मतलब के बाहरो से खतरा जेतना,भीतरे खतरा उससे कहीं जियादा।
ब्रुटस पर भरोसा खतरनाक ह,संभर जइयो!देश खतरे में।संभर जइयो!
नदीनारे न जइयो!
कि किस्सा यही जुलियस सीजर से लेकर कैनेडी लिंकन,इंदिरा राजीव मुजीब बेनजीर ह,जेम्सवा ने अंखवा मा उंगली किये रहे।
बाकीर किस्सा ससुरे कर्मचारी नौकरी पर नहीं होंगे तो कैसा वेतन और कैसी वेतनवृद्धि?
सावन के अंधे के लिए हरियाली ही हरियाली,लेकिन मौसम बदल गयो रे।
सरकार के लिए जनादेश अब बड़ा सरदर्द है,अर्थव्यवस्था को ठिकाने लगा दिया गया है।
आर्थिक अखबारों ने भी दावा कर दिया कि एकदम करीना कपूर की तरह केकवाक राइड है।सरकार अडिग है।
पलाश विश्वास
My Name is James Bond! Smell ROT Within!Let me kiss and Ensure the safety of the Prime Minister first,Bond censored in India!
#Julius Caesar#Brutas# Greek tagedy # RSS #Shakespeare#Bajrangi Brigade# #Sovereignty#Democracy#Integrity#Unity#Indira Gandhi#1984#Plight of the Sikhs#Rajiv Gandhi #Srilanka #Mujib #Benzir#Sadat#Lincoln#Kennedy#Hinduta#Durga#Toharaia#Mahanta#Sadhwi #Babri Mosque# Advani# Rama #Riots #Godhra#Bhopal#Guajarat#Assam
ब्रुटस पर भरोसा खतरनाक ह,संभर जइयो!
कि किस्सा यही जुलियस सीजर से लेकर कैनेडी लिंकन,इंदिरा राजीव मुजीब बेनजीर ह,जेम्सवा ने अंखवा मा उंगली किये रहे1
कीर किस्सा ससुरे कर्मचारी नौकरी पर नहीं होंगे तो कैसा वेतन और कैसी वेतनवृद्धि?
सावन के अंधे के लिए हरियाली ही हरियाली,लेकिन मौसम बदल गयो रे।
सरकार के लिए जनादेश अब बड़ा सरदर्द है,अर्थव्यवस्था को ठिकाने लगा दिया गया है।
आर्थिक अखबारों ने भी दावा कर दिया कि एकदम करीना कपूर की तरह केकवाक राइड है।सरकार अडिग है।
जिन दिनों मैं कविता कहानी वगैरह लिखा करता था,तब हमउ विशुध लोक के हक में रहे हैं।
हम सोचत रहे कि लोक हो तो शैलेश मटियानी,रेणु,शानी या पिर सूर तुलसी कबीर जैसा खालिस लोक हो।
कमसकम मधुकर सिंह जैसा तो जरुर हो।
अब ना समझ रिये हैं कि लोक मुहावरे स्थान काल पात्र के साथ बदलते हैं ,जैसा कोई गीत और संगीत भूगोल के साथ साथ बदलता है वैसे ही बदल देती है भाषा और बोली विस्थापन का यह तूफां और इस अनंत नर्क में विस्थापन और बेरोजगारी के आलम में पहले से हर कोस पर बदलती बोली अब वैसी नहीं रही है।
जब हिंगलिश बांगलिश मराठीश से परहेज नहीं है और मुक्त बाजार में शुध अशुध कुछ भी नहीं होता और हमारी जनता शुध बोली बोलती भी नहीं है।चूमा चाटी रोके ना सकै,बलाताकार सुनामी थमे नहीं,भाखा और व्याकरण पादेके कुछो ना बदली।
समझते समझते देर हो गयी है।
बांग्ला में हमने सृजनशील कुछ लिखा नहीं है।लिखा भी है तो छपा नहीं है।हमारी कहानियों, कविताओं और उपन्यासों में भी हमने धड़ल्ले से फंतासी का इस्तेमाल खूब किया है।लोक के बदले।
इसी तरह की एक कहानी उड़ान से ठीक पहले का क्षण हमने नरसिम्हा राव के शाकाहारी नवउदारवाद में मनमोहन के अवतरण के बाद लिखी और इस कहानी में सेक्सी सुंदरी मैडोना न्यूड में अवतरित हैं जो मुक्त बाजार के माडल और दल्ला बतौर बच्चों की भरती करती हैं।
कथा का वह सिलसिला खत्म है।हम कोलकाता में अपसेटो हैं और नैनीताल अब हमारे लिए फंतासी है।
जहां टीनएजर बतौर हमने धारावाहिक ख्वाब भी खूब देखे।
कल खबर थी कि जेम्स बंडवा को विशुधता के राजकाज नें चूमा चाटी करने सो रोक दिया।
अब का कहि,धड़ल्ले से सार्वजनिक चूमाचाटी बलात्कार वगेरह वगैरह नारी उत्पीड़न वगैरह वगैरह रोक ना सकै हैं,नारी पुज्यंते ताकि सेक्स स्लेव भी वहींच।
जनादेश तक की ब्रांडिंग हुई री है।
नेता वेता सारेसुरे अभिनेता सेल्फी हैं और ब्रांडिग के तहत उछल कूद मचावै हैं।
बेचारे बांड की चूमाचाटी ब्रांडिग खतरे मा।
गनीमत है कि कहीं भी जो करनेका मन होता है,उसके अलावा जापानी तेल,राकेट कैप्सुल और पुंसत्व के कारोबार पर अंकुश नइखे वरना नपुंसक लोग जो मातृसत्ता का गुड़ गोबर किये रहे और जो ई वंश वर्चस्व दीवाली ह,उसका ना जाने का हुई रिया होता।
बंडवा को समझ आवो नाही।
धड़ाके से मेरी खतरे में ख्वाबों की दुनिया मा दिखिल हुई रहे और धांसके बोले कि का चूमाचाटी के पीछे पड़े हो,देश ससुरा खतरे मा आउरमहाबलि परधानमंत्री टारगेट ह।
आतंकविरोधी जुध हम जानत रहे हैं लेकिन उ बंडवा शेक्सपीअरन जुलियस सीजर पादे रहे कि साजिस बहार है के इस्तेमाल करके फेंकन की रीति रघुकुल की हुई रही।
लिंकन भइया भी इन्ही साजिशों के शिकार हुई रहे और उनकी जमीनी हैसियत भी चायवाले से बेहतर नहीं रही और अमेरिकी लोकतंत्र में गुलामी के कलंक धोने वाले उन्हीं की हत्या उनने कर दी ,जिन्हें वे नकेल डारै न सकै।
दिमागे दही हो गई रे माई के इंदिरा,राजीव ,मुजीब,बेनजीर ,सादात तो छोड़िये, श्यामाप्रसाद, दीनदयाल रहस्य,नेताजी रहस्य,सास्त्री रहस्य भी खोलेके बता दिया,राट विदिन।गान्ही महाराजके बख्श दिहिस का जाने के गोडसे पुनर्जीवित बाड़न।
मतलब के बाहरो से खतरा जेतना,भीतरे खतरा उससे कहीं जियादा।
गलत सलत कुछो हुई जाये तो जैसे सिखों को झेलना पड़ा और अस्सी के दशक मा देस जल गया ठैरा,जैसे बाबरी विध्वंस हुई रहा,भोपाल त्रासदी हुई रही,गोधरा और गुजरात हुई रहे,वैसा ही हादसे का खतरा ह और हमउ ससुरे चूमाचाटी की शुधता
पादै ह।
पेरिस का आतंक भीतरे जियादा ह जौन असहिणुता ह,उसके नतीजतन धकधक ज्वामुखी ह देश मा।
एक्शन का रिएक्शन भौते हो।
फिर पूरा का पूरा बजरंगी ब्रिगेड,आउर बेधड़क हमार नेता विदेशमंत्री को किनारे किये छप्पन इंच सीना ताने हर एपिसेंटरे भूकंप के बीच एक्केबारे शाहरुख खान बिंदास,सो जुबान पर लगाम भी कोई नइखे।भौते डेंजर ह।
कहीं यह साझा तकरना राष्ट्रद्रोह या हिंदू हितों के खिलाप ना मानलिया जाये।लेकिन वो हमरे नेता बाड़न।
दो दो परधान मंत्री का नतीजा हम देखे रहे हैं।
मुखर्जी बाबू और दीनदयाल का किस्सा भी जानै रहे हैं।
फिन अस्सी के दशक मा लौचबो तो विकास हरिकथा अनंत चूं चूं का का मुरब्बा बन जाई,बूझकै करेजा दबाइके परवचन मा साध लियो तमामो क्लिंपग और दागे रहो वीडियो।
अंग्रेजी टेक्स्ट बाबू अमलेंदु नेदाग दियो हस्तक्षेप पर।अब रिपीटो से का फायदा।
कुलो किस्सा य ह के ब्रुटस पर भरोसा खतरनाक ह,संभर जइयो!
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने पर सरकार को सिर्फ वेतन के मद में साढ़े तीन लाख करोड़ खर्च करने होंगे।
रेटिंग एजंसियों ने इसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है।
जिन वित्तीय संस्थानों और रेटिंग एजंसियों के निर्देशानुसार भारत की सरकार भारत की अर्थव्यवस्था का खुल्ला पूंजी प्रवाह प्रबंधन करती हैं,उनने लाल झंडी दिखा दी है।
वैसे खबर है कि भारत सरकार एक लाख करोड़ तक मजे में सरकारी कर्मचारियों पर खर्च कर सकती है,जिससे 23 फीसद वेतन वृद्धि संभव है और पेंशन में बढ़ोतरी में बी खास दिक्कत होने वाली नहीं है।लेकिन भत्तों में करीब 64 फीसद वृद्धि के लिए सरकार को बहुत ज्यादा वित्तीय और प्रबंधकीय कसरत करनी होगी।
बाकी ढाई लाख करोड़ और जुटाने होंगे।
जिसके लिए वैश्विक प्रबंधकों की इजाजत नहीं है।
सरकार ने बीच का रास्ता चुन लिया है जैसे राज्य सरकारें रुक रुक कर बकाया का बुगतान करती है और बीच बीच में मंहगाई भत्ता का तोहफा हालत की नजाकत और मौका देखकर देती है,केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए वैसी ही योजना है।
जबकि वैश्विक प्रबंधक इतनी बड़ी रकम निठल्ले कर्मचारियों पर खर्च करने कोतैयार नहीं है।
उनके मुताबिक यह सारी रकम विकास पर खर्च होनी चाहिए।
वेतनमान चूंकि उत्पादकता से जुड़ा है और सेवावधि भी 33 साल की हो गयी है,श्रम कानून खत्म हैं तो छंटनी व्यापक पैमाने पर करके इसका हल निकालने का चाकचौबंद इतजाम हो सकता है।
लेकिन इससे जनादेश नये सिरे में लेने के सिलसिले संगठत क्षेत्र के कर्मचारी आड़े आ सकते हैं और घूमाकर वे सरकार को नाकों चने चबवाने का रवैया अपना लें तो राजकाज मुश्किल होगा।
रेटिंग एजंसियां यह सुनने को हरगिज तैयार नहीं है।
अब उनका सारा जोर आर्थिक सुधार लागू करके सचमुच बिजनेस फ्रेंडली जनविरोधी राजकाज पर है।
मसलन विनिवेश से सबकुछ बेच बाचकर सरकार यह रकम जुटायें और जिसकी नौकरी इस निजीकरण से बची रहेगी,वे मौज उड़ायें।
कोल इंडिया का दस फीसद बेचने का फैसला वेतन आयोग की खबर ब्रेक होने के साथ साथ सारवजनिक करने का मतलब है कि सरकार बता रही है कि विनिवेश और निजीकरण के रास्ते यह कोई बोझ वगैरह नहीं हैं।
समझ सकै तो समझ जइयो कि ससुरे कर्मचारी नौकरी पर नहीं होंगे तो कैसा वेतन और कैसी वेतनवृद्धि।
आर्थिक अखबारों ने भी दावा कर दिया कि एकदम करीना कपूर की तरह केकवाक राइड है।सरकार अडिग है।
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