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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, April 12, 2013

भारतीय वर्चस्ववादी मनुस्मृति राजनीति और अर्थ व्यवस्था विकास गाथा नहीं, हत्या, साजिश और भ्रष्टाचार की हरिकथा अनंत है।

भारतीय वर्चस्ववादी मनुस्मृति राजनीति और अर्थ व्यवस्था विकास गाथा नहीं, हत्या, साजिश और भ्रष्टाचार की हरिकथा अनंत है।


वाह क्या दलील है, उत्पादन दर गिरी है लिहाजा ब्याज दरों में कटौती कर उद्योग जगत को राहत दी जाये!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


मुक्त बाजार की विकासगाथा जमीनी हकीकत न होकर कारपोरेट अर्थशास्त्रियों की आंकड़ा कलाबाजी है। इस बार विकीलिक्स ने वाशिंगटन ​​के जो केबिल लीक किये, उससे साफ जाहिर है कि कैसे सत्तर के दशक से खुल्ला खेल फर्रऊखाबादी चल रहा है। ललितनारायण मिश्र की हत्या का मामला इस खुलासे में शामिल है। भारतीय वर्चस्ववादी मनुस्मृति राजनीति और अर्थ व्यवस्था विकास गाथा नहीं, हत्या, साजिश और भ्रष्टाचार की हरिकथा अनंत है।इस कांड के खुलासे के सात साथ हमें अब डा. अंबेडकर की रहस्यमय मृत्यु के रहस्योद्गाटन के लिे भी शायद असांज की ओर देखना पड़ेगा। क्योंकि भारत के सत्तावर्ग ने इस माले को सिरे से खारिज कर दिया। अंबेडकर जयंती पर विकीलिक्स के नये खुलासे के मद्देनजर हत्या साजिश और भ्रष्टाचार की निरंतरता के परिप्रेश्क्ष्य में इस मुद्दे पर बहुजन समाज को अवश्य चिंतन करना चाहिए। हिंदू साम्राज्यवाद को खुल्ला अमेरिकी कारपोरेट साम्राज्यवादी जायनवादी समर्थन के बाद तो देश के अंबेडकरवादियों गैर अंबेडकरवादियों, वामपंथियों, क्रांतिकारियों और लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देशभक्त ताकतों को इस सिलसिले पर हिंदुत्व आंदोलन और कारपोरेट मुक्त बाजार के अंतर्संबंध पर नये सिरे से सोचना चाहिए। मजे की बात है कि ये केबल असांज ने हमेशा की तरह लीक हीं किये। ये अमेरिकी प्रशासन के अधिकृत वैबसाइट की वर्गीकृत जानकारी भंडार से वैध तरीके से लिये गये हैं।जिसमें कांग्रेस के वंशीय राजकाज का पर्दाफाश करते हुए राज परिवार की छवि ध्वस्त की गयी है और युवराज की ताजपोशी के रास्ते में कांटे बिछाये गये है। इन दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चलता है कि कैसे भारत मुक्तबाजार बना और भारतीय जनता के कत्लेआम के जरिये अमेरिकी उपनिवेश भी। इन दस्तावेजों से अमेरिका की भारत नीति में परिवर्तन के साफ संकेत हैं, जो पहले ही नरेंद्र मोदी को अमेरिकी वीसा के लिए हरी झंडी से साफ है। जाहिर है कि अमेरिकापरस्त असंवैधानिक कारपोरेट एजंटों को हटाकर भारतीय अर्थव्यवस्था राजनेताओं के हवाले करने के लिए अमेरिका कतई तैयार नहीं है। मनमोहन हटे तो अमेरिकी शिकंजा ढीला पड़ना तय है। इसलिए राहुल की दावेदारी इसतरह हवा में उड़ाने का चाकचौबंद इंतजाम किया गया है। भारत में हिंदुत्व के पुनरुत्थान की कथा जेपी आंदोलन और आपातकाल से शुरु है, जिसके जरिये भारतीय संविधान, लोकतंत्र, संप्रभुता और लोककल्याणकारी गणराज्य की एकमुश्त तिलांजलि दे दी गयी और भारत को कारपोरेट वध स्थल में तब्दील कर दिया गया। अब आर्थिक सुधारों के लिए कांग्रेसी नरम हिंदुत्व अमेरिकी हितों के कतई अनुकूल नहीं है। अमेरिका दुनियाभर में उग्रतम धर्मांध राष्ट्रवाद का कोरोबार चलाता है, क्यों उसके नीति निर्धारक जायनवादी आका युद्ध और गृहयुद्ध के कारोबार में हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में बढ़ते धर्मांध राष्ट्रवाद के वसंत उत्सव का तात्पर्य भी कुल जमा यही है। जहां जनता के सारे हक हकूक छिने जाने हैं। जनता को कोई राहत नहीं मिलनी है। हर दलील, हर आंकड़ा, हर तथ्य और सूचना सिर्फ पूंजी के अबाध प्रवाह और कालेदन की अर्थ व्यवस्था के लिए है।


विकीलिक्स के ताजा  खुलासे से संघ परिवार और कांग्रेस की बिरादराना रिश्ता सामने आ गया है।संजय गांधी पर विकीलिक्स का एक और सनसनीखेज खुलासा सामने आया है। विकीलिक्स का दावा है कि इमरजेंसी के दौरान आरएसएस असरदार विपक्ष की भूमिका निभा रहा था और संजय गांधी ने आरएसएस से समझौते की पेशकश की थी जिसे आरएसएस ने ठुकरा दिया था। खास बात यह है कि तब आरएसएस एक प्रतिबंधित संगठन था।तारीख 14 दिसंबर 1976, यह इमरजेंसी का वक्त था। केंद्र सरकार और आरएसएस के बीच तनाव चरम पर था। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद केंद्र सरकार ने दूसरी बार इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन बैन होने के बावजूद इसकी ताकत कम नहीं हुई बढ़ी ही थी। अमेरिकी इमबैसी से जारी केबल के मुताबिक तब संजय गांधी ने आरएसएस से समझौते की पेशकश की। ब्रिटिश हाई कमीशन के सूत्रों के मुताबिक समझौते की इस पेशकश को संघ ने ठुकरा दिया। अब सवाल है कि संघ इस दौरान ऐसा क्या कर रहा था जिस वजह से संजय गांधी को समझौते की पेशकश करनी पड़ी।हमें कई सूत्रों से पता चला है कि RSS के कई कार्यकर्ता अब यूथ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। लेकिन ऐसा उन्होंने किस मकसद से किया है ये अभी साफ नहीं है। फिर भी ये साफ है कि RSS इमरजेंसी में सबसे कारगर विपक्ष की भूमिका निभा रहा है और इसके कार्यकर्ता गांवों से लेकर शहरों तक फैले हैं। वो  अफवाह फैला रहे हैं, स्थानीय भाषाओं में अखबार निकाल रहे हैं और परिवार नियोजन के खिलाफ मुहिम में भी शामिल हैं।


हालांकि कांग्रेस ने विकीलिक्स की उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया है कि दिवंगत राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनने से काफी पहले शायद भारत को लड़ाकू विमान बेचने का प्रयास कर रही स्वीडन की एक कंपनी के बिचौलिये थे।राजीव गांधी के खिलाफ आरोपों के निराधार होने पर जोर देते हुए कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने उस केबल की अंतिम पंक्ति का जिक्र करते हुए कहा कि इन आरोपों का कोई आधार नहीं है। उन्होंने विकीलिक्स के संस्थापक जुलियन असांजे पर झूठी एवं गलत बातें फैलाने का आरोप लगाया। विकीलिक्स के खुलासे से भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया है। इस वेबसाइट का दावा है कि राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले जब पायलट के रूप में काम रहे थे तब वे एक स्वीडिश कंपनी साब स्कॉनिया के लिए मध्‍यस्‍थ का काम भी कर रहे थे। इतना ही नहीं बल्कि वेबसाइट ने पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस के बारे में भी सनसनीखेज खुलासे किए हैं।


आरबीआई द्वारा रेपो रेट घटाने की संभावना काफी बढ़ गई है। ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए आरबीआई को दरें घटानी होंगी।वित्त वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में सुधार की उम्मीद कर रहे नीति निर्माताओं को फरवरी के औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों से झटका लग सकता है। फरवरी 2013 में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) की वृद्घि महज 0.6 फीसदी रही, जबकि जनवरी में इसमें 2.4 फीसदी की अच्छी वृद्घि देखी गई थी। वित्त वर्ष 2011-12 में आईआईपी की वृद्घि दर 4.3 फीसदी थी। वित्त वर्ष 2012-13 के 11 महीनों के दौरान औद्योगिक उत्पादन महज 0.9 फीसदी बढ़ा है जबकि इससे बीते वित्त वर्ष की समान अवधि में इसकी विकास दर 3.5 फीसदी थी। लेकिन, रेट सेंसिटिव कंपनियों के कॉरपोर्ट गवर्नेंस को लेकर सवाल हैं, इसलिए इनसे दूर रहना बेहतर होगा।ग्लोबल स्तर पर देश की आर्थिक छवि सुधारने में जुटी सरकार ने रेटिंग एजेंसियों को साधने की कवायद तेज कर दी है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच को सरकार ने आर्थिक सुधार जारी रखने और खजाने की स्थिति को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने का भरोसा दिया है। बीते कुछ महीने में आर्थिक सुधारों की रफ्तार बढ़ाने के साथ-साथ सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बनाने के लिए सभी प्रमुख रेटिंग एजेंसियों के साथ बैठक कर उन्हें उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देने का फैसला किया है। इस क्रम में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने शुक्रवार को फिच के साथ बैठक की।वित्त मंत्री पी. चिदंबरम अगले सप्ताह कनाडा और अमेरिका की यात्रा पर जाएंगे जहां वह भारत की आर्थिक वृद्धि और निवेश संभावनाओं के बारे में बताकर निवेशकों को लुभाने का प्रयास करेंगे। वित्त मंत्री यात्रा के आखिरी पड़ाव में वाशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की सालाना ग्रीषमकालीन बैठकों में भी भाग लेंगे। चालू खाते के घाटे के बढ़ते फासले के मद्देनजर वित्त मंत्री विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए दुनिया के प्रमुख वित्तीय केन्द्रों की यात्रा कर चुके हैं। भारत को एक बेहतर निवेश स्थल के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए वह जापान, जर्मनी, हांगकांग और सिंगापुर की यात्रा कर चुके हैं। वित्त मंत्री भारत की निवेश संभावनाओं को बताने के लिए रोड शो की शुरुआत 15 अप्रैल से कनाडा के टोरंटो से शुरु करेंगे। इस दौरान वह ओट्टावा, बोस्टन और न्यूयार्क का दौरा भी करेंगे। वित्त मंत्री उद्योगपतियों और निवेशकों को बड़ी परियोजनाओं पर तेजी से काम आगे बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में बताएंगे। इसके अलावा राजकोषीय घाटे में कमी लाने के लिए किए गए प्रयासों को भी उनके समक्ष रखेंगे। चिदंबरम ऋण बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश नियमों को सरल बनाने की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे में भी बता सकते हैं। सूत्रों के अनुसार चिदंबरम के साथ वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी तथा रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल भी होंगे।


बताइये, उत्पादन प्रणाली और वित्तीय घाटा से क्या रिश्ता है? ब्याज दरों का वित्तीय नीतियों में बिना कोई फेर बदल, अर्थ व्यवस्था की बुनियाद में बिना किसी सुधार के मौद्रिक कवायद से किसका विपर्यय रोकने को तत्पर हैं दुनियाभर में भारत को बेचनेवाले लोग?वित्तमंत्रालय संभालने के बाद चिदंबरम की तो सर्वोच्च प्राथमिकता ब्याज दरों में कटौती है और वे भारतीय रिजर्व बैंकि की स्वायत्तता को खंडित करके इसके लिए लगातार दबाव बनाये हुए हैं।सरकार द्वारा आर्थिक सुधार की ओर कदम उठाने के बाद बाजार उछले थे। अब बाजार में करेक्शन नजर आ रहा है और निवेश के लिहाज से वैल्यूएशन आकर्षक हो गए हैं।बाजारों में गिरावट गहराने की आशंका है। चौथी तिमाही नतीजों से निराशा हो सकती है। आर्थिक आंकड़े भी खराब रहने का अनुमान है। सिर्फ महंगाई में कमी नजर आएगी, क्योंकि ग्रोथ घट रही है।डिमांड घटने से जहां फरवरी में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर धीमी पड़कर 0.6 प्रतिशत रह गई वहीं रीटेल मूल्य पर आधारित महंगाई दर में मामूली गिरावट दर्ज की गई। इन परिस्थितियों को देखते हुए कॉर्पोरेट सेक्टर का कहना है कि अब रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कटौती पर विचार करना चाहिए।केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आईआईपी के आंकड़ों के मुताबिक, पावर और माइनिंग सेक्टर में उत्पादन में गिरावट और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के कमजोर प्रदर्शन की वजह से औद्योगिक उत्पादन की विकास दर फरवरी में 0.6 प्रतिशत रही। इस साल जनवरी में यह 2.4 प्रतिशत और पिछले साल फरवरी में यह 4.3 प्रतिशत थी। रीटेल मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर में हो रही बढ़ोतरी मार्च में थम गई। अब यह घटकर 10.39 प्रतिशत पर आ गई है। रीटेल महंगाई दर (सीपीआई) फरवरी में 10.91 प्रतिशत थी। सब्जियों और प्रोटीन आधारित उपभोक्ता वस्तुओं के दाम घटने से इसमें नरमी आई है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का कहना है कि आईआईपी नेगेटिव जोन में नहीं गई है। आने वाले समय में इसमें बढ़ोतरी की पूरी संभावना है।औद्योगिक संगठन एसोचैम के प्रेजिडेंट राजकुमार धूत का कहना है कि रिजर्व बैंक को अब ब्याज दरें घटाने पर विचार करना चाहिए। ज्यादा ठहराव अब मार्केट और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है।


विकिलीक्स के ये खुलासे एक अंग्रेजी समाचार पत्र में प्रकाशित होने के बाद से सुर्खियों में हैं। हालांकि अभी कांग्रेस ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन भाजपा के नेता प्रकाश जावडेकर ने सवाल उठाया है कि हर रक्षा सौदे में गांधी परिवार का नाम ही सामने क्यों आता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में गांधी परिवार को जवाब देना चाहिए और तब के दस्तावेज सार्वजनिक होने चाहिए।


खुलासे के अनुसार राजीव गांधी पीएम बनने से पहले इंडियन एयरलाइंस में पायलट की नौकरी के दौरान एक स्वीडिश कंपनी के लिए संभवत: मध्‍यस्‍थ का काम करते थे। यही कंपनी साब स्कॉनिया 70 के दशक में भारत को फाइटर प्लेन विजेन बेचने की कोशिश कर रही थी। विकीलिक्स ने इस खुलासे में अमरेरिकी सुरक्षा सलाहाकर रह चुके हेनरी किसिंजर का हवाला देते हुए कहा है कि स्वीडिश कंपनी के साथ सौदा नहीं हो पाया था और ब्रिटिश जगुआर ने बाजी मार ली थी। इसी तरह फर्नांडिश के बारे में लिखा है कि इमरजेंसी के दौरान उन्होंने भूमिगत रहने के दौरान अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए से आर्थिक मदद भी मांगी थी।


गौरतलब है कि राजीव गांधी 1980 तक भारतीय राजनीति से दूर रहे। संजय गांधी के आकस्मिक निधन के बाद ही इंदिरा गांधी उन्हें राजनीति में लाई। अपने पीएम बनने के पहले कार्यकाल में ही वे एक दूसरी स्वीडिश कंपनी से बोफोर्स तोपों की खरीद के लिए हुए सौदे में दलाली के आरोपों से घिर गए। आखिरकार 1989 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को करारी हार मिली।


विकीलिक्स ने 1974 से 1976 के दौरान के जारी 41 केबल्स का हवाला देते हुए लिखा है कि स्वीडिश कंपनी को इस बात का अंदाजा था कि फाइटर एयरक्राफ्ट्स की खरीद के बारे में अंतिम फैसला लेने में गांधी परिवार की भूमिका होगी। फ्रांसीसी एयरक्राफ्ट कंपनी दसो को भी इसका अनुमान था। उसकी ओर से मिराज फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए तत्कालीन वायुसेना अध्यक्ष ओपी मेहरा के दामाद दलाली करने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि मेहरा के दलाल के नाम का खुलासा नहीं किया गया।


1975 में दिल्ली स्थित स्वीडिश दूतावास के एक राजनयिक की ओर से भेजे गए केबल संदेश से पता चलता है कि इंदिरा गांधी ने ब्रिटेन के खिलाफ अपने पूर्वाग्रहों की वजह से जगुआर न खरीदने का फैसला किया था। संदेश में कहा गया है कि अब मिराज और विजेन के बीच फैसला होना है। श्रीमती गांधी के बड़े बेटे बतौर पायलट एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े हैं और पहली बार उनका नाम बतौर उद्यमी सुना जा रहा है। फाइनल फैसले को परिवार प्रभावित करेगा।


दूसरे केबल में कहा गया कि इस डील में इंदिरा गांधी की अति सक्रियता से स्वीडन चिढ़ा हुआ था। इस केबल के अनुसार उन्होंने फाइटर प्लेन की खरीद की प्रक्रिया से एयरफोर्स को दूर रखा था। रजनयिक के मुताबिक 40 से 50 लाख डॉलर प्रति प्लेन के हिसाब से 50 विजेन के लिए बातचीत चल रही थी। स्वीडन को भरोसा था कि भारत सोवियत संघ से और युद्धक विमान न खरीदने का फैसला कर चुका था।


विकीलीक्स का भूत एक बार फिर कांग्रेस को डराने आ गया। कांग्रेस ने आज उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया है कि राजीव गांधी ने राजनीति में उतरने से पहले एक स्वीडिश विमान कंपनी के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी जबकि विपक्ष ने मांग की कि 'सचाई' सार्वजनिक की जाए।


कांग्रेस ने साफ कर दिया कि उस रिपोर्ट का कोई आधार नहीं है। पार्टी महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने इस बात पर जोर देने के लिए लीक हुए विकीलीक्स दस्तावेज की अंतिम लाइन का उल्लेख किया कि आरोपों का कोई आधार नहीं है। विकीलीक्स संस्थापक जूलियन असांज पर 'झूठी और गलत बातें फैलाने' का आरोप लगाते हुए द्विवेदी ने कहा कि स्वीडन के व्यक्ति ने जो बताया, उसके बाद केबल में टिप्पणी की गई है कि उसके पास इस सूचना को खारिज करने या इसकी पुष्टि करने के लिए कोई अतिरिक्त सूचना नहीं है।


कांग्रेस नेता ने मीडिया से अपील की कि वह अस्थायी लाभ के लिए काम न करे और हम इस समाचार से बेहद आहत हैं। भाजपा ने विकीलीक्स दस्तावेजों में लगाए गए गंभीर आरोपों पर कांग्रेस से स्पष्टीकरण मांगा जबकि भाकपा ने सतर्कता आयोग जैसी स्वतंत्र एजेंसियों से जांच कराने की मांग की। भाजपा ने विकीलीक्स के उन दावों को बहुत 'गंभीर' बताया, जिसमें कहा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक विमान सौदे में मध्यस्थ थे। उसने इस बारे में कांग्रेस से स्पष्टीकरण मांगने के साथ संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने की मांग की।


पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि ये रहस्योद्घाटन बहुत गंभीर हैं। देश को सचाई जानने का हक है। ये 30 साल पुराने दस्तावेज विभिन्न रक्षा अधिग्रहणों में दिवंगत इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के संभावित संबंध होने का इशारा करते हैं। जावडेकर ने कहा कि यह आरोप है कि राजीव गांधी विमान की खरीद प्रक्रिया में कुछ भूमिका निभा रहे थे और इंदिरा गांधी रक्षा सौदों के बारे में अंतिम निर्णय लेती थीं। ये आरोप अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाप्टर सौदा घोटाले के परिदृश्य में और भी गंभीर हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा इस बारे में सरकार से स्पष्टीकरण चाहती है और सरकार इससे संबंधित सभी दस्तावेज सार्वजनिक करना सुनिश्चित करे। विकीलीक्स द्वारा जारी इस गोपनीय केबल में दावा किया गया है कि इस बड़े विमान सौदे में राजीव 'मुख्य भारतीय मध्यस्थ' थे जिसके लिए उनके परिवार का सम्पर्क महत्वपूर्ण माना जा रहा था।


फरवरी औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े उम्मीद से बेहतर रहे हैं। फरवरी में आईआईपी 0.6 फीसदी रहा है, जबकि अनुमान -1 फीसदी का था। हालांकि, जनवरी में आईआईपी 2.4 फीसदी रही थी। पिछले साल फरवरी में आईआईपी 4.3 फीसदी रही थी।


पिछले साल के मुकाबले फरवरी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ग्रोथ 4.1 फीसदी से घटकर 2.2 फीसदी रही है। हालांकि, माइनिंग सेक्टर का प्रदर्शन खराब हुआ है। पिछले साल के 2.3 फीसदी के बजाय इस साल मार्च में माइनिंग सेक्टर के उत्पादन की ग्रोथ -8.1 फीसदी रही है।


इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर का भी हाल बुरा है। मार्च में इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर का उत्पादन की ग्रोथ -3.2 फीसदी रही, जबकि पिछले साल ये 8 फीसदी रही थी। पिछले साल के 7.6 फीसदी के मुकाबले इस साल मार्च में बेसिक गुड्स की ग्रोथ -1.8 फीसदी रही है।


कैपिटल गुड्स की ग्रोथ 9.5 फीसदी रही है, जबकि पिछले साल मार्च में इस सेक्टर ने 10.5 फीसदी की ग्रोथ दिखाई थी। पिछले साल के 1 फीसदी के मुकाबले इस साल मार्च में इन्टर्मीडीएट गुड्स की ग्रोथ -0.7 फीसदी रही। वहीं, कंज्यूमर गुड्स की ग्रोथ -0.4 फीसदी से बढ़कर 0.5 फीसदी रही है।


कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सेक्टर में भी थोड़ा सुधार दिखा है, हालांकि ग्रोथ अब भी नेगेटिव ही है। पिछले साल के -6.2 फीसदी के मुकाबले इस साल मार्च में इस सेक्टर की ग्रोथ -2.7 फीसदी रही है। कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स की ग्रोथ 4.4 फीसदी से घटकर 2.9 फीसदी रही है।


इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (आईआईपी) के आंकड़े हर महीने आते हैं। आईआईपी, एक कंपोजिट इंडीकेटर है जो उत्पादन में बदलाव को दिखाता है। आईआईपी के आंकड़ों से तमाम सेक्टर में ग्रोथ का भी पता चलता है। आईआईपी में फिलहाल 682 वस्तुएं का समावेश किया गया है। सेंट्रल स्टैटिकल ऑर्गेनाइजेशन (सीएसओ) आईआईपी के आंकड़ों को जारी करता है।


आईआईपी, बाजार के लिए अहम संकेत होता है और इससे अर्थव्यवस्था की सेहत का पता चलता है। आईआईपी में मैन्यूफैक्चरिंग, माइनिंग और कैपिटल गुड्स सेक्टर का वेटेज ज्यादा है। आईआईपी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का हिस्सा 75 फीसदी का है।


आईआईपी में गिरावट से आरबीआई पर दरों घटाने का दबाव बढ़ता है। साथ ही आरबीआई दरें कम होने से कंपनियों को सस्ते कर्ज की गुंजाइश ज्यादा होती है।


आईआईपी ग्रोथ पॉजिटिव जोन में है लेकिन सरकार भी मानती है कि ग्रोथ काफी कम है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह के मुताबिक ग्रोथ पर दबाव माइनिंग सेक्टर की वजह है और सरकार इस सेक्टर की दिक्कतों को दूर करने की पूरी कोशिश कर रही है।


फरवरी में उम्मीद से बेहतर आईआईपी आंकड़ों से जानकार खुश तो हैं लेकिन उनका मानना है कि इंडस्ट्री के लिए चिंताएं अभी बनी हुई हैं। इक्रा की सीनियर इकोनॉमिस्ट अदिति नायर के मुताबिक आंकड़ों में तेजी बेस इफेक्ट की वजह से दिखी है।


व्हर्लपूल के वाइस प्रेसिडेंट शांतनु दास गुप्ता का कहना है कि इंडस्ट्री की हालत सुधारने के लिए कंज्यूमर के हाथ में अतिरिक्त पैसा होना चाहिए। कंज्यूमर के पास पैसा नहीं बचा तो मांग में बढ़ोतरी नहीं आएगी। महंगाई कम होने पर ही मांग बढ़ेगी।


रेटिंग एजेंसियों के बीच सरकार देश की छवि सुधारने में जुटी है। इसी सिलसिले में इकोनॉमिक अफेयर्स सेक्रेटरी अरविंद मायाराम ने फिच के अधिकारियों से मुलाकात की। बैठक में वित्त वर्ष 2014 में सरकार के वित्तीय घाटे और राजस्व लक्ष्य पर चर्चा की गई।


अरविंद मायाराम का कहना है कि करंट अकाउंट घाटा चिंता का विषय है और उन्होंने उम्मीद जताई है कि करंट अकाउंट घाटे में गिरावट आएगी। उन्होंने फिच के अधिकारियों को भरोसा दिलाया कि देश की अर्थव्यवस्था के आधार मजबूत हैं। इसके अलावा सरकार की दलील है कि सोने की कीमतों में गिरावट आ रही है, जो करंट अकाउंट घाटे को कम करने में मदद करेगा।


फिच ने सवाल उठाया कि सरकार 4.8 फीसदी के वित्तीय घाटे के लक्ष्य को कैसे पूरा कर पाएगी। इस पर वित्त मंत्रालय ने जवाब दिया है कि सब्सिडी में कटौती के लिए कदम उठाए गए हैं। पेट्रोल और डीजल कीमतों से सरकारी नियंत्रण हटाया गया है। साथ ही, सस्ते रसोई गैस के सिलेंडरों की संख्या घटाई है।


राजस्व वसूली बढ़ाने पर फिच द्वारा सवाल उठाने पर वित्त मंत्रालय ने कहा है कि सरकार को सर्विस सेक्टर में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद है। साथ ही, सरकार टैक्स चोरी पर सख्त रवैया अपनाएगी और टैक्स का दायरा बढ़ाया जाएगा।


इसके अलावा फिच की बड़ी चिंता है निवेश माहौल। इस पर वित्त मंत्रालय का कहना है कि देश में निवेश का माहौल सुधरा है। सरकार ने 3000 करोड़ रुपये के नए प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। आने वाले दिनों में निवेश बढ़ने की उम्मीद है। फिच के बाद अब वित्त मंत्रालय एसएंडपी से 25 अप्रैल और मूडीज से 5 मई को मुलाकात करने वाला है।


मुक्त व्यापार समझौते


भारत और जर्मनी ने इस साल के अंत तक अपने बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को अंतिम रूप देने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तीन दिवसीय जर्मनी यात्रा के अंतिम दिन शुक्रवार को इस बात पर सहमति बनी। हालांकि, बीजेपी इस तरह के समझौते के खिलाफ है और उसकी मांग है कि संसद में इसका फैसला होना चाहिए।पीएम सिंह और जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस समझौते पर आगे बढ़ने की प्रतिबद्धता जताई। बयान में कहा गया कि भारत-जर्मनी के बीच व्यापक और संतुलित मुक्त व्यापार समझौते को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं। हमें आशा है कि इस साल के अंत तक इस समझौते को फाइनल कर लिया जाएगा। बयान में कहा गया कि इस समझौते से दोनों देशों में कई नौकरियां पैदा होंगी। इसमें रक्षा और अन्य मामलों में सहयोग, जलवायु परिवर्तन, साइंस और टेक्नॉलजी और एजुकेशन सहित और कई विषयों को शामिल किया गया।दोनों देशों के बीच एफटीए को लेकर भले ही आपसी सहमति बनती दिख रही हो, लेकिन इसकी राह में कई बाधाएं भी हैं। मर्केल ने भी गुरुवार को इस तरफ ध्यान दिलाया था। उन्होंने जहां भारत के इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने की मांग की थी वहीं यूरोप से भारत आयात किए जाने वाले ऑटोमोबाइल्स पर टैरिफ घटाने की बात कही थी। इधर, मुख्य विपक्षी पार्टी भी एफटीए को लेकर खुश नहीं है। उसने इस कदम को विवादास्पद करार देते हुए संसद में इस मुद्दे पर आखिरी फैसला कराए जाने की मांग की है। पार्टी को डर है कि यह समझौता होने से भारतीय बाजारों में यूरोप के डेरी, चीनी, गेहूं और अन्य सामानों की बाढ़ आ जाएगी।


जर्मनी की तीन दिनों की यात्रा पूरी कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शुक्रवार को स्वदेश के लिए रवाना हो गए। यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच जहां आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए बातचीत हुई वहीं कुल छह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें उच्च शिक्षा के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान के लिए अगले चार साल में 70 लाख यूरो खर्च करने का समझौता और जर्मनी द्वारा भारत में हरित ऊर्जा गलियारा की स्थापना के लिए एक अरब यूरो का रियायती कर्ज प्रदान करने का समझौता भी शामिल है। यात्रा के बीच पीएम ने साफ किया कि भारत आथिर्क वृद्धि में तेजी लाने के अपने संकल्प पर 'दृढ़' है।


जापान सरकार ने जनरल ऐंटी अवॉयडेंस रूल्स (गार) को पूरी तरह वापस लेने की मांग की है। कर परिमार्जन पर लगाम लगाने के क्रम में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने वित्त वर्ष 2012-13 के बजट में इसकी घोषणा की थी। इसके अलावा जापान ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि आयकर अधिनियम, 1961 में पिछली तारीख से प्रभावी संबंधी संशोधन प्रस्ताव की समीक्षा की जाए। इसकी घोषणा पिछले साल की गई थी।जापान सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मई में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ मुलाकात के दौरान जापान के उप प्रधानमंत्री तारो आसो इन मुद्दों को जोरदार तरीके से उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सालाना आम बैठक के दौरान संभवत: मई में जापान के उप प्रधानमंत्री और भारत के वित्त मंत्री के बीच द्विपक्षीय बैठक हो सकती है। तारो जापान के वित्त मंत्री का कार्यभार भी संभाल रहे हैं।भारत में वाहन से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक विभिन्न क्षेत्रों में जापान के व्यापक निवेश को देखते हुए कर कानूनों को लेकर चिंता स्वाभाविक है। पिछले साल अगस्त में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपना कार्यभार संभाला था। तभी से अंतरराष्ट्रीय निवेशक गार प्रावधानों की समीक्षा करने की मांग कर रहे हैं। अधिकारी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि चिदंबरम गार पर पार्थसारथि शोम के नेतृत्व में गठित विशेषज्ञ समिति के कुछ सुझावों को स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा, 'गार और पिछली तारीख से प्रभावी कर संशोधन जैसे मुद्दे हमारे लिए गंभीर चिंता की बात है। हमें उम्मीद थी कि हमारे निवेशकों को खुश करने के लिए मंत्री (पी चिदंबरम) कुछ घोषणा करेंगे। भारत में कर प्रशासन प्रणाली काफी आक्रामक होने जा रही है।Óअधिकारी ने यह भी शिकायत की कि चिदंबरम ने विदेशी कंपनियों के कर दायित्यों पर विशेषज्ञ समिति के कुछ महत्त्वपूर्ण सुझावों को भी स्वीकार नहीं किया।


मिलीजुली ख्वाहिश

संपादकीय /  April 12, 2013


पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान मीडिया राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के भाषणों की खबरों से पटा रहा। प्रिंट मीडिया के नाम के लघुकरण का इस्तेमाल करें तो नमो बनाम रागा (साइबर जगत के पप्पू बनाम फेकू से कम अवमाननाकारी) ने संभवत: आने वाले दिनों की 'बड़ी लड़ाई की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। इसे तवज्जो प्राप्त लेकिन अनुभवहीन युवा बनाम अनुभवी और जांचे परखे प्रशासक या कहें कि नेक इरादों वाले आदर्शवादी बनाम कट्टर सांप्रदायिक के संघर्ष का नाम दिया जा सकता है।


इसे और भी कई संभावित तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है। सीआईआई में राहुल गांधी के एक श्रोता ने उनकी व्याख्या करते हुए कहा कि वह पूरी तरह दिल से काम लेते हैं दिमाग से नहीं। कई लोग मोदी के बारे में इससे एकदम विपरीत टिप्पणी करेंगे। एक जटिल, बहुपक्षीय, बहुराज्यीय मुकाबले का ऐसा खराब सरलीकरण करने में मीडिया की प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन अगर आप गांधी और मोदी की तमाम अयोग्यताओं के साथ-साथ यह जानना चाहते हैं कि राजनीति और सार्वजनिक कदमों की उन्नत दशा क्या हो सकती है तो आपको बिल क्लिंटन द्वारा बुधवार को मुंबई में कुछ आमंत्रित श्रोताओं को दिया गया संबोधन सुनना चाहिए था। राहुल गांधी की तरह क्लिंटन ने अपने सिद्घांतों की बात की। उन्होंने कहा कि कुछ सफल लोगों द्वारा भारी पैमाने पर संपत्ति जमा करने के कारण असमानता बढ़ रही है और बेरोजगारी के स्तर में बहुत इजाफा हुआ है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि विजेता को सबकुछ हासिल होगा की अवधारणा वाला पूंजीवाद कारगर साबित नहीं होता। आखिर में उन्होंने कहा कि स्थायित्व ही असल चुनौती है। लेकिन राहुल गांधी जहां 75 मिनट के अपने भाषण में पहले गियर से बाहर ही नहीं निकल पाए वहीं क्लिंटन ने एक घंटे की आवंटित अवधि में न केवल विस्तृत ब्योरे दिए बल्कि कुछ विशिष्टï बिंदु भी सुझाए जिन पर काम किया जा सकता है। यह कुछ हद तक मोदी की तरह था लेकिन मोदी से उलट क्लिंटन अधिक सौम्य और मानवीय नजर आए। मोदी की ओढ़ी हुई सुशीलता के नीचे एक तरह का अव्यक्त क्रोध झांकता है। इसके अलावा वैचारिक और भाषा के स्तर पर क्लिंटन के भाषण में वह खुरदुरापन भी गायब था जो मोदी तथा उनके कांग्रेसी आलोचकों की आवाज में नजर आता है। क्लिंटन के भाषण की मेजबानी कोटक महिंद्रा बैंक ने की थी (मैं यहां बता देना चाहता हूं कि बिजनेस स्टैंडर्ड में उसकी महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है) और दुर्भाग्यवश उसका टेलीविजन पर प्रसारण नहीं हुआ। इसलिए देश की जनता हमारे नेताओं के साथ उसकी तुलना के अवसर से वंचित रह गई। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने गांधी द्वारा चुने गए निरर्थक बिंदुओं के बजाय अधिक प्रासांगिक उदाहरणों का सहारा लिया। चीन के बारे में उनकी टिप्पणी राहुल की इस विषय पर बचकानी राय से बहुत अलग थी। उन्होंने चतुराईपूर्ण सवालों (मसलन, क्यों डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति भारत के साथ रिपब्लिकंस के मुकाबले कम मित्रवत होते हैं) के जवाब तार्किक ढंग से और खुलेपन के साथ दिए। यह मोदी के उस आचरण से एकदम उलट था जो उन्होंने गुजरात में राज्यपाल द्वारा महिला आरक्षण विधेयक को रोकने की बात करते वक्त किया था। निश्चित तौर पर कुछ समानताएं भी थीं।


उदाहरण के लिए उन्होंने आम आदमी की बात की जो राहुल गांधी की हाशिए पर मौजूद लोगों की चिंता से मेल खाती है, वहीं समस्याओं के व्यावहारिक हल की उनकी बात गुजरात को लेकर मोदी के रवैये से मिलती जुलती है। हालांकि मोदी और राहुल से क्लिंटन के स्तर की अपेक्षा करना उनके साथ अन्याय होगा क्योंकि वह संभवत: पिछली आधी सदी के सबसे कुशल राजनेताओं में से एक हैं और अब जबकि वह पद पर नहीं हैं तो उनके व्यक्तित्व का प्रभाव निखर कर सामने आया है। वह इसका खुलकर प्रयोग करते हैं और एड्स से लड़ाई (भारतीय उत्पादकों की सस्ती दवा के जरिये) तथा गुजरात दंगों जैसी घटनाओं के बाद आपदा राहत के लिए काफी धन जुटाते हैं। मैं यह कहना चाहता था कि वह प्राथमिकताओं को परिभाषित करने की राह में व्यक्तिगत लक्ष्यों को आड़े न आने देने की बात करते वक्त गांधी की इच्छाशक्ति के करीब नजर आए जबकि योजनाओं के ब्योरे और तथ्यों का जिक्र करते हुए वह मोदी के करीब दिखे। इन दोनों के अच्छे गुणों के तालमेल वाले शख्स का विचार बुरा नहीं है लेकिन यह केवल आरजू भर है।

बिजनेस स्टैंडर्ड



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