Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, June 7, 2012

आईआईटी के बहाने ग्रामीण प्रतिभाओं का हक छीनने की साजिश

http://news.bhadas4media.com/index.php/yeduniya/1543-2012-06-07-13-51-13

[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1543-2012-06-07-13-51-13]आईआईटी के बहाने ग्रामीण प्रतिभाओं का हक छीनने की साजिश [/LINK] [/LARGE]
Written by पंकज शा Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 07 June 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=69b60b43baa36a123d9145b1befcebd9dade1a0a][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1543-2012-06-07-13-51-13?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
आईआईआईटी समेत इंजीनियरिंग के सभी केन्द्रीय संस्थानों में प्रवेश हेतु अगले साल से लागू की जा रही एकल प्रवेश परीक्षा ग्रामीण प्रतिभाओं का हक़ छीनने करने की एक नई साजिश जान पड़ती है. इंजीनियरिंग में प्रवेश में 12वीं के अंकों को 50 प्रतिशत तक वेटेज देने से देश के शिक्षा-प्रणाली का बड़ा वर्ग प्रवेश पाने से वंचित रह जाएगा. देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां हिन्दी माध्यम से 10वीं और 12वीं परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थी मुश्किल से प्रथम श्रेणी प्राप्त कर पाते हैं. दूसरी ओर, बिहार, झारखण्ड और कई अन्य राज्यों से आईआईटी में प्रवेश पाने वाले ऐसे ही छात्रों की एक बड़ी संख्या रही है. प्रवेश नियमों में बदलाव की खबर से, भारत में इंजीनियरिंग के विश्वस्तरीय संस्थान कहे जाने वाले आईआईटी में पढ़ने का सपना देखने वाले हिन्दी माध्यम के छात्रों में घोर निराशा और आक्रोश है.
सुपर थर्टी के प्रमुख आनंद कुमार और लेखक तथा पूर्व आईआईटीयन चेतन भगत पहले ही अपना विरोध जता चुके हैं. यहां तक कि आईआईटी कानपुर के सीनेट सदस्यों ने तो अपनी अलग प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की बात कह दी है. इनका कहना है कि यह आईआईटी की स्वायत्तता पर संकट है और इससे एक वर्ग के छात्रों का वर्चस्व बढ़ जाएगा. भारत की शिक्षा-प्रणाली उतनी सटीक है और न ही परिपक्व है कि विद्यार्थी के प्राप्तांक से उसकी प्रतिभा का आकलन किया जा सके. सीबीएसई, एआईएसई आदि केन्द्रीय बोर्डों से उत्तीर्ण विद्यार्थियों (सामान्यत: अंग्रेजी माध्यम से तथा नामी-गिरामी और महंगे स्कूलों के छात्र) के प्राप्तांक ऐसे ही बहुत अधिक हुआ करते हैं. वहीं, झारखण्ड अधिविद्या परिषद, बिहार माध्यमिक शिक्षा परिषद आदि राज्यस्तरीय परिषदों से उत्तीर्ण (सामान्यत: हिन्दी माध्यम के सरकारी स्कूलों/कॉलेजों में पढ़ने वाले गरीब तबकों के) छात्रों के प्राप्तांक अपेक्षाकृत कम होते हैं.

इसमें पढ़ाई की तकनीक और अंक देने की प्रवृत्ति में अंतर की भी बड़ी भूमिका है. प्राइवेट स्कूलों को छात्रों की पढ़ाई शुरू से ही व्यवस्थित होती है, वहीं सरकारी स्कूलों के छात्रों को नवीं कक्षा तक सिर्फ परीक्षा में बैठने भर से पास कर दिया जाता है. लेकिन, एक सच्चाई यह भी है कि येही हिन्दी माध्यम के विद्यार्थी अपनी प्रतिभा का लोहा सिविल सेवा से लेकर आईआईटी में मनवा चुके हैं. यह सब इसलिए संभव हुआ, क्योंकि वहां अंकों की बाध्यता नहीं रही है (पिछले कुछ सालों से आईआईटी के लिए 60 प्रतिशत की अनिवार्यता लागू है). इसलिए कहीं भी  इस तरह अंकों को वेटेज देने से अंग्रेजी माध्यमों और धनी परिवारों के छात्रों को अनायास ही गरीब और ग्रामीण छात्रों के हिस्से पर कब्जा मिल जाएगा. अंकों की इसी बाध्यता ने एक अंधी दौड़ को जन्म दिया है, जिससे कोचिंग, प्राइवेट ट्यूशन, महंगे स्कूलों द्वारा कॉरपोरेट लूट की धंधा काफी फल-फूल रहा है. अत: केन्द्रीय मानव संसाधन विभाग को 12वीं के अंकों को वेटेज संबंधी निर्णय पर पुनर्विचार कर उसे संशोधित करना चाहिए, ताकि गरीब तबके के विद्यार्थियों का हक न मारा जाए. और हम सब को भारत के इन करोड़ों विद्यार्थियों के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए.

[B]पंकज शा की रिपोर्ट[/B]

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...