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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, November 18, 2012

बाल ठाकरे की चिता जलते ही रोने लगे राज

बाल ठाकरे की चिता जलते ही रोने लगे राज

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बाल ठाकरे की चिता के पास बेदह भावुक राज ठाकरे।

मुंबई।। शिवाजी पार्क में रविवार देर शाम जब उद्धव ठाकरे ने बाल ठाकरे की चिता को मुखाग्नि दी, तो पास ही खड़े उनके चचेरे भाई और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे बेहद भावुक हो गए। हमेशा बेहद सख्त नजर आने वाले राज चाचा की चिता के बगल में काफी देर तक सुबकते रहे। राज रोते हुए घुटने के बल बैठ गए और उन्होंने बाल ठाकरे की जलती चिता को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के वक्त पूरा शिवाजी पार्क खचाखच भरा था। हर किसी की आंखें नम थीं। पुलिस के मुताबिक शिवाजी पार्क में करीब 20 लाख लोग बाल ठाकरे के अंतिम दर्शन के लिए मौजूद थे।

अंतिम दर्शन के लिए लौटेः इससे पहले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की शवयात्रा को बीच में छोड़कर घर गए एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे अंतिम संस्कार से ठीक पहले शिवाजी पार्क पहुंचे। शाम करीब साढ़े चार बजे वह एमएनएस के नेताओं के साथ शिवाजी पार्क में पहुंचे। वहां वह उद्धव ठाकरे के साथ बातचीत करते देखे गए। राज ठाकरे के शवयात्रा से जाने पर कयास लगाए जा रहे थे कि भले ही बाला साहेब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक साथ मिलना चाहते थे, लेकिन दोनों के बीच की दूरी कम नहीं हुई है। जिस वक्त उद्धव बिलखते हुए दिखाई दे रहे थे, तब उन्हें सहारा देने के लिए राज ठाकरे आसपास मौजूद नहीं थे।

शवयात्रा बीच में छोड़ीः अंतिम यात्रा के दौरान जहां उद्धव और परिवार के करीबी लोग बाला साहेब के पार्थिव शरीर के साथ ट्रक पर सवार थे, वहीं राज ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के समर्थकों के साथ पैदल चल रहे थे।बाद में अपने समर्थकों के साथ राज ठाकरे ने अलग रास्ता पकड़ लिया। वह उस रास्ते से नहीं गए, जहां से अंतिम यात्रा गुजर रही थी। इससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि राज और उद्धव को एक करने का बाल ठाकरे का सपना शायद पूरा नहीं हो पाएगा।

कई मौकों पर बाल ठाकरे के भाषणों से इस तरह के संकेत मिले थे कि वह राज ठाकरे के अलग होकर नई पार्टी बनाने के फैसले से दुखी थे। वह चाहते थे कि दोनों भाई एक साथ आ जाएं। उन्होंने दोनों को साथ मिलकर काम करने की सलाह भी दी थी। बताया जा रहा है कि उन्होंने राज और उद्धव से कहा था कि एक हो जाओ, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। राज ठाकरे ने भले ही अलग पार्टी बना ली हो, लेकिन वह बाला साहेब के नक्शे कदम पर ही चले। पार्टी के नाम से लेकर पार्टी के काम करने का तरीका और मुद्दे भी एक जैसे ही थे। बाल ठाकरे की तरह राज ने भी 'मराठी माणुस' की राजनीति की। काफी हद तक राज ठाकरे ने शिवसेना के वोट बैंक में भी सेंध लगाई। लोग राज ठाकरे में बाला साहेब की छवि देखते हैं।

भले ही राज ने बाला साहेब से नाराज होकर अलग पार्टी बनाई हो, लेकिन उनके दिल में अपने चाचा और भाई के प्रति प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ था। पिछले दिनों जब उद्धव हॉस्पिटल में ऐडमिट हुए थे, तब भी राज ठाकरे खुद उन्हें अपनी कार से घर लाए थे। हमारे सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ को दिए इंटरव्यू में राज ठाकरे कहा था, 'परिवार का मामला अलग है और राजनीति का अलग। मैं हर मोड़ पर अपने परिवार के साथ हूं।' साथ ही भविष्य में एक साथ आने के सवाल को लेकर भी उन्होंने कहा था कि भविष्य की बात भविष्य में देखेंगे।

बाला साहेब के जाने के बाद उनके और राज ठाकरे के समर्थकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राज ठाकरे की शिवसेना में वापसी होगी और क्या राज और उद्धव दोनों साथ मिलकर काम करेंगे? लेकिन जानकारों का मानना है बाला साहेब के रहते हुए ही राज और उद्धव एक हो सकते थे, लेकिन अब यह 'प्रैक्टिकली' संभव नहीं दिखता।

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