अब डिमांड पर दंगे?
Author: सुभाष गाताडे
हैदराबाद के पुराने हिस्से में भड़के दंगे की आग अब थम सी गयी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब चीजें सामान्य हो जाएंगी, मगर इस छोटेसे अंतराल में सैदाबाद एवं मदन पेट इलाके के आम नागरिकों पर क्या गुजरी इसकी भरपाई क्या कभी हो पाएगी, यह सवाल विचारणीय हो उठा है। दंगों के बारे में एक बात प्रमुखता से उठी है कि इन्हें हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे के तौर पर नहीं देखा जा सकता बल्कि इसके पीछे निहित स्वार्थी राजनीतिक तत्त्वों का हाथ स्पष्टता के साथ दिखता है, जिन्हें शहर में बढ़ते सांप्रदायिक धु्रवीकरण में सियासी फायदा नजर आ रहा था। पिछले दिनों वहां सक्रिय विभिन्न धार्मिक संगठनों तथा सामाजिक संगठनों के नुमाइंदों ने एक साझा वक्तव्य जारी कर लोगों को इस बात से अवगत कराया। बयान में लोगों को बताया गया कि दो साल पहले जब तेलंगाना की मांग अपने चरम पर थी तब किस तरह मार्च-अप्रैल 2010 में हैदराबाद में दंगे 'भड़क' उठे थे।
वैसे आंध्र प्रदेश की राजधानी में पनपे सांप्रदायिक तनाव के इस मामले के एक पहलू पर अधिक बात नहीं हो सकी है कि मदनापेट मंदिर अपवित्रीकरण की जिस घटना ने तनाव को जन्म दिया था, उसके पीछे हिंदू अतिवादियों के हाथ होने के मजबूत प्रमाण पुलिस के पास हैं। अग्रणी अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 अप्रैल 2012) की रिपोर्ट के मुताबिक 'केसरियां अतिवादियों ने मंदिर को अपवित्र करके दंगे को भड़काने' की कोशिश की। रिपोर्ट के मुताबिक शहर की पुलिस हिंदू समुदाय से संबद्ध उन चार युवकों की तलाश कर रही है जिन्होंने मदनापेट के हनुमान मंदिर की दीवार पर निषिद्ध सामग्री फेंक कर माहौल को बिगाड़ा था। यह चारों युवक कूर्मागुड़ा इलाके के ही रहनेवाले हैं। पुलिस के मुताबिक इनमें से एक अभियुक्त बकरीद के बाद शहर में हुई हिंसक घटनाओं के दरमियान भी गिरफ्तार हुआ था। मालूम हो कि शहर पुलिस की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम जहां सांप्रदायिक फसाद के 26 मामलों की जांच कर रही है, वहीं कुर्मागुडा के हनुमान मंदिर अपवित्रीकरण की घटना की जांच पर उनका विशेष जोर है। जांच में शामिल एक अधिकारी ने में यह भी बताया कि फिलहाल फरार चल रहे चारों लोग महज प्यादे हैं और असली चुनौती उन षडयंत्रकर्ताओं तक पहुंचने की है जिन्होंने इस काम को अंजाम दिलवाया।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ जब भाजपाशासित कर्नाटक के बीजापुर जिले के सिंदगी तहसील पर नए साल के अवसर पर पाकिस्तानी झंडा फहराने एवं सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने के आरोप में चंद हिंदू अतिवादी गिरफ्तार हो चुके हैं। दरअसल 1 जनवरी की सुबह जब लोग घरों से निकले तब यह खबर कानोंकान पहुंच चुकी थी कि तहसील कार्यालय पर पाकिस्तानी झंडा फहराया गया है। इसके पहले कि लोग घटना की बारीकियों पर गौर करते, देखते ही देखते हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता सड़कों पर थे और पूरे इलाके में तनाव की स्थिति बनी थी। दो दिन के अंदर ही पूरी घटना से परदा उठ गया। पुलिस ने असली आतंकियों को हिरासत में लिया और उन्हें मीडिया के सामने पेश किया। मुंह पर काला टोप डाले इन आतंकियों के चेहरे से नकाब हटा तो मीडिया वाले कुछ देर के लिए भौचक से रह गए। इसमें वही लोग शामिल थे, जो विरोध प्रदर्शनों की अगुआई कर रहे थे। श्रीराम सेना से संबद्ध कहे जानेवाले अनिलकुमार सोलनकर, अरूण बाघमोरे की अगुआईवाले इस आतंकी मोड्यूल के चार अन्य सदस्यों को मीडिया के सामने पेश करते हुए पुलिस अधीक्षक डी सी राजप्पा ने उपपुलिस अधीक्षक एस पी मुत्थुराज के नेतृत्व में बनी पुलिस इंस्पेक्टर सिद्धेश्वर, चिदंबर और बाबागौड़ा पाटिल की जांच टीम से भी पत्रकारों को मिलाया।
कर्नाटक की इस घटना ने विगत कुछ वर्षों में सामने आयी कई अन्य घटनाओं के सिलसिलेवार ब्यौरे की याद ताजा की, जिसमें यही पैटर्न अपनाया गया। अभी सवा साल पहले शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के निजी सहायक मिलिंद नार्वेकर शिवसेना की तरफ से विधान परिषद की सदस्य नीलम गोरहे के आपसी संभाषण को पुलिस ने टेप किया था जिसमें पुणे में दंगा कराने की पूरी साजिश का खुलासा हुआ था। गौरतलब है कि गोरहे के मोबाइल नंबर और नार्वेकर मोबाइल के नंबर के बीच 27 दिसम्बर की रात लगभग 12 बजे हुई इस बातचीत से न नार्वेकर ने इंकार किया और न ही नीलम गोरहे ने। ध्यान रहे कि उन दिनों पुणे और आसपास के इलाके में हिंदुत्ववादी संगठनों के आवाहन पर आयोजित बंद के दौरान काफी हिंसा होने का समाचार मिला था। कई स्थानों पर रास्तों को जाम किया गया था, बसों को लूटा गया था, कई अन्य स्थानों पर आगजनी एवं लूटपाट होने की खबरें भी आई थीं। और फिर वह सच्चाई उजागर हुई थी कि 'स्वत:स्फूर्त' दिखनेवाली हिंसा भी कितनी सुनियोजित होती है। चार जनवरी के इंडियन एक्सप्रेस ने इस बात को भी उजागर किया था कि शिवसेना की तरफ से अस्पतालों, वकीलों से पहले से ही संपर्क किया गया था ताकि ऐन वक्त पर वह काम आ सकें।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह कोई पहली दफा नहीं था कि शिवसेना के अग्रणी नेता दंगों को 'आयोजित' करते पकड़े गए थे। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मुंबई और आसपास के इलाकों में आयोजित दंगों पर श्रीकृष्ण आयोग की विस्तृत रिपोर्ट इस बात का विधिवत खुलासा करती है कि किस तरह शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे एक 'सेनापति' की तरह मोर्चा संभाल रहे थे और अपने कार्यकर्ताओं को मुंबई के अलग-अलग इलाकों में हिंसा के लिए प्रेरित कर रहे थे। इस रपट के पहले खंड के पृष्ठ 21 पर ठाकरे का उल्लेख हुआ है। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने कहा था, 8 जनवरी 1993 से शिवसेना और शिवसैनिकों ने मुसलमानों के जान-माल पर संगठित हमले किये।
भारत के सांप्रदायिक दंगों पर विस्तृत अध्ययन करनेवाले अमेरिकी विद्वान पॉल आर ब्रास इस बात का खुलासा करते हैं कि किस तरह आजादी के बाद दंगों को कहीं भी स्वत:स्फूर्त नहीं कहा जा सकता, वे किस हद तक सुनियोजित होते हैं। उनके हिसाब से सांप्रदायिक शक्तियों ने 'संस्थागत दंगा प्रणालियों' को विकसित किया है। हाल की कुछ घटनाएं इसी बात की पुष्टि करती दिखती हैं।
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वे अदालतों के पार हैं
Author: राजीव कुमार यादव
21 अप्रैल, दिन के ढाई बजे, दिल्ली की गहमा-गहमी भरी तीस हजारी अदालत, जहां पत्रकार एसएमए काजमी को पेश करना था पर एकाएक पता चलता है कि आज उनकी तारीख नहीं है पर थोड़ी ही देर में पता चलता है उन्हें दिन के बारह बजे वीडियो लिंक के जरिए पेश कर दिया गया, जिसका कोई [Read the Rest...]
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व्यवसायिकता और सरकारी तंत्र के बीच
Author: अनूप कुमार तिवारी
भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तमाम ऐसे चैनल हैं जो दिन-रात खबरें, मनोरंजन, और सनसनी परोसने और टीआरपी बटोरने की होड़ में लगे रहते हैं। इस सब के दौरान भारतीय जन और जनतंत्र किस तरह हाशिए की चीज बनता जा रहा है इसका ख्याल व्यवसायिकता की दौड़ में तल्लीन इन तमाम निजी चैनलों को नहीं है। [Read the Rest...]
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'जो कहा जाना चाहिए' सो कहा जाना चाहिए
Author: पंकज बिष्ट
खराब कविता बनाम बड़ा सरोकार: एक टिप्पणी जर्मन कथाकार, कवि, मूर्तिकार और लेखक गुंटर ग्रास की कविता 'जो कहा जाना चाहिए' मात्र लेखक की सामाजिक भूमिका के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण टिप्पणी नहीं है बल्कि लेखकों, रचनाकारों और कलाकारों को एक आह्वान भी है कि जब चीजें सर से गुजर जाएं तो चुप नहीं रहना [Read the Rest...]
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घटनाक्रम–मई 2012
Author: समयांतर डैस्क
सम्मान – वर्ष 2011 का डा. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान दुर्गाप्रसाद गुप्त को देने की घोषणा। गुप्त की आलोचना दृष्टि हिंदी में आधुनिकता के एक व्यापक अर्थ की ओर इंगित करती है। केदार पीठ द्वारा दिया जानेवाला यह सम्मान समस्त आलोचनात्मक कृतित्व पर दिया जाता है। – युवा कवयित्री रजनी अनुरागी को पांचवां शीला सिद्धांतकर [Read the Rest...]
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हाशिये पर खुश वामदल
Author: कृष्ण सिंह
भारत की सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की 21वीं कांग्रेस पटना में 31 मार्च को और देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की 20वीं कांग्रेस अप्रैल के पहले पखवाड़े में केरल के कोझिकोड में समाप्त हुई। पश्चिम बंगाल में 35 साल के शासन के बाद वाममोर्चा को मिली [Read the Rest...]
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मीडिया और मोदी
Author: अरविंद दास
हाल ही में दो खबरों ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं। पहली, चर्चित अमेरिकी पत्रिका टाइम के कवर पर गुजरात के विवादास्पद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर और दूसरी दुनियाभर में सौ प्रभावशाली व्यक्तियों के चुनाव के लिए टाइम पत्रिका के ही करवाए ऑन लाइन पोल में नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा मिले नकारात्मक वोट रहे। [Read the Rest...]
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दिल्ली मेल : प्रलेस में बदलाव
Author: दरबारी लाल
प्रलेस में बदलाव अंतत: प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) का अध्यक्ष बदल ही गया है। दिल्ली में 12 अप्रैल से शुरू हुए तीन दिन के 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन में नामवर सिंह को हटाया गया या वह स्वयं हटे यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण है उनका हटना। अगर वह न हटते तो यह बड़ा आश्चर्य अवश्य होता। [Read the Rest...]
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खेल का राजनीतिक खेल
Author: कमलानंद झा
अण्णा आंदोलन का फिल्मी संस्करण: पानसिंह तोमर तिगमांशु धूलिया निर्देशित फिल्म पानसिंह तोमर और अण्णा टीम में कुछ प्रचंड समानताएं हैं। अण्णा टीम संसद और सरकार से लेकर छोटे-छोटे अधिकारी तथा पटवारी सभी को भ्रष्ट समझती है और पानसिंह तोमर फिल्म भी फौज के अतिरिक्त सभी सरकारी विभागों के अधिकारी- कर्मचारियों को चोर घोषित करते [Read the Rest...]
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ममता की क्षमता
Author: स्वामी नित्यानंद
इन दिनों पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता जी की 'ममता' पं. बंगाल पर फुल स्पीड से बरस रही है। स्पीड इतनी कि राजधानी एक्सप्रेस भी शरमा जाए। अब यही देख लो यातायात पुलिस की मनमानी और एल.पी.जी. गैस की बढ़ोतरी पर ऑटो चालकों ने आंदोलन किया तो पुलिस को कष्ट दिए बगैर तृणमूल विधायक और [Read the Rest...]
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मजदूर वर्ग और साम्राज्यवादी युद्धों पर कुछ विचार – 2
Author: यॉन मिर्दल Translation : प्रशांत राही
[10 फरवरी, 2012 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में आयोजित नवीन बाबू स्मृति व्याख्यान में यॉन मिर्दल द्वारा दिये गये भाषण का दूसरा भाग। पहला भाग यहाँ पढ़ें।] मार्क्स ने कभी भविष्य के लिए कोई नुस्खे नहीं सुझाये। इससे ज्यादा , जैसा कि एंगेल्स ने बताया है, अहम् यह है कि मार्क्स के लेखन [Read the Rest...]
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मजदूर वर्ग और साम्राज्यवादी युद्धों पर कुछ विचार – 1
Author: यॉन मिर्दल Translation : प्रशांत राही
[10 फरवरी, 2012 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में आयोजित नवीन बाबू स्मृति व्याख्यान में यॉन मिर्दल द्वारा दिये गये भाषण का पहला भाग] सबसे पहले यह बतलाना जरूरी है कि मैं बोल किसकी ओर से रहा हूं। मैं कम्यूनिस्ट हूं। मगर लगभग 60 साल से एक गैर-पार्टी कम्युनिस्ट रहा हूं। इसके कारणों की [Read the Rest...]
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पूंजीवाद एक प्रेत कथा-भाग तीन
Author: अरुंधति रॉय Translation : भारत भूषण
[आज हम प्रस्तुत कर रहें हैं अरुंधति राय द्वारा लिखित और भारत भूषण द्वारा अनूदित तीन भागों की श्रंखला "पूंजीवाद एक प्रेत कथा" का तीसरा व अंतिम भाग । भाग एक में आपने जाना कि किस प्रकार कॉरर्पोरेट्स सरकार के साथ मिलकर ऐसा खेल खेल रहे हैं कि गरीब और गरीब होते जा रहे हैं [Read the Rest...]
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पूंजीवाद एक प्रेत कथा-भाग दो
Author: अरुंधति रॉय Translation : भारत भूषण
[आज हम प्रस्तुत कर रहें हैं अरुंधति राय द्वारा लिखित और भारत भूषण द्वारा अनूदित तीन भागों की श्रंखला "पूंजीवाद एक प्रेत कथा" का दूसरा भाग। पिछ्ले अंक में आपने जाना कि किस प्रकार कॉरर्पोरेट्स सरकार के साथ मिलकर ऐसा खेल खेल रहे हैं कि गरीब और गरीब होते जा रहे हैं तथा किसान आत्महत्या [Read the Rest...]
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पूंजीवाद एक प्रेत कथा-भाग एक
Author: अरुंधति रॉय Translation : भारत भूषण
[आज हम प्रस्तुत कर रहें हैं अरुंधति राय द्वारा लिखित और भारत भूषण द्वारा अनूदित तीन भागों की श्रंखला "पूंजीवाद एक प्रेत कथा" का पहला लेख। यह लेख आउटलुक से साभार लिया गया है।] यह मकान है या घर? नए भारत का मंदिर है या उसके प्रेतों का डेरा? जब से मुम्बई में अल्टामॉंन्ट रोड पर [Read the Rest...]
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नई दुनिया: एक परंपरा का अंत
Author: रामशरण जोशी
करीब साढ़े छह दशक पुराने नई दुनिया के ताजातरीन अवतार (जागरण स्वामित्व नई दुनिया और आलोक मेहता संपादित नेशनल दुनिया मार्केट में आ चुके हैं। दोनों का अस्तित्व स्वतंत्र है लेकिन उद्गम स्रोत इंदौर स्थित देश का सर्वश्रेष्ठ (कभी था!) हिंदी दैनिक नई दुनिया है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। हिंदी दैनिक पत्रकारिता का[Read the Rest...]
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बथानी टोला जनसंहारः न्याय का पाखंड
Author: सुभाष गाताडे
बथानी टोला जनसंहार के बारे में उच्च अदालत का फैसला आ गया है। पटना हाईकोर्ट ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति नवनीति प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति ए के सिंह की द्विसदस्यीय बेंच ने पिछले दिनों यह फैसला सुनाया। पीडि़तों के वकील आनन्द वात्स्यायन भी फैसले से हतप्रभ हैं। उनके मुताबिक "जनसंहारों के [Read the Rest...]
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संपादकीय : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम पैसा कमाने की स्वतंत्रता
Author: पंकज बिष्ट
इस वर्ष दो ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं जो देश के मीडिया उद्योग को तेजी से एकाधिकारी और संकेंद्रित करने में निर्णायक साबित होने जा रही हैं। यह इस उद्योग के लिए कितना लाभप्रद होगा, कहना मुश्किल है पर यह जरूर कहा जा सकता है कि जहां तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है इसके [Read the Rest...]
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