Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, June 24, 2012

भूख से बिलखता मासूम बचपन

http://www.janjwar.com/society/crime/2785-bhookh-se-bilkhta-masoom-bachpan-in-uttarakhand-paudi


शराब के नशे में चूर इन मासूमों का बाप जब थक-हारकर वापस घर आता है तो बच्चे भूखे पेट सोये हुए मिलते हैं। पास में चंद बिखरे हुए बर्तन और उन पर भिनभिनाती मक्खियां ढेरो बीमारियों को दावत देती हमेशा मौजूद रहती हैं..........

गौरव नौडियाल

उत्तराखंड स्थित पौड़ी जनपद के थलीसैण तहसील के कैन्यूर गांव में 10X12 के एक अंधेरे कमरे में जिदंगी को घुटनों के बल खींचते पांच मासूम, गांव के एक हिस्से में अधफटे कपडों से बाहर झांकते हुए उनके फूले पेट जाहिर तौर पर कुपोषण की झलक दिखाते हैं। इस कमरे में एक खटिया परिवार के मुखिया के लिए है, जिस पर काला पड़ा महीन सा गद्दा बिछा हुआ है। कमरे में पानी भरने के कुछ गंदे प्लास्टिक के डिब्बे, बेतरतीब यहां वहां बिखरे गंदे बर्तन और उन पर भिनभिनाती मक्खियां और उन्हें उन्हें हाथों से उड़ाते बच्चे जिंदगी का वह भयावह सच दिखाते हैं, जो बेबस खड़ी दुनिया के नारकीय जीवन को दिखाने के लिए काफी हैं।

paudi-pic

पेट की भूख कितनी भयावह होती है, वह उन पांच मासूमों की आंखों में साफ दिखाई देता है, जिन्होंने हाल ही में अपने साथ के एक मासूम को खो दिया है या फिर जिन्होंने गोद में बैठी हुई अपनी ग्यारह महीने की बहन को भूख से बिलखकर मरते हुए अपनी नन्हीं हथेलियों से आंचल में कहीं छिपा लिया। दो महीने के भीतर एक भाई और एक बहन को खोने वाले इन मासूमों की मां का साया भी इनके ऊपर से उठ चुका है। इनकी मां ने मुफलिसी से तंग आकर खुदकुशी कर ली।

कैन्यूर निवासी जय सिंह की शराब की लत के चलते आज उसके पांच मासूम भूख से बिलखने को मजबूर हैं। जिन्दगी के लिए जद्दोजहद करते इन बच्चों पर इंसानी जिस्मों ने तो कहर ढाया ही है, कुदरत ने भी इनके साथ कम भद्दा मजाक नहीं किया। बाप के दुलार की जगह गालियां और मुंह से उठते दारू के भभके में बिन मां के इन मासूमों ने कहीं किसी कोने में अपनी बेबसी को समेट लिया है।

शराबी बाप के चलते ये पांच मासूम बच्चे दो माह पूर्व ही अपने दो भाई-बहनों को खो चुके हैं। इनकी मां भी सात महीने पूर्व जलकर मर चुकी है। इन हालातों में बच्चों की जिंदगी कितनी काँटों भरी है सहज ही अन्दाजा लग जाता है। हाल ही में चाइल्ड हैल्पलाइन के माध्यम से प्रकाश में आया उत्तराखण्ड स्थित पौड़ी जनपद के थलीसैण तहसील के कैन्यूर गांव का यह मामला दिल दहला देने वाला है।

रोटी के अभाव में दो माह पूर्व पहले पांच साल के प्रदीप ने दुनिया छोड़ी और बाद में ग्यारह महीने की सोनिया ने बहनों की गोद में अपनी आँखें हमेशा के लिएं बंद कर दी। सरकार और सरकारी दावों की पोल भी तब खुलकर सामने आयी, जब पता चला कि स्कूल जाना तो दूर इन मासूमों को रोगनिरोधक टीका तक नहीं लगवाया गया। शत-प्रतिशत टीकाकरण और स्वस्थ बच्चे की बात करने वाली सरकार कितनी अमानवीयता से अपने कुकृत्य छुपाती है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है।

शराब के नशे में चूर इन मासूमों का बाप जब थक-हारकर वापस घर आता है तो बच्चे भूखे पेट सोये हुए मिलते हैं। पास में चंद बिखरे हुए बर्तन और उन पर भिनभिनाती मक्खियां ढेरो बीमारियों को दावत देती हमेशा मौजूद रहती हैं। इन मासूमों के लिए हालात इतने बदत्तर हैं कि कोई भी इनकी मदद के लिए आगे आने के लिए राजी नहीं है। 

जय सिंह सुबह आठ बजे घर से निकल जाता है और रात को दस ग्यारह बजे तक लौटता है। गांव वालों के साथ गाली-गलौच एवं लड़ाई करने के कारण गांववालो ने उसे गांव से निष्कासित कर दिया है। नशे में धुत्त जय सिंह जब रात को घर लौटता है तो पालीथीन में होटलों का बचा हुआ गंदा खाना ले आता है, जिसे बच्चे सुबह उठकर खा लेते हैं। बच्चे आंगनबाडी में मिलने वाले मुफ्त खाद्यान्न के लिए ही नहीं आते और न ही बच्चों का कभी टीकाकरण ही हुआ है। ऐसा ही चलता रहा तो बाकी बचे बच्चे भी भूख और बीमारियों से मर जाएंगे। 

जय सिंह के व्यवहार के चलते कोई इनकी मदद के लिए कोई हाथ बढ़ाने को राजी नही है। 42 परिवारों का इनका कुनबा भी कितना मुर्दादिल है, बच्चों की हालत देखकर सहज अंदाजा हो जाता है। दूसरी ओर बच्चे जिन्दगी को घुटने के बल बस खींच भर रहे हैं। इनका बाप तो शराब के नशे में सबकुछ भूल जाता है, लेकिन सबसे बड़ी बच्ची लक्ष्मी जो कि खुद भी महज बारह साल की है जिंदगी के मजाक को गंभीरता से समझ गई है। लक्ष्मी अपने अलावा अपने भाई बहनों का दिनभर ख्याल रखती है।

paudi-pic-1
कमरे में पड़े गंदे प्लास्टिक के डिब्बे और बेतरतीब बिखरे बर्तन

बचपन की अठखेलियों और शरारतों के बजाय आंखो में मुर्दा शान्ति लिये ये बच्चे गांव के और बच्चो से कई ज्यादा समझदार और जिंदगी की हकीकत को समझे हुए हैं। खाने और इलाज के अभाव में पहले पांच साल के प्रदीप ने दम तोडा और बाद में एक महीने के अन्दर ही ग्यारह महीने की सोनिया ने दुनिया को अलविदा कह दिया। जय सिंह ने गांव से रिश्ता क्या तोड़ा गांववालों ने भी मुंह फेर लिया, इस दौरान किसी के मन में भी मासूमों का ख्याल नहीं आया। 

बाल संरक्षण समिति के पदाधिकारियों के साथ गांव पंहुचे नवांकुर नाट्य समूह के रंगकर्मी मनोज दुर्बी एवं अनूप गोंसाई के मुताबिक बच्चे नारकीय जीवन जीने को विवशऔर कुपोषण के शिकार हैं। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा कि पहाड में ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं, पहाड़ इतनी तेजी से कैसे बदल रहा है। बहरहाल प्रदेश में न जाने ऐसे कितने शराबी जय सिंह हैं जो कि शराब के भबको में अपने मासूमों को गुम कर रहे हैं कहना मुश्किल है। दूसरी ओर सरकार आंकडो में लगातार सुधार नजर आता है। 

राजधानी दिल्ली और दिल्ली जैसे मेट्रो सिटीज में रहने वाली सफाई पसंद जनता के लिए तो ऐसे बच्चे हमेशा ही गंदगी का केन्द्र ही रहेंगे, मगर बहस के केन्द्र में एसी रूमों में बैठे बाल पसंद सफेद कुर्ताधारी और न्यूज रूम में टाई पहनकर या फिर मंहगे स्कार्फ में लिपटी खबर पढ़ती लडकियों, पिज्जा हट में दिन गुजार रहे युवाओं और बरिस्ता में तीन सौ रूपये की काफी पी जाने वाले इन मामले में घडियाली आंसू बहा दें, तो कहा नहीं जा सकता।

बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष अशोक बौड़ाई कहते हैं कि चाइल्ड हैल्पलाइन के माध्यम से सूचना मिलने के बाद जब वह कैन्यूर गांव पंहुचे तो वहां जाकर उन्होंने बच्चो को नारकीय स्थिति में पाया। जब पदाधिकारियों ने जय सिंह से बच्चों की सही देखभाल के लिए बच्चों को समिति को सौंपने की बात कही तो जय सिंह फौरन तैयार हो गया, लेकिन साथ ही उसने कहा कि दो बड़े बच्चो को वह अपनी सेवा के लिए अपने पास ही रखना चाहता है। उन्होंने आश्वासन दिया कि समिति बच्चो की पूरी जिम्मेदारी के साथ लालन-पालन करेगी।

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...