अमलेंदु सड़क दुर्घटना में जख्मी,हस्तक्षेप बाधित
हम कितने अकेले और बेबस हैं ,यह इसका नमूना है।
मित्रों से निवेदन है कि हालात को समझें और जरुरी कदम उठायें ताकि हमारी आवाज बंद न हों।
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पलाश विश्वास
कल शाम दिल्ली में हस्तक्षेप के संपादक अमलेंदु उपाध्याय एक भयंकर दुर्घटना से बाल बल बच गये हैं।वे जिस आटो से घर लौट रहे थे,वह एक बस से टकरा गया।आटो उलट जाने से अमलेंदु और दो साथियों के चोटें आयीं।अमलेंदु के दाएं हाथ में काफी चोटे आयी हैं और कल से हस्तक्षेप पर अपडेट नहीं हो पा रहा है।क्योंकि हस्तक्षेप अपडेट करने के लिए कोई दूसरा नहीं है।ऐसे समय में यह हमारे लिए भारी झटका है।उम्मीद है कि जल्द से जल्द वे काम पर लौटने की हालत में होंगे।
हम कितने अकेले और बेबस हैं ,यह इसका नमूना है।
समयांतर पंकज बिष्ट जी की जिद पर अभी नियमित है तो समकालीन तीसरी दुनिया के लिए भी हम साधन जुटा नहीं पा रहे हैं।एक के बाद एक मोर्चा हमारा टूट रहा है और हम अपने किले बचाने की कोशिश में लगे नहीं है।
सत्तर के दशक से पंकज बिष्ट और आनंद स्वरुप वर्मा की अगुवाई में हम लगातार जो वैकल्पिक मीडिया बनाने की मुहिम में लगे हैं,अपने ही लोगों का साथ न मिलने से उसका डेरा डंडा उखड़ने लगा है।एक एक करके पोर्टल बंद होते जा रहे हैं।
भड़ास को यशवंत अकेले दम चला रहे हैं और वह मीडिया की समस्याओं से अब भी जूझ रहा है।
पिछले पांच साल से कुछ दोस्तों की मदद से हस्तक्षेप नियमित निकल रहा है और हम उसे राष्ट्रव्यापी जनसुनवाई मंच में बदलने की कोशिश में लगे हैं।
अमलेंदु हमारे युवा सिपाहसालार हैं और विपरीत परिस्थितियों में उसने मोर्चा जमाये रखा है।
मित्रों से निवेदन है कि हालात को समझें और जरुरी कदम उठायें ताकि हमारी आवाज बंद न हों।
हस्तक्षेप.कॉम कुछ संजीदा पत्रकारों का प्रयास है। काफी लम्बे समय से महसूस किया जा रहा था कि तथाकथित मुख्य धारा का मीडिया अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है और मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है, उसकी प्रासंगिकता अगर समाप्त नहीं भी हो रही है तो कम तो होती ही जा रही है। तथाकथित मुख्य धारा का मीडिया या तो पूंजीपतियों का माउथपीस बन कर रह गया है या फिर सरकार का। आज हाशिए पर धकेल दिए गए आम आदमी की आवाज इस मीडिया की चिन्ता नहीं हैं, बल्कि इसकी चिन्ता में राखी का स्वयंवर, राहुल महाजन की शादी, राजू श्रीवास्तव की फूहड़ कॉमेडी और सचिन तेन्दुलकर के चौके छक्के शामिल हैं। कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं अब मीडिया की सुर्खी नहीं नहीं रहीं, हां 'पीपली लाइव' का मज़ा जरूर मीडिया ले रहा है। और तो और अब तो विपक्ष के बड़े नेता लालकृष्ण अडवाणी के बयान भी अखबारों के आखरी पन्ने पर स्थान पा रहे हैं।
ऐसे में जरूरत है एक वैकल्पिक मीडिया की। लेकिन महसूस किया जा रहा है कि जो वैकल्पिक मीडिया आ रहा है उनमें से कुछ की बात छोड़ दी जाए तो बहुत स्वस्थ बहस वह भी नहीं दे पा रहे हैं। अधिकांश या तो किसी राजनैतिक दल की छत्र छाया में पनप रहे हैं या फिर अपने विरोधियों को निपटाने के लिए एक मंच तैयार कर रहे हैं।
इसलिए हमने महसूस किया कि क्यों न एक नया मंच बनाया जाए जहां स्वस्थ बहस की परंपरा बने और ऐसी खबरें पाठकों तक पहुचाई जा सकें जिन्हें या तो राष्ट्रीय मीडिया अपने पूंजीगत स्वार्थ या फिर वैचारिक आग्रह या फिर सरकार के डर से नहीं पहुचाता है।
ऐसा नहीं है कि हमें कोई भ्रम हो कि हम कोई नई क्रांति करने जा रहे हैं और पत्रकारिता की दशा और दिशा बदल डालेंगे। लेकिन एक प्रयास तो किया ही जा सकता है कि उनकी खबरें भी स्पेस पाएं जो मीडिया के लिए खबर नहीं बनते।
ऐसा भी नहीं है कि हमारे वैचारिक आग्रह और दुराग्रह नहीं हैं, लेकिन हम एक वादा जरूर करते हैं कि खबरों के साथ अन्याय नहीं करेंगे। मुक्तिबोध ने कहा था 'तय करो कि किस ओर हो तुम'। हमें अपना लक्ष्य मालूम है और हम यह भी जानते हैं कि वैश्वीकृत होती और तथाकथित आर्थिक उदारीकरण की इस दुनिया में हमारा रास्ता क्या है? इसलिए अगर कुछ लोगों को लगे कि हम निष्पक्ष नहीं हैं तो हमें आपत्ति नहीं है।
हम यह भी बखूबी जानते हैं कि पोर्टल चलाना कोई हंसी मजाक नहीं है और जब तक कि पीछे कोई काली पूंजी न हो अथवा जिंदा रहने के लिए आपके आर्थिक रिश्ते मजबूत न हों, या फिर आजीविका के आपके साधनों से अतिरिक्त बचत न हो, तो टिकना आसान नहीं है। लेकिन मित्रों के सहयोग से रास्ता पार होगा ही!
आशा है आपका सहयोग मिलेगा। हमारा प्रयास होगा कि हम ऐसे पत्रकारों को स्थान दें जो अच्छा काम तो कर रहे हैं लेकिन किसी गॉडफादर के अभाव में अच्छा स्पेस नहीं पा रहे हैं। हम जनोपयोगी और सरोकारों से जुड़े लोगों और संगठनों की विज्ञप्तियों को भी स्थान देंगे
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