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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, June 24, 2012

कथाकार अरुण प्रकाश ने बनाया कहानी का नया संसार : विभूति नारायण राय

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Written by NewsDesk Category: [LINK=/index.php/dekhsunpadh]खेल-सिनेमा-संगीत-साहित्य-रंगमंच-कला-लोक[/LINK] Published on 23 June 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=7520ba19cf0f13d4ab7747351d0d5be7e7df64f3][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/dekhsunpadh/1604-2012-06-23-08-25-35?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
: [B]अरुण प्रकाश के निधन पर वैचारिक विमर्श से हुई शोक सभा[/B] : वर्धा। महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में वरिष्‍ठ साहित्‍यकार अरूण प्रकाश के निधन पर आयोजित शोक सभा के दौरान वैचारिक विमर्श कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। विश्‍वविद्यालय के स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय में आयोजित शोक सभा के दौरान कुलपति विभूति नारायण राय की प्रमुख उपस्थिति में 'राइटर-इन-रेजीडेंस' कथाकार संजीव, विजय मोहन सिंह, रामशरण जोशी, प्रतिकुलपति प्रो. ए.अरविंदाक्षन बतौर वक्‍ता मंचस्‍थ थे। वक्‍ताओं ने अपनी बात रखनी शुरू की तो श्रोता अरूण प्रकाश के साहित्यिक अवदानों व व्‍यक्तिगत जीवन के पहलुओं से जुड़ते गए।


कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि कथाकार अरूण प्रकाश ने आज के दौर की हिंदी कहानी को समृद्ध करने में म‍हत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्‍होंने आम लोगों की जिंदगी के सच को उजागर किया। उनसे हुई मुलाकातों का जिक्र करते हुए कहा कि मैं एक साल पहले बीमार अरूण प्रकाश को देखने उनके घर गया था। उन्‍हें विश्‍वविद्यालय की ओर से सहायता की भी पेशकश की थी। उन्‍हें अपने संस्‍मरण लिखने के लिए भी कहा था। अरूण प्रकाश संस्‍मरण लिखवाने के लिए तैयार भी हो गए थे लेकिन बीमारी की वजह से शायद यह संभव नहीं हो सका। श्री राय ने कहा कि 80 के दशक में उन्‍होंने लिखना शुरू किया था। उनकी कहानियों की ताजगी ने सबका ध्‍यान आकर्षित किया था पर जितना उन्‍हें देना चाहिए था, वे नहीं दे सके। उन्‍होंने कहानी का एक नया संसार बनाया।

कथाकार संजीव बोले, अरूण प्रकाश के जाने से वे अकेले पड़ गए हैं। संघर्ष का सहयोद्धा चला गया। उन्‍होंने 'भैया एक्‍सप्रेस' और 'जल प्रांतर' जैसी अविस्‍मरणीय कहानियां लिखीं। उन्‍होंने 'समकालीन साहित्‍य' का अच्‍छा संपादन किया। उनके कैरियर के वर्णपट में हिंदी अधिकारी, पत्रकारिता और फिल्‍म आदि कितने रंग थे। कथाकार विजय मोहन सिंह बोले, अरूण प्रकाश अपनी पीढ़ी के कथाकारों से हटकर थे। संवेदनात्‍मक शैली के कारण उन्‍होंने अपनी अलग पहचान बनाई थी। वे जीवन की अभिव्‍यक्ति के कथाकार थे। प्रतिबद्धता उनका मूल्‍य था। जो जिंदगी वे कहानी के लिए चुनते थे वह उनके भीतर थी। लेखक के साथ ही वे होम्‍योपैथी के अच्‍छे जानकार भी थे। उनकी दवा से अनेक लेखकों को लाभ हुआ।

पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि 'लाखों के बोल सहे' संग्रह में अरूण प्रकाश की यादगार कहानियां हैं। 'गद्य का अध्‍ययन' उनकी महत्‍वपूर्ण आलोचना पुस्‍तक है। अपनी कहानियों के माध्‍यम से उन्‍होंने पूरे देश की वास्‍तविकता उजागर करने की कोशिश की। उन्‍होंने कहा कि अरूण प्रकाश फुटपाथ पर जिंदा रहते हुए सामान्‍य मनुष्‍य की जिंदगी की अद्वितीय कहानी कही। इस दौरान प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन ने कहा कि अरूण प्रकाश की 'भैया एक्‍सप्रेस' और 'विषम राग' कहानी हमेशा याद की जाएगी। बांग्‍लादेश से आए शरणार्थियों पर भी उन्‍होंने एक कहानी लिखी थी जिसमें मनुष्‍य की नियति से दर्दनाक साक्षात्‍कार है। वे रचनाकार के साथ ही शोधकर्ता और आलोचक भी थे। दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि से शोक सभा की समाप्ति हुई। संचालन राकेश मिश्र ने किया। शोक सभा के दौरान बड़ी संख्‍या में साहित्‍य प्रेमियों की मौजूदगी अरूण प्रकाश के साहित्‍य की प्रासंगिकता पर मुहर लगा रही थी।

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