राजनीति गोलबंद जनता के खिलाफ,आपातकाल से भी बुरा हाल और इसीलिए छुट्टा सांढ़ों का यह धमाल!
पलाश विश्वास
The Economic Times
22 hrs ·
Formation of "business-friendly" govt led by PM Narendra Modi has made India the most optimistic country economically: Report.
India's economic confidence shot up by 6 points to 66 per cent in May compared to the previous month, making it the fourth most economically confident country after Saudi Arabia, Germany & China. http://ow.ly/yquK4
25 जून 1975 की वह काली रात अभी खत्म नहीं हुई है।हम बार बार सुबह के धोखे में रह गये।लेकिन इंदिरा का जारी आपातकाल दरअसल खत्म हुआ ही नहीं है और न मौजूदा जनसंहारी हालात में निकट भविष्य में खत्म होने के कोई आसार है।
राजनीति गोलबंद जनता के खिलाफ,आपातकाल से भी बुरा हाल और इसीलिए छुट्टा सांढ़ों का यह धमाल!इकोनामिक टाइम्स के मुताबिक बिजनेस फ्रेंडली भारतीय नमो सरकार के चलते भारत में निवेश का माहौल इतना बढिया है कि आर्थिक दृष्टि से निवेशकों के लिए सारी उम्मीदें यहीं हैं।
सरकार बिजनेस फ्रेंडली हो तो चलेगा।लेकिन पूरी राजनीति ही बिजनेस फ्रेंडली है।
सत्ता में बनिया पार्टी है तो लोकतंत्र भी बनिया तंत्र है।
ब्राह्मणवादी वर्णवर्चस्वी नस्ली कारपोरेट जायनवादी बनियाराज है और बनियापरस्त राजनीति अब कारोबारी है,मुनाफाखेल है।
जनता की चमड़ी उधेड़ने की प्रतियोगिता है।
समाजवाद का माडल और समाजवादी राजनीति भी अब बिजनेस फ्रेंडली है।
भूले नहीं कि आपातकाल लागू करके बिजनेस फ्रेंडशिप की नींव भी डाली थी इंदिरा गांधी ने।जिस रिलायंस पौधे को सींचा इंदिराम्मा ने आज वही भारत का व्हाइट हाउस है , बनियातंत्र का चालक बाहक और राजनीति उसकी पालतू।
अब समझ लीजिये कि सरकार पर कितना दबाव होगा कि कहा जा रहा है कि सुधार लागू न होने कारण पच्चीस हजार पार शेयर सूचकांक लूढ़क रहा है ।
मसलन आज ही सेंसेक्स 251 अंक टूटकर 25063 और निफ्टी 76 अंक टूटकर 7493 पर बंद हुए। मिडकैप-स्मॉलकैप भी फिसले। सीएनएक्स मिडकैप इंडेक्स 0.5 फीसदी और बीएसई स्मॉलकैप इंडेक्स 0.3 फीसदी गिरे। ऑयल एंड गैस शेयर करीब 4 फीसदी लुढ़के। रियल्टी शेयर 2.7 फीसदी टूटे। मेटल और बैंक शेयर 1 फीसदी गिरे। पावर शेयरों में 0.8 फीसदी और एफएमसीजी शेयर 0.4 फीसदी गिरे।
रिलायंस कंपनी गैस 8.8 डालर के भाव से देगी,लेकिन सितंबर के बाद।सितंबर तक सारे कठोर फैसले टाल दिये गये हैं ताकि वोटर हृदय विचलित न हों। डंके की चोट पर कहा जा रहा है कि फांसी की सजा तय है,सजायाफ्ता को लटकाया जायेगा सितंबर के बाद।मरणासण्ण जनता फिर हिंदुत्व और नाना अस्मिताओं के नाम वोट करेगी बनियातंत्र के हक में।इसी परिप्रेक्ष्य में गौरतलब है कि सरकार ने वाहन और कुछ अन्य वस्तुओं पर अंतरिम बजट में उत्पाद शुल्क में की गई कमी को छह महीने के लिए बढ़ा दिया है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने आज यहां इसकी घोषणा करते हुए कहा कि उत्पाद शुल्क में कटौती की अवधि 30 जून को समाप्त हो रही थी, जिसे बढ़ाकर अब दिसंबर अंत तक कर दिया गया है।जेटली ने उम्मीद जताई कि इससे अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और घरेलू स्तर पर मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। वित्त मंत्री का ये फैसला ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है।
भारतीय राजनीति में कोई भी किसी को गरियाने को आजाद है लेकिन किसी माई के लाल को हिम्मत नहीं है कि बनियातंत्र के खिलाफ चूं भी करें।
सारे के सारे आर्थिक सुधार इसी बनियातंत्र के लिए।
सारी की सारी जनसंहारी नीतियां इसी बनियातंत्र के लिए।
आपात काल में भी आंदोलन हुए।
आपात काल से पहले भी आंदोलन हुए और आपातकाल खत्म होते ही आंदोलन हवा।
राजनीति गठबंधन जमाने की हो गयी।
सौदेबाजी की राजनीति,जिसमें समाजवादी,वाम,गांधीवादी,बहुजनवादी राजनीति एकमुश्त बनियातंत्र में समाहित।
इस बनियातंत्र का सिलसिला आजादी के बाद से लगातार जारी है।लेकिन रिलायंस के उत्थान से यह यह अब अजातशत्रु है।
कारपोरेट फंडिंग पोषित राजनीति और बजरिये राजनीति करोड़ों अरबों की बिना पूंजी कमाई से विचारधाराएं और झंडे बेमतलब हो गये हैं।
जनता की नुमाइंदगी कर रहे सारे लोग ब्रांडेड हैं और अपने ब्रांड के सिवाय वे किसी की नहीं सुनते।
सारी राजनीति आम जनता के खिलाफ गोलबंद है जो आपातकाल से पहले तक नहीं थी।
अब कोई जनांदोलन न राजनीतिक है और न सामाजिक,सारा का सारा वैश्विक पूंजी का खेल ,एनजीओ प्रोजेक्ट है। ऐसी बदतर हालत तो आपातकाल में भी नहीं थी।
आपातकाल के दिनों में अखबारों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संपादकीय पेज खाली छोड़ा या सेंसर की कालिख समेत अखबार और पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ।
आज प्रिंट,इलेक्ट्रानिक मीडिया और मनोरंजन पर रिलायंस का कब्जा है।
आज मीडियाकर्मी कारपोरेट गुलाम हैं।
संपादक मृत हैं और संपादकीय का वजूद नहीं है।
कारपोरेट स्तर पर संपादकीय नीतियां तय होती हैं।
प्रबंधकों और दलालों का जयपताका मीडिया का ब्रांड है।
जनपदों के मीडिया में भी प्रत्यक्ष विनिवेश जो अब शत प्रतिशत हो रहा है।
अब बताइये कि 25 जून,1975 की काली रात की सुबह कब हुई?
आपात काल में जो उपलब्धि है वह वाम और समाजवादियों के साथ स्वतंत्र पार्टी को मिलाकर अमेरिकापरस्त जनता पार्टी का सत्ता में आना है।
तब जनसंघ जनता पार्टी में विलीन होकर भाजपा बनकर अवतरित हो गयी।
मोरारजी सरकार की अल्पावधि में ही संघी सोशल इंजीनियरिंग ने ऐसा कमाल किया है कि बनिया पार्टी हिंदुत्व की पार्टी बन गयी।
इंदिरा सत्ता में लौटीं तो सिखों का नरसंहार हो गया।हिंदुत्व का मौलिक ध्रूनवीकरण का प्रस्थानबिंदू वही है।
साठ के दशक में जो विदेशी पूंजी का संक्रमण हरित क्रांति की आड़ में शुरु हुआ,संघ समर्थित राजीव गांधी की सरकार के आते आते वह तकनीकी और सूचना क्रांति के जरिये मुक्त बाजार की नींव डाल ही चुकी थी।
नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने तो सिर्फ समाजवाद का मुल्म्मा उतार फेंका।असल में नवउदारवादी सुधारों की शुरुआत अटल जमाने में हुई।सबूत डिसिंवेस्टमेंट कौंसिल और विनिवेश आयोग की रपटें हैं।हम जिन्हें पहले ही जारी कर चुके हैं।
मध्यपूर्व के तेल क्षेत्र में जिहाद का मतलब और लोकतंत्र के वसंत का तात्पर्य समझ लें तो दक्षिण एशिया में श्रीलंका,बांग्लादेश,पाकिस्तान और भारत के सबसे उपजाऊ बाजार में धर्मोन्मादी राजनीति और जायनवादी कारपोरेट राज का तात्पर्य समझ में आयेगा।
औपनिवेशिक भारत में सत्ता वर्ग शासक वर्ग में समाहित था जैसे वैसे ही अद्यतन शासक वर्ग वैश्विक व्यवस्था में समाहित है।
जैसे बनिया समुदायों के रंग बिरंगे धर्मस्थल बिजनेस फ्रेंडली हैं वैसे ही धर्मोन्मादी बनिया पार्टी की सरकार भी बिजनेस फ्रेंडली है।
यह कोई तात्कालिक समायोजन नहीं है।
स्थाई बंदोबस्त है।
इसलिए धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद को भड़काने में कारपोरेट मीडिया ने खून पसीना एक कर दिया।इसीलिए धर्मोन्मादी जनादेश के निर्माम पर एक लाख करोड़ खर्च भी हो गये।
निवेशकों की आस्था और वैश्विक इशारों के विपरीत छुट्टे साँढ़ों का धमाल का रहस्य यही है। सांढ़ सिर्फ सेनसेक्स के ही नहीं होते।यह भी समझने वाली बात है।
वंचितों और कमजारो तबकों पर लगातार बढ़ रहे अत्याचार और सामंती कायदे कानून के तहत स्ती उत्पीड़न के तेज सिलसिले के बंदोबस्त में भी फिर वहीं सांढ़ों का कमाल है।
देहात के लोग भली भांति समझते हैं कि छुट्टा सांढ़ का क्या मतलब है हालांकि हर गली मोहल्ले में नगरों,उपनगरों और महानगरों में भी इन दिनों बनियापोषित सांढ़ों का ही राज है। जिन्हें हम राजनीति मान लेते हैं और ठुकवाने की मुद्रा में हो जाते हैं।
यह आत्मसमर्पण भाव सत्तर के दशक में अनुपस्थित था।
सर्वग्रासी मुक्त बाजार ने मनुष्यता और सभ्यता का ही नहीं,विवेक और साहस का भी अंत कर दिया है।
कहते अपने को आस्तिक हैं और आत्मा को अमर मानते हैं लेकिन डरे हुए इतने हैं कि सत्य के विरुद्ध ही खड़े होने में अस्तित्व मानते हैं लोग।
धार्मिक लोग ही सबसे ज्यादा अधर्म करते हैं क्योंकि बनियातंत्र में सारे प्रतिमान लाभ हानि से तय होते हैं।
नैतिकता का प्रवचन होता है लेकिन व्यवहार में बापू हैं।
बाजार विश्लेषकों और रेटिंग एजंसियों का फिरभी दबाव बना हुआ है कि जून सीरीज के एक्सपायरी के दिन बाजार में 1 फीसदी की गिरावट आई। गैस कीमतों पर फैसला टलने से बाजार की उम्मीदों को झटका लगा। अनुमान के विपरित सरकार के आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम न उठाए जाने से बाजार को निराशा हुई। बाजार की गिरावट में दिग्गज में ज्यादा पिटे।
फैसले वोट समीकरण से टले हैं,लागू होंगे,बाजार को मालूम है,जनता को नहीं।शेयर बाजर में जबर्दस्त मुनाफावसूली का दस्तूर भी है।
ब्रोकरों ने कहा भी है कि अंतिम घंटे में रीयल्टी, बैंकिंग व धातु कंपनियों के शेयरों में चले बिकवाली के दौर से भी बाजार प्रभावित हुआ।
जबकि मीडिया का कहना है कि प्राकृतिक गैस कीमत बढ़ोतरी का फैसला तीन माह के लिए टाले जाने के बाद ऑइल ऐंड गैस सेक्टर के शेयरों में भारी गिरावट दिख रही है।प्राकृतिक गैस कीमत बढ़ने से रिलायंस को गैस के लिए भारत सरकार को चार दशमलव दो के बदले आठ दशमलव आठ डालर दर से भुगतान करना होगा।
आसण्ण विधानसभा चुनावों के मद्देनजर गौर करें।
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने नेचुरल गैस के दाम बढ़ाने के फैसले को तीन महीने के लिए टाल दिया है.
पेट्रोलियम मंत्री के मुताबिक इस फैसले का मतलब ये हुआ कि अगले तीन महीने तक नेचुरल गैस के दाम नहीं बढ़ेंगे।
धर्मेंद्र प्रधान का कहना था कि कैबिनेट ने फैसला किया कि गैस के दाम बढ़ाने पर और विचार विमर्श की जरूरत है।
आपको बता दें कि धर्मेंद्र प्रधान और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शुक्रवार और रविवार को मुलाकात की थी ताकि ये रास्ता तलाशा जा सके कि गैस के दाम ऐसे बढ़ाए जाएं कि इससे महंगाई और नहीं बढ़े।
अगर दाम बढ़ते तो इससे सरकारी तेल कंपनी ओएनजीसी और उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को फायदा होता।
आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल हमेशा यह कहते रहे हैं कि गैस निकालने पर रिलायंस को महज़ एक डॉलर का खर्चा होता है, जबकि उन्हें 300 फीसदी से ज्य़ादा फायदा होता है।
अरविंद केजरीवाल ने गैस के दाम को लेकर पीएम को चिट्ठी भी लिखी है।
यही नहीं,विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नमो सरकार उस खाद्यसुरक्षा कानून को लागू करने की कवायद भी कर रही है,जिससे दरअसल ठंडे बस्ते में डालना है जिससे भारत से लेकर अमेरिका तक बाजार के त्तव मनमोहन सकरका से खफा हो गये।
अब चुनावी करिश्मा यह है कि खाद्य सुरक्षा कानून को अमल में लाने की तारीख को 3 महीने के लिए बढ़ाया गया है। खाद्य आपूर्ति मंत्री ने ये भी बताया कि महंगाई पर चर्चा करने के लिए वित्तमंत्री 4 जुलाई को बैठक करने वाले हैं। महंगाई और सूखे से निपटने के लिए मोदी सरकार ने एक्शन प्लान तैयार कर लिया है। जहां आलू का इंपोर्ट कम करने के लिए इसकी एमईपी को बढ़ाया है, वहीं सूखे इलाकों के लिए अलग से फंड बनाने की बात कही। खाद्य आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने साफ किया कि फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू होगा, और इसके लिए राज्यों से बात की जाएगी। बीज और खाद में सब्सिडी लागू होगी।
गैस तेल की तरह यहां भी मोहलत वही तीन महीने की।इसके साथ ही माना जा रहा है कि फूड सिक्योरिटी कानून 1 साल के लिए टल सकता है। दरअसल 5 जुलाई से फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू होना था। वहीं सरकार ने आलू का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 450 डॉलर प्रति टन तय किया है। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने मॉनसून की स्थिति की समीक्षा की। बैठक में बेहतर मॉनसून की संभावना जताई गई है। 7 जुलाई के बाद मॉनसून की स्थिति बेहतर होने की उम्मीद है।
जाहिर है कि खाद्य सुरक्षा खत्म करने का ठीकरा मानसून के मत्थे।मीडिया इसीलिए मानसून घाटे के खूब हाईलाइट कर रहा है।इससे दोहरा फायदा पहले निर्यात और फिर आयात का कारोबार बम बम करने का है।प्याज बाहर भेजकर कमायेंगे तो किल्लत होने पर आयात से भी कमायेंगे।
मसलन इस बार खराब मॉनसून आम आदमी का बजट बुरी तरह से बिगाड़ रहा है। जून बीतने को है और देश में अब तक सामान्य से 38 फीसदी कम बारिश हुई है। महाराष्ट्र की 83 फीसदी फसल बारिश पर निर्भर होती है और राज्य के पश्चिम और उत्तरी इलाकों में अब तक सामान्य से 54 फीसदी बारिश हुई है। कोंकण में 45 फीसदी, मराठवाड़ा में 74 फीसदी और विदर्भ में सामान्य से 26 फीसदी कम बारिश हुई है। जबकि मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक 10 जून से महाराष्ट्र में अच्छी बारिश शुरू हो जानी चाहिए थी।
कमजोर बारिश के डर से महंगाई का मीटर अभी से ही भागने लगा है। मॉनसून आने में थोड़ी सी देरी हुई और सब्जियों के दाम आसमान पर पहुंच गए। 10 रुपये किलो मिल रही फूलगोभी 15 दिन में ही 18 रुपये किलो पर पहुंच गई है। पत्ता गोभी और ग्वार के दाम भी दोगुने हो गए हैं। 25 रुपये किलो मिल रही फ्रेंच बीन 15 में तीन गुनी महंगी होकर 75 रुपये किलो तक पहुंच गई है।
थोड़ा यह खेल भी समझ लीजिये।डिफेंस में एफडीआई की छूट कितनी दी जाए, इसको लेकर मतभेद उभरने लगे हैं। हालांकि डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन ((डीआईपीपी) ने जो कैबिनेट ड्राफ्ट नोट जारी किया है उसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में 74 फीसदी और स्टेट ऑफ द आर्ट टेक्नोलॉजी में 100 फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव है। लेकिन कुछ लोग डिफेंस में शुरू में सिर्फ 49 फीसदी एफडीआई ही चाहते हैं।
सूत्रों का कहना है कि सरकार डिफेंस सेक्टर में कम से कम 51 फीसदी एफडीआई के पक्ष में है। सरकार की दलील है कि 49 फीसदी एफडीआई से कोई फायदा नहीं होगा। गौरतलब है कि 2001 और 2013 के बीच डिफेंस में 49 फीसदी एफडीआई की छूट थी। लेकिन 2001 से 2013 के बीच डिफेंस सेक्टर में महज सबसे कम 50 लाख डॉलर का एफडीआई आया।
माना जा रहा है कि डिफेंस में एफडीआई से मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा। डिफेंस में एफडीआई से रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। डिफेंस में एफडीआई से भारत डिफेंस इक्विपमेंट एक्सपोर्ट भी कर सकेगा और घरेलू डिफेंस सेक्टर को संवेदनशील टेक्नोलॉजी हासिल हो सकेगी।
उद्योग मंत्रालय ने डिफेंस में एफडीआई की सीमा बढ़ाने पर ड्राफ्ट नोट जारी किया है। उद्योग मंत्रालय ने डिफेंस सेक्टर में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में 74 फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव दिया है, जबकि स्टेट ऑफ द आर्ट टेक्नोलॉजी में 100 फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव है। उद्योग मंत्रालय के प्रस्ताव में घरेलू इंडस्ट्री के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त सेफगार्ड मौजूद है। अनुमान है कि अगले 6-7 साल में डिफेंस इक्विपमेंट पर 250 अरब डॉलर का खर्च हो सकता है।
अब तमाशा यह भी देख लीजियेकि सरकारी फैसले सारे के सारे मंहगाई बढ़ाने वाले हैं और महंगाई को काबू करने के अपने प्राथमिक एजेंडा के अनुरुप नरेंद्र मोदी सरकार अब जमाखोरों और काला बाजारियों पर नकेल कसेगी। मोदी ने महंगाई पर अंकुश लगाने के उपायों पर विचार करने के लिए आज अपने निवास पर एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी।सरकार का यह मानना है कि मद्रास्फीति को काबू करने के लिए हाल में उठाए गए कदमों का सकारात्मक असर हुआ है। बैठक के बाद सरकार की तरफ से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि बाजार में चावल काफी मात्रा में पहुंच रहा है। दिल्ली में भी प्याज की कोई कमी नहीं है।
प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से कहा है कि जमाखोरों और काला बाजारियों के खिलाफ मामलों को तेजी से निपटाने के लिए विशेष न्यायालय स्थापित किए जाएं। बैठक में गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान, जल संसाधन मंत्री उमा भारती, मंत्रिमंडल सचिव, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव और अतिरिक्त प्रधान सचिव मौजूद थे।
अब अपने किराने की दुकान पर तसदीक कर लीजिये कि दामं में क्या अंतर है या थैली लेकर बाजार में हाजिरी देकर देखिये। लेकिन खबरों के मुताबिक कृषि मंत्री ने मोदी को भरोसा दिया कि 7 जुलाई के बाद अच्छी बारिश होगी और अल नीनो का प्रभाव अनुमान से कम होगा। हालांकि कृषि मंत्री ने कहा कि सूखे से निपटने के लिए भी पूरी तैयारी है। सूत्रों के मुताबिक 7RCR में हुई इस मीटिंग में महंगाई के अलावा खाद्य सुरक्षा पर भी चर्चा की गई। हम आपको बता दें कि खाद्य सुरक्षा पर सभी राज्यों को पांच जुलाई तक लिस्ट सौंपनी थी, लेकिन अब तक सिर्फ 11 राज्यों ने लाभार्थियों की सूची सौंपी है।
मानसून कमजोर पडऩे और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्थिति से निपटने के लिए आकस्मिक योजना के क्रियान्वयन में केन्द्र और राज्यों के बीच नजदीकी समन्वय पर जोर दिया। उन्होंने जमाखोरी और कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ मामलों की जल्द सुनवाई के लिए राज्यों से त्वरित सुनवाई अदालतें गठित करने को कहा है।
प्रधानमंत्री ने आज यहां मानसून की प्रगति और महंगाई को काबू में रखने को उठाए गए कदमों की समीक्षा के लिए अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों के साथ बैठक की। इस दौरान उन्होंने किसानों को पानी, बिजली और बीज की उपयुक्त आपूर्ति पर जोर दिया ताकि कमजोर बरसात की वजह से कृषि उत्पादन प्रभावित नहीं हो। प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में बताया गया कि मानसून कमजोर रहा है लेकिन अगले दो महीनों में इसमें व्यापक सुधार की संभावना है। इस दौरान महंगाई को काबू में रखने के जो कदम उठाए गए उनका 'अच्छा प्रभाव' दिखा है।
बैठक में बताया गया कि कृषि मंत्रालय ने 500 से अधिक जिलों के लिए आकस्मिक योजना तैयार की है। दो घंटे से अधिक समय तक चली बैठक के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी वक्तव्य में कहा गया है, 'मोदी ने बैठक में मानसून के लिए पहले से तैयार योजना के क्रियान्वयन में केन्द्र और राज्यों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता पर जोर दिया। इस योजना में उन्होंने राज्यों को एक इकाई बनाने के बजाय जिलों को इकाई मानने पर जोर दिया।Ó प्रधानमंत्री ने बैठक में मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों पर गौर किया।
लालजी निर्मल का लिखा पढ़ लेंः
दुनिया मुसलमानों के जनसंहार के लिए उन्हें गुनहगार ठहरा रही थी. उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु कांशीराम के 'तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' जैसे नारों को भी छोड़ दिया और मौकापरस्त तरीके से 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है' जैसे नारे चलाए. लोगों को कुछ समय के लिए पहचान का जहर पिलाया जा सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे बेवकूफ हैं. लोगों को मायावती की खोखली राजनीति का अहसास होने लगा है और वे धीरे धीरे बसपा से दूर जाने लगे हैं. उन्होंने मायावती को चार बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया लेकिन उन्होंने जनता को सिर्फ पिछड़ा बनाए रखने का काम किया और अपने शासनकालों में उन्हें और असुरक्षित बना कर रख दिया. उत्तर प्रदेश के दलित विकास के मानकों पर दूसरे राज्यों के दलितों से कहीं अधिक पिछड़े बने हुए हैं, बस बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और राजस्थान के दलित ही उनसे ज्यादा पिछड़े हैं. मायावती ने भ्रष्टाचार और पतनशील सामंती संस्कृति को बढ़ाना देने में नए मुकाम हासिल किए हैं, जो कि बाबासाहेब आंबेडकर की राजनीति के उल्टा है जिनके नाम पर उन्होंने अपना पूरा कारोबार खड़ा किया है. उत्तर प्रदेश दलितों पर उत्पीड़न के मामले में नंबर एक राज्य बना हुआ है. यह मायावती ही थीं, जिनमें यह बेहद गैर कानूनी निर्देश जारी करने का अविवेक था कि बिना जिलाधिकारी की इजाजत के दलितों पर उत्पीड़न का कोई भी मामला उत्पीड़न अधिनियम के तहत दर्ज नहीं किया जाए. ऐसा करने वाली वे पहली मुख्यमंत्री थीं.
सोवियत संघ की पहल पर बनी वर्ल्ड फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स के सेक्रेटरी सर्गेई रोस्तोवस्की द्वारा 1950 में लिखी यह पुस्तिका ट्रेड यूनियनों में नौकरशाही के विरुद्ध संघर्ष करने और यूनियनों में हर स्तर पर जनवाद बहाल करने की ज़रूरत को सरल और पुरज़ोर ढंग से बताती है।
अच्छे दिन आले रे बाबा पर अमित शाह के
Jun 26 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Bulls Set to Host Pre-Budget Party
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MUMBAI BISWAJIT BARUAH |
FIIs cutting bearish bets, Nifty stabilising at current levels & big traders building long positions
The stage appears to be set for a stock market rally before the Union Budget on July 10 if a few key equity derivative and technical indicators are to go by . With foreign institutional investors cutting a chunk of their bearish bets, Nifty finding strong support at current levels and affluent traders steadily building long positions in Nifty options, analysts are assuming that the market is poised for a bounce after the recent correction. But, continued fighting in Iraq is playing the spoilsport for Dalal Street, raring to bet big on possible pro-business policy announcements in the Budget.
"The market is gearing up for a pre budget rally. There are hopes of reform-oriented policy an nouncements," said Motilal Oswal, CMD, Motilal Oswal Financial Services.
Traders are likely to start readying bets for the budget after the ex piry of the June series futures and options contracts on Thursday . The decline in net long positions in index futures, mainly Nifty, to 32,000 contracts this week from the recent high of 3.37 lakh contracts on March 26 is encouraging analysts to believe that the markets are more likely to go up than down in the next couple of weeks "Several factors point towards likelihood of current market correction getting over and of a prebudget rally taking shape soon," said Gaurav Mehta, vice president at Ambit Capital. "Markets are no longer showing overbought readings, FIIs' net long positions have dropped."
Jun 26 2014 : The Times of India (Kolkata)
Step Up The Gas
Market pricing of gas and coal denationalisation are essential steps for India's energy security
The Union cabinet will further review gas prices and no immediate change is in the offing. While a calibration in the Rangarajan formula to work out natural gas prices that would make it cheaper initially is needed, creating an environment for eventual market-based pricing of natural gas must remain at the heart of policy. This makes sense as we are in the midst of eventful changes in the global energy sector at a moment when India needs energy security to kick-start industrial growth.
Commercial exploitation of gas from shale formations in the US is set to loosen oil's chokehold on the global economy. In this fast-changing environment, India's interests are best served by transitioning to an energy regime where market determined prices provide the main signal in investment and consumption decisions. Most buyers of natural gas are power and fertiliser companies who do not have freedom to increase prices. In this backdrop, a phased transition to market price is the best way forward. Recent gas dis ce is the best way forward. Recent gas dis coveries in North America and simulta neous massive investments in extraction technology there have begun to open hitherto unviable fields for exploitation.
This is the right time for India to prepare itself to take advantage of new develop ments in natural gas.
While North America leads the way in shale gas discoveries, NDA should take the initiative here to set right India's coal sector. Coal accounts for more than half of our primary commercial energy. India's power sector will remain heavily depend ent on coal. Yet, it is in coal that we remain ent on coal. Yet, it is in coal that we remain in a rut and three governments in succession have been unable to make progress. Despite having large untapped reserves, India continues to import coal. The least NDA can do is revive and pass a legislative Bill, first introduced 14 years ago, to denationalise coal. Monopolies harm consumers and Coal India's shoddy performance has extracted an enormous economic toll.
One of the lessons of the shale gas story is that innovations can quickly change the economics of a source of energy. Even if hydrocarbons continue their dominance, it would not be prudent to write off renewable sources of energy . We could well be on the threshold of a wave of innovations that make them commercially viable. India's energy policy must be tweaked to exploit such a scenario as policy flexibility remains the only constant in a fast-changing world.
Jun 26 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Gas Price to Remain at $4.2 till Sept-end
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NEW DELHI PRESS TRUST OF INDIA |
Revision postponed, decision on hike after comprehensive review by govt
In a setback to gas producers like Reliance Industries, the government on Wednesday postponed revision in natural gas prices by three months pending a "comprehensive" review to make a controversial pricing formula more palatable.
The current $4.2 per million British thermal unit rate for gas, which would have jumped to $8.8 if a formula approved by the previous UPA government was implemented on July 1, will continue till September-end, Oil Minister Dharmendra Pradhan said here.
The first revision in rates in four years was originally to take effect from April 1 but with general elections being declared it was postponed by three months.
"The Cabinet Committee on Economic Affairs today decided that comprehensive discussions were necessary on the issue. It was decided that consultations would be held with all stakeholders and it was important to keep public interest in mind," he told reporters after the CCEA meeting.
Pradhan, who had held three rounds of discussions with Prime Minister Narendra Modi on the issue since Friday , did not say if a new expert committee or a ministerial group will be constituted for the review.
In course of these discussions, it was clear that the new government was looking at making some changes in the formula, proposed by a panel headed by C Rangarajan, as it would have led . 2 per unit increase in power to ` tariff and `. 12 a kg hike in CNG rates besides jump in fertiliser subsidy outgo. Finance Minister Arun Jaitley said a review mechanism will have to be decided by the Prime Minister's Office and the Oil Ministry.
"There have been one or two meetings. The mechanism in the government which will review the whole thing and come to an opinion, I think now needs to be finalised," he said.
Neither Pradhan nor Law Minister Ravi Shankar Prasad who briefed media persons on the cabinet decision, would say if a new formula altogether was being considered.
Jun 26 2014 : The Economic Times (Kolkata)
ET EXCLUSIVE Q & A - `Privatisation No Solution to Air India's Problems'
ASHOK GAJAPATHI RAJU PUSAPATI CIVIL AVIATION MINISTER |
Aviation minister Ashok Gajapathi Raju Pusapati has taken charge of a sector roiled by troubles -loss-laden airlines, congested airports, poor air connectivity and so on. Pusapati, a TDP leader of royal lineage from Vizianagaram in Andhra Pradesh, has lined up a slew of initiatives to deal with these issues. These plans include creating worldclass air cargo facilities in 19 airports to unlock big potential in cargo aviation and building no-frills airports to improve remote-area connectivity, Pusapati told ET's Binoy Prabhakar in an interview.
Excerpts: What are your initial impressions about aviation?
Aviation is an important sector in terms of infrastructure and jobs and should be treated as such. There is no doubt that the sector is going through turbulence. There are no simple answers.
But the problems will not be wished away -we will deal with them.
Have you finalised an action plan for revival?
Though there is huge growth in passenger and cargo traffic in and from India, we have a long way to go. We are still very behind the world leader in cargo -the US, which carries 23 times more freight per tonne km than India. Indian cargo aviation has great potential, particularly in agro-based businesses, floriculture, fisheries and allied sectors. So steps are being taken to create state-of-the-art air cargo facilities in 19 major airports. Air freight stations are being constructed near airports, which will help decongest them. We are looking to improve the MRO (maintenance repair and overhaul) business. This will bring forex and create jobs. We will also improve remote area connectivity and connectivity to tourist hotspots. For this, we will construct no-frills airports. I am also trying to improve transparency in (aviation regulator) DGCA through online applications of licences and providing timelines for issuing licences and so on.
You said the government is planning customer-friendly initiatives. Could you elaborate?
What is it the government can do? One, it has to be transparent in decision-making processes. Second, it can fix time frames, similar to a citizen's charter.
The regulations also have to be meaningful. Commercial decisions are best left to commercial players. Globally, aviation is not a sector or activity that the government subsidises. We hope they will understand our position and play along. At the same time, taxes should not be killing on airlines.
Some work has to be done on that.
What work?
We will talk to state governments. We will tell them that the sector has been going through turbulent times. We are also in talks with the oil ministry to bring ATF (jet fuel) under the declared goods category (to bring uniformity and reduction in taxes up to 4% from 28% across the country).
What are your views on Air India? Do you see a future for the airline?
Personally, I am not against the public sector. I am also not against the private sector. Privatisation is not the answer to all problems. Look at aviation itself. Haven't private airlines collapsed? That said, whatever one does, it has to make some commercial sense. A turnaround in Air India means a level of commitment at all levels. We will try to motivate the management. Whatever money committed under the turnaround plan will be given and then hope the airline improves its operations. It also has social obligations, remember. That said, we can hold the hand up to a point, not beyond.
You met Prime Minister Narendra Modi a few days ago. What did you discuss?
He gave us a patient hearing. I won't go into the specifics. We did not arrive at any decisions, but a lot of meaningful discussions happened.
Some sections of the industry feel aviation is not priority for the government...
The government has clubbed aviation with the transport sector. I think it is a right decision because we too are all about transport -transporting people and goods. Aviation is definitely part of the economy. In that sense, aviation has its place (on the government agenda).
You are a raja, Air India mascot is the Maharajah and there is talk of replacing the mascot with one emblematic of the common man. You yourself have said in various forums that the common man is important. Is this a very conscious decision on your part to cultivate such an image?
I am no maharajah. I come from a family that had occupied those positions in the past. When this mascot was brought in, aviation was restricted to the elite. Today, that has changed. The same is true of the maharajahs of yore. Many of them live in abject poverty. Whatever the name or mascot, an orientation towards the common man has to be there.
Beyond that, we should not worry about a mascot.
One of your first decisions was asking aviation authorities such as DGCA and Airports Authority of India for a list of relatives of officials working in airlines. What drove you to the decision? What action will you take?
Let those names come and we will act on the list.
But why I asked for the list is obvious. You keep your eyes and ears open, you stumble on things blatantly wrong. Those will be corrected.
Jun 26 2014 : The Economic Times (Kolkata)
ET Analysis - Downfall of Socialists and Rise of Market-friendly Politics in India
NISTULA HEBBAR |
NEW DELHI |
Even the socialist parties have forgotten the ideologies of Lohia
Immediately after the 2014 election results came out, signalling an astounding victory for the BJP, current finance minister Arun Jaitley was asked whether this could be termed the most significant mandate in India's history.
Jaitley, in his measured way, acknowledged the significance of the 2014 result, but insisted that the 1977 elections, the post Emergency polls, were still the most important as it reasserted Indian democracy, saved it, in a sense.
Among those who formed the government in 1977, it is the BJP, the then junior partner which effaced itself but could not cut the umbilical cord with the RSS, which has flourished, while the socialists, the grand old men who inspired a generation are facing an existential crisis.
There are many reasons given for the epic downfall of the socialists, and June 25th is always a good time to go over it. Socialist ideologue Ram Manohar Lohia's brand of politics may have talked of ending caste discrimination and a socialist economic arrangement, but he also said two things which were continuously ignored by his followers.
One was his exhortation to "sudhro ya tooto (reform or perish)" and the other was "vaani swaarantata ya karma bandhan (freedom of speech but with disciplined action)".
In the first instance, the socialists, buffeted by the changes in geo politics and economics, found themselves out of step with a market-friendly India.
The refusal to introspect in some cases, and just surface introspection (as in the "modernisation" of the Samajwadi Party) in others has led to a situation where they are out of sync in states where the mandal math doesn't deliver.
The serious antagonism to the Congress has been blunted by the exigencies of secular politics and the Ram Janmabhoomi movement. These elections have proved this to be particularly true on that score.
The second part, that of cohesion of forces has always been an issue. Socialist cohesion in India has been referred to as a friendship of porcupines, they can't stay together can't stay away. Facing annihilation in Bihar, the two socialist stalwarts in Bihar, Lalu Prasad Yadav and Nitish Kumar, are a prime example of this, of prickly porcupines circling each other warily. Even the choice of Morarji Desai as Prime Minister in 1977, their greatest hour of cohesion was fraught with intrigue and differences.
The BJP on the other hand, has introspected on its economic programme, converting from swadeshi to market enthusiasts with the zest of Tony Blair's New Labour. It has taken forward the Lohiaiite agenda of the backward classes by rallying around the premiereship of Narendra Modi and the largest contingent of OBC MPs.
Even more than the Congress, it has taken forward a kind of politico cultural politics, of appropriating symbols and leaders from other parties and streams which have ensured its expansion. Sardar Patel, Swami Vivekananda and even former Prime Minister Na
rasimha Rao, all have been appropriated by the BJP for the various signals that they send out.
The socialists meanwhile reduced offshoots of their party to family run units, with the exception of the Janata Dal (U). Will the circling porcupines band against the circling vultures? Or is it endgame for total revolution?
Jun 26 2014 : The Economic Times (Kolkata)
BITTER MEDICINE - Modi Should Not Have Rolled Back Rail Fare Hike
Ajay Dua |
The government has partially rolled back the hike in rail fares announced recently. It shouldn't have done that.
To prepare citizens, Prime Minister Narendra Modi had only last week said that to get the economy back on track, he would have to take tough measures even if they could temporarily dent his approval ratings.
The BJP has a comfortable majority and this makes it capable of effecting changes of the kind that made others dither in the past. So, this rollback, in response to protests from its allies, is surprising. It should have perceived that the common man now yearns for quality service and is willing to pay for it. A case in point is the acceptance of the near-doubling of fares for public transport in Delhi, when new and more comfortable buses were introduced to coincide with the Commonwealth Games in 2010.
It is estimated that for Indian Railways to break even on its passenger operations, it needs to increase fares by almost 50%, inclusive of fuel surcharge, whereas the hike effected now is 14.2% on fares and 6.5% on freight rates. Most of the hikes in suburban fares have been rolled back.
By making the hikes effective from June 25, the new rail minister hopes to earn about .
`8,000 crore during the rest of the year, not adequate to reduce the cross-subsidisation of passengers by freight. By standing by the hikes announced last week, and letting it be known that this is not the last raise, and more could follow as
the cost of provision goes up, he has conveyed that the Indian rail system would now be run as a business and not a political organ of the government, incapable of responding to the need of the hour.
But the mere revision of passenger or freight rates will not make the railways professional or upgrade its services. There is a lot of headroom for its management to make operational and structural improvements. At 70% of revenue, its fuel, wage and pension bill is abnormally high.
The railways need to augment commuter amenities in trains and stations. Its safety record has deteriorated but, meanwhile, people want faster passenger trains. And businesses want to move cargo according to a prescribed time schedule, and not at random, whenever there is room on the tracks between passenger train running schedules.
For a long time, industry has asked for dedicated tracks to move coal from mines to power plants. Point-topoint trains with climate-controlled freight cars are necessary to transport dairy products and farm produce from the hinterland to markets.
All this will be costly . To expand, modernise and improve safety , the total bill could come to a staggering . 25 lakh crore, or $400 billion, over ` just the next 10 years. Currently , China invests $90 billion every year in its rail system compared to our paltry $10 billion. All those funds may not come from commuters and other users. Central and state governments must pool their resources for suburban and metro networks.
Private enterprise and investment, including foreign capital, have to be wooed to develop the more viable projects and routes. By conceding that fares need to be raised periodically to keep operations viable, the NDA government would be sending a positive signal to potential developers and investors. Otherwise, there will be serious reservations about the viability of railways, and private capital may opt to stay away .
While in its honeymoon period, the Modi sarkar should take some more unpopular but necessary decisions, and reduce the huge subsidies on energy , fertiliser and food. Continuing with these at high levels is unsustainable and they have caused severe distortions in the economy . These measures have caused overconsumption, shortages, inflation and a huge misallocation of resources. They have caused more harm than good for the intended recipients.
The writer is a former secretary, commerce and industry ministry
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