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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, April 24, 2016

अमलेंदु की चोटें गंभीर,हस्तक्षेप की हालत भी नाजुक अब हस्तक्षेप जारी रखने के लिए आपसे सहयोग की उम्मीद जिनका हाथ हमारे हाथ में न हो,उनसे बहुत देर तक अब मित्रता भी जैसे संभव नहीं है वैसे ही नये जनप्रतिबद्ध मित्रों के बढ़ते हुए हाथ का हमें बेसब्र इंतजार है। हमारी लड़ाई जीतने की लड़ाई है।हारने की नहीं। हम उनके आभारी हैं,जिनने सहयोग का वादा किया है या जो अब भी हमारे साथ हैं।लेकिन जुबानी जमाखर्च से काम चलने वाला नहीं है,जिससे जो संभव है, वह कमसकम उतना करें तो गाड़ी बढ़ेगी वरना फुलस्टाप है। पलाश विश्वास


अमलेंदु की चोटें गंभीर,हस्तक्षेप की हालत भी नाजुक

अब हस्तक्षेप जारी रखने के लिए आपसे सहयोग की उम्मीद

जिनका हाथ हमारे हाथ में न हो,उनसे बहुत देर तक अब मित्रता भी जैसे संभव नहीं है वैसे ही नये जनप्रतिबद्ध मित्रों के बढ़ते हुए हाथ का हमें बेसब्र इंतजार है।

हमारी लड़ाई जीतने की लड़ाई है।हारने की नहीं।


हम उनके आभारी हैं,जिनने सहयोग का वादा किया है या जो अब भी हमारे साथ हैं।लेकिन जुबानी जमाखर्च से काम चलने वाला नहीं है,जिससे जो संभव

है, वह कमसकम उतना करें तो गाड़ी बढ़ेगी वरना फुलस्टाप है।

पलाश विश्वास

हमारे लिए बुरी खबर है कि हस्तक्षेप के संपादक अमलेंदु को सड़क दुर्घटना में चोटे कुछ ज्यादा आयी हैं।आटो के उलट जाने से उनके दाएं हाथ में क्रैक आ गया है और इसके अलावा उन्हें कंधे पर भी चोटें आयी है।


हमने इस बारे में प्राथिमिक सूचना पहले ही साझा कर दी है।


भड़ास के दबंग यशवंत सिंह ने यह खबर लगाकर साबित किया है कि वे भी वैकल्पिक मीडिया के मोर्चे पर हमारे साथ हैं।


हम तमाम दूसरे साथियों से भी साझा मोर्चे की उम्मीद है ताकि हम वक्त की चुनौतियों के मुकाबले डटकर खडे हो और हालात के खिलाप जीत भी हमारी हो।


हमारी लड़ाई जीतने की लड़ाई है।हारने की नहीं।


हम उनके आभारी हैं,जिनने सहयोग का वादा किया है या जो अब भी हमारे साथ हैं।लेकिन जुबानी जमाखर्च से काम चलने वाला नहीं है,जिससे जो संभव है ,वह कमसकम उतना करें तो गाड़ी बढ़ेगी वरना फुलस्टाप है।


मीडिया में पिछले 36 साल कतक नौकरी करने के अनुभव और लगातार भोगे हुए यथार्थ के मुताबिक हम यकीनन यह दावा कर सकते हैं कि भड़ास की वजह से ही मीडिया में काम कर रहे पत्रकार और गैर पत्रकारों की समस्याओं पर फोकस बना है और बाकी दूसरे पोर्टल मीडिया केंद्रित शुरु होने की वजह से मीडिया की खबरें किसी भी कीमत पर दबी नहीं रह सकती।


यह मोर्चाबंदी यकीनन  पत्रकारों और गैर पत्रकारों के हक हकूक के बंद दरवाजे खोलती हैं।हमारे लिए यही महत्वपूरण है और यशवंत की बाकी गतिविधियों को हम नजरअंदाज भी कर सकते हैं।


पत्रकारिता का यह मोर्चा यशवंत ने खोला और अपनी सीमाओं में काफी हद तक उसका नेतृत्व भी किया,इसके महत्व को कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।यह आत्मघाती होगा।


ऐसे सभी प्रयासों में हम शामिल हैं बिना शर्त।


हमें बडा़ झटका इसलिए लगा है कि हम बहुत जल्द कमसकम गुरमुखी,बांग्ला और मराठी में हस्तक्षेप का विस्तार करना चाहते थे।


क्योंकि जनसुनवाई कहीं नहीं हो रही है और जनसरोकार की सूचनाएं और खबरें आ नहीं रही हैं।


भड़ास अपना काम कर रहा है और हमारा सोरकार बाकी मुद्दों को संबोधित करना है।इसके लिए पूंजी के वर्चस्व को तोड़ बिना काम नहीं चलेगा और बाजार के नियम तोड़कर हमें कारपोरेट मीडिया के मुकाबले खड़ा होना होगा।


इसकी निश्चित योजना हमारे पास है और हम यकीनन उस पर अमल करेंगे।


फिलहाल हफ्तेभर से लेकर चार हफ्ते तक हस्तक्षेप बाधित रहेगा और कोई फौरी बंदोबस्त संभव नहीं है।


क्योंकि लेआउट,संपादन और समाग्री के साथ  लेकर तात्कालिक बंदोबस्त बतौर पर कोई छेड़छाड़ की कीमत पर कहीं से भी अपडेट कर लेने का विकल्प हम सोच नहीं रहे हैं।क्योंकि हस्तक्षेप के तेवर और परिप्रेक्ष्य में कोई फेरबदल मंजूर नहीं है।


लेखकों औरमित्रों से निवेदन है कि अमलेंदु के मोर्चे पर लौटने से पहले वे अपनी सामग्री मुझे भेज दें ताकि उन्हें अपने ब्लागों में डालकर रियल टाइम कवरेज का सिलसिला हम बनाये रख सकें और हस्तक्षेप का अपडेट शुरु होने पर जरुरी सामग्री वहां पोस्ट कर सकें।


पाठकों और मित्रों से निवेदन है पिछले पांच सालों से हम लागातार हस्तक्षेप कर रहे हैं तो हस्तक्षेप पर पिछले पांच साल के तमाम मुद्दों पर महत्वपूर्ण सामग्री मौजूद है।कृपया उसे पढे़ और अपनी राय दें।


इसके अलावा आपसे गुजारिश है कि महत्वपूर्ण और प्रासंगिक लिंक भी आप विभिन्न प्लेटफार्म पर शेयर करते रहें तकि  अपडेट न होने की हालत में भी हस्तक्षेप की निरंतरता बनी रहेगी।इसके लिए आपके सहयोग की आवश्यकता है।


उम्मीद हैं कि जो लोग हमारे साथ हैं,उन्हें इस दौरान हस्तक्षेप अपडेट न होने का मतलब भी समझ में आयेगा और वे जो भी जरुरी होगा,हमारी अपील और गुहार के बिना अवश्य करेंगे।जो वे अभी तक करना जरुरी नहीं मान सके हैं।


मैं बहुत जल्द सड़क पर आ रहा हूं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मेरी कोई महत्वाकांक्षा देश ,आंदोलन या संगठन का नेतृत्व करने की है।


हमने बेहतरीन कारपोरेट पेशेवर पत्रिकारिता में 36 साल गुजार दिये,तो इस अनुभव के आधार पर सत्तर के दशक से लगातार लघु पत्रिका आंदोलन और फिर वैकल्पिक मीडिया मुहिम से जुड़े रहने के कारण हमारी पुरजोर कोशिश रहेगी कि हर कीमत पर यह सिलसिला न केवल बना रहे बल्कि हम अपनी ताकत और संसाधन लगाकर आनंद स्वरुप वर्मा और पंकज बिष्ट जैसे लोगों की अगुवाई में कारपोरेट मडिया के मुकाबले जनता का वैकल्पिक मीडिया का निर्माण हर भारतीय भाषा में जरुर करें।


हम चाहेंगे कि जन प्रतिबद्ध युवा पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनआंदोलन के साथियों को भी हम इस मीडिया के लिए बाकायदा प्रशिक्षित करें और

जिन साथियों के लिए कारपोरेट मीडिया में कोई जगह नहीं है,उनकी प्रतिबद्धता के मद्देनजर उनकी प्रतिभा का समुचित प्रयोग के लिए,उनकी अभिव्यक्ति के मौके के लिए वैकल्पिर अवसर और रोजगार दोनों पैदा करें।


इसकी योजना भी हमारे पास है।


बहरहाल मेरे पास अब हासिल करने या खोने के लिए कुछ नहीं है।नये सिरे से बेरोजगार होने की वजह से निजी समस्याओं से भी जूझकर जिंदा रहने की चुनौती मुँह बांए खड़ी है।फिरभी वैकल्पिक मीडिया हमारे लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है।


आप साथ हों या न हों,आप मदद करें या न करें-यह हमारा मिशन है।

इस मिशन में शामिल होने के लिए हम सभी का खुल्ला आवाहन करते हैं।


हम बार बार कह रहे हैं कि पूंजी के अबाध वर्चस्व और रंगभेदी मनुस्मृति ग्लोबल अश्वमेध में तमाम माध्यम और विधायें और मातृभाषा तक बेदखल हैं।


ऐसे हालात में हमें नये माध्यम,नई विधाएं और भाषाएं गढ़नी होगी अगर हम इस जनसंहारी समय के मुकाबले खड़ा होने की हिम्मत करते हैं।


सत्ता निरंकुश है और पूंजी भी निरंकुश है।


ऐसे अभूतपूर्व संकट में पूरे देश को साथ लिये बिना हम खडे़ तक नहीं हो सकते।

इस जनसंहारी समय पर हम किसी एक संगठन या एक विचारधारा के दम पर कोई प्रतिरोध खड़ा ही नहीं कर सकते।इकलौते किसी संगठन से भी काम नहीं चलने वाला है।बल्कि जनता के हक में,समता और न्याय के लिए,अमन चैन,बहुलता, विविधता, मनुष्यता,सभ्यता और नागरिक मनवाधिकारों के लिए मुकम्मल संघीय साझा मोर्चा जरुरी है।


बिना मोर्चाबंदी के हम जी भी नहीं सकते हैं।


सारी राजनीति जनता के खिलाफ है तो मीडिया भी जनता के खिलाफ है।


राजनीति लड़ाई,सामाजिक आंदोलन औरमुक्तबाजारी अर्थ व्यवस्था में बेदखल होती बहुसंख्य जनगण की जल जंगल जमीन आजीविका और नागरिक, मानवाधिकार की लड़ाई वैकल्पिक मीडिया के बिना सिरे से असंभव है।


इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हम हर उस व्यक्ति या समूह के साथ साझा मोर्चा बाने चाहेंगे जो फासीवाद के राजकाज के खिलाफ कहीं न कहीं जनता के मोर्चे पर हैं।


हम आपको यकीन दिलाना चाहते हैं कि हम आखिरकार कामयाब होंगे क्योंकि हमारा मिशन अपरिहार्य  है और उसमें निर्णायक जीत के बिना हम न मनुष्यता,न सभ्यता और न इस पृथ्वी की रक्षा कर सकते हैं।


संकट अभूतपूर्व है तो यह मित्रों और शत्रुओं की पहचान करके आगे बढ़ते जाने की चुनौती है।जिनका हाथ हमारे हाथ में न हो,उनसे बहुत देर तक अब मित्रता भी जैसे संभव नहीं है वैसे ही नये जनप्रतिबद्ध मित्रों के बढ़ते हुए हाथ का हमें बेसब्र इंतजार है।


"हस्तक्षेप" पाठकों-मित्रों के सहयोग से संचालित होता है। छोटी सी राशि सेहस्तक्षेप के संचालन में योगदान दें।


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