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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, June 23, 2012

Fwd: गढ़वाली भाषौ कवि श्री गीतेश नेगी जी क भीष्म कुकरेती क दगड छ्वीं



---------- Forwarded message ----------
From: Bhishma Kukreti <bckukreti@gmail.com>
Date: 2012/6/23
Subject: गढ़वाली भाषौ कवि श्री गीतेश नेगी जी क भीष्म कुकरेती क दगड छ्वीं
To: kumaoni garhwali <kumaoni-garhwali@yahoogroups.com>


              गढ़वाली भाषौ कवि श्री गीतेश  नेगी  जी क भीष्म कुकरेती क दगड छ्वीं

* भीष्म कुकरेती - आप साहित्यौ दुनिया मा कनै ऐन ?
गी .नेगी - साहित्य  विचारौं और भाव्नौं कु शाब्दिक उम्माल च ,गद्न च  जैकू मूल स्रोत हमर समाज च अर  हमर जीवन मा हूँण वली हर खट्टी मिट्ठी घटना च  | हमर सुख दुःख ,संघर्ष ,खैर - पीड़ा ,प्रेम , हार -जीत अर हर भावनात्मक अर बौधिक  चेतना या फिर हमर जलडौं  से जुड़यूँ  हर भाव हमर मन मस्तिष्क  मा एक वैचारिक  कबलाट जन्न पैदा कैर दिन्द बस फिर एक ढसाक  लगणा  कि देर हुन्द अर  शब्दों का  छोया गीत अर कविता बणिक साहित्य कि  मी जन्न एक दम्म निरबिज्जी अर बंजी पुंगडियूँ  मा भी गीत अर कबिता का बस्गल्या छंचडा  बणिक झर झर खतेंण बैठी जन्दी , म्यार ख्याल से सोच सम्झिक या प्लानिग कैरिक  कुई भी साहित्यकार ,गीतकार या कवि  नी   बणदू  , मिल बी  कवि बणणा की या साहित्य जगत मा आणा की कब्बी  नी सोची छाई  ,एक दिन अद्धा राति मा गणित का सवाल सुल्झांद सुल्झांद मी हिंदी कविता का स्यारौं मा उज्याड़ चली ग्युं अर  सौभाग्य से म्यार एक दगडीया थेय मेरी वा रचना भोत  पसंद आयी ,हैंक  दिन  वेक छुईं  सुणीक विज्ञान का  गुरूजी ल  जौंक मी प्रिय छात्र छाई पहली  त  मेरी भोत अच्छा से खबर ल्याई  पर जब मिल कविता सुणाई त उन्थेय अर क्लास मा  सब्बी  दगडीयूँ   थेय कबिता भोत पसंद आयी बस फिर   मेरी साहित्य क़ी यात्रा शुरु व्हेय ग्या , अचांणचक्क  यीं पुंगडि मा आणु संजोग और म्यारू अहोभाग्य ही समझा ,आज कविता अर गीत म्यारू  पैलू  प्रेम "पहाड़ " से , पहाड़ का रैवाशी अर प्रवासी  लोगौं से  संबाद कु एक सशक्त माध्यम चा ,

*भी.कु- वा क्या मनोविज्ञान छौ कि आप साहित्यौ तरफ ढळकेन ?
 गी .नेगी - पहाड़ प्रेम ,बालपन का गढ़वाल मा बित्याँ कुछ बरस ,पलायन  क़ी पीड़ा ,एक आम प्रवासी जीवन  कु संघर्ष , समाज   मा हूँण  वली  उत्तराखंड  आन्दोलन जन्न ऐतिहासिक घटना ,उत्तराखंड राज्य कु निर्माण अर  वेका बावजूद भी उत्तराखंड मा गुजर बसर जुगा संसाधनौं  क़ी कमी ,राजनैतिक  दिशाहीनता , पहाड़   विरोधी निति ,लुट खसोट ,गौं गौं मा भ्रष्टाचार ,दारु संस्कृति अर आम आदमीऽक  वी पुरणी लाचारी ,पहाऽडै खैर से उठण    वालू वैचारिक डाव ,अल्झाट ,खीज ,कबलाट ,घपरोल  ,सुखद अर दुखद अनुभव  जू बगत बगत पैदा हुंदा रैं अर यूँ सब घटनाऔं - हालातौं  परिस्थित्युं मा मन्न अर जिकुड़ी  मा पैदा हूँण  वालू शब्दौं कु  वैचारिक उमाळ  मीथै  बूगैऽक़ी   साहित्य प्रेम  का  समोदर मा लैक़ी अयैग्याई | मेरी भी भूख तीस तब्बी मिटेंद ,जिकड़ी क़ी झैल तभी बुझैंद  जब यु उमाळ गीत या कबिता रूप मा खतै  जान्द | 

*भी.कु. आपौ साहित्य मा आणो पैथर आपौ बाळोपनs कथगा हाथ च ?
  गी .नेगी-  मीथै  इन् लगद क़ी इन्ह आग थेय लगाणा - पिल्चाणकु आधारभूत काम बालपन मा ही व्हेय ग्याई छाई ,बालपनऽक   गौं पहाडऽक सम्लौंण  असल  मा साहित्य क़ी बुनियाद च ,उत्प्रेरक च जू असल मा मीथै साहित्य सर्जन का वास्ता पुल्यांदी भी च अर पल्यांदी भी च , यु म्यार साहित्य थेय  सशक्त अर सजीव बणाण मा संजीवनी बूटी जन्न काम करद |

*भी.कु- बाळपन मा क्या वातवरण छौ जु सै त च आप तै साहित्य मा लै ?
गी .नेगी - गढ़वाल मा बित्याँ कुछ बरस ,गोर बखरा चराणु , ग्वेर दगडियों दगड गीत लगाणु जौं  मा अधिकतर नेगी जी का गीत हुंदा छाई  , डांडीयूँ  मा काफल, हिसौन्ला -किन्गोड़ा टिपणा , ढंडीयूँ - गदनियुं  मा माछा मरणा ,बोल्ख्या पाटी अर कलम  लैक़ी स्कोल अटगुणु ,घंटी चूटाणु  ,ढुंगा लम्डाणु,  एक दुसर दगड छेड़ी करणु , अर ब्यो बारात क़ी रंगत अर हमारू खुश  वेक्की नचणु , दद्दी मा राति पुरणी कथा - कहानी जन्की लिंडरया छ्वारा ,कुणा बूट वली  डरोंण्या कहानी सुन्नण  ,  झुल्लाsक़ी गिन्दी बणाकी खेल्णु अर तमाम  उट्काम अर वेका बाद कंडली का झपका अर रसदार गढ़वली गाली |
 अ हा इन्न समझा क़ी वे टैम मा मीथै  आज  साहित्य का स्यारौं मा ल्याणु खुण यी सब बाल जीवन घुट्टी सी छाई | 

*भी.कु. कुछ घटना जु आप तै लगद की य़ी आप तै साहित्य मा लैन ?
गी .नेगी - पैली घटना गुरु जी अर सरया क्लास का समीण  कबिता पाठ वली छाई ,अक्सर गुरु जी अर दगडिया हिंदी  कबिता क़ी फरमाइश कैर दिंदा छाई ,पुलैय पुलैऽक़ी मी भी लगातार लेख्णु ही छाई पर एक दिन अचांणचक्क से मीथै सुचना मिल क़ी कॉलेज का वार्षिक समारोह मा "काव्य पाठ " मा मी बी   शामिल छौं  अर गोपाल दास नीरज कार्यक्रमऽक अध्यक्षता कन्ना कु आणा छीं दगड मा उत्तर प्रदेश अर उड़ीसा का पूर्व राज्यपाल बी . सत्य नारायण रेड्डी जी भी बतौर मुख्य अतिथि आणा छीं अर हिंदी का बड़ा प्रेमी मनखी छीं , कार्यक्रम मा कबिता पाठ का बाद हमर प्राचार्यऽल अंगुली से इशारा कैरिक जब मीथै  मंच भटैय  कड़क आवाज लगैऽक   भन्या बुलाई त मी   कुछ देर त डैर सी ग्युं किल्लैकी प्राचार्य जी विश्वविधालय का सबसे कड़क अर खतरनाक प्राचार्य मन्ने जांदा छाई पर जब उन्ल पूछ की क्या या कविता तुम्हरी ही लिक्खीं  चा ?  मिल हाँ मा जवाब दयाई त  बल एक कागज़ मा लेखिक द्यावा की या कबिता मेरी ही रचना च | कार्यक्रम का समापन संबोधन मा राज्यपाल महोदय मेरी रचना की प्रशंसा करना छाई , मीथै कबिता का वास्ता राज्यापाल महोदय से १००० रुपया कु नगद पुरूस्कार अर स्मृति चिन्ह भी दिए ग्याई अर  दगड मा प्राचार्य महोदय दगड टी पार्टी का दौरान एक सवाल की आप गढ़वाल से छो त क्या गढ़वाली मा भी लिखदो ?  येक बाद मीथै  विश्वविधालय परिसर मा आयोजीत काव्य प्रतियोगिता मा अपडा कॉलेज कु प्रतिनिधित्व  करणा कु अवसर मिल पर सबसे बड़ी बात डॉ ० हरिओम पंवार जन्न साहित्यकार का समिण कबिता पाठ अर उन्कू स्नेह आशीर्वाद मिलणु छाई  |
*
*भी.कु. - क्या दरजा पांच तलक s किताबुं हथ बि च ?
 गी .नेगी - ठेट गढ़वाली स्टाइल मा पहाडा पढ़णु , " उठो लाल अब आंखे खोलो "  जन्न कबिता थेय छंद अर लय मा जोर जोर से पढ़णु अर स्कोल मा प्रार्थना करणु ,गौं की      रामलीला अर होली की हुल्कर्या गीत सब्युंऽक भोत  बड़ी   आधारभूत  भूमिका मणदू मी साहित्यिक मिजाज तयार करणा मा |   

*भी.कु. दर्जा छै अर दर्जा बारा तलक की शिक्षा, स्कूल, कौलेज का वातावरण को आपौ साहित्य पर क्या प्रभाव च ?
 गी .नेगी -  ये  दौरान हिंदी साहित्यिकऽक साहित्यकारों जन्न प्रेम चन्द, जयशंकर प्रसाद ,सूर -कबीर -तुलसी ,आचार्य राम  चन्द्र शुक्ल ,सुभद्रा कुमारी चौहान ,मैथली शरण गुप्त ,दिनकर ,अज्ञेंय , राहुल ,हजारी प्रसाद , महादेवी वर्मा ,निराला और सुमित्रा नंदन पन्त और इंग्लिश लिटरेचर मा वोर्ड्स वोर्थ ,शैल्ली ,मिल्टन , शैक्सपीयर ,किपलिंग ,टैगौर आदि थेय पढ़णा कु अवसर मिल ,यु  बगत  साहित्य प्रेम की पुंगडियूँ  मा बीज बीजवाड बुतणा कु लगाणा कु बगत जन्न बोलैय  जा सकद  |

*भी.कु.- ये बगत आपन शिक्षा से भैराक कु कु पत्रिका, समाचार किताब पढीन जु आपक साहित्य मा काम ऐन ?
 गी .नेगी -   शुरुवात मा मिल प्रेमचंद की कहाँनी ,  उपन्यास , प्रसाद जी का कुछ  नाटक , मोहन राकेशऽक कहाँनी , देवकी नंदन खत्री कु चन्द्रकान्ता ,पंचतंत्र आदि ही पढ़ीं ,धीरे धीरे गढ़वली भाषा ,उत्तराखंड इतिहास ,गढ़वाली लोकगीत,गढ़वली लोक गाथौं अर प्रेम गाथाओं फर आधारित किताबौं थेय पढ़ना  कु शौक लग्गी ग्याई जू अज्जी तक बरकरार च | बिगत  कुछ बरसूँ  भटेय मी उत्तराखंड खबर सार ,चिट्ठी पत्री ,शैलवाणी  आदि लगातार पढ़णु छौं |

*
*भी.कु- बाळापन से लेकी अर आपकी पैलि रचना छपण तक कौं कौं साहित्यकारुं रचना आप तै प्रभावित करदी गेन ?
 गी .नेगी - पहलु नाम उत्तराखंड का महान गीतकार अर प्रिय गीतांग नरेंदर सिंह   नेगी जी कु च | चन्द्र सिंह राही , सुमित्रानंदन पन्त ,अबोध बंधू बहुगुणा ,चंद्र कुंवर बर्त्वाल ,गोबिंद चातक ,भजन सिंह जी , कन्हैया लाल ढंडरियाल जी , राहुल सांकृत्यायन ,मोहन राकेश , मंटो अर मुंशी प्रेमचंद  की  साधना से बहुत प्रभावित छौं ,सदनी यूँ से प्रेरणा मिलणी रैन्द |
*
*भी.कु. आपक न्याड़ ध्वार, परिवार,का कुकु लोग छन जौंक आप तै परोक्ष अर अपरोक्ष रूप मा आप तै साहित्यकार बणान मा हाथ च ?
   गी .नेगी - सबसे बडू हत्थ त समाजऽक च ,पहाड़ऽक च किल्लैकी साहित्य मा समाजऽक ही झलाक हुन्द ,छैल हुन्द |  स्वर्गीय दाजी श्री भूपाल सिंह नेगी जी अर मेरी दद्दी रामकिशनी  देवी जी  कु  आशिर्बाद अर प्रेरणा च , असल मा वू आज भी मी खुण गढ़वली जीवनऽक प्रतिबिम्ब जन्न छीं  , मिल दाजी थेय बालपन मा गीत लगान्द  भी सुण ,बांसोल बजान्द भी सुण , धक्की धैं धैं जन्न गीत भी मिल उन  से ही सुण ,मी आज भी अप्डी दद्दी से पुरणी छ्वीं ,गीत ,कथा सुणीक अप्नाप थेय भारी भग्यान सम्झुदु | मेरी गढ़वाली कबितौं या गीत मा आज भी उंका दगड बित्याँ दिनौं की  समलौंण कै ना कै रूप मा दिखै  जा सकद |

*भी.कु- आप तै साहित्यकार बणान मा शिक्षकों कथगा मिळवाग च ?
  गी .नेगी  - शिक्षकों ल सदनी लेखन का प्रति म्यार उत्साह बढ़ायी , स्कूल कॉलेज अर वेका बाद  विश्वविधालय स्तर तक कबिता पाठ उंकी ही प्रेरणा कु आरंभिक प्रतिफल छाई , यांमा प्रोफ़ेसर वकुल बंसल (भौतिकी विभाग ,जे .वी .जैन कॉलेज ,सहारनपुर ) , डॉ . आर . पी .वत्स ( तत्कालीन विभागाध्यक्ष , भौतिकी विभाग , महाराज सिंह कॉलेज ,सहारनपुर ), अर प्रोफ़ेसर सतबीर सिंह तेवतिया ( तत्कालीन विभागाध्यक्ष , भू- भौतिकी विभाग , कुरुक्षेत्र विश्वविधालय ) की बड़ी प्रेरणादायी भूमिका च |
*        
*भी .कु. ख़ास दगड्यों क्या हाथ च /
   गी .नेगी  - दगड्यों ल कबिता का प्रति सदनी मीथै हौंसला दयाई ,सुणणा का वास्ता समय अर अप्डू भारी स्नेह दयाई ,

*भी.कु. कौं साहित्यकारून /सम्पादकु न व्यक्तिगत रूप से आप तै उकसाई की आप साहित्य मा आओ
गी .नेगी - साहित्य मा आणा कु मीथै  कै भी साहित्यकार ल नी उकसाई ,असल मा यान्कू श्रेय समाज थेय  जान्द ,पहाड़  अर पहाड्क परिस्थियुं थेय  जान्द जौंल मीथै वैचारिक कलम चलाणु खुण सदनी उकसाई |
*
* भी.कु. साहित्य मा आणों परांत कु कु लोग छन जौन आपौ साहित्य तै निखारण मा मदद दे ?
  गी .नेगी -  असल  योगदान त आपकू ही च , हर कबिता मा सबसे पैलि प्रतिक्रिया आपकी ही आन्द ,कविता - गीत - कथा  अच्छी लगद ता कतगे बार आप मनोबल बढ़ाणा खुण  फ़ोन करण मा भी संकोच नी करदा  ,सुधार भी आप  तुरंत कैर दीन्दो , आपक स्नेही मार्गदर्शन भी लगातार मिलणु रैन्द , आप दगड भेंट अपना आपमा एक साहित्यिक  परिचर्चा कु कार्यक्रम हुन्द जैम कविता ,कथा ,व्यंग , अर उत्तराखंड  सम्बन्धी विषयों फ़र चर्चा कैरिक मन्न तृप्त व्हेय जान्द अर भोत कुछ सिखणा  खुण मिलद पर सबसे बड़ी चीज जू मीथै आपसे  मिलद वा च गढ़वली मा  सतत लेख्णा  की  प्रेरणा अर ऊर्जा,नै नै विषयों फ़र लेख्णा  की प्रेरणा | मेरी नज़र मा त आप एक जीवंत  उत्तराखंडी  इन्सक्लोपिडिया छौ , या कुई बोलण्या बात नी कि आप गढ़वाली साहित्य मा आज सबसे ज्यादा प्रयोग करणा छो  , आप गढ़वाली साहित्य  कु दुर्लभ ज्ञान  इंटरनेट का मार्फ़त सुबेर शाम प्रसाद  रूप मा बटणा छौ , कतगे बार आपक विषय पाठकों मा  घपरोल पैदा  करा दीन्दा जां से  सबसे बडू फैदा गढ़वाली साहित्य थेय यू मिल्दो कि पाठक गढवळी साहित्य मा रूचि ल़ीण मिसे जांद कि फका क्या हो णु च धौं! 
येम्म इंटरनेट का माध्यम से जुड़याँ सरया दुनिया का पाठकों  की प्रतिक्रिया की भी बड़ी भूमिका च ,मी आभारी छौं  आदरणीय डी .आर . पुरोहित जी (गढ़वाल  विश्वविधालय) ,पराशर गौड़ जी (कनाडा ) , भाई वीरेंद्र  पंवार जी (पौड़ी ) ,मदन दुकलाण जी (देहरादून ) , डी . डी सुन्द्रियाल जी (पंचकुला ) , नरेन्द्र कठैत जी (पौड़ी )  , भाई धनेश कोठारी जी (ऋषिकेश ) , जगमोहन सिंह जयडा जी (दिल्ली ) ,जयप्रकाश पंवार ( देहरादून ), खुशहाल सिंह रावत जी (मुंबई ),माधुरी रावत (कोटद्वार ) ,अर तमाम उन्ह साहित्यकारों कु जू बगत बगत प्रतिक्रिया -मिलवाग देकी मीथै  गढ़वली मा लेख्णा  कु सांसु दिणा रैंदी | 
Copyright@ Bhishma Kukreti, 23/6/2012
 
 


Regards
B. C. Kukreti


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