भारत को खोजने वाले को आज हम कहां खोज सकते हैं?
मेलबर्न में मौजूद जेम्स कुक की कॉटेज
♦ मेलबर्न से अशोक बंसल
अतीत की धरोहर की हिफाजत की ललक जितनी गोरों में है, उतनी हम भारतवासियों में नहीं। यदि ऐसा होता तो आज हमारा देश पर्यटन का सबसे बड़ा केंद्र होता। ऑस्ट्रेलिया का भू-भाग भारत से तीन गुना ज्यादा है लेकिन आबादी सिर्फ ढाई करोड़। इस देश का इतिहास 250 सालों से ज्यादा नहीं। फिर भी अतीत की हर यादगार समेटने के लिए यह देश कुछ भी करने को तैयार है। इसका एक उदाहरण काफी है।
कैप्टन कुक के नाम से मशहूर नौजवान जेम्स कुक इंग्लैंड के योर्कशायर के गांव ग्रेट अटन में रहता था। 27 साल की उम्र में रायल नेवी में रहते हुए 1769 में उसने रहस्य रोमांच से भरपूर लंबी लंबी समुद्री यात्राएं की। ऑस्ट्रेलिया को खोज निकालने वाला केप्टिन कुक ही था। कुक ने अपने जीवन में 322000 किमी की समुद्री यात्रा कर और इस अभियान में ऑस्ट्रेलिया की खोज कर दुनिया के इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया। कुक का जहाज अप्रैल 1770 में विक्टोरिया में समुद्र किनारे लगा, तभी से इंग्लैंड के हाथ ऑस्ट्रेलिया आया।
18 वीं शताब्दी में इंग्लैंड की हालत पतली थी और गरीबी के कारण अपराध बढ़ रहे थे, (अंग्रेजी उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस ने अपने उपन्यासों में इस समय का रोचक व मर्मस्पर्शी चित्र खींचा है)। अपराधियों को जेल में रखने के स्थान कम पड़ने लगे। इसी समय में कुक द्वारा खोजी गयी नयी जमीन इंग्लैंड को बेहद पसंद आयी। प्रारंभ में कुक द्वारा खोजे ऑस्ट्रेलिया में इंग्लैंड के कैदियों को रखा गया। बाद में ऑस्ट्रेलिया रहने के लिहाज से इंसान के मन में इतना भाया कि आज 200 से ज्यादा देशों के लोग इसमें समा गये हैं और शानदार जीवन जी रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया की खोज करने वाले कुक की याद को बनाये रखने के लिए यहां के लोगों ने सरकार की मदद से उसके इंग्लैंड के ईंट-पत्थरों के मकान को मेलबर्न में लाकर स्मारक बना दिया है।
योर्कशायर के एक गांव में कुक के पिता के मकान को जस का तस उखाड़ कर मेलबर्न में स्थापित करने की योजना 1934 में बनी। मेलबर्न के एक इतिहास प्रेमी सर रसेल ने इस मकान की कीमत चुकायी और छोटे से मकान की ईंटों को सावधानीपूर्वक अलग कर, उन पर नंबर डालकर 253 कंटेनरों में बंद कर जहाज से मेलबर्न लाया गया।
इंग्लैंड में 18 वीं शताब्दी के मकानों की बनावट आज से एकदम भिन्न थी। मकान के चारों ओर फुलवारी और ऐसे पेड़-पोधे होते थे, जो किसी रोग के उपचार में काम आते थे। हैरत की बात यह है कि कुक की कॉटेज की ईंट-पत्थर ही नहीं कॉटेज की फुलवारी भी यहां इंग्लैंड से लाकर रोप दी गयी है। यह कॉटेज पर्यटकों को बेहद लुभा रही है। 18 वीं शताब्दी के इंग्लैंड की जीवन शैली के दर्शन करा रही है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि सरकार और यहां के वाशिंदे मेलबर्न के एक हरे-भरे मैदान में खड़ी कुक की कॉटेज के जरिये इस शानदार देश के जनक को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के साथ साथ अपने अतीत प्रेम को भी दर्शा रही है। ऑस्ट्रेलिया को यहां आने वाले पर्यटकों से विदेशी मुद्रा भी प्राप्त हो रही है।
काश, हमारी सरकार और हम अपनी विरासत की हिफाजत के सबक सिखाने की ललक खुद में पैदा करते।
(अशोक बंसल। पेशे से शिक्षक। पत्रकारिता में रुचि। दो पुस्तकें प्रकाशित। ऑस्ट्रेलिया की ऐतिहासिक घटनाओं पर तीसरी पुस्तक सोने के देश में जल्दी प्रकाशित होगी। आजकल ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में हैं। उनसे ashok7211@yahoo.co.in पर संपर्क कर सकते हैं।)
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