सुमित्रा नंदन पंत के गांव में सोनिया
सोनिया अल्मोड़ा भ्रमण पर आईं और काफी समय राजीव गांधी के सलाहकार रहे सुमन दुबे के घर पर बिताया. मैडम ने यहां जमीन खरीदने की इच्छा जाहिर की है.अब रहने के लिए ज्यादा से ज्यादा बीघा-दो बीघा जमीन की जरूरत होगी पर...
मनु मनस्वी
भई, चाहे राजा हो या रंक, भविष्य की चिंता हर किसी को होती है और ये स्वाभाविक भी है.फिर भला प्रधानमंत्री समेत पूरे देश को अपनी लाठी से हांकने वाली सोनिया ही क्यों न हों? जी हां, ये कांग्रेसी ठकुराइन अब मशहूर कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली उत्तराखंड के कौसानी में रिटायरमेंट के बाद अपना ठौर तलाश रही हैं.
बीते दिनों सोनिया अल्मोड़ा भ्रमण पर आईं और काफी समय राजीव गांधी के सलाहकार रहे सुमन दुबे के घर पर बिताया. बताया जा रहा है कि मैडम ने यहां जमीन खरीदने की इच्छा जाहिर की है.अब रहने के लिए ज्यादा से ज्यादा बीघा-दो बीघा जमीन की जरूरत होगी, पर मैडम तो मानों पूरे लाव-लश्कर के साथ यहां डेरा जमाने की सोच रही हैं.तभी तो जमीन हजारों नालियों की ढूंढी जा रही है.
कांटली गांव के समीप डानी नामक स्थान पर उन्होंने जमीन देखी है.इसके अलावा भी एक-दो स्थानों पर जमीन खरीदने की बात सामने आई हैं.बताते हैं कि करीब तीन वर्ष पहले भी उन्होंने बागेश्वर में डुमकोट में दो हजार नाली जमीन पर नजरें गढ़ाई थीं, लेकिन तब उनके दामाद की नजर भी उस जमीन पर अटकी थीं.हालांकि न तो राबर्ट ने ही वह जमीन खरीदी और न ही सोनिया ने, लेकिन अब एक बार फिर उत्तराखंड में सोनिया जमीन पर 'इन्वेस्ट' करना चाहती हैं.
वो भी एक-दो, सौ-दो सौ नहीं, हजारों नाली.आश्चर्य की बात ये है कि मैडम को कौसानी की याद आई भी तो तब, जब उनके पधारने से कुछ दिन पहले ही सुमित्रा नंदन पंत की जयंती मनाई गई.अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पंत के गांव की हालत इतने वर्ष बाद भी जस की तस ही है.बस बदला है तो उनके नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने वालों की फ़ौज में हो रही वृद्धि.हालांकि उनके इस भ्रमण को काफी गोपनीय रखा गया था, लेकिन खबरनवीसों के लिए तो चिंगारी ही काफी है.
वो भी तब, जब मीडिया को ही मिलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो.सुनने में आया है कि मैडम इस जमीन पर अपने किसी परिजन के लिए भारी-भरकम उद्योग लगाने की फिराक में हैं.वैसे भी राज्य में उनके ही चारणों की सरकार है, फिर मैडम को यहां जमीन खरीदने में कोई दिक्कत पेश आएगी, ऐसा लगता नहीं है.नियम-कायदे तो भैया गरीब के लिए ही हैं.
भले ही सोनिया यहां जमीन खरीदकर उद्योग ही क्यों न लगा लें, पर पहाड़ी जनता को इससे कोई रोजगार मिलेगा, इसकी आशा करना फिजूल ही है, क्योंकि राज्य का युवा तो ठेका प्रथा के अधीन ही दो टकिया नौकरी करने के लिए अभिशप्त है.असली मलाई बाहरी राज्यों से आए लोगों के लिए है.जो रहे-सहे अवसर बचते भी हैं, तो वहां टटपुंजिए नेताओं के पिछलग्गू भांजी मार ले जाते हैं.अब देखने वाली बात ये होगी कि सोनिया की कृपा से उत्तराखंड के मुखिया बने बहुगुणा उनके लिए किस हद तक पलक-पांवड़े बिछाते हैं.
मनु मनस्वी पत्रकारिता से जुड़े हैं.
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