दुर्घटना की जिम्मेदारी से बचने के लिए परियोजना शुरु करने का श्रेय वाम शासन को दे दिया दीदी ने।
उन्हींके आदेश से कोलकाता में मतदान से पहले शहर के सबसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाले इलाके को चीरकर सेंट्रल एवेन्यू को 2.2 किमी लंबे इस फ्लाईओवर को हावड़ा ब्रिज से किसी भी कीमत पर पूरा करके चालू कर देने के फैसले की वजह से हुई इस दुर्घटना के कारण पहलीबार किसी परियोजना का श्रेय दीदी ने कट्टर दुश्मन वाममोर्चा की पूर्ववर्ती सरकार को दे डाला वरना उनका तो दावा यही है कि चार साल में उनने चारसौ साल का विकास कर डाला।उनका बस चलता तो वे हावड़ा ब्रिज,विक्टरिया मेमोरियल और फोर्ट विलियम भी अपने नाम कर लेतीं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने तो इससे बड़ा सनसनीखेज खुलासा किया है कि छेका जिसको मिला ,काम उसके बजाय सब कंट्राक्ट पर कई और स्थानीय छोटे बडे ठेकेदार कर रहे थे और ये तमाम बेनामी कंपनियों के मालिक तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं।
अब कोलकाता ने इस विकास से बहते जिस खून को देखा है,वही खून फिर बाकी जगह भी लोगों को दीखने लगे तो समझ में आयेगी कि इस मुक्तबाजारी विकास का असली चेहरा फिर बिल्डर, प्रोमोटर,सिंडिकेट,माफिया के साथ सत्ता का अधबना ढहता हुआ फ्लाईओवर है।
एक्सकैलबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप
बंगाली राष्ट्रीयता के सर्वकालीन श्रेष्ठ आइकन रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन्मस्थल जोड़ासांको की नाक पर कोलकाता के व्यवसाय के केंद्र बड़ाबाजार,मुख्य सड़क सेंट्रल एवेन्यू और हावड़ा को सीधे निकलने के रास्ते पर गुरुवार को दिनदहाड़े अधबना फ्लाईओवर जब गिरा,तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले चरण के मतदान के जंगल महल इलाके में चुनाव प्रचार को निकली थी।
जैसी कि उनकी बहुत अच्छी आदत शुरु से है.उनने सबकुछ पीछे छोड़ दिया और खड़गपुर से हेलीकाप्टर में उड़कर कोलकाता पहुंच गयी।वही ब्रांडेड हवाई चप्पल और साड़ी में लिपटी।
इससे पहले मृतकों और घायलों को अनुदान की घोषणा उनने कर दी थी।दुर्घटना के तीन घंटे के भीतर कोई आधिकारिक बचाव और राहत अभियान कोलकाता में सेना के पूर्वी कमान के मुख्यालय, पुलिस मुख्यालय,चुनाव की वजह से केंद्रीय वाहिनी की मौजूदगी,आपदा प्रबंधन कार्यालय वगैरह वगैरह होने के बावजूद शुरु हुआ नहीं था।
मुख्यमंत्री ने मौके पर पहुंचते ही सबसे पहले यही कहा कि यह फ्लाई ओवर तो वाम जमाने का है और 2009 से बन रहा है।
जाहिर है कि इस दुर्घटना की जिम्मेदारी वाम शासन पर डालकर अपनी सरकार की जिम्मेदारी से उनने सबसे पहले पल्ला झाड़ लिया।
चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले छपे अखबारों के विज्ञापनों से लदे फंदे पन्नों पर गौर करें तो देखा जा सकता है कि वाम जमाने की शुरु और अधूरी सारी परियोजनाओं का श्रेय अकेले ममता बनर्जी ने लेने में कोई कोताही नहीं की।
पहले से जिन परियोजनाओं का शिलान्यास हो चुका है,नये सिरे से उनका शिलान्यास कर दिया गया।वाम जमाने में पूरी हो चुकी परियोजनाओं पर अपनी नाम पट्टी लगवाने में और बंगाल के अभूतपूर्व विकास का नक्शा पेश करने में वाम का नामोनिशां मिटाने में उनने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
यह हैरतअंगेज है कि उन्हींके आदेश से कोलकाता में मतदान से पहले शहर के सबसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाले इलाके को चीरकर सेंट्रल एवेन्यू को 2.2 किमी लंबे इस फ्लाईओवर को हावड़ा ब्रिज से किसी भी कीमत पर पूरा करके चालू कर देने के फैसले की वजह से हुई इस दुर्घटना के कारण पहलीबार किसी परियोजना का श्रेय दीदी ने कट्टर दुश्मन वाममोर्चा की पूर्ववर्ती सरकार को दे डाला वरना उनका तो दावा यही है कि चार साल में उनने चारसौ साल का विकास कर डाला।
उनका बस चलता तो वे हावड़ा ब्रिज,विक्टरिया मेमोरियल और फोर्ट विलियम भी अपने नाम कर लेतीं।
जिस संस्था को पीपीपी माडल के तहत इस निर्माण का ठेका दिया गया,आईवीआरसीएल नामक वह संस्था रेलवे की काली सूची में रही है और जिस समय यह फ्लाईओवर का निविदा तय हुआ,उससे पहले बतौर रेलमंत्री उन्हें इसकी जानकारी होनी चाहिए थी।
फिर इस निर्माण की देखरेख की जिम्मेदारी कोलकाता नगर निगम और राज्य सरकार दोनों की थी।
परियोजना वोट से पहसे पूरी हो जाये और इसका श्रेय लेकर कोलकाता जीत लिया जाये,इसकी तो बड़ी जल्दी और फिक्र थी,लेकिन इस परियोजना को कैसे अंजाम दिया जा रहा है,इसकी कोई निगरानी नहीं की गयी।
विकास का दावा करने वाली सरकार दोबारा जनादेश का दावा कर रही है और ऐन चुनाव से पहले हुई दुर्घटना की जिम्मेदारी से बचने के लिए 2009 के ठेके का हवाला दे रही है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने तो इससे बड़ा सनसनीखेज खुलासा किया है कि छेका जिसको मिला ,काम उसके बजाय सब कंट्राक्ट पर कई और स्थानीय छोटे बडे ठेकेदार कर रहे थे और ये तमाम बेनामी कंपनियों के मालिक तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं।
गौरतलब है कि कोलकाता नगर निगम के मेयर से लेकर बंगाल के नगर विकास मंत्री तक नारद स्टिंग में काम के लिए घूस लेते दिखाये गये हैं और इस प्रकरण की कोई जांच भी नहीं हो रही है।
अधीर चौधरी के मुताबिक कोलकाता में इतना बड़ा हादसा हो गया और मौके पर पहुंचे ही नहीं शहरी विकास मंत्री।
उनकी हिम्मत ही नहीं हुई।
कोलकाता में निजी मकान बनाने का काम भी अब प्रोमोटर करते हैं।क्योकि सरिया, ईंट,सीमेंट,रेत से लेकर बांस,मिट्टी,पानी तक सारी निर्माण सामग्री सिंडेकेट से लेनी होती है और ये सारे सिंडिकेट सत्तादल के होते हैं और निर्माण सामग्री की गुणवत्ता और दाम पर कोई सवाल करने की हिम्मत कोई कर ही नहीं सकता।
पूरा कोलकाता और कोलकाता से जुड़े सारे उपनगरों और जिला शहरों से लेकर प्रस्तावित बंदरगाह सागरद्वीप तक इन्हीं बिल्डरों,प्रोमोटरों और सिंडिकेटों का अबाध राज है।जो सारे के सारे सत्ता दल के साथ जुडे होते हैं।
अधबने फ्लाईओवर के मलबे से निर्माण सामग्री का नमूना फोरेंसिक जाच के लिए गया है और लाशों की कुल गिनती 24 तक पहुंची है औ जख्मी भी कुल 89 बताये जा रहे हैं।
मौके पर हाजिर मीडिया ने देखा और दिखाया कि जो हिस्सा गिरा ,उसकी ढलाई पिछली रात को हुई थी और ढलाई के लिए सीमेच नदारद थी।मलबे में रेत ही रेत मिला है।
हाल यह है कि जिन खंभों के भरोसे अभी गिरने से बचा फ्लाई ओवर खड़ा है,वे उसके नीचे फंसी दो गाड़ियों के हारे खड़ी है और उन गाडडियों में भी लाशें हैं,लेकिन बचाव कर्मी उन्हें तुरंत निकाल नहीं सकते वरना अधबने फ्लाईओवर का बाकी हिस्सा भी भरभराकर गिर जाने का अंदेशा है।
क्या मां माटी मानुष की सरकार अंधे कानून की तरह अंधी है कि मुख्यमंत्री से पहले रेलमंत्री होने के बावजूद दीदी को 2009 के बाद अब उस दागी निर्माण संस्था के दामन में दाग दीख रहे हैं,जिसे हैदराबाद में बी काली सूची में डाला गया है और रेलवे में भी वह काली सूची में है?
कोलकाता में वाम दलों का सूपड़ा साफ ही है जब से परिवर्तन हुआ और सारे एमएलए,सारे एमपी और काउंसिलर तक सत्तादल के हैं,जिनके मधुर ताल्लुकात बिल्डर प्रोमोटर सिंडिकेट राज से है कहवने से बेहतर यह कहना शायद उचित होगा कि वे ही उनकी सत्ता और ताकत के मौलिक स्रोत हैं तो आ. के स्रोत भी वे ही हैं।
मान लेते हैं कि सारे आरोप बेबुनियाद है लेकिन उनकी जनप्रतिबद्धता और नुमाइंदगी और रहनुमाई का तकाजा तो यह था कि उनकी नाक के नीचे कोलकाता के सबसे कमाउ,सबसे बिजी इलाके में निर्माणके नाम पर आम जनता की जान माल के साथ पिछले चार पांच साल से जो खेल होता रहा है,उसपर उनकी निगरानी ही न हो।
इसके बाद यह खबर एकदम बेमानी है कि निर्माण संस्था इस दुर्घचना को दैवी प्रकोप बता रही है,जो शायद देर तक चलने वाली जांच पड़ताल से साबित हो भी जाये।
कोलाकाता शहर का भूगोल वैसे ही जराजीर्ण है और उसकी हालत खुले बाजार की बूढ़ी वेश्या जैसी है जिसका रंगरोगण गिराहक पटाने के लिए किया जा रहा है।
वैसे ही अंधाधुंध शहरीकरण को एकमुश्त विकास और औद्योगीकरण मान लेने का यह पीपीपी माडल का चरित्र सर्वकालीन और सर्वव्यापी है,जिनपर स्मार्ट शहर का तमगा अच्छे दिनों के क्वाब के साथ टांगा जाना है।
अब कोलकाता ने इस विकास से बहते जिस खून को देखा है,वही खून फिर बाकी जगह भी लोगों को दीखने लगे तो समझ में आयेगी कि इस मुक्तबाजारी विकास का असली चेहरा फिर बिल्डर,प्रोमोटर,सिंडिकेट,माफिया के साथ सत्ता का अधबना ढहता हुआ फ्लाईओवर है।
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