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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, November 28, 2015

क्योंकि भावी पीढ़ियों को न जल मिलने वाला है और न अन्न। यह महादेश मरुस्थल में तब्दील होने वाला है। जल के सारे स्रोत स्रोत सूख रहे हैं।आगे जलयुद्ध है।

 क्योंकि भावी पीढ़ियों को न जल मिलने वाला है और न अन्न।
यह महादेश मरुस्थल में तब्दील होने वाला है।

जल के सारे स्रोत स्रोत सूख रहे हैं।आगे जलयुद्ध है।

https://youtu.be/YkgDFsVMp-0


जिंदाबान..दीवारें जिंदाबान!

दीवारें जो गिरायें,वो उल्लू दा पट्ठा!

इसीलिए इतिहास लहूलुहान,पन्ना दर पन्ना खून का सैलाब!

लहुलुहान फिजां है

लहुलुहान स्वतंत्रता

लहुलुहान संप्रभुता

लहूलुहान इनडिविजुअल

लहुलूहान ट्राडिशन

लहूलुहान यह कायनात

और यह कयामत का मंजर


फासीवाद की कुंडली भी बांच लीजिये!

गांधी की प्रार्थना सभा में हत्या! Murder in the Cathedral! Rising Fascism and the Burnt Norton!

पलाश विश्वास

पिछले साल जाड़ों में हम कोलकाता से नैनीताल होकर देहरादून गये थे।रास्ते में सविता बाबू के मायके में रुके थे बिजनौर।


देहरादून में बीजापुर गेस्टहाउस में मुख्यमंत्री हरीश रावते के बदल वाले कमरे में ठहरे थे और उन्हींकी कार से सुंदर लाल बहुगुणा जी से मिलने उनके घर गये थे,जिनसे मिलने के लिए हमारा देहरादून जाना और अन्यत्र कहीं जगह न मिलने की वजह से मुख्यमंत्री का अतिथि बनना हुआ।

उत्तराखंड के कांग्रेसियों को शायद मालूम न हो कि मुख्यमंत्री हरीश रावत बी हमारे साथ चिपको आंदोलन में शामिल थे।उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद शमशेर बिष्ट दाज्यू ने  इस ओर ध्यान दिलाया तो हमने राजीव लोचन साहज्यु से पूछ लिया कि वे  कब आंदोलन में थे।जवाब में राजीव दाज्यू ने कहा कि 28 नवंबर को वनों की नीलामी के खिलाफ नैनीताल क्लब जला देने की वारदात से पहले गिरदाषशेखर,शमशेर दाज्यु और उनके साथ जो लोग गिरफ्तार हुए,उनमे हरीश रावत भी थे। 

इस वाकये के बाद वे राजनीति में लैंड हो गये और अब जाकर मुख्यमंत्री हुए।

सुंदरलाल जी से हमारे मिलने का मकसद था कि जल जंगल जमीन की जो लड़ाई वे लड़ रहे थे,वह पर्यावरण आंदोलन है और पासिज्म के राजकाज में प्रतिरोध का सबसे बेहतरीन रास्ता यह पर्यावरण आंदोलन है और हमें पिर पर्यावरण मुद्दों को फोकस में लाना है।मस्त मौला संगीतकार गायक और अब उत्तराखंड के प्रेस कमिश्नर राजीव नयन बहुगुणा इन्ही सुंदर लाल जी के बेटे हैं अविवाहित और उनकी मस्ती जगजाहिर है।

राजीवनयन दाज्यू हमसे पत्रकारिता में सीनियर हैं हालांकि पत्रकारिता उनकी मंजिल कभी नहीं रही है।नभाटा के त्तकालीन संपादक राजेंद्र माथुर सुंदरलाल जी के मित्र थे,इसलिए लग हाथ उनने पटना नभाटा में चाकरी कर ली।पत्रकारिता में ठहरे नहीं वरना वे हमसे तो बेहतर प्तरकार हैं ही।उनके सटीक मंत्वयऔर बेलाग बोल का मैं हमेशा कायल रहा हूं।

सुंदरलाल जी से वह हमारी दशकों पुरानी मुलाकात थी और इसके बावजूद उनने फटाक से हमें पहचान लिया।राजीव नयन दाज्यु से कह रखा था कि बातचीत रिकार्ड करनी है,आप पहुंच जाना।वे तब पहुंचे जब बातचीत खत्म करने के बाद उनकी और हमारी माताजी विमला जी ने चाय का गिलास हमारे हाथ में थमा दिया।

सुंदर लाल जी से तब पर्यवरण,चिपको और राजकाज के बारे में विस्तार से चर्चा हुई थी और इस बारे में हमने पहले ही लिखा है।गांधीवादी सर्वोदयी सुंदरलाल बहुगुणा ने तब चेतावनी दी थी कि यह महादेश मरुस्थल में तब्दील होने वाला है।

जल के सारे स्रोत स्रोत सूख रहे हैं।आगे जलयुद्ध है।

तभी उनने कहा था कि वे गंगोत्री जाकर ग्लेशियर को मरुस्थल बनते देख आये हैं और इसके बाद उनने अन्न त्याग दिया है क्योंकि भावी पीढ़ियों को न जल मिलने वाला है और न अन्न।

अब हम यह तो  नहीं कह सकते कि सुंदर लाल जी से फिर मुलाकात होगी या नहीं और वह अधूरी बातचीत फिर आगे बढ़ेगी या नहीं,लेकिन राजीव नयन बहुगुणा की दीवाल पर टंगे पोस्ट ने पिर उस मुलाकात,उस बातचीत को ताजा कर दिया है।
धन्यबाद राजीव नयन दाज्यु।

मित्रो । ये मेरे पिता सूंदर लाल बहुगुणा का 35 साल पुराना पिक है। गोमुख जाकर उन्होंने भात खाना छोड़ा । क्योंकि चावल की फसल में पानी ज़्यादा खर्च होता । इसी तरह उन्होंने 1956 में पॉलिटिक्स छोड़ दी थी । क्योंकि उन्हीं के साथी कोंग्रेसियों ने उन्हें चुनाव हरवा दिया था । ऐ क्या बोलती तू । आती क्या खंडाला ।

Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna's photo.

एक पुरानी कथा ; टिहरी बाँध के विरुद्ध 1992 की सर्दियों में अपना घर बार छोड़ तम्बुओं में डेरा डाले मैं और मेरा पूरा परिवार । हमारी तीन पीढियां मोर्चे पर ।

Shishram Kanswal मजेदार बात यह भी कि जबरन बॉध की खातिर घर बार से खदेड़े गये विस्थापितों और विना मुआवजा ,विना जमीन दिये ही खदेड़े गये लोगों के बिरुद्ध बॉध के दलालों द्वारा दुशप्रचार कि बॉध प्रभावितों को बहुत दिया गया ,आज भी प्रभावी है । कोई भी मानने को तैयार नही कि २००० से ज्यादा परिवारों को कुछ नही मिला ।
पूर्व टिहरी स्टेट के निवासियों के विरुद्ध यह अमानवीय व्यवहार १९४९ से जारी है । नया जनान्दोलन ही न्याय दिलायेगा ।


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