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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, July 17, 2014

सेज महासेज खुलने लगे,बिखरने लगा पर्यावरण और अब देखिये दावानल का जलवा!

सेज महासेज खुलने लगे,बिखरने लगा पर्यावरण और अब देखिये दावानल का जलवा!

पलाश विश्वास

सेज महासेज खुलने लगे,बिखरने लगा पर्यावरण और अब देखिये दावानल का जलवा।

गौरतलब है कि दुनिया के बेहद गरीब लोगों में से एक तिहाई भारत में रहते हैं और यहां पांच साल से कम उम्र में मौत के मामले सबसे अधिक होते हैं। सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने यहां यह रिपोर्ट जारी की। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट के तथ्य नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए चुनौती हैं और वह इससे निपटने में सफल रहेगी। नजमा ने कहा, ''अच्छे दिन आएंगे।''

अच्छे दिनों की आहट दरअसल छापामार हमलों में तब्दील होने जा रही है।सेज को रिवाइव हीं नहीं कर दिया गया,निजीकरण को विनिवेश परिभाषित करने वाले लोगों ने सेज को औद्योगिक गलियारा और महासेज को अब स्मार्ट सिटी में कायाकल्पित कर दिया है।सेज का विकराल विदेशी चरित्र अब विकास के कामसूत्र मुताबिक दिलफरेब दिमागपलटू है।इसके साथ ही जबरन बेदखली के खिलाफ जनविद्रोह को सिरे से राष्ट्रद्रोह घोषित करते हुए धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता के आवाहन के साथ भारतीय जनता के विरुद्ध नयी युद्ध प्रस्तुतियां घनघोर हैं।


अब सलवा जुड़ुम का मायने आदिवासी के विरुद्ध लामबंद आदिवासी ही नहीं है,बल्कि ग्लोबीकरण और मुक्तबाजार का मलाई मक्खन खोर एक प्रतिशत के खिलाफ अर्तव्यवस्था से लेकर समाज में जाति व्यवस्था,नस्ली भेदभाव और भौगोलिक अस्पृश्यता के मार्फत बहिस्कृत निनानब्वे फीसद जनगण का अतीत भविष्य और वर्तमान है और इस निनानब्वे फीसद में ध्वस्त उत्पादन प्रणाल की पूरी श्रमशक्ति,सारी की सारी कृषि जीवी जनता के अलावा ज्यादातर स्त्रियां,युवाजन,बुजुर्ग और बच्चे शामिल है जिनक लिए कारपोरेट केसरिया सब्जबाग के अच्छे दिनों के बहाने मूसलाधार दूसर चरण के आर्थिक सुधार हैं।


बजट पर वैदिकी सभ्यता अभी भारी है।भारत सरकार और सत्तादल के साफ इंकार के बीच सहयोगी शिवसेना की रणहुंकार के मध्य और वैदिकी के खिलाफ केंद्रीयएजंसियों की कवायद के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मजबूती के साथ वैदिकी के साथ है और इससे स्वयं सिद्ध है कि जैसे मैंने पहले ही लिखा है कि बजट पर चर्चा न होने देने के लिए यह मामला वैदिकी अंब्रेला है।उधर ट्राई संशोधन पास करने में मोदी के साथ खड़ी वामासुरमर्दिनी ममता बनर्जी का भगवाकरण भी तेज हुआ है जो अब जनहित में मोदी के राजकाज का समर्थन करेगी।जाहिर है कि रंग बिरंगी अस्मिताओं के साथ कांग्रेस के जनहिते के सेज महासेज प्रतिमान भी समानधर्मी हैं।

गाजा में इजरायली नरसंहार के खिलाफ जब विश्व जनमत हर रोज इजरायली हमले के खिलाफ तेज से तेज स्वर में प्रतिरोध दर्ज करा रहा है,तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करने वाले हम आधिकारिक तौर पर भारत की ओर से इसकी निंदा भी नहीं कर पा रहे हैं।इससे समझ लीजिये कि विदेशी छिनाल पूंजी,युद्धक जायनवाद और अमेरिकी हितों का यह रसायन भोपाल गैस त्रासदी से कितना ज्यादा मारक होनेवाला है।


दूसरी ओर,बजट पर वैदिकी सभ्यता अभी भारी है।भारत सरकार और सत्तादल के साफ इंकार के बीच सहयोगी शिवसेना की रणहुंकार के मध्य और वैदिकी के खिलाफ केंद्रीयएजंसियों की कवायद के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मजबूती के साथ वैदिकी के साथ है और इससे स्वयं सिद्ध है कि जैसे मैंने पहले ही लिखा है कि बजट पर चर्चा न होने देने के लिए यह मामला वैदिकी अंब्रेला है।उधर ट्राई संशोधन पास करने में मोदी के साथ खड़ी वामासुरमर्दिनी ममता बनर्जी का भगवाकरण भी तेज हुआ है जो अब जनहित में मोदी के राजकाज का समर्थन करेगी।

जाहिर है कि रंग बिरंगी अस्मिताओं के साथ कांग्रेस के जनहिते के सेज महासेज प्रतिमान भी समानधर्मी हैं।



सेज पर पिछले दस सालों में शायद सबसे ज्यादा बोला लिखा गया है।नंदीग्राम सिंगुर सेजविरोधी आंदोलनों के कारण बंगाल में पैंतीस साला वामशासन का ही अंत नहीं हो गया,बाकी देश में भी वाम जनाधार तितर बितर हो गया।यह आंदोलन जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ संगठित हुआ और इसका असर महाराष्ट्र से लेकर पंजाब और यूपी के भट्टा परसौल में भी हुआ।


सेज विरोधी आंदोलन की वजह से ही भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून पास करके 1884 के एकतरफा कानून को बदल दिया गया।


कारपोरेट केसरिया सरकार ने सेज को पुनर्जीवित ही नहीं किया है,बल्कि भूमि सुधार कानून के कारपोरेट हितों के विरोध वाले प्रावधान हटाने की भी पूरी तैयारी कर दी है।


भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन की वजह से आबंटित कोयला ब्लाकों को अभीतक विकसित नहीं किया जा सका है। तो पर्यावरण हरीझंडी न मिलने के कारण अरबों डालर की विदेशी पूंजी का निवेश निलंबित है। नियमागिरि में अपढ़ आदिवासी पंचायतों ने महाबलि वेदांत की परियोजना रोक दी।


जाहिर है कि संविधान के तहत प्राकृतिक संसाधनों पर राष्ट्र और जनगण के अधिकारों के संरक्षण हेतु जो संवैधानिक प्रावधान हैं,उनको खत्म करना करोड़पति अरबपति रीजनीतिक कारपोरेट तबके का मुख्य कार्यभार है और अमेरिकी जायनी हितों के मुताबिक इसे बखूब अंजाम दिया जा रहा है।


अदाणी पोट्र्स ऐंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) को हरी झंडी पर्यावरण और समुद्रतट संरक्षण कानून के विपरीत मिली है,जो जबर्दस्त ब्रेकथ्रू है लंबित परियोजनाओं के लिए।


नमो सुनामी में जाहिर है कि अदाणी समूह की भी किंचित भूमिका की चर्चा हो चुकी है और इसका दोहराव उसी तरह जरुरी नहीं है,जैसे रिलायंस का।


खास बात तो यह है कि तमाम सरकारी बंदरगाहों को बेसरकारी बना देने की भी योजना है। विमानन,रेलवे,मेट्रो,भूतल परिवहन के बाद अब समुद्र पर भी विदेशी पूंजी का शिकंजा कसने ही वाला है।


इसी सिलसिले में अदाणी समूह की विजयगाथा पठनीय है।


तेल गैस के भंडार तो ओएनजीसी से लेकर रिलायंस समूह को भेंट में दे ही दिये गये हैं और अब ओएनजीसी के सेल आफ के बाद सामुद्रिक संसाधनों पर मुकम्मल कब्जा हो जाना है।


इसी सिलसिले में हाल में बांग्लादेश के साथ हुए समुद्र समझौते का उल्लेख करना जरूरी है।दक्षिण चीन सागर के तेलक्षेत्र को लेकर आंतरजातिक विवाद में फंसने वाले भारत ने जिसतरह 19 हजार वर्गकिमी तेलक्षेत्र बांग्लादेश को सौंप देने के लिए तुरत फुरत राजी हो गया,उसके पीछे हुए खेल का खुलासा बाकी है।


क्षेत्रीय शांति की परवाह अगर भारत के वर्चस्ववादी सत्तावर्ग को होती तो पड़ोसियों से संबंध इतने बुरे भी नहीं होते।दरअसल बांग्लादेश में सबसे बड़े दाता जापान है तो हाल में मोदी के राज्याभिषेक के मध्य चीन से भी आर्थिक सहयोग और जलसंधि के समझौते कर चुकी हैं हसीना वाजेद।


इसी सिलसिले में गौरतलब है कि मोदी सरकार ने बांग्लादेश को यूपीए सरकार के जमाने के अनुदान में भी कटौती कर दी है।


तो यह समझने वाली बात है कि भारत में तेल गैस की एकमात्र सक्षम सराकारी कपनी ओएनजीसी जब सेलआफ  पर है तो किस कंपनी को हिंद महासागर के अब तक भारत के कब्जे में रहे 19 हजार वर्गकिलोमीटर बांग्लादेशी तेल गैस क्षेत्र भेंट में मिलने वाली है।


इस सिलसिले में यह भी गौरतलब है कि भारत में रिलायंस को गैस आपूर्ति के लिए करीब नौ डालर का भाव मिलना तलवार की धार की तरह अर्तव्यवस्था का बोझ है तो बांग्लादेश में यही गैस रिलायंस की ओर से दो डालर के भाव से बेची जाती है।


तो समझ में आने वाली बात है कि इस 19हाजार वर्ग किमी तेल गैस क्षेत्र पर किसकी दावेदारी सबसे मजबूत रहनी है।


अब देखें कि अदाणी पोट्र्स ऐंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) ने कहा है कि उसके 8, 481 हेक्टेयर विशेष आर्थिक क्षेत्र को पर्यावरण के साथ-साथ अन्य दूसरी मंजूरियां भी मिली हैं।


दावा यह किया जा रहा है कि इस कदम से निर्यात को बढ़ावा देने के साथ-साथ विलवणीकरण (समुद्र के पानी से नमक को हटाना) और गंदे पानी को शुद्ध करने के लिए संयंत्र स्थापित करने की राह भी सुगम हो जाएगी। कंपनी ने एक बयान में कहा, 'अदाणी समूह के एपीएसईजेड को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मुंद्रा के 8, 481 हेक्टेयर विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए पर्यावरण और तटीय नियमन क्षेत्र से जुड़ी मंजूरी मिली है।'


गौरतलब है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लाने और निर्यात आधारित वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र के विकास पर जोर दिया जा रहा है।


सेज में औद्योगिक इकाइयों को पूंजीगत वस्तुओं और खरीदे गए कच्चे माल के आयात शुल्क/उत्पाद शुल्क/सेवा कर पर पूरी छूट का फायदा मिलेगा।


बयान में कहा गया है कि सेज कई उद्योगों को बढ़ावा देगा।मंजूरी मिलने से देश के एकमात्र बंदरगाह आधारित एपीएसईजेड को एक बड़ा विलवणीकरण संयंत्र और गंदे पानी के शुद्धीकरण करने से जुड़ा संयंत्र स्थापित करने और समुद्री पानी लेने का अधिकार मिल जाएगा।


गौरतलब है कि  किसी विशेष आर्थिक क्षेत्र में कोई कारोबारी इकाई की स्थापना करने के लिए कंपनियों के लिए यह प्राथमिक बुनियादी ढांचा होता है।


अदाणी समूह के अध्यक्ष गौतम अदाणी ने कहा, 'मुंद्रा सेज को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से मिली पर्यावरण मंजूरी से सेज में निवेश को बढ़ावा मिलेगा और वहां विकास भी तेज रफ्तार के साथ होने की उम्मीद है क्योंकि यहां समुद्र, रेल और सड़क के जरिये बाधारहित संपर्क की गुंजाइश है।'


कल ही मैंने आईटी सेक्टर के सिमटने की छेतावनी दी थी और आज खबरे बता रही हैं कि इस सर्वनाश में बहुत देरी भी नहीं है।


मसलन, प्रोद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी माइक्रोसाफ्ट ने अब तक की सबसे बड़ी छंटनी की घोषणा की योजना बनाई है और यह भारतीय मूल के कार्यकारी सत्य नडेला के पद-भार ग्रहण के बाद से कर्मचारियों की छंटनी का पहला मौका होगा। नडेला ने पिछले सप्ताह कर्मचारियों के लिए जारी चिट्ठी में सांगठनिक बदलाव का संकेत दिया था। न्यूयार्क टाइम्स की खबर के मुताबिक माइक्रोसाफ्ट की गुरूवार को छंटनी की घोषणा करने की योजना है और यह अब तक की सबसे बड़ी छंटनी होगी। इससे पहले 2009 में सबसे अधिक संख्या में कर्मचारियों की छंटनी हुई थी जबकि 5,800 लोग इससे प्रभवित हुए थे।


इलेक्ट्रानिक कयामत की दूसरी बड़ी सूचना यह है कि सॉफ्टवेयर क्षेत्र की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट फिनलैंड में अपनी मोबाइल फोन इकाई से एक हजार नौकरियों की कटौती की योजना बना रही है। सूत्रों के हवाले से फिनलैंड के समाचार पत्र हेलसिनजिन सैनोमैट ने यह खबर प्रकाशित की है।

नोकिया के अधिग्रहण के साथ हाल ही में इसके 25 हजार कर्मचारियों को माइक्रोसॉफ्ट में भेजा गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माइक्रोसॉफ्ट के अब 1,27,000 कर्मचारी हैं। यह संख्या उसके प्रतिद्वंद्वियों एपल और गूगल से कहीं ज्यादा है। लिहाजा, उम्मीद की जा रही है कि कंपनी में बड़े स्तर पर छंटनी होगी। न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग ने सोमवार को कहा था कि नौकरियों में कुल कटौती माइक्रोसॉफ्ट के इतिहास में सबसे बड़ी हो सकती है। सीईओ सत्य नडेला जल्द ही इस बाबत एलान कर सकते हैं। यह 2009 में की गई 5,800 नौकरियों की कटौती को भी पीछे छोड़ देगी।

हेलसिनजिन सैनोमैन के अनुसार, माइक्रोसॉफ्ट उत्तरी फिनलैंड में स्थित नोकिया की अनुसंधान एवं विकास इकाई को बंद करने की योजना बना रही है। वर्तमान में फिनलैंड गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इसके और बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।


इसी के मध्य अमेरिका में नमो प्रशस्ति क स्वर तेज होने लगे हैं।वहां भी अब भारत की तरह ही नमो मंत्र की अखंड जाप है।

हमारी धर्मोन्मादी पढी लिखी जनता के लिए अपार हर्षोल्लास का सबब है गुजरात माडल के यह अभिनव ग्लोबीकरण।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर पड़ोसी मुल्कों से रिश्तों में सुधार की जो नई शुरुआत की थी अब उसकी अमेरिका में भी तारीफ हो रही है। अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों, विशेषज्ञों एवं सांसदों ने दक्षेस देशों के साथ रिश्तों में सुधार के लिए उनके कदमों की तारीफ करते हुए कहा कि मोदी ने पाकिस्तान सहित अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में ठोस प्रतिबद्धता दिखाई है।


उधर, पेट्रोलियम मंत्रालय रिलायंस इंडस्ट्रीज को बंगाल की खाड़ी में गैस के तीन ज्ञात भंडारों को अपने पास रखने की छूट देने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के सामने रखेगा। तकनीकी विवाद के कारण अपतटीय केजी बेसिन क्षेत्र में खोजे गए इन भंडारों के विकास की समय-सीमा बीत चुकी है जबकि इनमें 1.45 अरब डॉलर की गैस का अनुमान है।


आरआईएल डी-20, 30 और 31 नाम से चिह्नित इन खोजों के लिए विकास योजना नहीं सौंप सकी है। इनमें अनुमानित 34.5 अरब घन फुट का गैस भंडार है। इन भंडारों की पुष्टि को लेकर परीक्षणों के बारे में उत्खनन नियामक हाइड्रोकार्बन महानिदेशक (डीजीएच) के साथ कंपनी के विवाद के चलते विकास प्रकल्प प्रस्तुत करने का समय पार हो गया।


इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि पेट्रोलियम मंत्रालय का मानना है कि उक्त खोजों को वापस लेने और इनके लिए फिर से बोली लगाने की प्रक्रिया से इसके विकास में देरी हो सकती है। पेट्रोलियम मंत्रालय का मानना है कि ये गैस क्षेत्र रिलायंस से ले लेने पर कंपनी उसके खिलाफ पंच निर्णय का मुकदमा लगा सकती है। इससे वहां से उत्पादन में और देरी होगी तथा खर्च भी बढ़ेगा। आरआईएल इस अपतटीय क्षेत्र में अपने मौजूदा बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल कर के उक्त तीनों जगहों से गैस उत्पादन जल्दी करने की स्थिति में है।


मौजूदा दर 4.2 एमएमबीटीयू के भाव पर वहां के भंडार का मूल्य 1.45 अरब डॉलर आंका गया है। सूत्रों ने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय इस मामले में उत्पादन में भागीदारी के अनुबंध (पीएससी) में ढील देने के लिए आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) के समक्ष प्रस्ताव रखने जा रहा है। इसके मसौदे पर वित्त एवं कानून मंत्रालय और योजना आयोग से टिप्पणी मांगी जा रही है।


आम बजट पेश होने के बाद बाजार की उम्मीदों और लोकलुभावन नीतियों के बीच बेहतर संतुलन न रख पाने को लेकर आलोचनाओं से घिरे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह यात्रा की शुरुआत भर है और उन्होंने वही किया जो मौजूदा हालात में किया जा सकता था। वित्तमंत्री ने कहा, 'यह हमारी यात्रा की शुरुआत है न कि अंत। अभी हम जितना कर सकते थे, हमने उतना किया। पहले ही दिन सभी फैसले नहीं किए जाते हैं।'


जेटली ने 10 जुलाई को अपना पहला बजट पेश किया। रेटिंग एजेंसियां विशेषतौर पर पिछली तारीख से किए गए कर संशोधन को वापस नहीं लेेने और उद्योगों को पर्याप्त रियायत प्रदान नहीं करने की आलोचना कर रही हैं। उन्होंने हालांकि वेतनभोगियों को राहत देते हुए 22,200 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष कर को छोड़ दिया। जेटली ने इस आलोचना को खारिज करते हुए कि सरकार ने कई एसे महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं जो जरूरी थे और पिछले 10 साल में इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गए। जेटली ने कहा 'इनमें सभी मुद्दे बीमा, रियल एस्टेट, रक्षा, पिछली तारीख से कर संशोधन, कराधान का सरलीकरण आदि महत्वपूर्ण थे। इसलिए 45 दिन में हमने इन सब पर ध्यान देने की कोशिश की है और फिर हमने विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान दिया है।'


उन्होंने कहा 'ये महत्वपूर्ण फैसले हैं। हमारी सरकार का नजरिया उन क्षेत्रों के बारे में बिल्कुल साफ है जिन्हें और राहत देनी है। आम आदमी पर आप कितना बोझ देंगे। यही वजह है कि हमने व्यक्तिगत कराधान को तर्कसंगत बनाने की कोशिश की है। हमने उल्टे कर ढांचे को भी समाप्त किया है।' बजट में वेतनभोगियों को राहत देते हुए आयकर छूट सीमा 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.50 लाख रुपये करने और बचत योजनाओं में निवेश की सीमा 1 लाख रुपये सालाना से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये करने का प्रस्ताव किया गया है। उन्होंने कहा राजकोषीय घाटा कम करने के दो तरीके हैं - या तो आप कम खर्च करें या फिर ज्यादा कमाई करें। उन्होंने कहा 'आदर्श स्थिति यह है कि आपको ज्यादा आय अर्जित करनी चाहिए क्योंकि कम खर्च करते हैं तो व्यय कम होने लगता है और हो सकता है कि अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्से में संकुचन पैदा हो जाए।'


बजट की संसदीय भूमिका पर बिजनेस स्टैंडर्ड की यह रपट मौजूं हैः

एक वरिष्ठï केंद्रीय मंत्री से जब यह पूछा गया कि इस बजट से उनके मंत्रालय के ढांचे में क्या बदलाव होगा तो उन्होंने मजाकिया लहजे में यही कहा, 'सच कहूं तो मुझे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता।'

ज्यादातर सांसदों का मानना है कि अगली सरकार बजट में फेरबदल जरूर करेगी। सांसदों ने इस बजट के राजनीतिक इस्तेमाल पर भी सवाल खड़े किए, उनका मानना है कि इससे न तो चुनावों में किसी दल को फायदा मिलेगा और न ही इससे कोई नुकसान होगा।

उम्मीद के मुताबिक अंतरिम बजट को लेकर सबसे अधिक उत्साह कांग्रेस के सांसदों के बीच ही देखने को मिला। पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल ने कहा, 'वित्त मंत्री ने क्या शानदार काम किया है। उन्होंने दिखा दिया कि वैश्विक मंदी के बावजूद हर साल तरक्की हुई है। पांच सालों के दौरान औसतन 6.2 फीसदी की वृद्घि दर देखने को मिली जो राजग सरकार के कार्यकाल के मुकाबले कहीं अधिक है।'

दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कुछ अलग ही अंदाज में बजट की खूबियों के बारे में बात की। उन्होंने कहा, 'सभी मानकों के मुताबिक यह एक अच्छा बजट है। पिछले पांच सालों के संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान करीब 14 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से ऊपर उठे हैं। कृषि क्षेत्र की औसत विकास दर 4 फीसदी रही।' अच्छी खाद्यान्न पैदावार का श्रेय मॉनसून को देने के बजाय उन्होंने कहा, 'सरकार ने किसानों के हाथों में अधिक धन दिया। करीब 7 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण दिया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया। इन सभी चीजों की वजह से विकास हुआ है। दुनिया में कौन सी ऐसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था है जो पांच फीसदी की दर से विकास कर रही है।' उन्होंने कहा कि शिक्षा और अन्य सामाजिक क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे के विकास को देखते हुए साफतौर पर यह कहा जा सकता है कि सरकार की ओर से कोई भी नीतिगत जड़ता नहीं है।

सांसदों ने संक्षिप्त बजट दस्तावेज का अच्छी तरह से इस्तेमाल किया। लोकसभा में चंडीगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाले बंसल ने कहा, 'मैं काफी लंबे समय से एक रैंक-एक पेंशन के लिए कोशिश कर रहा था और मैं इस बात से काफी खुश हूं कि इसे बजट में शामिल किया गया क्योंकि अब मैं अपने क्षेत्र में जाकर लोगों से कुछ कह सकूंगा।' भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने से रोकने के लिए अगले चुनावों में कांग्रेस के संभावित साथी दलों ने वित्त मंत्री की ओर नरम रुख अपनाया। बीजू जनता दल से राज्यसभा सदस्य भतृहरि महताब ने पूछा, 'बजट में दिखाया गया है कि अब ज्यादा पैसा राज्यों की ओर जाएगा। राज्यों और केंद्र शासित राज्यों की योजनाओं को केंद्र की ओर से दी जाने वाली मदद वर्ष 2013-14 के 1,36,245 करोड़ रुपये बजट अनुमान से बढ़ाकर वर्ष 2014-15 के लिए 3,38,562 रुपये कर दिया गया। तो मैं यह कैसे कह सकता हूं कि यह अच्छा बजट नहीं है।' हालांकि उन्होंने योजनागत खर्च में कटौती पर अपनी चिंता भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि गैर-योजनागत खर्च में इजाफा भी खतरे की घंटी है। उन्होंने कहा, 'राजकोषीय घाटा कम कैसे हो सकता है जबकि रुझान ऐसा है। यह व्यावहारिक नहीं है।'

उन्होंने कहा कि बिहार और ओडिशा जैसे विकासशील राज्य इस बात से निराश जरूर हैं कि आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन द्वारा विकासशील राज्यों पर पेश की गई रिपोर्ट का कोई प्रभाव बजट में देखने को नहीं मिला। विकास को बढ़ावा देने का यह भी एक तरीका हो सकता है।

बजट पर तीखी टिप्पणी करते हुए लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ से कहा, 'अब तो आप स्प्रे भी इस्तेमाल कर चुके हैं, करने के लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा है।' इस त्वरित टिप्पणी का जवाब देते हुए कमलनाथ ने अंतरिम बजट की ओर इशारा करते हुए कहा, 'हम जहां जाते हैं, अपनी छाप छोड़ ही आते हैं। यही हमारी आदत है।'

http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=82624


आंकड़े दुरुस्त करने का सिलसिला जारी है और अब कहा जा रहा है कि आधार और सुधार से व्यापार घाटा भी घटने लगा है।जून महीने में वाणिज्यिक निर्यात 10.22 प्रतिशत बढ़कर 26.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो पिछले साल के समान महीने में 24.02 अरब डॉलर था। इंजीनियरिंग सामानों, तैयार परिधान और पेट्रोलियम उत्पाद की मांग बढऩे से निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि मई 2014 में निर्यात में 14.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, जो जून की तुलना में ज्यादा है।

वहीं दूसरी ओर करीब 13 महीने के अंतराल के बाद आयात में 8.33 प्रतिशत की दर से सकारात्मक बढ़ोतरी दर्ज की गई। मई 2014 में यह 38.24 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल के समान महीने में 35.3 अरब डॉलर था। इसके परिणामस्वरूप जून में कारोबारी घाटा बढ़कर 11.76 अरब डॉलर हो गया, जो मई 2014 में 11.24 अरब डॉलर था।

इस साल की अप्रैल-जून की पहली तिमाही में कुल निर्यात 80.11 अरब डॉलर का रहा, जो पिछले साल की समाम अवधि के 73.28 अरब डॉलर की तुलना में 9.31 प्रतिशत ज्यादा है। बहरहाल वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आज जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल जून के दौरान संचयी आयात 113.19 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल की समान अवधि के दौरान 121.61 अरब डॉलर था।

विशेषज्ञों के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और आधार के प्रभाव के चलते यह परिणाम सामने आए हैं। इस दौरान इंजीनियरिंग के सामानों के निर्यात मेंं 21.57 प्रतिशत, पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में 38.37 प्रतिशत और तैयार परिधानों के निर्यात में 14.39 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

आधार को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से नत्थी किया गया है।सेज महासेज और स्मार्टसिटी समय में नागरिकता निलंबित रहेंगे।वर्जित क्षेत्रों में निजता का कोई अधिकार होने का सवाल ही नहीं है और इन घोषित फारेन टेरीटेरी  यानी वर्जित क्षेत्रों में न भारतीयदंडविधि लागू होगा और न भारतीय संविधान।


इसी सिलसिले का खुलासा बतौर बिजनेस स्टैंडर्ड में सुरभि अग्रवाल और अदिति दिवेकर ने स्मार्ट सिटी पर अपने आलेख में विकास के साथ निजता के सवाल भी उठाये हैं,जो गौरतलब है।खासकर ये स्मार्टसिटी भी सेज महासेज के शहरी आकार ही होंगे और वर्जित क्षेत्र भी। इस रपट पर जरुर ध्यान देने की जरुरत हैः

सरकार ने आम बजट में 100 स्मार्ट सिटी के लिए 7,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इससे विशेषकर प्रौद्योगिकी केंद्रित कंपनियों के लिए तमाम अवसर पैदा होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ समय बाद सरकार को इस तरह की परियोजनाओं के कारण उठने वाले निजता के मुद्दे का समाधान करना पड़ सकता है। भारत में अभी तक इस तरह का निजता कानून नहीं है, जिनमें सरकार के लिए निगरानी के वास्ते वर्जित क्षेत्रों का ब्योरा दिया गया हो।

प्रौद्योगिकी से संबंधित मसलों को देखने वाले थिंकटैंक आईटी फॉर चेंज के कार्यकारी निदेशक परमिंदर जीत सिंह ने कहा, 'प्रौद्योगिकी के मसले पर हम खुश हैं, लेकिन इन मसलों को उठाने के लिए यही अच्छा वक्त है।' एक स्मार्ट सिटी की सड़कें, यातायात, बिजली, पानी और निकासी व्यवस्था एक प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म से संबद्ध होती हैं। इन सभी पर एकीकृत केंद्र के माध्यम से नियंत्रण होता है। इससे न सिर्फ बेहतर शहरी नियोजन में मदद मिलती है, बल्कि संसाधनों के इस्तेमाल में भी सुधार होता है। हालांकि इन शहरों की बात करें तो यहां पर घरों में क्लोज्ड सर्किट कैमरों और तमाम उपकरणों के माध्यम से पैनी निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। इसके साथ ही कार्यालयों में जानकारियां भेजने के लिए चिप लगानी होंगी, हालांकि इससे निजता से संबंधित चिंता हो सकती है। सरकार नागरिकों के बारे में ज्यादा जानकारियां संग्रहित करना बंद कर सकती हैं, सुरक्षित नहीं रखने की स्थिति में इनका दुरुपयोग हो सकता है।

सूचना प्रौद्यगिकी क्षेत्र के उद्योग संगठन नैसकॉम के अध्यक्ष आर चंद्रशेखर ने कहा, 'हमें जानकारी हासिल करने का अधिकार है, लेकिन अगर सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर करें तो यहां निजता का अधिकार खत्म हो जाता है।' पूर्व संचार एवं आईटी सचिव निजता विधेयक पर हुई चर्चाओं का हिस्सा रहे थे, नई सरकार के अंतर्गत इसका भविष्य फिलहाल स्पष्ट नहीं है। इस विधेयक को पहली बार 2010 में तैयार किया गया था और तब से इसके मसौदे में कई बार बदलाव किया जा चुका है। बीते साल दिल्ली मेट्रो में यात्रा कर रहे एक युगल की कैमरा फुटेज इंटरनेट पर लीक हो गई थी, जिससे काफी हायतौबा मची थी। सरकार कितनी जानकारियां रिकॉर्ड कर सकती है, ऐसे डाटा तक किनकी पहुंच हो सकती है, कौन इनका इस्तेमाल कर सकता है और इसके दुरुपयोग पर कितना जुर्माना लगाया जाएगा, ऐसे कई मुद्दे हैं जिनकी व्याख्या होनी जरूरी है।

हालांकि भारत के पास एक सूचना प्रौद्योगिकी कानून है और ऐसे मुद्दों का निबटारा इसके माध्यम से ही किया जाता है, लेकिन चंद्रशेखर ने कहा कि इस क्षेत्र के लिए एक व्यापक कानून की जरूरत है जो सरकारी अधिकारियों और हर किसी पर लागू हो। सिंह ने कहा कि हमें निजता को लेकर स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिए, जिसके आधार पर व्यापक निगरानी की दिशा में सरकार फैसला कर सके। उन्होंने बताया, 'ये शहर व्यापक स्तर पर इंटरनेट से जुड़े होंगे, इसलिए ग्रिड पर मौजूद व्यक्तिगत जानकारियों के संबंध में बेहद सतर्कता से काम करना होगा।'

हालांकि स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में निवेश के मौके देखने वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों का रुख इस पर अलग है। वीडियो इंटेलिजेंस सॉल्युशंस कंपनी वेरिंट सिस्टम के कंट्री प्रबंधक आनंद नवानी ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों को निगरानी के दायरे में रखना नागरिकों के हित में है और इसे निजता के हनन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कंपनी सूरत सेफ सिटी परियोजना में भागीदार रही थी। नवानी ने कहा, 'सूरत में परियोजना को अमल में लाते हुए हमने शहर में ऐसे सार्वजनिक स्थलों की पहचान की, जिनकी निगरानी की जरूरत थी। ये स्थान स्कूल या कॉलेज कैंपस या विनिर्माण या औद्योगिक क्षेत्र नहीं है जिन्हें निजता का हनन माना जा सके।' एनईसी इंडिया के प्रमुख (जन सुरक्षा समाधान) ऐंड्र्यू ची ने कहा कि सुरक्षित शहरों के सभी संसाधनों का सरकारी एजेंसियां इस्तेमाल करती हैं, जिससे उन्हें रहने के योग्य बनाया जा सके।

http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=89238



Green Nod for Adani SEZ







Adani Ports and SEZ, India's largest port operator, has received environment and coastal regulation zone clearance for its special economic zone at Mundra Port in Gujarat, reports Our Bureau. In January, Gujarat High Court had ordered a shutdown of 12 out of 21 units in Mundra SEZ. 18


Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Adani's Mundra SEZ Gets Environment Clearance


NEW DELHI

PRESS TRUST OF INDIA





Will allow it to set up mega desalination plant, effluent treatment plant & intake of sea water

Adani Ports and Special Ec onomic Zone (APSEZ) on Wednesday said it has received environment and other nods for its 8,481 hectares special economic zone, a move that will pave way for setting up facilities like desalination and effluent treatment plants besides boosting exports.

"APSEZ, part of the Adani Group ... has received the environment and coastal regulation zone clearance from the Union Ministry for Environment and Forests, for its 8,481 hectares special economic zone in Mundra," the company said in a statement.

The clearance will now allow APSEZ, which operates India's only port-based SEZ, to set up a mega desalination plant, an effluent treatment plant and intake of sea water, all of which constitute primary infrastructure to be provided for companies setting up business units in the special economic zone.

"The grant of the environmental clearance to Mundra SEZ by MoEF will encourage investment in SEZ and the development is expected to be at a much faster pace as it provides seamless connectivity through sea, rail and road," said Gautam Adani, chairman, Adani Group.

Special Economic Zones have been promoted from the point of view of attracting FDI as well as to promote export led growth.

Industrial units in the SEZ benefit from complete waiver on import duty / excise duty / service tax for capital goods or raw materials procured.

The statement said the SEZ will host industries which will generate additional cargo volumes for the Mundra Port.

The SEZ includes the Mundra port which handles cargo volumes of 100 million tonnes (MT) per annum, the company said.

It is located close to major towns of Bhuj and Gandhidham in Gujarat. "With the grant of environmental and CRZ clearance, all issues related to the same now stand resolved," the company said.

Adani Port shares closed at Rs 281.10 apiece, up 6.82 per cent from the previous close on the BSE.

Adani owns and operates five ports Mundra, Dahej, Hazira, Goa and Visakhapatnam.

Adani recently acquired Dhamra Port in Odisha, thereby marking its entry into the east coast of the country. It is also setting up ports in Tuna Tekra, Mormugao, Kandla and Ennore.




Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

`Real' Forests Half of What Green Ministry Claims

M RAJSHEKHAR

NEW DELHI





The divergence has come to light due to a new methodology adopted by Forest Survey of India

India has no more than 3.3 lakh sq kms of land under real forests, less than half the number claimed by the Ministry of Environment and Forest (MoEF) in the 2013 forest survey released last week.

Among other impacts, low forest cover might be a contributing factor for poor rains as is the case so far this year.

The divergence has come to light due to a new methodology adopted by the Dehradun-based Forest Survey of India (FSI) this year. Till now, the FSI was following a very expansive international definition for calculating forest cover: all lands over a hectare in size, with tree canopies over at least 10% of that area, irrespective of tree species and land ownership are counted as forest cover.

It is a definition which incorporates coffee plantations, orchards and even urban parks – like Delhi's Lodhi Gardens – into a country's land under forests. Another definition, recorded forest area, gets closer to the popular understanding of a forest. Pertaining to all areas recorded as forests in government

records, these largely consist of reserved forests and protected forests.

These fall under the jurisdiction of the forest department and provide ecological security to India –rivers originate from them, for one.

It is important to not mix up these two definitions. As a paper titled "Forest area estimation and reporting: implications for conservation, management and REDD+", published in Current Science's 10 May, 2014, issue noted, if a forest is cut down and a plantation goes up elsewhere, "it will be recorded as a net gain in forest cover." A plantation cannot perform all the functions of a forest.

And yet, for years now, mix them up is what the FSI did. Its reports presented forest cover data but were silent on how recorded forest areas were doing.

That was because while the FSI was getting satellite images chronicling the distribution of trees and forests across the country, it did not have digitised forest boundaries it could use to isolate recorded forests for closer study.

It is this problem that has now been fixed. The FSI, says Rajesh Kumar, senior deputy director at the institution, turned to the Survey Of India's topographic maps. While being prepared, these maps highlighted forest boundaries. Even today, says the FSI report, these boundaries "by and large" correspond to recorded forest area of the country.

"This is not the perfect answer," says a former director-general of forests. Even so, the 2013 FSI report is a step towards understanding how India's forests are doing. While the Forest Department has 771,821 sq km under its jurisdiction, we now know forests cover just 530,779 sq km of that land.

Seed forests, originating from seeds that naturally germinated in that area, account for 63% (or 334,390.77 sq km) of the land under the FD's command. In other words, natural forests account for just 43% of the land under the forest department.

GREEN COVER IN CHHATTISGARH With 49,922 sq km of forests in greenwash areas, the state shows a net increase of 1 sq km.







প্রবন্ধ

সব সংস্কার নিয়ে ঢাক পেটাতে হবে কেন

বাজেটে ঘোষণা না করেও বহু পরিবর্তন আনা যায়। হয়তো সরকার 'অলক্ষ্যে সংস্কার'-এর পথ বেছে নিতে চায়। আমাদের শোরগোলপ্রবণ গণতন্ত্রে সেটা বিচক্ষণতার কাজ হতে পারে। আলোক রায়

১৭ জুলাই, ২০১৪, ০০:০০:০০


কেন্দ্রীয় বাজেটে 'আর্থিক সংস্কার'-এর কী রূপরেখা অর্থমন্ত্রী পেশ করেন, তা নিয়ে বিনিয়োগকারীদের মধ্যে স্বভাবতই একটা উত্‌সাহ তৈরি হয়েছিল। বাজেট যদিও মূলত সরকারি আয়ব্যয়ের হিসেবনিকেশ, কিন্তু আমাদের দেশে বাজেট থেকে সরকারি নীতির গতিপ্রকৃতি সম্পর্কে অনেক সময় কিছুটা ধারণা করা যায়। যেহেতু অনেক দিন পরে কেন্দ্রে নতুন সরকার এসেছে এবং প্রধানমন্ত্রীর ভাবমূর্তি শিল্পবাণিজ্যের অনুকূল বলে সুপরিচিত, সুতরাং এ বারে প্রত্যাশা কিছুটা বেশিই ছিল।

মূল্যস্ফীতির হার যদি নিয়ন্ত্রণ করা যায়, একটা সুস্থিত কর ও শুল্ক নীতি চালু করা হয় এবং সরকারি জমাখরচের খাতায় কিছুটা শৃঙ্খলা আনা যায়, তবে বিনিয়োগ উত্‌সাহিত হতে পারে। বস্তুত, কেন্দ্রীয় সরকারের অর্থনৈতিক সমীক্ষায় ২০১৪-১৫ সালে ৫.৫ শতাংশ আয়বৃদ্ধির প্রত্যাশা করা হয়েছে। এই পরিপ্রেক্ষিতে এ বারের বাজেটের এবং বৃহত্তর অর্থনৈতিক কর্মসূচির কয়েকটি দিক নিয়ে আলোচনা করব।

ভূতপূর্ব ইউপিএ সরকারের অর্থমন্ত্রী পি চিদম্বরম ২০১৪-১৫'র অন্তর্বর্তী বাজেটে ফিসকাল ডেফিসিট বা রাজকোষ ঘাটতির হার জিডিপির ৪.১ শতাংশে বেঁধে রাখতে চেয়েছিলেন। নতুন এনডিএ সরকারের অর্থমন্ত্রী অরুণ জেটলি সেই লক্ষ্যমাত্রাই বজায় রেখেছেন। এটা একটু আশ্চর্যেরই বটে, কারণ বেশির ভাগ বিশেষজ্ঞের এবং জেটলির নিজেরও ধারণা যে, এই লক্ষ্য পূরণ করা কঠিন হবে। তবে আমার মনে হয়, শেষ পর্যন্ত ঘাটতি বেঁধে রাখতে জেটলি হয়তো সক্ষম হবেন। তার একটা কারণ হল, ইতিমধ্যেই অর্থবর্ষের সাড়ে তিন মাস চলে গেছে, বিভিন্ন মন্ত্রক নানা প্রকল্প তৈরি করতে করতে আরও কয়েক মাস কেটে যাবে, সুতরাং বরাদ্দ অর্থের অনেকটাই সম্ভবত বছরের শেষে অব্যবহৃত থাকবে। তা ছাড়া, শেয়ার বাজার যে রকম তেজী, তাতে বিলগ্নিকরণ বাবদ অর্থমন্ত্রী তাঁর প্রস্তাবিত প্রায় ৬৫০০০ কোটি টাকা তুলে ফেলতে পারবেন বলেই মনে হয়, এমনকী প্রাপ্তি তার বেশিই হতে পারে। লাভজনক রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলি থেকে লভ্যাংশও তাঁর অনেকটা প্রয়োজন মেটাতে পারে।

আরও বড় দুশ্চিন্তা হল রেভিনিউ ডেফিসিট বা রাজস্ব খাতে ঘাটতি নিয়ে। বাজেটে ধরে নেওয়া হয়েছে, চলতি অর্থবর্ষে রাজস্ব ঘাটতি হবে জিডিপির ২.৯ শতাংশ। রাজস্ব ঘাটতি মানে এই যে, সরকারের ভোগব্যয়ই তার আয়ের চেয়ে বেশি, অর্থাত্‌ সে ব্যয়ের কিছুটা তাকে পুঁজি ভেঙে বা ধার করে মেটাতে হচ্ছে। সুতরাং রাজস্ব খাতে ঘাটতির বদলে উদ্বৃত্ত থাকা বা অন্তত ঘাটতি শূন্য হওয়া দরকার। সরকার ঋণ নেবে, তাতে কোনও ক্ষতি নেই, কিন্তু সেই ঋণের টাকায় ভোগব্যয় করা উচিত নয়, তা দিয়ে নতুন বিনিয়োগ করা বিধেয়। অর্থমন্ত্রীকে রাজস্ব ঘাটতি ক্রমশ কমিয়ে আনার চেষ্টা করতেই হবে, সেটা কঠিন কাজ। এই সূত্রেই ব্যয়সংকোচের, বিশেষ করে ভর্তুকি নিয়ন্ত্রণের প্রশ্ন উঠবে। অরুণ জেটলির বাজেট ভাষণে এ বিষয়ে বিশদ কিছু বলা হয়নি, কেবল জানানো হয়েছে, ভর্তুকি সহ সব রকমের সরকারি ব্যয় খতিয়ে দেখার জন্য একটি কমিটি নিয়োগ করা হবে। তবে ভর্তুকি যাঁদের প্রাপ্য তাঁদের চিহ্নিত করার জন্য সরকার তত্‌পর হতে পারে, সে ক্ষেত্রে অপাত্রে দানের মাত্রা কমবে, খরচেরও সাশ্রয় হবে। সেটা বাজেটে বলার ব্যাপার নয়, যদিও তার সুফল বাজেটের ওপর পড়বে।

বাজেটে বিভিন্ন শিল্প-উপকরণের ওপর আমদানি শুল্ক রদ করে শিল্পকে উত্‌সাহ দেওয়া হয়েছে। বিশেষ অর্থনৈতিক অঞ্চল (সেজ) এবং বড় আকারের শিল্প-গুচ্ছকে নতুন করে উত্‌সাহিত করার কথাও বলেছেন অর্থমন্ত্রী। এ-সবই শিল্পের অনুকূল। সরকার নাকি কিছু কিছু রাজ্যে শিল্প-পার্ক নির্মাণে চিনা বিনিয়োগে উত্‌সাহ দিতে চায়।

অর্থমন্ত্রী প্রতিরক্ষা ও বিমায় বিদেশি বিনিয়োগের সর্বোচ্চ সীমা বাড়িয়ে ২৬ থেকে ৪৯ শতাংশ করার প্রস্তাব দিয়েছেন। অস্ত্র আমদানিতে ভারত পৃথিবীতে সবার আগে। প্রতিরক্ষার সরঞ্জাম দেশে তৈরি করতে পারলে বিদেশি মুদ্রার খরচ কমবে, কর্মসংস্থানও বাড়বে, বাড়বে সরকারি রাজস্বও। কিন্তু প্রতিরক্ষা শিল্পের নিয়ন্ত্রণ সরকারের হাতে রেখে দিলে বিদেশি বিনিয়োগ এবং প্রযুক্তি কতটা সত্যিই আসবে, সে বিষয়ে সংশয় আছে। অর্থমন্ত্রী এ বিষয়ে সচেতন, কিন্তু তিনি বিভিন্ন সাক্ষাত্‌কারে জানিয়েছেন, ভারতের বর্তমান রাজনৈতিক পরিবেশে প্রতিরক্ষা ক্ষেত্রে বিদেশি উদ্যোগীকে সংখ্যাগরিষ্ঠ মালিকানা বা পরিচালনার নিয়ন্ত্রণ ছেড়ে দেওয়া কঠিন। মনে রাখতে হবে, সঙ্ঘ পরিবারের মধ্যেই 'স্বদেশি'র প্রবক্তারা প্রবল। অন্য দিকে, রাষ্ট্রায়ত্ত ব্যাঙ্ক, বিমা কোম্পানি এবং কোল ইন্ডিয়ার মতো সংস্থাগুলিতে সরকারি মালিকানার অনুপাত ৫১ শতাংশের নীচে নামাতে গেলে সংসদে বিল পাশ করাতে হবে। সেটা এখন কঠিন কাজ, কারণ রাজ্যসভায় এনডিএ-র সংখ্যার জোর নেই। প্রসঙ্গত, রেল বাজেটেও বিদেশি বিনিয়োগের প্রস্তাব আছে, যদিও এ বিষয়ে বিশদ করে কিছু বলা হয়নি।

বিনিয়োগ এবং শিল্পপ্রসারের পথে সমস্ত বাধা শুধু বাজেট দিয়েই দূর করা যাবে, এটা অবশ্যই কেউ আশা করেন না। যেমন, সাম্প্রতিক জমি অধিগ্রহণ আইন সম্পর্কে শিল্পোদ্যোগীদের নানা আপত্তি আছে। তাঁরা মনে করেন, এই আইন জমি অধিগ্রহণের প্রক্রিয়াকে অস্বাভাবিক বিলম্বিত করে তুলবে। তা ছাড়া, অরণ্য আইন এবং পরিবেশ সংক্রান্ত ছাড়পত্র পেতে দেরি হওয়ার ফলেও অনেক প্রকল্প দীর্ঘ দিন আটকে আছে। শ্রম আইনের জটিলতা ও ঠিকা শ্রমিক নিয়োগের ক্ষেত্রে নানা বিধিনিষেধও শিল্পের একটা সমস্যা। কিন্তু এ সবের সমাধান অর্থ মন্ত্রকের হাতে নেই। পরিকাঠামোর সমস্যাও বিস্তর, যথা, খারাপ রাস্তা, বন্দরে মাল খালাসে দেরি, রেল ওয়াগনের অভাব, কয়লা ও বিদ্যুত্‌ সরবরাহে অনিশ্চয়তা। পরিকাঠামোর উন্নতিসাধনে অর্থ বরাদ্দ অর্থমন্ত্রীর কাজ, বস্তুত এই বাজেটে পরিকাঠামোর বিভিন্ন খাতে, বিশেষ করে সেচ বা হিমঘরের মতো কৃষি-পরিকাঠামোয় অনেকটা অর্থই বরাদ্দ করা হয়েছে, কিন্তু অর্থ বরাদ্দ হলেই পরিকাঠামো হয় না।

সব কিছু বাজেটে ঘোষণা না করে বা বেশি ঢাকঢোল না পিটিয়ে সরকার অনেক পরিবর্তন আনতে পারে। যেমন, চিদম্বরম উত্‌পাদন শুল্কে যে সব ছাড় দিয়েছিলেন, সেগুলির মেয়াদ চুপচাপ ডিসেম্বর অবধি বাড়িয়ে দেওয়া হয়েছে। আবার, রেল বাজেটের আগেই যাত্রিভাড়া ও পণ্য-মাসুল বাড়ানো হয়েছে। শোনা যাচ্ছে, ডিজেলের মতোই রান্নার গ্যাসের ক্ষেত্রেও নিয়মিত অল্প অল্প করে দাম বাড়িয়ে ভর্তুকি কমানো হতে পারে। রাজস্থানে বিজেপি সরকার রাজনৈতিক বিরোধিতা সত্ত্বেও শ্রম আইন সংশোধনে উদ্যোগী হয়েছে। তারা সফল হলে অন্য রাজেও এমন উদ্যোগ দেখা যেতে পারে। আইন মন্ত্রক জমি অধিগ্রহণ আইন সংশোধনের চেষ্টা শুরু করতে পারে। আধার কার্ড সম্পর্কে মোদী সরকারের প্রাথমিক আপত্তি থাকলেও এখন শোনা যাচ্ছে, খাদ্য, সার, রান্নার গ্যাস এবং কেরোসিনের ক্ষেত্রে প্রাপকের হাতে ভর্তুকির টাকা সরাসরি তুলে দেওয়ার জন্য সরকার আধার কার্ড বা অনুরূপ কোনও পরিচয়পত্রের সাহায্য নিতে পারে। এমনকী খুচরো ব্যবসায় বিদেশি বিনিয়োগে অনুমতি দেওয়ার সম্ভাবনাও অর্থমন্ত্রী পুরোপুরি নাকচ করেননি, তিনি আপাতত বলেছেন, আগে অন্য সহজতর ক্ষেত্রে সংস্কারের কাজ হোক, তার পর জটিল ব্যাপারগুলি নিয়ে ভাবা যাবে। বস্তুত, কোনও বিদেশি কোম্পানি ভারতে কিছুটা উত্‌পাদন করলে তাকে এ দেশে মাল্টিব্র্যান্ড ই-রিটেলিংয়ের অনুমোদন দেওয়া হয়েছে, এর পরিধি ক্রমশ প্রসারিত হতে পারে।

হয়তো বলা চলে, সরকার 'অলক্ষ্যে সংস্কার'-এর পথ বেছে নিতে চায়। আমাদের মতো শোরগোলপ্রবণ অস্থির গণতন্ত্রে সেটা বিচক্ষণতার পরিচায়ক হতে পারে।

ইন্ডিয়ান ইনস্টিটিউট অব ম্যানেজমেন্ট কলকাতা'য় অর্থনীতির ভূতপূর্ব শিক্ষক।

Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Just a Month of Modi Dispels Years of Gloom


NEW DELHI

OUR BUREAU





Are Good Days Here? Exports are up, inflation is cooling, and factory production and services activity have gathered pace. The man on Dalal St is also celebrating

The first full month under the Narendra Modi government's watch turned out to be a good one for the economy with macro indicators looking up and inflation lower despite lingering monsoon doubts, suggesting that growth could have finally bottomed out.

Exports rose 10.2% in June from a year ago, the government said on Wednesday , marking yet another positive development following a series of good numbers in recent days that suggest the economy is picking up from decade-low growth rates in the past two years. Industrial production rose to a 19-month high of 4.7% in May while car sales rose at their fastest pace in 10 months in June, clearly indicating that the consumer was more confident of the new government shaping recovery .

Services activity rose to a 17-month high in June on the strength of robust order flow, according to the HSBC Purchasing Managers' Index, indicating rising optimism in the sector that has a share of more than 60% in the economy .

Imports rose for the first time in a year, at around 8.3%, confirming some sort of recovery in the domes tic economy even after discounting for higher gold imports, which rose nearly 65% in June after the Reserve Bank of India eased rules by allowing more entities to import gold.

India's other big concern, retail inflation, dropped to 7.31% in June, the lowest since the government started reporting consumer price index inflation in January 2012, although the monsoon fears loom large.

And to top it all, the trade deficit was $11.78 billion in June, the highest in a year, but only marginally more than $11.28 billion in May .









Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

ON SELLING SPREE - Big Exits by D-St's Small Investors

RAJESH MASCARENHAS

MUMBAI





As shares surge, retail investors book profits

In the stock market surge over the past few months — through the run-up to the elections that the Narendra Modi-led BJP won and subsequently — overseas investors have clearly been buying big time.

So who's been selling? Domestic retail investors, looking to book profit as shares surged, some of them exiting after having entered as far back as seven years ago. Experts suggested they may have been in too much of a rush to get out.

Data for the 1,000 or so companies that have published shareholding patterns for the quarter ended June show small investors have reduced their stake in more than two-thirds of them, irrespective of sectors or size. Though they exited substantially from high beta midcap stocks, some large cap stocks such as SBI, Tata Steel, Reliance Capital and JSW Steel also saw retail shareholders moving out.



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