहिष्णुता हमारी आम जनता की कारस्तानी कतई नहीं है,यह समझना बेहद जरुरी है।
बजरंगी फिजां बनाने वाली बजरंगी ब्रिगेड आम जनता नहीं है।
भारत विभाजन जैसे हादसे के बाद तमाम मजहबी सियासती हरकतों के बावजूद सरहदों के आर पार साझे चूल्हे अब भी सुलग रहे हैं और आम जनता की आस्था और संस्कृति चाहे भिन्न भिन्न हों वे हजारों साल के एकच रक्त समन्वय के तहत साथ साथ जी मर रहे हैं।
दंगे फसाद हो रहे हैं कहीं कहीं जरुर,फिरभी देश अभी एक है।
पूरे देश को जलाकर खाक करने की मुहिम हर बार नाकाम इसीलिए।
हुकूमत,सियासत और बाजार के रंग बिरंगे बदलाव के बावजूद लोकपर्व का यह साझा चूल्हा सही सलामत है और भारत का विवेक भी मरा नहीं है और न आत्मा मरी है वरना बाबरी विध्वंस या आपरेशन ब्लूस्टार या गुजरात नरंसहार जैसे हादसों में हम बिखर गये होते।
लहूलुहान जरुर हैं किसान,छोटे कारोबारी ,मेहनतकश जनता,गैर मजहबी लोग,दलित पिछड़े आदिवासी मुसलमान और सिख, लेकिन उनका गुस्सा सत्ता और वंश वर्चस्वी रंगभेदी हुकूमत के खिलाफ हैं और यह भारत देश के खिलाफ नहीं है।
राष्ट्रद्रोही तो वे हैं जो बिना संसदीय अनुमति,बिना जनादेश राष्ट्र को देश विदेश घूम घूमकर अंधियारे के हरकारे की तरह बेच रहे हैं क्योंकि मिथकीय धर्म कर्म और जाति के नाम देश का निरंतर बंटवारे करने वाले वे रंग बिरंगे लोग दरअसल कटकटेला अंधियारा के तेज बत्तीवाले डालर पौंड येनतेन कारोबारी हैं।
राष्ट्रद्रोही तो वे हैं जो बिना संसदीय अनुमति,बिना जनादेश राष्ट्र को किसी और राष्ट्र के युद्ध में शामिल करके ग्लोबल कारगिल का आवाहन कर रहे हैं और उन्हें इस बात का कतई अंदाजा नहीं है कि वे दरअसल तेलकुंओं की आग में राष्ट्र और जनता को ओ3म स्वाहा कर रहे हैं।
हम ऐसे महाजिन्न,ऐसे एफडीआई बिरंची बाबा के टाइटैनिक विकास के मुरीद हैं तो हम भी किसानों की आत्महत्या में अपना भी नाम दर्ज करवाने के लिए तालियां बजा रहे हैं।
बहरहाल,आनंद तेलतुंबड़े ने भी माना कि बुद्धमय भारत के अवसान के बाद भारत में तमाम नस्लों की रक्त धाराएं एकाकार हो गयी थी और 73 भाषाई नस्ली ग्रुपों के डीएनए का जो सर्वे छपा है,वह वैज्ञानिक खोज का नतीजा है और यह इतिहास के मुताबिक भी है।बुद्धमय भारत में गैरनस्ली कोई नहीं था।प्राचीन भारत में भी नहीं।खूनखराबे होते रहे और रक्तधाराओं के महाविलय से बन गया भारतवर्ष,जो रवींद्रनाथ का भारततीर्थ है।
जाहिर है कि आनंद के इस विशेषज्ञ अभिमत के बाद हमारा मानना है कि किसने क्या कहा,क्या नहीं कहा,इससे इस सच को झुठलाकर हम फिर बंटवारे के सियासती मजहब के गुलाम बनकर कुत्तों की तरह मरने जीने को वैसे ही अभिशप्त हैं,जैस जनरल साहेब का फतवा है जो सच है कि हम गुलामों के भी गुलाम हैं।कुत्ते हैं।
इस सिलसिले में कल हमने अपने प्रवचन में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के लिखे मध्यएशिया के इतिहास की भूमिका का पाठ भी किया।जिसमें उनने भी रवींद्रनाथ की जिस भारत तीर्थ कविता में तमाम रक्तधाराओं के विलय की बात की है,उसी सिद्धांत के मुताबिक मध्य एशिया और उसके आर पार भारतीयता की जड़ें खोजने का काम किया है।
मध्य एशिया का इतिहास,महापंडित की यह पुस्तक अनिवार्य है जो भारत की एकता और अखंडता के समर्थक हैं।
हमने आज अपने प्रवचन में छठ लोक पर्व में इतिहास की यह निरंतरता खोजने की कोशिश की है जिसमें आरण्यक वैदिकी शक्तियों की आराधना की निरंतरता बिना भेदभव,बिना पुरोहित जारी है।दूसरा लोकपर्व त्रिपुरा का गड़िया बाबा उत्सव विशुध कृषि आजीविका और नई फसल का उत्सव है जो आदिवासी गैर आदिवासी बिना भेदभाव मनाते हैं।
रोगमुक्ति के लिए सूर्य को अर्घ्य देने का लोकरिवाज शुरु करने वाली अदिति की पूजा छठ मइया के रुप में होती है,लेकिन मातृसत्ता के इस उत्सव में अर्घ्य सूर्य को दिया जाता है,जो कोई देव नहीं,बल्कि ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत प्राकृतिक नक्षत्र है।
यह परंपरा एक ही डीएनए के भारत की है और बिहार या किसी दूसरे सूबे, मजहब, जाति, नस्ल का कोई अलग डीएनए नहीं है।इस सिलसिले में किस महापुरुष ने क्या कहा और नहीं कहा,उस पर हम बात नहीं कर सकते और वहप्रसंगिक भी नहीं है।
कुल मसला इतना है कि बुद्धमय भारत में जो रक्तधाराएं एकाकार होकर भारत तीर्थ बना और तेलतुंबड़े के मुताबिक रक्तधाराओं का ऐसा समन्वय कहीं अन्यत्र नहीं हुआ और यही दरअसल भारत में बहुलता के मध्य एकता है जो प्राचीन भारतीय सभ्यता की नींव है जिसे मनुस्मृति के नस्ली भेदभाव वाले वंश वर्चस्व की जनमजात जाति व्यवस्था ने तहस नहसकर दिया बुद्धमय भारत का अवसान उसीसे हुआ तो पंचशील को फिरभी हिंदुत्व में समाहित कर दिया।
विदेशी हमलों और गैर मजहबी हजार साल के करीब राजकाज के बावजूद हिंदुत्व अगर बचा है तो इसी पंचशील की वजह से,जो गांधीवाद है,रवींद्र साहित्य है,बाबासाहेब डा.अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडा और सामाजिक आंदोलन कृषक विद्रोहो आदिवासी विद्रोहों से लेकर भक्ति आंदोलन की विरासत और समाजवादी आंदोलन भी है,जिसका लक्ष्य वैज्ञानिक और इतिहास के सत्यके मुताबिक भारत की बहुलता,एकता और अखंडता,एक रक्त डीएनए के मुताबिक समता और समामाजिक न्याय है।
अश्लील चुटकुलों से सिखों और सिखी की मजाक उड़ाने वाले संता बंता अब शुगली जुगली के नाम से यह पुणयकर्म जारी रखेंगे। सिखों के नरसंहार को अंजाम देने वाली मजहबी राजनीति का नजारा भी यही है।
संता बंता दीख नहीं रहे हैं।
उनके चेहरे बदल गये हैं और दरअसल वे अब शुगली जुगली हैं।
अकाली राजनीति की आत्मघाती खूंरेजी ने बंजाब और समूचे देश को आग के हवाले कर दिया।वही अकाली लागातर सत्ता में हैं चाहे केंद्र में सत्ता का रंग बदलते रहे।
सिखों के जख्म हरे हैं तो मलहम की जगह पर उन्हें नमक पानी से सींचने का काम मजहबी सियासत कर रही है।
हम इस पर बोल भी नहीं पा रहे हैं।जैसे कश्मीर निषिद्ध विषय है वैसे ही पंजाब में चल रही खलबली जो ज्वालामुखी की तरह उबल रही हैं,उसकी किसी को खबर नहीं है।
संता बंता को कुछ भी कहने की आजादी है।संता बंता न सही,शुगली बुगली को कुछ भी कह लेने की आजादी है।
इस देश में अब संता बंता का ही राजकाज है और वे रक्त बीज हैं,जिसे कोई चंडी या दुर्गा भी खत्म नहीं कर सकतीं।
मातृसत्ता के तमाम प्रतीक भी सतीत्व और मुक्तबाजारी मिथकों, रिशतों,सुरक्षा,सशक्तीकरण और उड़ान की तरह मिथ्या है।पितृसत्ता के दस दिगंत वर्चस्व में जिसका कोई वजूद ही नहीं है।
गौर कीजिये,जिन जनरल साहेब ने दलितों की हत्या पर फतवा दिया था कि कुत्ते की मौत से हुकूमत का क्या लेना देना है,उनके ताजा बोल हैं कि साहित्य अकादमी और दूसरे पुरस्कार लौटाने वाले जो लोग हैं,उन्हें बिहार के जनादेश को बदलने की खातिर पैसे देकर खरीद लिया गया।
अब इनसे भला क्या राष्ट्र के विवेक,नागरिक स्वतंत्रता,अभिव्यक्ति, कला,साहित्य,विज्ञान,इतिहास,गणित अर्थशास्त्र की उम्मीद करें?
मुश्किल तो यह है कि भारत सरकार के राजनय के जिम्मेदार भारतीय गणराज्य के एक सूबे के संप्रभू नागरिकों के जनादेश का सम्मान भी उसी भाषा में प्रदर्शित कर रहे हैं जैसे कि गुजरात दंगों के मामले में सत्ता बदल जनादेश के बाद साफ छूटे महादंगाई ने अपने बाहुबलि बाजुओं को तौलते हुए बिहार को पाकिस्तान बनने का फतवा दे दिया।
अब मुश्किल यह है कि समूचे बिहार को फिर नीतीशे कुमार जनादेश के अपराध में पाकिस्तान भेजना तो संभव है नहीं तो आसान सा तरीका है कि इस जनादेश की धज्जियां उधेड़ दी जाये।
हरित क्रांति से शुरु खेती और किसानों की तबाही से जो आर्थिक संकट खड़ा कर दिया और पंजाब में किसानों के अपनी उपज लागत के बराबर बाजार में बेचना मुश्किल हो गया और पूरे देश में यहीं संकट रहा है और आज भी किसान मारे जा जा रहे हैं थोक भाव और हम इस त्रासदी को किसानों की आत्महत्या बताते हुए मुक्तबाजारी जुगाली कर रहे हैं बहुमंजिली सीमेंट के जंगल में।
कल हमने लिखा थाः
ढेरो पादो मत!फिजां बजरंगी!पादेकै इजाजत नइखै!
जीभ संभालके रहियो और तनिको डरियो कि जीभ की भी सुपारी चालू आहे।शांतता।सहिष्णुता चालू आहे!
सारा खेल सहिष्णुता की बिगाड़ दिहिस जो ससुरे,हम सोचे रहे।त एफडीआई बाबा ई वखत अंकारा इसंतांबुल मा ना जानै का का गुल खिलावैके चाहि।पण हियां तो सफेद लालो गुलाब सभै लहुलुहान।
लिखना विखना बंद करै तो खाल बच जाई का?
पलाश विश्वास
खबर अभी वायरल हुआ नहीं है कि जीभ संभालके रहियो और तनिको डरियो कि जीभ की भी सुपारी चालू आहे।शांतता।सहिष्णुता चालू आहे!भइये,हमारी जुबान तो बेलगाम ठैरा,सविता बाबू 33 साल से लगाम लेकर पीछे पीछे दौड़ रही हैं।
परवचन मा आवाज तनिको तेज हो जाई तो खटाक से दरवाजे से मुंडी घुसेड़के गोला दागे रहिस आहिस्ते आहिस्ते।अब न परवचन परतिबंधित हो जाई।घरे मा सेंसर हो जाने का अबहुं बड़का खतरा।डीलीट डीएक्टिवेट तो करै रहे।
विज्ञापन ससुरे इसीलिए लगाने से परहेज करते हैं कि ससुरा लगाम लगायेके,हिजाब से चेहरा ढांपने के या जाब लगाइके चलने फिरने की आदत नहीं।
थोड़ा कबीर दास बन जाने का भी शौक चर्राता है कभी कभार और भरे बाजार विशुध देसी भाखा में हमारी जुबान लहलहाती है।लचकै भी आउर बहकै भी।शुध हो कि अशुध दूसरों की बोली में भी बोलने चालने की आदत खराब है।भाषा दंगाइयों से अब तक बचे हुए थे।
हम तो निशचिंतो हो गये ठैरे कि खास लंदन में,हमारे मालिकान के खास अंदर महल में नेपालियों की आर्थिक नाकेबंदी के विरोध,सिखों के उचाले मारते रिसते जख्म और गुजरात नरसंहार के बाबत कैपियत तलब और कमसकम दो सौ लेखक के आयं बायं बकते रहने,विपक्ष के सांसदों की ओर से मानवाधिकार वगैरह सवाल खड़े होने के बावजूद एको दुई नाहीं,नौ नौ बिलियन डालर पौंड का मानून तमिलनाडु के बेमौसम मानसून को हराय दिहिस।
मौनी बिररिंची बाबा के बोल फूटेला।य खोसला का घोसला भी न दीखे हो कि एक्टर डाइरेक्टर के फ्रेम से बाहर निकलरके राजपथ पर महिला का चीरहरण कर दे और डिरेक्टर बाबू मोशाय पहिले से एवार्डो लौटायके देशदोरहियों की पांत मा शामिल हुई गयो।
बजरंगी हनुमान ससुरा भगवान भी होवे हो,फिल्म बजरंगी भाईजान ने हिंदुस्तान पाकिस्तान एको कर दिहिस के पाकिस्तानी भी बोले जय शश्री राम।
त हनुमान जी कै उछलोकूद,मंकी बात पर न जइयो जैसे नदी नारे न जइयो,ससुरी या जहरीली विषकनिया या फेर बिकी गयो।
हनुमान जी बिकायो नइखे।भगवान अलगे ठैरे तो उनर करतब मजेदार खूबै भावेला हमका,ताली हमउ पीटत रहे।
बसशेश्वर बाबा के लिंगायत आंदोलन का जलवा मार टीपू मार है तो जाहिरेे कि बसशे्वर बाबा भी अवतर हुई गयो जइसन हरिचांद ठाकुर मैछिल बामहण बाड़न।
उ त अंबेडकर बाबासाहेब भी हिंदुत्व को मजबूत करै रहै और इसी खातिर सारे के सारे दलित रामो हनुमान भयो।बाबासाहेब का इसमारक का भी उदघाटन हुई गयो।
कुल शिकायत यहींच कि असल अनुयायी या फेर असल मसीहा को न्यौता भेजा के नको नको।नको।
फिन कैमरन भइया के साथ शाकाहारी छत्तीस व्यंजन और 10 डाउनिंग पर बावलोके अननंतर महारानी कै पैलेस मा भी जलवा बहार रही।विनिवेश एफडीआई से लेकर आतंकवाद के किलाफों जुध का शुध हिंदुत्व वसंत बहार हो गयो।
सो बिरंची बाबा,अबहुं तुर्की मा जलवा बिखेरे रहिस तो हनुमान जी को भी जी मिचलावै कि तनिको उछल कूद आउर मंकी सनकी बाते हुआ चाहे जइसन हमउ हउ चाहे।
त लंदन मा टाइटैनिक बाबा दाग दिहिस गौतम बुध आउर गान्ही बाबा के बोल पंचशील वगैरह वगैरह कि असहिष्णुता हुई तो बरदशत नाहीं।हमउ निशचिंतो हो गये ठैरे।अब ई का?
मोदी को तालिबानी कहने वाले ब्रिटिश लेखक की जीभ काटने वाले को 21 लाख का इनाम देगा उग्र कट्टरपंथी हिंदू क्रांति दल!
सुबो सुबो फेसबुक वालवा पर अपने बनारसी उज्ज्वल बाबा टांक दियो कि शर अनीश कपूर की जीभ की सुपारी 21 लाख की हो गयो रे।सवेरे सवेरे परवचन दागके थको गयो हो।
अंग्रेजीमा जो पाद दिहिसत पादे दिहिस के 73 लिंगो एथनिक ग्रुपवा के जिनेटिक डीएनए सर्वे से प्रूव हुई गयो की बुद्धमय भारत के अवसान से पहिले उ जो नोबेलिया कवि ह,जेकर राष्ट्रद्रोही भगवा तमगा खातिर मन हमार उचाट रहे के उ कवि भी अछूतो रहे।
जात से तड़ीपार पिराली बामहण।इस पर तुर्रा ई कि पिता देवेनदर नाथ ठाकुर बरहममो रहे जो म्लेच्छ बाड़न।
तनिको शरत बाबू के नावेल जो चाहे सो उठाय लेव,देखो गौर से कोनो बरहममो बामण ना बाड़न।कहत रहे भगवा बिरादरी कि राष्ट्रगान उनर,जनगणमन जार्ज पंचम की तारीफ ह।
त उनर भारत तीर्थ का रिसाइटो बांग्ला आउर अंग्रेजी मा,पेरिस से ठेठ फ्रेंच अपडेट आुर एको दुई नइखे ,पेरिसमा खेत रहे सत्तर सत्तर अमेरिकी नागरिकों के ग्रीकङादसा अननंतर ओबामा भाया की सिंहगर्जना भी दाग दियो।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन के मध्य एशिया की बारतीयजड़ों को भी खंगाल लियो।
अब ई रपच भगवा बिरगेड रचि राखा कोई पुराण स्मृति वगैरह नइखै ।शोध ह शुध।अमेरिका से हावार्ड यूनिवर्सिटी के अलावा मलिकुलर बायोलाजी के सैंपल सर्वे का रिजल्ट रहे।
इलेक्शन रिजल्ट नइखे।
हमउ फेर मा के डीएनए सचमुचो एकच रहे।
मनुस्मृति से पहिले बुद्धमय भारत तलक के लड़ भिड़कर सारी नस्लों का विलय भारत तीरथ हुई रहे।सो भारत तीर्थ दागे रहिस।
फिर हम सोचे रहे,बेकारो हनुमानजी कै उछलकूद शेयरबाजारी मुक्तबाजारी की हम आलोतना करै रहै।
फिन सोचे रहै कि तनिको भारतवासी एइसन किरपा हमउ पर कर दिहिस के हमउ परधानमंत्री उंत्री बन जाई तो झोला टांगे हुलस हुलस कर गिरदा दगाड़ गाड़ गधेर नदी नाला झील घाटी शिखरों शिखर जो उछले रहे आउर बापकी विरासत ढोये कहीं भी कबहुं जायेके रहै लेकिन सरहद बाप की तरह बिन वीसा बिन पासपोर्ट लांघेके करेजा नइखे, त जइसन ई विदेशोविदेश राजकाज दागे ह,उसी तर्ज पर हमका परधानमंत्री बना दिहिस तो देस परजटन छोड़ हमउ एनआररआई हो जाई!
देश को एनआरआई परधानमंत्री मिलेला!
बाकीर सगरे हिंदुस्तानमा रामराज ह!
लंदन मा झूठ के बोले सकै!
फिन पेरिस में जो मुंबई ब्लास्ट हुई रहे तो फिन तेल जुध की तैयारी बा, त मौनीबाबा बिरंची बाबा कनफर्म कर दिहिस के इंडिया अमेरिकवा के जुध मा पार्टनर ह।
नौ बिलियन हियां लंदन से फटाक मिलेला त वाशिंगटन से डालरोडालर फलकतोड़ मिसाइल बरखा या के परमाणु धमाका हिंदुत्व के दुशमन जहां के खिलाफो।फिन वही हिंदुत्व तालिबान।
हम मानेके चलेला कि बड़ सहिष्णुता भयो रामराज मा।
हमउ मनेके चलेला कि साहित्यकार ससुरे ,फिल्मकार सगरे,वामपंथी इतिहासकार सारे,उलटखोपड़ी वैज्ञानिक आउर हियांतक के सरहद के लड़ाके पूर्व सैनिक सारे के सारे राजनीति पादै रहिस आउर असल देशभक्त तो उ ह जो देस देश घूमिकै घुमाइकै देश बेचे रहिस त तालियां ही तालियां!
असहिष्णुता हमारे धर्म और परंपरा के खिलाफ बा।बाबासाहेब हिंदुत्व मजबूत करै रहिस तो वसशेश्वर बाबा से लेइके हमार तमामो पुरखे हिंदुत्व के सिपाहसालर हुए रहे।
गउतम बुद्ध भी विष्मु अवतार बाड़न।
आउर गान्ही बाबा तो मरे वखत भी हे राम कहे हो।
खाली मुली परम देशभक्त गोडसे बाबा बदनाम हुई रहे।उकरमंदिर बी बनावेक चाहि सहिष्णुता की इस कयामती फिजां मा।
अब हामरी तो सिट्टी पिट्टी गुमा गइल सोचे रहे लेखन वेखन बंद करैके चाहै के जान बची तो लाखों पावै आउर बजरंगी हुयो तो छप्परफाड़ दिवाली बिलेटेड।
चुप्पी साधे लिन्हें कि इतिहास बनेके बनावेक के मउका बड़जोर ह।अपढ़ सगरे मंतरी सांसद विधायक परधान या पतिपरधान बनेके मजा खूब लूटेला।
डालरो बहार।पौंडो बहार।येनो तेनो बहार।
रुबल के भाव नइखे।
एफडीआई बाबा की जै।
बजरंगवली की जै।बिररिंची बाबा,टाइटेनिक बाबा की जै।
सारा खेल सहिष्णुता की बिगाड़ दिहिस जो ससुरे,हम सोचे रहे।त एफडीआई बाबा ई वखत अंकारा इसंतांबुल मा ना जानै का का गुल खिलावैके चाहि।पण हियां तो सफेद लालो गुलाब सभै लहुलुहान।
लिखना विखना बंद करै तो खाल बच जाई का?
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