मुग़ल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे अत्यंत लोकप्रिय हिंदी सूफ़ी कवि अब्दुल रहीम खानखाना। 'रहिमन' के नाम से उनके पद आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाक़े में उनका स्मारक संसार के बडे सूफ़ी कवियों के स्मारकों में गिना जाता है, जो संभवत: जहांगीर के शासनकाल में निर्मित हुआ।
उन्हीं का एक पद याद आ गया, अचानक।
" रहिमन आह गरीब की, कबहुँ न निसफल जाय,
मरे मूस की चाम से, लौह भसम होइ जाय। "
महात्मा गांधी ने इस देश के शासकों को कोई भी नीति अपनाने के पहले जिस ' अंतिम आदमी' के आँसू पोंछने की बात कही थी, उसी की 'आह' तख़्त-ओ-ताज पलटती है।
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