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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, October 8, 2015

गिर्दा

गिर्दा

लेखक : नैनीताल समाचार :::: वर्ष :: :

girda-bekhabarबब्बा

ये शब्द सुनते ही

मुझे एक आकृति याद आ जाती है।

जर्जर सा दिखने वाला

मगर/अपने इरादों से भी

मजबूत शरीर

एक हाथ में बीड़ी,

एक कंधे में झोला।

वो झोले में पड़ी कुछ किताबें

और डायरियाँ

चेन से लगा एक चश्मा

जो नाक के अन्तिम छोर पर अटका है

जैसे

कह रहा हो कि

मै हमेशा ऐसे ही रहूँगा

मगर बदलने के लिये

समाज की देखूँगा सारी विपदाएँ,

बुराई, यातनाएँ

और कैद कर लूँगा उन्हें

जो कभी कलम से होकर

डायरियों में दर्ज होंगी

जो अभी मेरे झोले में है

जिनमें लिखी हैं कुछ पंक्तियाँ

कभी आमा के लिये

कभी बच्चों के लिये

तो कभी ड्राइवर के लिए

तो कभी नदियों पहाड़ों को काटकर

रास्ता बनाने वाले मजदूरों के हक के लिए।

'मगर अभी वो खामोश है '

जिस तरह मेरे गाँव के

हुड़के और नगाड़े खामोश हैं

एक दिन जरूर

वो झोला फिर खुलेगा

फिर उस डायरी में

कलम चलेगी

फिर लिखा जायेगा कोई 'जनगीत''

गुंजाने इस आकाश को

 

-मो. जावेद हुसैन 'साहिल'


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