अब दे दिये सैनिक अड्डे अमेरिकी फौज के हवाले, आप क्या उखाड़ लेंगे?
रूस अमरीका का सट्टा / हम तुम साल उल्लूपट्ठा / आओ खेलें कट्टम कट्टा ।
संपूर्ण निजीकरण,प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और अबाध पूंजी के तहत भारत में जो अमेरिकी हित हैं,उसके मद्देनजर यह उम्मीद करना सरासर मूर्खता है कि पांच पांच पृथ्वी के बराबर संसाधन खर्च करने वाला अमेरिका भारतीय प्राकृतिक संसाधनों को बख्शेगा । भारत के प्राकृतिक संसाधन दखल करने के लिए उसकी लंबी तैयारियां रही हैं,हमने कभी उन तैयारियों पर और भारत के खिलाफ अमेरिका की मोर्चाबंदी पर नजर रखी ही नहीं है।अब देशभक्ति बघार रहे हैं।
विशुध हिंदुत्व के एजंडे को लागू करते रहिये।मंकी बातें सुनते रहें और अपने स्वजनों के खून से नहाते रहिये,रामायण महाभारत के किस्से कहानियां जीते हुए विकास की उड़ान भरते रहिये,सैनिक अड्डे गोरी फौजों के हवाले हैं तो क्या फर्क पड़ा,समूचा देश उनके हवाले हैं।हम काले लोग,गुलाम लोग आजादी के काबिल कभी बन सकें,मूक वधिर लोगों को मां सरस्वती वाणी दें तो भी हम भारत माता की ज. ही बोलेंगे और राष्ट्रविरोधियों के पाले में खड़े हो जायेंगे क्योंकि इसी मुक्त बाजार में हमें जीना मरना है।यही हिंदू राष्ट्र का हिंदुत्व है।
पलाश विश्वास
मुझे भारत के सैनिक अड्डों पर अमेरिकी फौजकी तैनाती के समझौते पर तनिक अचरज नहीं हो रहा है। भारत अमेरिकी संबंधों में, और खास तौर पर फलस्तीन की कीमत पर भारत इजराइल संबंध में लगातार जो गुल खिलते रहे हैं,उसके मद्देनजर ऐसा न होता तो वह अजूबा होता।
राष्ट्रहित के बजाय राजनय जब निजी संबंधों की दास्तां बन जाती है तो राजनैतिक नेतृत्व के फैसले भी उतने ही दोस्ताना हो जाते हैं जितने उनके दोस्ताना ताल्लुकात।
बल्कि इस दोस्ती का मकसद ही यही होता वरना क्या वजह है कि किसी का अमेरिकी वीजा मानवाधिकार के हनन के मुद्दे पर बार बार ठुकरा दिया जाये और राष्ट्र की बोगडोर आते न आते उसके लिए समूचा अमेरिका पलक पांवड़े बिछाकर इंतजार करें कि कब वह पधारें और अमेरिकी अर्थव्यवस्था का कायाकल्प कर दें।
सवाल यह है कि नाटो की योजना जो अमेरिका और नाटो देशों में लागू न हुई,उस आधार योजना के तहत हमारी हैसियत एक संख्या में बदल गयी और हमारी निजता,गोपनीयता और आजादी सीधे अमेरिकी नियंत्रण में हैं । ड्रोन को हम अपनी सुरक्षा की गारंटी समझते हैं।
नासा और इसरो की साझेदारी के तहत शोध और अनुसंधान के बहाने,अंतरिक्ष अभियान की महत्वाकांक्षा साधकर अंध राष्ट्रवाद का परचम फहराने के लिए हमने सारा आसमान,सारा अंतरिक्ष उनके हवाले कर दिया है,संप्रभुता और स्वतंत्रता गिरवी पर रख दी है।
और इस अत्याधुनिक तकनीक के वैज्ञानिक जमाने में जब गोपनीयता भंग करना बच्चों का खेल है, तो हमारी सुरक्षा और अखंडता को किस पंचमवाहिनी से खतरा है,इस बारे में हमारी कोई दृष्टि नहीं बनी है।
हम उन्हें जानते भी होंगे,तो सबसे पहले उनकी फौज में शामिल होकर मुनाफावसूली और लूचतंत्र में शामिल होंगे और इतनी भी औकात न हो तो जयजयकार कहते हुए खालिस शुतुरमुर्ग होकर जिंदगी गुजरबसर कर लेंगे।
भारत अमेरिका परमाणु संधि से जो भारत अमेरिकी सैन्य सहयोग का सिलसिला चला है,उसका आशय युद्ध और गृहयुद्ध के कारोबार,हथियार उद्योग के सहारे चलने वाली अमेरिकी अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करना है,यह हम आज भी समझ नहीं रहे हैं।
संपूर्ण निजीकरण,प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और अबाध पूंजी के तहत भारत में जो अमेरिकी हित हैं,उसके मद्देनजर यह उम्मीद करना सरासर मूर्खता है कि पांच पांच पृथ्वी के बराबर संसाधन खर्च करने वाला अमेरिका भारतीय प्राकृतिक संसाधनों को बख्शेगा ।
भारत के प्राकृतिक संसाधन दखल करने के लिए उसकी लंबी तैयारियां रही हैं,हमने कभी उन तैयारियों पर और भारत के खिलाफ अमेरिका की मोर्चाबंदी पर नजर रखी ही नहीं है।
अब देशभक्ति बघार रहे हैं।
गौरतलब है कि निजी कंपनियों और विदेशी पूंजी के लिए भारत की जमीन पर तैनात निजी सुरक्षा सेनाएं सीमाओं पर तैनात हमारे कुल सैन्यबलों से कम नहीं हैं ,जिन्हें हमने आर्थिक सुधार के नाम अपने ही नागरिकों को जल जंगल जमीन,नागरिक और मनवाधिकार से बेदखल करने और सत्तावर्ग के हितों,उनकी मुनापाखोरी,उनके लूटतंत्र को जारी रखने के लिए लगातार जनादेशों के मार्फत तैनात किये हैं।सरहदें खतरे में हैं।
अमेरिका ने पहले हमें नवउदारवाद की संतानों के हवाले किया। सोवियत संघ के अवसान के बाद अमेरिका के साथ नत्थी हो जाने की बेसब्री हमारे राजकाज और राजनय की बुनियादी नीति है,जिसे अमल में लाने के लिए लिए हर वह कायदा कानून बदल दिया गया है,जो अमेरिकी हितों के माफिक नहीं हैं।
कानून का राज कहीं नहीं है क्योंकि अबाध पूंजी के हम गुलाम हैं।संविधान की हत्या रोज रोज हो रही है विकास के नाम और अर्थव्यवस्था अमेरिकी वैश्विक संस्थानों की गिरफ्त में हैं।
हम पिछले पच्चीस साल से देश के आम नागरिकों के कत्लेआम, मौलिक अधिकारों के हनन,देश के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इलाकों के सैन्यदमन का समर्थन कर रहे हैं।अब क्या करें।
सत्ता के चेहरे बदलने की कवायद में हमने ख्याल ही नहीं किया कि अपना यह देश अमेरिकी उपनिवेश बन गया और तकनीकी विकास से बेहतर उपभोक्ता बने हम न नागरिक रहे और न मनुष्य।
हम अपनी जमीन के साथ साथ अपनी मातृभाषा,अपनी संस्कृति और इतिहास से बेदखल लोग हैं और इस देश में सरकारे भी अमेरिकी हितों के मुताबिक बनती और चलती हैं,तो बजट भी वाशिंगटन से बनता है।
हमारा जनादेश भी वे बनाते बिगाड़ते हैं।
हम सबकुछ जानते हैं और देखते हैं और समझते हैं कि कालाधन से राजनीति चल रहा है तो धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद और जनसंहार के एजंडे के पीछे भी सत्तावर्ग की मुनाफावसूली और दलाली है।
पर हम तो कालाधन वापस लाना चाहते हैं और कालाधन के तंत्र मंत्र यंत्र के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हमारी औरकात नहीं है।
ऱक्षा क्षेत्र में भी विदेशी पूंजी का वर्चस्व हो गया तो हम पाकिस्तान औरचीन को हराने की,वाशिंगटन और पेरिस में तिरंगा फहराने का,सारा अंतरिक्ष जीत लेने का ख्वाब देखते रहे जबकि देश के चप्पे चप्पे पर ड्रोन तैनात हैं और देश के हर कोने में परमाणु विध्वंस के चूल्हे लगे हैं जबकि हजारों साल से सुलगते साझा चूल्हों को हमने चरम असहिष्णुता के साथ बुझा दिये और देश का नेतृत्व युद्ध अपराधियों के हवाले कर दिये।
हम सिऱ्फ बेचैन है कि सैनिक अड्डे अमेरिकी फौजों के हवाले कर दिये गये ।लेकिन जिस पाकिस्तान को हमने अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझा और इसी बहाने धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की खेती की,उसके पीछे खड़े अमेरिका को हमने कभी नहीं देखा,ऐसा हैरतअंगेज है।
हमने भोपाल गैस त्रासदी,मंदिर मसजिद मंडल कमंडल गृहयुद्ध,सिखों का नरसंहार,बारी विध्वंस की अर्थव्यवस्था पर गौर नहीं किया जबकि हरित क्रांति के बहाने भारत में किसानों की हत्या का सिलसिला जारी है।विनाश को विकास समझते हैं हम।
हमारे लिए मुक्तबाजार भव्य राममंदिर है और आर्थिक सुधार मर्यादा पुरुषोत्तम राम का मनुस्मृति अनुशासन और अश्वमेध है।
हमारे लिए सारे नागरिक पूर्व जन्म के पाप पुण्य कर्मफल के कारम निमित्तमात्र हैं,चाहे वे गुजरात में मरे,असम में मारे जाये,पंजाब में मरे या दंडकारण्य गोंडवाना कश्मीर मणिपुर या यूपी बिहार बंगाल में।सरहद पर मरने वालों की गिनती तो हम करते हैं,लेकि बेमौत मारे जाने वाले स्वजनों की खबर भी नहीं जानना चाहते।
हर कीमत पर हम पितृसत्ता के तहत मनुस्मृति शासन जारी रखकर किसानों,मेहनतकशों,दलितों,पिछड़ों,अल्पसंखयकों और स्त्रियों के विरुद्ध राजकाज को जारी रखना चाहते हैं और हम अमेरिका जब बनना ही चाहते हैं तो बेहतर है कि हम अमेरिका में ही शामिल हो जाये या कम से कम हम अमेरिकी उपनिवेश बन जाये।हूबहू वही हो रहा है।इसे हम मुक्तबाजार की नकदी के लिए सहेंगे।
हत्या और बलात्कार,अन्याय,उत्पीड़न,असमता के पूरे तंत्र मंत्र यंत्र को हम स्मार्ट शहरों और बुलेट ट्रेनों का करिश्मा मानकर नदियों,जंगलों,खेतों,खलिहानों,हिमालय और समुंदर की लाशों पर बहुमंजिली महानगर में स्वर्गवास करना चाहते हैं।
यही हमारा ग्लोबल हिंदुत्व है।
यही हमारा राष्ट्रवाद है।
राष्ट्र गैस चैंबर बने या मृत्यु उपत्यका,जनता भाड़ में जाये,रोजी रोटी ौर पानी वहा तक नसीब न हो,पर हम वातानुकूलित रहें औरअपनी बेतहाशा बढ़ती क्रयशक्ति के दम पर मुक्त बाजार के सारे मजे लूटते रहे,हमारी नागरिकता इतना मात्र है।
यह प्रकृति और मनुष्यता के विरुद्ध है।
सभ्यता के विरुद्ध अंधकार का साम्राज्यवाद है।
अमेरिकी साम्राज्यवाद है।
दीवारों में बंटे देश,जातियों में बंधे भूगोल की अखंडता,एकता हमेशा दांव पर होता है।
अब दे दिये सैनिक अड्डे अमेरिकी फौज के हावले तो आरप क्या उखाड़ लेंगे?
जो लोग बोलेंगे लिखेंगे,वे लोग राष्ट्रविरोधी करार दिये जायेंगे।
अंध राष्ट्रवादियों के असहिष्णु देश के रंगभेद समय में जब हर दूसरा नागरिक संदिग्ध है और सवांद अपराध है,तो हम कैसे देश बेचने वालों के खिलाफ खड़े हो सकते हैं।
विशुध हिंदुत्व के एजंडे को लागू करते रहिये।मंकी बातें सुनते रहें और अपने स्वजनों के खून से नहाते रहिये,रामायण महाभारत के किस्से कहानियां जीते हुए विकास की उड़ान भरते रहिये,सैनिक अड्डे गोरी फौजों के हवाले हैं तो क्या फर्क पड़ा,समूचा देश उनके हवाले हैं।हम काले लोग,गुलाम लोग आजादी के काबिल कभी बन सकें,मूक वधिर लोगों को मां सरस्वती वाणी दें तो भी हम भारत माता की ज. ही बोलेंगे और राष्ट्रविरोधियों के पाले में खड़े हो जायेंगे क्योंकि इसी मुक्त बाजार में हमें जीना मरना है।
यही हिंदू राष्ट्र का हिंदुत्व है।
यही वैदिकी सभ्यता और रामायण महाभारत वेद उपनिषद है।
अमेरिकी हस्तक्षेप से डा.मनमोहन सिंह ने देश का वित्तमंत्री बनकर नवउदारवाद के तहत निजीकरण ग्लोबीकरण और उदारीकरण के तहत ग्लोबल हिंदुत्व का परचम फहराया,आर्थिक सुधार तेज न होने के कारण अमेरिका ने उन्हें नीतिगत विकलांगता के आरोप में हटाकर गुजरात माडल का विकास पूरे देश में लागू करने के लिए
सत्ता के तमाम चेहरे बदल दिये।हमने इसे समझा ही नहीं।
अमेरिकी हितों के खिलाफ अमेरिका की मर्जी के खिलाफ अर्तव्यवस्था,राजकाज और राजनय चलाने वाले सत्तापक्ष और विपक्ष के नेता भी,दो दो प्रधानमंत्री समेत मार दिये गये,फिर बी हम सोते रहे।
परदे के पीछे बेहद काम के आदमी हैं अपने हरुआ दाढ़ी उर्प हरदा उर्फ हरीश पंत।युगमंच और नैनीताल समाचार की टीमों के आल राउंडर।रंग कर्म और पत्रकारिता टीम के साझा सिपाहसालार,पवन राकेश के जोड़ीदार और गिर्दा की लगाम खींचने वाले।डीएसबी में चित्रकारी और कविता से शुरुआत करने के बाद नैनीताल से नीचे भाबर में बेस बनाकर अब भी नैनीताल समाचार कारप्रकाशन कर रहे हैं।
भारत अमरिकी रक्षा सहयोग पर उनमे बरसों पहले मृत कवि जाग उठा है और उनने लिखा हैः
रूस अमरीका का सट्टा / हम तुम साल उल्लूपट्ठा / आओ खेलें कट्टम कट्टा ।
उनका यह कवित्व सत्तर के दशक में डीएसबी में हमारे साथी राजाबहुगुणा का ताजा वाल पोस्ट पर टिप्पणी है।
राजा बहुगुणा का वाल पोस्टइस प्रकार हैः
अब भारतीय बेस में अमेरिकन फौज का वास होगा और देश में भारतमाता का जयकार होगा। देश का पैसा माल्या-अदानी की तिजोरी में होगा और हंगामा किया तो देशद्रोही करार होगा।कश्मीर में दरिंदगी का नाच होगा और जुबां खोली तो खंजर सीने के पार होगा।
नवउदारवादी जमाने के आगाज से पहले हम 1989 से ये ही बातें कहते लिखते रहे हैं।अमेरिका से सावधान उपन्यास लिखा।लेकिन हमारी किसी ने नहीं सुनी।
जाहिर है कि चिड़िया चुग गये खेत,अब पछताये का होत है।
इसी सिलसिले में कुंमाऊं से ही युवा सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश पांडेय का मंतव्यभी गौरतलब हैः
रक्षा क्षेत्र में मोदी सरकार का अमेरिका के सम्मुख यह समर्पण शर्मनाक
" देशभक्ति का जाप कर लोगों को आतंकित करने वाली मोदी सरकार ने अमेरिका के सामने देश की संप्रभुता को गिरवी रखते हुए रक्षा क्षेत्र में 'लाजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट' करने का फैसला कर लिया है. इस समझौते से अमेरिका को भारतीय सैन्य ठिकानों का उपयोग करने का अधिकार मिल जायेगा जो कि देश की सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा कर देगा.
"अमेरिका का सैन्य इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है जब उन्होंने किसी न किसी बहाने दूसरे देशों के सैन्य ठिकानों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है. इस समझौते की ख़ास बात यह भी है कि जिस समय अमेरिकी सेना हमारे देश के किसी हिस्से का उपयोग करेगी वह जगह तब तक अमेरिका की टेरिटरी (कब्ज़े वाली जगह) रहेगी और उस पर कोई भारतीय कानून लागू नहीं होगा. भाजपा सरकार का अमेरिका के सम्मुख यह समर्पण शर्मनाक है."
"अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर और भारतीय रक्षा मंत्री मनोहर परिंकर ने कल संयुक्त रूप से कहा कि दोनों देशों की सेनाएं 'एक-दूसरे के रक्षा सामान का इस्तेमाल' कर सकेंगी"
क्या भारत सरकार ने राष्ट्रीय मर्यादा को ताक पर रख कर अमेरिका को हमारे रक्षा सामानों की इस्तेमाल की इजाजत देकर अपने देश को अमेरिका का जूनियर पार्टनर बना लिया है. देश की जनता देशभक्ति का सर्टिफिकेट बाँटने वालों से यह जानना चाहती है.
असल में फासीवादी लोग जितने जोर से देशभक्ति का नारा लगाते हैं उतना ही साम्राज्यवाद के आगे नतमस्तक भी होते हैं, यह फासीवाद का चरित्र है.
मोदी अमेरिका के आगे घुटने टेकने वाले रक्षा समझौतों को रद्द करें अन्यथा भारत की देशभक्त जनता चुप नहीं बैठेगी.
Pl see my blogs;
Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!
No comments:
Post a Comment