सांढ़ संस्कृति का तांडव मूसलाधार
पलाश विश्वास
सांढ़ संस्कृति का तांडव मूसलाधार।
मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र त्रिकोणमिति और रेखागणितीय प्रमिति की तरह है।निष्कर्ष पहल से तय है और उसे साबित करने की कवायद है,जो स्वयंसिद्ध है।
नीतियां पहले से तय हो जाती हैं और उन्हें सिद्ध करने के लिए परिभाषाओं और आंकड़ों का करतब।
मसलन बजट में दूसर चरण के सुधारों का प्लेटफार्म बन जाने के बाद अचानक विनिर्माण, बिजली और खनन क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन की बदौलत मई में औद्योगिक उत्पादन 4.7 प्रतिशत बढ़ गया। पिछले करीब 19 माह में यह बेहतर प्रदर्शन रहा है। इससे आने वाले दिनों में आर्थिक गतिविधियों में सुधार की उम्मीद बंधी है। इससे पहले अक्टूबर, 2012 में औद्योगिक उत्पादन में 8.4 प्रतिशत वृद्धि हुई थी।इसी क आधार पर ब्याज दरें तय होनी है और नये सिरे से अगले हफ्ते से शेयरों की उछल कूद होगी,निवेशक मेहरबान होंगे और चालाक लोग आसमान पर सेनसेक्स निफ्टी पहुंचाकर आयात निर्यात खेल की तर्ज पर मुनाफावसूली भी करेंगे।
यह भी एक अबूझ बेटिंग हैं जिसपर दांव लगाकर बुरबक जनता खुल्लेआम लुटी जाती है।सरकारी उपक्रमों का पैसा वहीं लगना है।आम जनता का बीमा प्रीमियम वही खपना है।
तो पीएफ, पेंशन और ग्रेच्युटी भी बाजार के हवाले हैं।
ब्रोकर छोटे और मंझोले निवेशकों को सलाह अलग देते हैं और कारपोरेट कपनियों को अलग।ऊपर सेबी कारपोरेट मेहरबान।
रिजर्व बैंक को काबू में रखने के लिए उत्पादन के आंकड़े फक्ष में होने चाहिए तभी सेनसेक्स तीस पार होगा।
अब खुदै वित्त मंत्री ब्रोकर की भाषा बोल रहे हैंःअरुण जेटली ने कहा, 'हम ज्यादा टैक्स वाली व्यवस्था नहीं चाहते हैं। पिछली सरकार की हाई टैक्सेशन की नीति के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है।'
एक टीवी चैनल पर बातचीत में उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि 1947 से अब तक कोई ऐसा आम बजट आया, जिसमें निम्न, मध्यम तथा अधिक आय वाले वर्ग के सभी करदाताओं को 50,000 रुपये तक की राहत दी गई।'
वित्तमंत्री ने कहा कि अगर सरकारी खजाने में और पैसे होंगे, तो सरकार और राहत देगी।
उन्होंने कहा, 'अगर कल सरकार के पास ज्यादा पैसे होंगे, तो मैं और राहत दूंगा।'
अरुण जेटली ने उम्मीद जताई कि करदाता और खर्च करेंगे, ज्यादा बचत करेंगे, जिससे आर्थिक वृद्धि बढ़ेगी ..
अब गधों की तबीयत हलकान कि इतना चारा कितना चरेंगे और कब तक चरेंगे।
सांढ़ों के तांडव का मूसलाधार इसी तरह जारी रहा तो मुद्रास्फीति,मूल्यवृद्धि,बेरोजगारी और भुखमरी भले बेलगाम हो कब्रिस्तानों औरस्मशानों के स्मार्ट सिटी सेज गलियारा बुलेट देश मेें विदेशी पूंजी की महिमा से सेनसेक्स पचास पार भी हो जायेगा।
निनानब्वे फीसद जनता को इन आंकड़ों,परिभाषाओं और अवधारणाएं मालूम नहीं है।नीति निर्धारण की हवा तक नहीं पहुंचती और अब पेड न्यूज देश में मीडिया में भी शत प्रतिशत एफडीआई हैं।
राजनीति वोट मांगने के लिए लाखों लोगों की रैली करते हैं गांव से लेकर महानगर तक,लेकिन नीति निर्धारण प्रक्रिया को समझाने,अर्थ व्यवस्था का तिलिस्म तोड़ने और आम जनता को बुनियादी जानकारी देने के लिए कुछ भी नहीं करती।न यह काम कोई सामाजिक संगठन करता है।
बाजार इससे जोश में है।आम जनता को मालूम नहीं है कि सुधारों की दशा और दिशा क्या होनी जा रही है।
बाजार को सबकुछ मालूम है।
बाजार सांढ़ों के कब्जे में है तो समाज भी सांढ़ों के कब्जे में।
बाजार में भी मुनाफावसूली का आलम है तो समाज में भी सबकुछ एटीएम।
रियल टाइम मनी।
बाकी उछलकूद,शोरशराबा नूरा कुश्ती।
ब्रोकरों को मालूम है कि विनिवेश की बुलेट ट्रेन चालू हो गयी है और पूरा देश ही अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तहत सेलआफ।
बाकी स्ट्रेटेजिक सेलआउट है।आम जनता को मालूम नहीं है।
जैसे जल्दी ही देश के सबसे बड़े नेटवर्क वाले वित्तीय संस्थान भारतीय स्टेट बैंक और उसके साथ ही देशी बैंकों में अन्यतम पंजाब नेशनल बैंक की इक्विटी बाजार में आनी है।सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक व पंजाब नेशनल बैंक इस साल पूंजी बाजार में उतर सकते हैं। वित्त मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। वित्तीय सेवा सचिव जी एस संधू ने उन्होंने कहा कि ये बैंक बेसल-3 को पूरा करने की खातिर पूंजी जुटाने के लिए पूंजी बाजार में उतर सकते हैं। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस पर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है।
इस बार विनिवेश के जो लक्ष्य तय हुए हैं उनमें केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बिक्री से 43,425 करोड़ रुपये और पूर्व सरकारी इकाइयों में बिक्री से 15,000 करोड़ रुपये शामिल हैं।
भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) में सरकार की 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की योजना है वहीं विनिवेश विभाग कोल इंडिया में भी 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने पर विवाद चल रहा है।
ब्रोकरों को मालूम है कि ओएनजीसी कोलइंडिया में धमाका तय है तो रेलवे का हो गया बंटाधार।इसीतरह सब्सिडी राजनीतिक बाध्यताओं से निपटन के बाद वैसे ही खत्म हो जानी है जैसे खुदरा कारोबार में भी प्रत्यक्ष विनिवेश तय है।आम जनता को मालूम नहीं है
ब्रोकरों को मालूम है कि सर्वत्र पीपीपी गुजरात माडल की जय जयकार सारी योजनाएं, परियोजनाएं और कार्यक्रम उसी मुताबिक।आम जनता को मालूम नहीं है
ब्रोकरों को मालूम है कि स्मार्ट शहरों,सेज और औद्योगिक कारीडोर के जरिये कृषि के खात्मे के साथ अंधाधुंध शहरीकरण के मार्फत भारत सरकार ही रियल्टी कंपनी हो गयी है।आम जनता को मालूम नहीं है।
अरुण जेटली के लिए चिदंबरम की सांख्यिकी को मानना व्यवहारिक ही है क्योंकि कुल मिलाकर फिर वही नीतियों की निरंतरता है।
इंफोसिस का सिक्का फिर चल गया।लगातार टाप पर रहने वाली इस कंपनी की दसों उंगलियां घी से सरोबार क्योंकि धारणा के विपरीत यूपीए के नक्श कदम पर एनडीए भी डिजिटल देश बनाने के बहाने बायोमेट्रिक नागरिकता के जरिये फालतू जनता को ठिकाने पर लगाने जा रही है।
आधार अब जनसंख्या रजिस्टर से नत्थी है और संशोधित नागरिकता कानून के तहत आधार पा चुके लोगों की विदेशी होने न होने की जांच भी होगी।
आम जनता को मालूम नहीं है।आधार के खिलाफ दुष्प्रचार के मुकाबले जागरुकता के विज्ञापनों की कमाई अलग तय है।
आधार असंवैधानिक योजना के सौजन्य से भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी सेवा प्रदाता कंपनी इंफोसिस आउट सोर्सिंग बढ़ाने के लिए स्मार्टफोन एप्स और अन्य नवीनतम तकनीकी में ज्यादा निवेश करने की योजना बना रही है। भारत के 100 बिलियन डॉलर के आईटी मार्केट में इस आकर्षक सौदे की दिशा में काम करने के लिए कंपनी विशेष ध्यान दे रही है।
भारत की दूसरी सबसे बड़ी सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवा कंपनी इन्फोसिस ने वित्त वर्ष 2014-15 की पहली तिमाही में उम्मीद से बेहतर आय दर्ज की है और कंपनी प्रबंधन ने संकेत दिया है कि कंपनी से संबंधित ज्यादातर समस्याएं अब दूर हो गई हैं। पिछली कई तिमाहियों से बाजार अनुमान से कमजोर वित्तीय परिणाम दर्ज कर रही कंपनियों ने अप्रैल-जून अवधि में मार्जिन और बिक्री वृद्घि के मोर्चे पर अच्छी वृद्घि दर्ज कर निवेशकों को भी उत्साहित कर दिया है।
ब्रोकरों को मालूम है कि गरीबी रेखा बेमतलब है।
बेमतलब है गरीबी की परिभाषा।
बेमतलब है विकास दर और वित्तीयघाटे के आंकड़े।
बाजार निरंकुश है।
कीमतें बाजार को तय करनी हैं।
कीमतें विनियंत्रित हैं।
सेवाएं विनियंत्रित हैं और विनियमित भी हैं।
बाकी कहने को बहुत है,सामाजिक क्षेत्र की योजनाएं भी अब रियल्टी है।
जनवितरण प्रणाली और सब्सिडी खत्म।
आम जनता को मालूम नहीं है।
अब तेंदुलकर और रंगराजन दोनों की परिभाषाें और आंकड़े बेमतलब हैं।
आम जनता को मालूम नहीं है।
विकासगाथा के उत्कर्षकाल के मुताबिक सिर्फ आंकड़े नीति मुताबिक तैयार किये जाने होते हैं और परिभाषाएं और पैमाने नये सिरे से समायोजित किये जाने होते हैं।
बजट के बाद अब वित्तीय सुधारों की बारी है और आर्थिक और खासकर मौद्रिक नीतियां वैश्विक छिनाल पूंजी की मर्जी मुताबिक तय की जानी है,जो अर्थ व्यवस्था के मूलाधार की नींव पर तय की जानी चाहिए। वह मूलाधार दरअसल उत्पादन प्रणाली है।
बजट के बाद धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं,जहां इस पद तक पहुंचने से पहले वे अवांछित थे।नीतिगत विकलांगता का आरोप मुक्त बाजार के ईश्वर पर लगाकर उन्हें सत्याच्युत करके अवांछित कल्कि के स्वागत में पलक पांवड़े बिछाये हैं अंकल सैम तो इसका मतलब भी कुछ निकलता ही है।
नीतिगत विकलांगता का आरोप कुल मिलाकर प्रतिरक्षा,आंतरिक सुरक्षा,बीमा और खुदरा बाजार को अमेरिकी महामंदी में मंद युद्धक अर्थव्यवस्था के लिए खोलने की कोई तरकीब नहीं निकाल पा रहे थे मनमोहन और उसी मनमोहन को एक झटके से हलाल कर दिया अमेरिका ने,जिन्हें चंद्रशेखर जमाने में उत्पन्न अभूतपूर्व भुगतान संतुलन संकट के मध्य नरसिम्हाराव सरकार में वाशिंगटन ने ही बतौर वित्तमंत्री और नवउदारवादी मुक्तबाजार के ईश्वर का दर्जा देकर रोपा था और बतौर वित्तमंत्री,बतौर प्रधानमंत्री वे विश्वबैंक से पेंशन भी लेते रहे,जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष व अन्य एमेरिकी वर्चस्व वाले वैश्विक संगठनों के शाथ नीति निर्धारण में पिछले तेईस साल के दौरान अहम भूमिका अदा करते रहे हैं।
अब सोवियत पतन के बाद एक ध्रूवीय विश्व में आतंक के विरुद्ध अमेरिका और इजराइल के ग्लोबल युद्ध में हिस्सेदारी के साथ भारत अमेरिकी परमाणु सैन्य गठजोड़ और संधि के आलोक में भारतीय राजनय की अमेरिकी और इजराइली हितों के संदर्भ में देखें।
इराक और अफगान युद्ध में भारत सरकार ने बाकायदा अमेरिकी बम वर्षकों को भारत से ईंधन भरने की इजाजत दी और हिंद महासागर से भारत की आकाशसीमाओं को छलांग कर अफगानिस्तान पर बम वर्षा की इजाजत भी दी।
अब मोदी जब अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं तो इराक में गृहयुद्ध जारी है और पूरा मध्यपूर्व अशांत है।
इसके साथ ही भारत के साथ अमेरिकी सैन्यगठजोड़ के सहयोगी जो इसव्कत भारत में आंतरिक सुरक्षा में भी भारत सरकार की मदद करती है,उस इजराइल ने गाजा पट्टी में प्रलयंकारी नरसंहार शुरु कर दिया है।
लेकिन हमेशा ऐसी घटनाओं पर खासकर एशिया और हिंदमहासागर के मामले में सक्रिय भारतीय राजनय फ्रिज में है।
भारत का शासक तबका अमेरिकी और इजराइली हितों के विरुद्ध कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है।जबकि अमेरिका के बाद भारत केसरिया महावली बनने को उतावला है और हिंदू राष्ट्र के एजंडे में उसकी उत्कट अभिलाषा है।
धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री एफडीआई परमवीर की अमेरिका यात्रा के मौके पर अमेरिकी पूंजी के पक्ष में रेडिंग आंकड़े भी पेश हो गये हैं।रेटिंग एजेंसियों ने शुक्रवार को कहा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.1 फीसदी पर रखने का लक्ष्य पूरा होना कठिन है। इसका कारण राजस्व मोर्चे पर अच्छे परिदृश्य का नहीं होना और सब्सिडी में कटौती का अभाव है।
क्रिसिल ने एक नोट में कहा, 'राजकोषीय घाटा प्राप्त करना मुश्किल होगा। सरकार कमजोर वृद्धि वाले साल में राजस्व में अच्छी वृद्धि की उम्मीद कर रही है।'
रेटिंग एजेंसियों के अनुसार जेटली का वित्तीय हिसाब किताब 'ढुलमुल' है और राजकोषीय घाटा अधिक रहने की पूरी गुंजाइश है।
एजेंसी का अनुमान है कि राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में 4.5 फीसदी रह सकता है। एजेंसियों ने यह भी कहा कि वित्त मंत्री अप्रत्यक्ष कर तथा कर राजस्व को पाटने के लिए विनिवेश से प्राप्त राशि पर ज्यादा उम्मीद लगा रहे हैं। उन्होंने विनिवेश से चालू वित्त वर्ष की बाकी अवधि में 58,400 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है लेकिन बजट में सब्सिडी में कटौती को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कहा गया है।
इंटरनैशनल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा, 'बजट में घाटा कम करने के लिए राजस्व तथा व्यय उपायों पर विस्तृत ब्योरे की कमी है। इससे यह उम्मीद करना कि घाटे के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा, मुश्किल है।'
वित्त मंत्री ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 58,425 करोड़ रुपये प्राप्ति का लक्ष्य रखा है। यह आंकड़ा अंतरिम बजट में पेश 51,925 करोड़ रुपये के मुकाबले 12.5 प्रतिशत अधिक है। बजट पत्र के अनुसार विविध पूंजी प्राप्तियों के तौर पर जेटली ने 63,425 करोड़ रुपये प्राप्ति का लक्ष्य रखा है। पिछले वित्त वर्ष तय आंकड़ों के मुकाबले यह लक्ष्य 13.6 प्रतिशत अधिक है।
आम तौर पर सरकार हरेक बजट में विनिवेश से मोटी रकम प्राप्त करने का लक्ष्य रखती है लेकिन इसे पूरा करने की दर खासा कम रहती है। 1991-92 से अब तक सरकार मात्र चार बार 1991-92, 1994-95, 1998-99 और 2003-04 में ही यह लक्ष्य हासिल करने में सफल रही है। दिलचस्प बात यह है कि जब 1999-2000 में जेटली के पास विनिवेश विभाग का प्रभार था तो सरकार 10,000 करोड़ रुपये लक्ष्य के मुकाबले केवल 1,860 करोड़ रुपये ही हासिल कर पाई थी। 1991-92 से 23 साल के दौरान विनिवेश से सरकार को 1.52 लाख करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई है।
जेटली का लक्ष्य थोड़ा अधिक हो सकता है क्योंकि इस वित्त वर्ष के दो महीने पहले ही गुजर चुके हैं। रेटिंग एजेंसी फिच ने विनिवेश से प्राप्त रकम का अनुमान व्यक्त करने में थोड़ा सतर्क रही है। फिच रेटिंग्स के प्रमुख (एशिया-प्रशांत सॉवरिन ग्रुप) एंड्रयू कॉलक्यूहॉन कहते हैं, 'यह देखने वाली बात होगी कि सरकार कर संग्रह और विनिवेश से प्राप्त राजस्व में कमी की स्थिति में कैसी प्रतिक्रिया देती है।'
अब समझ लीजिये कि सरकार ने आज कहा कि बजट 2014.15 से कर नीतियों में स्पष्टता आई है और वह राजकोषीय बाधाओं के बीच अर्थव्यवस्था को पुन: तेजी की पटरी पर लाने के लिए मुश्किल रास्तों पर चलेगी।
राजस्व सचिव शक्तिकांत दास ने कहा, 'प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर दोनों ही मोर्चे पर सरकार का मुख्य ध्यान आर्थिक वृद्धि में तेजी बहाल करने और विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि बहाल करने पर था। साथ ही रोजगार के अवसरों का सृजन करने, करों को तर्कसंगत बनाने, कर संबंधी मुकदमों में कमी लाने और नीतियों में अस्पष्टता दूर करने पर ध्यान था।' उद्योग मंडल फिक्की के साथ बजट उपरांत परिचर्चा में दास ने कहा कि बजट प्रस्तावों से कर नीतियों में अधिक स्पष्टता आई है।
दस जुलाई को संसद में पेश अपने पहले बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर छूट सीमा 50,000 रुपये बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर मध्यम वर्ग को राहत उपलब्ध कराने की कोशिश की। जेटली ने 80सी के तहत वित्तीय प्रतिभूतियों में निवेश की भी सीमा 50,000 रुपये बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपये की।
बजट में विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए कई प्रस्ताव किए गए हैं। साथ ही यह आश्वासन भी दिया गया है कि सरकार कोई नयी देनदारी या कर मांग का निर्माण करने के लिए कर कानूनों में पिछली तिथि से कोई संशोधन नहीं करेगी। उद्योगपतियों के साथ परिचर्चा के लिए वित्त मंत्रालय के अन्य सचिवों के साथ मौजूद वित्त सचिव अरविंद मायाराम ने कहा कि सरकार ने उद्योग जगत के साथ विचारों पर चर्चा का विकल्प खुला रखा है और वह उनकी चिंताओं को दूर करेगी।
मायाराम ने कहा, 'मेरा नजरिया यह है कि यह एक विकासोन्मुखी बजट है। यह अर्थव्यवस्था को तेजी की पटरी पर वापस लाएगा. हमें आगे बहुत मुश्किल रास्ते से गुजरना पड़ेगा, लेकिन यह हमारा दृढ़संकल्प है कि सरकार उस रास्ते पर चलेगी।' उल्लेखनीय है कि बीते दो वित्त वर्षों में भारत की आर्थिक वृद्धि दर घटकर 5 प्रतिशत से नीचे आ गई जिससे राजस्व संग्रह में कमी आई और राजकोषीय घाटा ऊंचा हुआ।
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.1 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा है जो पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी के 4.5 प्रतिशत पर था। मायाराम ने कहा कि उद्योग जगत ने तमाम मांगे रखी हैं। उन्होंने कहा कि यह बजट ही आखिरी मौका नहीं है तथा और भी अवसर आएंगे जहां इन मुद्दों को हल किया जा सकता है।
राजकोषीय घाटे को सीमित रखने के लक्ष्य के संबंध में उठायी जा रही आशंकाओं के संदर्भ में उन्होंने कहा, 'इस मामले में हमेशा ही चुनौतियां रहती हैं। हमें आगे बढ़ते हुए अनिश्चितताओं खासकर वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा। लेकिन फिलहाल हम आश्वस्त हैं कि हम राजकोषीय घाटे को 4.1 प्रतिशत पर रखने में कामयाब होंगे।' इस बीच, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव जीरएस संधु ने कहा कि अगले तीन साल में आर्थिक वृद्धि दर को 7-8 प्रतिशत पर लाने के लिये सरकार ने कई कदम उठाये हैं।
उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि में बैंक तथा खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अहम भूमिका निभाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत करने के लिये सरकार ने इन बैंकों को विनिवेश के जरिये बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाने की अनुमति दे दी है ताकि वे बासेल 3 मानकों को पूरा कर सके।
संधु ने कहा, 'कौन सा बैंक पहले कदम उठाएगा, इस पर हमें काम करना है। हमने सभी बैंकों से उनकी पूंजी जरूरत के संबंध में पूरी योजना के बारे में बताने को कहा है। कार्यक्रम जल्दी तैयार किये जाएंगे।' उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री जेटली ने बजट भाषण में कहा था कि हमारे सार्वजनिक बैंकों को 'बासेल-3 नियमों को पूरा करने के लिये 2018 तक 2,40,000 करोड़ रुपये की शेयर पूंजी की जरूरत होगी। इस भारी पूंजीगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये हमें अतिरिक्त साधन जुटाने होंगे।'
वित्त मंत्री ने कहा था कि सरकारी बैंकों में सार्वजनिक स्वामित्व को बरकरार रखते हुए इन बैंकों में जनता की हिस्सेदारी चरणबद्ध तरीके से बढ़ायी जाएगी और इसके लिये मुख्य रूप से देश के सामान्य नागरिकों को शेयरों की खुदरा बिक्री की जाएगी। इस समय विभिन्न सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 56.26 प्रतिशत से लेकर 88.63 प्रतिशत तक है।
संधु ने कहा कि बिजली क्षेत्र के संदर्भ में ऋण पुनर्गठन कंपनी (एआरसी) स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसके माध्यम से बैंक और वित्तीय कंपनियां मिलकर लंबित बिजली परियोजनाओं को पूरा करने का रास्ता निकालेंगे और बाद में एआरसी उस परियोजना को उसके प्रवर्तकों को सुपुर्द कर सकती है। उन्होंने कहा कि इसी तरह का एक प्रस्ताव राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने भी किया है जिसका हम स्वागत करते हैं।
Jul 12 2014 : The Economic Times (Mumbai)
FM Header Likely to Score, say Brokers
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NEW DELHI | MUMBAI OUR BUREAUS |
Most brokerages give thumbs-up to Budget
Brokerages have generally applauded the Narendra Modi government's first budget, seeing it as an attempt to give direction to the economy while grappling with fiscal constraints, although the stock markets don't seem to be entirely convinced.
The emphasis on fiscal consolidation and manufacturing, the signals on tax administration and the road map for the years ahead have been seen as positive.
On the other side of the balance were indecision on the retrospective tax amendment, optimistic revenue assumptions, lack of big ideas, no big policy announcements and the absence of any firm statement on subsidies.
Finance Secretary Arvind Mayaram defended the budget, saying it would be absurd to change things around in one budget statement. "There can't be a big idea like saying tomorrow morning I am going to abolish all subsidies," Mayaram told ET, adding the expenditure commission proposed in the budget will look into these issues. Mayaram said the Budget, which Finance Minister Arun Jaitley announced in Parliament on July 10, contained several positive elements in the details and that it will spur manufacturing and lead to a revival in growth, which has been below 5% for the past two years. Getting the economy moving again is one of the key tasks of the Modi government.
Morgan Stanley found the budget good enough to raise its June 2015 Sensex target 9% to almost 28,800, a 15% upside from Friday's close, saying "policy makers are moving in the right direction toward cutting back on redistributive policies and reviving investment sentiment." The stock markets seem to be ignoring that advice though, being more in tune with BNP Paribas, which said the budget wasn't spectacular and that Indian equity markets would underperform in the near term.
The BSE Sensex is down 4.1% from the eve of the railway budget while the Nifty Midcap 50 index is down nearly 12% in just three days, surrendering part of the nearly 50% gains made since January. The Sensex closed at 25,024.35 points on Friday, down 1.37% from the previous day, while the Nifty ended 1.43% down at 7,459.60.
The finance minister has done well despite limitations, Espirito Santo Securities said in a note after the budget.
"We think the budget is pragmatic, given the formidable constraints. Whilst lacking in major policy announcements, it lays out a roadmap for reforms and policy priorities over the next two-three years," it said.
Macquarie said the budget was "not blockbuster" but "within constraints, the new finance minister has been able to deliver a direction to the economic policy" and it recommended that investors buy cyclical stocks such as ICICI Bank, Axis Bank and Larsen & Toubro, stocks that have taken a pounding in the recent correction.
Deutsche Bank saw the emphasis on fiscal consolidation as the biggest positive in the budget, while regarding the absence of a road map on rationalizing subsidies as a negative.
Citi noted that the "details are promising" even though the budget lacked in transforma
tional ideas.
While there was no big-bang announcement, the overall tone was positive, HSBC said in a note to clients. "The new government made a positive statement of intent with the right messages on manufacturing. This should keep sentiment in the equity market buoyant," it added. Some brokers said that the reform process will be long and slow and the stock markets have already priced in positive sentiment.
"The sharp run-up in stock prices and the lack of near-term earnings triggers could keep the market range bound near term," Barclays said in a report.
"The Union Budget 2014-15 is the first major attempt by the Modi government to lay the groundwork for more reforms within the current fund-constrained environment." Most brokerages felt the revenue numbers were optimistic, with gross tax revenues projected to rise 17.7%.
Mayaram defended the estimate, by saying that the tax-toGDP ratio was 10.1% in 2013-14 at 4.7% growth. With 5.8% growth assumed this year, a taxto-GDP ratio of 10.6% was achievable, he said. Ambit was harsh in its criticism, calling the budget a missed opportunity, and saying that it smacked too much of the previous government's style of functioning.
"In its first major economic outing, the NDA lost an opportunity to reset the tone and tenor of policy in India. The lack of logic in fiscal arithmetic, the lack of clarity on how PSU banks will be recapitalised, the lack of clarity on the GST timeline… it all felt very UPA-esque," it said in a note.
Jul 12 2014 : The Times of India (Ahmedabad)
CBDT tells officials to cut down on frivolous appeals against taxpayers
Threshold To Approach Tribunal Raised To Rs 4L
The Central Board of Direct Taxes has issued internal instructions to tax authorities to cut down on frivolous appeals against favourable orders granted to taxpayers.
The threshold limit for filing an appeal before the Income Tax Appellate Tribunal (ITAT) by the tax department has been raised. Such appeals now cannot be filed unless the `tax effect' is Rs 4 lakh (the earlier threshold was Rs 3 lakh).
However, no change has been made in the threshold for appeals filed by the tax department before a High Court and subsequently the Supreme Court. Such appeals can be filed, if the tax effect is Rs 10 lakh and Rs 25 lakh respectively. In addition, the CBDT has instructed that merit must be the guiding factor while filing an appeal with higher judicial bodies tax tribunals and courts.
"The monetary limits so prescribed (for filing appeals) are merely a guiding factor.
They should not be considered as the only factor in arriving at the decision of going ahead with the appeal process," states CBDT's instruction. This instruction applies to income tax appeals filed on or after July 10.
While CBDT has always sent a signal that appeals should be filed by the tax authorities, only based on merit (even if the `tax effect' is beyond the threshold limits), it has once again stressed upon this point. In the past, the tax department has faced criticism for filing appeals without due application of mind the end result is that the taxpayer often wins the case after prolonged litigation.
Litigation entails costs not just for the taxpayer but also the tax department.
Worst weekly fall for Sensex since Dec 2011
Sensex on Friday tanked 348 points to end at 25,024.35 -its worst weekly drop since December 2011 and the biggest post-Budget slide in six years-amid and debt concerns in Portugal. P 17 The Public Accounts Committee (PAC) in its report tabled in both houses of the Parliament last August, pointed out the high volume of decisions that go against the tax department. In 2011-12, 35% of decisions given by ITAT went against the tax department. The corresponding figure was 38% for high courts and 33% for the SC.
The regular process of appeals in tax dispute involves three judicial layers the first appeal level is at the ITAT, then a high court can be approached if the issue involves a substantial question of law and finally the Supreme Court.
The tax effect, as defined in the CBDT's internal instruction, means the difference between the tax on the total income assessed by the tax department and the tax that would have been charged if the total income of the taxpayer was reduced by the income relating to disputed issues.
However, to safeguard the interests of the tax department, certain caveats have been built into the instructions.
For instance, just because on a particular disputed issue, the tax department has not appealed as the monetary threshold of the tax effect is low, it does not preclude it from filing an appeal on the same issue for another taxpayer (where the tax effect limit is beyond the prescribed threshold). Similarly , it can proceed with filing an appeal against the same taxpayer, on the same issue, in a subsequent year if the tax effect exceeds the monetary limit. For the full report, log on to http://www.timesofindia.com
Jul 12 2014 : The Economic Times (Mumbai)
LS Okay to Polavaram, T'gana Upset
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HYDERABAD: |
With the Lok Sabha passing the contentious Polavaram bill for the merger of over 200 villages of Telangana with AP, the government of Telangana is planning to challenge it in the Supreme Court. Terming the Centre's move "unconstitutional", Telangana CM K Chandrasekhar Rao said he was consulting constitutional experts. "The fight will continue. The modalities will be announced later," said a statement from the CM's office. He said passing the bill to convert an ordinance issued last month into a legislation was a clear violation of Article 3 of the Constitution as the consent of Telangana was not taken.
Jul 12 2014 : The Economic Times (Mumbai)
UIDAI to Spend Rs 30 Cr to Spruce Up Image
AMAN SHARMA |
NEW DELHI |
A BONA FIDE LEGAL ENTITY Identification agency wants to hire ad agency, dispel misconceptions on Aadhaar After Modi Gives Go-ahead to UIDAI
The Unique Identification Authority of India, the agency that issues the biometric Aadhaar identification card to citizens, is looking for an image makeover, and is willing to spend as much as Rs 30 crore a year for a media campaign.
Having got a thumbs up from Prime Minister Narendra Modi, UIDAI has put up a proposal to hire an advertising and creative agency to what it calls dispel misconceptions over the project that has a "spotless record" on the security of data collected. It wants the campaign to project Aadhaar as an example of nation building.
"In recent months, some reservations on Aadhaar have cropped up, mostly misconceived," says the proposal. There were misconceptions on lack of statutory status, compulsory usage of Aadhaar for public services, encroachment of individual privacy, use of untested biometric technology and partnership with private sector, it said. It needs to be stressed that UIDAI is a "bona fide legal entity" administrated "like any office" of the government and is "fully accountable" to Parliament and the Comptroller and Auditor General of India, its brief said.
Rajesh Bansal, assistant director general of UIDAI, said it is hiring a new agency to help with "information, education and communication related to Aadhaar" as the tenure of a few agencies empanelled earlier had ended.
Its previous budget for advertisement wasn't immediately available. He didn't comment on why the proposal doc ument is go ing into min ute details of the so-called misconcep tions around UIDAI and on its expec tations. UI DAI is look DAI is looking to hire an ad agency by August. The proposal says the new media strategy will cover social media as well.
The target audience will be people at large to encourage them to enrol for Aadhaar, as well as the corporate sector including telecom companies and policy-makers and influencers to make them "appreciate the transformational potential" of Aadhaar, it says.
Nandan Nilekani, the Info sys founder who was given the responsibility to run the project by the previous government, had resigned and unsuccessfully contested the Lok Sabha elections on a Congress ticket. Since it was conceived by the Congress, there had been speculation that the Modi government would downsize the Aadhaar project, as hinted in BJP's manifesto, in favour of the National Population Register (NPR) project. The home ministry had raised concerns over security and privacy issues, saying that UIDAI was employing private individuals to collect data unlike the NPR that relies on government officials.
But, according to sources, Modi has given a go-ahead to UIDAI to enrol more people beyond its existing mandate of 65 crore. He wants to accelerate the roll out of transferring subsidy money directly to consumers' bank accounts, a programme that uses Aadhaar numbers to identity the beneficiaries. The Union Budget on Thursday allotted Rs 2,039 crore to UIDAI against Rs 1,550 crore last year. Home ` Minister Rajnath Singh told Parliament this week that UIDAI and NPR would work in "synergy and mutual coordination" to speedily complete the task of enrolment.
Jul 12 2014 : The Economic Times (Mumbai) State Bank, PNB Likely to Hit the Markets Soon
GOVT DRAFTS ROADMAP PSBs need common equity of . Rs.2.4 lakh cr more by 2019 The country's largest lender State Bank of India and Delhi-based Punjab National Bank will soon hit the markets to meet their capital requirements. Financial services secretary GS Sandhu said on Friday that the government is preparing a roadmap for public sector banks (PSBs) to raise resources from the market. The government currently holds 58.6% stake in SBI and 58.87% in PNB, and is in talks with the two lenders on their public offers, said a senior finance ministry official, requesting anonymity . Sandhu, however, refused to divulge the names of the banks and said that the government will first like to improve the market-to-book value ratio which is less than 1 in most PSBs. "We are devising a strategy on how much stake dilution can be done in state-owned banks. This will be staggered over a period of five years," he said. PSBs require additional common equity of . 2.4 lakh crore by the year 2019. ` In his budget speech, finance minister Arun Jaitley had said that in order to meet the capital requirements of state-owned banks, the government proposes to raise capital by sale of shares largely through the retail route while preserving the public ownership of the lenders. The finance ministry will also push for consolidation in public sector banks and is exploring various proposals in this regard. "We will play a more proactive role," said Sandhu, adding that the State Bank of India (SBI) should be able to merge some of its associates this fiscal. The government will also prod state-owned banks to hive off their non-core business such as insurance or get them listed to raise resources. The finance ministry is also looking at other measures to help banks meet the capital requirements under the Basel III norms. "Bank of India has also given a proposal to use its real estate for raising additional cap ital," said Sandhu. The finance ministry is also in discussion with the power ministry and National Highways Authority of India (NHAI) to set up sector-specific asset reconstruction companies (ARCs). "We are working on the details for these two ARCs which will be jointly funded by PSU companies and will take over projects which are stuck and revise these assets," said Sandhu. The finance ministry is also looking to provide greater autonomy to PSBs; it is examining a proposal which seeks five-year tenure for the chairman and managing director, besides better quality of nominee directors. The government will also open 15 crore new bank accounts under the new financial inclusion scheme which seeks two bank accounts in each household.
Jul 12 2014 : The Economic Times (Mumbai) Govt Likely to Scrap Lock-in Period for Defence FDI
Move may do away with some unnecessary irritant stopping fund flow to the sector Soon after liberalising norms for foreign direct investment (FDI) in the defence sector, the Narendra Modi-led NDA government is looking to further sweeten the deal by scrapping the three-year lock-in period imposed on foreign investors. "The lock-in acts as an unnecessary deterrent to foreign investment," a senior official told ET, adding that the new government could do away with the stipulation that prohibits foreign investors in the sector from transferring equity to another non-resident investor, including non-resident Indians, for a period of three years from the date of allotment. As per the rules, foreign investors are required to seek prior approval of the government for any such transfer even after three years. "It's an anomaly as FDI in all manufacturing sectors is easily repatriable," said the official, who did not wish to be identified. In any case, majority control would remain in Indian hands even after doing away with the lock-in, the official added. Finance minister Arun Jaitley , who also holds the defence portfolio, had in his Budget speech announced an increase in the composite cap on foreign exchange to 49%, with full Indian management and control through the FIPB route. "India today is the largest buyer of defence equipment in the world and domestic manufacturing capabilities in this area are still in a nascent stage. We are buying substantial part of our defence requirements directly from foreign players, companies controlled by foreign governments and foreign private parties are supplying our defence requirements to us and at a considerable outflow of foreign exchange," Jaitley said in his maiden Budget speech on July 10. India had capped FDI in defence at 26% through the approval route while permitting 100% FDI in cases involving technology transfer after an approval from the Cabinet Committee on Security (CCS). The country has managed to attract only $4.94 million in FDI in the sector over the past 14 years. The department of industrial policy and promotion had in its discussion paper proposed 49% in cases where there is no technology transfer, 74% with technology transfer and 100% FDI in state-of-the-art technology . The department had also moved a cabinet note, but the new NDA government decided to announce the move in the Budget as it was keen to spur manufacturing and send a strong signal to foreign investors. A government panel headed by finance secretary Arvind Mayaram had last year suggested that FDI up to 49% be allowed in defence through the approval route and above that with the CCS nod. However, the defence ministry shot down the proposal citing security concerns and favoured a higher FDI limit only if it involved transfer of state-ofthe-art technology . deepshikha.sikarwar @timesgroup.com Jul 12 2014 : The Economic Times (Mumbai) ET Q&A - `We have Created an Environment for People to Invest'
The budget has done enough to address concerns over retrospective amendment and has many measures to provide stability and predictability in tax policy, Revenue Secretary Shaktikanta Das said. In an interview with Deepshikha Sikarwar and Vinay Pandey, he defended the revenue numbers, saying a pickup in economy as anticipated will provide buoyancy to taxes. Edited excerpts: There was lot of expectation that the government will scrap the controversial retro amendment... It is not a question of individual companies. The bigger issue is investor sentiment. The government has tried to address this problem of investor sentiment. The finance minister has sent a strong message in his speech that the government will not use retrospective amendment to create fresh liability. It would be very careful with retrospective changes and no such change would be ordinarily made. He has also said that all pre-2012 cases that have not been adjudicated will have to be reported by the assessing officer to a highlevel committee in CBDT (Central Board of Direct Taxes) before any action is taken. The committee would then take a considered view on it. Your revenue assumptions seem on the higher side. Will this lead to aggression on the field? Growth in direct tax revenues has been projected at last year's level, around 15%. With growth expected higher, we should be able to manage that. Indirect tax growth is projected higher. This is because we expect tax buoyancy once our measures for the manufacturing sector begin to show their effect. FM has already said that the tax department will play a nonadversarial role. Wherever there is tax due, it will be tracked and collected. But, there will be no unnecessary harassment. Also, if we are lucky with monsoon, tax buoyancy will be good. Why did the government not give a time-frame for the implementation of goods and services tax? There are still a few issues open with regard to GST. Without a convergence on these issues with states, it was not be possible to announce a date. It would have been inconsequential to announce a date. Some states wish to keep petroleum and entry tax out of the purview of GST. They also want a mechanism for GST compensation. You need time to resolve these issues. There was lot of expectations from this budget? Will this spur investments? This budget brings in lot of policy stability. There are a whole host of steps that will aid economic recovery. We have proposed investment allowance for smaller enterprises and this would spur investments in the segment. We have introduced uniform withholding tax for all external commercial borrowings. We have extended tax holiday to the power sector. We have continued with 15% rate for dividends repatriated by Indian companies back here and also removed the sunset. Fund managers sitting in Singapore or other places would be encouraged to move back to India with the new tax regime. We have essentially created enabling environment for people to invest. There is sufficient encouragement for investment. How will this budget aid manufacturing? The key focus of this budget was on reviving growth. The correction in inverted duty structure will have a huge impact across sectors and help domestic manufacturers. Measures taken will help domestic manufacturers to compete with foreign goods.
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