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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, October 12, 2015

अध्यक्षजी,अकादमी पुरस्कार प्राप्त साहित्यकारों की पूर्व भी स्वतंत्र पहिचान थी और वे पुरस्कार प्राप्ति के बाद अकादमी के बंधुआ मजदूर नहीं हो जाते कि स्वतंत्र विचार या विरोध नहीं कर सकते.यह रिश्ता मालिक गुलाम का नहीं है.सही व्यक्ति को पुरस्कार देकर अकादमी अपने होनें की वैधता पर मोहर लगाती है(अंदर की राजनीति की बात छोड दें)

 
Jasbir Chawla and Jeevesh Prabhakar posted in प्रगतिशील लेखक संघ.
 
   
Jasbir Chawla
October 12 at 11:01am
 
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष का यह कहना कि विचारकों की हत्या,या बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकार पुरस्कार पाने से हुए यश,प्रतिष्ठा को वापस कैसे करेंगे.अर्थात वे उसे भी लौटाएँ. 

शायद उनके मन में उस तलाकशुदा महिला की याद से उपजा तर्क हो जिसे उसके खाविंद नें मेहर की रकम चुका दी और महिला जायज़ शिकायत कर रही है कि उसकी जवानी भी मेहर के साथ लौटाए. 

अध्यक्षजी,अकादमी पुरस्कार प्राप्त साहित्यकारों की पूर्व भी स्वतंत्र पहिचान थी और वे पुरस्कार प्राप्ति के बाद अकादमी के बंधुआ मजदूर नहीं हो जाते कि स्वतंत्र विचार या विरोध नहीं कर सकते.यह रिश्ता मालिक गुलाम का नहीं है.सही व्यक्ति को पुरस्कार देकर अकादमी अपने होनें की वैधता पर मोहर लगाती है(अंदर की 
राजनीति की बात छोड दें) 

सभी स्वतंत्र सोचने वालों,मानवाधिकारों के हामी लोगों और हिंसा का विरोध करने वालों की यह अपेक्षा जायज़ है कि अकादमी को इस विषय पर स्टेंड लेना चाहिये और बढ़ती सांप्रदायिकता और विचारकों की हत्याओं का सशक्त विरोध करना चाहिये. 
http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2015/10/blog-post_11.html

-- अभिषेक माफ करें कि यह खबर तत्काल पहुंचाने की गरज से आपकी इस टिप्पणी से नाम आपका छूट गया।बड़े भाई की चूक से अन्यथा न लें।फोन दिन में कई दफा किया।रिंगवा टनाटन रहा ,लेकिन आपने उठाया नहीं।बहरहाल यह समझ लें आपकी टिप्पणी से शत प्रतिशत सहमत हो तो बिना तकलीफ उठाये यह टिप्पणी भी दरअसल मेरी है।मेरा आज का प्रवचन इसी सिलसिले में है।इस गलती के लिए सार्वजनिक स्वीकारोक्ति इसलिए जरुरी है कि मेरे छोटेै भाई के जिगरा का पता भी दूसरों को चलें।
पलाश विश्वास

थोक के भाव में लेखकों ने सरकार से लिए पुरस्‍कार 7वापस कर दिए। उदय प्रकाश से शुरू हुआ यह काम मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, कृष्‍णा सोबती, अशोक वाजपेयी, सच्चिदानंदन, पंजाब, कश्‍मीर व कन्‍नड़ के लेखकों तक जा पहुंचा है। इससे भी सुखद यह है कि कल मंडी हाउस से निकली रैली में नीलाभजी, पंकज सिंह, सविता सिंह, रंजीत वर्मा, इरफान,अनिल चमडि़या, अनिल दुबे, राजेश वर्मा समेत तमाम लेखक-पत्रकार शामिल रहे। पत्रकार अमन सेठी ने भी साहित्‍य अकादमी का युवा पुरस्‍कार वापस कर दिया है। हिंदी के नौजवान कहां छुपे हैं? उमाशंकर चौधरी, कुमार अनुपम, कुणाल सिंह, खोह से बाहर निकलो। सेटिंग-गेटिंग से उबरो। अकादमी का युवा पुरस्‍कार तत्‍काल लौटाओ।

# Beef Gate!Let Me Speak Human!What is your Politics,Partner?Dare you to Stand for Humanity?
বাংলা দৈনিক এই সময়ঃকলবার্গি থেকে ইকলাখঃ ডানপন্থী চোখরাঙানির বিরুদ্ধে সোচ্চার কাশ্মীর থেকে কন্যাকুমারী!
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