टाइटैनिक बाबा को साहित्य का न सही,शांति का नोबेल पुरस्कार मिल ही सकता है।
रूस का पुनरूत्थान होता दीख रहा है और शीतयुद्ध फिर लौट रहा हैतो रूसियों को फिर से साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिलने लगा है।
पलाश विश्वास
ताजा खबर यह है कि बेलारूस की लेखिका स्वेतलाना एलेक्सीविच को साल 2015 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। स्वीडिश एकेडमी ने गुरुवार को अपनी घोषणा में कहा कि स्वेतलाना को बहुआयामी, मानवीय त्रासदी से जुड़े और अपने समय के साहसिक लेखन के कारण चुना गया है।
रूस का पुनरूत्थान होता दीख रहा है और शीतयुद्ध फिर लौट रहा हैतो रूसियों को फिर से साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिलने लगा है।
स्वेतलाना को चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना और द्वितीय विश्व युद्ध के भावनात्मक पक्षों को उभारने वाले लेखन से अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। उनकी कई किताबों का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और उन्हें तमाम अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। पुरस्कार के साथ स्वेतलाना को करीब छह करोड़ 20 लाख रुपये की इनामी राशि भी मिलेगी।
साहित्य का नोबल पुरस्कार राजनीति से जुड़ा होता है।
रूस के प्रमुख साहित्यिक पत्र 'लितिरातूरनया गज़्येता' के प्रमुख सम्पादक यूरी पलिकोफ़ का मानना है कि पिछले दस साल में साहित्य के लिए जितने भी नोबल पुरस्कार दिए गए हैं, वे सब कहीं न कहीं राजनीति से सम्बन्ध रखते हैं।
राजनीति के बिना पुरस्कार और सम्मान मिलते नहीं है।राजनीति की जिन्हें परवाह नहीं,वे पुरस्कार सम्मन पद पदवी की भी परवाह नहीं करते।वे जनता की अदालत में खड़े होते हैं।
नोबेल शांति पुरस्कार का वाकया जाना पहचाना है।कीसिंजर को नोबेल मिल गया और बाराक ओबामा को नोबेल मिल गया तो जार्ज बुस को क्यों नहीं मिला पहली यह है।
अब इंतजार करे कि मुक्त बाजार के लिए विश्वसुंदरियां जैसे तमाम बारत से निकली,वैसे ही साहित्य और शांति के लिए नोबेल भी भारत को अब मिलेंगे।दुनिया का सबसे बड़े बाजार और ट्रिलियन डालर इकोनामी कासवाल है बाबा।
तो जनता रहे सावधान कि साहित्य का न सही,अपने टाइटैनिक बाबा को नोबेल शांति पुरस्कार देर सवेर मिल ही सकता है।
बहरहाल
बेलारूस की लेखिका स्वेतलाना एलेक्सेविच को आज वर्ष 2015 के नोबेल साहित्य पुरस्कार का विजेता घोषित किया गया। स्वीडिश एकेडमी ने वर्तमान समय की परेशानियों और साहस से भरे कई गुणों वाले लेखन के लिए 67 वर्षीय स्वेतलाना को इस पुरस्कार से नवाजा। स्वेतलाना ने चश्मदीदों के हवाले से चेरनोबिल आपदा (यूक्रेन का परमाणु हादसा) और द्वितीय विश्वयुद्ध का भावनात्मक पक्ष पेश करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। चश्मदीदों के शब्दों के जरिये इन घटनाओं के बारे में लिखने वाली स्वेतलाना की कृतियों का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और वह कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हुईं।
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