रेल किराया,मंहगाई झांकी है,अंबानी का उधार अभी बाकी है
पलाश विश्वास
रेलकिराया,मंहगाई झांकी है,अंबानी का उधार अभी बाकी है।बेसिक किराये में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि 4.2 फीसदी फ्यूल अजस्टमेंट कॉस्ट है। बढ़े दाम 25 जून से लागू हो जाएंगे।
यह फ्यूल सरचार्ज क्या बला है,इसको भी समझ लीजिये।दस फीसद रेल भाड़ा के अलावा जो फ्यूल चार्ज है रिलायंस मंत्रियों की महिमा अपरंपार से वह भी रिलायंस को समर्पित है।
आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर अंबानी और मोदी सरकार पर हमला बोला है। पार्टी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकाररिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए अगले माह गैस के दाम बढ़ाने जा रही है।
वैसे सरकार ने बजट की तारीखों का ऐलान कर दिया है। 7 जुलाई से संसद का बजट सत्र शुरू होगा। 8 जुलाई को रेल बजट पेश होगा। 9 जुलाई को इकोनॉमिक सर्वे जारी किया जाएगा। 10 जुलाई को नई सरकार वित्त वर्ष 2015 के लिए आम बजट का ऐलान करेगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि बजट की तारीखों पर राष्ट्रपति से मंजूरी ली जाएगी।वैसे कड़े फैसलों के लिए बजट का इंतजार जरुरी नहीं है।यह महज रस्म अदायगी हो गयी है।
रिलायंस का उधार इतना तगड़ा है कि उसे निपटाने के लिए कठिन फैसलों का सिलसिला फिलहाल बंद होने को नहीं है।रेलकिराये में बढ़तरी के खिलाफ शोरशराबे के मध्य दूसरी कड़वी गोली खाने को को भी तैयार हो जाइये।मोदी सरकार ने पहले रेल यात्री और माल भाड़ा बढ़ाया और अब सरकार नैचुरल गैस की कीमतों में इजाफा करने की तैयारी कर रही है।मिंट डारेक्ट के रिसर्च हेड अविनाश गोरक्षकर का मानना है कि मौजूदा स्तर पर रिलायंस में निवेश करके लंबी अवधि में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। गैस के दामों को लेकर फैसले में हो रही देरी से फिलहाल कंपनी पर कुछ दबाव देखा जा सकता है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों का बढ़ना कंपनी के लिए अच्छी खबर है।
विश्लेषकों को कच्चा तेल जल्द ही 120 डॉलर के स्तर पर पहुंचता दिख रहा है, जिसके परिणामस्वरूप नई सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा। जाहिर है कि सरकार अब सब्सिडी खत्म करने का पुण्यकर्म पहले करेगी।खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को भी ठिकाने लगा दिया जायेगा।योजना आयोग भंग हो सकता है। इंडिपेंडेंट इवैल्युएशन ऑफिस ने योजना आयोग पर अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप दी है।
अब ताजा खबर ये आ रही है कि रसोई गैस सिलिंडर की कीमत में भी इजाफा होगा वो भी हर महीने। उम्मीद नहीं, आशंका जताई जा रही है कि मोदी सरकार बजट के बाद हर महीने एलपीजी सिलिंडर के दाम में 10 रुपए का इजाफा कर सकती है। एलपीजी और पेट्रोलियम पर बढ़ते सब्सिडी के बोझ से निजात पाने के लिए सरकार अपनी तेल नीति में बड़ा बदलाव कर सकती है।इराक संकट की वजह से कच्चे तेल की कीमत में आए भारी उछाल की वजह से इस साल तेल सब्सिडी 1.40 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है। अगर सरकार एलपीजी सिलिंडर की कीमत बढ़ाने का निर्णय लेती है तो यह डीजल की कीमत में हर महीने 50 पैसे की बढ़ोतरी वाले मॉडल पर ही आधारित होगी। इस मॉडल को यूपीए-2 के कार्यकाल में जनवरी 2013 में अपनाया गया था।
इराक का संकट जारी रहना है,यह खास बहाना है तो कालाधन की वापसी का झुनझुना भी तेज है।स्विस सरकार को पटाकर सुनते हैं कि सारा कालाधन वापस होगा।वापस हो भी जाये तो वह कहां लगेगा और उसका बंटवारा कैसा होगा,यक्ष प्रश्न हैं।बहरहाल,भारत सरकार ने स्विटजरलैंड पर दबाव बनाया है जिसके बाद अब काले धन पर जांच तेज होने के आसार हैं।
अब गैस की कीमत बढ़ाने की तैयारी शुरू
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले पर फिर से वित्त मंत्री अरुण जेटली और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान से मुलाकात की है। सूत्रों के मुताबिक, गैस कीमत में कितनी वृद्धि करने और संभावित गैस कीमत वृद्धि से महंगाई पर पड़ने वाले असर को लेकर चर्चा हुई है। सरकार गैस की मौजूदा कीमत 4.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू और पिछली सरकार की तरफ से प्रस्तावित 8.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू के बीच कोई कीमत तय करने की कोशिश कर रही है। इसके लिए दो नए फॉर्मूले बनाए गए हैं। सरकार कौन से फॉर्मूले को लागू करने का फैसला करती है, यह बहुत जल्द स्पष्ट हो जाएगा।
टारगेट में पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी
अगर डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 60 के स्तर पर रही तो कच्चे तेल की कीमत में प्रति बैरल एक डॉलर की बढ़ोत्तरी होने पर पेट्रोल का दाम 30 पैसे बढ़ाना पड़ेगा। ऐसे में पेट्रोल के दाम 1.50 रुपए बढ़ने की आशंका है।
अगर कच्चे तेल की कीमतों में इस तरह इजाफा होता रहा तो तेल कंपनियों को पेट्रोल के दाम इससे ज्यादा भी बढ़ाने पड़ सकते हैं। वहीं, कच्चा तेल महंगा होने से डीजल की कीमतों में होने वाली 50 पैसे की मासिक मूल्य वृद्धि लंबे समय तक जारी रह सकती है।
राजनीतिक समीकरण साधने के अलावा इस आर्थिक दुशचक्र के तिलिस्म से बाहर निकलने का रास्ता कोई नहीं है।मसलन रेल किराया एवं मालभाड़ा में वृद्धि के मोदी सरकार के फैसले के विरोध में पश्चिम बंगाल विधानसभा में आज निंदा प्रस्ताव पारित किया गया तथा यह वृद्धि तत्काल वापस लिये जाने की मांग की गई।यह बंगाली जनमत खासकर कोलकाताई उपनगरीय रेलवे के रोजाना सवारियों को धांड़स दिलाने का खेल है।किसी राष्ट्रीय प्रतिरोध आंदोलन की उम्मीद मत रखिये।
बंगाल विधानसभा में सर्वदलीय प्रस्ताव आधार कारपोरेट योजना के खिलाफ पारित हुआ लेकिन बंगाल की राजनीति और सत्ता ने असंवैधानिक आधार योजना खारिज करने की मांग अब तक नहीं की है। आधार योजना को नाम बदलकर जारी रखा जा रहा है।फर्क सिर्फ इतना है कि इनफोसिस का दससाला वर्चस्व टूट गया और हमारी पहचान की मिल्कियत नई सरकार किसी और को सौंपेगी। बंगाल में तो ममता बनर्जी की सरकार और पार्टी ने इस सर्वदलीय प्रस्ताव के बाद युद्धस्तर पर आधार कार्ड बनवाने का सिलसिला जारी रखा है।
आप चतुर सुजान हैं और शेयर बाजार को समझे बूझते हैं तो रिलायंस पर दांव लगा सकते हैं।रिलायंस बैंकिंग स्टेट बैंक आफ इंडिया का बाजा बजाने वाली है और इस सरकारी बैंक के रिलायंस में समाहित हो जाने के आसार हैं।रेलवे में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विनिवेश का फायदा भी रिलायंस इंफ्रा को होने वाला है।मेट्रो रेलवे निर्माण पर इसीकी वर्चस्व है तो बुलेट ट्रेन का सपना भी रिलायंस माध्यमें साकार करेगी भगवा कारपोरेट सरकार। रिलायंस तेल और गैस की तो बल्ले बल्ले,इराक संकट महायज्ञ के एकमात्र यज्ञाधिकारी रिलायंस है।तो औद्योगिक गलियारों में भी रिलायंस का वर्चस्व रहेगा।खेलोंं में भी रिलायंस की धूम है जो अब क्रिकेट से फुटबाल में समाहित हो रही है।ग्लोबल फुटबाल कारोबार में भारतीय मुक्तबाजार को समाहित करने की मुहिम में जुट गये हैं अंबानी।मीडिया और मनोरंजन,संचार और ऊर्जी में भी रिलायंस का केसरिया समय है।
दांव लगाने का सही वक्त है ,जाहिर है।दांव लगाने वाले लगा चुके हैं।हम उन चतुर सुजान लोगों के ही शिकंजे में हैं।केंद्र सरकार इनकम टैक्स की धारा 80 सी की सीमा एक लाख से बढ़ाकर डेढ़ लाख कर सकती है। यानी हर साल आपको करीब सत्रह हजार रुपए की बचत हो सकती है। अभी 80 सी के तहत एक लाख रुपए तक के निवेश पर ही इनकम टैक्स में छूट मिलती है, जिसे 50 हजार रुपए और बढ़ाया जा सकता है।
लेकिन इसके साथ ही प्रोमोटर बिल्डर राज को प्रोत्साहन देने का भी पूरा इंतजाम है क्योंकि कई साल पहले बंद हुई इंफ्रास्ट्रक्चर बांड में निवेश की सीमा 20 हजार से बढ़ाकर 30 हजार रुपए की जा सकती है और इसे 80 सी में शामिल किया जा सकता है। साथ ही हेल्थ इंश्योरेंस की सीमा को भी मौजूदा 15 हजार से बढ़ाकर इसे भी 80 सी में शामिल किया जा सकता है।
सामाजिक क्षेत्र की पहले से चालू योजनाओं मसलन मनरेगा,शहरी विकास योजना को भी इन्फार से जोड़ने का प्लान है।गरीबी उन्मूलन का अद्भुत तरीका है भगवा मंहगाई और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण,वित्तीय घाटा घटोने के करतब की तरह।गौरतलब है कि रेल किराए बढ़ने के बाद अच्छे दिन का इंतजार कर रहे आम लोगों को आज एक और झटका लगा। चीनी उद्योग को संभालने के लिए सरकार ने आज चीनी पर आयात शुल्क 15 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया। इस फैसले के बाद अब घरेलू बाजार में चीनी के दाम बढ़ने की आशंका है।इसके अलावा सरकार ने चीनी उद्योग को 4400 करोड़ का ब्याज रहित कर्ज देने का भी फैसला किया है। साथ ही प्रति टन चीनी पर 3300 रुपए की सब्सिडी दी जाएगी। केंद्र की कोशिश पेट्रोल में 10 % इथेनॉल मिलाने की प्रक्रिया में भी तेजी लाने की भी है।
भारत सरकार पर जनता का कोई कर्ज नहीं है लेकिन सरकार और राजनीति रिलायंस अहसान तले दबी चीटियां हैं।गौरतलब है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज की 40वीं एजीएम में बोलते हुए चेयरमैन मुकेश अंबानी ने कहा कि अर्थव्यवस्था की खराब हालत के बावजूद कंपनी ने अच्छा प्रदर्शन किया। पिछला साल कंपनी के लिए मुश्किल भरा साबित हुआ है। लेकिन देश की ग्रोथ में रिलायंस इंडस्ट्रीज की अहम भूमिका रही है। भारत में रिलायंस इंडस्ट्रीज सबसे ज्यादा टैक्स भुगतान करने वाली कंपनी है।
मुकेश अंबानी ने बताया कि अगले 3 सालों में 1,80,000 करोड़ रुपये निवेश करने की योजना है। इस निवेश का फायदा 2016-2017 से देखने को मिलेगा। वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2016 में पेटकेम, रिटेल और टेलीकॉम में निवेश पर फोकस करेंगे। अगले 3 साल रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए बदलाव का समय होगा। पिछले साल रिलायंस इंडस्ट्रीज का एक्सपोर्ट अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर रहा। आगे उत्तरी अमेरिका और खाड़ी देशों में विस्तार की योजना है।
इसी सरकार,सत्ता, राजनीति और जनांदोलन के वाहक धारक हैं तरह तरह के रंग बिरंगे बजरंगी।रंगबिरंगे तो होते ही हैं सारे के सारे बजरंगी।लेकिन मेले में बिछुड़े भाइयों की तरह उनकी गति मति प्रकृति एक ही होती है।
आस्थाएं अलग अलग हैं,उपासना पद्धतियां भी अलग अलग।भाषाएं अलग अलग, अस्मिताएं अलग अलग।जाति और नस्ल अलग अलग अलग,रंग रुप नाक नक्श अलग अलग।लेकिन जैसे भी हो बजरंगी,मतिमंद और दृष्टि अंध होते हैं।
इक्कीसवीं सदी में जीते हैं।भोग में लबालब रसगुल्ले हैं,लेकिन स्थाईबाव सामंती है।रगं में गुलामी अंधभक्ति बनकर बहती है।
मालिक जो करें,धन्यधन्य।उनका धर्म है कर्म कांड,अंध अनुसरण,नाम गान जाप योगाभ्यास।
यथार्थ उन्हें नास्तिक प्रलाप लगता है और संवाद से उन्हें एलर्जी है क्योंके वे तो हुक्म के गुलाम हैं।
सोचने विचारने की जरुरत ही नहीं।रंगरुट की तरह कदमताल और रिमाट के बटन दाबते ही मालिक पक्ष के शत्रु पर चाहे वे परिजन हो स्वजन हो बंधु बांधव,त्तकाल हमला करने में वे दक्ष विशेषज्ञ हैं।
उनके हदय चीरकर देखें तो वहां उनके देव देवी का स्थाई आसन है जो कयामत में भी डोलता नहीं है।
यह बजरंगी जनता विकास के नारे पर बांसों बांस उछलती है,अपने को हुए बांसों का होश नहीं होता इसे और विज्ञान के विरुद्ध है यह अत्याधुनिक बजरंगी जनता।
जो हो रहा है,आंखों के सामने हो रहा है।समझने की कोशिश भी नहीं हो रही है कि असल में हो क्या रहा है।मंत्र जाप रहे हैं राम का कि रामराज आयो रे।
अश्वमेध के घोड़ों की टापों से जख्मी लहूलुहान हैं,चादर सिकुड़ते सिकुड़ते टाट का पर्दा हजार टुकड़ा,जल जंगल जमान आजीविका नागरिकता से हाथ धो रहे हैं रोज,सलवा जुड़ुम में मारे जा रहे हैं,फिर भी चीख चीखकर जमीन आसमान एक कर रहे हैं,फेसबुक ट्विटर पर धमाल मचाये हुए हैं कि राम राज आयो रे।
इराक में क्या से क्या हो रहा है,कुछ भी अता पता नहीं है।इराक का संकट बता रहे हैं आर्थिक जनसंहार को न्यायोचित ठहराने को।
रेलकिराया बढ़ाने से एक दिन पहले ही रेलमंत्री बता रहे थे कि रेलकिराया पर फैसला प्रधानमंत्री हफ्ते भर में कर देंगे लेकिन इराक में चालीस भारतीयों के अपहरण के बाद उन्हें छुड़ाने के राजनयिक प्रयत्नों के बजाय रातोंरात रेलकिराया में इजाफा।
सबके लिए समान।एसी नान एसी बराबर भाव से।
आम बीपीएल जनता के लिए रेलवे सफर का कोई मामूली सा बंदोबस्त नहीं हो सका।क्योंकि यह तो इराक संकट की वजह से है।
अब नेट पर हिंदी राजकाज प्रबल है और कहा जा रहा है कि कर्ज में डूबे रेलवे को उबारने का परम कर्तव्य साधा गया है।परम कर्तव्य यह भी है कि उद्योग मंत्रालय ने रेलवे में 100 फीसदी एफडीआई को हरी झंडी दे दी है। संबंधित मंत्रालयों को डीआईपीपी से कैबिनेट ड्राफ्ट नोट भेजा गया है। रेलवे में एफडीआई को ज्यादा उदार बनाया जाएगा। मंत्रालयों की राय आने के बाद अंतिम प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा जाएगा।
साथ ही, बुलेट ट्रेन के सपने को सच करने की कोशिशें भी फास्ट ट्रैक पर है। हाईस्पीड बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में एफडीआई का प्रस्ताव है। इसके अलावा सबअर्बन रेलवे में एफडीआई का प्रस्ताव है। मेन रेल ट्रैक से प्रोडक्शन प्लांट तक ट्रैक बिछाने में एफडीआई का प्रस्ताव है। उद्योग मंत्रालय के मुताबिक रेलवे में एफडीआई आने से जीडीपी ग्रोथ 1-2 फीसदी बढ़ेगी। टीटागढ़ वैगन्स के एमडी उमेश चौधरी का कहना है कि रेलवे में 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी मिल जाती है तो ये बेहद पॉजिटिव कदम होगा। मोदी सरकार के कदम रेलवे को सही दिशा में लेकर जा रहे हैं, इससे लग रहा है जैसे पूरे क्षेत्र में एक नई जान फूंक दी गई हो।
फिर बजरंगी बोले हैं, आप तय कीजै कि दुनिया कि नंबर एक रेलवे चाहिए कि टट्टी लबालब मुफ्त की सवारी।जबकि रेल भाड़े में बढ़ोतरी की खबर को शेयर बाजार के नजरिये से देखें तो सबसे ज्यादा असर ऐसी कंपनियों पर पड़ेगा जिनका कारोबार प्रत्यक्ष या अपत्यक्ष रुप से रेलवे पर निर्भर होता है। मसलन, सीमेंट, कोरियर और रेलवे इंफ्रा से जुड़ी कंपनियों पर इसका असर पड़ेगा।रिलायंस इंफ्रा, बीईएमएल, टीटागण वैगन और कालिंदी रेल जैसी कंपनियों पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा।इसके पीछे का कारण यह है कि रेलवे की आय बढ़ने के बाद सरकार इंफ्रा से जुड़े प्रोजेक्ट पर ज्यादा खर्च कर सकेगी।
लेकिन प्रधानमंत्री और रेलमंत्री के ट्वीट हैं हिंदी में कि सारा किया कराया पूर्ववर्ती सरकार का है।जाते जाते कांग्रेस सरकार किराया बढ़ाकर चली गयी। हो भी सकता है।तमाम फैसले जाते जाते पूर्ववर्ती सरकार कर गयी।
जनादेश खोने वाली जनविरोधी सरकार के जनविरोधी आदेशों को बहाल रखने की कौन सी संवैधानिक मजबूरी है, समझ में नहीं आती।
सरकार तो अपने फैसले भी वापस लेती रहती है तो मां बेटे की सरकार के फैसले को जारी रखने की कौन सी मजबूरी है कल्कि अवतार की,समझ से परे है।
सेनाध्यक्ष पद परनियुक्ति का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है तो रक्षा क्षेत्र में शत प्रतिशत प्रत्य़क्ष विदेशी निवेश भी शत प्रतिशत राष्ट्रीय सुरक्षा का माला होगा।
अगर कांग्रेसी फैसले को बहाल करने की बात रही है रेल किराये में वृद्धि तो शपथ लेने के बाद नीतिगत कैसी विकलांगकता रही होगी और राजनीतिक कौन सा बाध्यताएं रही होंगी कि इराक में तेलकुंओं में आग लगने तक फैसला वह लागू करने को इंतजार करना पड़ा!
भद्र जनों,भद्रमाताओं और भद्रबहनों,यह इराक भारी बला है।हमने इस पहेली को पहले खाड़ी युद्ध से लगातार बूझने की कोशिश की है और तभी हमने कारपोरेट राज की कुंडली बना दी थी।
मध्यपूर्व के तलयुद्ध से झुलसाने के लिए भारतीय जनता को मुर्ग मसल्लम बनाने की कवायद में फायदा दरअसल किनका हुआ,इसपर गौर करने वाली बात है।
अमेरिका को भारत के आर पार अफगानिस्तान पर प्रक्षेपास्त्र बरसाने देने की इजाजत हो या मध्यपूर्व में बमवर्षा के लिए भारतीयठिकानों से अमेरिकी युद्धक विमानों को तेल भरने देने की इजाजत, या फिर भारत अमेरिकी परमाणु संधि या अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में पारमाणविक सैन्य गठजोड़, पहले खाड़ी युद्ध से लेकर अबतक लगातार भारतीय गणतंत्र के तेल में झुलसे मुक्त बाजार के रोस्टेड डिश बन जाने की इस कथा में करोड़पतियों अरबपतियों की वह कौन सी जमात है,जिसके पास बिलियन डालर के मकान हैं और राष्ट्रीय संसाधनों की लूटखसोट के जरिये जनिका कारोबार बिलियन बिलियन है?
उन राजनेताओं,अफसरों और मलाईदार लोगों की तो पहचान कर लें जिनके मुंह पर राम है तो बगल में छुरी!
भुगतान संतुलन की हरिकथा अनंत पहले खाड़ी युद्ध से शुरु है जो अद्यतन इराक संकट तक जारी है।भारत पर लंपट पूंजी के कारपोरेट राज का सिलसिला अब केसरिया हुआ है।फर्क बस इतना है।पहले भी हुआ है।अब फिर फिर हो रहा है।
आर्थिक नीतियों की निरंतरता संसद के भूगोल के बदलते रहने,सरकारे बदलते रहने और जनादेश वंचित अल्पमत सरकारों के सत्ता में लगातार बने रहते हुए जारी रही है।
रेलवे किराये के बारे में जैसा कहा जा रहा है,वही चरम सत्य है कि जनसंहारी नीतियों का सिलसिला जारी रहना है।
इंदिरा जमाने से जो रिलायंस साम्राज्य की नींव पड़ी,वह अब भारत का व्हाइट हाउस है।
देश ने बहुत बाद में चुनावी कवायद की मारकाट के मध्य नरेंद्र मोदी को चुना है लेकिन अंबानी बंधुओं ने पिछले लोकसभा चुनावों से काफी पहले नरेंद्र मोदी को भारत का चक्रवर्ती सम्राट चुना है।
रेल किराये कि फसल दरअसल रेलवे के विकास में नहीं,रिलायंस इंफ्रा के विकास में खपनी है।शेयरों के भाव यही बताते हैं जबकि रेल बजट में हाट केक बन गया रिलायंस इंफ्रा।
नगर महानगर के मेट्रो कायाकल्प के एकाधिकारवादी विश्वकर्मा फिर वही रिलायंस इंफ्रा।
शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जो होना है, वह रेल यात्रियों की सहूलियत के लिए नहीं,रेलवे के इंफ्रा के विकास के लिए,तो वह भी रिलायंस इंफ्रा है।
भारत में बनने वाली सरकारों का जनादेश बनाने वाली आम जनता का कोई कर्ज नहीं है।देश में समता और सामाजिक न्याय का नजारा वही रेल किराया और विनिवेश का रोडमैप है।
एसी नानएसी सबै बराबर और यही कानून का राज है,यही समान नागरिक संहिता है।
कर प्रणाली की कुंडली रच दी गयी है।
भिखारी से लेकर देहव्यवसाय में जुतने वाली उत्पीड़न और नरकयंत्रणा की शिकार स्त्री से लेकर,मजदूर और चाय वाला जिस दर से विकास की कीमत चुकायेंगे,उसी दर से टैक्स भरेंगे अंबानी टाटा बिड़ला मित्तल जिंदल हिंदूजा वगैरह वगैरह।
रिलायंस का उधार अभी बाकी है।तेल गैस का न्यारा वारा अभी बाकी है।
बच्चों से कहना सीखें,भूख प्यास के लिए बेमतलब चिल्लाये नहीं,रिलायंस का बजरंगी आ जायेगा और खा जायेगा!
भारत को भारतीय कंपनी रिलायंस आठ डालर के हिसाब से गैस बेचती है तो बांग्लादेश में यही भारतीय कंपनी दो डालर के हिसाब से।
बहुसंस्कृति बहुभाषा वाले भारतवर्ष में हिंदी और हिंदुत्व को राज धर्म और राजभाषा बनाने वाले देश भक्त लोगों से पूछा जाना चाहिए कि क्या रिलायंस भारतीय मुद्रा में भुगतान लेने के लिए बाध्य नहीं है?
जब भारतीय कंपनियों को भरत सरकार भारतीय मुद्रा में भुगतान भी नहीं कर सकती तो पूरे भारत की अनेक भाषाओं और उससे ज्यादा बोलियों वाले लोगों पर राजभाषा हिन्दी थोंपने का तर्क क्या है?
धर्म ,भाषा और अस्मिता भावनाओं का खेल है तो कारोबार भी।
अब अर्थ व्यवस्था और मुक्तबाजार को भी बजरिये धर्म,भाषा,अस्मिता और पहचान भावनाओं का खेल बनाया जा रहा है।
मध्यपूर्व में तेलकुओं पर कब्जे के लिए जैसे जिहादी संगठनों को कारपोरेट दुनिया ने सत्ता दिलाने के लिए युद्ध गृहयुद्ध रचे,भारतीय उपमहाद्वीप में जिहादी धर्मांध तत्वों को सत्ता सौंपने के लिए अमेरिकी इजराइली निर्देशन में उसी गृहयुद्ध और युद्ध का भयानक कुरुक्षेत्र है सीमाओं के आर पार।
गीता उपदेश धारावाहिक है और कर्मफल सिद्धांत के जरिये समता और सामाजिक न्याय के नये प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं रोज।
बापुओं का बलात्कारी प्रवचन और केदार आपदाें भी धारावाहिक है।
शंबुक वध भी धारावाहिक।
एकलव्य की गुरुदक्षिमा धारावाहिक।
तो सीता का वनवास,पाताल प्रवेश और द्रोपदी का चीरहरण भी धारावाहिक।
रोज रचे जा रहे हैं उपनिषद।
रोज रचे जा रहे हैं पुराण।
रोज रची जा रही है स्मृतियां।
रोज गढ़े जा रहे है मिथक।
वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।
रोज असुर वध हो रहा है।
रोज मारे जा रहे हैं असुर,राक्षस,दानव, दैत्यऔर तरह तरह के अनार्य।
नस्ली नरसंहार भी अबाध है अबाध पूंजी की तरह।
पौराणिक सेक्सकाथाें पवित्र भाव से गोज दोहरायी जा रही है फ्री सेनसेक्स के उतार चढ़ाव की तरह।
तेलकुंओं मे आग लगते ही बांग्लादेश में दो डालर भाव से गैस हासिल करने वाली सरकार ने रातोंरात गैस सिलिंडर की कामत बारह सौ,बारह नहीं बरह सौ रुपये बढ़ा दिये।
नमोमय भारत में कारपोरेट जलवा का नजारा यह है कि दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में जल्द ही बिजली की दरों में इजाफा होने वाला है। यह इजाफा 10 फीसदी से 35 फीसदी के बीच हो सकता है और नई दरें जुलाई व अगस्त से लागू होंगी।
देशभर में बढ़े रेल किराए का असर सब्जियों पर भी दिखने लगा है। जबलपुर में चौबीस घंटे के भीतर ही सब्जियों के भाव आसमान छूने लगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक, कोयले की कमी और प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी होने से लगातार पावर प्लांट की लागत बढ़ रही है, जिससे पिछले दो वित्त वर्षों से पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों (डिस्कॉम) को घाटा हो रहा है।
इसके चलते पिछले एक साल में देश के सभी बड़े राज्य बिजली की दरें 4 से 24 फीसदी तक महंगी कर चुके हैं। विभिन्न राज्यों में बिजली नियामक आयोगों ने बिजली वितरण कंपनियों की बिजली दर बढ़ाने के प्रस्तावों को हरी झंडी दे दी है।
आइए देखते हैं किन राज्यों में कितना बढ़ेगा बिजली का दाम:
राज्य | दरों में इजाफा (फीसदी में) |
उत्तर प्रदेश | 35 |
पंजाब | 10 |
राजस्थान | 27 |
छत्तीसगढ़ | 15 |
दिल्ली | 10 |
कनार्टक | 25 |
अब तेरा क्या होगा रे कालिया,तेरी सरकार तो वही गैस आठ डालर के भाव से खरीदती है और पूर्ववर्ती सरकार ने गैस दरों मे पहली अप्रैल से ही दोगुणी वृद्धि का फतवा दे दिया था!
जैसे रेल किराये में वृद्धि पत्थर की लकीर है तो लकीर के फकीर कालिया की तकदीर बदलने के लिए ऐसे इराक संकट को दुहेंगे नहीं तो रिलायंस के कर्ज का क्या होगा रे भाआई?
एक लाख करोड़ जो जनादेश बनाने में खर्चहुए कारपोरेट कंपनियों के,उस खर्च का क्या कालिया का बाप भरेगा?
रेल मंत्रालय ने माल भाड़े में 6.50 फीसदी का इजाफा कर दिया है। इससे जहां एक ओर देसी कोयले के दाम बढ़ने तय हो गए हैं वहीं विदेशों से आने वाला कोयला पावर प्लांट को सस्ता पड़ने वाला है। देश में करीब 90 फीसदी कोयला, खनन से पावर प्लांट या अन्य स्थानों पर लेकर जाने के लिए रेलवे का ही इस्तेमाल होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, माले भाड़े में बढ़ोतरी करने से आयातित कोयला, देसी कोयले से सस्ता पड़ेगा।
कितना महंगा होगा देसी कोयला
विशेषज्ञों के मुताबिक, माल भाड़ा 6.50 फीसदी बढ़ने से कोयले के प्रति किमी, प्रति टन किराया 1.34 रुपए हो जाएगा जबकि पहले यह 1.25 रुपए था। आसान शब्दों में कहा जाए तो केवल एक टन कोयला उड़ीसा से दिल्ली लेकर आने पर करीब 1,154 रुपए ज्यादा खर्च करने होंगे। वहीं, उन्होंने यह भी कहा कि देसी कोयले से ज्यादा सस्ता विदेशों से आयात किया कोयला सस्ता होगा।
इसी के मध्य रेल किराया बढ़ाने के बाद सरकार के विरोध में प्रदर्शन थम नहीं रहे। आज भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने अलग-अलग जगहों पर बढ़े किराए के विरोध में प्रदर्शन किया। मुंबई में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बिना टिकट यात्रा कर विरोध जताया। तो समाजवादी पार्टी ने कानपुर में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया।
दूसरी तरफ एनडीए सरकार की साथी शिवसेना भी बढ़े रेल किराए का विरोध कर रही है। सामना में लिखे लेख में शिवसेना ने इसे आम आदमी की मुसीबत बढ़ाने वाला फैसला करार दिया। आपको बता दें कि 8 जुलाई को रेल बजट आने वाला है। लेकिन ये बढ़ोतरी रेल बजट से पहले ही की गई है।
कहीं सड़कों पर सरकार विरोधी नारे, कहीं बिना टिकट यात्रा कर दर्ज कराया विरोध। ये कोहराम मचा है रेल किराए में बढ़ोतरी के खिलाफ। लखनऊ और मुंबई में कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे तो कानपुर में समाजवादी पार्टी ने भी मोदी सरकार के विरोधी में नारे लगाए।
मोदी सरकार ने रेलवे की स्थिति सुधारने की दिशा में पहल करते हुए यात्री किरायों और मालभाड़े में बढ़ोतरी कर दी है। यात्री किरायों में 14.2 फीसदी और मालभाड़े में 6.2 फीसदी का इजाफा कर दिया गया है। जनता भले ही इन कदमों का विरोध कर रही लेकिन अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि सरकार के ये कदम आगे चलकर रेलवे सेक्टर की स्थिति में सुधार होगा। सरकार आगे चलकर अपने बजट में भी कई कड़े कदम उठा सकती है।
क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट डी के जोशी का कहना है कि रेलवे में निवेश की काफी जरूरत है और पिछले कई सालों से रेलवे में किराए बढ़ाए नहीं गए थे। इसके चलवे रेलवे सेक्टर पर काफी दबाव बढ़ गया था जिसे कम करना जरूरी था। सरकार रेलवे की स्थिति सुधरना चाहती है तो किराए बढ़ाने के साथ-साथ रेलवे में निवेश के मौके भी बढ़ाने चाहिए।
मालभाड़े में बढ़त के चलते चीजों की ढुलाई महंगी होगी और छोटी अवधि में महंगाई बढ़ने की पूरी संभावना है। रेल मालभाड़ा बढ़ने से रिटेल महंगाई दर और डब्ल्यूपीआई महंगाई में बढोतरी होगी। मौजूदा हालात को देखते हुए रेल किरायों और मालभाड़े में बढ़ोतरी जरूरी थी। भाड़े में बढ़त से छोटी अवधि में दबाव देखा जाएगा लेकिन लंबी अवधि में अच्छा असर देखा जाएगा। माल भाड़ा बढ़ने से कुछ चीजों के दाम बढ़ने की पूरी उम्मीद है।
मोदी सरकार के बजट में भी कुछ और कड़े कदमों की उम्मीद है। इस सरकार के कदमों से एफआईआई का रुख बाजार के लिए सकारात्मक होगा। अगर सरकार रिफॉर्म के कदम इसी तरह जारी रखती है तो आरबीआई के दरें बढ़ाने की उम्मीद कम है।
डी के जोशी के मुताबिक अब सरकार को और भी गैर जरूरी सब्सिडी को कम करना चाहिए। सरकार को डीजल पर बाकी बची सब्सिडी और केरोसीन, एलपीजी पर भी सब्सिडी को धीरे धीरे कम करना चाहिए। सरकार इस बजट में उत्पादनकारी खर्चों में बढ़ोतरी कर पाती है या नहीं ये देखना अहम होगा। अगर सरकार की ओर से ऐसे कड़े कदम जारी रहे तो 2015-16 में देश की जीडीपी 6 फीसदी के पार जा सकती है।
স্বাগতম সবাই কে ।রামরাজ্য শুধু হয়ে গেছে।
मुबारक हो, आच्छे दिन आ गये।
আজ থেকে রেল ভাড়া বাড়ছে।
যাত্রী ভাড়াভ14.5% এবং মালা ভাভাড় 6.5% বাড়ছে।বর্ধিত ভাড়া আজ থেকেই আদায় করা হবে।
आज से रेल किराये में वृद्धि होगी।यात्री किराकिर 14.5% और माल भाड़े मेभा 6.5% बुद्धि कि गयी।वर्धित भाड़ा आज से ही वसूली जायेगी।
आबकी वार U-Turn सरकार. अबकी वार मोदी सरकार ।
এ বার জ্বালানিতে ভর্তুকি ছাঁটতে চায় কেন্দ্র
নিজস্ব সংবাদদাতা
নয়াদিল্লি, ২৩ জুন, ২০১৪, ০৩:০৩:৫১
এখানেই শেষ নয়। আর্থিক সংস্কারের লক্ষ্যে আগামী দিনে আরও বেশ কিছু কঠোর সিদ্ধান্ত নেওয়া হবে। তার কিছু প্রতিফলন থাকবে বাজেটে। কিছু আরও আলোচনার পর কার্যকর হবে। আজ জেটলি ও পেট্রোলিয়াম মন্ত্রকের স্বাধীন দায়িত্বপ্রাপ্ত প্রতিমন্ত্রী ধর্মেন্দ্র প্রধানের সঙ্গে এ নিয়ে বৈঠক করেছেন মোদী।
অবশ্য প্রথম বাজেটেই এক ধাক্কায় আর্থিক ঘাটতি অনেকটা কমাতে পারবে না সরকার। তবে ধাপে ধাপে লক্ষ্য পূরণের দিশা-নির্দেশ বাজেটে থাকতে পারে। খরচে রাশ টানার জন্য সব থেকে বড় সিদ্ধান্ত হতে পারে বিপুল পরিমাণ ভর্তুকির বহর কমানো। ইরাকের সাম্প্রতিক সঙ্কটের পর জ্বালানির দাম আরও বাড়ার আশঙ্কা রয়েছে। এমতাবস্থায় রান্নার গ্যাস, কেরোসিনে ধাপে ধাপে ভর্তুকি কমানো যায় কি না, তা নিয়ে আলোচনা শুরু করেছে মোদী সরকার। রান্নার গ্যাসের উপর নির্ভরশীলতা কমিয়ে পাইপ লাইনের মাধ্যমে গ্যাস গ্রিড বিভিন্ন শহরে পৌঁছে দেওয়ার রণনীতিও তৈরি করছে পেট্রোলিয়াম মন্ত্রক।
পাশাপাশি খাদ্য নিরাপত্তা, সার ও একশো দিনের কাজের জন্যও বিপুল ভর্তুকি বহন করতে হচ্ছে সরকারকে। মনমোহন সিংহ প্রধানমন্ত্রী থাকার সময় ফি-বছর বাজেটের আগে আর্থিক সমীক্ষা প্রকাশের সময় এই ভর্তুকি লাঘবের ইচ্ছা প্রকাশ করে এসেছেন। কিন্তু জোট রাজনীতির বাধ্যবাধকতায় বাজেটে তা কার্যকর করতে পারেননি। মোদী সরকার অবশ্য খাদ্য নিরাপত্তা প্রকল্প একেবারে বিলোপ করতে চাইছে না। কিন্তু বিপুল ভর্তুকির কথা মাথায় রেখে আপাতত এর রূপায়ণ আরও কিছু দিন পিছিয়ে দেওয়ার প্রস্তাব দিয়েছে অর্থ মন্ত্রক। কেন্দ্র সুনিশ্চিত করতে চাইছে, যাঁদের প্রয়োজন শুধু তাঁদের কাছেই যেন এর সুবিধা পৌঁছয়। ছত্তীসগঢ়ে রমন সিংহ গণবণ্টন ব্যবস্থা ঢেলে সেজে এই প্রকল্পের সফল রূপায়ণ করতে পেরেছেন। কেন্দ্রও সেই পথে হাঁটতে চাইছে। খাদ্য ও গণবণ্টন ব্যবস্থার প্রতিমন্ত্রী দাদারাও ডানভে বলছেন, "খাদ্য নিরাপত্তা বিলের যে সব খামতি রয়েছে, আমরা সেগুলি পরিমার্জন করব।" সেই সঙ্গে কৃষি মন্ত্রকের এক আমলার মতে, খাদ্য নিরাপত্তা সুনিশ্চিত করতে হলে সারের ব্যবহারও বাড়বে। তার জন্য সারের দামের বিষয়টিও নতুন করে পর্যালোচনা করা দরকার হবে।
আর্থিক বৃদ্ধির চাকা গড়াতে পরিকাঠামো ক্ষেত্রে বিপুল বিনিয়োগের সম্ভাবনা তৈরি করতে চাইছেন মোদী। কিন্তু সে পথে বাধা হয়ে দাঁড়াচ্ছে মনমোহন জমানার কয়েকটি আইন। তার অন্যতম হল সম্প্রতি পাশ হওয়া জমি অধিগ্রহণ আইন। এই আইনের ফলে অনেক রাজ্যই নতুন শিল্প ও পরিকাঠামো বিস্তারে সমস্যার সম্মুখীন হচ্ছে। এই দলে কংগ্রেস শাসিত কিছু রাজ্যও রয়েছে। গ্রামীণ উন্নয়ন মন্ত্রী নিতিন গডকড়ী আইনটি আরও সরল করার চেষ্টা করছেন। এই আইন পাশ করার সময়েই শিল্পমহলের তরফে কিছু আপত্তির কথা জানানো হয়েছিল। তাদের বক্তব্য ছিল, যে হারে ক্ষতিপূরণ দেওয়ার কথা বলা হয়েছে, তাতে প্রকল্পের খরচ বেড়ে অনেক বেড়ে যাবে। জমি পাওয়াও দুষ্কর হয়ে উঠবে। কিন্তু মোদী সরকার ক্ষতিপূরণের হার কমানোর কথা বলে এখনই জমি-হারাদের রোষের স্বীকার হতে চায় না। বরং জমির মালিক ও শিল্পমহল, উভয়ের উদ্বেগকে মাথায় রেখে মাঝামাঝি কোনও পথ বের করতে চাইছে সরকার।
রাজস্থানে বসুন্ধরা রাজে সিন্ধিয়া প্রায় ৩৫ হাজার কোটি টাকার বিনিয়োগ টানতে তিনটি আইন সংশোধন করার সিদ্ধান্ত নিয়েছেন। ইন্ডাস্ট্রিয়াল ডিসপিউট অ্যাক্ট, ফ্যাক্টরিজ অ্যাক্ট ও কনট্রাক্ট লেবার অ্যাক্ট। এর মধ্যে প্রথম আইনটি সংশোধন হলে তিনশো জনকে ছাঁটাই করতে হলে সরকারের অনুমতি লাগবে না। আগে যেটি একশো জনের ক্ষেত্রে ছিল। এই আইনটি কেন্দ্রেও চালু করা যায় কি না, কেন্দ্রীয় শ্রমমন্ত্রী নরেন্দ্র সিংহ তোমরকে তা পর্যালোচনা করার নির্দেশ দিয়েছেন মোদী।
মোদী মন্ত্রিসভার এক সদস্য বলছেন, "এমন একটা সময় বিজেপি ক্ষমতায় এসেছে, যখন অর্থনীতির স্বার্থেই কড়া ব্যবস্থা নিতে হবে। সরকারের প্রতি মানুষ আস্থা রাখলে দেখবেন, দুই-এক বছর পরে সত্যিই 'আচ্ছে দিন' এসেছে।"
Jun 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Ambanis En Route to Brazil for WC
RAVI TEJA SHARMA |
NEW DELHI |
Several Indian Soccer League franchise owners are sending teams to Brazil to learn the business of football
When Mukesh Ambani, India's richest man, his wife Nita and their three children land in Brazil next month to watch the World Cup semi-finals and the final, they would keep an eye on the infrastructure, stadia, paraphernalia and razzle dazzle that football administrators from around the world have built around the beautiful game.
For the Ambanis are launching an IPLstyle football league in India, with city teams owned by top businessmen and celebrities, later this year, and are taking a personal interest to turn around the game in the country that ranks a poor 154 on the FIFA ranking.
Ambani was instrumental in getting India the mandate to organise the Under-17 World Cup in 2017. He is pumping in big money along with Rupert Murdoch's STAR in the new football league.
For the eight teams in the Ambani-promoted Indian Super League (ISL), Brazil 2014 is a fertile ground for reconnaissance. Some of them have sent small groups to scout for players, coaches, managers, trainers, physios and other support staff.
"It is the place to be right now, to learn," says Venugopal Dhoot, chairman of Videocon, who has teamed up with Dattaraj Salgaocar and Shrinivas Dempo for the Goa team in ISL. Videocon has a flourishing oil and gas business in Brazil.
Dhoot has sent a three-member team to Brazil to get acquainted about the business of football, talk to sports agencies and then churn out a feasibility report. "They will check on which foreign players are available within the team's budget and where our Indian players can be sent for training," said Dhoot, who will watch the World Cup final live from the stadium and has sought a meeting with the Brazilian football authorities to explore a collaboration of some sort.
Setting up a football team is like starting a full-fledged company, says Larsing Ming, the promoter of Shillong Lajong football club, which has partnered firm-star John Abraham for the Guwahati team. A professional football team requires several ingredients -coach, manager, physiotherapists, doctors, sports scientists, nutritionists, logistics managers, marketing and sales people, administrators among many others.
"It's a huge multi-layered responsibility."
Ming is travelling to Brazil for the semi-final and final in July and is lining up a few meetings with local Brazilian clubs with the aim of exploring player exchange, both for the new ISL team as well as his existing ILeague team. "Having been in the footballing ecosystem for a long time, we have an international network of people who are already there in Brazil scouting for us," he said.
Actor Ranbir Kapoor, who co-owns the Mumbai team, also wanted to go for the World Cup final but might not be able to make it then because of his movie schedule. So he might go a little early for a few games.
His partner and Bollywood's favourite chartered accountant, Bimal Parekh, said they are sending two people to Brazil to network, talk to just-retired players who they "might be able to afford". These two will meet managers of different playscuss commercials, and tell ers, possibly discuss commercials, and tell them what they are willing to spend.
Former cricketer Sachin Tendulkar has teamed up with PVP Ventures for the Kochi team and his former captain Sourav Ganguly is part of a heavyweight consortium that includes Harshavardhan Neotia of Ambuja Neotia Group, Sanjeev Goenka of RP-Sanjiv Goenka Group, stock broker Utsav Parekh and Spanish football club Atletico Madrid, for the Kolkata team. The Sun group owns Bangalore and Sameer Manchanda-led Den Network got Delhi, while Salman Khan has partnered Kapil Wadhawan and Dheeraj Wadhawan of the Wadhawan Group for the Pune team.
For the people from these teams visiting Brazil, the mission is to understand cost implications and do a demand-supply analysis of resources. "The quality of support staff here in India is not the best, not international level. For taking our football higher, we will have to get foreign support. But cost is a constraint," says Dhoot, whose consortium is looking at spending between .
`50 crore and .
`75 crore on the team.
rasad Potluri, managing director of PVP Ventures, says a contingent has been sent to "relish the quality of the game and to witness the game at the highest level". This team will understand the network and gather market intelligence about upcoming clubs, talent, new names. "They will do what they call in America scouting," says Potluri.
The Kolkata team is fortunate to have an international club — Atletico Madrid — as a partner. "They would be running the sporting part of the team and they will be in Brazil," says one of the partners, Harsh Neotia.
Ganguly is not going to Brazil because of his commitments during the Indian cricket team's tour of England later this month.
Football isn't a craze in India as yet as in Brazil, England or Italy, but it is a growing business and one on which many of these businessmen are betting on. Years of neglect by authorities have led to India drop in FIFA rankings from a poor 100 in 1993 to a poorer 154 this year. But a lot of people in this cricketcrazy nation are now watching the game on TV, and playing it too, as billionaire businessmen and celebrities team up to promote the game, and the big business that kicks in with it. In 2011, there were 83 million TV viewers for football in India, compared with 122 million for cricket. Between 2005 and 2009, the audience for football in India rose 60%, according to TAM Media Research.
Jun 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)
RIL Aims to be Among Global Top 50 in 3 Yrs
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MUMBAI OUR BUREAU MUMBAI |
Investment of Rs 180,000 cr lined up across businesses
Reliance Industries hopes to be among the world's top 50 companies as it implements game-changing projects with an investment of Rs 180,000 crore in the next three years to make it a major player in telecom and retail in addition to its traditional business of oil exploration and refining and petrochemicals, Chairman Mukesh Ambani said.
"We are currently at the mid-point of the largest investment programme in Reliance's history . The next two years -2014-15 and 2015-16 -will see us focussed on executing and progressively bringing these projects on-stream in petrochemicals, refining, retail and Jio (the telecom project). The year 2016-17 will be the first full year in which the complete benefits of all these investments will be available to our shareholders, consumers and the society ," Ambani said. "The next three years are transformational in RIL's journey ," Ambani told shareholders at RIL's 40th Annual General Meeting.
He said that by the time the company completes 40 years of being listed, it will be a "radically different" company . New initiatives include the launch of broadband services in a phased manner in 2015, which involve an investment of Rs 70,000 crore, and a scaling-up of its retail business, where Ambani is confident that business would double every 3-4 years.
"Over the next three years, the commissioning of each of our large projects in petrochemicals and refining, strengthen ing of our retail business and the launch of Jio business will propel us closer to our aspiration of being a Fortune 50 company as we complete 40 years of our corporate journey ," Ambani said.
RIL plans to raise loans to finance these investment and sees net debt levels rising to Rs 60,000 crore in the next two years from Rs 1,778 crore as on March 2014.
Jun 19 2014 : The Economic Times (Kolkata) `Retail to be RIL's Growth Driver'
Reliance Industries chairman Mukesh Ambani said the retail business is poised for a boom and will emerge as a major "growth engine" for the petroleum-to-retail giant, driven by the aspirations of young Indians. "Twenty-first century India is characterised by its youth, their aspirations and rapid pace of socio-economic transformation, reflected in rising incomes, better educational levels, improved lifestyle and an urge to walk in step with the rest of the world," Ambani said Wednesday in his speech at RIL's annual general meeting in Mumbai. Reliance Retail, which dislodged Future Group as the country's largest retailer by revenue earlier this year, said annual sales jumped 34% to Rs 14,496 crore in the year ended March from last year. The unit reported profit before depreciation, interest and taxes (PBDIT) of Rs 363 crore for the year. During the last fiscal year, Reliance Retail opened one store a day on average in various formats ranging from grocery to consumer electronic outlets, taking the total to 1,691, the most for any retailer in India. Reliance said its outlets occupy about 12 million square feet of space in 146 cities. Ambani said India's organized retailing business, hit by an economic slowdown in the last two years, looks set for a boom. "Organized retail in India is witnessing a new surge of optimism," he told shareholders. "Having invested in retail talent development and state-ofthe-art retail infrastructure, we are in a unique position to capitalise on the growing opportunity in India." Ambani said the unit has not only become India's largest retailer but has also attained a leadership position in digital, lifestyle and value retailing. Reliance Retail will continue to expand in the current formats in existing and new markets, besides exploring new retail channels. Reliance Retail will persist with its strategy of forging alliances with global brands. |
un 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Reliance Jio to Launch High-speed Data, Voice Services on 4G in 2015
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NEW DELHI OUR BUREAU |
Reliance Jio Infocomm will launch its high-speed data and voice services on 4G in phases next year, riding a . 70,000-crore investment by parent Re` liance Industries (RIL), a move cheered by consumers but one which could trigger another round of intense competition in the crowded telecom market. Limited field trials for Jio's 4G services were under way, expanded field trials for the "future proof and world class" services will begin in August and carry on till the early 2015, RIL Chairman Mukesh Ambani said on Wednesday at the company's annual general meeting.
Reliance Industries, the cash-rich parent of Reliance Jio that draws most of its revenue from its massive oil and gas business, has set aside ` . 70,000 crore for this venture, the initial plan of which will cover 5,000 towns and cities and 215,000 villages. Eventually, the network will encompass each of our over 600,000 villages.
The digital infrastructure and services would add significantly to India's GDP growth. "Millions of new entrepreneurs and jobs can be expected to spring up in secondary and tertiary sectors in new and innovative digital enterprises and services," Ambani said, highlighting that the wireless broadband business will be one of the largest job and wealth creators.
Reliance Jio already employs over 10,000 staff directly, and some 30,000 from partners and vendors. Another 100,000 people from digital infrastructure vendors to Jio are engaged in laying down the digital back bone, or fibre optic network, country wide.
The acquisition of Network 18 Media & Investments Limited and its subsidiary TV18 Broadcast Limited through an open offer by Independent Media Trust, will be an aspect of the digital services play that the company will offer to customers when it goes live, he added. These services will differentiate Reel Jio's 4G business from its ri vals. Reliance Jio has pan-India airwaves in the 2,300 MHz band used for broadband wireless access (BWA) services in 22 circles, and 5-7 units of spectrum in the 1,800 MHz band in 14 circles. The company has been awarded access to 22 million mobile phone numbers across India by the telecom department.
Having made a comeback to the Indian telecoms market in 2010 after acquiring a company which won countrywide airwaves for wireless broadband services, Reliance Jio's entry could pose a threat to rivals such as Bharti Airtel, Vodafone India and Idea Cellular that have only recently begun to raise voice tariffs after years of competition and undercutting.
"We suspect the launch could happen by March 2015," Swiss broking firm Credit Suisse said in a note to clients Wednesday evening. "This means that the underlying tariff strength in the telecom sector has one more quarter to run before RJio's launch (compared to our projections)." Last week, Credit Suisse downgraded Bharti Airtel's stock to underperform, and kept Idea Cellular and Reliance Communications at underperform, citing competitive fears from Reliance Jio that could unleash fresh competition in the telecom market.
However, a senior Bharti Airtel executive dismissed fears of potential disruption and added that discounts on voice services will continue to disappear while headline tariffs could go up. Analysts at Morgan Stanley said Jio's entry could expand the market rather than spoiling it.
Credit Suisse analysts Sunil Tirumalai and Chunky Shah said in their latest report that that the scale of the launch, as outlined by Ambani, appeared to be "larger than expectations," in terms of quantum of investment and geographic spread.
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