अच्छे दिन आयो रे भाया,तेल आग में झुलसो रे भाया।रेल सफर हुआ रे महंगा ,बेसरकारीकरण भी तेज। बाकी बजट बाकी है भाया।
সুদিন এসে গেল ভায়া,সারা দেশ মুদিখানা
বাড়িয়ে দেওয়া হল রেলের ভাড়া
বিলগ্নিকরণের পথে কোল ইন্ডিয়া, সেল, এনএইচপিসি, হিন্দুস্তান কপার থেকে শুরু করে ইন্ডিয়ান ব্যাঙ্ক, ইউনাইটেড ব্যাঙ্ক অব ইন্ডিয়া, ইউকো ব্যাঙ্ক, সেন্ট্রাল ব্যাঙ্ক অব ইন্ডিয়া-র মতো রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থা ও সরকারি ব্যাঙ্ক!রাজ্যে এ বার পুরোপুরি ঝাঁপ বন্ধের মুখে টায়ার কর্পোরেশন!
Rail passenger fare hiked by 14.2 per cent.
एक्सकैलिबर स्टीवेंसे विश्वास
अच्छे दिन आयो रे भाया,तेल आग में झुलसो रे भाया।रेल सफर हुआ रे महंगा और बेसरकारीकरण भी तेज तेज।बाकी बजट बाकी है भाया।
भारत में तमाम मेधा संपन्न विशेषज्ञ लोग सिख नरसंहार के पीछे इंदिरा गांधी की तानाशाही और काग्रेसी दंगाइयों की भूमिका देखते हैं,उन्हें हासिल सक्रिय संघी समर्थन और तब भी केसरिया बहार की खिलखिलाहट नहीं देखते न हिंदू हितों की उदात्त घोषणा को याद करते हैं।अकाली तो बाकायदा सिखों का जनसंहार का प्रायश्चित संघ परिवार में शामिल होकर कर रहे हैं।इसीतरह भारत में आर्थिक सुधारों के नाम जनसंहारी राजसूय का मुख्य श्रेय नरसिम्हा राव और उनके वित्तमंत्री मनमोहन सिंह को दिया जाता है।कृपया सनद के लिए अटल शौरी गठित विनिवेश कौंसिल की रपट देख लें जिसमें साफ साफ लिक्खा है कि नरसिम्हा सरकार बेसरकारीकरण एजंडा को अंजाम नहीं दे सकी और सिरे से सुधारों में फेल है।
अजीब संजोग है कि नमोसुनामी से पहले जो राग वाशिंगटन से अलापा जा रहा था,उसीमें नमो राज्याभिषेक का स्थाईभाव रहा है,जिसकी पृष्ठभूमि में मनमोहिनी नीति विकलांगकता का वसंत विलाप है बेहद कोलाहलमय। जनादेश सरकार कम,राजकाज ज्यादा के नारे के हक में हुआ।
तो अब नीति विकलागकता जादुगरी की तरह गायब है।राजकाज की तेजी का नजारा यह है कि मध्यपूर्व में तेलकुंओं में आग लगते ही सुहाग रात में ही बिल्ली का वध कर दिया गया।एको दिन गवाँया नहीं।बिना बजट फिर रेलभाड़ा में वृद्धि।सरकारी उपक्रमों के बेसरकारीकरण और रेलवे में भी शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।सचमुच अच्छे दिन आ गये हैं।जबकि रेलमंत्री ने कल ही कहा था, यात्री किराया और माल भाड़ा बढ़ाने पर अगले हफ्ते तक फैसला हो जाएगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि रेलवे आर्थिक तंगी से जूझ रही है। पूंजी जुटाने के लिए यात्री किराये और माल भाड़े में वृद्धि पर प्रस्ताव लंबित है। राजनीतिक संवेदनशीलता के मद्देनजर इस पर प्रधानमंत्री से चर्चा के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।
तेलकुंओं की आग ने नीति निर्धारण को त्वरा दी है ,जाहिर है।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आई सरकार ने सावर्जनिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश का चक्का फिर से घूमाने की तैयारी कर ली है। बाजार नियामक सेबी ने सरकार के विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने और निवेशकों को बाजार से फायदा उठाने के लिए नया नियम पेश किया है। इस नियम के तहत सरकार को 3 साल के भीतर सावर्जनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी करनी होगी। आइये देखते है किन कंपनियों में सरकार को अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ेगी।
कंपनी | सरकार की हिस्सेदारी (फीसदी में) | शेयर की कीमत (रु. में) |
एनएमडीसी | 80 | 174.40 |
एमएमटीसी | 90 | 98.10 |
कोल इंडिया | 89.65 | 391.10 |
सेल | 80.01 | 96.05 |
यूको बैंक | 77.80 | 101.75 |
नाल्को | 81.06 | 56.25 |
एमओआईएल | 80 | 321.70 |
नेवेली लिग्नाइट | 90 | 98.70 |
एचएमटी | 90 | 48.90 |
माना जा रहा है कि टेबल में दी गई इन कंपनियों के अलावा, सरकार हिंदुस्तान जिंक, बाल्को, टेहरी हाइड्रो डेवलेपमेंट लिमिटेड और सुरक्षा कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड में भी विनिवेश किया जा सकता है। अकेले हिंदुस्तान जिंक, बाल्को और कोल इंडिया में विनिवेश करने से सरकार को 45,000 से 50,000 करोड़ रुपए मिल सकते हैं। प्राइम डेटाबेस के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक पृथ्वी हल्दिया ने कहा है कि पीएसयू की शेयर बिक्री में अगर नई सरकार भी खुदरा निवेशकों को 10 फीसदी अतिरिक्त छूट की पेशकश करेगी तो वे बड़े पैमाने पर निवेश कर सकते हैं।
अटल शौरी राजग राजकाज जमाने में निजी कंपनियों के कर्णधारों की विनिवेश कौंसिल की रपट मुताबिक अधूरा विनिवेश का कार्यक्रम पूरा किया जाना सर्वोच्च प्राथमिकता है।अरबों डालर की निजी परियोजनाओं और अबाध कालाधन प्रवाह वित्तीय सशक्तीकरण के तहत पर्यावरण कानून,भूमि अधिग्रहण कानून,खनन अधिनियम,समुद्रतट सुरक्षा कानून,वनाधिकार कानून,संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूचियों की धज्जियां उड़ाकर चालू हो ही रही हैं।इस पर तुर्रा यह कि पर्यावरण आंदोलन चलाने वाले ग्रीन पीस और दूसरे एनजीओ की नकेल कस दी गयी है।सारी परियोजनाएं अब पोलावरम है,जिसके विरुद्ध कहीं शोर शराबा करने की भी कोई इजाजत नहीं होगी।जनपक्षधरता सीधे राष्ट्रद्रोह का पर्याय होगा।शरारती तत्वों से निपटने के लिए सशस्त्र बलों से भी ज्यादा सक्रिय है बजरंगी,रामसैनिक और दुर्गाएं।
बांग्लादेश में रातोंरात गैस सिलिंडर की कीमत बारह सौ रुपये महंगी हो गयी,जहां दो रुपये डालर हिसाब से अंबानी गैस देते हैं।अब भारत में अंबानी राज है और मध्य एशिया केतेलकुंओं में आग लगी है।जाते जाते रिलायंस की पूर्ववर्ती सरकार ने गैस कीमतों में पिछले अप्रैल से ही दोगुणी बढ़ोतरी का फैसला कर लिया था,जिसपर अरविंद केजरीवाल ने हंगामा खूब बरपाया,किया कुछ नहीं,लेकिन बाकी रंग बिरंगी राजनीति की क्या बिसात कि कारपोरेट फंडिंग के खिलाफ जाकर रिलायंसविरुद्धे आवाज भी बुलंद कर सकें,आंदोलन और प्रतिरोध तो भूल ही जाइये।
आधार बायोमैट्रिक योजना का आधार नागरिकता संशोधन कानून है जो कांग्रेस वाम राजग का संयुक्त उपक्रम रहा है वैसे ही जैसे आधार निराधार।वह चालू है और सब्सिडी तेलकुओं की आग में स्वाहा।मंहगाई घटाने का वादा था।तेल गैस की कीमतों में इजाफा,परिवहन व्यय में बिना बजट वृद्धि और सब्सिडी के खात्मे की त्रिकोणमिति के किस समीकरण में मंहगाई और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगेगा,समझ लो भाया।वित्तीय और मौद्रिक नीतियां तो रेटिंग एजेंसियां और कारपोरेट लाबिइंग तय कर रही है।समाजवादी माडल के अवशेष योजना आयोग से भी निजात पाने की तैयारी है।वित्तीय सुधारों की बहार आगे आगे है।नरेंद्र मोदी सरकार प्लानिंग कमिशन को खत्म कर सकती है, जिसके जिम्मे पूरे देश के लिए योजनाएं बनाने का काम होता है। इसका गठन 15 मार्च 1950 को हुआ था, तब से यह देश की प्लानिंग्स को अंतिम दिशा देता रहा है। सूत्रों के अनुसार इस बारे में सरकार के लेवल पर सहमति हो चुकी है और जल्द ही एक आदेश जारी किया जा सकता है। यूपीए सरकार के हटने के बाद इसके सभी सदस्य पहले ही रिजाइन दे चुके हैं। प्लानिंग कमिशन के चेयरमैन प्रधानमंत्री होते हैं और वही मेंबरों के साथ-साथ वाइस चेयरमैन की नियुक्ति भी करते हैं।
अच्छे दिन आ गये हैं क्योंकि मीडिया,रक्षा जैसे अतिसंवेदनशील सेक्टरों के बाद खुदरा बाजार तक पहुंचने से पहले रेलवे में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो गया है।सेबी ने विनिवेश का रोडमैप पर हाईवे भी तामीर कर दी है। अब खुश हो जाइये कि रेलवे सफर का बोझ जो बर्दाश्त नहीं कर सकते ,ऐसे भारतीय जन गण बुलेड ट्रेन के बजरंगी हो जायेंगे क्योकि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की पटरियों पर दौराने का रास्ता साफ किया जा रहा है। सरकार ने रेलवे में कुछ क्षेत्रों में 100 फीसदी एफडीआई की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। वित्तीय संकट से जूझ रही रेलवे को आधुनिक रूप देने, मजबूत बनाने और इसके विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की जरूरत है। एफडीआई से सरकार की सेमी हाई स्पीड ट्रेन चलाने का सपना भी साकार हो जाएगा।
आंकड़े भी दुरुस्त हैं।आर्थिक मोर्चे पर अच्छे दिनों की आहट मिलने लगी है। अर्थव्यवस्था पांच प्रतिशत से नीचे के स्तर से ऊपर उठकर अब तेज विकास की पटरी पर दौड़ने के लिए तैयार है। विश्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष 2014-15 में भारत की आर्थिक विकास दर 5.5 प्रतिशत रहेगी। इसके बाद अगले वित्त वर्ष में 6.3 और 2016-17 में विकास दर बढ़कर 6.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। विश्व बैंक ने ये अनुमान शुक्रवार को जारी अपनी रिपोर्ट वैश्विक आर्थिक परिदृश्य-2014 में पेश किए हैं। विश्व बैंक के इन अनुमानों की अहमियत इसलिए है, क्योंकि बीते दो साल- 2012-13 और 2013-14 में विकास दर 4.5 व 4.7 प्रतिशत रही है। लेकिन शेयर बाजारों में आज लगातार तीसरे दिन गिरावट का सिलसिला जारी रहा और सेंसेक्स व निफ्टी दो सप्ताह के निचले स्तर पर बंद हुए। इराक संकट तथा कमजोर मानसून की आशंका से बाजार धारणा प्रभावित हुई।
अच्छे दिन आ गये हैं क्योंकि सांसदों,मंत्रियों और विधायकों के अलावा भारी पैमाने पर देश में करोड़पतियों की कूकूरमुत्ता पैदाइश जारी है।इस करोड़पति तबके के आगे आम जनता की क्या औकात है।बहरहाल,भारत में करोड़पतियों (मिलेनियर) की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, पिछले एक साल में 3,000 नए करोड़पति बने और अब देश में कुल करोड़पतियों की संख्या बढ़कर 1.56 लाख हो गई है। हालांकि अब भी इस मामले में दुनिया के टॉप-10 देशों में भारत शुमार नहीं है। वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट 2014 में यह निष्कर्ष निकाला गया है जिसे कैपजेमिनी और आरबीसी वेल्थ मैनेजमेंट ने जारी किया है। इसके अनुसार भारत में करोड़पतियों की संख्या 2012 में 1,53,000 थी जो 2013 में बढ़कर 1,56,000 हो गई. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में सबसे धनाढ्य लोगों के देशों में भारत अब 16वें स्थान पर है।
अभी तो रेल भाड़ा बढ़ा है।आगे तेल देखिये और तेल की धार भी।इराक में गहराते संकट से कच्च तेल की कीमतें अब खौलने लगी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल साल के उच्चतम स्तर 115 डॉलर प्रति बैरल की कीमत पर बिक रहा है। लेकिन राहत की बात यह है कि साउदी अरब ने इराक से पैदा हुई आपूर्ति को पूरा करने का भरोसा जताया है। साउदी अरब ओपेक का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है।इससे पहले अमेरिका के सैन्य कार्यवाही न करने के बयान की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में ताजा तेजी देखने को मिल रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल साल के उच्चतम स्तर 115 डॉलर प्रति बैरल की कीमत पर बिक रहा है। घरेलू बाजार में कीमतें 6426 रुपए के करीब है। जानकारों के मुताबिक, कीमतें अब 120 डॉलर के भी पार जा सकती हैं। इराक के प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी को शुक्रवार को सुन्नी अरब अल्पसंख्यक समुदाय को मनाने में उनकी शिया नीत सरकार की विफलता पर तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उधर उत्तरी शहर ताल अफार के लिए संघर्ष शुक्रवार को छठे दिन भी जारी रहा। इराक में शिया समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरू आयतुल्ला अली अल-सिस्तानी ने चेतावनी दी कि हमले करने वाले जिहादियों से निपटने के लिए समय निकला जा रहा है। सुन्नी अरब उग्रवादियों ने उत्तरी और उत्तर-मध्य इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है।
रेल भाड़े में बढ़ोतरी की खबर को शेयर बाजार के नजरिये से देखें तो सबसे ज्यादा असर ऐसी कंपनियों पर पड़ेगा जिनका कारोबार प्रत्यक्ष या अपत्यक्ष रुप से रेलवे पर निर्भर होता है। मसलन, सीमेंट, कोरियर और रेलवे इंफा से जुड़ी कंपनियों पर इसका असर पड़ेगा।इससे भी रिलायंस होगा मालामाल।रिलायंस इंफ्रा, बीईएमएल, टीटागण वैगन और कालिंदी रेल जैसी कंपनियों पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। इसके पीछे का कारण यह है कि रेलवे की आय बढ़ने के बाद सरकार इंफ्रा से जुड़े प्रोजेक्ट पर ज्यादा खर्च कर सकेगी।यात्री रेल किराया 14.2 फीसदी तक बढ़ा दिया गया है। सीधी भाषा में समझें तो 100 रुपए के टिकट के लिए आने वाले दिनों में आपको 115 रुपए खर्चने होंगे। माल भाड़ा भी 6.50 फीसदी बढ़ा दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, किराये में फ्यूल एडटस्टमेंट चार्ज शामिल किया गया है जिसकी वजह से रेल किराया बढ़ाया गया है।
नमोमय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पहला बड़ा फैसला लेते हुए सभी श्रेणियों के यात्री किराये में 14.2 प्रतिशत और मालभाड़े में 6.5 फीसदी की भारी बढ़ोत्तरी कर दी है। सरकार के इस निर्णय से ट्रेन का सफर महंगा होने के साथ बेकाबू होती महंगाई और भड़केगी। रेल मंत्री सदानंद गौड़ा का कहना है कि यात्री किराये व मालभाड़े में बढ़ोत्तरी यूपीए सरकार के समय से प्रस्तावित है। 16 मई को पूर्व रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसके आदेश जारी कर दिए थे। लेकिन देर शाम को बढ़े हुए यात्री किराये व मालभाड़े को वापस ले लिया गया। यूपीए सरकार के इस आदेश को अब नई सरकार ने लागू किया गया है।
रेल मंत्रालय ने माल भाड़े में 6.50 फीसदी का भारी इजाफा किया है। सरकारी दलील है कि मौजूदा समय में रेलवे को पैसेंजर सब्सिडी के चलते 26,000 करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है। रेलवे में सुधार के लिए उसके पास वित्तीय स्रोतों की कमी है। माना जा रहा है कि यात्री किराया और रेल भाड़ा बढ़ने से रेलवे को 8000 करोड़ रुपए की कमाई होगी।
बहरहाल,अच्छे दिन के सपने को जिंदा रखने का करतब भी नायाब है कि महंगाई कम करने के उद्देश्य से सरकार ने सरकारी गोदामों में रखे चावल का 25 फीसदी हिस्सा सब्सिडी रेट पर बेचने का फैसला लिया है। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के मुताबिक सरकार के पास 21 लाख टन चावल का स्टॉक है। जिसमें से सरकार 5 लाख टन चावल खुले बाजार में बेचेगी। इससे आने वाले कुछ दिनों में चावल की कीमतों में कमजोरी आना तय है।
चावल की कीमतें इस महीने 2900 रुपए से 3200 रुपए क्विंटल के बीच में रह सकती हैं।हालांकि, लंबी अवधि में मानसून और बुआई के रकबे पर चावल की कीमतें निर्भर करेंगी।
दूसरी ओर,कार्मिक मंत्रालय की ओर से आज जारी की गई प्रेस रिलीज में कहा गया है, 'सरकार ने फैसला किया है कि कार्यालय का उच्चाधिकारी अपने रिटायर होने वाले कर्मचारी से अंडरटेकिंग ले लेगा और इस अंडरटेकिंग को पेंशन पेमेंट ऑर्डर (पीपीओ) के साथ उस बैंक में भेज देगा, जहां से उस कर्मचारी का पेंशन दिया जाना है।'
रिलीज में आगे कहा गया है, 'जैसे ही यह अंडरटेकिंग उसके पेंशन के डॉक्यूमेंट्स के साथ मिलेगी, वैसे ही बैंक को उसके खाते में पेंशन की राशि भेज देनी होगी।'
लेकिन हकीकत यह है कि कोयला, इस्पात, तेल और तमाम दूसरे कच्चे माल की ढुलाई रेल मार्ग से ही होती है। माल भाड़े में बढ़ोतरी से महंगाई दर में करीब 2 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। वहीं, विभिन्न सामन की कीमतों में 5-7 फीसदी से भी ज्यादा हो सकता है। माल भाड़े के बढ़ने के साथ ही महंगाई और बढ़ेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि माल भाड़े के बढ़ने का असर कैस्केडिंग होता है और अब हर वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे।
और भी बहाने है तबीयत हरे करने के।मसलन,भारतीयों का विदेशों में 2,000 अरब डॉलर (करीब 1,20,000 करोड़ रुपये) का कालाधन होने का दावा करते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने सरकार को इसकी स्वैच्छिक वापसी के लिए छह माह की माफी योजना पेश करने और उस पर 40 फीसदी की दर से कर लगाने का सुझाव दिया है। एसोचैम की कानूनी मामलों की समिति के अध्यक्ष आरके हांडू ने कालेधन पर एसोचैम की अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए संवाददाताओं से कहा कि विदेशों में पड़े कालेधन को वापस लाने के लिए 'माफी योजना एक बेहतर और व्यावहारिक योजना है।'
सरकार की तरफ से रेल के माल भाड़े में बढ़ोतरी का सीधा असर देश की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर पड़ेगा। सरकार ने रेल भाड़े को 6.5 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पहले ही महंगाई की वजह से दबाव में है, अब ताजे फैसले से कच्चा माल एक से 2 फीसदी महंगा हो जाएगा।
कई सेक्टर्स पर पड़ेगा बोझ
कोल, इंजीनियरिंग, केमिकल, फर्टिलाइजर, यार्न-फाइबर, स्टील प्लांट से जुड़ा कच्चा माल, आयरन ओर पर सीधा असर पड़ना तय है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के डायरक्टर जनरल अजय सहाय ने बताया, "कच्चे माल के दाम जल्द बढ़ जाएंगे। सबसे ज्यादा असर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ेगा।"
फेडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (फिस्मे) के सेक्रट्री जनरल अनिल भारद्वाज ने बताया कि रेल भाड़ा बढ़ने से कोयले के दाम बढ़ जाएंगे। ईंधन के तौर पर कोयला इस्तेमाल करने वाले सेक्टर्स पर इसका असर पड़ेगा। आयरन ओर का इस्तेमाल करने वाली कास्टिंग और फोर्जिंग से जुड़ी 5 लाख यूनिट्स के लिए कच्चे माल के दाम बढ़ जाएंगे। वहीं, कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लिए सीमेंट महंगा हो जाएगा।
सीमेंट हुआ महंगा
माल भाड़े में इजाफा होने के साथ ही सीमेंट की कीमतों में इजाफा हो गए हैं। श्री सीमेंट ने एक बयान जारी कर कहा है कि माल भाड़े में बढ़ोतरी होने से सीमेंट की कीमत 8 रुपए प्रति बोरी बढ़ा दी गई है।
स्टील और कोयले के दाम भी बढ़ेंगे
स्टील मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के मुताबिक, माल भाड़े में बढ़ोतरी होने से कच्चे माल की लागत बढ़ जाएगी। आने वाले दिनों में आयरन ओर के दाम बढ़ सकते हैं। वहीं, कोयले की किल्लत का सामना पहले से बिजली कंपनियां झेल रही हैं। खनन से पावर प्लांट तक कोयला पहुंचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। माल भाड़ा बढ़ने से कोयले के दाम में इजाफा होना भी पक्का माना जा रहा है।
अब डीजल-पेट्रोल की बारी
रेलवे के माल भाड़े में इजाफा होने के बाद अब सरकार डीजल और पेट्रोल की कीमत को बढ़ाने का फैलसा भी जल्द कर सकती है। इराक में जारी संकट के चलते कच्चे तेल के दाम बढ़ सकते हैं जिसका असर हमारे देश पर भी पड़ेगा। यानी आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल और महंगे हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इराक संकट के कारण भारत में पेट्रोल के दाम में दो रुपए तक की बढ़ोतरी संभव है।
বিলগ্নিকরণের পথে কোল ইন্ডিয়া, সেল, এনএইচপিসি, হিন্দুস্তান কপার থেকে শুরু করে ইন্ডিয়ান ব্যাঙ্ক, ইউনাইটেড ব্যাঙ্ক অব ইন্ডিয়া, ইউকো ব্যাঙ্ক, সেন্ট্রাল ব্যাঙ্ক অব ইন্ডিয়া-র মতো রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থা ও সরকারি ব্যাঙ্ক!রাজ্যে এ বার পুরোপুরি ঝাঁপ বন্ধের মুখে টায়ার কর্পোরেশন!
এই সময় ডিজিটাল ডেস্ক: অবশেষে নরেন্দ্র মোদী সরকারের সিদ্ধান্তেই সিলমোহর পড়ল। বাজেটের আগেই বাড়িয়ে দেওয়া হল রেলের ভাড়া। এই নতুন ভাড়া লাগু হবে ২৫ জুন থেকে। নতুন নিয়ম অনুযায়ী যাত্রী ভাড়া বাড়ানো হল ১৪.২ শতাংশ। অন্যদিকে পণ্যমাশুল বাড়ানো হল ৬.৫ শতাংশ।
মুমূর্ষু রেলকে বাঁচাতে রেলভাড়া বাড়ানোর পথে হাঁটলেন রেলমন্ত্রী সদানন্দ গৌড়া৷ আগেই ইকনমিক টাইমস-এ দেওয়া সাক্ষাত্কারে রেলমন্ত্রী বলেছিলেন, 'ভাড়া অবশ্যই বাড়বে, সেটা সময়ের প্রয়োজনেই৷ পরিস্থিতির চাপে আমাকে রেলের জন্য কিছু একটা করতেই হবে৷ আমি টাকার ব্যাপারে অর্থমন্ত্রকের সঙ্গে কথা বলব৷' অন্তর্বর্তী বাজেটে মল্লিকার্জুন খাড়গে ৫ শতাংশ মাসুল ও ১০ শতাংশ ভাড়া বাড়ানোর প্রস্তাব করেছিলেন৷ তিনি পরিবর্তিত ভাড়ার কথাও বলেছিলেন৷ কিন্ত্ত কার্যকর করেননি৷
রেলমন্ত্রীর প্রস্তাব হল, পাঁচ থেকে দশ শতাংশ হারে ভাড়া বাড়ুক৷ পণ্য মাসুল বাড়ুক পাঁচ শতাংশ৷ কিন্ত্ত সাধারণ দ্বিতীয় শ্রেণি ও স্লিপার ক্লাসের ভাড়া বাড়ানো নিয়ে প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদীর সামান্য হলেও আপত্তি রয়েছে৷ তাই এই দুই শ্রেণির ভাড়া তুলনায় কম বাড়তে পারে৷ এ ছাড়া যাত্রী নিরাপত্তার জন্য একটা তহবিল তৈরি করতে চান নতুন রেলমন্ত্রী৷ সেই তহবিলের জন্যও সেস বসিয়ে অর্থ জোগাড় করতে চান তিনি৷ বিষয়টি নিয়ে অর্থমন্ত্রী ও প্রধানমন্ত্রীর সঙ্গে আলোচনায় বসবেন৷ সেখানেই বিষয়টি চূড়ান্ত হবে৷
ভাড়া ও মাসুল ছাড়া রেলের আয়ের রাস্তা খুব একটা নেই৷ এই অবস্থাতেও সুরক্ষা, নিরাপত্তা ও পরিষেবার উপরেই জোর দেওয়া হচ্ছে বাজেটে৷ দুর্ঘটনা রোধে সিগনালিং সিস্টেম ও ট্র্যাক পরিবর্তন পদ্ধতি আরও উন্নত করতে বিপুল বিনিয়োগ করতে চায় রেল৷ কিন্ত্ত রেলের হাতে অত টাকা নেই৷ টাকার অভাবে রেলে যে পরিমাণ প্রকল্প পড়ে রয়েছে তা শেষ হতে ৪০-৫০ পর্যন্ত লেগে যেতে পারে বলে মনে করেন গৌড়া৷ কারণ কোনও একটা প্রকল্পের জন্য খরচ হবে ১,০০০ কোটি টাকা, কিন্ত্ত বরাদ্দ হয়েছে বড়জোর ১০-১৫ কোটি৷
দিন কয়েক আগে প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদী জানিয়েছিলেন, অর্থনীতির স্বার্থে তাঁকে কিছু কড়া সিদ্ধান্ত নিতে হবে৷ সরকারি সূত্রের খবর, দ্বিতীয় কড়া সিদ্ধান্ত হতে পারে, রান্নার গ্যাসের দাম বাড়ানো৷ আর ইরাক সমস্যা চলতে থাকলে আন্তর্জাতিক বাজারে অশোধিত তেলের দাম বাড়বে৷ তখন পেট্রোল ও ডিজেলের দাম বাড়ানো ছাড়াও কোনও উপায় থাকবে না৷ প্রধানমন্ত্রী বলেছিলেন, তাঁর সরকারের সবথেকে বড় চ্যালেঞ্জ হল, জিনিসের দাম কমানো৷ কিন্ত্ত বর্তমানে মুদ্রাস্ফীতির পরিমাণ গত পাঁচ মাসের মধ্যে সবথেকে বেশি৷ তার উপর পণ্য মাসুল বাড়ানো হলে অবধারিত ভাবেই জিনিসের দাম বাড়বে৷ ডিজেলের দাম বাড়ানো হলে তার প্রভাব বাজারে পড়বেই৷ রান্নার গ্যাসের দাম বাড়ানোর অর্থ হল মধ্যবিত্তের পকেটে টান পড়া৷ ফলে এই তিনটি কড়া সিদ্ধান্ত নেওয়া হলে 'ফিল গুড' কিছুটা হলেও কমতে বাধ্য৷
রেলমন্ত্রী গৌড়া বাজেটের আগেই ট্রেনের টিকিটের দাম ও পণ্য মাসুল বাড়াতে চান৷ রেলে উচ্চশ্রেণিতে ভাড়া বাড়িয়ে খুব বেশি বাড়তি টাকা পাওয়া যায় না৷ ২০১৩-১৪ সালে উচ্চশ্রেণি থেকে ভাড়া বাবদ আয় হয়েছিল ১১ হাজার ১৭৫ কোটি৷ আর দ্বিতীয় শ্রেণি থেকে ২৬ হাজার ৩২৪ কোটি৷ সে কারণেই দ্বিতীয় শ্রেণির ক্ষেত্রেও ভাড়া বাড়াতে চাইছেন রেলমন্ত্রী৷ ঘটনা হল, রেল ভাড়া ও পণ্যমাসুল বাড়ানোটা রেলের স্বাস্থ্যোদ্ধারের জন্য অত্যন্ত জরুরি, কিন্ত্ত তার একটা রাজনৈতিক প্রভাবও রয়েছে৷ রাজনৈতিক ভাবে এই সিদ্ধান্ত নেওয়ার অর্থ হল, মানুষের প্রত্যাশ্যায় আঘাত করা৷ কারণ, নতুন সরকার মূল্যবৃদ্ধিতে লাগাম পরাবে এটাই আমজনতার প্রত্যাশা৷ কিন্ত্ত পণ্য মাসুল বাড়ানোর অর্থ হল, জিনিসের দাম বেড়ে যাওয়া৷ কংগ্রেস তো এখন থেকেই বলতে শুরু করেছে, নির্বাচনী প্রচারে প্রতিশ্রুতি দেওয়া এক, বাস্তবে করে দেখানোটা আর এক৷ কংগ্রেসের সাধারণ সম্পাদক শাকিল আহমেদের বক্তব্য, 'মোদী বুঝিয়ে দিচ্ছেন, তিনি যা প্রচার করেন, তা তিনি পালন করেন না৷ ইউপিএ আমলে যখনই রেল ও পণ্য মাসুল বাড়ানো হত, তখনই তিনি সমালোচনা করতেন৷ ক্ষমতায় এসে পনেরো দিনের মধ্যেই সেই মোদীই রেলভাড়া বাড়াতে চাইছেন৷'
রাষ্ট্রপতির ভাষণে বলা হয়েছিল, এ বার পিপিপি মডেলে রেল চালানো হবে৷ রেলমন্ত্রীও ইঙ্গিত দিয়েছেন, নতুন যে রেল প্রকল্প হবে, তাতে বেসরকারি সংস্থার অনেক বেশি ভূমিকা থাকবে৷ আর রেল প্রকল্পের জন্য রাজ্য সরকারকেও খরচের অন্তত অর্ধেক টাকা দিতে হবে৷ রেলমন্ত্রী বলেন, 'ওড়িশা, কর্নাটক ও গোয়ার মুখ্যমন্ত্রীরা আমার সঙ্গে দেখা করেছেন৷ রেলের সঙ্গে কর্নাটক ও অন্ধ্রপ্রদেশ খরচ ভাগাভাগি করে নেয়৷ তারা বিনামূল্যে জমি দেয়, খরচেরও অর্ধেকটা বহন করে৷ আমি প্রতিটি রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রীকেই চিঠি দিয়েছি এবং অনুরোধ করেছি যাতে তাঁরা নিজের রাজ্যে রেলের প্রকল্প তৈরির খরচের একাংশ বহন করেন৷'
কয়লা মন্ত্রক এ ভাবে কয়লা পরিবহণের জন্য নতুন রেলপথ বানাতে রাজি হয়েছে৷ কর্নাটক সরকার আগে এই নীতি মেনেই কিছু প্রকল্পে রাজি হয়েছিল৷ এর বিকল্প হল, বেসরকারি সংস্থাকে একক বা যৌথ ভাবে রেল পরিচালনার সুযোগ দেওয়া৷ রেলের এতটাই অর্থাভাব যে, নতুন প্রকল্পে তাই এই ধরনের বিকল্প পথ নিতে হচ্ছে৷ ২০১৩-১৪ সালে সব মিলিয়ে রেলের আয় ছিল ১ লাখ ৪৪ হাজার ১৬৭ কোটি৷ আর কাজ চালানোর খরচ ছিল ১ লাখ ২৮ হাজার ৩৮৫ কোটি৷ তা হলে উন্নয়নের জন্য কত টাকা থাকছে? এত প্রকল্পের কাজ হবে কী করে? সে জন্যই বাড়তি আয়ের জন্য এতটা ব্যাকুল সদানন্দ গৌড়া৷
সাধারণ নির্বাচনের কথা মাথায় রেখে ফেব্রুয়ারি মাসে ভোট অন অ্যাকাউন্টে যাত্রীভাড়ায় কোনও পরিবর্তন করেনি ইউপিএ সরকার৷ অপ্রিয় সিদ্ধান্ত নেওয়ার ভার তারা পরবর্তী সরকারের জন্য রেখে যায়৷ শুধু তাই নয়, ১৬ মে শেষ দফা ভোট গ্রহণের দিন এক দফা ভাড়া বাড়ায় ইউপিএ সরকার৷ যাত্রীভাড়া ও মাসুল বাড়ানো হয় যথাক্রমে ১৪.২ শতাংশ ও ৬.৫ শতাংশ করে৷ ২০ মে থেকে তা চালু হবে বলে জানালেও বিজ্ঞপ্তি জারি করার দায়িত্ব পরবর্তী রেলমন্ত্রীর জন্য রেখে যায় তারা৷ অন্তত ৮,০০০ কোটি টাকা আয় বাড়াতেই গত মাসে ভাড়া বাড়ানোর সিদ্ধান্ত হয়৷ বর্তমানে শুধুমাত্র যাত্রী পরিবহণের দরুনই রেলকে ২৬,০০০ কোটি টাকা ভর্তুকি দিতে হয়৷
In an unpopular decision, railway passenger fare was today increased by 14.2 per cent in all classes while freight charge was hiked by 6.5 per cent with effect from today.
The decision of the Railways today restores an announcement of May 16, the day Lok Sabha election results came, when the same hike was effected but immediately put on hold.
The Railways had then issued a notification effecting hike in passenger fare by 14.2 per cent across the board and freight charges by 6.5 per cent from May 20. This was followed up with an official press release.
The May 16 fare hike decision, which had raised eyebrows as it came in the midst of Lok Sabha election results, led to a scurry of activities in Rail Bhawan on that day and the Railway Board went into a huddle to discuss its fallout.
Soon after, the red-faced Railway Ministry had put the decision on hold, saying the matter related to the revision will be left to the next government.
The then Railway Minister Mallikarjun Kharge came out with a statement directing the Board to leave the decision on the hike to the new government.
"It is now informed that under the directions of the Minister of Railways Mallikarjun Kharge, the decision on the proposed hike in the freight charges and passenger fares have been kept pended till further advice for placing this proposal before the new government," the statement said.
A fresh notification was issued later, stating that the "revision of fares with effect from May 20 should be pended till further advice."
From India News Network (INN)
New Delhi, June 20: The Polit Bureau of the Communist Party of India (Marxist) has issued the following statement:
The Polit Bureau of the CPI(M) strongly condemns the unprecedented hike in railway fares by the Modi Government to the extent of 14.2 per cent in all classes and that in freight charges of 6.5 per cent.
This is a cruel blow to the working people who have been victims of relentless price hikes in the years of Congress misrule. Instead of bringing them some relief as promised in his election campaign, the Modi Government has put a huge burden on the mass of people who use the Indian railways. The increase in freight rates will have a cascading impact on prices of essential commodities which are transported by rail across the country.
The Government has taken such an anti-people step behind the back of Parliament. The railway budget is to be presented in a few days. Earlier the BJP used to condemn pre-budget hikes of the UPA government as anti-democratic. The Modi Government has followed the same path.
The Polit Bureau of the CPI(M) strongly condemns the price hikes and demands their reversal. It calls upon all its Party units and people to protest the hikes.
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এন জি ও 'গ্রিনপিস'র জন্য বিদেশ থেকে অনুদান পৌঁছালে তা জানাতে হবে কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্র মন্ত্রককে। টাকা দেওয়ার আগে অনুমতি নিতে হবে মন্ত্রকের। বৃহস্পতিবার রিজার্ভ ব্যাঙ্কের কাছে এই মর্মে নির্দেশ পাঠালো কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্রমন্ত্রক। গত সপ্তাহে এন জি ও 'গ্রিনপিস ইন্ডিয়া'র কাজে প্রশ্ন তুলে প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদী এবং স্বরাষ্ট্রমন্ত্রককে রিপোর্ট জমা দেয় কেন্দ্রীয় গোয়েন্দা দপ্তর আই বি। আই বি'র মূল বক্তব্য, কয়লাখনি, পরমাণু বিদ্যুৎ প্রকল্প বা জিন প্রযুক্তিসম্পন্ন খাদ্যের বিরোধিতা করছে এই এন জি ও। পরিবেশ রক্ষার কথা তুলে এই সংগঠনের ভূমিকায় আর্থিক বৃদ্ধি ক্ষতিগ্রস্ত হচ্ছে। বিদেশের দু'টি সংস্থা, 'গ্রিনপিস ইন্টারন্যাশনাল' এবং 'ক্লাইমেট ওয়ার্কস ফাউন্ডেশন'র পাঠানো টাকায় বিশেষভাবে নিষেধ চাপিয়েছে কেন্দ্র।
এদিন 'গ্রিনপিস ইন্ডিয়া'র তরফে আই বি'র রিপোর্টের বিরোধিতা করা হয়েছে। বলা হয়েছে, কেবল বিদেশের পাঠানো অর্থের উপর নির্ভরশীল নয় তাদের সংগঠন। পরিবেশবিধি অগ্রাহ্য করে দ্রুত প্রকল্পের ছাড়পত্র দিতে প্রতিবাদ বন্ধ করার রাস্তায় হাঁটছে ভারত সরকার।
কমপক্ষে মোট ২৫% শেয়ার ছাড়তে হবে রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাকে
নিজস্ব সংবাদদাতা
নয়াদিল্লি, ২০ জুন, ২০১৪, ০১:০৬:২১
কোল ইন্ডিয়া, সেল, এনএইচপিসি, হিন্দুস্তান কপার থেকে শুরু করে ইন্ডিয়ান ব্যাঙ্ক, ইউনাইটেড ব্যাঙ্ক অব ইন্ডিয়া, ইউকো ব্যাঙ্ক, সেন্ট্রাল ব্যাঙ্ক অব ইন্ডিয়া-র মতো রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থা ও সরকারি ব্যাঙ্কের ক্ষেত্রে এ বার বাজারের হাতে থাকা মোট শেয়ারের পরিমাণ অন্তত ২৫% হতে চলেছে। তার কারণ, আজ বাজার নিয়ন্ত্রক সিকিউরিটিজ অ্যান্ড এক্সচেঞ্জ বোর্ড অব ইন্ডিয়া (সেবি) নথিভুক্ত রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলির শেয়ার মালিকানা নিয়ে এই সিদ্ধান্তই নিয়েছে। অর্থাৎ কেন্দ্রীয় সরকার নিজের হাতে ৭৫ শতাংশের বেশি শেয়ারের মালিকানা রাখতে পারবে না। যে-সব রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থায় কেন্দ্রের বাড়তি মালিকানা রয়েছে, তিন বছরের মধ্যে সেগুলির বিলগ্নিকরণ সেরে ফেলতে হবে।
এই সিদ্ধান্তের জেরে বাজারে নথিভুক্ত সংস্থার ক্ষেত্রে রাষ্ট্রায়ত্ত ও বেসরকারি সংস্থার মধ্যে বৈষম্যের জমানায় ইতি টানল সেবি। এর ফলে নথিবদ্ধ সব রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাকেও বেসরকারি সংস্থার ধাঁচেই কমপক্ষে মোট ২৫% শেয়ার ছাড়তে হবে বাজারে। অর্থাৎ, সংস্থাটির রাশ যার হাতেই থাকুক না কেন, সকলের জন্য একই নিয়ম খাটবে। এত দিন রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাকে কমপক্ষে ১০% শেয়ার বাজারে ছাড়লেই চলত। সেবি চেয়ারম্যান ইউ কে সিংহ জানান, আর্থিক সংস্কারের ক্ষেত্রে এটি অত্যন্ত গুরুত্বপূণর্র্ পদক্ষেপ।
প্রসঙ্গত, মারুতি উদ্যোগ, বালকো, ভিএসএনএল থেকে শুরু করে হিন্দুস্তান জিঙ্কের মতো একের পর এক রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থার বিলগ্নিকরণ করে সাফল্য পেয়েছিল পূর্বতন বাজপেয়ী সরকার। বাজপেয়ীর প্রথম বিলগ্নিকরণ মন্ত্রী অরুণ জেটলি নরেন্দ্র মোদীর জমানায় অর্থ মন্ত্রকের দায়িত্ব পাওয়ায় শেয়ার বাজারে আশা তৈরি হয়, এ বার বেশ কিছু রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থা বিলগ্নিকরণের পথে হাঁটবে। রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থার শেয়ারের দামও বাড়তে থাকে। সেই আশাকেই আজ আরও উসকে দিয়েছে সেবি।
এ প্রসঙ্গে অর্থ মন্ত্রকের এক শীর্ষকর্তা বলেন, "সেবি-র নির্দেশ মেনে ৩৮টি রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থার বিলগ্নিকরণ খাতে কেন্দ্রীয় কোষাগারে ৬০ হাজার কোটি টাকা আসতে পারে।" আরও বেশি রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থার শেয়ার বাজারে এলে যে-সব সাধারণ মানুষ বেশি ঝুঁকি না-নিয়ে শেয়ারে লগ্নি করতে চান, তাঁরাও আগ্রহী হবেন বলে অর্থনীতিবিদরা মনে করছেন। বাজারে লগ্নিকারীদের মধ্যে এই অংশটা মাত্র ১%। তবে রাষ্ট্রায়ত্ত শেয়ার বাজারে থাকলে আরও বেশি সাধারণ মানুষ শেয়ার বাজারমুখী হবেন। অর্থনীতিবিদদের ধারণা, সেবি-ও সেই লক্ষ্য নিয়েই এই সিদ্ধান্ত নিয়েছে।
বিজেপি নেতাদের একাংশ আবার বলছেন, বাজপেয়ী জমানায় বিলগ্নিকরণ মন্ত্রী হিসেবে কাজ শুরু করেন বলেই জেটলি অর্থমন্ত্রী হিসেবে সমস্ত রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থার বিলগ্নিকরণ করে ফেলবেন, তা না-ও হতে পারে। কারণ নরেন্দ্র মোদী গুজরাতে বরাবরই রুগ্ণ সরকারি সংস্থার বেসরকারিকরণের বদলে সেগুলির দক্ষতা বাড়ানোর চেষ্টা করেছেন। অন্যান্য রাজ্য যখন বিদ্যুৎ বণ্টন সংস্থার বেসরকারি- করণ করেছে, তখন মোদী গুজরাতে ওই সংস্থাকে লাভজনক করে তোলেন।
সে কথা মাথায় রেখেই এয়ার ইন্ডিয়া ও কোল ইন্ডিয়া-র ক্ষেত্রে মোদী সরকার কী সিদ্ধান্ত নেয়, সে দিকে তাকিয়ে অর্থনীতিবিদ ও লগ্নিকারীরা। বহু বছর ধরে লাভের মুখ না-দেখায় এয়ার ইন্ডিয়ার ঋণ হাজার হাজার কোটি টাকা ছাড়িয়েছে। উল্টো দিকে বিদ্যুৎ উৎপাদনের চাহিদা অনুযায়ী কয়লা জোগাতে ব্যর্থ কোল ইন্ডিয়া। মোদী সরকারের অন্দর মহলে অনেকেই মনে করছেন, এয়ার ইন্ডিয়ার বেসরকারিকরণ হলেও কোল ইন্ডিয়াকে টুকরো টুকরো করে ভেঙে কয়লা উৎপাদন ও জোগানে দক্ষতা বাড়ানোর চেষ্টা হতে পারে।
ইউপিএ জমানায় মন্দার জেরে শেয়ার বাজারেরও করুণ অবস্থা ছিল। ফলে বিলগ্নিকরণের লক্ষ্য পূরণ হয়নি। কোনও ক্ষেত্রে আবার বাজারে শেয়ার ছেড়েও ক্রেতা না-মেলায় অন্য রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাকে দিয়ে তা কেনাতে হয়েছে। অর্থ মন্ত্রকের একটি সূত্রের বক্তব্য, "জেটলি চলতি ২০১৪-'১৫ অর্থবর্ষে বিলগ্নিকরণের ক্ষেত্রে ৩৭ হাজার কোটি টাকার লক্ষ্যমাত্রা নিতে পারেন। লোকসভা ভোটের আগে অন্তর্বর্তী বাজেটে বিদায়ী অর্থমন্ত্রী পি চিদম্বরমের রূপরেখাও তেমনই ছিল।" অপ্রত্যাশিত লক্ষ্যমাত্রা না-নিলেও জেটলি বিলগ্নিকরণের লক্ষ্য পূরণে সফল হবেন বলেই অর্থ মন্ত্রকের কর্তাদের আশা।
পাশাপাশি, নতুন ইস্যুর বাজারকে চাঙ্গা করতে এবং সাধারণ লগ্নিকারীদের সুরক্ষিত রাখতে এ দিন আরও একগুচ্ছ ব্যবস্থার কথা ঘোষণা করেছে সেবি।
রাজ্যে গুটিয়ে যাওয়ার মুখে টায়ার কর্পোরেশন
প্রজ্ঞানন্দ চৌধুরী
কলকাতা, ১৮ জুন, ২০১৪, ০২:৫৭:৪৬
রাজ্যে এ বার পুরোপুরি ঝাঁপ বন্ধের মুখে টায়ার কর্পোরেশন।
১৯০ কোটি টাকা সম্পদের এই কেন্দ্রীয় সরকারি সংস্থাকে পাওনাদারদের ৮ কোটি টাকা না-মেটানোর দায়ে সম্প্রতি গুটিয়ে নেওয়ার নির্দেশ দিয়েছে কলকাতা হাইকোর্ট। এই পরিস্থিতিতে সংস্থাটিকে বাঁচাতে অবিলম্বে কেন্দ্রের হস্তক্ষেপ দাবি করেছেন সংস্থার কর্মী ও অফিসারেরা। দায় মেটানোর পরে সংস্থাটি বিলগ্নিকরণের প্রস্তাবও দিয়েছেন তাঁরা।
টায়ার তৈরির রুগ্ণ রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থা টায়ার কর্পোরেশনকে ২০০৭ সালে বিলগ্নিকরণের সিদ্ধান্ত নেয় তৎকালীন ইউপিএ সরকার। কিন্তু গড়িমসির কারণে সিদ্ধান্ত কার্যকর হয়নি। পাওনাদারদের অভিযোগক্রমেই গত ডিসেম্বরে কলকাতা হাইকোর্ট টায়ার কর্পোরেশন গুটিয়ে নেওয়ার নির্দেশ দেয়। কর্মী-অফিসারদের বক্তব্য, পাওনাদারেরা মাত্র ৮ কোটি টাকার মতো পাবেন। আর, কেন্দ্রের মূল্যায়ন অনুযায়ীই সংস্থাটির সম্পদের মোট মূল্য ১৯০ কোটি টাকা।
এ দিকে সংস্থার মোট ১১২ জন কর্মী ও অফিসার গত দেড় বছর ধরে বেতন পাচ্ছেন না। যাঁরা অবসর নিয়েছেন, তাঁদের অনেকেই পাওনা-গণ্ডা হাতে পাননি। বকেয়া মিটিয়ে দেওয়ার জন্য কেন্দ্রের নতুন সরকারের কাছে আর্জি জানিয়েছেন সংস্থার কর্মী ও অফিসারেরা।
টায়ার কর্পোরেশন অফিসার্স অ্যাসোসিশনের কার্যকরী সভাপতি এবং তৃণমূল ট্রেড ইউনিয়ন কংগ্রেসের নেতা প্রমথেশ সেন বলেন, "আগের সরকার গড়িমসি করে সংস্থাটির সমস্যা মেটাতে কোনও ব্যবস্থা নেয়নি। কর্মীরা স্বেচ্ছাবসর নিতেও রাজি। কিন্তু তা নিয়েও সিদ্ধান্ত হয়নি। দেড় বছরের বকেয়া বেতন ও অবসরকালীন পাওনা-গণ্ডা মেটাতে দ্রুত ব্যবস্থা নিতে আর্জি জানিয়ে আমরা প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদীর কাছে চিঠি দিয়েছি।" সকলের প্রাপ্য মিটিয়ে সংস্থাটিকে বিলগ্নিকরণের দাবিও জানিয়েছে ইউনিয়ন।
অফিসার্স অ্যাসোসিয়েশনের সাধারণ সম্পাদক অনুপ হোমরায়ের অভিযোগ, "টায়ার কর্পোরেশন জাতীয় সম্পদ। কেন্দ্রের কাছে আমাদের দাবি, কর্মী-অফিসার ও পাওনাদারদের টাকা মিটিয়ে এর বিলগ্নিকরণের ব্যবস্থা করা হোক।"
আত্মহত্যাও এ বার বিমার আওতায়
এই সময় ডিজিটাল ডেস্ক: অগ্নিকাণ্ড থেকে গাড়ির টায়ার ফাটা পর্যন্ত অনেক বিষয়কেই বিমাযোগ্য বিষয়বস্তুর মধ্যে সামিল তো আগেই করা হয়েছে। এখন আত্মহত্যার চেষ্টা করলেও বিমা সংস্থা কভারেজ দিচ্ছে! অবাক লাগলেও এটাই ঘটনা।
সম্প্রতি ভারতীয় বিমা সংস্থাগুলি বিদেশে শিক্ষারত ছাত্রছাত্রীদের জন্য এমন সমস্ত বিষয়ে কভার দিচ্ছে যা শুনলে চোখ কপালে উঠবে! উদাহরণ দিলেই ব্যাপারটি পরিষ্কার হবে। অতিরিক্ত ড্রাগ বা অ্যালকোহলের জন্য রিহ্যাবিলিটেশনের খরচ, ক্যান্সার সনাক্ত করা, অঙ্গ প্রতিস্থাপন, খেলতে গিয়ে লাগা চোটের জন্য চিকিত্সা, সন্তানের জন্ম, ফিজিওথেরাপি, দুর্ঘটনা বা অসুস্থতার জন্য কোনও সেমেস্টারে পরীক্ষা না দিতে পারলে তার খরচ এমনকী আত্মহত্যার চেষ্টায় হাসপাতালে ভর্তি হলে তার খরচও বিমা সংস্থাগুলি বহন করবে। এখানেই শেষ নয়, গ্রেফতার হলে জামিনের খরচ, গর্ভপাতের মতো বিষয়ও স্থান পেয়েছে সেখানে।
তবে হঠাত্ সংস্থাগুলি এমন 'কল্পতরু' হওয়ার কারণ কি? ওয়াকিবহালমহল বলছেন, আগে বিদেশে পড়ার জন্য শিক্ষা প্রতিষ্ঠানগুলি যে যে বিষয়ে বিমা কভার চাইত, তা কেবল বিদেশি বিমা সংস্থাগুলিই দিতে পারত। আর এর জন্য অভিভাবকরা রীতিমতো ল্যাজেগোবরে হতেন। কারণ, বিদেশি সংস্থাগুলি যে পরিমাণ প্রিমিয়াম নিত, তা দিয়ে পড়ার খরচ অনেকেই সামলাতে পারতেন না। ২০১২ সালে যখন এর মাত্রা ছাড়াল, তখন ভারতীয় বিমা সংস্থাগুলি নড়চড়ে বসে। তারাও বিদেশি সংস্থাগুলির সঙ্গে পাল্লা দিয়ে আরও বিভিন্ন বিষয়ে বিমা কভার দেওয়া শুরু করে। এর জন্য বিদেশি সংস্থাগুলির মতো বিরাট অঙ্কের প্রিমিয়ামও দেওয়ার প্রয়োজন হচ্ছে না। ফলে, দিন দিন এই বিমার চাহিদা বাড়ছে। ২০১১ থেকে ২০১৪ সালের মধ্যে এর পরিমাণ ৩০ শতাংশ থেকে বেড়ে প্রায় ৬০ শতাংশে পৌঁছে গিয়েছে। ভারতে ব্যবসা করা যে কোনও জেনারেল ইনশিওরেন্স কোম্পানির সঙ্গে যোগাযোগ করলেই তারা এই তালিকা সোত্সাহে অভিভাবকদের কাছে মেলে ধরবেন।
আগে বিদেশে পড়তে গেলে, বাবা-মায়ের প্রধান চিন্তা ছিল ভালভাবে পড়াশোনা করে একটি ভাল চাকরি জোগাড় করা। এখন এর সঙ্গে আরও নানা বিষয়ও যে জুড়ে যেতে পারে তা বিলক্ষণ বুঝতে পারছেন তাঁরা। বিপদ-আপদ অনেক সময় ছেলেমেয়েরা নিজেরাই ডেকে আনছে, অনেক সময় আবার না বলে কয়েও এসে হাজির হচ্ছে। তাই বিদেশে পাড়ি দেওয়ার আগে 'দুগ্গা-দুগ্গা'র সঙ্গে 'জয় বিমা কোম্পানি'ও উচ্চারণ করছেন।
রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থায় সরকারি অংশীদারিত্ব ৭৫% করতে হবে
নয়াদিল্লি: শেয়ার বাজার নথিভুক্ত রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলিতে সরকারকে অংশীদারিত্ব আগামী তিন বছরের মধ্যে ৭৫ শতাংশে নামিয়ে আনতে হবে বলে সিদ্ধান্ত নিয়েছে শেয়ার বাজার নিয়ামক সংস্থা সেবির পরিচালন বোর্ড৷ বেসরকারি সংস্থাগুলির ক্ষেত্রে সেবি এই নিয়ম ইতিমধ্যেই কার্যকর করেছে৷ রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলির ক্ষেত্রেও একই নিয়ম কার্যকর হলে গোটা শেয়ার বাজারে নথিভুক্ত সব ধরণের সংস্থার জন্যই একটি নিয়ম প্রযোজ্য হবে
কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রক সেবির এই প্রস্তাব গ্রহণ করলে দেশের প্রায় ৩০টি রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থার তাদের শেয়ার বিক্রি করে সরকারের ৫০ হাজার কোটি টাকার বেশি আয় হতে পারে৷ সে ক্ষেত্রে ভারতের রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলির বিলগ্নিকরণের পথে আরও এক ধাপ এগোবে কেন্দ্রীয় সরকার৷ শেয়ার বাজারে আরও বেশি বিনিয়োগ টানতে বেশ কিছু সংস্কারমূলক পদক্ষেপ করেছে সেবির পরিচালন পর্ষদ৷ আর এই প্রস্তাব তার অন্যতম৷
শেয়ার বাজারের ঊর্ধমুখী গতির ফায়দা তুলতে বাজেটের পরেই রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলির শেয়ার বিক্রি করার জন্য কেন্দ্রীয় বিলগ্নিকরণ দপ্তরকে প্রস্ত্তত থাকতে বলেছে কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রক৷ অর্থমন্ত্রক সূত্রে পাওয়া খবর অনুযায়ী জুলাইয়ে পূর্ণাঙ্গ বাজেট পেশ করার সময় ২০১৪-১৫ অর্থবর্ষের অন্তবর্তী বাজেটে প্রস্তাবিত বিলগ্নিকরণ লক্ষ্যমাত্রা, ৩৬,৯২৫ কোটি টাকাতেই বজায় রাখবে মোদী-সরকার৷ শেয়ার বাজারের ঘনঘন ওঠানামার কারণে আগে যে রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলির শেয়ার বিক্রি করা হয়নি, সেগুলিকেই এখন বিক্রি করে মুনাফা তোলার কথা ভাবছে কেন্দ্রীয় সরকার৷ চলতি অর্থবর্ষে এখন পর্যন্ত ১৪.৫ শতাংশ বৃদ্ধির মুখ দেখেছে মুম্বই শেয়ার বাজার সূচক সেনসেক্স৷ অন্যদিকে, ১০ জুন রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলির শেয়ার সূচক (পিএসইউ ইনডেক্স) গত এক বছরের সর্বোচ্চ মাত্রা ৯,০৯১.০৪ পয়েন্ট ছুঁয়েছে৷ এমতাবস্থায়, সেবির নতুন প্রস্তাব গ্রহণে কোনও বাধাই থাকবে না কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রকের৷
গত সপ্তাহে কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রী অরুণ জেটলির সঙ্গে বৈঠকের পরে সেবির চেয়ারম্যান ইউকে সিনহা বলেন, 'শেয়ার বাজার তালিকাভুক্ত রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থায় সাধারণ মানুষের অংশীদারিত্ব বাড়ানো হলে শেয়ার বাজারে বিনিয়োগ প্রবণতা বাড়ার পাশাপাশি বেসরকারি সংস্থাগুলির সঙ্গে সমতা বজায় রাখা সম্ভব হবে৷'
এর আগে দেশের রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলিতে সরকারি অংশীদারিত্বের পরিমাণ ৯০ শতাংশে এবং বেসরকারি সংস্থাগুলিতে প্রোমোটার অংশীদারিত্ব ৭৫ শতাংশ নামিয়ে আনার নির্দেশিকা জারি করে শেয়ার বাজার নিয়ামক সংস্থাটি৷ বেসরকারি সংস্থাগুলির উদ্দেশে ওই নির্দেশিকা ২০১০-এর জুন মাসে জারি করা হলেও রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলির জন্য তা অগস্টে জারি করে সেবি৷ নির্দেশিকায় বেসরকারি সংস্থাগুলিকে ২০১৩-র জুন ও সরকারি সংস্থাগুলিকে অগস্টের মধ্যে তাদের প্রোমোটার অংশীদারিত্ব নির্ধারিত সীমায় নামিয়ে আনতে বলা হয়েছিল৷
শেয়ার বিক্রির ক্ষেত্রে জনপ্রিয় অফার ফর সেল (ওএফএস) পদ্ধতির পরিসর বাড়ানোর সিদ্ধান্তও নিয়েছে শেয়ার বাজার নিয়ামক সংস্থাটি৷ নতুন নিয়মে মিনিমাম পাবলিক শেয়ারহোল্ডিং (এমপিএস) নিয়ম মানতে শেয়ার বাজারের শীর্ষে থাকা ২০০টি সংস্থা ওএফএস পদ্ধতিতে তাদের শেয়ার বিক্রি করতে পারবে৷ আগে তালিকার শীর্ষে থাকা ১০০টি সংস্থাই এই সুবিধা পেত৷ খুচরো বিনিয়োগকারীদের সুবিধার্থেও বেশ কিছু সিদ্ধান্ত নিয়েছে সেবি৷ ওএফএস পদ্ধতিতে বিক্রি করা শেয়ারের ১০ শতাংশ সাধারণ বিনিয়োগকারীদের জন্য সংরক্ষিত রাখা বাধ্যতামূলক করার সিদ্ধান্ত নিয়েছে নিয়ামক সংস্থাটি৷ খুচরো বিনিয়োগকারীদের শেয়ার কেনায় ছাড় দিতে পৃথক মূল্য নির্ধারণেও (ডিফারেন্সিয়াল প্রাইসিং) সম্মতি দিয়েছে সেবি৷ কোনও সংস্থায় প্রোমোটার ছাড়া অন্য কারও ১০ শতাংশের বেশি অংশীদারিত্ব থাকলে তিনিও তাঁর অংশীদারিত্ব ওএফএস পদ্ধতিতে বিক্রি করতে পারবেন বলে জানিয়েছে সেবি৷
কর্মীদের হাতে পুরস্কার বাবদ সংস্থার শেয়ার তুলে দেওয়ার জন্য (এমপ্লয়িজ স্টক অপশনস) শিল্প সংস্থাগুলিকে শেয়ার বাজার থেকে তা কেনার অনুমতি দিয়েছে সেবি৷ গত বছরে এই পদ্ধতি নিষিদ্ধ করেছিল নিয়ামক সংস্থাটি৷ নতুন নিয়মে সংস্থার নিয়ন্ত্রণ হারানোর ভয় আর তাড়া করে বেড়াবে না দেশের শিল্পসংস্থাগুলিকে৷ আরেক নিয়মে, দেশের অন্য নিয়ামক সংস্থা দ্বারা নিয়ন্ত্রিত সংস্থাগুলি শেয়ার বাজারে বিনিয়োগকারীদের কেওয়াইসি তথ্য পেতে পারবে বলে জানিয়েছে সেবি৷ সেবিতে নথিভুক্ত রিসার্চ অ্যানালিস্টরাই কেবলমাত্র শেয়ার কেনাবেচায় পরামর্শ দিতে পারবে বলে জানিয়েছে নিয়ামক সংস্থাটি৷
মোদী সরকার নিয়ে সি পি আই (এম) মানুষের দুর্দশা বাড়বে বহুগুণ
নিজস্ব প্রতিনিধি : নয়াদিল্লি, ১৯শে জুন — 'দেশের মানুষের দুঃখ-দুর্দশা বহুগুণ বেড়ে যাবে।' এই আশঙ্কা সি পি আই (এম)-র।
বস্তুত, খাদ্যপণ্যের অস্বাভাবিক মূল্যবৃদ্ধি, টাকার অবমূল্যায়ন এবং দুর্বল বর্ষা—সবমিলিয়ে সেই প্রমাণই দিচ্ছে। উলটোদিকে, কর্পোরেটদের স্বার্থবাহী নীতি রূপায়ণেই বেশি ব্যস্ত নরেন্দ্র মোদী সরকার। মোদীর চোখধাঁধানো প্রচারের খরচ বহন করেছে তো এরাই। সি পি আই (এম) কেন্দ্রীয় কমিটির মুখপাত্র 'পিপলস ডেমোক্র্যাসি'-র সাম্প্রতিকতম সংখ্যার সম্পাদকীয়তে একথা উল্লেখ করে বলা হয়েছে, ''বি জে পি-র প্রচারে খরচ জোগানোয় সক্রিয় ভূমিকা নিয়েছিল কর্পোরেটরা। ভারতীয় গণতন্ত্রের ইতিহাসে যা নজিরবিহীন। এরফলে সরকারী নীতি রূপায়ণে সাধারণ মানুষের আশা, আকাঙ্ক্ষাকে গুরুত্ব দেওয়ার চেয়ে এই কর্পোরেটদের স্বার্থই প্রাধান্য পাবে।'' নয়া সরকারের প্রথম বাজেটে 'অর্থনৈতিক ক্ষেত্রে ভয়াবহ খবর বহন করবে' বলে আশঙ্কা প্রকাশ করা হয়েছে ওই সম্পাদকীয়তে। বলা হয়েছে, ''ভোট পরবর্তী পরিস্থিতি হলো হিসাব মেটানোর সময়। যারা বি জে পি-র প্রচারে বিপুল পরিমাণ টাকা ঢেলেছে এবং মোদীকে কর্পোরেটদের 'মেসিয়া' বলে জোর করে তুলে ধরেছে, তাদের কড়ায়গণ্ডায় হিসাব মিটিয়ে দেওয়ার সময়।'' উল্লেখ করা হয়েছে, ''এই হিসাব মেটানো ইতোমধ্যেই শুরু হয়ে গেছে শেয়ার ছেড়ে বাজার থেকে টাকা তুলে নেওয়ার মধ্য দিয়ে। এজন্য সেনসেক্স চড়িয়ে শেয়ার বাজারে তেজীভাব আনা হয়েছিল। কিন্তু এই তেজীভাব মোটেই টিকে থাকার মতো নয়। ইতোমধ্যে সেনসেক্স-এর নিম্নগামী প্রবণতা লক্ষ্য করা যাচ্ছে। একই সঙ্গে টাকার অবমূল্যায়নও শুরু হয়ে গেছে।''
ভারতীয় কর্পোরেটরা নতুন ধরনের অর্থনৈতিক সংস্কারের আশায় বুক বেঁধে আছে। বিশেষভাবে আশা করছে আর্থিক উদারীকরণের। মূল উদ্দেশ্য অবশ্যই স্বল্প সুদের হারে সহজ পুঁজির জোগান। একথা উল্লেখ করা হয়েছে সম্পাদকীয়তে। পাইকারি মূল্যসূচক এপ্রিলে ছিল ৫.২শতাংশ, মে মাসে গিয়ে দাঁড়িয়েছে ৬.০১শতাংশে। বাস্তবে এই ঊর্ধ্বমুখী প্রবণতা কর্পোরেটদের আশায় জল ঢেলে দিচ্ছে। অন্যদিকে, খাদ্যপণ্যের মুদ্রাস্ফীতি মে-তে ছুঁয়েছে ৯.৫শতাংশ। অথচ এপ্রিলে ছিল ৮.৫৪শতাংশ। এই ধাক্কায় জর্জরিত গরিব, প্রান্তিক মানুষ। এরই সঙ্গে চলতি বছরে মার্কিন অর্থনীতির মন্দার পূর্বাভাষ দিয়েছে আই এম এফ। এই পূর্বাভাষে চাপে পড়ে গেছে কর্পোরেটরা, আতঙ্কে ভুগছে। একথা ওই সম্পাদকীয়তে উল্লেখ করে বলা হয়েছে, ''এর ফলে ভারতের রপ্তানি বাণিজ্য কমবে। তখন কর্পোরেটরা সেই ঘাটতি উসুল করবে দেশের বাজারে লুটের পরিমাণ বাড়িয়ে।''
আশঙ্কা প্রকাশ করা হয়েছে ঢালাও বেসরকারীকরণের নীতিতেও। সম্পাদকীয়তে বলা হয়েছে, ''রাষ্ট্রায়ত্ত ক্ষেত্রের পূর্ণ বেসরকারীকরণের সঙ্কেত যথেষ্ঠ চিন্তার বিষয়। প্রশাসনিক ব্যবস্থা নিয়ে বর্তমান আইনের বদল ঘটিয়ে ওই ঢালাও বেসরকারীকরণের রাস্তা প্রশস্ত করা হচ্ছে।'' পরিশেষে বলা হয়েছে, ''এই প্রবণতাকে মুসোলিনির ন্যক্কারজনক ফ্যাসিবাদের সংজ্ঞাকেই মনে করিয়ে দিচ্ছে। যেখানে কর্পোরেটের সঙ্গে প্রশাসনের যুগলবন্দী গড়ে উঠেছিল।''
এর থেকে একটা বার্তাই স্পষ্ট, ''মানুষের দুঃখ-দুর্দশা আরও বহুগুণ বাড়বে।''
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পদত্যাগের চাপ নানা প্রতিষ্ঠানে |
আরও ১২ রাজ্যপালের ছুটি শনিবারের মধ্যে? |
রাজীব চক্রবর্তী: দিল্লি, ১৯ জুন– শনিবারের মধ্যেই ১২ রাজ্যের রাজ্যপালকে পদত্যাগ করতে বলল কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্র মন্ত্রক৷ স্বরাষ্ট্র সচিব নিজে টেলিফোন করে কথা বলছেন রাজ্যপালদের সঙ্গে৷ উত্তরপ্রদেশের রাজ্যপাল বি এল জোশির পর সরতে হল ছত্তিশগড়ের রাজ্যপাল শেখর দত্তকে৷ বুধবার রাতেই তিনি রাষ্ট্রপতি প্রণব মুখার্জির কাছে তাঁর পদত্যাগপত্র পাঠিয়েছেন৷ বৃহস্পতিবার এই খবর জানিয়েছেন ছত্তিশগড়ের রাজ্যপালের সচিব অমিতাভ জৈন৷ দত্ত ২০১০-এ দায়িত্ব নিয়েছিলেন৷ শুধু রাজ্যপালদেরই নয়, ইউ পি এ আমলে নিযুক্ত আরও কিছু বিশেষ পদাধিকারীর ওপর কোপ পড়েছে মোদি সরকারের৷ সরতে হল 'জাতীয় বিপর্যয় মোকাবিলা পর্ষদ'-এর ভাইস চেয়ারম্যান এম শশীধর রেড্ডি-সহ পর্ষদের আরও ৫ সদস্যকে৷ এন ডি এ সরকার ক্ষমতায় এসেই তাঁদের কাছে পদত্যাগের বার্তা পাঠায়৷ একইভাবে জাতীয় মহিলা কমিশনের চেয়ারপার্সন, তফসিলি জাতি ও উপজাতি পর্ষদ এবং 'ইন্ডিয়ান কাউন্সিল ফর কালচারাল রিলেশন'-এর প্রধানদেরও যত তাড়াতাড়ি সম্ভব পদত্যাগ করতে বলা হয়েছে৷ কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্রসচিব অনিল গোস্বামীর কাজ হয়ে দাঁড়িয়েছে এখন ফোনে পদত্যাগের বার্তা পাঠানো৷ কংগ্রেস মুখাপাত্র অভিষেক সিংভি টুইটারে ফোড়ন কেটেছেন, 'স্বরাষ্ট্রসচিবের নতুন পদ এস এস আর– স্পেশ্যাল সেক্রেটারি রেজিগনেশন৷' স্বরাষ্ট্র সচিব অনিল গোস্বামী ইতিমধ্যেই ইউ পি এ সরকারের আমলে নিযুক্ত কয়েকটি রাজ্যের রাজ্যপালদের ডেকে পাঠিয়ে পদত্যাগ করতে বলেছেন বলে খবর৷ মঙ্গলবার পদত্যাগ করেছেন উত্তরপ্রদেশের রাজ্যপাল৷ গতকাল রাতে পদত্যাগ করেছেন ছত্তিশগড়ের রাজ্যপাল৷ এর পর অন্যান্য রাজ্যের রাজ্যপালদেরও পদত্যাগের সম্ভাবনা তৈরি হয়েছে৷ এতসবের মধ্যে রাজস্হানের রাজ্যপাল মার্গারেট আলভা এর আগে তাঁর দিল্লি সফরের সময় কখনই কংগ্রেস সভানেত্রী সোনিয়া গান্ধীর সঙ্গে সাক্ষাৎ করেননি৷ এবার তাঁর দিল্লি সফরে রাষ্ট্রপতি প্রণব মুখার্জি এবং প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদির সঙ্গে বৈঠকের কর্মসূচি রেখেছেন৷ শোনা যাচ্ছে আলভার ছেলে নিবেদিত কর্ণাটকে বি জে পি-তে যোগ দিতে চলেছেন৷ এর আগে আলভা উত্তরাখণ্ডের রাজ্যপাল ছিলেন৷ খুব শিগগিরই পদত্যাগ করতে পারেন তামিলনাড়ুর রাজ্যপাল রাজপাল কে রোশাইয়া৷ অন্য দিকে মহারাষ্ট্রের রাজ্যপাল শঙ্করনারায়ণন গতকালই জানিয়েছেন কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্র সচিব অনিল গোস্বামী তাঁকে দু'বার ফোন করেছিলেন৷ প্রতিবারই তাঁকে পদত্যাগ করতে বলা হয়েছে৷ তিনি মম্তব্য করেন, সরকারের রাজ্যপাল পরিবর্তনের সিদ্ধাম্ত মেনে নিলেও যেভাবে এই সাংবিধানিক পদ থেকে অপসারণ করা হচ্ছে তিনি তার নিন্দা করেন৷ বলেন, 'স্বরাষ্ট্র সচিব অনিল গোস্বামী দু'বার আমাকে ফোন করে পদত্যাগ করতে বলেছেন৷ আমি তাঁকে কোনও উত্তর দিইনি৷ এমনকী নিজের অভিমত প্রকাশ করিনি৷' ১৪তম লোকসভা নির্বাচনের পর ২০০৪ সালে নতুন সরকার আচমকাই উত্তরপ্রদেশ, গুজরাট, হরিয়ানা ও গোয়ার রাজ্যপালদের সরিয়ে দিয়েছিল৷ ২০১০ সালে বি পি সিঙঘল বনাম কেন্দ্র সরকারের একটি মামলায় সুপ্রিম কোর্টের সাংবিধানিক বেঞ্চ রাজ্যপাল পরিবর্তনের এই পদ্ধতিকে আইনি স্বীকৃতি দিয়েছিল৷ বলা হয়েছিল, রাজ্যপালদের যে-কোনও সময় কোনও কারণ ছাড়াই সরিয়ে দেওয়া যেতে পারে৷ তবে তা কখনও স্বেচ্ছাচারিতায় যেন না পৌঁছয় সেদিকে খেয়াল রাখতে হবে৷ রাজ্যপালদের সরানোর পদ্ধতি শুধুমাত্র বিরল ও বিশেষ পরিস্হিতিতে করা যেতে পারে৷ আদালত আরও বলেছে যে, হতে পারে কেন্দ্র সরকারের নীতির সঙ্গে রাজ্যপালের দূরত্ব তৈরি হল৷ অথবা রাজ্যপালের ওপর থেকে আস্হা হারাল কেন্দ্র সরকার৷ কিন্তু কেন্দ্রে সরকার পরিবর্তন হলেই রাজ্যপাল পরিবর্তন করতে হবে এমন না হওয়াই বাঞ্ছনীয়৷ রাজ্যপালদের সরানোকে আইনি চ্যালেঞ্জ জানানোর সমস্ত রাস্তা খোলা থাকছে৷ সেক্ষেত্রে আবেদনকারীকে প্রথমে সরকারের স্বেচ্ছাচারিতাকে চ্যালেঞ্জ জানিয়ে প্রাথমিক মামলা করতে হবে৷ যদি সেই মামলার গ্রহণযোগ্যতা প্রমাণিত হয় তবে আদালত কেন্দ্র সরকারের কাছে রাজ্যপালকে সরানোর উপযুক্ত কারণ সম্পর্কিত নথি চাইবে৷ যার ভিত্তিতে রাজ্যপালকে তাঁর পদ থেকে সরানো হয়েছে৷
এদিকে, এম শশীধর রেড্ডি ছাড়াও 'জাতীয় বিপর্যয় মোকাবিলা পর্ষদ'-এর যে সদস্যরা পদত্যাগ করেছেন তাঁরা হলেন সি আই এস এফ-এর ডাইরে'র জেনারেল এম কে সিং, প্রাক্তন সিভিল অ্যাভিয়েশনের সচিব কে এন শ্রীবাস্তব, মেজর জেনারেল জে কে বনশল, ভাবা অ্যাটমিক রিসার্চ সেন্টারের প্রাক্তন ডিরেক্টর বি ভট্টাচার্য এবং সি বি আইয়ের প্রাক্তন স্পেশাল ডিরেক্টর কে সেলিম আলি৷ রেড্ডি এদিন বলেছেন, 'প্রধানমন্ত্রী 'জাতীয় বিপর্যয় মোকাবিলা পর্ষদ' ঢেলে সাজাতে চান৷ তাই মঙ্গলবার পদত্যাগপত্র পাঠিয়ে দিয়েছি৷' ২০০৫-এ এই সংস্হার সদস্য হন রেড্ডি৷ ২০১০ সালে তিনি এই সংস্হার ভাইস চেয়ারম্যান নিযুক্ত হন৷ প্রসঙ্গত, এই পর্ষদের চেয়ারম্যান প্রধানমন্ত্রী নিজে৷ পর্ষদের ভাইস চেয়ারম্যান পূর্ণ মন্ত্রীর পদমর্যাদা পান৷ পর্ষদের বাকি আট সদস্য প্রত্যেকেই কেন্দ্রীয় রাষ্ট্রমন্ত্রীর পদমর্যাদা পেয়ে থাকেন৷ যে তিনজন এখনও পদত্যাগ করেননি তাঁদের মধ্যে রয়েছেন সি আর পি এফ-এর প্রাক্তন ডিরেক্টর জেনারেল জে কে সিন্হা, চিকিৎসা বিশেষ: মুজফ্ফর আহমেদ এবং সামুদ্রিক উন্নয়ন দপ্তরের প্রাক্তন হর্ষ কে গুপ্তা৷ এদিন জে কে সিন্হা জানিয়েছেন, তিনি দিল্লির বাইরে আছেন৷ ফিরে এসে যা করার করবেন৷
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